Rajasthan Board RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 11 सुमित्रानंदन पंतRBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 11 पाठ्यपुस्तक के प्रश्नोत्तरRBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 11 वस्तुनिष्ठ प्रश्न Show प्रश्न 1. प्रश्न 2. RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 11 अतिलघु उत्तरात्मक प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 11 लघूत्तरात्मक प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 11 निबन्धात्मक प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. अब कवि की समझ में आया कि बचपन में वह गलत था। उसने गलत बीज बोए थे। पैसे बोए थे, जो नहीं उगे परन्तु सेम की भारी फसल पैदा हुई। उसने माना कि धरती बंध्या नहीं रत्न प्रसविनी है। उसमें मानवों के बीच समानता, ममता तथा क्षमता के बीज बोने हैं। पैसे बोने तथा सेम के बीज बोने के माध्यम से कवि यह संदेश देना चाहता है कि दोष धरती का नहीं, उसमें बीज बोने वालों का होता है। पैसे बोने पर उनका न उगना कवि के बचपने का नतीजा था। सेम के बीज बोना उसकी समझदारी थी। समझदारी से किया गया कार्य सफल होता है। सेम के बीज उगे और ढेर सारी फलियाँ उत्पन्न हुईं। हम जैसा काम करते हैं, उसका वैसा ही परिणाम हमें प्राप्त होता है। हमें चाहिए कि धरती पर लोगों में प्रेम, ममता, समानता, कार्य-क्षमता आदि पैदा करें। तभी यह धरती अपनी संतान की सच्ची माता बन सकेगी। प्रश्न 3. तीसरे चरण में स्वर्ण धूलि, स्वर्ण किरण, युगपथ, अतिमा, उत्तरा आदि शामिल हैं। इन रचनाओं पर कवि की मूल धारा का प्रभाव है। चौथे चरण में कला और बूढ़ा चाँद से लोकायतन (महाकाव्य) तक की रचनाएँ रखी जा सकती हैं। लोकायतन पर गाँधीवादी प्रभाव है। मानवतावाद तथा लोकमंगल इन रचनाओं का प्रयुक्त स्वर है। ‘चिदम्बरा’ उनकी कविताओं का संकलन है। पन्त प्रकृति के चित्रकार हैं। उनकी प्रकृति मनोरम तथा कोमल है। प्राकृतिक सौन्दर्य का उनके द्वारा प्रस्तुत चित्रण अत्यन्त सजीव है। पन्त ने काव्य के विचारों और भावों का भी ध्यान रखा है। शिल्प को कवि ने महत्वपूर्ण माना है। उनका काव्य सजीव तथा चित्रमयी है। पुरानों के साथ ही नवीन, मानवीकरण आदि अलंकारों को कवि ने अपनाया है। अतुकान्त मुक्त छन्द का प्रयोग भी किया है। पंत समन्वयवादी हैं। उन्होंने अपने काव्य में भौतिकवाद के साथ अरविन्द की आध्यात्मिकता का समन्वय किया है। कला तथा भवि- दोनों पक्षों की दृष्टि से पंत का काव्य हिन्दी का उत्कृष्ट काव्य है। प्रश्न 4. RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 11 अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तरRBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 11 वस्तुनिष्ठ प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 11 अतिलघु उत्तरीय प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न
5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. प्रश्न 17. प्रश्न 18. RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 11 लघु उत्तरात्मक प्रश्न प्रश्न 1.
