एक कुत्ता और एक मैना पाठ में क्या संदेश बताया गया है? - ek kutta aur ek maina paath mein kya sandesh bataaya gaya hai?

जीवन परिचय – हिन्दी आलोचना के चंद्र तथा ललित निबंध के सूर्य माने जाने वाले आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी का जन्म सन् 1907 ई. में उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के छपरा नामक गाँव में हुआ था। उनके पिता का नाम अनमोल दुबे था जो बड़े ही अध्ययनशील थे। इनकी माता का नाम ज्योतिकली था। द्विवेदी जी ने पिता के संस्कारों को अपनाते हुए उन्होंने किशोरावस्था में ही उपनिषदों तथा अन्य दर्शन ग्रंथों का अध्ययन कर लिया था। उनकी आरंभिक शिक्षा घर में हुई थी। इन्होंने काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से ज्योतिष शास्त्र तथा साहित्य में आचार्य की उपाधि हासिल की। इसके उपरान्त इन्होंने शांति निकेतन में अध्यापन कार्य किया। रविन्द्रनाथ टैगोर के सानिध्य में आकर उन्होंने लेखन कार्य शुरू कर दिया। वे काशी हिंदू विश्वविद्यालय, पंजाब विश्वविद्यालय तथा शांतिनिकेतन आदि के हिंदी विभाग के प्रमुख रहे। सन् 1957 में भारत सरकार ने उन्हें ‘पद्मभूषण’ से सम्मानित किया। वे आजीवन भारत सरकार की शैक्षिक एवं साहित्यिक सेवा में रत रहे। सन् 1979 में उनका स्वर्गवास हो गया।

रचनाएँ – द्विवेदी जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। वे उपन्यासकार, साहित्यकार, तथा आलोचक थे। उनकी रचनाएँ इस प्रकार हैं –

निबंध – विचार – प्रवाह, अशोक के फूल, विचार और वितर्क, कुटज, कल्पलता।

आलोचना – मध्यकालीन धर्म-साधना, सूरसाहित्य, कबीर, साहित्य सहचर, नाथ सम्प्रदाय, लालित्य मीमांसा, कालिदास की लालित्य योजना।

इतिहास – हिंदी साहित्य का आदिकाल, हिंदी साहित्य  की भूमिका ।

उपन्यास-चारू चंद्रलेख, अनामदास का पोथा, पुनर्नवा, बाणभट्ट की आत्मकथा ।

साहित्यिक विशेषताएँ – आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने अनेक विधाओं पर अपनी लेखनी चलाई। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंधों में विचारों का खुलापन, विनोदप्रियता तथा चिंतन की गहराई देखने को मिलती है। उन्होंने भारतीय संस्कृति का सही रूप में चित्रण किया। उनका चिंतन भेदभाव से ऊपर है। उनमें समन्वय और मानवतावाद की भावनाएँ प्रबल है। वे पशुओं प्रक्षियों से भी मानव की तरह व्यवहार करते है।

भाषा-शैली – द्विवेदी जी की भाषा को ‘प्रसन्न भाषा’ कहा जाता है। वे गहरे से गहरे विषय को मौज-मौज में लिखे डालते है। उनकी भाषा में तत्सम, तद्भव, तथा उर्दू के शब्दों का मिला-जुला प्रयोग मिलता है। उनकी अभिव्यक्ति प्रवाहपूर्ण है। मुहावरे के प्रयोग से भाषा में सरलता तथा बोधगम्यता आ गई है। द्विवेदी जी ने मानवीयकरण शैली का प्रयोग किया है।

पाठ का सार

‘एक कुत्ता और एक मैना’ संस्मरण निबंध है। निबंध में लेखक ने पशु-पक्षियों के प्रति मानवीय प्रेम का प्रदर्शन किया है तथा साथ ही पशु-पक्षियों से मिलने वाले प्रेम, भक्ति, विनोद और करुणा जैसे मानवीय भावों का उल्लेख भी मिलता है। इसमें द्विवेदी जी ने आचार्य रवीन्द्रनाथ टैगोर और उनके कुत्ते तथा मैना के रोचक संस्मरण प्रस्तुत किए है। पाठ का सार इस प्रकार है-

एक बार स्वास्थ्य ठीक न होने के कारण रवीन्द्रनाथ टैगोर ने सोचा कि वे शंतिनिकेतन को छोड़कर अपने पुराने तिमंजिले मकान में रहें। वे ऊपर के तल्ले में रहने लगे। एक दिन लेखक ने सपरिवार उनसे मिलने की ठानी।

रवीन्द्रनाथ उन्हें देखते ही बोले- ‘दर्शनार्थी हैं क्या? हुआ यह कि एक बार लेखक ने किसी अतिथि के बारे में रवीन्द्रनाथ को यह कह दिया- ‘यह आपके दर्शन करने आया है। अब वे लेखक से पूँछते है कि-‘दर्शनार्थी लेकर आए हो क्या?

छुटिट्यों के दिनों में लेखक जब रवीन्द्रनाथ जी के पास पहुँचा तो उस समय वे अकेले तथा प्रसन्नचित होकर कुर्सी पर बैठे अस्त सूर्य को देख रहे थे। उन्होंने लेखक से कुशलक्षेम पूछा। उसी समय उनका कुत्ता उनके पास आकर पूछँ हिलाने लगा। गुरूदेव ने उसकी पीठ पर हाथ फेरा। वह आनंदित हो उठा। वे लेखक से बोले- “देखा, यह न मालूम यहाँ कैसे आ पहुँचा। इसके चेहरे पर कितनी तृप्ति है?”

इसी कुत्ते को लक्ष्य में रखकर उन्होंने ‘आरोग्य’ में एक कविता लिखी थी। उसमें गुरूदेव ने लिखा कि यह कुत्ता मेरा स्पर्श पाकर आनंद से उमंग में भर जाता है। इस मूक प्राणी में मानव की मानवता पहचानने की शक्ति है। इसके सारे व्यवहार में दीनता और आत्मनिवेदन का भाव है। इसकी करुणा समझती तो सब है, लेकिन समझा नहीं पातौ परन्तु इसे देखकर मैं सच्ची मनुष्यता को समझ पाता हूँ।

लेखक गुरूदेव की मर्मभेदी दृष्टि पर हैरान है जिसने कुत्ते में भी विशाल मानव-सत्य को देख लिया। आश्चर्य की बात तो यह है कि जब रवीन्द्रनाथ टैगोर की चिताभस्म आश्रम में लाई गई तो यह कुत्ता भी आश्रम-वासियों के साथ उत्तरायण तक गया। यह चिता भस्म के पास थोड़ी देर चुप-चाप बैठा रहा।

एक दिन शांति निकेतन के बगीचे में सुबह सुबह टहलवे हुए गुरूदेव ने पूछा लिया- “आश्रम के कौए कहाँ गए ?” इस प्रश्न से लेखक को समझ में आया कि कौए भी प्रवासी होते है। लगभग एक सप्ताह बाद कौए दिखाई दिए।

एक दिन सवेरे-सवेरे लेखक गुरूदेव के पास आए। सामने एक लँगड़ी मैना फुदक रही थी। गुरूदेव ने कहा, यह यूथभ्रष्ट है। रोज फुदकती रहती है। इसकी चाल में करुण भाव है। लेखक को उसमें करुणा दिख रही थी ।

लेखक के मकान में दीवारों में कुछ सुराखें हैं, जिसमें एक मैना दंपत्ति ने घोंसला बना लिया। एक दिन लेखक ने दीवार की सुराखें बंद कर दी। परन्तु फिर भी वे बचे हुए जगह पर घोंसला बना लेते है। लेखक को लगता है कि वे प्रसन्नता से नाचते गाते हैं। मैना दंपति लेखक के परिवार को फालतू समझता है। मादा मैना तो कहती है- ‘इन्हें हमारे घर में नहीं आना चाहिए।

लेखक को यह विश्वास नहीं था कि मैना करुण स्वभाव वाली है, परंतु गुरुदेव की बातें सुनकर उसे विश्वास हो गया। उसे लगा मैना अपने जीवन साथी से बिछुड़ गई है, वह वियोगिन है। गुरूदेव ने उस पर कविता लिखी है। जिसका आशय है- “यह मैना अपने दल से अलग क्यों है? यह अकेले लँगड़ा रही है। न जाने यह अपने समाज से अलग क्यों है?

इस कविता को पढ़कर लेखक के सामने मैना की करुण मूर्ति साकार हो उठती है। लेखक हैरान होता है कवि किस तरह मैना के मर्मस्थल तक पहुँच गया। उसी शाम मैना उड़ गई। कवि को उसका गायब होना बहुत ही करुण लगा, उसका हृदय दयाद्रवित हो गया।

पाठ्य पुस्तक पर आधारित महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर 

प्रश्न 1. गुरुदेव ने शांतिनिकेतन को छोड़ कर कहीं और रहने का मन क्यों बनाया ?

