नील की खेती एक अत्यंत लाभदायक व्यवसाय था।इसलिए अंग्रेजों ने भारत में इसकी खेती आरंभ करवाई इस प्रक्रिया में उनका आर्थिक और शारीरिक शोषण हुआ इसके विरोध में नील की खेती करने वाले किसानों ने विद्रोह किया इस विद्रोह के प्रमुख कारण निम्नलिखित थे- Show
नील विद्रोह के कारण 1. जबरदस्ती नील की खेती करवाना। 2.ददनी व्यवस्था और किसानों का शोषण। 3. फसल खराब होने पर भी हर्जाना देना पड़ता था। 4. सरकारी नीतियों एवं निलहो को प्रदान की गई सरकारी सुरक्षा ने किसानों के असंतोष को और अधिक बढ़ाया। 5. बहुत किसानों को नील की खेती ना करने पर जमीन से बेदखल कर दिया गया। नील विद्रोह की सफलता के कारण 1. किसानों में अनुशासन, एकजुटता, सहयोग एवं संगठन का समावेश था। 2. इस आंदोलन में बुद्धिजीवी वर्ग का पूर्ण समर्थन था। 3. नील दर्पण ने किसानों के शोषण तथा उत्पीड़न का उल्लेख किया। नील विद्रोह का महत्व/परिणाम 1. 1860 में नील आयोग का गठन। 2. जबरदस्ती नील की खेती करवाए जाने पर प्रतिबंध लगा। 3. ब्रिटिश सरकार के विरुद्ध असंतोष एवं भारतीयों की राष्ट्रीय भावना को बढ़ावा मिला। 4. निलहो के लिए बंगाल में खेती करना दुष्कर हो गया। सफे़द कपड़ों के लिए एक ज़माने में बेहद ज़रूरी समझा जाने वाला नील यानि Indigo मॉर्डन युग में अपनी प्रासंगकिता खोता जा रहा है. कुछ सालों पहले तक सफ़ेद कुरते-पायजामे, धोती, शर्ट और रुमाल में इसका इस्तेमाल होता था. लोग नदी के किनारे की मिटटी जिसे रेह कहते थे, लाकर कपड़े धोते थे और नील डाल के चमका लेते थे. नील का प्रयोग चूने से होने वाली पुताई में भी होता है, जो कि एक साइकोलॉजिकल दृष्टि से भी मन को लुभाने वाले रंगों में से है. कई तरह के केमिकल पेंट्स बाज़ार में उपलब्ध होने के बावजूद, आज भी कई लोग नील चूने की पुताई (Indigo paint) करवाते हैं. भारत जैसे गर्म देश के हिसाब से इन केमिकल पेंट्स को अच्छा नहीं माना जाता है. 1. जमींदारों का बंगलाADVERTISEMENT नील की खेती सबसे पहले बंगाल में 1777 में शुरू हुई थी. यूरोप में ब्लू डाई की अच्छी डिमांड होने की वजह से नील की खेती करना आर्थिक रुप से लाभदायक था. लेकिन इसके साथ समस्या ये थी कि ये ज़मीन को बंजर कर देता था और इसके अलावा किसी और चीज़ की खेती होना बेहद मुश्किल हो जाता था. शायद यही कारण था कि अंग्रेज़ अपना देश छोड़कर भारत में मनमाने तरीके से इसे उगाया करते थे. 2. लुग्गी जिससे ज़मीन के बंजरपन के बारे में पता लगाया जाता हैADVERTISEMENT नील उगाने वाले किसानों को लोन तो मिलता था, लेकिन ब्याज बेहद ज़्यादा होता था. यूरोपीय देश नील की खेती में अग्रणी थे. अंग्रेज़ और ज़मींदार, भारतीय किसानों पर सिर्फ़ नील की खेती करने और उसे कौड़ियों के भाव उनसे खरीदने के लिए बहुत ज़ुल्म ढाते थे. ये ज़मींदार बाज़ार के भाव का केवल 2.5 प्रतिशत हिस्सा ही किसानों को देते थे. पूरे भारत में यही हाल था. सरकार के कानूनों ने भी इन ज़मींदारों के हक में ही फ़ैसले दिए. 1833 में आए एक एक्ट ने किसानों की कमर तोड़ कर रख दी और उसके बाद ही नील क्रांति का जन्म हुआ था. 