अकबर ने तानसेन को क्या उपाधि दी थी? - akabar ne taanasen ko kya upaadhi dee thee?

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CT 1: Ancient Indian History

10 Questions 30 Marks 8 Mins

Latest UPSSSC Junior Engineer Updates

Last updated on Sep 26, 2022

The Uttar Pradesh Subordinate Services Selection Commission (UPSSSC) released the revised official answer key for UPSSSC JE (Junior Engineer) for the 2018 recruitment cycle on 30th July 2022. The candidates can check the UPSSSC JE Answer Key from here. A total of 1470 candidates are to be recruited for UPSSSC JE. The selected candidates will be entitled to a salary ranging between 3-4 Lakhs per annum.

मियां तानसेन के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन सा कथन सही नहीं है?

  1. तानसेन सम्राट अकबर द्वारा उन्हें दी गई उपाधि थी।
  2. तानसेन ने हिंदू देवी-देवताओं पर ध्रुपद की रचना की।
  3. तानसेन ने अपने संरक्षक पर गीतों की रचना की।
  4. तानसेन ने कई रागों का आविष्कार किया।

Answer (Detailed Solution Below)

Option 1 : तानसेन सम्राट अकबर द्वारा उन्हें दी गई उपाधि थी।

अकबर ने तानसेन को क्या उपाधि दी थी? - akabar ne taanasen ko kya upaadhi dee thee?

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30 Questions 60 Marks 30 Mins

विकल्प 1  सही नहीं है।

तानसेन -

  • तानसेन का उपनाम उन्हें ग्वालियर के राजा विक्रमजीत ने दिया था।
  • अकबर ने तानसेन को कांताभरण वनविलास की उपाधि दी।
  • वे रीवा के राजा रामचंद्र सिंह के दरबारी कवि थे और अकबर भी।
  • उन्होंने गायन की ध्रुपद शैली में विशेषज्ञता हासिल की।
  • उन्होंने रात्री राग दरबारी कान्हरा, प्रातःराग मियां की तोड़ी, मध्याह्न राग, मियां की सारंग, मौसमी राग मियां की मल्हार का आविष्कार किया।
  • उन्होंने हिंदू देवी-देवताओं पर कई ध्रुपद की रचना की, जैसे गणेश, शिव, पार्वती और राम।
  • उन्होंने अपने संरक्षक भी पर गीतों की रचना की।

Latest UPSC Civil Services Updates

Last updated on Nov 28, 2022

UPSC IAS 2022 DAF-II Form Fill Up begins on 8th December 2022. Candidates selected for the interview round of the UPSC IAS 2022 Exams should fill out the DAF Form by 14th December 2022 by 06:00 pm. UPSC IAS Mains 2022 Results Out. The UPSC IAS (UPSC) Mains examination was conducted on the 16th, 17th, 18th, 24th, and 25th of September 2022. Candidates who are qualified in the mains are eligible to attend the Interview. The candidates are required to go through a 3 stage selection process - Prelims, Main and Interview. The marks of the main examination and interview will be taken into consideration while preparing the final merit list. The candidates must go through the UPSC Civil Service mains strategy to have an edge over others.

लेख सूचना

तानसेन

पुस्तक नाम हिन्दी विश्वकोश खण्ड 5
पृष्ठ संख्या 331-332
भाषा हिन्दी देवनागरी
संपादक फूलदेवसहाय वर्मा
प्रकाशक नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
मुद्रक नागरी मुद्रण वाराणसी
संस्करण सन्‌ 1965 ईसवी
उपलब्ध भारतडिस्कवरी पुस्तकालय
कॉपीराइट सूचना नागरी प्रचारणी सभा वाराणसी
लेख सम्पादक जयदेव सिंह

तानसेन भारतीय संगीत में कदाचित्‌ की किसी को इतना यश मिला हो जितना तानसेन को मिला, किंतु खेद की बात है कि उनके जीवन के सबंध में ऐतिहासिक तथ्य बहुत कम मालूम हैं।

तानसेन के ठीक नाम का भी अभी तक पता नहीं चल पाया है। तन्नु, तन्न, त्रिलोचन, तनसुख, रामतनु इत्यादि उनके नाम बतलाए जाते हैं। 'तानसेन' उनकी उपाधि थी। कुछ लोगों का कहना है कि ग्वालियर के राजा विक्रमाजीत सिंह तोमर ने यह उपाधि उन्हें दी थी, किंतु बहुत से लेखकों का विश्वास है कि बांधवगढ़ के राज रामचंद्र सिंह ने यह उपाधि उन्हें दी थी।

अबुलफ़ज्ल़ ने अपने लेखों में उन्हें ग्वालियरी कहा है। संभवत: ग्वालियर में ही कहीं उनका जन्म हुआ था। ग्वालियर से २० मील पर बेहट नाम का एक गाँव है। यही उनका जन्मस्थान कहा जाता है। उस गाँव में एक शिवमंदिर है और उसके पास एक चबूतरा। शिवमंदिर थोड़ा सा झुका हुआ है। किंवदंती है कि चबूतरे पर बैठकर तानसेन तान आलाप लिया करते थे। उनके तान आलाप के कारण वायु में जो स्पंदन हुआ उसी से शिवमंदिर झुक गया।

अबुलफ़ज्ल़ ने 'अकबरनामा' में उनकी मृत्यु की तारीख २६ अप्रैल, सन्‌ १५८९ बतलाई है। वह मृत्यु के समय लगभग ८० या ८५ वर्ष के थे। अत: उनका जन्म १५०४ से १५०९ ईसवी सन्‌ में हुआ होगा।

