भारत के परमाणु कार्यक्रम के जनक कौन हैं? - bhaarat ke paramaanu kaaryakram ke janak kaun hain?

'भारतीय परमाणु कार्यक्रम के जनक' के रूप में किसे जाना जाता है?

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SSC CPO Tier- I Previous Paper 23 (Held on: 16th March 2019 Shift 1) 

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  1. विक्रम साराभाई
  2. सीवी रमन
  3. होमी जहांगीर भाभा
  4. एपीजे अब्दुल कलाम

Answer (Detailed Solution Below)

Option 3 : होमी जहांगीर भाभा

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General Intelligence Practice Set (Matriculation Level)

25 Questions 50 Marks 17 Mins

  • होमी जहांगीर भाभा को 'भारतीय परमाणु कार्यक्रम के जनक' के रूप में जाना जाता है।
  • वह एक भारतीय परमाणु भौतिक विज्ञानी थे जिन्होंने भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र और टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ फंडामेंटल रिसर्च की स्थापना की।
  • मार्च 2019 में अजीत कुमार मोहंती को भाभा एटॉमिक रिसर्च सेंटर (BARC) के निदेशक के रूप में तीन साल की अवधि के लिए नियुक्त किया गया था।
  • वह एक प्रसिद्ध परमाणु भौतिक विज्ञानी हैं। उन्होंने बॉम्बे विश्वविद्यालय से पीएचडी की डिग्री प्राप्त की।
  • डॉ. होमी भाभा ने जनवरी 1954 में परमाणु ऊर्जा प्रतिष्ठान, ट्रॉम्बे (AEET) की स्थापना की।
  • 1966 में, परमाणु ऊर्जा प्रतिष्ठान, ट्रॉम्बे का नाम बदलकर भाभा परमाणु अनुसंधान केंद्र (BARC) कर दिया गया।
व्यक्ति के रूप में जाना जाता है/के लिए
विक्रम साराभाई भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक
सीवी रमन रमन प्रभाव
होमी जहांगीर भाभा भारतीय परमाणु कार्यक्रम के जनक
एपीजे अब्दुल कलाम मिसाइल मैन ऑफ इंडिया

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Last updated on Sep 22, 2022

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भारत के परमाणु कार्यक्रम के जनक कौन हैं? - bhaarat ke paramaanu kaaryakram ke janak kaun hain?

विश्व के विभिन्न देशों के कुल ऊर्जा उत्पादन में नाभिकीय ऊर्जा का अंश

भारतीय विद्युत उत्पादन एवं आपूर्ति के क्षेत्र में परमाणु ऊर्जा एक निश्चित एवं निर्णायक भूमिका है। किसी भी राष्ट्र के सम्पूर्ण विकास के लिए विद्युत की पर्याप्त तथा अबाधित आपूर्ति का होना आवश्यक है। विकासशील देश होने के कारण भारत की सम्पूर्ण विद्युत आवश्यकताओं का एक बड़ा भाग गैर पारम्परिक स्रोतों से पूरा किया जाता है क्योंकि पारम्परिक स्रोतों द्वारा बढ़ती हुई आवश्यकताओं को पूरा नहीं किया जा सकता। भारत ने नाभिकीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त की है। इसका श्रेय डॉ॰ होमी भाभा द्वारा प्रारम्भ किए गए महत्वपूर्ण प्रयासों को जाता है जिन्होंने भारतीय नाभिकीय कार्यक्रम की कल्पना करते हुए इसकी आधारशिला रखी। तब से ही परमाणु ऊर्जा विभाग परिवार के समर्पित वेज्ञानिकों तथा इंजीनियरों द्वारा बड़ी सतर्कता के साथ इसे आगे बढ़ाया गया है।

भारत में गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र, राजस्थान, तमिलनाडु और उत्तर प्रदेश में परमाणु बिजली केन्द्र है। ये केन्द्र सरकार के अधीन हैं। वर्तमान में (अप्रैल 2015 से जेनुअरी 2016 तक) कुल बिजली उत्पादन में नाभिकीय ऊर्जा का भाग 30869 मिलियन यूनिट है जो कि लगभग 3.3% है। [1]वर्तमान में कुल स्थापित क्षमता 4780 मेगावाट है, तथा 2022 तक 13480 मेगावाट बिजली के उत्पादन की संभावना है, यदि वर्तमान में सभी निर्माणाधीन और कुछ नए प्रोजेक्ट को समयबद्ध तरीके से पूरा कर लिया जाता है। 1983 में गठित परमाणु ऊर्जा विनियामक बोर्ड (एईआरबी) भारत में परमाणु ऊर्जा के लिए नियामक संस्था है। नाभिकीय विज्ञान अनुसंधान बोर्ड (बीआरएनएस) के द्वारा अनुसन्धान और विकास सम्बन्धी गतिविधियाँ की जाती हैं।[2]

भारत के परमाणु कार्यक्रम के जनक कौन हैं? - bhaarat ke paramaanu kaaryakram ke janak kaun hain?

कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र

भावी परिदृश्य[संपादित करें]

भारत के विद्युत उत्पादन का बड़ा भाग निम्नलिखित से प्राप्त होता है:

  • कोयला आधारित ताप बिजलीघरों से (2002 में 58,000 मेगावाट, कुल विद्युत उत्पादन का लगभग 67%)[कृपया उद्धरण जोड़ें]
  • जल विद्युत उत्पादन द्वारा
  • गैर-पारम्पारिक स्रोतों (नाभिकीय, वायु, ज्वारीय तरंगों आदि) से

भारत में प्रति व्यक्ति विद्युत की खपत लगभग 400 किलोवाट घंटा/वर्ष[कृपया उद्धरण जोड़ें] है जो कि विश्व की औसत खपत 2400 किलो वाट घंटा /वर्ष[कृपया उद्धरण जोड़ें] से काफी कम है। अत: आने वाले वर्षों में सकल राष्ट्रीय दर को बढ़ा कर उसे विश्व औसत के बराबर लाने के लिए हमें विद्युत के उत्पादन में बहुत वृद्धि करनी होगी।

भारत में कोयले के अनुमानित भण्डार 206 अरब टन हैं (यह विश्व के कुल कोयले भंडार का लगभग 6% है)[कृपया उद्धरण जोड़ें] तथा भारत में परम्परागत ऊर्जा स्रोतों का वितरण निम्नलिखित है[कृपया उद्धरण जोड़ें]:-

कोयला- 68%, भूरा कोयला-5.6 % पौट्रोलियम - 20%, प्राकृतिक गौसें- 5.6%

ऊर्जा की बढ़ती हुई माँग को देखते हुए यह पर्याप्त नहीं है और इसके अलावा भारतीय कोयले में सल्फर और राख की उच्च मात्रा होने के कारण इससे पर्यावरण समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।

जल विद्युत उत्पादन क्षमता सीमित है और यह अनिश्चित मानसून पर निर्भर करती है।

विद्युत उत्पादन के सन्दर्भ में किसी महत्वाकांक्षी लक्ष्य को प्राप्त करने में हमारे परम्परागत स्रोत अपर्याप्त हैं। समाप्त होते कोयले के भण्डार जल विद्युत की सीमित क्षमता के चलते नाभिकीय एवं अन्य गौर-परम्परागत स्रोतों के दोहन के द्वारा ही भविष्य में राष्ट्र की विद्युत आवश्यताएँ पूरी की जा सकती हैं। गौर परम्परागत स्रोतों में भारी क्षमता है और हमें इनका दोहन करना चाहिए।

अपनी प्रकृति के कारण जहाँ अन्य गौर परम्परागत स्रोत लघु विकेन्द्रित अनुप्रयोगों के लिए उपयुक्त हैं वहीं नाभिकीय बिजलीघर बृहत केन्द्रीय उत्पादन केन्द्रों के लिए उपयुक्त हैं।

नाभिकीय ऊर्जा हेतु नीति[संपादित करें]

भारत ने विद्युत उत्पादन के लिए नाभिकीय ऊर्जा के प्रयोग के सम्बन्ध में सावधानीपूर्वक कदम आगे बढाए हैं। इसके लिए परमाणु ऊर्जा अधिनियम बनाकर उसका क्रियान्वयन किया गया। इसके अन्तर्गत निर्धारित उद्देश्यों में प्राकृतिक रूप से उपलब्ध तथा उच्च सम्भावना वाले तत्वों यूरेनियम एवं थोरियम का उपयोग भारतीय नाभिकीय विद्युत रिएक्टरों में नाभिकीय ईंधन के रूप में करना है। भारत में इन दोनों तत्वों के अनुमानित प्राकृतिक भण्डार इस प्रकार हैं :-

प्राकृतिक यूरेनियम भण्डार - लगभग 70,000 टन

थोरियम भण्डार - लगभग 3,60,000 टन

भारतीय नाभिकीय विद्युत उत्पादन कार्यक्रम के अन्तर्गत एक तीन चरणीय कार्यक्रम (चरण 1, चरण 2, चरण 3) का समावेश है

भारत के परमाणु कार्यक्रम के जनक कौन हैं? - bhaarat ke paramaanu kaaryakram ke janak kaun hain?