3. टुम्नी की प्रक्रिया में मशगूल किसानों का समूहADVERTISEMENT सबसे पहले सन 1859-60 में बंगाल के किसानों ने इसके खिलाफ़ आवाज़ उठाई. बंगाली लेखक दीनबन्धु मित्र ने नील दर्पण नाम से Indigo Revolution पर एक नाटक लिखा, जिस में उन्होंने Britishers की मनमानियों और शोषित किसानों का बड़ा ही मार्मिक दृश्य प्रस्तुत किया था. ये नाटक इतना प्रभावशाली था कि देखने वाली जनता, ज़ुल्म करते हुए अंग्रेज़ का रोल निभाने वाले कलाकार को पकड़ के मारने लगी. 4. ड्रिल से खेतों की बुवाई करते किसान5. नील के पौधे को काटता एक किसान6. नील की फैक्ट्री7. नील के पौधे से रंजक द्रव निकालने की कवायदADVERTISEMENT 8. इंडिगो फैक्ट्री9. रंजक द्रव को हाथ से कूटते किसान10. मशीनों से होती कुटाई11. मशीनरी से नील कूटने वाले उपकरण12. Fecula टेबलADVERTISEMENT 13. प्रेस हाउस14. Fecula को भट्टी में पंप करते किसान15. Fecula पर बल डालते किसानADVERTISEMENT 16. यहां चीज़ों को सुखाने का काम होता है.17. ये किसान नील को केक के आकार में काट रहे हैं18. सूखे के दौर का संघर्षADVERTISEMENT 19. पर्सियन व्हील20. नील को कूटने वाले किसानों का एक समूहADVERTISEMENT धीरे-धीरे ये आन्दोलन पूरे देश में फैला और 1866-68 में बिहार के चंपारण और दरभंगा के किसानों ने भी खुले तौर पर विरोध किया. बंगाल के किसानों द्वारा किया नील क्रांति आन्दोलन आज भी इतिहास में सबसे बड़े किसानी आन्दोलनों में से एक माना जाता है. भारत में नील की खेती के विकास के क्या कारण थे?नील की खेती भारत में सबसे पहले शुरू हुई थी। इसकी खेती आज रंजक (Dyes) के रूप में की जा रही है। रासायनिक पदार्थों के इस्तेमाल से भी नील तैयार की जाती है, लेकिन आज के समय में बाज़ारो में प्राकृतिक नील की मांग बढ़ रही है। इसी कारण किसानों ने नील का फिर से उत्पादन करना शुरू कर दिया है।
भारत में नील की मांग क्यों थी?Solution : यूरोपीय बाजार में कपड़ा रंगने के लिए वोड नामक पौधे का इस्तेमाल किया जाता था जोकि फीका होता था। यूरोप के लोग भारतीय नील से रंगे कपड़े पहनना चाहते थे। इस कारण यूरोपीय बाजारों में भारतीय नील की माँग अधिक थी।
नील की खेती की प्रमुख समस्या क्या थी?नील की खेती सबसे पहले बंगाल में 1777 में शुरू हुई थी. यूरोप में ब्लू डाई की अच्छी डिमांड होने की वजह से नील की खेती करना आर्थिक रुप से लाभदायक था. लेकिन इसके साथ समस्या ये थी कि ये ज़मीन को बंजर कर देता था और इसके अलावा किसी और चीज़ की खेती होना बेहद मुश्किल हो जाता था.
नील की खेती क्यों कि जाती थी?यह सूती कपड़ो में पीलेपन से निज़ात पाने के लिए प्रयुक्त एक उपादान है। यह चूर्ण (पाउडर) तथा तरल दोनो रूपों में प्रयुक्त होता है। यह पादपों से तैयार किया जाता है किन्तु इसे कृत्रिम रूप से भी तैयार किया जाता है। भारत में नील की खेती बहुत प्राचीन काल से होती आई है।
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