असंक्रामक रोग कौन कौन सा है? - asankraamak rog kaun kaun sa hai?

इसे सुनेंरोकेंअसंक्रामक रोग शरीर के अन्दर विकार या असंतुलन के कारण होते हैं । ये रोग बाहरी संक्रमण से नहीं होते इसलिए एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को नहीं लग सकते । इसके कुछ उदाहरण हैं, खून की कमी, (anaemia)मधुमेह, (diabetes) गठिया (arthritis) आदि ।

असंक्रामक का मतलब क्या होता है?

इसे सुनेंरोकेंअसंक्रामक रोग किसे कहते हैं? जो छूने और हवा या बाहरी माध्यम से नहीं फैलते । क्या आप असंक्रामक रोग के उदाहरण बता सकते हैं? एक गैर-संक्रमणीय बीमारी (एनसीडी) एक चिकित्सीय स्थिति या बीमारी है जो संक्रामक एजेंटों (गैर संक्रामक या गैर-ट्रांसमिसिबल) के कारण नहीं होती है।

असंक्रामक रोग कितने प्रकार के होते हैं?

इसे सुनेंरोकेंगैर-संचारी रोगों में पार्किंसन रोग, स्वप्रतिरक्षित रोग, स्ट्रोक, अधिकांश हृदय रोग, अधिकांश कर्कट रोग, मधुमेह, गुर्दे की पुरानी बीमारी, अस्थिसंध्यार्ति, ऑस्टियोपोरोसिस, अल्जाइमर रोग, मोतियाबिंद और अन्य शामिल हैं। गैर-संचारी रोग जीर्ण या तीव्र हो सकता है।

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संक्रामक और असंक्रामक रोग कौन से हैं?

संक्रामक व असंक्रामक रोगों से आप क्या समझते है?

Questionसंक्रामक व असंक्रामक रोगों से आप क्या समझते है?Chapter NameModel Paper 2021SubjectBiology (more Questions)Class9thType of AnswerVideo

बीमारी कितने प्रकार के होते हैं?

अनुक्रम

  • 2.1 शारीरिक रोग
  • 2.2 अनुकूलनीय प्रतिक्रिया
  • 2.3 मानसिक रोग
  • 2.4 स्वास्थ्य के सामाजिक निर्धारक

असंक्रामक रोग कैसे फैलते हैं?

इसे सुनेंरोकेंये जीवाणु नंगी आँखो से दिखाई नहीं देते हैं तथा हवा, पानी, भोजन तथा आपसी संपर्क से फैलते हैं। इसके अलावा अन्य दूसरी बीमारियों को असंक्रामक रोग कहते हैं । संक्रामक रोग कैसे फैलते हैं? (2) हवा के द्वारा फैलने वाले संक्रामक रोग साँस और मुँह से बहुत से संक्रमण एक व्यक्ति से दूसरे तक फैलते हैं।

संक्रामक और असंक्रामक रोग क्या है?

इसे सुनेंरोकेंअत: वे रोग जिनके तात्कालिक कारक सूक्ष्म जीव होते हैं, संक्रामक रोग कहलाते हैं। इन्हें संक्रामक इसलिए कहते हैं क्योंकि सूक्ष्म जीव समुदाय में फैल सकते हैं तथा इनके कारण होने वाले रोग भी इनके साथ ही फैल जाते हैं। (ii) असंक्रामक रोग-ये रोग पीड़ित व्यक्ति तक ही सीमित रहते हैं अन्य व्यक्तियों में नहीं फैलते।

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नॉन कम्युनिकेबल डिजीज क्या है?

इसे सुनेंरोकेंगैर-संचारी रोग ऐसी दीर्घकालिक बीमारियाँ हैं जो एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में नहीं फैलते हैं जैसे- कैंसर, मधुमेह और हृदय रोग, जबकि संचारी रोग तेज़ी से संक्रमण करते हैं तथा एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में अति शीघ्र फैलते हैं जैसे- मलेरिया, टायफायड, चेचक, इन्फ्लुएन्ज़ा आदि।

5f क्या है?

