Suryakant Tripathi Nirala (सूर्यकांत त्रिपाठी निराला) हिंदी साहित्य के उन प्रमुख चार स्तंभों में से एक हैं जिन्होंंने अपनी शानदार कविताओं से दिल जीता है। निराला जी हिंदी साहित्य के एक बहुत ही महत्वपूर्ण कवि, लेखक , उपन्यासकार, कहानीकार ,निबंधकार और संपादक थे। वह प्रगतिवाद प्रयोगवाद, काव्य का जनक , और अपने नाम के अनुरूप हर क्षेत्र में निराले भी थे। उनके अंदर एक सबसे अहम गुण ‘यथा नाम तथा गुण’ के बारे में प्रमाण मिलता था। Show
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जीवन परिचय
सूर्यकांत त्रिपाठी (Suryakant Tripathi Nirala) निराला का जन्म वसंत पंचमी रविवार 21 फरवरी 1896 के दिन हुआ था, अपना जन्मदिन वसंत पंचमी को ही मानते थे। उनकी एक कहानी संग्रह ‘ लिली’ 21 फरवरी 1899 जन्म तिथि पर ही प्रकाशित हुई थी। रविवार को इनका जन्म हुआ था इसलिए वह सूर्ज कुमार के नाम से जाने जाते थे। उनके पिताजी का नाम पंडित राम सहाय था वह सिपाही की नौकरी करते थे। उनकी माता का नाम रुक्मणी था जब निराला जी 3 साल के थे तब उनकी माता की मृत्यु हो गई थी उसके बाद उनके पिता ने उनकी देखभाल की। शिक्षाउनकी प्रारंभिक शिक्षा महिषादल हाई स्कूल से हुई थी परंतु उन्हें वह पद्धति में रुचि नहीं लगी। फिर इनकी शिक्षा बंगाली माध्यम से शुरू हुई। हाई स्कूल की पढ़ाई पास करने के बाद उन्होंने घर पर रहकर ही संस्कृत ,अंग्रेजी साहित्य का अध्ययन किया था।जिसके बाद वह लखनऊ और फिर उसके बाद गढकोला उन्नाव आ गए थे। शुरुआत के समय से ही उन्हें रामचरितमानस बहुत अच्छा लगता था। उन्हें बहुत सारी भाषाओं का निपुण ज्ञान था: हिंदी ,बांग्ला ,अंग्रेजी, संस्कृत। श्री रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद, रविंद्र नाथ टैगोर से वह अधिक रूप से प्रभावित थे। उन्हें पढ़ाई से ज्यादा मन खेलने ,घूमने, तेरने और कुश्ती लड़ने में लगता था। विवाहजब निराला जी की 15 वर्ष की आयु थी तभी उनका विवाह मनोहरा देवी से हो गया था। मनोरमा देवी रायबरेली जिले के डायमंड के प. राम दयाल की पुत्री थी ,वह बहुत ही शिक्षित थी और उन्होंने संगीत का अभ्यास भी किया था। फिर उन्होंने हिंदी सीखी ,इसके पश्चात बांग्ला के बजाय हिंदी में कविता लिखना शुरू किया। परंतु 20 वर्ष की आयु में ही उनकी पत्नी की मृत्यु हो गई थी। उनके पुत्री जो विधवा थी फिर उसकी भी मृत्यु हो गई थी। पारिवारिक विपत्तियांउनके जीवन में 16 – 17 वर्ष की उम्र से ही विपत्तियां आनी शुरू हो गई थी। उन्हें कई सारी प्रकार की देवी, सामाजिक, साहित्यिक संगोष्ठी से गुजरना पड़ा था ।परंतु आखिर तक उन्होंने अपने लक्ष्य को छोड़ा नहीं था। जब वह 3 साल के थे तब उनकी माता की मृत्यु हो गई थी। और सामाजिक रूप से उनका पिताजी का निधन भी हो गया था साथ ही 20 साल की उम्र में उनकी पत्नी की मृत्यु भी हो गई थी। पहले महायुद्ध के बाद जो महामारी फैली थी उनमें उनकी पत्नी के साथ चाचा ,भाई ,भाभी की भी मृत्यु हो गई थी। पत्नी की मृत्यु के बाद बहुत टूट से गए थे परंतु आखिर तक उन्होंने अपना मार्ग विचलित नहीं किए अपने लक्ष्य को पूरा किए। कुछ समय पश्चात उन्होंने महिषादल के राजा के पास नौकरी शुरू की थोड़े समय बाद उन्होंने वह नौकरी भी छोड़ दी। उसके बाद उन्होंने रामकृष्ण मिशन के पत्रिका समन्वय के संपादन के कार्य में काम करना शुरू किया। कार्य क्षेत्रउन्होंने पहली नियुक्ति महिषादल राज्य में की थी उसके पश्चात उन्होंने 1918 से 1922 तक यहां पर नौकरी की। इसके पश्चात व संपादन, अनुवाद कार्य और स्वतंत्र लेखन में प्रवृत्त हो गए। इस दौरान उन्होंने कई सारे कार्य किए, 1922 से 1932 के बीच कोलकाता में प्रसिद्ध हुए समन्वय का संपादन किया साथ ही 1923 अगस्त से मतवाला संपादक मंडल में भी कार्य किया था। फिर उन्होंने लखनऊ में गंगा पुस्तक माला कार्यालय में मासिक पत्रिका सुधा 1934 के मध्य के साथ संबंध में रहे थे। कुछ समय उन्होंने लखनऊ में ही बिताया 1934 से 1940 तक, 1942 से मृत्यु तक इलाहाबाद में रहकर यह उन्होंने अनुवाद कार्य साथ ही स्वतंत्र लेखन का कार्य किया था।
