भारतेन्दु हरिश्चन्द्र – परिचय – प्रेम-माधुरी – यमुना-छवि Show
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र – संक्षिप्त परिचय – UP Board syllabus
प्रश्न-पत्र में हिन्दी पाठ्यपुस्तक से पाठों के कवियों के जीवन परिचय, कृतियाँ तथा भाषा-शैली से सम्बन्धित प्रश्न पूछा जाता जीवन परिचय – भारतेन्दु हरिश्चन्द्र एवं साहित्यिक उपलब्धियाँआधुनिक युग के प्रवर्तक भारतेन्दु हरिश्चन्द्र का जन्म 1850 ई. में कार सम्पन्न परिवार में हुआ था। काशी के प्रसिद्ध सेठ अमीचन्द के वंशज भारतेन्दुक पिता का नाम बाबू गोपालचन्द्र था, जो ‘गिरिधरदास के नाम से कविता लिखते थे। घरेलू परिस्थितियों एवं समस्याओं के कारण भारतेन्द की शिक्षा व्यवस्थित रूप से नहीं चल पाई। इन्होंने घर पर ही स्वाध्याय द्वारा हिन्दी, संस्कृत, अंग्रेजी, बांग्ला, मराठी आदि /भाषाओं की शिक्षा ली। इन्होंने कविताएँ लिखने के साथ-साथ ‘कवि-वचन-सुधा’ नामक पत्रिका का प्रकाशन भी आरम्भ किया। बाद में, ‘हरिश्चन्द्र मैग्जीन’ तथा ‘हरिश्चन्द्र चन्द्रिका’ का भी सफल सम्पादन किया। ये साहित्य के क्षेत्र में कवि, नाटककार, इतिहासकार, समालोचक, पत्र-सम्पादक आदि थे, तो समाज एवं राजनीति के क्षेत्र में एक राष्ट्रनेता एवं सच्चे पथ-प्रदर्शक थे। जब राजा शिवप्रसाद को अपनी चाटुकारिता के बदले विदेशी सरकार द्वारा सितारे-हिन्द की पदवी दी गई, तो देश के सुप्रसिद्ध विद्वज्जनों ने इन्हें 1880 ई. में भारतेन्द’ विशेषण से विभूषित किया। क्षय रोग से ग्रस्त होने के कारण अल्पाय में ही 1885 ई. में भारत का यह इन्दु (चन्द्रमा) अस्त हो गया। गद्यकार के रूप में भारतेन्द जी को हिन्दी गद्य का जनक माना जाता है। इन्होंने साहित्य को सर्वांगपर्ण बनाया। काव्य के क्षेत्र में इनकी कृतियों को इनके युग का दर्पण माना जाता है। कृतियाँ काव्य संग्रह प्रेम-माधुरी, प्रेम तरंग, प्रेम सरोवर, प्रेम मालिका, प्रेम प्रलाप, तन्मय लीला, कृष्ण चरित, दान-लीला, भारत वीरत्व, विजयिनी, विजय पताका आदि। नाटक वैदिकी हिंसा हिंसा न भवति, सत्य हरिश्चन्द्र, श्रीचन्द्रावली, भारत दुर्दशा, नीलदेवी और अन्धेर नगरी आदि। उपन्यास पूर्ण प्रकाश और चन्द्रप्रभा। काव्यगत विशेषताएँभाव पक्ष कला पक्ष
हिन्दी साहित्य में स्थान पद्यांशों की सन्दर्भ एवं प्रसंग सहित व्याख्या प्रेम-माधुरी
शब्दार्थ को-कौन यथारथ-यथार्थ, वास्तविक; जिय-हृदय; बिरथी-व्यर्थ; सिगरे-सब; बिथा-व्यथा, पीड़ा। सन्दर्भ प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिन्दी पाठ्यपुस्तक में संकलित भारतेन्दु हरिश्चन्द्र द्वारा रचित ‘प्रेम-माधुरी’ शीर्षक कविता से उद्धृत है। प्रसंग प्रस्तुत सवैया में ब्रजबाला प्रेम-मार्ग पर चलने से होने वाली निन्दा एवं कष्टों का वर्णन कर रही है। व्याख्या नायिका अपनी सखी से कहती है कि प्रेम मार्ग को समझना अत्यन्त कठिन है। यह मार्ग जीवन के कटु यथार्थ की तरह ही कठोर एवं कष्टकर है। वह अपनी सखी से अपनी स्थिति का वर्णन करते हुए कहती है कि इस कठिन मार्ग पर चलते हुए उसे जो कष्ट हुए हैं उसे दूसरों को सुनाने से कोई लाभ नहीं है। दूसरों को इस प्रेम-कथा को सुनाने से उसे बदनामी के अतिरिक्त कुछ भी मिलने वाला नहीं है। वह कहती है कि उसे यह अच्छी तरह से पता है कि प्रम-व्यथा से मक्ति पाने के सभी उपाय व्यर्थ है, इसलिए इसे चुपचाप सहते। जाना ही अच्छा है। उसे ऐसा लगता है जैसे ब्रज के सारे लोग पागल हो गए हैं, सस व्यर्थ ही बार-बार उसकी प्रेम-पीड़ा के बारे में पूछते है कि उसे कष्ट क्या है? उसके अनुसार प्रेम-पीड़ा किसी दूसरे के सामने प्रकट करने की चीज नहीं है, कन ब्रजवासियों द्वारा बार-बार उसके कष्ट का कारण पूछने पर उसका दुःख हो जाता है और इसे सहना अत्यन्त कठिन है। काव्य सौन्दर्य