इसे सुनेंरोकें5f ऑर्बिटल्स f ऑर्बिटल्स का दूसरा सबसेट है। इन ऑर्बिटल्स का नाम ऑर्बिटल्स के विमानों के आधार पर रखा गया है। सात कक्षाएँ इस प्रकार हैं। 5f ऑर्बिटल्स के एक सेट में चार अलग-अलग आकार होते हैं, जिनमें से प्रत्येक में बहुत सारे प्लानर और शंक्वाकार नोड होते हैं।

संक्रामक रोग, रोग जो किसी ना किसी रोगजनित कारको (रोगाणुओं) जैसे प्रोटोज़ोआ, कवक, जीवाणु, वाइरस इत्यादि के कारण होते है। संक्रामक रोगों में एक शरीर से अन्य शरीर में फैलने की क्षमता होती है। मलेरिया, टायफायड, चेचक, इन्फ्लुएन्जा इत्यादि संक्रामक रोगों के उदाहरण हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन की दृष्टि[संपादित करें]

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि दुनिया भर में संक्रामक रोग पहले से कहीं ज्यादा तेजी से फैल रहे हैं और उनका इलाज करना ज्यादा मुश्किल हो गया है। अपनी वार्षिक विश्व स्वास्थ्य रिपोर्ट २००८ में राष्ट्र संघ एजेंसी ने कहा है कि 1970 के दशक से हर साल एक या ज्यादा नए रोगों का पता चल रहा है, जो अभूतपूर्व है। एजेंसी ने कहा है कि तपेदिक जैसी जानी-मानी बीमारियों को नियंत्रित करने के प्रयास भी सीमित हो रहे हैं, क्योंकि वे ज्यादा ताकतवर और दवाइयों की प्रतिरोधी किस्मों में विकसित होती जा रही हैं।

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि संक्रामक रोगों के प्रसार का कारण पिछले 50 वर्षों में अंतर्राष्ट्रीय हवाई यातायात में वृद्धि है। उसने पिछले 5 वर्षों में ही 1,100 से ज्यादा विभिन्न बीमारियां फैलने की पुष्टि की है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अपने 193 सदस्यों को बीमारियों के फैलने के बारे में जानकारी देने और टीके विकसित करने में मदद देने के लिए विषाणुओं के नमूनों का आदान-प्रदान करने में एक-दूसरे के साथ ज्यादा सहयोग करने का अनुरोध किया है।

टीकों के जरिये रोगों का समय पूर्व मुकाबला करना और उन्हें नियंत्र में रखना मानव द्वारा रोगों के इलाज में प्राप्त प्रशंसनीय प्रगति है। विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार अभी भी विश्व में हर साल लाखों बच्चे संक्रामक रोगों के शिकार हो रहे हैं, लेकिन उन में से बीस लाख को टीकों के जरिये बचाया जा सकता था। हमें सर्वप्रथम यह जानना चाहिये कि टीका क्या है। चीन के राजधानी शहर पेइचिंग के रोग निरोध केंद्र के विशेषज्ञ श्री वू च्यांग के अनुसार टीका वास्तव में किसी विषाणु की प्रोसेसिंग के आधार पर विकसित किया गया उत्पाद होता है। इसे खाने या सुई के जरिये मानव शरीर में प्रविष्ट कराने से मानव शरीर में असली विषाणुओं का मुकाबला करने की शक्ति पैदा की जाती है। टीका विषाणु से बिल्कुल अलग है, क्योंकि विषाणु लगने से रोग पैदा होता है, पर टीके के जरिये शरीर में रोग का मुकाबला करने की शक्ति पैदा होती है।

वर्ष 1796 में एक ब्रिटिश डाक्टर मानव शरीर में गाय में होने वाले एक रोग के चेचक जैसे विषाणु कौबौक्स को प्रविष्ट कराने के जरिये चेचक का इलाज करने में सफल रहा था। इस तरह मानव ने चेचक के टीके का आविष्कार किया। वर्ष 1980 में विश्व चिकित्सा संगठन ने चेचक की समाप्ति की घोषणा की, जो रोग प्रतिरक्षण क्षमता के जरिये खत्म किया जाने वाला प्रथम रोग था। उस के बाद मानव ने लम्बे अरसे के प्रयासों से अनेक रोगों, जैसे चेचक, प्लेग, काली खांसी, रोहिणी, हनुस्तंभ, खसरे और पागल कुत्ते के रोग के टीकों का उत्पादन करने की क्षमता हासिल की। संक्रामक रोगों के मुकाबले में टीकों की विशेष भूमिका की वजह से विभिन्न देशों में टीका लगाने को बहुत महत्व दिया जाता है। चीन में भी यह कार्य बहुत पहले शुरू हो गया था। इधर तेजी से सामाजिक व आर्थिक विकास करते चीन में टीका लगाने को अधिकाधिक महत्व दिया जा रहा है और बच्चों को टीका लगाने के कार्य को विशेष महत्व प्राप्त है।

