भोलानाथ के पिता राम नाम की गोलियां बनाकर उनका क्या करते थे? - bholaanaath ke pita raam naam kee goliyaan banaakar unaka kya karate the?

Mata ka Anchal Question Answer | माता का आँचल प्रश्न-उत्तर | NCERT Solutions for Class 10 Hindi Kritika Chapter 1 Question Answer

          आज हम आप लोगों को कृतिका भाग-2 के कक्षा-10  का पाठ-1 (NCERT Solutions for Class-10 Hindi Kritika Bhag-2 Chapter-1) के माता का आँचल पाठ का प्रश्न-उत्तर (Mata ka Anchal Question Answer) के बारे में बताने जा रहे है जो कि शिवपूजन सहाय (Shivpujan Sahay) द्वारा लिखित है। इसके अतिरिक्त यदि आपको और भी NCERT हिन्दी से सम्बन्धित पोस्ट चाहिए तो आप हमारे website के Top Menu में जाकर प्राप्त कर सकते हैं।       

Mata ka Anchal Question Answer | माता का आँचल प्रश्न-उत्तर

पाठ्य-पुस्तक से

  1. प्रस्तुत पाठ के आधार पर यह कहा जा सकता है कि बच्चे का अपने पिता से अधिक जुड़ाव था, फिर भी विपदा के समय वह पिता के पास न जाकर माँ की शरण लेता है। आपकी समझ से इसकी क्या वजह हो सकती है ?

उत्तर: बच्चे को पिता से अधिक लगाव था क्योंकी उसके पिता उसका लालन-पालन ही नहीं , बल्की उसके संग दोस्तों जैसा व्यवहार भी करते थे। उसके प्रत्येक खेल में शामिल होने का प्रयास करते थे। उसे किसी न किसी प्रकार अधिकतर समय अपने साथ रखते थे, इसलिए बच्चे का अपने पिता के प्रति अधिक स्नेह होना स्वाभाविक था। माँ से बच्चे का लगाव दिल का है। माँ का स्नेह दिल को छूने वाला है। उसे जो शान्ति व प्रेम की छाया अपनी माँ से मिल सकती थी, उतनी पिता से नहीं। यही कारण है कि आपदा के दौरान, बच्चा पिता के पास नहीं जाता है और माँ के पास जाता है। माँ की बाहों में बच्चा खुद को सुरक्षा के साथ स्नेह से भरा हुआ महसूस करता है।

  1. आपके विचार से भोलानाथ अपने साथियों को देखकर सिसकना क्यों भूल जाता है?

उत्तर : अपने स्वाभाविक आदतों  के अनुसार शिशु अपनी उम्र के बच्चों के साथ खेल कूद में रुचि लेता है। उनके साथ खेलना उन्हें अच्छा लगता है। अपनी उम्र के बच्चों के साथ जिस रुचि से वो खेलता है वह रुचि उसे बड़ों बच्चों के साथ खेलने में नहीं होती है। दूसरा कारण मनोवैज्ञानिक भी है क्योंकि बच्चे को अपने साथियों के बीच सिसकने में या रोने में हीनता का अनुभव होता है। शिशु भोलानाथ को उसकी माँ जबरदस्ती पकड़ कर सिर में तेल डालकर उसकी इच्छा के विरुद्ध उबटन करती है तो वह सिसकने लगता है। पिता की गोद पाकर भी उसका सिसकना बन्द नहीं होता है, परंतु जैसे ही साथियों के बीच में जाता है तो स्वभावतः सिसकियों को बन्द करता है, छिपाने की कोशिश करता है। यही कारण हैं की बच्चा भोलानाथ अपने साथियों को देखकर सिसकना भूल जाता है ।

  1. आपने देखा होगा कि भोलानाथ और उसके साथी जब-तब खेलते-खाते समय किसी न किसी प्रकार की तुकबंदी करते हैं। आपको यदि अपने खेलों आदि से जुड़ी तुकबंदी याद हो तो लिखिए।

उत्तर : तुकबन्दियाँ

  1. अटकन-बटकन दही चटाके।

बनफूले बंगाले।

  1. अर्रक-बर्रक दूध की धार।

चोर भाग गया पल्ली पार।।

  1. भोलानाथ और उसके साथियों के खेल और खेलन की सामग्री आपके खेल और खेलने की सामग्री से किस प्रकार भिन्न हैं ?