उत्तर- गुरुदेव कुछ दिनों से अस्वस्थ चल रहे थे। वे असमय मिलने-जुलने आने वालों से परेशान थे। आराम, शांति और एकांत की आवश्यकता महसूस कर रहे थे। अतः उन्होंने एकांत, शांति और आराम के लिए शांति निकेतन छोड़ने का मन बनाया।

प्रश्न 2. “मूक प्राणी भी कम संवेदनशील नहीं होते। ” पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए ।

उत्तर- मूक प्राणी भी कम संवेदनशील नहीं होते है। यह तब उद्घाटित हुआ जब गुरुदेव श्री निकेतन के तितल्ले भवन में आकर रहने लगे। उनका एक कुत्ता उनको खोजते- खोजते वहाँ आ गया। गुरुदेव की मृत्यु की उपरांत वह कुत्ता अस्थिकलश के पास कुछ देर तक उदास बैठा रहा अन्य लोगों की तरह ही उसने भी शोक प्रकट किया।

प्रश्न 3. गुरुदेव द्वारा मैना को लक्ष्य करके लिखी कविता के मर्म को लेखक कब समझा पाया?

उत्तर- गुरुदेव द्वारा मैना को लक्ष्य करके लिखी गई कविता का मर्म लेखक तब समझ पाया, जब उसने गुरुदेव की लिखी इस आशय की कविता पढ़ी कि मैना कीड़ों को चुनकर गिरे पत्ते पर उछल-कूद रही है, जबकि अन्य मैनाएँ शिरीष वृक्ष पर बैठी बक- झक कर रही हैं।

प्रश्न 4. प्रस्तुत पाठ एक निबन्ध है। निबन्ध गद्य – साहित्य की उत्कृष्ट विधा है, जिसमें लेखक अपने भावों और विचारों को कलात्मक और लालित्यपूर्ण शैली में अभिव्यक्त करता है। इस निबन्ध में उक्त विशेषताएँ कहाँ झलकती हैं? किन्हीं चार का उल्लेख कीजिए।

उत्तर- लेखक ने अपने भावों और विचारों को कलात्मक एवं ललित्यपूर्ण शैली में अभिव्यक्त किया है। विशेषताएँ निम्नलिखित स्थानों पर झलकती हैं

(1) आश्रम के अधिकांश लोग बाहर चले गए। एक दिन हमने सपरिवार उनके ‘दर्शन’ की ठानी।

(2) यहाँ दुख के साथ कह देना चाहता हूँ कि अपने देश के दर्शानार्थियों में कितने ही इतने प्रगल्भ होते कि समयअसमय, स्थान- अस्थान, अवस्था – अनवस्था की एकदम परवाह नहीं करते थे और रोकते रहने पर भी आ ही जाते थे। ऐसे दर्शनार्थियों से गरुदेव भीत-भीत रहते थे। अस्तु, मैं मय बाल-बच्चों के एक दिन श्री निकेतन जा पहुँचा।

(3) उस समय एक लँगड़ी मैना फुदक रही थी। गुरुदेव ने कहा, “देखते हो, यह यूथभ्रष्ट है। रोज फुदकती है, ठीक आकर मुझे इसकी चाल में एक करुण भाव दिखाई देता है।”

(4) पक्षियों की भाषा तो मैं नहीं जानता, पर मेरा निश्चित विश्वास है कि, उनमें कुछ इस तरह की बातें हो जाया करती हैं

पत्नी- ये लोग यहाँ कैसे आ गए जीं?

पति-ऊँह बेचारे आ गए हैं, तो रह जाने दो। क्या कर लेंगे!

पत्नी-लेकिन फिर भी इनको इतना तो ख्याल होना चाहिए कि यह हमारा प्राइवेट घर है।

पति- आदमी जो हैं, इतनी अकल कहाँ ?

प्रश्न 5. गुरुदेव किस तरह के दर्शनार्थियों से परेशान रहते थे?

