CBSE Class 8 Hindi Unseen Passages अपठित गद्यांश Pdf free download is part of NCERT Solutions for Class 8 Hindi. Here we have given NCERT Class 8 Hindi Unseen Passages अपठित गद्यांश. Show CBSE Class 8 Hindi Unseen Passages अपठित गद्यांश‘अपठित’ गद्यांश या पद्यांश का अर्थ है- जो पहले पढ़ा गया न हो। अपठित गद्यांश या पद्यांश पाठ्यपुस्तकों से नहीं लिए जाते। ये ऐसे गद्यांश या पद्यांश होते हैं जिन्हें छात्र पहले कभी नहीं पढ़ा होता। इस प्रकार के गद्यांश-पद्यांश देकर छात्रों से उन पर आधारित प्रश्नों के उत्तर पूछे जाते हैं। इन प्रश्नों का उत्तर देने के लिए अनुच्छेद को दो-तीन बार पढ़ना चाहिए। इसके बाद अनुच्छेद के नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर अपने शब्दों में लिखने चाहिए। भाषा स्पष्ट और शुद्ध होनी चाहिए। उदाहरण ( उत्तर सहित) प्रश्न (क) मनुष्य अधर्म के कारण होने वाले अनर्थ को कैसे समझने लगा है (ख) विज्ञान की प्रगति और संचार के साधनों की वृद्धि का परिणाम क्या हुआ है| (ग) देश में आज भी कौन-सी समस्या है (घ) किस कारण से देश में मानव के बीच, घृणा, ईष्र्या, वैमनस्यता एवं कटुता में कमी नहीं आई है? (ङ) मानवीय मूल्यों के महत्त्व के प्रति जागरूकता उत्पन्न करने का एकमात्र साधन है उत्तर- 2. संघर्ष के मार्ग में अकेला ही चलना पड़ता है। कोई बाहरी शक्ति आपकी सहायता नहीं करती है। परिश्रम, दृढ़ इच्छा शक्ति व लगन आदि मानवीय गुण व्यक्ति को संघर्ष करने और जीवन में सफलता प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त करते हैं। दो महत्त्वपूर्ण तथ्य स्मरणीय है – प्रत्येक समस्या अपने साथ संघर्ष लेकर आती है। प्रत्येक संघर्ष के गर्भ में विजय निहित रहती है। एक अध्यापक छोड़ने वाले अपने छात्रों को यह संदेश दिया था – तुम्हें जीवन में सफल होने के लिए समस्याओं से संघर्ष करने को अभ्यास करना होगा। हम कोई भी कार्य करें, सर्वोच्च शिखर पर पहुँचने का संकल्प लेकर चलें। सफलता हमें कभी निराश नहीं करेगी। समस्त ग्रंथों और महापुरुषों के अनुभवों को निष्कर्ष यह है कि संघर्ष से डरना अथवा उससे विमुख होना अहितकर है, मानव धर्म के प्रतिकूल है और अपने विकास को अनावश्यक रूप से बाधित करना है। आप जागिए, उठिए दृढ़-संकल्प और उत्साह एवं साहस के साथ संघर्ष रूपी विजय रथ पर चढ़िए और अपने जीवन के विकास की बाधाओं रूपी शत्रुओं पर विजय प्राप्त कीजिए। प्रश्न (क) मनुष्य को संघर्ष करने और जीवन में सफलता प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त करते हैं (ख) प्रत्येक समस्या अपने साथ लेकर आती है– (ग) समस्त ग्रंथों और अनुभवों का निष्कर्ष है (घ) ‘मानवीय’ शब्द में मूल शब्द और प्रत्यय है (ङ) संघर्ष रूपी विजय रथ पर चढ़ने के लिए आवश्यक है उत्तर- 3. कार्य का महत्त्व और उसकी सुंदरता उसके समय पर संपादित किए जाने पर ही है। अत्यंत सुघड़ता से किया हुआ कार्य भी यदि आवश्यकता के पूर्व न पूरा हो सके तो उसका किया जाना निष्फले ही होगा। चिड़ियों द्वारा खेत चुग लिए जाने पर यदि रखवाला उसकी सुरक्षा की व्यवस्था करे तो सर्वत्र उपहास का पात्र ही बनेगा। उसके देर से किए गए उद्यम का कोई मूल्य नहीं होगा। श्रम का गौरव तभी है जब उसका लाभ किसी को मिल सके। इसी कारण यदि बादलों द्वारा बरसाया गया जल कृषक की फ़सल को फलने-फूलने में मदद नहीं कर सकता तो उसका बरसना व्यर्थ ही है। अवसर का सदुपयोग न करने वाले व्यक्ति को इसी कारण पश्चाताप करना पड़ता है। प्रश्न (क) जीवन में समय का महत्त्व क्यों है? (ख) खेत का रखवाला उपहास का पात्र क्यों बनता है? (ग) चिड़ियों द्वारा खेत चुग लिए जाने पर यदि रखवाला उसकी सुरक्षा की व्यवस्था करे तो सर्वत्र उपहास का पात्र ही बनेगा। इस पदबंध का प्रकार होगा (घ) बादल का बरसना व्यर्थ है, यदि (ङ) गद्यांश का मुख्य भाव क्या है? उत्तर- 4. मानव जाति को अन्य जीवधारियों से अलग करके महत्त्व प्रदान करने वाला जो एकमात्र गुरु है, वह है उसकी विचार-शक्ति। मनुष्य के पास बुधि है, विवेक है, तर्कशक्ति है अर्थात उसके पास विचारों की अमूल्य पूँजी है। अपने सविचारों की नींव पर ही आज मानव ने अपनी श्रेष्ठता की स्थापना की है और मानव-सभ्यता का विशाल महल खड़ा किया है। यही कारण है कि विचारशील मनुष्य के पास जब सविचारों का अभाव रहता है तो उसका वह शून्य मानस कुविचारों से ग्रस्त होकर एक प्रकार से शैतान के वशीभूत हो जाता है। मानवी बुधि जब सद्भावों से प्रेरित होकर कल्याणकारी योजनाओं में प्रवृत्त रहती है तो उसकी सदाशयता का कोई अंत नहीं होता, किंतु जब वहाँ कुविचार अपना घर बना लेते हैं तो उसकी पाशविक प्रवृत्तियाँ उस पर हावी हो उठती हैं। हिंसा और पापाचार का दानवी साम्राज्य इस बात का द्योतक है कि मानव की विचार-शक्ति, जो उसे पशु बनने से रोकती है, उसका साथ देती है। प्रश्न (क) मानव जाति को महत्त्व देने में किसका योगदान है? (ख) विचारों की पूँजी में शामिल नहीं है (ग) मानव में पाशविक प्रवृत्तियाँ क्यों जागृत होती हैं? (घ) “मनुष्य के पास बुधि है, विवेक है, तर्कशक्ति है’ रचना की दृष्टि से उपर्युक्त वाक्य है (ङ) गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक हो सकता है उत्तर- 5. बातचीत करते समय हमें शब्दों के चयन पर विशेष ध्यान देना चाहिए, क्योंकि सम्मानजनक शब्द व्यक्ति को उदात्त एवं महान बनाते हैं। बातचीत को सुगम एवं प्रभावशाली बनाने के लिए सदैव प्रचलित भाषा का ही प्रयोग करना चाहिए। अत्यंत साहित्यिक एवं क्लिष्ट भाषा के प्रयोग से कहीं ऐसा न हो कि हमारा व्यक्तित्व चोट खा जाए। बातचीत में केवल विचारों का ही आदानप्रदान नहीं होता, बल्कि व्यक्तित्व का भी आदान-प्रदान होता है। अतः शिक्षक वर्ग को शब्दों का चयन सोच-समझकर करना चाहिए। शिक्षक वास्तव में एक अच्छा अभिनेता होता है, जो अपने व्यक्तित्व, शैली, बोलचाल