Bihar Board Class 11th Hindi Book Solutions Show गालिब पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. उनकी भाषा की सशक्ता सार एवं चित्रण दुनिया के लिए एक दुर्लभ उदाहरण है। शब्द से शब्द जोड़कर उसकी महिमा को व्यापक अर्थ में जनहित में उद्घाटित करनेवाले कवियों के श्रेणी में गालिब प्रतिष्ठित हैं। कवि के रूप में उन्होंने हिन्दी, उर्दू तथा फारसी शब्दों के समायोजन कर व्यापक दृष्टिकोण प्रस्तुत किया है। महान उर्दू शायर गालिब के शब्द .का समुचित आधार बनाकर तथा शब्द से शब्द को जोड़कर तथ्य और कथ्य को सहजता से पाठक के सामने प्रस्तुत करने में महारत हासिल था। प्रश्न 5. गालिब की शायरी सत्य और समयानुरूप थी, जहाँ से मानव-जीवन के तार सहज ही झंकृत होते हैं। उन्होंने जब भी मुँह खोला अर्थात् रचना की वह सत्य पर आधारित भारतीय जनजीवन का सारगर्भित तत्व थे। गालिब सरलता, सादगी तथा सत्यनिष्ठा के लिए प्रसिद्ध थे। उनके इन्हीं गुणों के कारण वे हिन्दी साहित्य के करीब उनकी रचना पहुँच सकी और हिन्दी कवि ने उन्हें ‘अपनों से अपना’ कहा है। प्रश्न 6. उन्होंने अपनी गरीबी से ठिठोली करते हुए निराले अंदाज में जीवन-पथ पर संघर्षरत होकर भावी भविष्य के लिए नवीन सपने संजोने का कार्य किया था। उनकी रचनाओं में भारतीय अस्मिता, भारतीय संस्कृति तथा भारतीय समाज का स्पष्ट छाप सहज ही प्रतिबिंबित होता है। उन्होंने सत्य पर आधारित भारतीय जीवन-दर्शन को दर्शाया है। वे पुरोधा शायर के रूप में अक्षर से अक्षर की महिमा को जोड़ने का कार्य किया था। उनकी शायरी में पकृति तथा मानव-जीवन-संघर्षों में जूझते भारतीय समाज के अद्भुत चित्र प्रतिबिम्बत है। जीवन को प्रतिकूल दशाओं में भी परम्परागत नैतिकता का मूल्यबोध के सहारे आगे बढ़ते रहने की कला का गालिब दुर्लभ और अद्वितीय उदाहरण थे। गालिब को भारतीय जनमानस अक्षर में अक्षर की महिमा जोड़ने वाला जीवन का साधक कवि के रूप में चिरस्मृत करता रहेगा। प्रश्न 7. भारतीय संस्कृति जोड़ने वाले साधक कवि थे, जिन्होंने अपनी सत्यनिष्ठा पर आधारित रचनाओं से भारतीय मानस को उद्वेलित एवं झंकृत किया। अपनी सरलता, सादगी तथा भारतीय जीवन दर्शन के उद्घोषक कवि के रूप में गालिब हिन्दी जनता का जातीय कवि के रूप में प्रतिष्ठित हैं। गालिब ने हिन्दी और उर्दू के बीच महासेतु बनकर इनके बीच की दूरी को पाटने का सार्थक प्रयास किया है। गालिब के करिश्माई व्यक्तित्व और कृतित्व से प्रभावित कवि गालिब के समान अपने जीवन और चरित्र का निर्माण करने हेतु प्रेरित किया है ताकि महान उर्दू शायर के समान भारत का प्रत्येक नागरिक सत्य, निष्ठा और कर्तव्य-परायणता का मेरुदण्ड बन सके। इस प्रकार गालिब का सम्पूर्ण व्यक्तित्व शिक्षाप्रद और अनुकरणीय है। प्रश्न