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की रचनाएँ1920 ई के आसपास उन्होंने अपना लेखन कार्य शुरू किया था। उनकी सबसे पहली रचना एक गीत जन्म भूमि पर लिखी गई थी। 1916 ई मैं उनके द्वारा लिखी गई ‘ जूही की कली ‘ बहुत ही लंबे समय तक का प्रसिद्ध रही थी और 1922 ई मैं प्रकाशित हुई थी। काव्य संग्रह–
उपन्यास–
निबंध–
कहानी संग्रह–
अभी न होगा मेरा अन्तअभी न होगा मेरा अन्त अपने नवजीवन का अमृत सहर्ष सींच दूँगा मैं अभी पड़ा है आगे सारा यौवन तोड़ती पत्थरवह तोड़ती पत्थर| कोई न छायादार चढ़ रही थी धूप देखकर कोई नहीं दीनसह जाते हो मौनबैठ लें कुछ देर, किशोरी, रंग भरी किस अंग भरी होरंगभरी किस अंग भरी हो? अनगिनित आ गए शरण मेंअनगिनित आ गए शरण में जन, जननि,– भारती वन्दनाभारति, जय, विजय करे दलित जन पर करो करुणादलित जन पर करो करुणा। Suryakant Tripathi Nirala Quotes
Suryakant Tripathi Nirala Books
Suryakant Tripathi Nirala Awardsसूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ को उनके मरणोपरांत भारत का प्रतिष्ठित सम्मान “पद्मभूषण“ से सम्मानित किया गया| सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की भाषा शैलीशैली मनुष्य का स्वरूप है | वह उसके आन्तरिक भावों का प्रतिरूप है ढांचा है, नमूना है | महाप्राण निराला की शैली के कई रूप हैं | इनकी शैलियों को प्रमुख रूप से पांच भागों में विभक्त किया गया है —
हिंदी साहित्य में स्थाननिराला जी का हिंदी साहित्य में बहुत ही गौरव पूर्ण स्थान है, साहित्य जगत में मुक्त छंद के प्रणेता वह है। जीवन, साहित्य, समाज के सर्वत्र ,नवीनता, छायावादी प्रगतिवादी, दार्शनिक, अद्वितीय प्रतिभा के महान कवि है। निराला जी ने छंद ,भाषा और भाव ऐसी अन्य प्रकार की नवीनता प्रदान की है। उनके अंदर तत्वज्ञान, रहस्यवादी ,सामाजिक चेतना का विद्यमान पूर्ण रूप से भरा हुआ था। Suryakant Tripathi Nirala प्रकाशित कृतियांसन् 1916 ई में ‘ जूही की कली ‘ हिंदी में बहुत प्रकाशित हुई थी। कविता संग्रह
Suryakant Tripathi Nirala लम्बी रचनाएँ
कुछ प्रतिनिधि रचनाएँ
Suryakant Tripathi Nirala मृत्यु Deathसूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ के जीवन का अंतिम समय अस्वस्थता के कारण प्रयागराज के दारागंज मोहल्ले में एक छोटे से कमरे में बीता तथा इसी कमरे में 15 अक्टूबर 1961 को कवि निराला जी की मृत्यु हुई। उम्मीद है आपको सूर्यकांत त्रिपाठी निराला जी (Suryakant Tripathi Nirala) पर आधारित ब्लॉग पसंद आया होगा यदि आप इससे जुड़े कोई भी प्रश्न पूछना चाहते हैं तो आप हमें कमेंट सेक्शन में लिखकर बताएं।आप किसी कोर्स या विदेश में एडमिशन लेना चाहते हैं तो आपके पास बहुत अच्छा मौका है आप आज ही Leverage Edu से संपर्क करे तथा अपने सपनों की उड़ान ले Leverage Edu के एक्सपर्ट के साथ। कवि ने लंका की उपमा शतदल से क्यों की है?'शतदल' का अर्थ होता है - कमल। यदि आप भारत का मानचित्र (map) ध्यानपूर्वक देखें तो आप पाएँगे कि भारत के नीचे श्रीलंका देश है। तो कवि को यह देखने पर ऐसा प्रतीत होता है मानो भारत माता शतदल अर्थात कमल के ऊपर खड़ी हैं। यानी कवि ने श्रीलंका की तुलना कमल से की है।
भारत वंदना कविता में शतदल का अर्थ क्या है?शतदल = कमल। क्लेद = पसीना, कष्ट। मुक्त = स्वतन्त्र। श्रेय = श्रेष्ठ, प्रशंसनीय।
भारती वंदना कविता के कवि कौन है?भारती वन्दना -सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला
वंदना कविता में रस कौन सा है?वंदना' कविता में शांत रस है। शांत रस में मोक्ष और अध्यात्म की भावना की उत्पत्ति होती है। शांत रस उस काव्य में होता है।
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