उत्तर- गुरुदेव से मिलने आने वालों में कुछ ऐसे थे, जो बहुत बातें करते थे। उनकी अधिकांश बातें निरर्थक हुआ करती थीं। वे गुरुदेव के पास आते हुए समय- असमय, स्थान आदि की तनिक भी चिंता नहीं करते थे। वे मना करने पर भी अन्दर आ जाते थे। गुरुदेव का स्वास्थ्य अच्छा नहीं था, इसलिए वे ऐसे दर्शनार्थियों से परेशान रहते थे।

प्रश्न 6. इस प्रकार कवि की मर्मभेदी दृष्टि ने इस भाषाहीन प्राणी की करुणा दृष्टि के भीतर उस विशाल मानव-सत्य को देखा है, जो मनुष्य, मनुष्य के अन्दर भी नहीं देख पाता। पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- अपने पास बैठे कुत्ते की पीठ पर गुरुदेव ने हाथ फेरा तो कुत्ते का रोम-रोम उनके स्नेह का अनुभव करने लगा। कुत्ते के पास इसे बताने के लिए वाणी नहीं थी, पर कवि (गुरुदेव) की दृष्टि उसके मर्म को समझ गयी है। प्रेम का अनुभव विशाल मानव सत्य है । साधारण मनुष्य इस भावना को अनुभव नहीं कर पाते हैं। कवि की दृष्टि ने उस प्राणी के भीतर भी इसे अनुभव कर लिया।

प्रश्न 7. गुरुदेव का कुत्ता उनसे विशेष लगाव रखता था, इसे प्रमाणित करने वाली घटना का उल्लेख कीजिए।

उत्तर- गुरुदेव का कुत्ता उनसे विशेष लगाव रखता था। यह बात इस घटना से साबित होती है कि वह कुत्ता भी अन्यान्य लोगों के साथ शांतभाव से उत्तरायण तक गया और चिताभस्म के कलश के पास थोड़ी देर तक चुपचाप बैठा भी रहा।

प्रश्न 8. गुरुदेव ने एकांत विहार करने वाली मैना तथा अन्य मैनाओं के बारे में क्या लिखा है?

उत्तर- गुरुदेव ने लिखा है कि वह मैना, जो एकांत विहार कर रही है, एक पैर से लँगड़ा रही है, वह अपने दल से अलग होकर कीड़ों का शिकार करती है तथा पेड़ के गिरे पत्तों पर फुदकती है। इसके विपरीत, कुछ ही दूरी पर अन्य मैनाएँ शिरीष के वृक्ष की शाखाओं पर बक- झक कर रही हैं। वे हरी घास पर उछल-कूद कर रही हैं तथा प्रसन्नचित हैं।

प्रश्न 9. ‘एक कुत्ता और एक मैना’ पाठ का प्रतिपाद्य अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर- ‘एक कुत्ता और एक मैना’ पाठ में लेखक ने पशुपक्षियों के प्रति मानवीय प्रेम का प्रदर्शन किया है। उसने इन निरीह प्राणियों से मिलने वाले प्रेम, भक्ति, करुणा तथा विनोद जैसे मानवीय भावों का भी उल्लेख किया है। लेखक ने कुत्ते और मैना के माध्यम से मानवीय और संवेदनशील जीवन का बहुत सूक्ष्म और गहनता से निरीक्षण किया है तथा हमें इन प्राणियों से प्यार करने का संदेश दिया है। लेखक ने बताया है कि गुरुदेव ने अपनी कविताओं में ‘कुत्ते’ और ‘मैना’ आदि पशु-पक्षियों को भी अपनी कविता का प्रतिपाद्य विषय बनाया है तथा यह बताने का प्रयास किया है कि पशु हो या पक्षी, उनमें भी हमारी ही तरह भावनाएँ और संवेदनाएँ हैं। वे भी हमारी ही तरह दुःख-सुख का अनुभव करते हैं।

प्रश्न 10. गुरुदेव ने जब शांतिनिकेतन को छोड़कर अन्यत्र रहने का मन बनाया, उस समय उनकी शारीरिक दशा कैसी थी ?

उत्तर- गुरुदेव ने जब शांतिनिकेतन को छोड़कर अन्यत्र रहने का मन बनाया, उस समय उनका स्वास्थ्य अच्छा नहीं था। वे वृद्ध और क्षीण शरीर हो चुके थे। दूसरी-तीसरी मंजिल तक सीढ़ियाँ चढ़ पाना उनके लिए सम्भव नहीं था। उनको ऊपर ले जाने में बड़ी कठिनाई होती थी।