उतर: भोलानाथ और उसके साथियों के खेल और खेलने की सामग्री से और हमारे खेल और खेलने की सामग्रियों में कल्पना से भी अधिक अन्तर है। भोलानाथ के समय में परिवार से लेकर दूर-दराज के इलाकों तक में आत्मीय सम्बन्ध थे, जिसके कारण खेलों में स्वतंत्रता थी । बाहरी घटनाओं-अपहरण आदि का कोई डर नहीं था। खेलों की सामग्री बच्चों द्वारा स्वयं बनाई जाती थी, और घर का बेकार सामान उनके लिए खेल की सामग्री बन जाती थी, जिससे किसी भी तरह से नुकसान की संभावना नहीं थी। धूल और मिट्टी से खेलने में पूरा आनंद था। न कोई बंधन, न कोई भय, न किसी का निर्देशन। वह सब सामूहिक बुद्धिमत्ता की उपज थी। आज, भोलानाथ के विपरीत खेल और खेल सामग्री, और ऊपर से बड़ों की दिशा और सुरक्षा, हर समय सिर पर हावी है। आज, खेल के सामान स्व-निर्मित के बजाय बाजार से खरीदे जाते हैं। खेलने की सीमा भी निर्धारित की जाती है। इसलिए, कोई स्वतंत्रता नहीं है। वे धूल और मिट्टी से परिचित नहीं होता है।

यह भी पढ़े – माता का आँचल पाठ का सारांश

NCERT / CBSE Solution for Class 9 (HINDI)

  1. पाठ में आए ऐसे प्रसंगों का वर्णन कीजिए जो आपके दिल को छू गए हों।

उत्तर : पाठ के सभी प्रसंग बचपन की याद दिलाते हैं। कहानीकार के सभी प्रसंग अपने जीवन की कहानी प्रतीत होते हैं। जैसे –

  • माँ का अचानक भोलानाथ को पकड़कर तेल लगाना, उसका छटपटाना, फिर भी उसे कन्हैया बनाकर छोड़ना तथा बाबूजी के साथ आकर रोना-सिसकना भूलकर अपने साथियों के खेल में शामिल हो जाना।
  • भोलानाथ और उसके साथियों का खेती करने का अभिनय करना, खेती की पैदावार (राशि) को तौलना, इसी बीच बाबू जी का आना और सारी राशि को छोड़कर हँसते हुए वहाँ से भाग जाना, बटोहियों (सांस्कृतिक कार्यक्रम) को देखते रह जाने का प्रसंग दिल को छू जाता है।
  • भोलानाथ और उसके साथियों का टीले पर चूहे का बिल देख पानी उलीचा, बिल से चूहे की जगह साँप निकला, फिर तो बच्चों का डरना, इधर-उधर काँटों में भागना, भोलानाथ का माँ के आँचल में छुप जाना, सिसकना, माँ की चिन्ता बन जाना, हल्दी लगाना, पिताजी के बुलाने पर भी माँ की गोद को नहीं छोड़ना, यह सब मर्मस्पर्शी दृश्य को दर्शाता है।
  1. इस उपन्यास-अंश में तीस के दशक की ग्राम्य-संस्कृति का चित्रण है। आज की ग्रामीण संस्कृति में आपको किस तरह के परिवर्तन दिखाई देते हैं?

उत्तर : आज के समय की ग्रामीण रहन-सहन को देखकर और इस उपन्यास के पाठ को पढ़कर ऐसा लगता है कि कितनी अच्छी रही होगी वह समूह-संस्कृति, जो आपसी स्नेह और समूह में रहने का बोध कराती थी। आजकल इस प्रकार के दृश्य दिखना मुश्किल हैं। पुरुषों की भी समूह में कार्य करने की प्रथा समाप्त हो गई है। अतः अभी के ग्रामीण संस्कृति में आए परिवर्तन के कारण वे सभी मनमोहक दृश्य नहीं दिखाई देते हैं जो तीस के दशक में रहे होंगे-