प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 2. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. RBSE Class 12 Hindi सरयू Chapter 11 निबन्धात्मक प्रश्न प्रश्न 1. उनमें जाति, धर्म, प्रदेश, रंग, लिंग आदि के आधार पर भेदभाव न हो। इन शब्दों का प्रयोग करने का उद्देश्य यह है कि कवि संसार को एक ऐसा स्थान बनाना चाहता है कि जिसमें रहने वाले मनुष्यों को सुख-सुविधा प्राप्त हो सके। वे इस धरती पर एक-दूसरे के साथ प्रेम से रह सकें। वे अपने कार्य सफलतापूर्वक कर सकें तथा बिना भेद-भाव के जीवन बिता सकें। इस प्रकार हम देखते हैं कि ‘धरती कितना देती है. एक संदेशपरक रचना है जिसमें आदर्श जीवन का चित्र प्रस्तुत किया गया है। प्रश्न 2. पन्त प्रकृति के चितेरे हैं तथा उसके सौन्दर्य के प्रेमी है। ‘छोड़ द्रुमों को मृदु छाया, तोड़ प्रकृति से भी माया, बाले तेरे बाल जाल में कैसे उलझा दें लोचन ? कहने वाला प्रकृति प्रेमी भाग्यवादी नहीं हो सकता।’ ‘धरती कितना देती है’ कविता भाग्यवाद की प्रेरणा नहीं देती। उसमें सत्कर्म की प्रेरणा दी गई है। सत्कर्म से ही धरती को मनुष्य के रहने योग्य बनाया जा सकता है। कवि ने सब कुछ भाग्य पर छोड़ने का संदेश कविता में कहीं नहीं दिया है। अतः पन्त को भाग्यवादी दर्शन का उपदेशक नहीं कहा जा सकता। प्रश्न 3. प्रश्न 4. पन्त जी ने यही बात यह धरती कितना देती है, कविता के अन्त में इन शब्दों में कही है हम जैसा बोयेंगे, वैसा ही पायेंगे। अच्छे काम का परिणाम अच्छा होता है। अत: मनुष्य को अपने जीवन में अच्छे कर्म ही करने चाहिए। अच्छे काम करके ही संसार को सुखदायक बना सकते हैं। हमको इस धरती पर मनुष्य मनुष्य में प्रेम की, मानव की समता की तथा मनुष्यों में समानता की फसल पैदा करनी चाहिए। संसार में प्रेम, ममता, समानता और कार्यकुशलता का वातावरण बनेगा तो यह धरती स्वर्ग के समान सुखदायक हो जायेगी। यही इस कविता का प्रतिपाद्य है तथा यही इसकी प्रेरणा है। कवि ने इस कविता द्वारा सत्कर्म करने का संदेश दिया है। प्रश्न 5. मैं प्रयत्न करूंगा कि सभी पृथ्वीवासी भाई-भाई की तरह मिलकर रहें। वे एक-दूसरे से प्रेम करें तथा सबके प्रति ममता की भावना अपने मन में रखें। मैं सभी मनुष्यों को कार्य-कुशल देखना चाहूँगा। सभी लोग काम करने में सक्षम होंगे तो उनको सफलता मिलेगी, इससे इस धरती पर सुख-सम्पन्नता का वातावरण बनेगा और सभी लोग सुखपूर्वक रह सकेंगे। धन सुख का सपना है। मैं चाहूंगा कि सभी लोग उचित साधन अपनाकर धन कमायें। धन से सुख मिलता है। धनाभाव में मनुष्य अनेक दु:ख उठाता है। कहा है-धनात् धर्मः ततः सुखम्। मैं चाहूँगा कि लोग धन कमायें किन्तु मैं यह कदापि नहीं चाहूँगा कि लोग धनोपार्जन के लिए अनुचित उपाय अपनाएँ तथा एक-दूसरे का शोषण करें। कवि – परिचय : जीवन – परिचय – सुमित्रानन्दन पंत को जन्म उत्तराखण्ड के जिला अल्मोड़ा के कौसानी नामक ग्राम में सन् 1900 ई. में हुआ था। आपके पिता का नाम पं. गंगादत्त पंत था। जन्म के कुछ समय बाद ही इनकी माता चल बसीं। आपका मूल नाम गुसाईं दत्त था। बाद