प्रश्न 11. ‘पशुओं में भी संवेदनशीलता होती है’- एक कुत्ता और एक मैना नामक पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- ‘एक कुत्ता और एक मैना’ नामक पाठ में लेखक ने गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर के एक कुत्ते के माध्यम से स्पष्ट किया है कि पशुओं में भी संवेदनशीलता होती है। वे भी मनुष्यों जैसे ही संवेदनशील प्राणी हैं। यह अलग बात है कि इन मूक प्राणियों को हमारी भाषा में संवेदना व्यक्त करना नहीं आता है और जिस प्रकार से संवेदना व्यक्त करते हैं, उसे देखने और समझने की अन्तर्दृष्टि या मर्मभेदी दृष्टि हमारे पास नहीं है। पाठ के अनुसार जब गुरुदेव श्री निकेतन में आकर रहने लगे तो उनका कुत्ता खोजता हुआ वहाँ भी पहुँच गया। गुरुदेव का स्पर्ष पाकर उसका रोम-रोम तक आनन्दरस में डूब गया। गुरुदेव की मृत्यु के बाद अस्थि कलश ले जाते हुए अन्य लोगों के साथ उसका उत्तरायण तक जाना, अस्थिकलश के पास कुछ देर तक शांत होकर चुपचाप बैठना आदि देखकर यह स्पष्ट हो जाता है कि पशुओं में भी संवेदनशीलता होती है।

प्रश्न 12. मैना को देखते समय गुरुदेव और लेखक की दृष्टि में क्या अन्तर था ?

उत्तर-मैना को देखते समय गुरुदेव और लेखक की दृष्टि में यह अन्तर था कि लेखक को मैना की चाल में छिपा करुण भाव नहीं दिख रहा था। वह तो यही समझता था कि मैना अनुकंपा दिखाने वाला पक्षी है, जबकि गुरुदेव को मैना का करुण भाव, उसकी चाल में दिख रहा था। उसे यूथभ्रष्ट समझते थे।

प्रश्न 13. लंगड़ी मैना के बारे में लेखक ने क्या अनुमान लगाया?

उत्तर- गुरुदेव की बात पर गहराई से विचार करने पर लेखक ने महसूस किया कि सचमुच ही उसके मुँह पर एक करुण भाव है। उसने अनुमान लगाया कि शायद यह विधुर पति था, जो पिछली स्वयंवर सभा के युद्ध में आहत और परास्त हो गया था, या विधवा पत्नी है, जो पिछले बिडाल के आक्रमण के समय पति को खोकर ईषत् चोट खाकर एकांत विहार कर रही है।

प्रश्न 14. गुरुदेव द्वारा लिखी कविता पढ़कर मैना के बारे में लेखक की सोच में क्या बदलाव आया?

उत्तर- लेखक जिस मकान में रहता था, उस मकान के निर्माताओओं ने दीवार में चारों ओर एक-एक सुराख छोड़ रखी थी। उन्हीं सुराखों में एक मैना दंपत्ति नियमित रूप से प्रतिवर्ष अपनी गृहस्थी बसा लिया करते थे। वे उसमें प्रसन्न होकर नाचते और मधुर तथा विजयोघोषी वाणी में गान किया करते थे। यह सब देखकर लेखक को लगता था कि मैना करुण भाव दिखाने वाला पक्षी हो ही नहीं सकता है। जब उसने गुरुदेव द्वारा लगड़ी मैना पर लिखी कविता पढ़ी और उस पर गहराई से विचार किया, तो उसे ध्यान आया कि सचममुच ही उस मैना के मुँह पर करुण भाव है। इस प्रकार गुरुदेव की कविता पढ़कर मैना की करुण दशा के बारे में लेखक की सोच में बदलाव आया।

प्रश्न 15. “गुरुदेव मनुष्यों के साथ ही नहीं, वरन् पशुओं से भी आत्मीयता रखते थे-“एक कुत्ता और एक मैना” पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।

उत्तर-लेखक जब गुरुदेव से मिलने गया था, उसी समय उनका कुत्ता उनको ढूँढता हुआ वहाँ आ गया। वह गुरुदेव के पैरों के पास खड़ा होकर पूँछ हिलाने लगा। गुरुदेव ने उसकी पीठ पर हाथ फेरा। वह आँखें बंद किए हुए अपने रोम-रोम से उस स्नेह रस का अनुभव करने लगा। इससे पता लगता है, गुरुदेव पशुओं से भी आत्मीयता रखते थे।

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. सही विकल्प द्वारा रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए –

(i) गुरुदेव शब्द ……….. के लिए प्रयोग में आया है।  (महर्षि अरविन्द / रवीन्द्रनाथ टैगोर )

(ii) सर्वव्यापक पक्षी ………… है। (चील/कौआ)

(iii) ‘निर्वासन’ का अर्थ है ………… । ( प्रवेश देना / निकाला देना)

(iv) गुरुदेव ………….. होने से अन्यत्र जाना चाहते थे। (स्वस्थ / अस्वस्थ )

(v) गुरुदेव कुत्ते की ………… भावना पर मुग्ध थे। (द्वेष / प्रेम)