  1. आज घर बहुत छोटे हो गए हैं। घरों के आगे बनाए जाने वाले चबूतरों का जो प्रचलन था, वह अब समाप्त हो गया है।
  2. आज परिवारों में एकल संस्कृति ने जन्म ले लिया, जिससे समूह में बच्चे अब दिखाई नहीं देते।
  3. आज बच्चों के खेलने की सामग्री और खेल बदल चुके हैं। खर्चीले खेल हो गए हैं। जो परिवार खर्च नहीं कर पाते हैं वे हीन-भावना से बच्चों को बचाने के लिए समूह में जाने से रोकते हैं।
  4. आजकल के नए जमाने के लोग बच्चों को धूल-मिट्टी से बचना चाहते है।
  5. आजकल घरों के बाहर ज्यादातर मैदान भी नहीं रहे हैं, लोग अब छोटे से डिब्बों के समान घरों में रहने लगे हैं।

      7. पाठ पढ़ते-पढ़ते आपको भी अपने माता-पिता का लाड़-प्यार याद आ रहा होगा। अपनी इन भावनाओं को डायरी में अंकित कीजिए।

उत्तर : आदरणीय पिता या माता जी यद्यपि दोनों ही आज साथ नहीं हैं फिर भी उनके बीच शैशव काल की कुछ घटनाएँ बहुत याद आ जाती हैं। बचपन में कुँए की रहट पर खेलते हुए रहट के चक्कर में सिर फँस कर फट गया था, मैं रो रहा था सारा शरीर खून से लथपथ था। पिताजी ने अपनी धोती फाड़कर मेरा सिर बाँध कन्धे पर बैठाकर घेर (फार्म हाऊस) से डॉक्टर के पास ले गए। मरहम-पट्टी कराकर दवा दिलवाई। मेरे ठीक होने तक मेरे साथ रह कर मेरी सभी जरूरत का ध्यान रखते थे। इसके साथ ही एक-दूसरी घटना भी याद आ गई जब हम माँ के साथ आम के पेड़ के नीचे खड़े थे। साथ में मेरा छोटा भाई और सभी महिलाएँ थीं। वेग से वर्षा होने लगी, जोर से बिजली कड़की और माँ ने अपने पल्लू से यकायक ऐसे ढका मानों बिजली से वह पल्लू रक्षा कर लेगा। छोटा-भाई यतीश और मैं माँ के स्नेह से हैरान रह गए।

  1. यहाँ माता-पिता का बच्चे के प्रति जो वात्सल्य व्यक्त हुआ है उसे अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर : पिताजी का अपने साथ शिशु को भी नहला-धुलाकर पूजा में बैठा लेना, माथे पर भभूत लगाना फिर कागज में राम-राम लिख कर आटे की गोलियाँ बनाना, उसके बाद लेखक को कन्धे पर बैठा कर गंगाजी तक ले जाना और वापस आते समय पेड़ पर बैठा कर झूला झुलाना, यह सब कितना सुंदर दृश्य उत्पन्न करता है। लेखक का अपने पिता जी के साथ कुश्ती लड़ना, पिताजी का बच्चे के गालों में चुम्मा लेना, बच्चे के द्वारा मूँछे पकड़ने पर पिताजी का बनावटी रोना रोने का नाटक करना और शिशु का उस पर हँस पड़ना, यह सब अत्यंत जीवंत लगता है। माँ के द्वारा गोरस-भात, तोता-मैना आदि के नाम पर खिलाना, उबटना, शिशु का शृंगार करना और शिशु का सिसक-सिसक कर रोना, बच्चों की टोली को खेलते देखकर सिसकना बन्द कर तरह-तरह के खेल खेलना और मूसन तिवारी को चिढ़ाना आदि। ये सभी अद्भुत दृश्य पाठ में उभारे गए हैं। ये सभी दृश्य अपने शैशव अवस्था की याद दिलाते हैं।