में आपने अपना नाम सुमित्रानन्दन पंत रखी। आपकी प्रारम्भिक शिक्षा अल्मोड़ा में हुई। सन् 1918 ई. में काशी के क्वींस कॉलेज से मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण की। जब आप इलाहाबाद म्योर सेंट्रल कॉलेज में पढ़ रहे थे, तभी सन् 1921 में महात्मा गाँधी के असहयोग आन्दोलन से प्रभावित होकर कॉलेज छोड़ दिया। बाद में आपने स्वाध्याय द्वारा अंग्रेजी, संस्कृत, बँगला भाषाओं का गहन अध्ययन किया। आप इलाहाबाद में आकाशवाणी के अधिकारी रहे। पंत आजीवन अविवाहित रहकर हिन्दी की सेवा में लगे रहे। आपकी साहित्य सेवा के लिए भारत सरकार ने सन् 1961 में आपको ‘पद्म भूषण’ से अलंकृत किया। 28 दिसम्बर, सन् 1977 को आपका देहावसान हो गया। साहित्यिक परिचय – हिमालय के प्राकृतिक सौन्दर्य का पंत पर गहरा प्रभाव पड़ा। आपने बाल्यावस्था से ही काव्य-साधना आरम्भ कर दी थी। पन्त छायावाद के प्रमुख कवि हैं। आपके साहित्य पर गाँधी जी तथा मार्क्स का भी प्रभाव है। आप प्रकृति के अनुपम चितेरे हैं। आपको प्रकृति का सुकुमार कवि कहा जाता है। आपको अपनी कला और बूढ़ा चाँद’, रचना पर ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार तथा ‘लोकायतन’ महाकाव्य पर उत्तर प्रदेश सरकार तथा सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार प्राप्त हुए हैं। आपकी (1968) ‘चिदम्बरा’ रचना। पर ज्ञानपीठ पुरस्कार भी मिल चुका है। कृतियाँ – पंत जी की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैंमहाकाव्य-लोकायतन। कविताओं का सारांश : भारत माता ‘धरती कितना देती है’ पन्त जी की सत्कर्म की प्रेरणा देनी वाली रचना है। मनुष्य यदि सही दिशा में प्रयत्न करे तो उसको सफलता अवश्य मिलती है। बचपन में कवि ने छिपकर पैसे बोए थे, सोचा था कि उनके पेड़ उगेंगे और रुपयों की फसलें उत्पन्न होंगी। वह खूब धनवान बन जाएगा। किन्तु ऐसा नहीं हुआ वह पेड़ों के उगने का इंतजार ही करता रहा। उसने बचपन में अबोधावस्था में गलत बीज बो दिए थे। तब से पचास साल बीत गए। अनेक ऋतुएँ आईं और गईं। एक बार बरसात में गीली मिट्टी में कवि ने सेम का बीज बो दिया। वह इस घटना को भूल भी गया किन्तु एक दिन संध्या समय उसने अपने घर के आँगन में सेम के पौधे उगे हुए देखे। धीरे-धीरे पौधे बढ़ने लगे। और वे पत्तों और फूलों-फलियों से लद गए। उन पौधों पर असंख्य फलियाँ उत्पन्न हुईं। कवि ने जोड़ों भर उनको खाया। उसने सेम की फलियों को अपने बन्धु-बांधवों, इष्ट-मित्रों तथा पड़ोसियों में बाँटा। घर-घर सेम की सब्जी बनी। इस घटना से कवि की समझ में यह बात आ गई कि यदि हमें ऐसी दिशा में प्रयत्न करें तो सफलता अवश्य प्राप्त होती है। मनुष्य को अच्छे काम करने चाहिए उसका प्रयत्न बेकार नहीं जाएगा। धरती रत्न प्रसविनी है। हम जैसे बीज बोते हैं, वैसे ही फल उत्पन्न होते हैं। इस धरती पर मनुष्य को प्रेम, मानवता, सक्षमता, ममता के बीज बोने चाहिए। इनकी सुनहरी फसलें उगेंगी तो संसार में सुखसुविधा तथा प्रेमपूर्ण वातावरण उत्पन्न होगा। हम जैसा बीज बोयेंगे वैसे ही फल हमको मिलेंगे। पद्यांशों