उत्तर- (i) रवीन्द्रनाथ टैगोर, (ii) कौआ, (iii) निकाला देना, (iv) अस्वस्थ, (v) प्रेम ।

प्रश्न 2. सत्य / असत्य बताइए-

(i) शांति निकेतन में गुरुदेव अस्वस्थ रहने लगे थे।

(ii) गुरुदेव हजारी प्रसाद द्विवेदी थे।

(iii) बगीचे में गुरुदेव के साथ उनका कुत्ता था।

(iv) कौआ सर्वव्यापक पक्षी है।

(v) लेखक ने आधुनिक साहित्यकारियों को कौए की उपमा दी है।

उत्तर- (i) सत्य, (ii) असत्य, (iii) असत्य, (iv) सत्य, (v) सत्य।

प्रश्न 3. एक वाक्य में उत्तर दीजिए –

(i) क्षिति मोहन सेन कौन थे।

(ii) सर्वव्यापक पक्षी कौन है?

(iii) यूथभ्रष्ट का क्या अभिप्राय है?

(iv) गुरुदेव कुत्ते की किस विशेषता पर मुग्ध थे ?

(v) लेखक ने कौओं की उपमा किससे की है?

उत्तर- (i) क्षिति मोहन सेन एक प्रकाण्ड विद्वान और स्वतंत्रता. संग्राम सेनानी थे।

(ii) सर्वव्यापक पक्षी कौआ है।

(iii) यूथभ्रष्ट का अभिप्राय है जो अपने समूह से भ्रष्ट है।

(iv) गुरुदेव कुत्ते की प्रेम भावना पर मुग्ध थे।

(v) लेखक ने कौओं की उपमा आधुनिक साहित्यकारों से की है।

महत्वपूर्ण गद्यांश एवं सम्बन्धित प्रश्नोत्तर 

गद्यांश 1. “आज से कई वर्ष पहले गुरुदेव के मन में आया कि शांतिनिकेतन को छोड़कर कहीं अन्यत्र जाएँ। स्वास्थ्य बहुत अच्छा नहीं था। शायद इसलिए या पता नहीं क्यों, तै पाया कि वे श्रीनिकेतन के पुराने तिमंजिले मकान में कुछ दिन रहें। शायद मौजद में आकर ही उन्होंने यह निर्णय किया हो। वे सबसे ऊपर के तल्ले में रहने लगे। उन दिनों ऊपर तक पहुँचने के लिए लोहे की चक्करदार सीढ़ियाँ थीं, और वृद्ध और क्षीणवपु रवीन्द्रनाथ के लिए उस पर चढ़ सकना असम्भव था। फिर भी बड़ी कठिनाई से उन्हें वहाँ ले जाया जा सका।”

प्रश्न 1. ‘गुरुदेव’ शब्द किसके लिए प्रयुक्त है? उत्तर- गद्यांश में ‘गुरुदेव’ शब्द का प्रयोग लेखक ने रवींद्रनाथ टैगोर के लिए किया है।

प्रश्न 2. शांतिनिकेतन छोड़कर अन्यत्र कहाँ जाना तय किया गया? गुरुदेव ने अन्यत्र जाने के लिए क्यों सोचा?

उत्तर- गुरुदेव ने शांतिनिकेतन छोड़कर श्री निकेतन के पुराने तिमंजिले मकान में जाना इसलिए तय किया कि वे प्राय बीमार रहते थे। उनका स्वास्थ्य अच्छा नहीं था वे श्री निकेतन में शान्तिपूर्वक रहना चाहते थे।

प्रश्न 3. गुरुदेव को कहाँ ले जाना कठिन था तथा क्यों?

उत्तर – गुरुदेव को श्रीनिकेतन के पुराने तिमंजिले मकान के सबसे ऊपरी तल्ले पर ले जाना कठिन था। कारण वहाँ पर ऊपर जाने के लिए लोहे की चक्करदार सीढ़ियाँ लगी हुईं थी। स्वयं कमजोर एवं अशक्त हो गए थे।