  1. माता का अँचलशीर्षक की उपयुक्तता बताते हुए कोई अन्य शीर्षक सुझाएँ।

उत्तर : भोलानाथ का अधिकांश समय पिता के समीप में बीतता है। प्रातः उठकर नहलाना-धुलाना, पूजा में बैठाना, गंगा तक कन्धे पर ले जाना। यहाँ तक बच्चे के हर खेल में खेल के अन्त में शिशु के साथ पिता की उपस्थिति रही है। ऐसा लगता है कि पिता भोलानाथ का सम्बन्ध शिशु से व्यक्ति और छाया का है। भोलानाथ का माँ के साथ सम्बन्ध दूध पीने तक का रह गया है। अन्त में साँप से डरा हुआ बालक भोलानाथ पिता को हुक्का गुड़गुड़ाता पहले देखकर भी माता की शरण में जाता है और अद्भुत रक्षा और शान्ति का अनुभव करता है। यहाँ भोलानाथ पिता को अनदेखा कर देता है जबकि अधिकांश समय पिता के सान्निध्य में रहता है। इस आधार पर ‘माता का आँचल’ सटीक शीर्षक है।

दूसरे और भी शीर्षक हो सकते हैं जैसे-

  1. माता-पिता का सान्निध्य।
  2. बचपन के वे दिन।
  3. बचपन की मधुर स्मृतियाँ।

    10. बच्चे माता-पिता के प्रति अपने प्रेम को कैसे अभिव्यक्त करते हैं?

उत्तर :

  1. शिशु की जिद्द में भी प्रेम का प्रकटीकरण है।
  2. शिशु और माता पिता के सान्निध्य में यह स्पष्ट करना कठिन होता है कि माता-पिता का स्नेह शिशु के प्रति है या शिशु का माता-पिता के प्रति दोनों एक ही प्रेम के सम्पूरक होते हैं।
  3. शिशु की मुस्कराहट, शिशु को उनकी गोद में जाने की ललक उनके साथ विविध क्रीड़ाए करके अपने प्रेम के प्रकटीकरण करते हैं।
  4. माता-पिता की गोद में जाने के लिए मचलना उसका प्रेम ही होता है।

इस प्रकार माता और पिता के प्रति बच्चे के प्रेम को शब्दों में व्यक्त करना बहुत ही मुश्किल होता है।

  1. इस पाठ में बच्चों की जो दुनिया रची गई है वह आपके बचपन की दुनिया से किस तरह भिन्न है?

उत्तर : इस पाठ में बच्चों की जो दुनिया रची गई है उसकी पृष्ठभूमि पूर्णतया ग्रामीण जीवन पर आधारित है। पाठ में तीस या चालीस के दशक के आस-पास का वर्णन है। ग्रामीण परिवेश में चारों ओर उगी फसलें उनके दूधभरे दाने चुगती चिड़ियाँ, बच्चों द्वारा उन्हें पकड़ने का प्रयास करना, उन्हें उड़ाना, माता द्वारा बल-पूर्वक बच्चे को तेल लगाना, बच्चे की चोटी बाँधना, काजल लगाकर कन्हैया बनाना, साथियों के साथ मस्तीपूर्वक खेलना, आम के बगीचे में बारिश में भीगना, उस बारिश में बिच्छुओं का निकलना, मूसन तिवारी को चिढ़ाना, चूहे के बिल में पानी डालने पर साँप का निकल आना सब कुछ हमारे बचपन से पूर्णतया भिन्न है। आज तीन वर्ष की उम्र होते ही बच्चों को नर्सरी या प्रीपेरेटरी कक्षाओं में भर्ती करा दिया जाता है। उनके खेलों के सभी सामान दुकान से खरीदे गए होते हैं। बच्चे क्रिकेट, वॉलीबॉल, कम्प्यूटर गेम, वीडियो गेम, लूडो आदि खेलते हैं। जिस धूल में खेलकर ग्रामीण बच्चे बड़े होते हैं तथा मजबूत बनते हैं। उससे इन बच्चों का कोई मतलब नहीं होता है। आज माता-पिता के पास बच्चों के लिए भी समय नहीं है, ऐसे में बच्चे टी.वी. वीडियो देखकर अपनी शाम तथा समय बिताते हैं।

  1. फणीश्वरनाथ रेणु और नागार्जुन की आँचलिक रचनाओं को पढ़िए।

उत्तर

  1. फणीश्वरनाथ का मैला आँचल उपन्यास पठने योग्य है। विद्यालय के पुस्तकालय में यदि उपस्थित है तो वहाँ से लेकर पढ़िए।
  2. नागार्जुन का बलचनमा उपन्यास आँचलिक है। यदि यह भी पुस्तकालय में उपलब्ध हो तो लेकर पढ़ें।

कुछ और प्रश्न

Mata ka Anchal Extra Question Answer

  1. लेखक भोलानाथ को पूजा में अपने साथ क्यों बैठाते थे?