की सन्दर्भ एवं प्रसंग सहित व्याख्याएँ। भारत माता भारत माता खेतों में फैला है श्यामल, मिट्टी की प्रतिमा अधरों में चिर नीरव रोदन, शब्दार्थ – श्यामल = हरा-भरा। प्रतिमा = मूर्ति। उदासिनी = दु:खी। दैन्य = दीनता। जड़ित = जड़ा हुआ। अपलक = बिना पलकें झपकाये। चितवन = निगाह, दृष्टि। अधर = होंठ। नीरव = मौन, शान्त। विषण्ण = दु:खी, व्याकुल। प्रवासिनी = अपने देश से बाहर रहने वाली। सन्दर्भ तथा प्रसंग – उपर्युक्त पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित ‘भारत माता’ शीर्षक कविता से लिया गया है। इसके रचयिता सुमित्रानन्दन पन्त हैं। कवि ने भारत की स्वतन्त्रता से पूर्व गाँवों में व्याप्त दीनता और निर्धनता का चित्रण किया है। उसने बताया है कि भारत माता ग्रामों में रहने वाली है। व्याख्या – कवि ने भारत के गाँवों की स्वतंत्रता से पूर्व की दशा का वर्णन कर रहा है। वह कहता है कि भारत माता गाँवों की रहने वाली है अर्थात् भारत गाँवों में रहता है। हरे-भरे खेत भारत माता की आँचल है, जो धूल से सना हुआ और मैला है। गंगा और यमुना नदियाँ उसके नेत्रों से बहने वाले आँसू हैं। वह मिट्टी की बनी हुई नारी उदास और शान्त है। भारत माता के नेत्रों से दीनता प्रकट हो रही है। वह बिना पलक झपकाये एकटक देख रही है। इससे उसकी उदासी प्रकट हो रही है। उसके होठों में चिरस्थायी रुदन स्थित है, उसके होठों की ओर देखने से लगता है कि मन में लम्बे समय से विषाद छाया रहा है। वह अपने घर में रहते हुए भी जैसे विदेश में रह रही है। विशेष –
2. तीस कोटि संतान नग्न तन, शब्दार्थ – कोटि = करोड़। क्षुधित = भूखा। शोषित = शोषण की शिकार। निरस्त्र = अरक्षित। मूढ़ = मूर्ख। नतमस्तक = पराधीन। शस्य = पौधा। कुंठित = रोती हुई। सहिष्णु = सहनशील। कुंठित = कुंठाग्रस्त, निराश। क्रंदन = चीख, रोना। स्मित = मुस्कान। राहु-ग्रसित = राहु से ग्रस्त। शरदेन्दु = शरदकालीन चन्द्रमा। सन्दर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित ‘भारत माता’ शीर्षक से उद्धृत है। इसके रचयिता कविवर सुमित्रानन्दन पन्त हैं। कवि भारत माता की रक्षा का वर्णन कर रहा है। भारतमाता ग्रामीण भारत की प्रतीक है। पराधीनता की अवस्था में उसकी स्थिति दयनीय है। व्याख्या – कवि कहता है कि भारत माता पराधीन है। उसकी तीस करोड़ संताने अर्थात् भारतीय जन वस्त्रों के अभाव में नंगे रहते हैं। उनको भरपेट भोजन नहीं मिलता, वे शोषण के शिकार हैं तथा असुरक्षित हैं। वे भूखे, असभ्य तथा बिना पढ़े-लिखे हैं। वे गरीब हैं। तथा पराधीनता के कारण उनका माथा नीचे झुका हुआ है। बे बेघर हैं तथा वृक्षों के नीचे रहते हैं। भारत माता पेड़ों की छाँव में रहने को विवश है। विशेष –
