अतिथि देवो भावा का उपनिषद क्या है? - atithi devo bhaava ka upanishad kya hai?

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अतिथि देवो भावा का उपनिषद क्या है? - atithi devo bhaava ka upanishad kya hai?

इंक्रेडिबल इंडिया का आधिकारिक प्रतीक चिन्ह्

परिचय[संपादित करें]

भारत की संस्कृति व सभ्यता संपूर्ण विश्व में सराही जाती है । इसकी सांस्कृतिक कलाएँ हो अथवा नैतिक मूल्य हो, विभिन्न देशों के लोग इसकी ओर आकर्षित रहते हैं। चाहें वो अहिंसा का नारा हो या फिर वसुधैव कुटुम्बकम (संपूर्ण विश्व हमारा परिवार है) हो; इन सभी विचारों ने हमारी पावन माटी में ही जन्म लीया है। "अतिथि देवो भवः" हमारे देश की उन सशक्त विचारों में से है जो हमारे देश के नैतिक मूल्यों को और भी प्रबल बनाते है और उसको नए-नए कीर्तिमान प्राप्त करवाते है।

अर्थ[संपादित करें]

"अतिथि देवो भवः" संस्कृत की एक प्रख्यात कहावत है जिसका अभिप्राय होता है कि मेहमान भगवान का रूप है। यह कहावत प्राचीन इंजील से ली गई है और आज यह भारतीय समाज का एक अहम हिस्सा है। बचपन से ही हमें मेहमानों का आदर-सत्कार ; उनकी इज़्ज़त करना और विनम्रता से देखभाल करना सिखया जाता है। जब कभी - भी कोई अतिथि हमारे घर आता है तो हमारे ह्रिदय के भीतर एक प्रसन्न्ता की लहर दौड पडती हैऔर हम उसकी सेवा-सत्कार में कोई कमी न रह जाए ; इसका खूब ख्याल रखते है। जिस तरह हम ईश्वर की आराधना करते है; उसी तरह से हम मेहमानों का रूप समझकर उनका ख्याल रखते हैं।

"तिथि" शब्द का संस्कृत में मतलब होता है दिनांक । पुराने समय में जब संचार के माध्यम बहुत ही कम थे और मेहमानों के आने के समय के बारे में नहीं पता लगाया जा सकता था तब "अतिथि" शब्द को गढा गया था। इस सांस्कृतिक कहावत (अतिथि देवो भवः) में देवों का अभिप्राय होता है ईश्वर और "भवः" का मतलब "होता है" से है। अतः मेहमान भगवान का रूप होता है।

अतिथि देवों भव अभियान का प्रभाव=[संपादित करें]

वर्तमान समय में भारत सरकार- इस कहावत का उपयोग भारतीय पर्यटन को बढावा देने के लिय कर रही है। वर्ष २००३ में "अतिथि देवो भवः" को अतुल्य भारत के अंतर्गत इस्तेमाल करना प्रारम्भ किया गया था ताकि विभिन्न देशों से लोग भारत में पर्यटन करने आए। इसके ट्रेडमार्क राजदूत के रूप में मशहूर अदाकार आमिर खान को नियुक्त किया गया था । इस अभियान की वजह से वर्ष - दर- वर्ष भारतीय पर्यटन में ४०% की बढोतरी होती रही। "अतिथि देवो भवः" के इस अभियान के द्वारा आज हम अपनी आने वाली पीढी को अतिथियों के प्रति उदारता के भाव को रखने का पाठ सिखला पाते हैं। इस अभियान के माध्यम से हम सभी भारतीयों को विदेशी मेहमानों के प्रति अच्छा व्यवहार रखने और उनकी एक पराए देश में सहायता देने के लिए प्रेरित करते है। जैसे कि दूरदर्शन पर आने वाले इसके प्रचार में जब एक दुकानदार कुछ विदेशी महिलाओं को ठगने का प्रयत्न करता है तब इस अभियान के ट्रेडमार्क राजदूत आमिर खान ऐसा अनैतिक कार्य न करने और पर्यटकों से अच्छी तरह पेश आने के लिए विनती करते है। हालिया (२०१६) में "अतिथि देवो भवः" अभियान के नए ट्रेडमार्क राजदूत के रूप देश के दिग्गज अभिनेता अमिताभ बच्च्चन को चयनित किया गया है।

अतिथि देवो भावा का उपनिषद क्या है? - atithi devo bhaava ka upanishad kya hai?

आमिर खान; अतिथि देवो भव के पूर्व ट्रेडमार्क राजदूत

अतिथि देवो भावा का उपनिषद क्या है? - atithi devo bhaava ka upanishad kya hai?

अमिताभ बच्चन; अतिथि देवो भव के नए ट्रेडमार्क राजदूत्

निष्कर्ष[संपादित करें]

" अतिथि देवो भवः " हमारे देश की संस्कृति का एक अटूट भाग है। आज इस विचार की सभी देश सराहना करते है और अपनी-अपनी संस्कृति का हिस्सा बना रहे हैं। प्रस्तुत पंक्तियाँ अपने इस पावन विचार के लिए कितना सटीक बैठती है-

"सम्मान, आदर, इत्यादी करता हूँ मैं उनका;

सेवा-सत्कार में उनकी कोई कसर न उठा रखता।

घर में आए मेहमानों के चेहरे पर एक मुस्कान के लिए;

कुछ क्षण की खुशी के लिए सभी प्रबंध करता क्योंकि:

अतिथि देवो भवः"

संदर्भ[संपादित करें]

  1. http://www.sanskritimagazine.com/culture/atithi-devo-bhava/
  2. http://www.discoveredindia.com/atithi-devo-bhava-incredible-india.htm
  3. https://en.wikipedia.org/wiki/Atithi_Devo_Bhava

अतिथि देवो भावा कौन सा उपनिषद है?

Detailed Solution. संस्कृत वाक्यांश "अतिथि देवो भवः" का अर्थ है "मेहमान भगवान समान है"। मंत्र, तैत्तिरीय उपनिषद, शिक्षावली I. 11.2 से हैं।

अतिथि देवो भव का मतलब क्या होता है?

अर्थ "अतिथि देवो भवः" संस्कृत की एक प्रख्यात कहावत है जिसका अभिप्राय होता है कि मेहमान भगवान का रूप है। यह कहावत प्राचीन इंजील से ली गई है और आज यह भारतीय समाज का एक अहम हिस्सा है। बचपन से ही हमें मेहमानों का आदर-सत्कार ; उनकी इज़्ज़त करना और विनम्रता से देखभाल करना सिखया जाता है।

अतिथि को देवता क्यों कहा जाता है?

वर्तमान में इसका अर्थ बदल गया जो कि उचित नहीं है। मुनि, भिक्षु, संन्यासी या ऋषि होता है अतिथि : अतिथि देवो भव: अर्थात अतिथि देवता के समान होता है। घर के द्वार पर आए किसी भी व्यक्ति को भूखा लौटा देना पाप माना गया है। गृहस्थ जीवन में अतिथि का सत्कार करना सबसे बढ़ा पुण्य माना गया है।

अतिथि देवो भव वर्तमान समय में कहाँ तक सार्थक है?

"अतिथि देवो भव" उक्ति का अर्थ है कि अतिथि देवता के समान होता है। यह उक्ति पहले समय में कभी ठीक रही होगी। आधुनिक युग में यह उक्ति उचित प्रतीत नहीं होती। आज लोगों के पास अपने लिए ही समय नहीं है।