8. गालिब के जीवन में निजी कहलाने वाला कुछ नहीं था। जीवन में धन आया भी तो ठहरा नहीं। कोई चल-अचल संपत्ति उनके पास नहीं थी। एक विचित्र बात थी कि जब-जब उनका मुँह खुलता, वे मुंह को खोलते, मुँह से सिर्फ सत्य ही बाहर आता। सत्य तो कटु था। बेधक था, मारक था। सत्य से व्यष्टि से लेकर समाष्टि दूर भागते थे। सत्य का मार्ग अपनाकर हम स्वयं और सृष्टि का कल्याण करने में सक्षम हैं। सचमुच सत्यवादी वही है जो संबंधों से असंबद्ध हो। कवि ने गालिब के व्यक्तित्व की वह झलक दिखलाई है जो कम शब्दों में अपनी बात बेजोड़ ढंग से रखते हैं। प्रश्न 9. कवि त्रिलोचन ने जो फारसी के अजीम शायर मिर्जा असद उल्लाह खाँ, ‘गालिब’ का शब्द चित्र अपने सॉनेट में प्रस्तुत किया है। उसके अनुसार मिलन सार हमदर्द, हरदिल अजीज इंसान थे। उन्होंने हमारी बोली को तराशा, हमारी जुदा-जुबानों को एक जगह लाने का गंगा-यमुना के पानी को एक करने जैसा कार्य किया। जिसका परिणाम है कि आज हिन्दी में उर्दू, फारसी, अरबी के शब्द के धुल-मिल गए हैं। गालिब स्पष्ट करते हैं कि हमने उन लोगों से बफाई और मुहब्बत की उम्मीद की है जो वफा से परिचित ही नहीं है। शायर के मनोभाव को परखने वाले जौहरी का अभाव है। दुनियाँ वालों से उनकी जो उम्मीदें थीं वे साकार नहीं हो पाईं। एक तरह से उनका दर्द ही इन पंक्तियों में उभरकर सामने आया है। गालिब भाषा की बात प्रश्न 1. साँस-साँस पर तोलना-किस शब्द का क्या प्रभाव होगा बोलने से पहले साँस-साँस पर तौल लेना चाहिए। अपना कहने को क्या-अपना कहने को क्या, तुम मेरी छोड़ो अपनी जरूरत कहो। मुँह खोलना- कीमत मुँह खोलने की भी होती है। गालिब होकर रहे-जीवन से हार कर नहीं, जीवन को गालिब होकर आनंद उठाओ। प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. संघर्षों से दो-दो हाथ करते रहने वालों की काव्य भाषा में सादगी और सरलता ही आयेगी। ‘गोस्वामी तुलसीदास ने लिखा है-“छुद्र नदि भरि चलि तोराई” अर्थात् जिन नदियें का पेटी उथला होता है, वे ही अधिक उफनती है। सौभाग्य से त्रिलोचन का वस्तु संसार जितना विस्तृत है उतना ही अनुभव सम्पृक्त भी है। वे सॉनेट भले लिखते हों किन्तु सॉनेट रूपी गागर में वे सागर भर देते हैं। वह भी अपने आस-पास के प्रचलित शब्दों से लोकोक्तियों और मुहावरों के भरोसे। क्योंकि उन्हें यह सत्य पता है कि मुहावरे और लोकोक्तियों के पीछे कितने कड़े कटु अनुभव, मानस वृत्तियों का कितना लम्बा इतिवृत्त संबली के रूप में खड़ा है। गालिब शीर्षक सॉनेट में भी यही सादगी और सरलता दृष्टिगोचर होती है। बोली गाँठ, ठिठोली-बहलाया, दाम, अंटी, साँस-तोल धान जैसे शब्दों के बदले त्रिलोचन शब्द कोश में अर्थ ढूँढने पर बाध्य कर देने वाले शब्दों का भी प्रयोग कर सकते थे किन्तु तब, गालिब का व्यक्तित्व इतना सहज नहीं होता। वे भी केशव की तरह कठिन काव्य के “प्रेत” की तरह दीखते। कवि भवानी प्रसाद मिश्र ने भी लिखा है- “जैसा मैं कहता हूँ, वैसा तू लिख फिर भी मुझसे बड़ा तू दीख” कवि का बड़प्पन इसी में है कि यह बारीक-से-बारीक बात जेहन में उतार दे बिना किसी ताम-झाम के। अलंकार यदि स्वाभाविक रूप से आ जाएँ तो ठोक वरना अतिरिक्त श्रम न करे। तुम मिल जाए तो ठीक। किन्तु तुक के लिए बेतुक अर्थहीन वर्ष.-विन्यास से बचे। हम समझते है कि आधुनिक होकर भी, उच्च शिक्षा प्राप्त करके भी त्रिलोचन आपादमस्तक सादगी की पूतिमूर्ति हैं और इसी के प्रक्षेप इनके सॉनेट हैं। प्रश्न 8. अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर गालिब दीर्घ उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1.
