बारिश का पता कैसे चलता है? - baarish ka pata kaise chalata hai?

Jaipur: India Meteorological Department : भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) कैसे पता लगा लेते है कि देश के इन इलाके में बारिश होगी या फिर गरज के साथ छींटे पडे़ंगे. राजस्थान के इन इलाकों में धूल भरी आंधी चलेगी या फिर झमाझम बारिश से मौसम गुलजार होगा. आखिर मौसम वैज्ञानिक किस यंत्र के जरिए पता लगा लेते हैं कि आज इन इलाकों में ब्रजपात होगी और उसके बाद फटाफट सूचना और अलर्ट जारी करते है.

मानसून और बारिश के दिनों में मौसम विभाग मौसम की जानकारी उपलब्ध कराते समय बताया जाता है कि पिछले 24 घंटे में कितनी बारिश हुई. सवाल यह है कि वैज्ञानिक कैसे पता लगा लेते हैं कि अपने शहर में कितनी बारिश हुई है. दूसरी बड़ी बात है कि क्या हम भी पता लगा सकते हैं कि अपनी कॉलोनी में कितनी बारिश हुई. आइए जानते हैं-

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डॉप्लर रडार के जरिए मिलती है सटीक जानकारी
आमतौर पर लोग बता देते हैं कि सेटेलाइट के द्वारा बारिश का अनुमान लगाया जाता है. जी नहीं..सेटेलाइट के जरिए इमेज तो आ जाता है लेकिन इंटेंसिटी यानी तीव्रता का पता नहीं चलता कितनी तेज बारिश होगी. सेटेलाइट सिर्फ ये बता पाता है कि यहां -यहां बादल है या फिर इस गति से चल रहे है. ये तो पता लगा लेता है, लेकिन इंटेंसिटी का अनुमान लगाने के लिए भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) द्वारा भारत के अंदर अबतक 32 रडार है. जल्द ही इसकी संख्या को बढ़ाकर 55 किया जाएगा. इस रडार को डॉप्लर रडार कहा जाता है.

डॉप्लर रडार का एंटीना एक बड़े गुब्बारा की तरह दिखाई देता है
डॉप्लर रडार काफी ऊंचाई पर लगाया जाता है और इसका एंटीना एक बड़े गुब्बारा की तरह दिखाई देता है और यह रेडियो तरंगों या रडार बीम्स के इस्तेमाल से बारिश के साथ-साथ आंधी-तूफान, ओलावृष्टि और चक्रवाती तूफान की भी जानकारी देता है. 

डॉप्लर रडार मौसम की अतिसूक्ष्म तरंगों को भी कैच कर लेता है. इसकी रेडियो तरंगें प्रकाश की गति जितनी तेज चलती हैं और जब वह बारिश या ओलावृष्टि जैसी किसी चीज टकराती हैं तो वापस रडार पर लौटती हैं. मौसम विज्ञानी इन तरंगों की तेजी और उनके लौटने में लगे समय का विशलेषण करते हैं और उसके आधार पर मौसम संबंधी भविष्यवाणी करते हैं.

देश भर में है 32 डॉप्लर रडार 
भारत के पूर्वी किनारा यानी इस्टर्न कोस्ट में 8 रडार लगे हुए है, जबकि पश्चिमी तट पर चार रडार लगे है और शेष पूरे भारत के अंदर 20 रडार लगे हुए है. 

दिल्ली-एनसीआर में लगेंगे चार नए डॉप्लर रडार
दिल्ली-एनसीआर में मौसम की सटीक भविष्यवाणी के लिए भी चार नए डॉप्लर रडार लगेंगे. वहीं देशभर में इंसेट 3 डी, 3 आर 3 एस उपग्रहों से भेजी गईं छाया चित्रों को प्राप्त करने के लिए नए स्टेशन स्थापित होंगे. साथ ही अति उच्च क्षमता वाले कम्प्यूटर खरीदे जाएंगे. रेडियो सैंडो स्टेशन की संख्या 75 की जाएगी. इन स्टेशनों से सुबह और शाम गुब्बारा नुमा उपकरण छोड़कर तापमान, वायु दाब, आद्रता, हवा की गति, हवा की दिशा, बादलों की ऊंचाई की जानकारी प्राप्त की जाती है.

इस डॉप्लर रडार की रेंजिंग खास प्रकार से तैयार की गई है. ये बादलों से ही रेडियो वेब को रिवर्स कर वापस भेज देता है. ये रिफ्लेक्ट होकर बदलों से वापस आ जाती है. रेन से भी रेडियो वेब वापस आ जाती है. इसी से अंदाजा लगाया जाता है कि इन इलाकों में कम बारिश होगी या भीषण बारिश के संकेत है.