दाबित भारी पानी रिएक्टर अभिकल्पन का विकास[संपादित करें]

भारत के नाभिकीय कार्यक्रम का प्रथम चरण पीएचडब्ल्यूआर प्रौद्योगिकी पर आधारित था जिसके निम्नलिखित लाभ हैं :-

  • सीमित यूरेनियम स्रोतों का सर्वोत्तम उपयोग
  • द्वितीय चरण ईंधन हेतु उच्चतर प्लूटोनियम का उत्पादन
  • स्वदेशी प्रौद्योगिकी की उपलब्धता
  • पीएचडब्ल्यूआर अभिकल्पन की सर्वाधिक महत्वपूर्ण विशेषताएँ निम्नलिखित हैं
  • बृहत् दाब वाहिका की बजाय बहुल दाब नलिका संगरुपण

पहले दो रिएक्टर कनाडा के सहयोग से राजस्थान में कोटा के निकट रावतभाटा में बनाये गये थे। बाद में मद्रास के निकट कलपक्कम में दो इकाइयाँ बनाई गयीं जिनकी डिजाइन समान थी परन्तु उनमें स्वदेशी प्रौद्योगिकी का प्रयोग किया गया। बाद में, नरोरा में स्थित रिएक्टरों द्वारा हमारे इंजीनियरों को प्रथम बार यह अवसर मिला कि वे अपने प्रचालन अनुभवों तथा अन्य आवश्यकताओं जैसे - कठोर संरक्षा मानकों एवं भूकम्परोधी डिजाइन का उपयोग करते हुए स्वदेशी डिजाइन तैयार करें। विकास की प्रक्रिया का अगला कदम 500 MWe पीएचडब्ल्यूआर का अभिकल्पन करना है और इस अभिकल्पन पर आधारित दो इकाइयाँ तारापुर (महाराष्ट्र) में स्थापित की जा रही हैं। विभिन्न घटकों एवं उपकरणों के निर्माण हेतु प्रौद्योगिकी अब अच्छी तरह स्थापित हो चुकी है और यह परमाणु ऊर्जा विभाग एवं उद्योगों के मध्य सक्रिय सहयोग द्वारा और विकसित हो रही है। पऊवि में स्वगृहीय प्रयासों के अतिरिक्त पीएचडब्ल्यूआर प्रौद्योगिकी के विकास में अनेक विश्वविद्यालयों एवं राष्ट्रीय संस्थानों ने भी भाग लिया है। प्राप्त अनुभवों तथा निष्णान्त प्रौद्योगिकी के उपयोग द्वारा हमारे संयन्त्रों के कार्य निष्पादन में सुधार हो रहा है।

तीव्र प्रजनक रिएक्टर[संपादित करें]

भारत का प्रथम 40 मेगावाटवाला तीव्र प्रजनक परीक्षण रिएक्टर (फास्ट ब्रीडर टेस्ट रिएक्टर, एफबीटीआर) 18 अक्टूबर 1985 को क्रान्तिक हुआ। अमेरिका, ब्रिटेन, फ़्रांस, जापान और तत्कालीन यूएसएसआर के अलावा भारत छठवाँ देश हुआ जिसके पास एफ बी टी आर के निर्माण तथा प्रचालन की प्रौद्योगिकी है।

भारतीय एफबीटीआर की अद्वितीय विशेषताएँ इस प्रकार हैं :-

  • प्लूटोनियम समृद्ध स्वदेश में विकसित U-Pu कार्बाइड ईंधन है।
  • भारतीय वैज्ञानिकों द्वारा उद्योग क्षेत्र से घनिष्ठ संबंध रखते हुए सभी मशीनरी, बाह्य इकाइयों और सामग्री का अभिकल्पन, विकास तथा निर्माण कार्य।

स्थिति : परिचालन की प्रारंभिक समस्याओं को दूर कर लिया गया है और रिएक्टर को 10.5 मेगावाट के स्थिर ऊर्जा स्तर पर आसानी से प्रचालित किया जा रहा है जो कि इसकी छोटी कोर को देखते हुए अधिकतम संभव विद्युत उत्पादन है।

भावी योजनाएँ : एफबीटीआर के अभिकल्पन, स्थापना और प्रचालन द्वारा भरपूर अनुभव और द्रव धातु शीतलित तीव्र प्रजनक रिएक्टर की प्रौद्योगिकी के संबंध में असीम जानकारी प्राप्त हुई है तथा इससे कल्पाक्कम में निर्मित किए जानेवाले एक 500 मेगावॉट के प्रोटोटाइप तीव्र प्रजनक रिएक्टर का अभिकल्पन कार्य प्रारम्भ करने के लिए आत्मविश्वास भी मिला।

