आवेशित चालक की स्थितिज ऊर्जा का सूत्र क्या होता है? - aaveshit chaalak kee sthitij oorja ka sootr kya hota hai?

जब किसी चालक को आवेशित किया जाता है, तो इसके लिए हमे कुछ कार्य करना पड़ता है। यही कार्य चालक में स्थितिज ऊर्जा के रूप में संचित हो जाता है जिसे आवेशित चालक की ऊर्जा कहते है।
ऊर्जा का व्यंजक - माना कि चालक को Q आवेश देने पर उसका विभव V हो जाता है। चूँकि चालक के विभव में शून्य से क्रमश: वृद्धि होती है एवं अंतिम विभव V हो जाता है, अत: यह कहा जा सकता है कि सम्पूर्ण आवेश Q को औसत विभव `(0 + V)/(2) = (V)/(2)` पर दिया जाता है।
अत: चालक को आवेशित करने में किया गया कार्य
W = आवेश `xx` औसत विभव
`W = Q xx (V)/(2) = (1)/(2)QV`
चूँकि विद्युत क्षेत्र संरक्षी होता है, अत: चालक कि ऊर्जा
`U = W = (1)/(2)QV`...(1)
यही आवेश तथा विभव के पदों में आवेशित चालक की ऊर्जा का सूत्र है।
यदि चालक की धारिता C होम तो
`Q = C.V`....(2)
समी (1) से,
`U = (1)/(2) (CV) V = (1)/(2) CV^(2)`....(3)
यही धारिता तथा विभव के पदों में आवेशित चालक की ऊर्जा का सूत्र है।
पुन: `Q = CV`
`rArr V = (Q)/(C)`
अत: समी (1) से,
`U = (1)/(2) Q ((Q)/(C)) = (1)/(2) (Q^(2))/(C)`
यही आवेश तथा धारिता के पदों में आवेशित चालक की ऊर्जा का सूत्र है।
`:. U = (1)/(2) QV = (1)/(2) CV^(2) = (1)/(2) (Q^(2))/(C)`

Solution : आवेशित चालक की स्थितिज ऊर्जा – किसी चालक को आवेशित करने में किया गया कार्य ही उस चालक की स्थितिज ऊर्जा कहलाती है।
व्यंजक – माना कि चालक की धारिता C है। जब इस चालक पर कोई आवेश नहीं है तब इसका विभव `V_(1) = 0` है। परन्तु जब इस पर Q आवेश पहुँचा दिया जाता है। तब इसका विभव `V_(2) = V` हो जाता है। इस प्रकार हम मान सकते है। कि आवेश Q के छोटे – छोटे भागों को अनन्त से चालक के पृष्ठ तक लाने में चालक का औसत विभव `(0 + V)/(2) = (V )/(2)` रहता है अत : चालक का औसत विभव `= (0+V )/(2) = (V )/(2)`
तथा चालक को Q आवेश देने में सम्पन्न कार्य ` W = Q xx .(w)/(2) [ :. "कार्य = आवेश" xx "औसत विभव" ]`
यह कार्य w ही चालक में स्थितिज ऊर्जा u के रूप में संचित हो जाता है। अर्थात कार्य W= U अतl:
ऊर्जा `U = (1)/(2) QV ` परन्तु `Q= CV` से
ऊर्जा `U= (1)/(2) CV ,V = (1)/(2) CV^(2)`
`U= (1)/(2) QV = (1)/(2) CV^(2) = (1)/(2) .(Q^(2))/(C )`
ऊर्जा व्यय का कारण - विभिन्न वाले आवेशित चालकों को चालक तार से जोडने पर अधिक विभव वाले चालक से कम विभव वाले चालक की ओर धन आवेश प्रवहित होने लगता है। आवेश को प्रवहित करने में यह निकाय कुछ कार्य करता है अत: उसकी कुछ स्थितिज ऊर्जा आवेश प्रवहित करने के कार्य में व्यय हो जाती है।