प्रश्न 2. गजल-इसका अर्थ होता है प्रेमिका से बातचीत। यह ऐसा काव्य रूप है जिसमें पाँच से ग्यारह शेर अर्थात् दस से बाईस पंक्तियाँ होती हैं। कुछ लोग इसमें सात से चौदह मिसरे या पंक्तियाँ मानते हैं। इसमें हर शेर दूसरे से स्वतंत्र होता है। उसका मजमून या विषय अलग-अलग होता है। दोनों पंक्तियों का एक प्रकार का तुक होता है। इसमें प्रेमिका के रूप, रंग, अदा तथा खूबियों का अधिकतर बढ़ा चढ़ा और प्रभावशाली वर्णन होता है। वास्तव में गजल में हुश्न और इश्क का वर्णन गजल गोई के दिलों की आवाज को प्रकट करता है। गालिब उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. गालिब अति लघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. गालिब वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर I. निम्नलिखित प्रश्नों के बहुवैकल्पिक उत्तरों में से सही उत्तर बताएं प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. II. रिक्त स्थानों की पूर्ति करें प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. गालिब कवि परिचय – त्रिलोचन (1917) प्रश्न- काव्य-रचनाएँ-धरती, शब्द, अरधान, चैती, मेरा घर, तुम्हें सौंपता हूँ, गुलाब और बुलबुल, ताप के मथ हुए दिन, उस जनपद का कवि हूँ, दिगंत अमाला आदि। गद्य रचनाएँ-रोजनामचा, देशकाल, काव्य और अर्थ बोध, मुक्ति बोध की कविताएँ। हिन्दी के अनेक कोशों के निर्माण में त्रिलोचन जी ने महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। काव्यगत विशेषताएँ-त्रिलोचन जी बहुभाषी विज्ञ शास्त्री भी माने जाते हैं। इनके द्वारा रचित साहित्य में इनका अनेक भाषाओं का ज्ञान स्पष्ट झलकता है। इस ज्ञान से इनकी रचनाओं में पर हावी नहीं होता। इनकी रचनाओं की भाषा छायावादी कल्पनाशीलता से दूर ग्राम्य जीवन की माटी से जुड़ी यथार्थ की भाषा है। हिन्दी में सॉनेट (अंग्रेजी छंद) को स्थापित करने का श्रेय भी त्रिलोचन जी को जाता है। सामान्य बोलचाल की भाषा को यह कवि पाठक के सम्मुख इस प्रकार से नए स्वरूप में प्रस्तुत करता है कि वह उसे अपने ही आस-पास के वातावरण की जान पड़ती है। इनकी भाषा हृदय को छू लेने वाली है। भाषा सरल और बोधगम्य है। वस्तुतः आधुनिक प्रगतिशील हिन्दी कवियों में त्रिलोचनजी का प्रभावपूर्ण स्थान है। गालिब कविता का सारांश प्रश्न- एक कवि दूसरे कवि पर लिखे और वह भी सहृदयता के साथ पूरी तरह नतमस्तक होकर तो जरूर कोई बात होगी। और जब बात गालिब की हो तो वकौल गालिब- “कुछ तो पठिए कि लोग कहते हैं।” उसी गालिब पर चुष्पदी छंद विद्या के धुरंधर कवि त्रिलोचन ने सॉनेट रचा। इस सॉनेट के अनुसार गालिब, गैर नहीं है, विजातीय नहीं, बेगाने नहीं। वे किसी रक्त संबंधी की तरह ही स्वजन प्रिय है, प्रेमास्पद हैं क्योंकि उनकी सोच संकीर्ण नहीं है। गालिब ने फारसी के बाद उर्दू और उर्दू के साथ हिन्दी को मजबूती प्रदान की, अर्थवत्ता प्रदान की। आज जो हर किसी की आँखों मे चमकीले सपने तैरते हैं, वे गालिब के देखे गये तरक्की पसंद सपनों के ही हिस्से हैं। गालिब ने जीव-जगत के संबंध के रहस्य को, गांठ को खोलने का काम किया। वह भी नपी-तुली भाषा-शैली में कही भी उनकी भाषा में भटकाव, हल्कापन नहीं है। बचपन सुख से बीता पर व्यक्तिगत कारणों से (शराब और जुए की लत) वे बाकी जिन्दगी दुःख में काटी। खोखली ढिढोलियों के द्वारा ही मन बहलाया। “मुफ्त की ‘मय’ पीते है कि