शब्दार्थ नसै-नष्ट होना; बिन जीहैं-बिना जीवित रहे; पतिआडए-विश्वास करना; पयान समै-प्रस्थान के समय। सन्दर्भ पूर्ववत्। व्याख्या कवि ने नायिका के उस मनोभाव का चित्रण किया है, जो वह परदेश जाने वाले अपने पति के सामने प्रकट कर रही है। नायिका अपने प्रियतम से कहती है कि यदि जाते समय वह उन्हें रोकती है तो टोक लगेगा, जो यात्रा के समय अमंगल का सूचक है, क्योंकि लोग यही कहते हैं कि यात्रा के समय टोकना अशुभ होता है। यदि वह उन्हें परदेश जाने के लिए कहती है तो उससे उसका प्रेम नष्ट हो जाएगा। वह कहती है यदि वह उन्हें परदेश जाने से मना करती है तो यह उन पर प्रभुत्व स्थापित करने अर्थात् उन्हें आदेश देने के समान होगा, जो अनुचित है और यदि वह कुछ नहीं कहती है तो उसका पति के प्रति स्नेह नष्ट होता है। वह कहती है कि ऐसी स्थिति में यदि वह अपने प्रियतम से कहे कि उनके बिना वह जीवित नहीं रह सकती है तो क्या वे विश्वास करेंगे? नायिका इस बात से परेशान है कि परदेश जाते हुए अपने पति से वह क्या कहे। अन्ततः वह अपने प्रियतम (पति) से ही अनुरोध करती है कि उसके परदेश गमन के समय वह उससे क्या कहे, यह बात उसे वह स्वयं समझा दे। नायिका चतुरतापूर्वक अपने मन की बात पति को बताते हुए उसके प्रेम को जीतने की कोशिश कर रही है। काव्य
सौन्दर्य
शब्दार्थ आजु लौं-आज तक: उराहनो-उलाहना; तासों-इसलिए; जू-यह; रीति-परम्परा; समै-समय; कण्ठ लगावै गले लगाते हैं। सन्दर्भ पूर्ववत्। प्रसंग प्रस्तुत पद्यांश में नायिका की विरह दशा का वर्णन किया गया है। व्याख्या विरह में व्याकुल एक नायिका अपने प्रेमी के प्रति अपनी भावनाएँ व्यक्त करती हुई कहती है कि आज तक तुम हमसे नहीं मिले तो कोई बात नहीं। हम तो सभी प्रकार से केवल तुम्हारे ही कहलाते हैं। मेरा
आपको कोई उलाहना नहीं है, क्योंकि सभी अपने भाग्य का फल पाते हैं। जैसा जिसके भाग्य में लिखा होता है, वैसा ही उसे भोगना पड़ता है। अगर मेरे भाग्य में आपसे न मिलना लिखा काव्य सौन्दर्य 4 ब्यापक ब्रह्म सबै थल पूरन हैं हमहूँ
पहिचानती है। शब्दार्थ थल-स्थलबिहाल-व्याकुल; ज्ञानहि-ज्ञान को; ठानती-महत्त्व सन्दर्भ पूर्ववत्। प्रसंग प्रस्तुत सवैया में गोपियाँ उद्धव के ज्ञानमार्ग की अपेक्षा भक्तिमार्ग को अधिक महत्त्व देती हैं। व्याख्या
गोपियाँ, उद्धव से यह कह रही हैं कि उन्हें भी यह अच्छी तरह से मालूम है कि ब्रह्म सम्पूर्ण विश्व के कण-कण में व्याप्त है, किन्तु उन्हें नन्दलाल (कृष्ण) के बिना कुछ भी अच्छा नहीं लगता है। कवि हरिश्चन्द्र कह रहे हैं कि वे ज्ञान मार्ग को महत्त्व नहीं देती हैं। (ब्रह्म को पाने के तीन मार्ग हैं-ज्ञान, कर्म एवं भक्ति।) गोपियाँ भक्ति के द्वारा कृष्ण को पाना चाहती हैं, ज्ञान के द्वारा नहीं। इसलिए वे उद्धव से कहती हैं कि वे कृष्ण से यह कह दें कि वे उनकी भक्ति करने के अतिरिक्त उनको पाने के अन्य किसी भी