चीन में रोग प्रतिरक्षण क्षमता बढ़ाने का काम योजनानुसार किया जाता है। चीन में सात वर्ष से कम उम्र के सभी बच्चों को पोलियो, खसरे, पीलिया, तपेदिक, काली खांसी और रोहिणी आदि रोगों के टीके लगाये जाते हैं। इसका मुख्य खर्च सरकार उठाती है। बच्चों के मां-बाप का इस पर बहुत कम खर्च आता है। 1970 के दशक से चीन में यह काम शुरू होने के बाद से भारी प्रगति हुई है। इससे चीनी बच्चों की रोग प्रतिरक्षण क्षमता बहुत उन्नत हो गयी। चीनी बालरोग विशेषज्ञ डाक्टर हू यामेई के अनुसार वर्ष 2003 में जब चीन सार्स से ग्रस्त हुआ, तब भी चीन में कोई भी बच्चा इस रोग का शिकार नहीं बना। विशेषज्ञों का मानना है कि चीनी बच्चों को खसरे का टीका लगाये जाने से उनमें सार्स का मुकाबला करने की शक्ति पैदा हुई। इसीलिए बहुत कम चीनी बच्चे 2003 में सार्स के शिकार हुए। सार्स की वजह से किसी किसी बच्चे की मृत्यु भी नहीं हुई।

पता चला है कि 15 साल पहले ही चीन ने अपने 15 प्रतिशत बच्चों को टीका लगाने का लक्ष्य पूरा कर लिया था। संयुक्त राष्ट्र बाल कोष, विश्व चिकित्सा संगठन और चीनी स्वास्थ्य मंत्रालय ने इस कार्य की संयुक्त जांच की और इस का उच्च मूल्यांकन किया। टीकों से चीन में खसरे आदि संक्रामक रोगों में बहुत कमी आई है। मिसाल के लिए 1960 के दशक में इससे होने वाली मृत्यु की दर प्रति लाख 2000 से घटकर 10 तक गिर गई। चीन वर्ष 1960 में चेचक का खात्मा कर चुका था और वर्ष 2000 में उसने पोलियो का नाश करने के युद्ध में विजय पाई। चीन सरकार द्वारा बच्चों के लिए तय पांच आवश्यक टीकों के अतिरिक्त चीनी लोगों को अपने बच्चों को अस्पतालों में अपने खर्च पर फ्लू और पीलिया आदि रोगों का टीका लगवाने की सुविधा भी हासिल है। बच्चों के अलावा प्रौढ़ लोग भी विभिन्न मौसमों में उत्पन्न होने वाले संक्रामक रोगों की रोकथाम के लिए अस्पताल में आवश्यक टीके लगवा सकते हैं। यहां यह भी चर्चित है कि चीन में कुत्ते भी खासे ज्यादा हैं, इसलिए लोगों को पागल कुत्ते के रोग का टीका लगाने की भी जरूरत है।

नये संक्रामक रोगों का मुकाबला करने के लिए अब चीनी विशेषज्ञ नये टीकों का अनुसंधान कर रहे हैं। चीनी रोग निरोध सोसाइटी के विशेषज्ञ डाक्टर हो श्यूंग का कहना है कि चीनी विशेषज्ञ कई नये टीकों के आविष्कार में लगे हैं। टीकों के जरिये एड्स, कैंसर और कुछ पुराने गंभीर रोगों का मुकाबला करने की भी बड़ी संभावना है। इसलिए इस संदर्भ में की जा रही कोशिशों अर्थहीन नहीं रहेंगी।