और हावभाव से विद्यार्थियों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करता है और उन पर अपनी छाप छोड़ता है। प्रश्न (क) शिक्षक होता है (ख) बातचीत में किस प्रकार की भाषा का प्रयोग करना चाहिए? (ग) शिक्षक वर्ग को बोलना चाहिए? (घ) बातचीत में आदान-प्रदान होता है– (ङ) उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक है उत्तर- 6. मनुष्य को चाहिए कि संतुलित रहकर अति के मार्गों का त्यागकर मध्यम मार्ग को अपनाए। अपने सामर्थ्य की पहचान कर उसकी सीमाओं के अंदर जीवन बिताना एक कठिन कला है। सामान्य पुरुष अपने अहं के वशीभूत होकर अपना मूल्यांकन अधिक कर बैठता है और इसी के फलस्वरूप वह उन कार्यों में हाथ लगा देता है जो उसकी शक्ति में नहीं हैं। इसलिए सामर्थ्य से अधिक व्यय करने वालों के लिए कहा जाता है कि ‘तेते पाँव पसारिए, जेती लांबी सौर’। उन्हीं के लिए कहा गया है कि अपने सामर्थ्य , को विचार कर उसके अनुरूप कार्य करना और व्यर्थ के दिखावे में स्वयं को न भुला देना एक कठिन साधना तो अवश्य है, पर सबके लिए यही मार्ग अनुकरणीय है। प्रश्न (क) अति का मार्ग क्या होता है? (ख) कठिन कला क्या है? (ग) मनुष्य अहं के वशीभूत होकर (घ) “तेते पाँव पसारिए, जेती लांबी सौर’ का आशय है (ङ) प्रस्तुत गद्यांश का शीर्षक हो सकता है उत्तर- अभ्यास प्रश्न 1. सुख विश्वास से उत्पन्न होता है। सुख जड़ता से भी उत्पन्न होता है। पुराने जमाने के लोग सुखी इसलिए थे कि ईश्वर की सत्ता में उन्हें विश्वास था। उस जमाने के नमूने आज भी हैं, मगर वे महानगरों में कम मिलते हैं। उनका जमघट गाँवों, कस्बों या छोटे-छोटे नगरों में है। इनके बहुत अधिक असंतुष्ट न होने का कारण यह है कि जो चीज़ उनके बस में नहीं है, उसे वे अदृश्य की इच्छा पर छोड़कर निश्चित हो जाते हैं। इसी प्रकार सुखी वे लोग भी होते हैं, जो सच्चे अर्थों में जड़तावादी हैं, क्योंकि उनकी आत्मा पर कठखोदी चिड़िया चोंच नहीं मारा करती, किंतु जो न जड़ता को स्वीकार करता है, न ईश्वर के अस्तित्व को तथा जो पूरे मन से न तो जड़ता का त्याग करता है और न ईश्वर के अस्तित्व का, असली वेदना उसी संदेहवादी मनुष्य की वेदना है। पश्चिम का आधुनिक बोध इसी पीड़ा से ग्रस्त है। वह न तो मनुष्य भैंस की तरह खा-पीकर संतुष्ट रह सकता है न अदृश्य का अवलंब लेकर चिंतामुक्त हो सकता है। इस अभागे मनुष्य के हाथ में न तो लोक रह गया है, न परलोक। लोक इसलिए नहीं कि वह भैंस बनकर जीने को तैयार नहीं है और परलोक इसलिए नहीं कि विज्ञान उसका समर्थन नहीं करता। निदान, संदेहवाद के झटके खाता हुआ यह आदमी दिन-रात व्याकुल रहता है और रह-रहकर आत्महत्या की कल्पना करके अपनी व्याकुलता का रेचन करता रहता है। प्रश्न (क) सुख किनसे उत्पन्न होता है? (ख) गाँवों में लोग असंतुष्ट नहीं हैं क्योंकि (ग) सुखी वे होते हैं जो (घ) पश्चिम का आधुनिक बोध किससे पीड़ित है (ङ) ‘विश्वास’ का विलोम है 2. वीरता