पीएफबीआर के अभिकल्पन हेतु आवश्यक है :-

  • बाष्प-द्रवचालन कार्यविधि का विस्तृत और पूरा ज्ञान।
  • विसर्पण, विसर्पण-श्रान्ति की पारस्परिक क्रिया तथा बकलिंग और अभिकल्पन इष्टतमीकरण हेतु द्रव-संरचना की अन्तर्क्रिरया और संरचनात्मक सुस्वस्थता का मूल्यांकन।
  • बाष्प-द्रवचालन और संरचनात्मक यांत्रिकी के क्षेत्रों में बड़ी संख्या में कोडों का निर्माण।
  • कोडों को प्रयोगात्मक आँकडों या अन्तरराष्ट्रीय बेंचमार्क परीक्षणों द्वारा वौधीकृत किया गया।
आर एण्ड डी इंजीनियरी
  • अनुरूपी प्रयोगों और उपकरणों के विकास के माध्यम से तीव्र प्रजनक रिएक्टर कार्यक्रम हेतु।
  • विश्लेषणात्मक कोडों और निष्पादन मूल्यांकन कोडों के वौधीकरण हेतु प्रयोगात्मक आँकड़े।
  • वायु, जल तथा सोडियम के पर्यावरण में इन प्रयोगों को करने की सुविधा।
  • कार्य विधियों हेतु विशेषज्ञता, आदर्श प्रवाह, कंपन आदि के फ्लो पौटर्न के मापन हेतु विशेष यंत्रीकरण।
  • उच्च तापीय सोडियम सुविधाओं की स्थापना और उनके सुरक्षित प्रचालन की क्षमता।
  • 8330 K तक के तापमान पर सोडियम में रिएक्टर उपकरणों के परीक्षण हेतु बड़े पुर्जों वाली जाँच की रिग सुविधा।

भारी जल[संपादित करें]

पीएचडब्ल्यूआर में मन्दक और प्राथमिक शीतलक के रूप में काम करने के लिए उच्च शुद्धता वाले भारी जल का प्रयोग किया जाता है।

  • भारत में प्रथम भारी जल संयन्त्र वर्ष 1962 में नांगल में स्थापित किया गया था।
  • अन्य भारी जल संयन्त्र बड़ौदा, तूतीकोरिन, कोटा, थल, हजीरा और मणुगूरु में हैं।
  • कोटा और मणुगूरु स्थित संयन्त्रों में उपयोग में लाई गई हाइड्रोजन सल्फाइड - जल प्रक्रिया स्वदेशी अनुसन्धान एवं विकास द्वारा विकसित विशेषज्ञता पर आधारित है।
  • भारी जल के उन्नयन हेतु प्रौद्योगिकी का विकास भाभा परमाणु अनुसन्धान केन्द्र में किया गया था।
  • भारी जल के उत्पादन के लिए वर्तमान में किया जा रहा अनुसन्धान कार्य वैकल्पिक तथा अधिक किफायती प्रौद्योगिकियों के विकास की ओर केन्द्रित है, यथा-हाइड्रोजन-जल विनिमय प्रक्रिया

नाभिकीय ईंधन एवं संरचनात्मक घटक[संपादित करें]

देश के सम्पूर्ण परमाणु विद्युत कार्यक्रम हेतु नाभिकीय ईंधन के संयोजन और महत्वपूर्ण संरचनात्मक घटकों के निर्माण हेतु नाभिकीय ईंधन सम्मिश्र (एन एफ सी) की स्थापना हैदराबाद में 70 के दशक के प्रारम्भ में की गई थी।

एन एफ सी के क्रियाकलापों का विवरण निम्नलिखित है :-

  • बिहार और केरल से प्राप्त यूरेनियम अयस्क सांद्रित्र तथा धातु जिर्कोन रेत का स्वदेश में विकसित शृंखलाबद्ध रासायनिक और धात्विक प्रक्रियाओं द्वारा संसाधन।
  • ऊष्ण बहिर्वेधन एवं शीतल पिलगरिंग प्रक्रिया द्वारा स्टैनलेस स्टील, कार्बन स्टील, टिटैनियम तथा निकेल, मौग्नीशियम की अन्य मिश्र धातुओं की सीवनहीन ट्र्यूबों का निर्माण।
  • 180 मिली मीटर व्यास वाली उष्ण बहिर्वेधन ट्यूबों और 4.5 मिलीमीटर पतली दीवार वाली शीतल पिलगर्ड ट्यूबों का नियमित रूप से निर्माण कार्य।
  • एन.एफ.सी. द्वारा अपनी अर्जित विशेषज्ञता का लाभ भारतीय नौसेना, हिंदुस्तान एरोनाटिक्स लिमिटेड तथा अन्य रक्षा संगठनों तथा रसायनिक, खाद और यांत्रिक बॉल बियरिंग का निर्माण करनेवाले उद्योगों तथा अन्य अनेक रासायनिक उपकरण विनिर्माताओं को प्रदान किया जाता है।
  • एन.एफ.सी. के अन्य उत्पादनों में टैन्टलम, नियोबियम, रजत और ग्राहकों के विनिर्देशों के अनुसार विभिन्न उच्च शुद्धता वाली सामग्री शामिल हैं।
  • भारतीय बाजार में अपने उत्पादकों की आपूर्ति करने के अलावा एन.एफ.सी. ने हाल ही में अपने कुछ उत्पादों उदाहरणार्थ : जर्कोनियम छडों और एनहाइड्रस मौग्नीशियम क्लोराइड का निर्यात भी किया है।