मार्ग को काव्य सौन्दर्य कला पक्ष भाव साम्य प्रेम की
अनन्यता का चित्रण तलसीदास की इन पंक्तियों में भी किया। गया है यमुना-छवि1 सरनि-तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए। शब्दार्थ तरनि-तनूजा-सूर्यपुत्री यमुना, तमाल-एक प्रकार का सदाबहार वृक्ष, कूल-किनारा, परसन-स्पर्श करने के लिए: सुहाये-शोभायमान हो; किंधौ-अथवा, मुकुर-दर्पण; लखत-देखना; उझकि-उचक कर; प्रनवत-प्रणाम करते हैं; आतप-धूप; वारन-निवारण करना; तीर-तट; निखि-देखकर नै रहे-झुक रहे हैं; लहत-प्राप्त करना। सन्दर्भ प्रस्तुत पद्यांश हमारी हिन्दी पाठ्यपुस्तक में संकलित भारतेन्दु हरिश्चन्द्र द्वारा रचित ‘यमुना-छवि’ शीर्षक कविता से उदधत है। प्रसंग कवि ने प्रस्तुत पद में यमुना की शोभा का वर्णन किया है। व्याख्या कवि कह रहे हैं कि यमुना नदी के किनारे तमाल के कई सुन्दर। वृक्ष छाए हुए हैं, उनकी डालियाँ किनारे की ओर झुकी हुई हैं, जिन्हें देखकर । ऐसा लगता है मानों वे यमुना के पवित्र जल का स्पर्श करना चाहते हों या वे वृक्ष जलरूपी दर्पण में अपनी शोभा देखने के लिए मानो उचक-उचक कर आगे। की ओर झुक गए हों या यमुना के जल को पवित्र मानकर उत्तम फल की प्राप्ति के लिए झुककर उन्हें प्रणाम कर रहे हों। कवि कह रहे हैं कि यमुना के किनारे की ओर झुके हुए तमाल के वृक्षों को देखकर ऐसा लग रहा है मानो तट को धूप-ताप से बचाने के लिए वे एक साथ सिमट कर उसे छाया प्रदान कर रहे हो या वे तट पर, कृष्ण को नमन करने एवं उनकी सेवा करने के लिए झुके हुए हों। उनके तट पर झुके होने का कारण कृष्ण का दर्शन पाना भी हो सकता है, जिनके दर्शन से मन एवं आँखों को अत्यधिक शीतलता एवं सुख मिलता है। काव्य सौन्दर्य कला पक्ष
शब्दार्थ तिन पै-जिन पर जेहि -जिस-छिन -क्षण चन्द जोति -चाँदनी: सन्दर्भ पूर्ववत्। प्रसंग प्रस्तुत पद में कवि यमुना के जल पर पूर्णिमा की चाँद की किरणों के प्रकाश से उत्पन्न सौन्दर्य का वर्णन कर रहे हैं। व्याख्या कवि कह रहे हैं कि पूर्णिमा के चाँद की किरणें जिस क्षण यमुना के जल पर पड़ती हैं, तो उन्हें देखकर ऐसा लगता है, मानों ये किरणें यमुना के जल में मिलकर पृथ्वी से आकाश तक एक तम्बू सा तान देती हैं। उस समय इन किरणों का उज्ज्वलमय प्रकाश दर्पण के समान प्रतीत होता है। यमुना की इस अनुपम सुन्दरता को देखकर तन, मन एवं आँखें शीतलता एवं सुख का अनुभव करती हैं। यमुना जल की इस सुन्दरता का वर्णन कोई कवि नहीं कर सकता है। ऐसे समय में पूर्णिमा के चाँद की किरणों से आकाश और नदी के किनारों की सुन्दरता आकाश से पृथ्वी तक जैसे एक समान ही दिखाई पड़ती है। काव्य सौन्दर्य कला पक्ष
शब्दार्थ मधि -मध्य में लोल -चंचल-लहि -पाकर हेत -के लिए बसत सन्दर्भ पूर्ववत्। प्रसंग प्रस्तुत पद में कवि ने यमुना के जल पर पड़ते हुए चन्द्रमा के प्रतिबिम्ब का सुन्दर वर्णन किया है। व्याख्या कवि कह रहे हैं कि यमुना के जल के मध्य में चन्द्रमा का प्रतिबिम्ब चमकता हुआ दिखाई पड़ रहा है। यमुना के जल की चंचल लहरों के हिलने से चन्द्रमा के हिलते हुए प्रतिबिम्ब को देखकर कवि को ऐसा लगता है, मानो वे चंचलता के साथ नृत्य कर रहे हों। चन्द्रमा के इस