की अभिव्यक्ति अनेक प्रकार से होती है। लड़ना-मरना, खून बहाना, तोप-तलवार के सामने न झुकना ही नहीं कर्ण की भाँति याचक को खाली हाथ न लौटाना या बुद्ध की भाँति गूढ़ तत्वों की खोज में सांसारिक सुख त्याग देना भी वीरता ही। है। वीरता तो एक अंत:प्रेरणा है। वीरता देश-काल के अनुसार संसार में जब भी प्रकट हुई, तभी अपना एक नया रूप लेकर आई और लोगों को चकित कर गई। वीर कारखानों में नहीं ढलते, न खेतों में उगाए जाते हैं, वे तो देवदार के वृक्ष के समान जीवनरूपी वन में स्वयं उगते हैं, बिना किसी के पानी दिए, बिना किसी के दूध पिलाए बढ़ते हैं। वीर का दिल सबका दिल और उसके विचार सबके विचार हो जाते हैं। उसके संकल्प सबके संकल्प हो जाते हैं। औरतों और समाज का हृदय वीर के हृदय में धड़कता है। प्रश्न (क) वीरता के प्रकार हैं (ख) उपयुक्त शीर्षक दीजिए (ग) वीर कहाँ उत्पन्न होते हैं? (घ) वीर पुरुष की क्या पहचान है? (ङ) ‘सुख’ का विलोम है 3. उन्नीसवीं शताब्दी में यह राष्ट्रीय जागरण संपूर्ण भारत में किसी-न-किसी रूप में अभिव्यक्त हो रहा था, जिसमें भारतीयता के साथ आधुनिकता का संगम था। स्वामी विवेकानंद ने तो अमेरिका, इंग्लैंड आदि देशों से भारत लौटकर पूर्व और पश्चिम के श्रेष्ठ तत्वों के सम्मिलन से भारत को आधुनिक बनाने का स्वप्न देखा था। उन्होंने माना कि भारत और पश्चिम की मूल गति एवं उद्देश्य भिन्न हैं, परंतु भारत को जागना होगा, कुसंस्कारों एवं जाति-विद्वेष को त्यागना होगा, शिक्षित होकर देश की अशिक्षित, गरीब जनता को ही ‘दरिद्रनारायण’ मानकर उनकी सेवा करनी होगी, उनका उत्थान करना होगा। विवेकानंद का मत था कि भारत में जो जितना दरिद्र है, वह उतना ही साधु है। यहाँ गरीबी अपराध एवं पाप नहीं है तथा दरिद्रों की अपेक्षा धनियों को अधिक प्रकाश की जरूरत है। वे चाहते थे कि हम नीच, अज्ञानी, दरिद्र-सभी को भाई मानें और गर्व से कहें-हम सब भाई भारतवासी हैं। मनुष्य को मानव बनाना, आदमी को इंसान बनाना आवश्यक है। हमें ऐसी शिक्षा चाहिए जो हमें संस्कारी मानव, हमदर्द इंसान बना सके। विचारों में विवेकानंद गांधी से अधिक दूर नहीं थे और ऐसे ही विचारकों का चिंतन उन्नीसवीं सदी में भारत को उद्वेलित कर रहा था। प्रश्न (क) किस सदी में संपूर्ण भारत में राष्ट्रीय जागरण अभिव्यक्त हो रहा था? (ख) विवेकानंद ने क्या सपना देखा था? (ग) विवेकानंद के अनुसार भारतीयों को कैसी शिक्षा की जरूरत है? (घ) “पश्चिम’ का विशेषण बताइए (ङ) विवेकानंद के अनुसार किसे अधिक प्रकाश की ज़रूरत है? 