नाभिकीय ईंधन चक्र का पश्च्यन्त (backend)[संपादित करें]

नाभिकीय विद्युत उत्पादन कार्यक्रम - नाभिकीय ईंधन चक्र का अग्रान्त (front end)

यूरेनियम का खनन, पृथक्करण, रसायनिक शुद्धीकरण, उपयुक्त रूप में परिवर्तन और ईंधन छड़ का निर्माण

नाभिकीय विद्युत उत्पादन कार्यक्रम - नाभिकीय ईंधन चक्र का पश्च्यन्त

भुक्तशेष ईंधन का पुनर्संसाधन, विखण्ड्य उर्वर घटकों का पृथक्करण, उचित उपचार क्रिया के बाद विकिरण सक्रिय अपशिष्ट का निरापद निपटान।

नाभिकीय ईंधन चक्र का पश्च्यन्त उसकी संवेदनशीतला और सुरक्षा दोनों ही दृष्टियों से एक महत्वपूर्ण क्रिया है। पूर्ण रूप से स्वदेश में किए गए अनुसन्धान एवं विकास प्रयासों द्वारा ही ईंधन पुनर्संसाधन प्रौद्योगिकी का विकास और मानकीकरण किया गया था। भुक्तशेष ईंधन से प्लूटोनियम निकालने के लिए तीन पुनर्संसाधन संयन्त्रों का क्रमश: ट्राम्बे, तारापुर और कल्पाक्कम में शीत कमीशनन किया गया था।

कल्पाक्कम संयन्त्र में अनेक नवीन प्रक्रियाएँ समाविष्ट की गई हैं जैसे :

  • सर्वो-परिचालकों के प्रयोग द्वारा उष्म कोशिकाओं में हाइब्रिड अनुरक्षण की अवधारणा।
  • संयंत्र की आयु बढ़ाने के लिए प्रावधान किए गए। यह संयन्त्र एम.ए.पी.एस. तथा एफ.बी.टी.आर. से प्राप्त ईंधन के पुनर्संसाधन सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति करेगा। प्रक्रिया कार्य के इस हिस्से में ईंधन चक्र में उत्पादित अत्यन्त रेडियो एक्टिव अपशिष्ट की सुदक्ष हैण्डलिंग, सुरक्षित प्रबन्धन तथा उपयुक्त निपटान कार्य को उच्च प्राथमिकता दी जाती है।
  • अपशिष्ट को सुरक्षित हैण्डलिंग एवं निपटान के लिए स्वदेशी अनुसन्धान एवं विकास कार्य द्वारा विकसित प्रौद्योगिकी कड़े नियामक मानकों पर आधारित है।
  • सभी नाभिकीय बिजली संयन्त्र स्थलों पर स्थापित अपशिष्ट संसाधन संयन्त्र प्रचालनरत हैं।

अपशिष्ट प्रबन्धन हेतु निम्नलिखित अनुसार दीर्घ-कालिक कार्य योजना प्रतिपादित की गई है :-

  • ग्लास मौट्रिक्स में काचन द्वारा अचलीकृत किए गए उच्च स्तरीय अपशिष्ट को संक्षारणरोधी कनिस्तरों में उनके डबल एनकैपसुलेशन के बाद उसे इंजीनियरीकृत भण्डारण सुविधा में पृथक रूप से भण्डारित किया जाता है जिसमें 20-30 वर्षों तक लगातार शीतलन की सुविधा उपलब्ध रहती है। इसके बाद अन्तिम निपटान अतिरिक्त संरक्षण अवरोधकों के साथ भूमि के अन्दर गहराई में किया जाता है।
  • मध्यम स्तर के अपशिष्टों को उचित उपयुक्त मौट्रिक्स में ठोस रूप में परिवर्तित करने के बाद रिसावरहित पात्रों में भण्डारित किया जाता है और उन्हें पर्याप्त सुरक्षाकवर वाले जलरोधी कंक्रीट टाइल से बने विवरों में दफन किया जाता है।

