भक्ति अच्छी है, यह कहना कठिन होगा, क्योंकि उसमें दुर्गुणों का भाव नहीं लेखिका ने ऐसा क्यों कहा होगा - bhakti achchhee hai, yah kahana kathin hoga, kyonki usamen durgunon ka bhaav nahin lekhika ne aisa kyon kaha hoga

भक्तिन अच्छी है, यह कहना कठिन होगा, क्योंकि उसमें दुर्गुणों का अभाव नहीं लेखिका ने ऐसा क्यों कहा होगा?


लेखिका को भक्तिन अच्छी लगती है अत: वह उसके दुर्गुणों की ओर विशेष ध्यान नहीं देती। वह यह मानती है कि भक्तिन में भी दुर्गुण हैं उसके व्यक्तित्व में दुर्गुणों का अभाव होने के बारे में वह निश्चित तौर पर नहीं कह सकती। वह सत्यवादी हरिश्चंद्र नहीं बन सकती। वह रुपए-पैसों को मटकी में सँभाल कर रख देती है। वह लेखिका को प्रसन्न रखने के लिए बात को इधर-उधर घुमाकर बताती है। इसे आप झूठ कह सकते हैं। इतना झूठ और चोरी तो धर्मराज महाराज में भी होगा। भक्तिन सभी बातों और कामों को अपनी सुविधा के अनुसार ढालकर करती है। इसी कारण लेखिका ने कहा है कि यह कहना कठिन है कि भक्तिन अच्छी है क्योंकि उसमें दुर्गुणों का आभाव नहीं है।

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भक्तिन अपना वास्तविक नाम लोगों से क्यों छुपाती थी? भक्तिन को यह नाम किसने और क्यों दिया?


भक्तिन का वास्तविक नाम है-लछमिन अर्थात् लक्ष्मी। लक्ष्मी नाम समृद्धि का सूचक माना जाता है। भक्तिन को यह नाम विरोधाभासी प्रतीत होता है। भक्तिन बहुत समझदार है अत: वह अपना समृद्धि सूचक नाम किसी को बताना नहीं चाहती। उसने नौकरी माँगते समय लेखिका से भी अनुरोध किया था कि वह उसके वास्तविक नाम का उपयोग न करे। यही कारण था कि वह अपना वास्तविक नाम लोगों से छुपाती थी।

भक्तिन को यह नाम लेखिका ने ही दिया था। लेखिका ने उसकी कंठीमाला को देखकर यह नामकरण किया था। वह इस कवित्वहीन नाम को पाकर भी गद्गद् हो उठी थी।

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भक्तिन की बेटी पर पंचायत द्वारा ज़बरन पति थोपा जाना एक दुर्घटना भर नहीं, बल्कि विवाह के संदर्भ मे स्त्री के मानवाधिकार (विवाह करे या न करे अथवा किससे करे) को कुचलते रहने की सदियों से चली आ रही सामाजिक परंपरा का प्रतीक है। कैसे?


भक्तिन की बेटी के पति की आकस्मिक मृत्यु के बाद बड़े जिठौत ने अपने तीतरबाज साले से उसका विवाह कराना चाहा पर भक्तिन की बेटी ने उसे नापसंद कर दिया। इस पर एक दिन वह व्यक्ति भक्तिन (माँ) की अनुपस्थिति में बेटी की कोठरी में जा घुसा और भीतर से दरवाजा बंद कर लिया। उस अहीर युवती ने उसकी मरम्मत करके जब कुंडी खोली तब उस तीतरबाज युवक ने गाँव के लोगों के सामने कहा कि-युवती का निमंत्रण पाकर ही भीतर गया था। युवती ने उस युवक के मुख पर छपी प्रप अपनी अंगुलियों के निशान को दिखाकर अपना विरोध जताया पर लोगों ने पंचायत बुलाकर यह निर्णय करवा लिया कि चाहे कोई भी सच्चा या झूठा क्यों न हो पर वे कोठरी में पति-पत्नी के रूप मैं रहे हैं अत: विवाह करना ही होगा। अपमानित बालिका लहू का घूँट पीकर रह गई।

निश्चय ही यह एक दुर्घटना तो थी ही, पर स्त्री के मानवाधिकार का हनन भी था। यह बात युवती की इच्छा पर छोड़ी जानी चाहिए थी कि वह विवाह करे या न करे और करे तो किससे करे। उस पर कोई बात जबर्दस्ती नहीं लादी जानी चाहिए थी। हम देखते हैं कि स्त्री का ऐसा शोषण सदियों से होता चला आ रहा है। स्त्री को कुचलते रहने की परंपरा सदियों से चलती आ रही है। यह घटना उसी की प्रतीक है।

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दो कन्या-रत्न पैदा करने पर भक्तिन पुत्र-महिमा में अंधी अपनी जिठानियों द्वारा घृणा व उपेक्षा का शिकार बनी। ऐसी घटनाओं से ही अक्सर यह धारणा चलती है कि स्त्री ही स्त्री की दुश्मन होती है । क्या इससे आप सहमत हैं?