उत्तर : भोलानाथ को पूजा में बैठाने के निम्न कारण हो सकते थे-

  1. लेखक भोलानाथ से अधिक प्यार करते थे।
  2. लेखक के पिताजी धार्मिक प्रवृत्ति के थे। उनकी यही इच्छा रही होगी कि भोलानाथ में धार्मिक प्रवृत्ति बनी रहे।
  3. शिशु भोलानाथ पर ईश्वर की कृपा बरसती रहे।

प्रश्न 2 : शिशु का नाम भोलानाथ कैसे पड़ा? .

उत्तर : शिशु का मूल नाम तारकेश्वर नाथ था। तारकेश्वर के पिता स्वयं भोलेनाथ अर्थात् शिव के भक्त थे। अपने समीप बैठा कर शिशु के माथे पर भभूत लगाकर और त्रिपुण्डाकार में तिलक लगाकर, लम्बी जटाओं के साथ शिशु से कहने लगते कि बन गया भोलानाथ। फिर तारकेश्वर नाथ न कहकर धीरे-धीरे उसे भोलानाथ कहकर पुकारने लगे और फिर हो गया भोलानाथ।

प्रश्न 3 : भोलानाथ पूजा-पाठ में पिताजी के पास बैठा क्या करता रहता था?

उत्तर : पिताजी पूजा-पाठ करते, रामायण का पाठ करते तो उनकी बगल में बैठा भोलानाथ आइने में अपने मुँह निहारा करता था। पिताजी जब भोलानाथ की ओर देखने लगते तो शिशु भोलानाथ लजाकर और कुछ मुस्करा कर आइना को नीचे रख देता था। ऐसा करने पर पिताजी मुस्कुरा पड़ते थे।

  1. भोलानाथ के पिताजी की पूजा के कौन-कौन से अंग थे?

उत्तर : भोलानाथ के पिताजी की पूजा के चार अंग थे

  1. भगवान शंकर की विधिवत पूजा करना।
  2. रामायण का पाठ करना।
  3. ‘रामनामा बही’ पर राम-राम लिखना।
  4. इसके अतिरिक्त छोटे-छोटे कागज पर राम-नाम लिखकर उन कागजों से आटे की गोली बनाकर उन गोलियों को गंगा में फेंककर मछलियों को खिलाना।

    5. भोलानाथ माँ के साथ कितना नाता रखता था। वह अपने माता-पिता से क्या कहता था?

उत्तर : भोलानाथ का माता के साथ दूध पीने तक नाता था। इसके अतिरिक्त माँ के पास वह जबरदस्ती रहता था क्योंकि माता भोलानाथ के न चाहते हुए जबरदस्ती तेल लगाना तथा उबटन करती थी। जिससे भोलानाथ को माँ के पास रहना पसन्द नहीं था। भोलानाथ अपनी माता को मइयाँ और पिताजी को बाबूजी कहता था।

   6 : भोलानाथ के गोरस-भात खा चुकने के बाद माता और खिलाती थी। क्यों?

उत्तर : भोलानाथ को पिताजी गोरस भात सानकर थोड़ा-थोड़ा करके खिला देते थे, फिर भी माता उसे भर-भर कौर खिलाती थी। कभी तोता के नाम का कौर कभी मैना के नाम का कौर। माँ कहती थी कि बच्चे को मर्दे क्या खिलाना जानें । थोड़ा-थोड़ा खिलाने से बच्चे को लगता है कि बहुत खा चुका और बिना पेट भरे ही खाना बन्द कर देता है।

  1. भोलानाथ भयभीत होकर बाग से क्यों भागा?