अनुसन्धान एवं विकास[संपादित करें]

नाभिकीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में भारत की उपलब्धियों को अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता एवं स्वीकृति प्राप्त है। भारत द्वारा सफलतापूर्वक अपनाये गये उत्कृष्ट अवसंरचनात्मक एवं वर्षों के समर्पित अनुसन्धान एवं विकास कार्यों से नाभिकीय विद्युत उत्पादन एवं सहायक क्षेत्रों में महत्वपूर्ण प्रगति के साथ-साथ वैज्ञानिक एवं प्रौद्योगिकीय क्षेत्रों में स्वावलम्बन भी हासिल किया गया है। परमाणु ऊर्जा विभाग द्वारा नाभिकीय ऊर्जा एवं रिएक्टर प्रौद्योगिकियों, आइसोटोप अनुप्रयोगों एवं विकिरण प्रौद्योगिकियों, त्वरक एवं लेसर प्रौद्योगिकी कार्यक्रम, विकिरण सम्बन्धी स्वास्थ्य एवं सुरक्षा के क्षेत्रों में सर्वांगीण एवं व्यापक अनुसंधान तथा विकास सम्बन्धी अध्ययन कार्य अपने चार अनुसन्धान एवं विकास केन्द्रों यथा भापअ केंद्र, आईजीसीएआर, वीईसीसी एवं कैट, इन्दौर में संचालित किये जाते हैं। विज्ञान एवं इंजीनियरी के अनेक महत्वपूर्ण विषयों में मूलभूत एवं अनुप्रयोगात्मक अनुसंधान कार्यों पर बल देने के कारण इन संस्थानों में प्रौद्योगिकी एवं मूलभूत अनुसन्धान कार्यों के विकास में महत्वपूर्ण वृद्धि हुई है जिससे न केवल परमाणु ऊर्जा बल्कि अन्य अनेक क्षेत्रों में लाभ मिला है।

विद्युत उत्पादन के अतिरिक्त अन्य क्षेत्रों में प्राप्त कुछ महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ निम्नलिखित रही हैं :

  • विकिरण प्रेरित उत्परिवर्तन के माध्यम से 22 विविध उच्च उत्पादन किस्म के बीजों का विकास। (दालें 10, मूंगफली 8, राई 2, चावल 1और पटसन 1)
  • रेडियोआइसोटोपों के चिकित्सीय अनुप्रयोगों के अंतर्गत प्रतिवर्ष लगभग छ: लाख रोगियों का नौदानिक परीक्षण किया जाता है एवं 15-20 लाख रोगी प्रतिवर्ष समर्पित एवं संबद्ध केन्द्रों के माध्यम से विकिरण उपचार ले रहे हैं।
  • रेडियोआइसोटोपों के औद्योगिक अनुप्रयोगों में ~1000 औद्योगिक रेडियोग्राफी कैमरे नेमी प्रयोग में लाये जा रहे हैं। जल विज्ञान एवं अनुरेखी अनुप्रयोगों द्वारा भूगर्भीय रिसावों के संसूचन, बन्दरगाहों में गाद संचलन के अध्ययन और भूजल स्रोतों तथा उनके बहाव मार्गों के मानचित्रण आदि कार्यों में महत्वपूर्ण प्रगति की गई है। अनेक नये अनुप्रयोग भी जुड़ रहे हैं।

अनुसन्धान रिएक्टरों का प्रयोग -

अनुसन्धान रिएक्टर अनेक विषयों में मूलभूत एवं अनुप्रयुक्त अनुसंधान हेतु आदर्श आधार उपलब्ध कराते हैं।

  • नाभिकीय ईंधन के परीक्षणात्मक किरणन, रिएक्टरों के लिए निर्माण में लगनेवाली सामग्री तथा घटकों के विकास कार्य एवं विद्युत केन्द्रो को प्रचालित करने हेतु आवश्यक कार्मिकों के प्रशिक्षण के लिए किया जाता है।
  • विखंडन भौतिकी, ठोस अवस्था भौतिकी एवं विकिरण रसायनिकी में विस्तृत अनुसंधान के लिए किया जाता है।

ध्रुव : भापअ केन्द्र स्थित ध्रुवा रिएक्टर का अभिकल्पन, निर्माण एवं कमीशनन भारतीय इंजीनियरों एवं वौज्ञानिकों द्वारा किया गया। इसमें ईंधन के रूप में प्राकृतिक यूरेनियम मन्दक एवं शीतलक के रूप में भारी पानी का प्रयोग किया जाता है। इस रिएक्टर के द्वारा भारत को रेडियोआइसोटोपों के उत्पादन में आत्मनिर्भरता प्राप्त हुई है।