3. चिंतित भृकुटि-क्षितिज तिमिरांकित शब्दार्थ – भृकुटि = भौंहें। तिमिरांकित = अन्धकारपूर्ण। वाष्पाच्छादित = भाप से ढके हुए, अश्रुपूर्ण। आनन = मुख। उपमित = तुल्य। ज्ञान मूढ़ = अज्ञानी। स्तन्य = दूध। भव = संसार। जग जननी = समस्त संसार की माता। सन्दर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित ‘भारत माता’ शीर्षक कविता से लिया गया है। इसके रचयिता सुमित्रानन्दन पन्त हैं। कवि ने पराधीनता के कारण पीड़ा भोग रही मातृभूमि का चित्रण किया है। अब उसको गाँधीजी की अहिंसा का सहारा प्राप्त हो गया है और इस कारण अब उसको पराधीनता से मुक्ति की आशा है। व्याख्या – कवि कहता है कि भारत माता की भौंहें अंधकार से ढके हुए क्षितिज के समान चिन्ताग्रस्त हैं। बादलों से ढके आसमान के समान उसके नेत्र आँसुओं में डूबे हैं। उसके मुख की शोभा छायाग्रस्त चन्द्रमा के समान है। गीता का ज्ञान विश्व को कराने वाली भारतमाता आज अज्ञान से ग्रस्त है। आज उसका वर्षों का तप तथा संयम सफल हो गया है। वह गाँधीजी की अहिंसा का अमृत के समान मधुर दुग्ध अपनी सन्तान को पिला रही है। इससे भारतीय लोगों के मन से भय दूर हो रहा है, उनका अज्ञान और थकावट नष्ट हो रही है। भारत माता जगत की जननी है। वह जीवन को विकसित करने वाली है। भारतमाता गाँवों में रहने वाली हैं। विशेष –
1. आः धरती कितना देती है। शब्दार्थ – छुटपन = बचपन। कलदार = मशीन से बना हुआ सिक्का, रुपया। खनकेंगी = सिक्कों के टकराने से उत्पन्न आवाजें। बंजर = अनुपजाऊ। अंकुर फूटना = बीज उगाना। बंध्या = अनुपजाऊ, हताश, अधीर। बाट जोहना = प्रतीक्षा करना। पाँवडे = पैरों के नीचे बिछाया जाने वाला कपड़ा, पायदान। अपलक = दृष्टि गड़ाकर। तृष्णा = लालसा। सन्दर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित ‘ धरती कितना देती है’ शीर्षक कविता से लिया गया है। इसके रचयिता छायावादी कवि सुमित्रानन्दन पन्त हैं। कवि अपने बचपन की एक घटना का उल्लेख कर रहा है। उसने अबोध अवस्था में जमीन में पैसे बोये थे। उसका यह कार्य ठीक ही था। व्याख्या – कवि कहता है कि धरती से हमको बहुत-सी चीजें प्राप्त होती हैं। बचपन में कवि ने छिपकर जमीन में पैसे बो दिए थे। उसने सोचा था कि इन पैसों से पेड़ उगेंगे। इन पेड़ों पर रुपयों की खनकदार फसलें पैदा होंगी। तब उसके पास बहुत-सा धन हो जायेगा और वह फल-फूलकर मोटा हो जायेगा तथा धनवान सेठ बन जायेगा। किन्तु ऐसा नहीं हुआ। अनुपजाऊ भूमि में बोए गए रुपयों में से एक से भी रुपया नहीं उगा। उस अनुपजाऊ मिट्टी से एक भी रुपया नहीं उपजा। कवि ने जो सेठ बनने की कल्पना की थी वह फलीभूत नहीं हुआ। उसके सपने साकार नहीं हुए। कवि निराश हो गया। वह कुछ दिन तक प्रतीक्षा करता रहा कि पैसे उगेंगे। जिस प्रकार किसी सम्माननीय मनुष्य के आने पर उसके रास्ते में कपड़ा बिछाकर उसका स्वागत किया जाता है, उसी प्रकार कवि अपनी बचपन की कल्पना में डूबकर रुपयों के उगने और पौधे बनने की प्रतीक्षा करता रहा। कवि बच्चा था और उसको ज्ञान नहीं था। रुपये उगकर पौधे नहीं बनते। उसने गलत बीज बोये थे। रुपयों के रूप में उसने ममता और तृष्णा को बोया था। विशेष –