गद्यांश 2. “उन दिनों छुट्टियाँ थीं। आश्रम के अधिकांश लोग बाहर चले गए थे। एक दिन हमने सपरिवार उनके ‘दर्शन’ की ठानी। ‘दर्शन’ को मैं जो यहाँ विशेष रूप से दर्शनीय बनाकर लिख रहा हूँ, उसका कारण यह है कि गुरुदेव के पास जब कभी मैं जाता था तो प्रायः वे यह कहकर मुसकरा देते थे कि ‘दर्शनार्थी हैं क्या?’ शुरु शुरु में मैं उनसे ऐसी बाँग्ला में बात करता था, जो वस्तुतः हिन्दी – मुहावरों का अनुवाद हुआ करती थी। किसी बाहर के अतिथि को जब मैं उनके पास ले जाता था तो कहा करता था, ‘एक भद्र लोक आपनार दर्शनेर जन्य ऐसे छेन’। यह बात हिन्दी में जितनी प्रचलित है, उतनी बाँग्ला में नहीं। इसलिए गुरुदेव जरा मुसकरा देते थे। बाद में मुझे मालूम हुआ कि मेरी यह भाषा बहुत अधिक पुस्तकीय है और गुरुदेव ने उस ‘दर्शन’ शब्द को पकड़ लिया था। इसलिए जब कभी मैं असमय में पहुँच जाता था तो वे हँसकर पूछते थे ‘दर्शनार्थी लेकर आए हो क्या?’ यहाँ यह दुःख के साथ कह देना चाहता हूँ कि अपने देश के दर्शनार्थियों में कितने ही इतने प्रगल्भ होते थे कि समय-असमय, स्थानअस्थान, अवस्था – अनवस्था की एकदम परवा नहीं करते थे और रोकते रहने पर भी आ ही जाते थे। ऐसे ‘दर्शनार्थियों से गुरुदेव कुछ भीत भीत से रहते थे। अस्तु मैं मय बालबच्चों के एक दिन श्रीनिकेतन जा पहुँचा।”

प्रश्न 1. आश्रम के अधिकांश लोग बाहर क्यों गए थे? लेखक ने क्या निश्चय किया।

उत्तर-आश्रम के अधिकांश लोग छुट्टियों के कारण बाहर गए हुए थे। ऐसे में लेखक ने सपरिवार गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर के दर्शन का निश्चय किया और गुरुदेव के आश्रम चले गए।

प्रश्न 2. लेखक से गुरुदेव क्या कहकर मुसकरा देते थे और क्यों?

उत्तर-लेखक से गुरुदेव अकसर यह कहकर मुस्करा देते थे कि ‘दर्शनार्थी है क्या?” क्योंकि उन दिनों लेखक जब भी गुरुदेव के पास जाते थे और किसी बाहर के अतिथि को ले जाते, तो लेखक कहा करते थे “एक भद्र लोक आपनार दर्शनरजन्य ऐसे छेन” यह हिन्दी में जितना प्रचलित है, उतनाला में नहीं। बाद में लेखक को मालूम हुआ कि उनकी भाषा बहुत अधिक पुस्तकीय थी।

प्रश्न 3. लेखक ने दुख के साथ क्या उद्गार व्यक्त किया है?

उत्तर-लेखक श्री हजारी प्रसाद द्विवेदी ने बड़े दुःख के साथ अपने देश के दर्शनार्थियों के गुणों को व्यक्त किया है। उन्होंने लिखा है कि दर्शनार्थियों में कुछ इतने प्रगल्भ होते हैं कि समय-असमय, स्थान, अस्थान, अवस्था, अनावस्था की कोई परवाह नहीं करते हैं।

गद्यांश 3, “गुरुदेव वहाँ बड़े आनन्द में थे। अकेले रहते थे। भीड़-भाड़ उतनी नहीं होता थी, जितनी शांतिनिकेतन में। जब हम लोग ऊपर गए तो गुरुदेव बाहर एक कुर्सी पर चुपचाप बैठे अस्तगामी सूर्य की ओर ध्यान स्थित नयनों से देख रहे थे। हम लोगों को देखकर मुसकराए, बच्चों से जरा छेड़-छाड़ की, कुशल प्रश्न पूछे और फिर चुप हो रहे। ठीक उसी समय उनका कुत्ता धीरे-धीरे ऊपर आया और उनके पैरों के पास खड़ा होकर पूँछ हिलाने लगा। गुरुदेव ने उसकी पीठ पर हाथ फेरा वह आँखें मूंदकर अपने रोम-रोम से उस स्नेह-रस का अनुभव करने लगा। गुरुदेव ने हम लोगों की ओर देखकर कहा, “देखा तुमने, यह आ गए। कैसे इन्हें मालूम हुआ कि मैं यहाँ हूँ, आश्चर्य है! और देखो, कितनी परितृप्ति इनके चेहरे पर दिखाई दे रही है।”

प्रश्न 1. गुरुदेव ध्यान स्मित नयनों से क्या देख रहे थे?