उत्तर : भोलानाथ बाग में अपने दोस्तों की टोली के साथ था। आकाश में बादल आए, बालकों ने शोर मचाया। वर्षा शुरू हुई और थोड़ी देर में ही मूसलाधार वर्षा हुई। बालक पेड़ों के नीचे पेड़ों से चिपक गए। जैसे ही वर्षा थमी, बाग में बिच्छू निकल आए। उनसे डरकर बच्चे भागे। उस भय से डरा हुआ बालक भोलानाथ भी बाग से भागा।

  1. भोलानाथ को सिसकते हुए देख माँ का स्नेह फूट पड़ा। कैसे?

उत्तर : भोलानाथ भय से सिसकता हुआ, भय से प्रकम्पित भागा-भागा माँ की गोद में छिपा तो माँ भी स्नेहवश डर गई और डर से काँपते हुए भोलानाथ को देखकर जोर से रो पड़ी। सब काम छोड़ अधीर होकर भोलानाथ से भय का कारण पूछने लगी। कभी अंग भरकर दबाने लगी और अंगों को अपने आँचल से पोंछकर चूमने लगी। झटपट हल्दी पीसकर घावों पर लगा दी गई। माँ बार-बार निहारती, रोती और बड़े लाड़-प्यार से उसे गले लगा लेती।

  1. भयप्रकम्पित भोलानाथ का चित्रण कीजिए।

उत्तर भोलानाथ साँप के भय से मुक्त नहीं हो पा रहा था। अपने हुक्का-गुड़गुड़ाते पिताजी की पुकार को भी अनसुनी कर घर की ओर भाग कर आया। उसकी सिसकियाँ नहीं रुक रही थीं। साँ-साँ करते हुए माँ के आँचल में छिपा जा रहा था। सारा शरीर काँप रहा था। रोंगटे खड़े हो रहे थे। आँखें खोलने पर नहीं खुल रही थीं।

  1. लेखक किस घटना को याद कर कहता है कि वैसा घोड़मुँहा आदमी हमने कभी नहीं देखा?

उत्तर : लेखक बताता है कि बचपन में हम बच्चों की टोली किसी दूल्हे के आगे-आगे जाती हुई ओहारदार पालकी देख लेते तो खूब जोर से चिल्लाते थे रहरी में रहरी पुरान रहरी। डोला के कनिया हमार मेहरी। एक बार ऐसा कहने पर बूढ़े वर ने बड़ी दूर तक खदेड़ कर ढेलों से मारा था। उस खूसट-खब्बीस की सूरत को लेखक नहीं भुला पाया। उसे याद कर लेखक कहता था कि न जाने किस ससुर ने वैसा जमाई ढूंढ़ निकाला था। वैसा घोड़मुँहा आदमी कभी नहीं देखा।

  1. मूसन तिवारी ने बच्चों को क्यों खदेड़ा?

उत्तर : बच्चे बाग में खेल रहे थे, वर्षा हुई तो बाग में बिच्छू निकल आए और बच्चे डरकर भाग उठे। बच्चों की मण्डली में बैजू बालक ढीठ था। संयोग से रास्ते में मूसन-तिवारी मिल गए, जिन्हें कम सूझता था, बैजू ने उन्हें चिढ़ाया ‘बुढ़वा बेईमान माँगे करैला का चोखा।’ बैजू के सुर में सबने सुर मिलाया और चिल्लाना शुरू कर दिया। तब मूसन तिवारी ने बच्चों को खदेड़ा।

  1. गुरुजी ने भोलानाथ की खबर क्यों ली?

उत्तर : मूसन तिवारी हमारे चिढ़ाने पर सीधे पाठशाला शिकायत करने चले गए। वहाँ से गुरुजी ने भोलानाथ और बैजू को पकड़ने के लिए चार लड़के भेजे। जैसे ही हम घर पहुँचे वैसे ही चारों लड़के घर पहुँचे और भोलानाथ को दबोच लिया और बैजू नौ-दो ग्यारह हो गया और गुरुजी ने भोलानाथ की खबर ली।

  1. 13. गुरुजी की फटकार से रोता हुआ बालक यकायक कैसे चुप हो गया?