Solution : जब किसी चालक को आवेशित किया जाता है, तो इसके लिए हमे कुछ कार्य करना पड़ता है। यही कार्य चालक में स्थितिज ऊर्जा के रूप में संचित हो जाता है जिसे आवेशित चालक की ऊर्जा कहते है।
ऊर्जा का व्यंजक - माना कि चालक को Q आवेश देने पर उसका विभव V हो जाता है। चूँकि चालक के विभव में शून्य से क्रमश: वृद्धि होती है एवं अंतिम विभव V हो जाता है, अत: यह कहा जा सकता है कि सम्पूर्ण आवेश Q को औसत विभव `(0 + V)/(2) = (V)/(2)` पर दिया जाता है।
अत: चालक को आवेशित करने में किया गया कार्य
W = आवेश `xx` औसत विभव
`W = Q xx (V)/(2) = (1)/(2)QV`
चूँकि विद्युत क्षेत्र संरक्षी होता है, अत: चालक कि ऊर्जा
`U = W = (1)/(2)QV`...(1)
यही आवेश तथा विभव के पदों में आवेशित चालक की ऊर्जा का सूत्र है।
यदि चालक की धारिता C होम तो
`Q = C.V`....(2)
समी (1) से,
`U = (1)/(2) (CV) V = (1)/(2) CV^(2)`....(3)
यही धारिता तथा विभव के पदों में आवेशित चालक की ऊर्जा का सूत्र है।
पुन: `Q = CV`
`rArr V = (Q)/(C)`
अत: समी (1) से,
`U = (1)/(2) Q ((Q)/(C)) = (1)/(2) (Q^(2))/(C)`
यही आवेश तथा धारिता के पदों में आवेशित चालक की ऊर्जा का सूत्र है।
`:. U = (1)/(2) QV = (1)/(2) CV^(2) = (1)/(2) (Q^(2))/(C)`

Solution :  प्रत्येक चालक को आवेशित करने में कुछ कार्य करना पड़ता है। यह कार्य चालक में वैद्युत स्थितिज ऊर्जा के रूप में संचित रहता है। इसे ही आवेशित चालक की ऊर्जा कहते हैं ।
व्यंजक-मानलो किसी चालक की धारिता C है। उसे 0 आवेश देने पर उसका विभव v हो जाता है। सम्पूर्ण आवेश Q चालक में एक साथ नहीं चला जाता अपितु इसमें कुछ समय लगता है।
चालक का प्रारम्भिक विभव शून्य तथा अन्तिम विभव V है।
चूँकि चालक के विभव में क्रमश: वृद्धि होती है । ऐसा माना जा सकता है कि चालक को सम्पूर्ण आवेश औसत विभव `(0+V)/(2) = (V)/(2)` पर दिया गया है।
अत: चालक को आवेशित करने में किया गया कार्य W = आवेश x औसत विभव
`W = Qxx (V)/(2) = (1)/(2) QV`
अत: आवेशित चालक की ऊर्जा `U =(1)/(2) QV" "......(1)`
समी. (1) का अन्य रूप निम्नानुसार प्राप्त कर सकते है
`C= (Q)/(V)` या `Q + CV`
समी. (1) में मान रखने पर,
`U =(1)/(2)CV^(2)" "...(2)`
पुनः`" "C= (Q)/(V) ` या `V =(Q)/(C)`
समी. ( 1) में मान रखने पर,
` U = (1)/(2)Q xx (Q)/(C)`
`U = (1)/(2) .(Q^(2))/(C)" ".......(2) `
समी. (1), (2) और (3) आवेशित चालक की ऊर्जा के लिए व्यंजक हैं।
समी, (2) से स्पष्ट है कि `U prop V^(2)`
अत: किसी आवेशित चालक की ऊर्जा उसके विभव के वर्ग के अनुक्रमानुपाती होती है।
विभिन्न विभव वाले दो चालकों को परस्पर जोड़े जाने पर आवेश को प्रवाहित करने के लिए निकाय द्वारा कार्य किया जाता है। अत: उसकी कुछ स्थितिज ऊर्जा व्यय हो जाती है।

आवेशित चालक की स्थितिज ऊर्जा क्या होती है?

Solution : आवेशित चालक की स्थितिज ऊर्जा – किसी चालक को आवेशित करने में किया गया कार्य ही उस चालक की स्थितिज ऊर्जा कहलाती है। <br> व्यंजक – माना कि चालक की धारिता C है। जब इस चालक पर कोई आवेश नहीं है तब इसका विभव `V_(1) = 0` है। परन्तु जब इस पर Q आवेश पहुँचा दिया जाता है।

आवेशित चालक की ऊर्जा कितनी होती है?

किसी आवेशित चालक की स्थितिज ऊर्जा के लिए व्यंजक U = 1/2 CV2 अथवा 1/2 q2/C प्राप्त कीजिए जहाँ C चालक की धारिता q चालक पर आवेशं तथा V उसका विभव है।

आवेशित चालक क्या है?

Solution : प्रत्येक चालक को आवेशित करने में कुछ कार्य करना पड़ता है। यह कार्य चालक में वैद्युत स्थितिज ऊर्जा के रूप में संचित रहता है। इसे ही आवेशित चालक की ऊर्जा कहते हैं । <br> व्यंजक-मानलो किसी चालक की धारिता C है

संधारित्र की स्थितिज ऊर्जा क्या है?

(electric potential energy of capacitor) संधारित की विद्युत स्थितिज ऊर्जा (U) : किसी संधारित्र को आवेशित करते समय विभिन्न आवेशो द्वारा किया गया कुल कार्य संधारित्र की विद्युत स्थितिज ऊर्जा के रूप में संचित रहता है। माना संधारित्र को dq आवेश देने में संपन्न कार्य dW है।