अनुश्रुति के अनुसार उन्हें संगीत की शिक्षा स्वामी हरिदास से मिली थी किंतु स्वामी जी केवल ब्रह्मचारी को ही अपना शिष्य बनाते थे। यह संभव है कि स्वामी जी ने कभी कभी कुछ रागों के विषय में उन्हें कुछ बतलाया हो। कुछ लोग उन्हें ग्वालियर के सूफी संत ग़्साौ मुहम्मद का शिष्य बतलाते हैं, किंतु ग़्साौ मुहम्मद गायक नहीं थें। अत: तानसेन उनके शिष्य नहीं हो सकते। उनका जन्म 'कलावंत' के घर में हुआ था। संभवत : उन्होने संगीत की शिक्षा अपने पिता से पाई थी जिनका नाम मकरंद पांडेय कहा जाता है। संभव है, उन्हें कुछ शिक्षा राजा मानसिंह या विक्रमाजीतसिंह के दरबारी गायकों से भी मिली हो।

सन्‌ १५१९ में विक्रमाजीतसिंह इब्राहिम लोदी के द्वारा परास्त हुए। उनका राज्य चले जाने पर ग्वालियर के कलाकर इधर उधर चले गए। तानसेन पहले शेरशाह सूरी के पुत्र दौलत खाँ सूरी के दरबारी गायक नियुक्त हुए। दौलत खाँ की मृत्यु के अनंतर वह बांधवगढ़ के राजा रामचंद्रसिंह के यहाँ नियुक्त हुए। उस समय के संस्कृत कवि माधव ने 'वीरभानूदय काव्यम' में तानसेन के ्ध्रुावपद गान की भूरि भूरि प्रशंसा की है और लिखा है कि राजा रामचंद्रसिंह ने तानसेन को करोड़ो रुपये दिये।

अकबर ने तानसेन की गानकला की प्रशंसा सुनी। उन्होंने अपने अफसर जलाल खाँ कुर्ची को सन. १५६२ ई० मे राजा रामचंद्रसिंह के पास फ़रमान सहित भेजा जिसमें उन्होने यह इच्छा प्रकट की कि तानसेन उनके दरबार में भेज दिए जाएँ। शाही फ़रमान के कारण राजा रामचंद्रसिंह को इच्छा न होते हुए भी तानसेन को दिल्ली दरबार भेजना पड़ा। 'आईने अकबरी' में अबुलफ़ज्ल़ ने लिखा है कि अकबर ने अपने दरबार में तानसेन का गाना सुनकर पहली बार दो लाख टका पुरस्कार स्वरूप दिया। अबुलफ़ज्ल़ का कहना है कि सहस्र वर्ष तक नानसेन जैसा गायक भारत में नही हुआ।

तानसेन का कंठ बहुत मधुर था और स्वर का लगाव उनका विशेष गुण था। उन्होंने कई रागों का निर्माण किया जिनमें मियाँ की तोड़ी मियाँ की सारंग, मियाँ की मल्लार और दरबारी कानड़ा मुख्य थे। अकेले दरबारी कानड़ा ही उनके नाम को अमर करने के लिए पर्याप्त है।

वह केवल गायक ही नहीं, नायक भी थे। संगीत में नायक उन्हें कहते थे जो स्वर ताल में गीत की रचनाएँ करते थे। 'रागकल्मद्रुम' में उनके द्वारा रचित कई ध्रुवपद दिए हुए हैं। राजा नवाब अली ने अपने 'मारध्रुलनग़्माात' में तानसेन द्वारा रचित कुछ ध्रुवपद स्वरलिपि में दिए हैं। खेद है, तानसेन के ध्रुवपदों का अभी पूर्ण संग्रह नहीं हो सका है।

तानसेन ने संगीतशास्त्र पर दो पुस्तकें भी लिखी - संगीतसार और रागमाला। यह दोनों पुस्तकें प्रकाशित हो गई हैं।

तानसेन ने एक मुसलमान महिला रख ली थी जिसके कारण हिंदू समाज से बहिष्कृत हो गए। उन्होंने स्वेच्छा से इस्लाम धर्म नहीं स्वीकार किया था। ग्वालियर में ग़्साौ मुहम्मद के मकबरे के पास एक छोटा से मकबरा है जो तानसेन की कब्र कहा जाता है। यहाँ प्रत्येक वर्ष तानसेन का उर्स मनाया जाता है।

टीका टिप्पणी और संदर्भ

तानसेन की उपाधि क्या थी?

अकबर ने तानसेन को कांताभरण वनविलास की उपाधि दी। वे रीवा के राजा रामचंद्र सिंह के दरबारी कवि थे और अकबर भी। उन्होंने गायन की ध्रुपद शैली में विशेषज्ञता हासिल की।

अकबर ने तानसेन को क्या कहा?

एक दिन अकबर ने तानसेन से कहा, 'तानसेन! कोई शक नहीं, तुम बहुत अच्छा गाते हो। मन प्रसन्न हो जाता है। लेकिन बुरा न मानना, तुम्हारे गुरु स्वामी हरिदास के गायन में जो स्वर्गीय और आत्मिक आनंद है वह तुम्हारे गायन में नहीं है।

अकबर ने जगत गुरु की उपाधि दी?

Q. अकबर ने किस जैन गुरु को जगतगुरु की उपाधि दी? Notes: हीरविजय सूरी 1526 से 1595 तक के जैन मुनि थे।

तानसेन का पूरा नाम क्या है?

सही उत्‍तर रामतनु पांडेय है। तानसेन जन्म से हिंदू थे और उन्होंने अपना अधिकांश जीवन भक्ति गीतों की रचना में बिताया।