भारत माता का मंदिर यह कविता - bhaarat maata ka mandir yah kavita

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भारत माता का मन्दिर यह, हट * 2], , समता का संवाद जहाँ। 1 (४४ १४ हे, सबका शिव कल्याण यहाँ, 4 है * र्मा, पावें सभी प्रसाद यहाँ। हक 23, जाति-धर्म या सम्प्रदाय का, नहीं भेद-व्यवधान यहाँ। .., , सबका स्वागत, सबका आदर, 11, सबका सम सम्मान यहाँ। हर व 5 2, सन्दर्भ : प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक के काव्य-खण्ड के ' भारत ., नाता का मन्दिर यह' शीर्षक कबिता से अवतरित है। इसके रचयिता ., राष्ट्रकवि श्री मैथिलीशरण गुप्त जी हैं। 2 ! ;, संग: प्रस्तुत पंक्तियों में कवि गुप्त जी भारत माता के मन्दिर की..., विशेषताओं का चित्रण करते हैं। 20 “21 लि कक, गाया: प्रस्तुत पद्मांश में कवि गुप्त जी कहते हैं कि भारत-माता का, , यह मन्दिर ऐसा पवित्र और भव्य स्थान है; जहाँ मानव ही नहीं बल्कि प्राणी ._, , मात्र के लिए समानता के आचरण की चर्चा होती है। यहाँ आने पर, इस., मन्दिर के दर्शन मात्र से ही सबका परम कल्याण होता है। इस मन्दिर में प्रवेश, करते ही भारत माता से मोक्ष आनन्द और अपने कल्याण का आशीर्वाद प्राप्त, करते हैं। सबको भारत माता का प्रसाद या कृपा प्राप्त होती है।, भारत-माता के इस मन्दिर में किसी भी प्रकार का भेद, यहाँ जाति, धर्म, सम्प्रदाय आदि के भेद भावों की कोई बाधा, रोकती। यहाँ सम्पूर्ण मानव-जाति र, संभी इस सम्, , >, , "ही 6 रा,, , , , , , , , , मन्दिर में समान रूप से


[ शिव = मंगलकारी। संप्रदाय = धार्मिक मत या सिद्धान्त। स्वागत = किसी के आगमन पर कुशल-प्रश्न आदि के द्वारा हर्ष प्रकार, अगवानी। भव = संसार।]

सन्दर्भ-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘हिन्दी’ के ‘काव्य-खण्ड’ में संकलित एवं मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित ‘भारत माता का मंदिर यह’ शीर्षक से उधृत है।

प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने समस्त भारतभूमि को भारत माता का मंदिर (पवित्र स्थल) बताते हुए उसकी विशेषताओं का वर्णन किया है।

व्याख्या-इन पंक्तियों में कवि अपने देश (भारतभूमि) को भारत माता का मंदिर बताते हुए कहता है कि भारत माता का यह ऐसा मंदिर है जिसमें समानता की ही चर्चा होती है। यहाँ पर सभी के कल्याण की वास्तविक कामना की जाती है और यहीं पर सभी को  परम सुख रूपी प्रसाद की प्राप्ति होती है।

इस मंदिर की यह विशेषता है कि यहाँ पर जाति-धर्म या संप्रदाय वाद का कोई भेदभाव नहीं है यानि इस मंदिर में ऐसा कोई व्यवधान या समस्या नहीं है कि कौन किस वर्ग का है। सभी समान हैं। सभी का स्वागत है और सभी को बराबर सम्मान है। कोई किसी भी सम्प्रदाय को मानने वाला हो; चाहे वह हिन्दुओं के इष्टदेव राम हों, मुस्लिमों के इष्ट रहीम हों, चाहे बौद्धों के इष्ट बुद्ध हों या चाहे ईसाइयों के इष्ट ईसामसीह हों यानि इस मंदिर में सभी को बराबर सम्मान है, सभी के स्वरूप का बराबर-बराबर चिन्तन किया जाता है। सभी की ही बराबर पूजा की जाती है। ।

अलग-अलग संस्कृतियों के जो गुण हैं, जिनके द्वारा सम्पूर्ण संसार के मर्म को अलग-अलग रूपों में संचित किया गया है वे सभी इस भारत माता के मंदिर में एकत्र हैं अर्थात् भारत माता के इस पावन मंदिर में सम्पूर्ण संस्कृतियों का समावेश है।