प्रतिबिम्ब की शोभा को देखकर, यह लगता है कि मानो विष्णु (जिनका निवास स्थल जल में है) के दर्शन के लिए वह जल में उतर आया है अथवा वह यह सोच कर यमुना के जल में आ बसा है। कि जब कृष्ण यमुना-तट पर, विहार करने आएँगे, तब उसे उनके दर्शन प्राप्त हो जाएँगे। कवि कह रहे हैं कि चन्द्रमा की छवि, जल में ऐसी शोभा पा रही है, जैसे यमुना की लहरें, अपने हाथ में चन्द्रमा का प्रतिबिम्बरूपी दर्पण लिए हों अथवा रास-क्रीड़ा में रमे हुए, श्रीकृष्ण के मुकुट की आभा ही इस चन्द्रमा के प्रतिबिम्ब के रूप में, यमुना के जल में प्रतिबिम्बित हो रही हो। कवि चन्द्रमा के प्रतिबिम्ब को देखकर कल्पना कर रहे हैं कि यह भी हो सकता है कि यमुना के हृदय में चन्द्रमा के रूप में, कान्तिमान भगवान श्रीकृष्ण की छवि बसी हुई है एवं यह प्रतिबिम्ब उन्हीं का है। काव्य सौन्दर्य कला पक्ष
शब्दार्थ सत-सौ: दुरि-दूर भाजत-भागता है;गवन -चलना; सन्दर्भ पूर्ववत्। प्रसंग प्रस्तुत पद्यांश में कवि भारतेन्दु ने जल में पड़ते हुए, चन्द्रमा के प्रतिबिम्ब का सुन्दर वर्णन किया है। व्याख्या चाँदनी रात में हवा के चलने से जब यमुना का जल हिलने लगता । है, तब उस जल में चन्द्रमा का प्रतिबिम्ब, अनेक रूपों में सुशोभित होने लगता है। यमुना के हिलते हुए जल में, लहरें भी हिलती हैं, उन लहरों में कभी-कभी कवि को सौ-सौ चन्द्रमा के प्रतिबिम्ब दिखाई पड़ते हैं, जो अनेक रूपों में सुशोभित होते काव्य सौन्दर्य कला पक्ष
शब्दार्थ जुग-दो पच्छ-पक्ष (कृष्ण और शुक्ल) लुकत-छिप जाते हैं। सन्दर्भ पूर्ववत्।। प्रसंग प्रस्तुत पद में कवि ने यमुना के जल में चन्द्रमा के प्रतिबिम्ब का अनुपम वर्णन किया है। व्याख्या कवि कह रहे हैं कि यमुना के जल में कभी तो चन्द्रमा का। काव्य सौन्दर्य कला पक्ष
शब्दार्थ कलहंस उत्तम हंस, मज्जत स्नान करना; पारावत-कबूतर; सन्दर्भ पूर्वदत्। प्रसंग प्रस्तत पद में कवि भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने यमुना के किनारे एवं यमना । के जल में विहार करते विभिन्न पक्षियों की अनुपम शोभा का वर्णन किया है। व्याख्या
कवि कह रहे हैं कि यमुना के जल में कूजते हुए राजहंस काव्य सौन्दर्य कला पक्ष पद्यांशों पर अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्न उत्तरप्रश्न-पत्र में पद्य भाग से दो पद्यांश दिए जाएँगे, जिनमें से एक पर आधारित 5 प्रश्नों (प्रत्येक 2 अंक) के उत्तर देने होंगे। प्रेम-माधुरी1 रोकहिं जो तौ अमंगल होय औ प्रेम नसै जो कहैं पिय जाइए। उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।(i) प्रस्तुत पद्यांश के कवि व शीर्षक का नामोल्लेख कीजिए। (ii) पद्यांश में नायिका की किस मनोदशा का वर्णन किया गया है? (iii) नायिका द्वारा जगत की किस रीति का उल्लेख किया गया है? (iv)
जो कहे जाह न तो प्रभुता जौ कुछ न कहें तो सनेह नसाइए। पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए। (v) पद्यांश की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।(i) प्रस्तुत पद्यांश में नायिका की किस दशा की अभिव्यक्ति हुई है? (ii) नायिका अपनी विरह अवस्था के लिए किसे उत्तरदायी मानती है? (iii) प्रस्तुत
