लखनऊ। आईबीएस एक ऐसा विकार है जिसमे बड़ी आंत प्रभावित होती है। इस रोग में मरीजों की आंत की बनावट में कोई बदलाव नही होता है, इसलिए कई बार इसे सिर्फ रोगी का वहम ही मान लिया जाता है। लेकिन आँतों की बनावट में कोई बदलाव ना आने के बावजूद भी रोगी को कब्ज या बार-बार दस्त लगना, पेट में दर्द, गैस जैसी समस्याएं होती हैं। गुड़गाँव के वरिष्ठ आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉ० मनोज गुप्ता ने आईबीएस के बारे में संपूर्ण जानकारी दी। Show
इरिटेबल बॉएल सिंड्रोम रोगियों की शिकायतेंअधिकतर रोगी डॉक्टर के पास निम्नलिखित शिकायतें लेकर आते हैं –
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आईबीएस का कोई एक कारण नही माना गया है। बल्कि कई कारण मिलकर इस रोग के होने का कारण बनते है – 1 .विशेष खाद्य पदार्थों के सेवन से लक्षणों का बढ़ जाना – बहुत से लोगों को चोकलेट, एल्कोहल, गोभी, डेयरी उत्पाद, दूध, तले भुने मसालेदार पदार्थों एवं गेहूं से लक्षण बढ़ जाते हैं। 2 . तनाव –आईबीएस के होने में तनाव पूर्ण माहौल का भी अहम रोल हौता है। जिससे आईबीएस या ग्रहणी रोग के लक्षण बढ़ जाते हैं। 3 .आनुवंशिकता – जिन लोगों के परिवार में माता-पिता आदि को यह तकलीफ होती है उनके बच्चों को यह समस्या होने की ज्यादा सम्भावना हो जाती है। आधुनिक विज्ञान में IBS को मुख्य रूप से तीन प्रकारों में विभाजित किया गया है-
ये भी पढ़ें- विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस : समाज में 10 में से सात व्यक्ति मनोरोग से ग्रसितरोग से बचाव1. फाइबर लें – खान पान में धीरे-धीरे रेशे की मात्रा बढाने से लक्षणों में बहुत आराम मिलता है। फाइबर चोकर युक्त आटा, हरी सब्जियों एवं फलों में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। 2. अहितकर खान-पान से बचें – ऐसा खान पान जिसमे आईबीएस के लक्षण बढ़ते हों उनसे बचें। यह हर व्यक्ति के अनुसार अलग अलग हो सकते हैं। जैसे- दूध, चॉकलेट, पेय पदार्थ, कॉफ़ी, शराब आदि। यदि तकलीफ ज्यादा हो तो गोभी ,आलू ,नींबू , तले भुने खाद्य पदार्थो से बचें। 3. खान-पान में नियमितता रखें – नियमित समय पर खाना खाने की आदत डालें। एक बार में ज्यादा न खाकर थोड़ा थोड़ा कई बार में लें। खान पान में दही, छाछ आदि ज्यादा शामिल करें। 4. व्यायाम, योगाभ्यास, भ्रमण जरुर करें – नियमित रूप से भ्रमण, योगा, व्यायाम करें, इससे तनाव का स्तर घटता है और खाने का सही से पाचन होता है। 5. आयुर्वेदिक उपचार- आयुर्वेद में आईबीएस को ग्रहणी या संग्रहणी रोग के नाम से जाना जाता है। आयुर्वेद में ग्रहणी के वातज, पितज, कफज, सन्निपातज जैसे प्रकार बताये गए हैं तथा ग्रहणी रोग के कारणों, लक्षणों और चिकित्सा के बारे में विस्तार से वर्णन किया गया है। आयुर्वेद की कई जड़ी बूटियाँ जैसे-
जैसी औषधियां आईबीएस रोग में बहुत ही फायदेमंद रहती हैं। पर्पटी कल्प ग्रहणी रोग में आयुर्वेद की विशेष चिकित्सा बताई गई है। इन्हें आयुर्वेद विशेषज्ञ की सलाह से ही लिया जाता है। 6. छाछ – एक गिलास ताज़ा छाछ में आधी चम्मच भुना हुआ जीरा पाउडर एवं इतना ही सूखा पिसा हुआ पुदीना पाउडर मिलाकर पीना बहुत ही लाभकारी है। ग्रहणी यानी आईबीएस रोग में छाछ को अमृत समान गुणकारी माना गया है। इसका नियमित रूप से सेवन करें। 7. ईसबगोल– दस्त लगने पर दही के साथ एवं कब्ज होने पर गरम दूध के साथ ईसबगोल की भूसी 1-2 चम्मच मात्रा में लेना आईबीएस के लक्षणों में बहुत ही फायदेमंद साबित होता है। 8. बिल्व एवं त्रिफला पाउडर – दस्त ज्यादा लगने पर बिल्व एवं कब्ज की स्थिति में त्रिफला उपयोगी साबित होते हैं। ये भी पढ़ें- खराब जीवनशैली से बढ़ता है स्तन कैंसर का खतरा, ये वनस्पतियां हैं फायदेमंदताजा अपडेट के लिए हमारे फेसबुक पेज को लाइक करने के लिए यहां, ट्विटर हैंडल को फॉलो करने के लिए यहां क्लिक करें बार बार लैट्रिन जाना कौन सी बीमारी है?आईबीएस एक ऐसा विकार है जिसमे बड़ी आंत प्रभावित होती है। इस रोग में मरीजों की आंत की बनावट में कोई बदलाव नही होता है, इसलिए कई बार इसे सिर्फ रोगी का वहम ही मान लिया जाता है। लेकिन आँतों की बनावट में कोई बदलाव ना आने के बावजूद भी रोगी को कब्ज या बार-बार दस्त लगना, पेट में दर्द, गैस जैसी समस्याएं होती हैं।
बार बार लैट्रिन जाने के क्या कारण हो सकते हैं?एक बार में पेट साफ नहीं होता है जिससे बार बार टॉयलेट जाना पड़ता है। मोटापा और कब्जः कई बार कुछ लोगों में यह समस्या मोटापा और कब्ज के कारण होती है। बहुत से रोगियों में दिन में कई बार लगभग 7-8 बार शौच जाने की जरूरत होती है। कुछ लोगों में बीना किसी कारण के भी कब्ज की परेशानी हो जाती है।
बार बार टट्टी आने पर क्या करें?ज्यादा से ज्यादा करें पानी पिएं पेट खराब होने पर शरीर में पानी की कमी हो जाती है. ... . अदरक भी करेगा फायदा अपसेट पेट में अदरक का इस्तेमाल काफी कारगर होता है. ... . दही है फायदेमंद पेट दर्द में दही का इस्तेमाल काफी फायदेमंद रहता है. ... . केला खाना भी रहेगा सही ... . जीरा को अनदेखा नहीं कर सकते. 24 घंटे में कितनी बार लैट्रिन जाना चाहिए?लेकिन अगर स्वस्थ व्यक्ति की बात करें तो एक स्वस्थ व्यक्ति को दिन में 6 से 8 बार टॉयलेट जाना चाहिए। डॉ जेनिफर शू के अनुसार एक व्यस्क आदमी हर दो से ढाई घंटे में टॉयलेट के लिए जाता है यानि वो 24 घंटे में 6-9 बार टॉयलेट जाता है। इसलिए आपको पूरे दिन में इतनी बार ही टॉयलेट जाना चाहिए।
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