कामिनी : यह कल्पाक्कम स्थित इंदिरा गांधी परमाणु अनुसन्धान केन्द्र में 30 kWt क्षमतावाला रिएक्टर है। यह रिएक्टर अक्टूबर 1996 में क्रान्तिक हुआ जो न्यूट्रान रेडियोग्राफी सुविधाएँ उपलब्ध कराता है। हमारे विस्तृत थोरियम भंडार के उपयोग की दिशा में यह एक छोटी परन्तु महत्वपूर्ण उपलब्धि है। यह विश्व का एक मात्र रिएक्टर है जिसमें यूरेनियम - 233 ईंधन का प्रयोग होता है। परमाणु ऊर्जा विभाग द्वारा निर्मित कुछ बड़ी सुविधाएँ अब पऊवि सुविधाओं हेतु अन्तर विश्वविद्यालय संघ के माध्यम से विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के उपयोग के लिए उपलब्ध हैं।

अपने अनुसन्धान केन्द्रों में अनुसन्धान कार्य के अतिरिक्त परमाणु ऊर्जा विभाग द्वारा निम्नलिखित सात सहायता प्राप्त संस्थाओं को पूर्ण सहायता दी जाती है

  • टाटा मूलभूत अनुसंधान संस्थान, मुंबई
  • टाटा स्मारक केन्द्र, मुंबई
  • भौतिकी संस्थान, भुवनेश्वर
  • साहा नाभिकीय भौतिकी संस्थान, कोलकाता
  • मेहता गणित एवं गणितीय भौतिकी अनुसंधान संस्थान, इलाहाबाद
  • गणित विज्ञान संस्थान, चेन्नई
  • प्लाज्मा अनुसंधान संस्थान, गांधीनगर

अन्तत:[संपादित करें]

परमाणु ऊर्जा के शान्तिमय उपयोग के कार्यों में, नाभिकीय ऊर्जा पर आधारित विद्युत उत्पादन का सर्वप्रथम स्थान है एवं भारत ने इस क्षेत्र में कई उपलब्धियां प्राप्त की है। देश की भविष्य की आवश्यकताओं हेतु अधिक विद्युत उत्पादन क्षमता एवं उपलब्ध स्रोतों को ध्यान में रखते हुए विद्युत उत्पादन में वृद्धि के लिए परमाणु ऊर्जा के दोहन हेतु एक सुनियोजित कार्यक्रम का क्रियान्वयन किया जा रहा है। अनुसन्धान एवं विकास कार्यों का एक सुदृढ़ ढाँचा तौयार किया गया है जो अनुसंधान एवं विकास गतिविधियों के सुचारू नियोजन तथा उसके द्वारा परमाणु ऊर्जा विभाग को दिए गए दायित्व को पूरा करने में एक आधार भूमिका का निर्वाह कर रहा है। विकासात्मक आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु अनेक सामरिक रूप से महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों में निपुणता प्राप्त की गई है। ईंधन पुनर्संसाधन, समृद्धिकरण, विशेष पदार्थों का उत्पादन, कम्प्यूटर, लेसर, त्वरक, आदि के क्षेत्रों में स्वदेशी प्रौद्योगिकी का विकास हमारे भविष्य की ऊर्जा माँगों की पूर्ति हेतु हमारे ऊर्जा स्रोतों के दोहन से संबंधित संचालित हमारी संपूर्ण गतिविधियों का चित्रण करती हैं। विकिरण प्रौद्योगिकी एवं आइसोटोप अनुप्रयोग ऐसे अन्य प्रमुख क्षेत्र हैं जहाँ परमाणु ऊर्जा का स्वास्थ्य संरक्षण, कृषि, उद्योग, जलविज्ञान एवं खाद्य परिरक्षण के लिए शान्तिमय उपयोग किया जाता है तथा जहाँ हमें आत्मनिर्भरता प्राप्त हुई है।

वर्तमान स्थिति[संपादित करें]

देश में वित्तीय वर्ष 2009-10 के दौरान परमाणु ऊर्जा से 10667 मिलियन यूनिट बिजली उत्पन्न की गयी। इससे पहले वित्तीय वर्ष 2006-07, 2007-08, 2008-09 के दौरान क्रमश: 18801 मिलियन इकाई, 16956 मिलियन इकाई तथा 14927 मिलियन इकाई बिजली उत्पन्न हुई थी। वित्तीय वर्ष 2008-09 में कुल क्षमता का 50 फीसदी उत्पादन हुआ था जबकि वित्तीय वर्ष 2009-10 में यह 60 फीसदी था।[1]

