बाजार संतुलन से आप क्या समझते हैं? - baajaar santulan se aap kya samajhate hain?

मांग क्या होती है ? (what is demand)

सामान्यतः मांग का अर्थ किसी चीज़ को पाने की चाह माना जाता है लेकिन अर्थशास्त्र में यह भिन्न है। इसमें मांग में पाने की चाह के साथ साथ इसका मूल्य एवं इसका माप भी होता है। जैसे: आपको 5 रूपए प्रति पेंसिल के हिसाब से 10 पेंसिल चाहिए। यह मांग मानी जायेगी।

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परिभाषा :

प्रोफेसर मेयर्स के अनुसार “क्रेता की मांग उन सभी मात्राओं की तालिका होती है जिन्हें वह उस सामग्री के विभिन्न संभावित मूल्यों पर खरीदने के लिए तैयार रहता है।”

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पूर्ति क्या होती है ? (what is supply)

जब किसी वस्तु की बाज़ार में मांग की जाती है तो जिस व्यक्ति के पास यह वस्तु होती है वह निश्चित लाभ कमाने के लिए उस वस्तु को बाज़ार में बेचता है। ऐसा करने पर उसे उसके बदले लागत एवं लाभ मिलता है। अतः इसी तरह खरीददारों को निश्चित मूल्य पर सामान बेचकर उनकी ज़रूरतों को पूरा करना ही पूर्ति कहलाती है।

परिभाषा :

प्रो. बेन्हम के अनुसार ”पूर्ति का आशय वस्तु की उस निश्चित मात्रा से है जिसे प्रति इकाई के मूल्य पर किसी निश्चित समय में बेचने के लिए विक्रेता द्वारा प्रस्ततु किया जाता है। “

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बाजार संतुलन की परिभाषा? (Definition of market equilibrium)

ऐसी स्थिति जब जिस मूल्य पर एक वस्तु की जितनी मात्र ग्राहक खरीदना चाहता है, उसी मूल्य पर वह मात्र पूर्ति के लिए बाज़ार मनी उपलब्ध होती है, ऐसा होने पर इसे बाज़ार संतुलन कहते हैं। इस स्थिति में पूर्ति एवं मांग समान होती हैं।

बाजार संतुलन से आप क्या समझते हैं? - baajaar santulan se aap kya samajhate hain?

ऊपर दिए गए आरेख में, आप आपूर्ति और मांग संतुलन को समान मूल्य और मात्रा के साथ देख सकते हैं।

  • P* संतुलन मूल्य है
  • Q* संतुलन मात्रा है

मांग एवं पूर्ति में परिवर्तन का बाजार संतुलन पर असर :

  1. मांग में वृद्धि का संतुलन पर प्रभाव : (effect of increase in demand on market equilibrium)

जैसा की हम जानते हैं की जब मांग में वृद्धि होती हैं तो मांग वक्र अपनी जगह से दायीं और खिसक जाता है। हमें इसका बाज़ार संतुलन पर असर देखना है :

बाजार संतुलन से आप क्या समझते हैं? - baajaar santulan se aap kya samajhate hain?

ऊपर दिए रेखाचित्र में जैसा की देखा जा सकता है मांग में वृद्धि होने की वजह से मांग वक्र दायीं ओर चला गया है। यह D1 से D2 हो गया है। हम यह भी देख सकते हैं की पूर्ति की मात्र अभी उतनी ही है।

संतुलन पर प्रभाव :

जैसा की हम जानते हैं की संतुलन पर मांग एवं पूर्ति की मात्र सामान होती है। लेकिन जब मांग बढ़ी तो मांग की मात्रा ज्यादा हो गयी लेकिन पूर्ति के लिए उतनी ही मात्रा है। ऐसा होने पर बढ़ी मांग की उतनी ही वस्तुओं से पूर्ति करने पर वस्तुओं का मूल्य बधा दिया गया है।

अतः मांग के बढ़ने पर वस्तु का मूल्य P1 से P2 पर आ जाता है एवं वस्तु की मांग एवं पूर्ति की मात्रा Q1 से Q2 पर आ जाती है।

2. मांग में कमी का संतुलन पर प्रभाव : (effect of decrease in demand on market equilibrium)

जैसा की हम जानते हैं मांग में कमी अन्य घटकों की वजह से होती है इससे मांग वक्र बायीं और आ जाता है। इसका बाज़ार संतुलन पर निम्न असर होगा :

बाजार संतुलन से आप क्या समझते हैं? - baajaar santulan se aap kya samajhate hain?

ऊपर चित्र में जैसा की आप देख सकते हैं यहाँ एक वस्तु की मांग में कमी आने की वजह से मांग वक्र D1 से D2 पर आ गया है।

संतुलन पर प्रभाव :

जब मांग में कमी आई तो उस वस्तु की उपभोक्ताओं द्वारा मांग कम हुई ऐसा होने पर उसकी कीमतों में गिरावट आई। चित्र में देख सकते हैं कीई मांग वक्र D1 से D2 पर आ गया है। ऐसा होने पर वस्तु की कीमत में गिरावट आई एवं मूल्य P2 से P1 पर आ गया है एवं इसकी मांग एवं पूर्ति की मात्र अब Q2 से Q1 पर आ गयी है। अतः मांग कम होने से मूल्य एवं मात्रा दोनों में कमी देखने को मिलती है।

3. पूर्ति में वृद्धि का संतुलन पर प्रभाव : (effect of increase in supply on market equilibrium)

पूर्ति में वृद्धि मुख्यतः वस्तु के मूल्य के अन्य घटकों की वजह से होती है एवं ऐसा होने पर पूर्ति वक्र दायीं और खिसक जाता है। इसका बाज़ार संतुलन पर निम्न प्रभाव होता है :

बाजार संतुलन से आप क्या समझते हैं? - baajaar santulan se aap kya samajhate hain?