कहने का तात्पर्य यह है कि चाहे कोई भी देश हो सभी के अपने-अपने अलग-अलग धर्म, अलगअलग सम्प्रदाय, अलग-अलग सिद्धान्त तथा अलग-अलग पवित्र स्थल होते हैं किन्तु हमारा भारत देश एक ऐसी पवित्र तीर्थ स्थल है जहाँ निवास करने वाला  प्रत्येक प्राणी सभी धर्मों को मानने वाला तथा सबको सम. भाव से समझने वाला है। हमारा देश अनेकता में एकता का देश है। ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ इसकी भावना है। |


भारत माता का मंदिर यह कविता - bhaarat maata ka mandir yah kavita


भारत माता का मंदिर यह

समता का संवाद जहाँ,

सबका शिव कल्याण यहाँ है

पावें सभी प्रसाद यहाँ ।


जाति-धर्म या संप्रदाय का,

नहीं भेद-व्यवधान यहाँ,

सबका स्वागत, सबका आदर

सबका सम सम्मान यहाँ ।


राम, रहीम, बुद्ध, ईसा का, 

सुलभ एक सा ध्यान यहाँ,

भिन्न-भिन्न भव संस्कृतियों के 

गुण गौरव का ज्ञान यहाँ ।


नहीं चाहिए बुद्धि बैर की

भला प्रेम का उन्माद यहाँ

सबका शिव कल्याण यहाँ है,

पावें सभी प्रसाद यहाँ ।


सब तीर्थों का एक तीर्थ यह

ह्रदय पवित्र बना लें हम

आओ यहाँ अजातशत्रु बन,

सबको मित्र बना लें हम ।


रेखाएँ प्रस्तुत हैं, अपने

मन के चित्र बना लें हम ।

सौ-सौ आदर्शों को लेकर

एक चरित्र बना लें हम ।


बैठो माता के आँगन में

नाता भाई-बहन का 

समझे उसकी प्रसव वेदना

वही लाल है माई का

एक साथ मिल बाँट लो

अपना हर्ष विषाद यहाँ

सबका शिव कल्याण यहाँ है

पावें सभी प्रसाद यहाँ ।



मिला सेव्य का हमें पुज़ारी

सकल काम उस न्यायी का

मुक्ति लाभ कर्तव्य यहाँ है

एक एक अनुयायी का

कोटि-कोटि कंठों से मिलकर

उठे एक जयनाद यहाँ

सबका शिव कल्याण यहाँ है

पावें सभी प्रसाद यहाँ ।



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कवि ने भारत देश को मंदिर क्यों कहा है?

व्याख्या-इन पंक्तियों में कवि अपने देश (भारतभूमि) को भारत माता का मंदिर बताते हुए कहता है कि भारत माता का यह ऐसा मंदिर है जिसमें समानता की ही चर्चा होती है। यहाँ पर सभी के कल्याण की वास्तविक कामना की जाती है और यहीं पर सभी को (UPBoardSolutions.com) परम सुख रूपी प्रसाद की प्राप्ति होती है।

1 भारत माता का मंदिर कविता में रचनाकार ने भारतीयों से क्या अपेक्षा की है?

क्योंकि यह भारत माता का मंदिर है इसलिए यहीं पर हम सबका मंगल कल्याण है और यहीं पर सभी को परम सुख रूपी प्रसाद भी प्राप्त है। कहने का तात्पर्य यह है कि हम सब भारतवासी एक माँ (भारत माता) की सन्तानें हैं और आपस में सभी भाई-बहन के समान हैं। हमें आपस में मिल-जुलकर रहना चाहिए। और एक-दूसरे की मदद करनी चाहिए।

हम कौन थे कविता की व्याख्या?

देशभक्त वीरों की उपेक्षा की जाने लगी। बिना संघर्ष कुछ पाने की लालसा ने हमें इतना निकम्मा बना दिया कि हम संस्कृति और देशहित की परवाह न कर देश का विभाजन स्वीकार कर बैठे। समझौता हमारे चरित्र का अंग बन गया। सहनशीलता, उदारता, भाईचारा, हृदयपरिवर्तन आदि ने वर्तमान को उस चौराहे पर पहुँचा दिया है, जहाँ मौत घात लगाए बैठी है।

भारतमाता कविता के संदेश को स्पष्ट करते हुए लिखिए कि कवि ने प्रवासिनी किसे और क्यों कहा?

प्रगति और विकास के मार्ग से दूर भारत माता अपने हो पर में उदासीन तथा अत्यन्त दुःखी हैं। अपने घर में रहने का कुछ भी सुख उन्हें नहीं मिल रहा है। वे पाये घर की निवासिनी की तरह विवश जीवन जीने को बाध्य हैं। यही कारण है कि कवि ने उनके लिए 'प्रवासिनो' शब्द का प्रयोग किया है।