11वीं पंचवर्षीय योजना में नाभिकीय ऊर्जा के उत्‍पादन का लक्ष्‍य 163,935 मिलियन यूनिट (एमयूज) था जबकि वास्‍तविक उत्‍पादन 109,642 मिलियन यूनिट हुआ।[3]

कुडनकुलम नाभिकीय विद्युत परियोजना यूनिट-1 की स्‍थापित क्षमता 1000 मेगावाट है और इस यूनिट को अक्‍टूबर 2013 को ग्रिड के साथ जोड़े जाने के बाद से लेकर 13 जुलाई 2014 तक इसमें अनिश्चित तौर पर विद्युत का वास्‍तविक रूप से उत्‍पादन लगभग 2565 यूनिट रहा है। परियोजना की द्वितीय इकाई (1000 मेगावाट) कमीशनाधीन है।[3]

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • परमाणु ऊर्जा विभाग (भारत)
  • न्यूक्लियर पावर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (NPCIL)
  • भाभा परमाणु अनुसंधान केन्द्र
  • भारतीय नाभिकीय विद्युत निगम लिमिटेड (भाविनि)
  • नाभिकीय विखण्डन
  • परमाणु ऊर्जा
  • तीन चरणों वाला भारत का नाभिकीय कार्यक्रम
  • भारत में पवन ऊर्जा

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • भारत का परमाणु कार्यक्रम
  • नाभिकीय ऊर्जा का भविष्य एवं भारत
  • परमाणु ऊर्जा को गति देने के लिए 10 स्वदेशी रिएक्टरों के निर्माण को मंजूरी (मई २०१७)
  • 700-700 मेगावाट के परमाणु ऊर्जा के 10 रिएक्टर लगेंगे (मई २०१७)
  • भारत का परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम (डॉ. एम.आर.श्रीनिवासन ; अगस्त २०१७)

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. ↑ अ आ "परमाणु ऊर्जा से बिजली का उत्पादन". पत्र सूचना कार्यालय, भारत सरकार. 2 दिसम्बर 2009. मूल से 28 जुलाई 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 24 जुलाई 2014.
  2. "वर्ष 2013 में परमाणु ऊर्जा विभाग की उपलब्धियां". पत्र सूचना कार्यालय, भारत सरकार. 2 जनवरी 2014. मूल से 28 जुलाई 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 24 जुलाई 2014.
  3. ↑ अ आ "परमाणु ऊर्जा उत्‍पादन". पत्र सूचना कार्यालय, भारत सरकार. 23 जुलाई 2014. मूल से 28 जुलाई 2014 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 24 जुलाई 2014.

भारत में परमाणु कार्यक्रम के जनक कौन थे?

ये भारत के परमाणु कार्यक्रम के जनक डॉ होमी जहांगीर भाभा (Homi Jehangir Bhabha) जिन्होंने एक बार कहा था कि वे डेढ़ साल में परमाणु बम बना सकते हैं. देश 30 अक्टूबर को उनके जन्मदिन पर उन्हें याद कर रहा है. होमी जहांगीर भाभा का जन्म 30 अक्टूबर 1909 को समृद्ध पारसी परिवार में हुआ था.

परमाणु ऊर्जा आयोग के प्रथम अध्यक्ष कौन है?

डा. भाभा एक कुशल वैज्ञानिक और प्रतिबद्ध इंजीनियर होने के साथ-साथ एक समर्पित वास्तुशिल्पी, सतर्क नियोजक, एवं निपुण कार्यकारी थे। वे ललित कला व संगीत के उत्कृष्ट प्रेमी तथा लोकोपकारी थे। 1947 में भारत सरकार द्वारा गठित परमाणु ऊर्जा आयोग के प्रथम अध्यक्ष नियुक्त हुए।

भारत का पहला परमाणु शक्ति संयंत्र कौन है?

सही उत्तर है तारापुर ऊर्जा संयंत्र। तारापुर परमाणु ऊर्जा संयंत्र-1 (टीएपीएस -1) भारत का पहला परमाणु ऊर्जा संयंत्र था। यह संयंत्र बोइसर, महाराष्ट्र में स्थित है। वर्तमान में, भारत के पास 7 परमाणु ऊर्जा संयंत्रों में 22 परिचालन रिएक्टर हैं जिनकी स्थापित क्षमता 6780 MWe है।

परमाणु ऊर्जा के जनक कौन है?

होमी जहांगीर भाभा को 'भारतीय परमाणु कार्यक्रम के जनक' के रूप में जाना जाता है।