 ऊपर चित्र में जैसा की आप देख सकते हैं यहाँ मांग में कोई फर्क देखने को नहीं मिला है लेकिन पूर्ती में वृद्धि हुई है। ऐसा होने पर मांग को बढाने के लिए विक्रेता वस्तु के मूल्य को कम कर देता है।

संतुलन पर असर :

जब पूर्ति मांग से ज्यादा हो गयी तो मांग को भी उसके जितना बढाने के लिए मूल्य कम किया जाएगा। ऐसा करने पर ज्यादा लोग उस वस्तु को खरीदेंगे। अतः आप देख सकते हैं पूर्ति वक्र के S1 से S2 पर जाने की वजह से मूल्य P2 से घटकर P1 पर आ गया है। इसके साथ ही वस्तु की मात्रा Q2 से बढ़कर Q1 पर आ गयी है।

4. पूर्ति में कमी का संतुलन पर प्रभाव : (effect of decrease in supply on market equilibrium)

जब पूर्ति में कमी आती है तो यह उस वस्तु के मूल्य के अन्य जो घटक होते हैं उनमें परिवर्तन की वजह से आती है। जब ऐसा होता है तो पूर्ति वक्र अपनी जगह से खिसक कर बायीं और चला जाता है। इसका संतुलन पर निम्न असर होता है :

बाजार संतुलन से आप क्या समझते हैं? - baajaar santulan se aap kya samajhate hain?

 ऊपर दिए गए रेखाचित्र में जैसा की आप देख सकते हिं यहाँ हमने दिखाया गया है की वस्तु के मूल्य के अलावा दुसरे घटकों में परिवर्तन आने के बाद पूर्ति वक्र में बदलाव आया है। पूर्ति घाट गयी है जिसके ज=कारण यह बायीं और खिसक गया है।

संतुलन पर प्रभाव:

जब मांग समान रही एवं पूर्ति में कमी देखि गयी तो इसकी वजह से वस्तु के मूल्य में बढ़ोतरी कर दी गयी। ऊपर आप देख सकते हैं जब पूर्ति वक्र S1 से S2 पर आने की वजह से पूर्ति में कम आई। ऐसा होने पर वस्तु का मूल्य P1 से P2 तक बढ़ गया। इसी के साथ साथ वस्तु की मात्रा Q1 से Q2 तक कम हो गयी। अतः पूर्ति में कमी संतुलन को इस प्रकार प्रभावित करती है।

यह भी पढ़ें:

  • मांग की लोच एवं मांग की कीमत लोच
  • श्रम बाजार

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बाजार संतुलन से क्या समझते हैं?

बाजार सन्तुलन वह स्थिति है जिसमें परिवर्तन की कोई प्रवृत्ति नहीं पाई जाती है। इस बाजार में गति तो होती है, किन्तु गति में कोई परिवर्तन नहीं होता है। बाजार उस स्थिति में सन्तुलन होता है जब बाजार की पूर्ति बाजार की माँग के बराबर होती है।

बाजार संतुलन और संतुलन कीमत का क्या अर्थ है?

सन्तुलन कीमत वह कीमत है जिस पर किसी वस्तु की मांग तथा आपूर्ति की मात्रा दोनों बराबर होती हैं । संतुलन कीमत का निर्धारण किसी वस्तु की मांग और आपूर्ति की बाजार शक्तियों के द्वारा होता है । मांग आधिक्य एक ऐसी स्थिति है जब एक दी गई कीमत पर किसी वस्तु की मांग की मात्रा उसकी आपूर्ति की मात्रा से अधिक होती है।

संतुलन कीमत किसे कहते है 14 बाजार मूल्य से क्या आशय हैं?

Solution : संतुलन कीमत (Equilibrium Price)-संतुलन कीमत वह कीमत है जिस पर माँग तथा पूर्ति एक-दूसरे के बराबर होते हैं या जहाँ क्रेताओं की खरीद या विक्रेताओं की बिक्री एक-दूसरे के समान होती है। पूर्ण प्रतियोगी बाजार में संतुलन कीमत का निर्धारण माँग तथा पूति की शक्तियों द्वारा होता है।

बाजार संतुलन की अवस्था में कब होता है?

संतुलन मूल्य वहां निर्धारित होगा, जहां बाजार में मांगी जाने वाली मात्रा और आपूर्ति की गई मात्रा के बराबर है । इसे वस्तु की बाजार संतुलन कीमत कहते हैं । गए मांग वक्र जैसा), इसी भांति, उद्योग की आपूर्ति वक्र, ऊपर की ओर उठता हुआ होता है (पाठ 19 में दिए गए बाजार आपूर्ति जैसा) ।