2. अर्धशती हहराती निकल गई तब से, शब्दार्थ – अर्धशती = पचास वर्ष, आधा जीवन। मधु = बसन्त। शरदें = वर्षा के बाद की हल्की सर्दी की ऋतु। हेमन्त = पौष के महीने की जमाने वाली सर्दी। ऊदी = काला-बैंगनी रंगे। लालसा = लालच। कजरारे = काजल जैसे। कौतूहल = जिज्ञासा। तह = मिट्टी की परत। मणि माणिक्य = बहुमूल्य रत्न। सन्दर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित ‘ धरती कितना देती है’ शीर्षक कविता से उद्धृत है। इसके रचयिता सुमित्रानन्दन पंत हैं। कवि ने बचपन में अज्ञानवश भूमि में पैसों के बीज बोये थे। वे अंकुरित नहीं हुए। कवि इस घटना को भूल गया। तब से उसके जीवन के पचास वर्ष बीत गए। अनेक ऋतुएँ आईं और चली गईं। व्याख्या – कवि कहता है कि बचपन की उस घटना को हुए जीवन के पचास वर्ष बीत गए हैं। अनेक बार वसन्त और पतझड़ की ऋतुएँ आईं और चली गई हैं। अनेक बार ग्रीष्म ऋतु में खूब गर्मी पड़ी है। वर्षा ऋतु भी अनेक बार आई और पेड़-पौधे फूले-फले हैं। वर्षा ऋतु के उपरान्त शरद् का हल्का-फुल्का ठंडा मौसम आया-गया है। हेमन्त ऋतु भी अनेक बार आई-गई है, जब तेज सर्दी के कारण मुँह से ‘सी-सी’ की आवाजें निकलती हैं। हेमन्त ऋतु भी अनेक बार आई और शरीर बर्फीली ठंड से काँप उठा था। इस प्रकार अनजाने ही पिछले पचास वर्ष बीत गये, फिर एक बार काले बादल पृथ्वी पर जल बरसाने लगे। उनके कारण धरती पर घना अंधकार छा गया। धरती की सतह गीली हो गई। कवि ने जिज्ञासापूर्वक अपने आँगन की गीली मिट्टी को उँगली से कुरेदा और उसके नीचे सेम के बीज दबा दिए। उन बीजों के के रूप में उसने धरती के आँचल में मूल्यवान रत्न बाँध दिए थे। विशेष –
3. मैं फिर भूल गया इस छोटी सी घटना को, शब्दार्थ – हर्ष-विमुख = प्रसन्नता के कारण सुध-बुध खोना। विस्मय = आश्चर्य। नवागत = नए आगन्तुक, पौधे। पताको = झंडा। उल्लास = प्रसन्नता। उत्सुक = इच्छुक। डिम्ब= झण्डी।। सन्दर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित ‘धरती कितना देती है’ शीर्षक कविता से लिया गया है। इसके रचयिता सुमित्रानन्दन पंत हैं। कवि ने बरसात में अपने घर के आँगन की गीली मिट्टी में सेम के बीज दबा दिये थे। इसके बाद उसको इसके बारे में कुछ याद नहीं रहा। व्याख्या – पंतजी कहते हैं कि वह यह भूल गए कि उन्होंने अपने घर के आँगन में सेम के बीज बो दिए थे। घटना बहुत मामूली थी तथा इसमें स्मरण रखने योग्य कोई बात नहीं थी। एक दिन शाम के समय वह आँगन में टहल रहे थे। अचानक उन्होंने जो देखा उससे वह अत्यधिक प्रसन्न हुए, सुध-बुध खो बैठे तथा आश्चर्यचकित हो उठे, उन्होंने देखा कि आँगन में अनेक नए छोटे पौधे उग आए हैं। वे पौधे उनके छोटे-छोटे छाते लगाए हुए आगन्तुकों के समान प्रतीत हुए। कवि उनको छाते अथवा विजय की घोषणा करने वाले झण्डे भी कह सकते थे अथवा इन्होंने अपनी छोटी-छोटी प्यारी हथेलियाँ फैला रखी थीं। कुछ भी कहें किन्तु वे हरे-भरे तथा प्रसन्नता से भरे पौधे चिड़ियों के अंडे फोड़कर बाहर निकले और पंख फैलाकर उड़ने के लिए उत्सुक बच्चों जैसे प्रतीत हो रहे थे। विशेष –