जाहिद पैसे का अभाव रहा फिर भी दुनिया से कोई ऐसा वास्ता नहीं रखा कि शर्मसार होना पड़े। हाँ गालिब मन मसोस कर दुनिया की दोरंगी नीति, चाल-ढाल को बड़े गौर से देखते रहे। उनके पास उनका अपना कहलाने वाला भी कोई नहीं था, कुछ भी नहीं था। फिर भी उनके पास अजीब-सी थाती थी। जब कभी कुछ बोलते, कहने के लिए मुँह खुलता तो लगता जैसे सत्य बोल रहे हैं। गालिब अपनी शर्तों पर जीते रहे और अपनी तरीके से कूच किया। किन्तु जो कर गये, जो छोड़कर गये, जो हमें दे गये, वह अमूल्य है, अतुल्य है। गालिब ने अलग-अलग भाषाओं के बीच भावात्मक रिश्ता कायम किया। अलग-अलग धर्म सम्प्रदायों के बीच “परमब्रह्म अनल हक” की एकरूपता का प्रतिपादन किया। कवि त्रिलोचन ने भी अत्यन्त नपे-तुले ढंग से गालिब की जीवन रेखाओं को उभारा है। उनके व्यक्तित्व और अवदान दोनों को रेखांकित किया है। कविता में यमक, वीप्सा, अनुप्रास जैसे अलंकारों के साथ मुहावरों और लोकोक्तियों में भी अपनी जगह बनायी है। गालिब कठिन शब्दों का अर्थ गालिब-शक्तिशाली, जबर्दस्त, विजेता। गैर-पराया। ठिठोली-मजाक, दिल्लगी। अंटी-बटुवा, जेब। अक्षर-जिसका क्षरण न हो, जो नष्ट न हो। बेशक-निस्संदेह। गालिब काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या 1. गालिब गैर नहीं ……………….. गालिब के सपने हैं। 2. गालिब ने खोली गाँठ ………………. नाम नहीं था। 3. सुख की आँखों ने दुःख देखा …………….. धन-धान नहीं था। उनके पास पैसे नहीं थे। दुनिया से कोई मतलब नहीं था लेकिन सतत् हर साँस वे संसार के लोगों, व्यवहारों को तौल रहे थे। उनके पास धन-धान तो नहीं ही था अपना कहने के लिए भी कोई नहीं था। इसलिए वे बेखौफ होकर सत्य को अपनी शायरी में अभिव्यक्त करते रहे। जब मुँह खोला अर्थात् जब कविता लिखी तो जीवन के सत्य को ही वाणी दी, न समझौता किया, न चापलूसी की। कवि के कहने का आशय यह है कि समय के प्रभाव और दुःखों की मार से गालिब विचलित नहीं हुए तथा सदा सच को वाणी दी। 4. गालिब हो कर रहे ………………. महिमा जोड़ी। दूसरी पंक्ति में यह कहा गया है कि वे कवि थे। कवि जो मनीषी होता है, द्रष्टा और स्रष्टा होता है। अक्षर जोड़ना अर्थात् कविता लिखना उनका कार्य था। उन्होंने इस अक्षर-कर्म के स्रष्टा होता है। अक्षर जोड़ना अर्थात् कविता लिखना उनका कार्य था। उन्होंने इस अक्षर-कर्म के सहारे अक्षरत्व अर्थात् अमरत्व प्राप्त किया। कवि की दृष्टि में वे एक अनश्वर कवि हैं, उनकी कृतियाँ समय के साथ और चमकदार और प्रासंगिक होती गयी। अत: अक्षर-साधन से उनको वह महिमा मिली है जो उन्हें अक्षर अर्थात् अनश्वर, अक्षर बनाती है। अपना कहने को क्या था धन धन नहीं था सत्य बोलता था जब जब मुँह खोल रहे थे?रामायण कथा | पाप का विनाश - रावण अंत - YouTube.
अपना कहने का क्या था धंधा नहीं था?भाषा की बात 1.
ग़ालिब किसकी रचना है?मिर्ज़ा असदुल्लाह बेग ख़ान , जो अपने तख़ल्लुस ग़ालिब से जाने जाते हैं, उर्दू एवं फ़ारसी भाषा के एक महान शायर थे। इनको उर्दू भाषा का सर्वकालिक महान शायर माना जाते है और फ़ारसी कविता के प्रवाह को हिन्दुस्तानी जबान में लोकप्रिय करवाने का श्रेय भी इनको दिया जाता है।
गालिब हो कर रहे से त्रिलोचन का क्या अर्थ है?'गालिब' शीर्षक सॉनेट की प्रस्तुत पंक्तियों में कवि त्रिलोचन कहना चाहते हैं कि मात्र भाषा और धर्म की भिन्नता के कारण गालिब को भिन्न नहीं माना जा सकता। वे हमारे समानधर्मा हैं। वे जिस प्रकार की भाषा में अपने भावों का व्यक्त करते हैं वही हमारी भी भाषा है।
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