4. सत्य के अनेक रूप होते हैं, इस सिद्धांत को मैं बहुत पसंद करता हूँ। इसी सिद्धांत ने मुझे एक मुसलमान को उसके अपने | दृष्टिकोण से और ईसाई को उसके स्वयं के दृष्टिकोण से समझाना सिखाया है। जिन अंधों ने हाथी का अलग-अलग तरह वर्णन किया वे सब अपनी दृष्टि से ठीक थे। एक-दूसरे की दृष्टि से सब गलत थे और जो आदमी हाथी को जानता था उसकी दृष्टि से सही भी थे और गलत भी थे। जब तक अलग-अलग धर्म मौजूद हैं तब तक प्रत्येक धर्म को किसी विशेष बाह्य चिह्न की आवश्यकता हो सकती है लेकिन जब बाह्य चिह्न केवल आडंबर बन जाते हैं अथवा अपने धर्म को दूसरे धर्मों से अलग बताने के काम आते हैं तब वे त्याज्य हो जाते हैं। धर्मों के भ्रातृ-मंडल का उद्देश्य यह होना चाहिए कि वह हिंदू को अधिक अच्छा हिंदू, एक मुसलमान को अधिक अच्छा मुसलमान और एक ईसाई को अधिक अच्छा ईसाई बनाने में मदद करे। दूसरों के लिए हमारी प्रार्थना वह नहीं होनी चाहिए-ईश्वर, तू उन्हें वही प्रकाश दे जो तूने मुझे दिया है, बल्कि यह होनी चाहिए-तू उन्हें वह सारा प्रकाश दे जिसकी उन्हें अपने सर्वोच्च विकास के लिए आवश्यकता है। प्रश्न (क) लेखक किस सिद्धांत को पसंद करता है? (ख) लेखक किस कथा का जिक्र करता है? (ग) धर्म की पृथकता दर्शाने के लिए किस चीज़ की आवश्यकता होती है? (घ) धर्म के भ्रातृ-मंडल का क्या उद्देश्य होना चाहिए? (ङ) ‘सत्य’ का तद्भव रूप बताइए। More CBSE Class 8 Study Material
We hope the given CBSE Class 8 Hindi Unseen Passages अपठित गद्यांश will help you. If you have any query regarding CBSE Class 8 Hindi Unseen Passages अपठित गद्यांश, drop a comment below and we will get back to you at the earliest. अपठित गद्यांश में प्रश्नों के उत्तर कहाँ खोजने चाहिए?मूल भाव या संदेश संबंधी प्रश्नों का जवाब पूरे गद्यांश पर आधारित होना चाहिए। प्रश्नों का उत्तर देते समय यथासंभव अपनी भाषा का ध्यान रखना चाहिए। उत्तर की भाषा सरल, सुबोध और प्रवाहमयी होनी चाहिए। प्रश्नों का जवाब गद्यांश पर ही आधारित होना चाहिए, आपके अपने विचार या राय से नहीं।
अपठित के प्रश्न कैसे होते हैं?अपठित अवबोध/ अपठित गद्यांश के प्रश्न कैसे होते हैं ?. शीर्षक से सम्बंधित प्रश्न. एक पद वाले प्रश्न जो गद्यांश/पद्यांश (पैराग्राफ) के आधार पर पूछे जाते हैं. पूर्ण वाक्य वाले प्रश्न जो गद्यांश/पद्यांश (पैराग्राफ) के आधार पर पूछे जाते हैं. गद्यांश/पद्यांश (पैराग्राफ) के आधार पर संस्कृत व्याकरण से सम्बंधित प्रश्न. अपठित गद्यांश को कैसे हल करना चाहिए?कैसे हल करें अपठित गद्यांश
(1) दिए गए गद्यांश को दो-तीन बार ध्यानपूर्वक पढ़ना चाहिए। (ii) इस समय जिन प्रश्नों के उत्तर मिल जाएँ, उन्हें रेखांकित कर लेना चाहिए। (iii) अब बचे हुए एक-एक प्रश्न का उत्तर सावधानीपूर्वक खोजना चाहिए। (iv) प्रश्नों के उत्तर सदैव अपनी ही भाषा में लिखना चाहिए।
अपठित गद्यांश कैसे लिखा जाता है?जो गद्यांश बिना पढ़ा हुआ हो गद्यांश हो उसे अपठित गद्यांश कहा जाता है।. प्रश्नों के उत्तर प्रस्तुत सामग्री में ही निहित रहते हैं इसलिए गद्यांश को दो-तीन बार ध्यानपूर्वक पढ़ें।. उत्तर लिखते समय सरल, सुबोध तथा सहज भाषा का प्रयोग करें।. पूछे गए प्रश्नों में अंतर्निहित उद्देश्य को समझकर ही प्रश्नों के उत्तर खोजें।. |