उत्तर : गुरुजी ने मूसन तिवारी को चिढ़ाने की सजा दी। पिताजी को पता चला तो पाठशाला आए। गोद में उठाकर पुचकारन दुलारने लगे। भोलानाथ ने रोते-रोते पिताजी का कन्धा आँसुओं से तर कर दिया। पिताजी बालक को गुरुजी से चिरोरी कर घर ले जा रहे थे। रास्ते में साथियों का झुण्ड मिल गया। वे जोर-जोर से नाच-गा रहे थे-

माई पकाई गरर-गरर पूआ,

हम खाइब पूआ,

ना खेलब जुआ।

बालक भोलानाथ उन्हें देखकर रोना-धोना यकायक भूल गया और हठ करके बाबूजी की गोद से उतर गया और लड़कों की मण्डली में मिलकर वही तान-सुर अलापने लगा।

  1. बाबूजी और गाँव के लोगों ने ऐसा क्यों कहा कि-“लड़के और बन्दर सचमुच पराई पीर नहीं समझते।”

उत्तर : लड़कों की मण्डली खेत में दाने चुग रही चिड़ियों के झुण्ड को देखकर दौड़-दौड़ कर पकड़ने लगी। एक भी चिड़िया हाथ नहीं आई थी। भोलानाथ खेत से अलग होकर गा रहा था –

राम जी की चिरई, राम जी का खेत,

खा लो चिरई, भर-भर पेट।

बाबूजी और गाँव के लोग तमाशा देख हँस रहे थे कह रहे थे कि

चिड़िया की जान जाए,

लड़कों का खिलौना।

यह दृश्य देखकर उन्होंने कहा था-“लड़के और बन्दर सचमुच पराई पीर नहीं समझते।”

  1. बाल-स्वभावपर पाठ के आधार पर विचार प्रस्तुत कीजिए।

उत्तर : बाल-स्वभाव में कोई भी सुख-दुख स्थायी नहीं होता है। बच्चे अपने मन के अनुकूल स्थितियों को देख बड़े से बड़े दुख को भूल कर सामान्य हो जाते हैं। वे खेल प्रिय होते हैं। वे मात्र अनुकूल स्नेह को पहचानते हैं। भोलानाथ माता के उबटने पर सिसकता है, ऐसे ही गुरु के खबर लेने पर रोता है परंतु तुरन्त ही बालकों की टोली देख उसके सिसकने में एकदम ठहराव आ जाता है और सामान्य होकर खेलने में ऐसे मस्त हो जाता है कि लगता ही नहीं की थोड़ी देर पहले कुछ हुआ हो। अतः बाल-स्वभाव में अन्तर्मन निर्द्वन्द्व, निश्छल होता है।

माता का आँचल पाठ का सारांश | Mata ka Anchal Summary

          इस पाठ के सार में लेखक ने शैशव-काल के शैशवीय क्रिया-कलापों को रेखांकित किया है, Read More

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लेखक के पिता आटे की गोलियां बनाकर क्या करते थे?

Answer. Answer: मछलियों को खिलाते थे

भोलानाथ के पिता आटे की गोलियां बनाने का क्या उद्देश्य था?

प्रकृति से लगाव उत्पन्न होने के लिए प्रकृति का सान्निध्य आवश्यक है। भोलानाथ को अपने पिता के साथ प्रकृति के निकट आने का अवसर मिलता है। ऐसे में उसमें प्रकृति से लगाव की भावना उत्पन्न होगी। मछलियों को निकट से देखने एवं उन्हें आटे की गोलियाँ खिलाने से भोलानाथ में जीव-जन्तुओं के प्रति लगाव एवं दया भाव उत्पन्न होगा।

भोलानाथ के पिता कितने बार राम लिख कर आटे की गोलियां बनाते थे?

पिता जी हमें बड़े प्यार से 'भोलानाथ' कहकर पुकारा करते। पर असल में हमारा नाम था 'तारकेश्वरनाथ'। हम भी उनको 'बाबू जी' कहकर पुकारा करते और माता को 'मइयाँ'। पाँच सौ बार कागज़ के छोटे-छोटे टुकड़ों पर राम-नाम लिखकर आटे की गोलियों में लपेटते और उन गोलियों को लेकर गंगा जी की ओर चल पड़ते थे

भोलानाथ के पिता कितनी बार राम नाम लिखते थे?

Answer: 100 बार लिखते थे