पद्यांश में नायिका ने अपनी कौन-सी इच्छा प्रकट की है? (iv) प्रस्तुत पद्यांश में नायिका ने जगत् की किस रीति का उल्लेख किया है? (v) प्रस्तुत पद्यांश में प्रयुक्त रस को स्पष्ट कीजिए।
उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।(i) प्रस्तुत पद्यांश में गोपियों द्वारा किस भक्तिमार्ग को महत्त्व दिया गया है। (ii) श्रीकृष्ण के प्रति गोपियों के भावों का वर्णन कीजिए। (iii) गोपियाँ कृष्ण को किस प्रकार पाना चाहती हैं? (iv) गोपियाँ उद्धव से कृष्ण को क्या सन्देश देने के लिए कहती हैं? (v) प्रस्तुत पद्यांश में अलंकार को
स्पष्ट कीजिए। यमुना छवि1 .तरनि-तनूजा तट तमाल तरुवर बहु छाए। उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।(i) प्रस्तुत पद्यांश के शीर्षक व कवि का नाम बताइए। (ii) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने किसका वर्णन किया है? (iii) यमुना नदी के
किनारे खड़े वृक्षों को देखकर कवि को क्या प्रतीत होता है? (iv) प्रस्तुत पद्यांश के अलंकार सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए। (v) ‘तरनि-तनूजा’ व ‘तट’ शब्दों के दो-दो पर्यायवाची बताइए। 2.परत चन्द्र प्रतिबिम्ब कहूँ जल मधि चमकायो। उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।(i) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने किसका वर्णन किया है? (ii) ‘मनु हरि दरसन हेत चन्द्र जल बसत सुहायो पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए। (iii) कवि ने चन्द्रमा की किन-किन रूपों में कल्पना की है? (iv) प्रस्तुत पद्यांश में प्रयुक्त मानवीकरण अलंकार को स्पष्ट कीजिए। (v) ‘हरि’ व ‘लहर’ शब्दों के दो-दो पर्यायवाची लिखिए। 3.कबहुँ होत सत चन्द कबहुँ प्रगटत दुरि भाजत। उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।(i) कवि को यमुना नदी के जल पर पड़े चन्द्रमा के प्रतिबिम्ब को देखकर क्या अनुभूति होती है? (ii) ‘कै बालगुड़ी नभ में उड़ी सोहत इत उत धावती।’ पंक्ति का भाव स्पष्ट कीजिए। (iii) पद्यांश का केन्द्रीय भाव लिखिए। (iv) पद्यांश के शिल्प पक्ष पर प्रकाश डालिए। पद्यांश में शृंगार रस की प्रधानता विद्यमान है। ‘मनु ससि भरि अनुराग’ में उत्प्रेक्षा अलंकार व ‘सोहत इत उत धावती’ में ‘त’ वर्ण की आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार का प्रयोग हुआ है। माधुर्य गुण व लक्षणा शब्दशक्ति भी काव्य में विद्यमान है। (v) “ससि’ व ‘नभ’ शब्दों के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखिए।
उपर्युक्त पद्यांश को पढ़कर निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए।(i) यमुना के जल में चन्द्रमा के प्रतिबिम्ब के दिखने व छिपने की तलना कवि किससे करता है? (ii) कै कालिन्दी नीर तरंग जितो उपजावत। उत्तर प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से कवि प्रत्येक लहर के साथ चन्द्रमा की छवि दिखने के कारण कहता है कि उसे देखकर ऐसा प्रतीत होता है मानो चाँद यमुना में उठने वाली प्रत्येक लहर से मिलने के लिए उतने ही रूप धारण करके उनके पीछे उत्साहित होकर दौड़ता रहता है। (iii) प्रस्तुत पद्यांश में कवि ने पक्षियों की शोभा का वर्णन किस प्रकार किया है? (iv) पद्यांश की अलंकार योजना पर प्रकाश डालिए। (v) ‘कालिन्दी’ व ‘सुक’ शब्दों के दो-दो
पर्यायवाची शब्द लिखिए। |