जब भक्तिन दो कन्या-रत्न पैदा कर चुकी तब उसकी सास और जिठानियों ने ओठ बिचकाकर उसकी उपेक्षा की। भक्तिन उनकी उपेक्षा और घृणा का शिकार बन गई क्योंकि वह उनके समान पुत्र पैदा नहीं कर सकी थी। यद्यपि दोनों जिठानियों के काले-कलूटे पुत्र धूल उड़ाते फिरते थे, पर वे थे तो पुत्र और भक्तिन इनसे वंचित थी।

इस प्रकार की घटनाओं से यह धारणा बनती है कि स्त्री ही स्त्री की दुश्मन है। भक्तिन की दुश्मन उसकी जिठानियाँ (स्त्रियाँ) ही बन गईंखभक्तिन के पति ने उससे कुछ नहीं कहा। वह पत्नी को चाहता भी बहुत था। भक्तिन पति की उपेक्षा की शिकार नहीं बनी, बल्कि वह स्त्रियों की ही उपेक्षा का शिकार बनी। ही, हम इस बात से पूरी तरह सहमत है कि स्त्री ही स्त्री की दुश्मन होती है। नव विवाहिता को दहेज के लिए प्रताड़ित करने वाली भी स्त्रियाँ ही होती है।

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भक्तिन द्वारा शास्त्र के प्रश्न को सुविधा से सुलझा लेने का क्या उदाहरण लेखिका ने दिया है?


शास्त्र का प्रश्न भक्तिन अपनी सुविधा से सुलझा लेती है। इस बात के लिए लेखिका ने एक उदाहरण दिया है। भक्तिन ने जब सिर घुटवाना चाहा तब लेखिका ने उसे रोकना चाहा क्योंकि उसे स्त्रियों का सिर घुटाना अच्छा नहीं लगता। इस प्रश्न को भक्तिन ने अपने ढंग से सुलझाते हुए और अपने कदम को शास्त्रसम्मत बताते हुए कहा कि यह शास्त्र में लिखा है। जब लेखिका ने उस लिखे के बारे में जानना चाहा तो उसे तुरंत उत्तर मिला-”तीरथ गए मुँडाए सिद्ध।” लेखिका को यह पता न चल सका कि यह रहस्यमय सूत्र किस शास्त्र का है। बस भक्तिन ने कह दिया कि वह शास्त्र का है तो यह शास्त्र का हो गया।

एक अन्य उदाहरण: एक बार लेखिका के घर पैसे चोरी हो गए तो उसने भक्तिन से पूछा। जब भक्तिन ने लेखिका को बताया कि पैसे उसने सँभालकर रख लिए हैं। उसका तर्क है-क्या अपने ही घर में पैसे सँभालकर रखना चोरी है? वह उदाहरण देती है कि थोड़ी-बहुत चोरी और झूठ के गुण युधिष्ठिर में भी थे अन्यथा वे श्रीकृष्ण को कैसे खुश रख सकते थे। वे राज्य भी झूठ के सहारे चलाते थे। इस प्रकार भक्तिन शास्त्रों का हवाला देकर अपने तर्को से चोरी जैसे दुर्गुण को भी गुण में बदल देती है।

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भक्ति अच्छी है यह कहना कठिन होगा क्योंकि उसमें दुर्गुणों का अभाव नहीं है लेखिका ने ऐसा क्यों कहा होगा?

वह लेखिका की सुविधा नहीं देखती थी, हर बात को वह अपनी सुविधा अनुसार करती थी। यही कारण है लेखिका ने कहा होगा कि भक्तिन अच्छी है, यह कहना कठिन होगा क्योंकि उसमें दुर्गुणों का अभाव नहीं

भक्तिन का दुर्भाग्य भी कम हठी नहीं था लेखिका ने ऐसा क्यों कहा है?

भक्तिन का दुर्भाग्य बड़ा ही हठी था। अभी उसकी बड़ी लड़की किशोरी से युवती बन ही रही थी कि उसका पति मर गया और वह असमय ही विधवा हो गई। उसके इस दुर्भाग्य में जिठौतों (जेठ के पुत्रों) को आशा की यह किरण दिखाई दी कि वे विधवा. बहन का पुनर्विवाह कराकर उसकी माँ की संपत्ति पर कब्जा कर सकेगें।

भक्तिन पाठ में किसका वर्णन लेखिका ने किया है?

उसका नाम लक्ष्मी था, परंतु उसने लेखिका से यह नाम प्रयोग न करने की प्रार्थना की। उसकी कंठी-माला को देखकर लेखिका ने उसका नाम Bhaktin रख दिया। सेवा-धर्म में वह हनुमान से मुकाबला करती थी। उसके अतीत के बारे में यही पता चलता है कि वह ऐतिहासिक झूसी के गाँव के प्रसिद्ध अहीर की इकलौती बेटी थी।

भक्तिन को यह नाम किसने और क्यों दिया?

जब लेखिका महादेवी वर्मा ने लछमिन को देखा तो उसके गले में कंठी माला तथा उसका मुंडा हुआ सर दिखाई दिया। - Page 2 इसीलिए महादेवी वर्मा को वह कोई भक्तिन लगी । लेखिका ने उसे "भक्तिन" नाम उसकी सेवा - भावना और कर्तव्य-परायणता को देखकर ही दिया था।