क्या होता है डॉप्लर इफेक्ट
डॉप्लर वेब में केवल 7 सेकेंड ही रेडियो वेब निकाली जाती है और 53 सेकेंड तक रेडियो वेब रिसिव किया जाता है. आइये बताते है डॉप्लर शब्द का मतलब क्या होता है. ये बिल्कुल एक इफेक्ट के तरह काम करता है. जिसे डॉप्लर इफेक्ट कहते है. उदाहरण के तौर पर इसे ऐसे समझे. कभी आपने स्टेशन पर खड़ा होकर दूर से आती ट्रेन के हॉर्न की आवाज सुनी होगी तो जैसे जैसे ट्रेन पास आती है तो उसके हॉर्न की आवाज पैनिक करता है. जब वो हमारे पास से गुजरती है तो बहुत तेज आवाज आती है. फिर जब ट्रेन हमसे दूर चली जाती है तो उसकी आवाज कम हो जाती है. इस प्रभाव को डॉप्लर इफेक्ट कहा जाता है, जो सापेक्षिक गति से नापा जाता है. बारिश को मापने में भी डॉप्लर रडार का उपयोग किया जाता है.

इसके अंतर्गत जो भी बारिश है इसकी कैलकुलेशन इस आधार पर की जाती है कि बारिश कितनी होगी, इसकी गति इतनी अधिक है तो बारिश भी ज्यादा होगी. यहां डॉप्लर और रडार का प्रयोग कर बारिश का अंदाजा लगाया जाता है. इसी रडार के द्वारा मानसून और बारिश का अनुमान लगाया जाता है.

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'रेनगेज' से मिलती है इलाके में कितनी हुई बारिश 
किसी भी स्थान में वर्षा को मापने के लिए 'रेनगेज' या "वर्षा मापन यंत्र" का प्रयोग किया जाता है. यह यंत्र सामान्‍य तौर पर ऊंचे और खुले स्थान पर लगाया जाता है. इसके लिए ऐसा स्‍थान चुना जाता है जहां आसपास पेड़, ऊंची दीवारें ना हों. जिससे बारिश का पानी सीधे यंत्र में गिरे. मानसून के दिनों में दिन में दो बार ये माप होता है. सुबह 8 बजे और शाम 5 बजे.

Report-(Anuj Kumar)

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बारिश का पता कैसे चलता है? - baarish ka pata kaise chalata hai?

अपन लगातार समाचारों में देखते-पढ़ते रहते हैं कि किस शहर में कितनी बारिश हुई लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि मौसम विभाग के लोगों को कैसे पता चलता है कि अपने शहर में कितनी बारिश हुई। 

इसके लिए मौसम विभाग कोई हाई लेवल टेक्नोलॉजी का उपयोग नहीं करता बल्कि एक बहुत ही सिंपल और पारंपरिक तरीके किया जाता है। मौसम विभाग के पास बाल्टी जैसा दिखने वाला एक यंत्र होता है, जिसे कीप कहा जाता है। मौसम विभाग के विशेषज्ञ इस कीप को शहर के किसी ऐसे स्थान पर रख देते हैं जहां पर खुला मैदान हो, पेड़ पौधे ना हो, कोई बड़ी इमारत ना हो। यानी जितनी भी बारिश हो वह पूरी की पूरी कीप के अंदर चली जाए।

इसी कीप पर इसके लगी होती है। बिल्कुल वैसी ही जैसी अपनी स्कूल की स्केल होती है। स्कूल वाली स्कूल में सेंटीमीटर लिखा होता है। मौसम विभाग वाली स्केल में मिली मीटर (MM) लिखा होता है। इसे शहर के ऐसे स्थान पर रखा जाता है जहां सामान्यता सबसे ज्यादा बारिश होती है। जैसे ही बारिश शुरु होती है किसको रख दिया जाता है और जब खत्म होती है तो उसमें जितना पानी भरा होता है वह डाटा रिकॉर्ड कर लिया जाता है। 

आप चाहे तो बाजार से बिल्कुल वैसे ही कीप खरीद सकते हैं और फिर अपने दोस्तों को बता सकते हैं कि आज आपके घर पर कितने एमएम बारिश हुई। 

बारिश होने का पता कैसे लगाएं?

Yahoo Weather ये ऐप हर घंटे, 5 दिन और 10 दिन का वेदर फोरकास्ट देता है, जिसमें आप पता लगा सकते हैं कि आपके शहर में बारिश कब होगी। इसके अलावा ये ऐप फोटोज के जरिए आपके लोकेशन का मौजूदा हालात भी बताता है। इसमें इंटरैक्टिव रडार और सैटेलाइट मैप जैसे ऑप्शन्स भी मौजूद हैं।

बारिश का पता लगाने वाला ऐप कौन सा है?

जी हां Weather ऐप की मदद से आप घर बैठे किसी भी लोकेशन की जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। एंड्रॉइड यूजर्स गूगल प्ले स्टोर से Weather ऐप को फ्री में डाउनलोड कर सकते हैं।

बारिश के आने पर क्या क्या होता है?

वर्षा के आने पर वातावरण में ठंड बढ़ जाती है तथा गर्मी कम होने लगाती है। सड़क किनारो तथा गड्ढो में पानी भर जाता है। अत्याधीक पानी जमा होने कारण वह पानी सड़को पर आने लगता है। जिससे लोग को आने जाने में असुविधा होने लगती है।

अपने गांव का मौसम कैसे देखें up?

अगर आप अपने गांव का मौसम एप्लीकेशन के माध्यम से देखना चाहते हैं तो आप वेदर एप डाउनलोड कर सकते हैं। गूगल का वेदर ऐप गूगल प्ले स्टोर पर उपलब्ध है आप गूगल प्ले स्टोर के माध्यम से भी देख सकते हैं।