4. निर्निमेष, क्षणभर में उनको रहा देखता शब्दार्थ – निर्निमेष = अपलक, बिना पलकें झपकाए। रोपे थे = बोये थे। बौने = कम लम्बे। पलटन = सेना का दस्ता। नाटे = ठिगने। अनगिनत = असंख्य। मखमली = कोमल। चंदोवे = तम्बू। बल खा = टेढ़ी-मेढ़ी होकर। बाड़े सी टट्टी = सुरक्षा के लिए लगाई गई पौधों के लिए जालियों की दीवार। हरे-हरे सौ झरने = अनेक हरी-भरी लताएँ। सन्दर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित ‘धरती कितना देती है’ शीर्षक कविता से उद्धृत है। इसके रचयिता सुमित्रानन्दन पंत हैं। कवि ने देखा कि उसके आँगन में अनेक नए पौधे उग आये हैं। उनको दखकर वह विस्मित हो उठा। वे पौधे छाते लगाये नवीन आगन्तुकों की तरह प्रतीत हो रहे थे। व्याख्या – कवि अपने आँगन में उगे हुए सेम के नए पौधों को कुछ देर तक एकटक देखता रहा। अचानक उसको याद आया कि कुछ दिन पहले उसने आँगन में सेम के बीज बोये थे। वे ही आज छोटे-छोटे पौधों के रूप में उग आए थे। छोटे पौधों की यह सेना कवि के नेत्रों के सामने गर्व के साथ खड़ी थी और अपने छोटे नाटे पैर पटककर मानो कह रही थी। कवि उनको देखता रहा। धीरे-धीरे वे पौधे असंख्य पत्तियों से लद गए और अनेक झुरमुट छोटे-छोटे तम्बुओं की तरह तन गए। सेम की बेलें एक-दूसरे से लिपटकर आँगन में फैल गईं और लहराने लगीं। वे सुरक्षा के लिए लगाई गई पेड़-पौधों की दीवार का सहारा लेकर ऊपर की ओर बढ़ने लगीं। वे हरे रंग के सैकड़ों ऊपर की ओर फूटने वाले झरनों के समान प्रतीत हो रही थीं। विशेष –
5. मैं अवाक् रह गया-वंश कैसे बढ़ता है। शब्दार्थ – अवाक् = मौन, चुप । वंश = परिवार । छितरे-बिसरे = बिखरे हुए। श्यामल = हरी-हरी। लता = बेल। मावस = अमावस्या। बूटे = फूल। पन्ना = हरे रंग का एक रत्न। चन्द्रकला = चन्द्रमा की किरण। लड़ी = माला । कचपचिया = पूर्व दिशा में उगे तारों का एक समूह। सन्दर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित ‘धरती कितना देती है’ शीर्षक कविता से उद्धृत है। इसके रचयिता सुमित्रानन्दन पंत हैं। कवि ने अपने घर के आँगन में सेम के बीज रोपे थे। वे बार-बार पौधों के रूप में उगे और देखते-देखते बेलों के रूप में चारों ओर फैल गए। उन पर कई हरे-हरे चॅदोवे टॅग गए। व्याख्या – कवि कहता है कि बेलें तेजी के साथ विकसित हुईं तो कवि ने देखा कि परिवार किस तरह तेजी से बढ़ता है। यह देखकर वह इतना विस्मित हुआ कि कुछ भी बोल नहीं सका। उन हरी-हरी लहराती बेलों पर तारों के समान बिखरे हुए, पौधों से लिपटे हुए। छोटे-छोटे फूल अत्यन्त सुन्दर लग रहे थे। अमावस्या के हँसमुख आकाश की तरह लग रहे थे अथवा किसी स्त्री की चोटी में गूंथे मोतियों से प्रतीत हो रहे थे अथवा वे किसी सुन्दरी की साड़ी के पल्ले में काढ़े गए फूलों के समान लग रहे थे। कुछ समय पश्चात् इन फूलों से फलियाँ पैदा हुईं। वे असंख्य थीं। वे अत्यन्त प्यारी लग रही थीं। बेलों में अनगिनत पतली-चौड़ी फलियाँ लद गई थीं। वे फलियाँ उँगलियों के समान लम्बी र्थी । वे लम्बी-लम्बी तलवारों के समान थीं। वे पन्ने से बने गलहारों की तरह थीं। कवि कहता है। कि उसके इस कथन को झूठ न समझा जाये। ये फलियाँ चन्द्रमा की किरणों के समान नित्य बढ़ती जाती थीं। वे सच्चे मोतियों की लड़ियों जैसी प्रतीत हो रही थीं। वे इन फलियों के झुण्ड के झुण्ड बेलों पर लटके थे। वे आकाश में पूर्व दिशा में उगने वाले झिलमिलाते कचपचिया तारों के समान लग रही थीं। विशेष –
6. आ, इतनी फलियाँ टूटीं, जाड़ों भर खाईं। शब्दार्थ – जाड़ों भर = सर्दी का पूरा मौसम। अभ्यागत = अतिथि। मँगतों = भिखारियों। सन्दर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक में संकलित ‘ धरती कितना देती है’ शीर्षक कविता से उद्धृत है। इसके रचयिता सुमित्रानन्दन पंत हैं। कवि ने अपने घर के आँगन में सेम के बीज बोये थे। उनसे जो बेलें पैदा हुईं, वे खूब फल-फूल। उन पर लगने वाली सेम की अगणित फलियों में कवि ने सभी के साथ मिलकर उपभोग किया। व्याख्या – कवि कहता है कि सेम की बेलों पर पैदा होने वाली फलियाँ असंख्य थीं। उन पर इतनी अधिक फलियाँ लगीं कि पूरे सर्दी के मौसम में खाने पर भी वे समाप्त न हुईं। घर-घर सुबह-शाम इन फलियों की सब्जी बनाई गई । कवि ने उनको अपने पास रहने वाले पड़ोसियों, जान-पहचान वालों तथा अनजान लोगों को बाँटा। फलियाँ इतनी अधिक थीं कि मित्रों, भाइयों, परिवारवालों, अतिथियों तथा भिखारियों ने दिन-रात मन भरकर उनको खाया। मुहल्ले के रहने वाले सभी लोगों ने उन फलियों को खाया। विशेष –
7.
यह धरती कितना देती है, धरती माता शब्दार्थ – प्रसविनी = उत्पन्न करने वाली। वसुधा = पृथ्वी । दाने = ‘बीज। समता = काम करने की सामर्थ्य । उगल सके = पैदा कर सके। धूलि = मिट्टी। सुनहरी = बहुमूल्ये। सन्दर्भ तथा प्रसंग – प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक में संकलित ‘धरती कितना देती है’ शीर्षक कविता से उद्धृत है। इसके रचयिता सुमित्रानन्दन पंत हैं। कविवर पंत ने बताया है कि यह तो अत्यन्त उदार है। वह हमारी माता है तथा अपनी संतान के भरण-पोषण के लिए अनेक चीजें पैदा करती है। मनुष्य को उसमें सही बीज बोने चाहिए। व्याख्या – कवि कहता है कि यह पृथ्वी हमारी माता है। यह अपनी प्यारी संतान की जरूरतें पूरा करने के लिए के लिए जी भरकर चीजें प्रदान करती है। यह धरती हमको बहुत कुछ देती है। कवि धरती माता की इस महिमा को बचपन में समझ नहीं सका था और उसने लोभ में पड़कर स्वार्थ पूरा करने के लिए पैसे बो दिए थे। कवि यह समझ गया है कि यह धरती अनेक रत्नों को पैदा करने वाली है, किन्तु सही बीज बोकर ही इससे अच्छी फसलें पैदा की जा सकती हैं। कवि कहता है कि मनुष्य इस धरती में सच्ची ममत्व भाव के बीज बोये। वह इसमें लोगों की काम करने की सामर्थ्य के बीज बोये। मनुष्य इसमें मानवता की ममता के बीज बोये। यदि वह ऐसा करेगा तो मिट्टी से मूल्यवान फसलें उत्पन्न होंगी। मनुष्य के परिश्रमपूर्ण जीवन से सभी दिशाएँ हँस उठेगी। कवि कहना चाहता है कि लोगों को धरती पर एक-दूसरे के प्रति ममता की भावना का विकास करना चाहिए तथा अपनी कार्यक्षमता में वृद्धि करनी चाहिए। मनुष्यों के बीच समानता का भाव उत्पन्न करना चाहिए। जब लोगों में परस्पर प्रेम होता है, तब वे कार्य करने में उत्कृष्ट तथा उन्नत होते हैं। हम जैसी बीज बोयेंगे, वैसे ही फल उसे प्राप्त होंगे। मनुष्य जैसा कार्य करता है, उसका वैसा ही परिणाम उसको मिलता है। विशेष –
RBSE Solutions for Class 12 Hindi |