उत्तर-गुरुदेव ध्यान स्मित नयनों से बाहर चुपचाप कुर्सी पर बैठे अस्तगामी सूर्य की ओर देख रहे थे।

प्रश्न 2. गुरुदेव के पैरों के पास आकर कौन खड़ा हो गया? गुरुदेव ने उसके साथ कैसा व्यवहार किया?

उत्तर-गुरुदव के पैरों के पास उनका पालतु कुत्ता आकर खड़ा हो गया। वह अपनी पूँछ हिलाने लगा। गुरुदेव ने उसे देखा और उसकी पीठ पर हाथ फेरकर अपने स्नेह से उसे सिंचित कर उसे सन्तुष्ट किया।

प्रश्न 3. कुत्ते के चेहरे पर कौन-सा भाव दिखाई दे रहा था और क्यों?

उत्तर-कुत्ता गुरुदेव के स्पर्श से आह्नाहित था। उसका रोम-रोम गुरुदेव के स्नेह रस का अनुभव कर रहा था। इस आनन्द के क्षण की वह अपनी आँखें बूंदकर समेट रहा था। कुत्ते के चेहरे पर परितृप्ति का भाव स्पष्ट परिलक्षित हो रहा था। कारण वह अपने परम के स्नेह रस से स्नान कर रहा था।

गद्यांश 4. “हम लोग उस कुत्ते के आनन्द को देखने लगे। किसी ने उसे राह नहीं दिखाई थी, न उसे यह बताया था कि उसके स्नेह दाता यहाँ से दो मील दूर हैं और फिर भी वह पहुँच गया। इसी कुत्ते को लक्ष्य करके उन्होंने ‘आरोग्य’ में इस भाव की एक कविता लिखी थी- ‘प्रतिदिन प्रातः काल यह भक्त कुत्ता स्तब्ध होकर आसन के पास तब तक बैठा रहता है, जब तक अपने हाथों के स्पर्श से मैं इसका संग नहीं स्वीकार करता। इतनी-सी स्वीकृति पाकर ही उसके अंग-अंग में आनन्द का प्रवाह बह उठता है। इस वाक्यहीन प्राणिलोक में सिर्फ यही एक जीव अच्छा-बुरा सबको भेदकर सम्पूर्ण मनुष्य को देख सकता है, उस आनन्द को देख सका है, जिसे प्राण दिया जा सकता है, जिसमें अहेतुक प्रेम डाल दिया जा सकता है, जिसकी चेतना असीम चैतन्य लोक में राह दिखा सकती है। जब मैं इसका मूक हृदय का प्राणपत्र आत्मवेदन देखता हूँ, जिसमें वह अपनी दीनता बताता रहता है, तब मैं यह सोच ही नहीं पाता कि उसने अपने सहज बोध से मानव स्वरूप में कौनसा मूल्य आविष्कार किया है, इसकी भाषाहीन दृष्टि की करुण व्याकुलता जो कुछ समझती है, उसे समझा नहीं पाती और मुझे इस सृष्टि में मनुष्य का सच्चा परिचय समझा देती है। इस प्रकार कवि की मर्मभेदी दृष्टि ने इस भाषाहीन प्राणी की करुण दृष्टि के भीतर उस विशाल मानव-सत्य को देखा है, जो मनुष्य, मनुष्य के अन्दर भी नहीं देख पाता।”

प्रश्न 1. कुत्ता किस कारण आनंदित था?

उत्तर- कुत्ता गुरुदेव का स्नेह पाकर आनंदित था। उसे किसी ने बताया नहीं और ना ही किसी ने उसे रास्ता दिखाया था। परन्तु गुरुदेव के स्नेह ने उसे दो मील दूर श्री निकेतन की तीसरे मंजिल पर लाकर खड़ा किया।

प्रश्न 2. गुरुदेव कुत्ते की किस विशेषता पर मुग्ध ते?

उत्तर- गुरुदेव कुत्ते की प्रेम भावना और समर्पण पर मुग्ध थे।

प्रश्न 3. ‘अहेतुक प्रेम’ का क्या अर्थ है? स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- ‘अहैतुक प्रेम का तात्पर्य उस प्रेम से है, जो बिना कोई कारण के हों। गुरुदेव और मूक प्राणी कुत्ते का प्रेम अहैतुक ही है। कुत्ते की भाषाहीन दृष्टि की करुण व्याकुलता जो कुछ समझती है, उसे समझा नहीं पाती और गुरुदेव को इस सृष्टि से मनुष्य का सच्चा परिचय समझा देती है।

गद्यांश 5. “मैं जब यह कविता पढ़ता हूँ तब मेरे सामने श्रीनिकेतन के तितल्ले पर की वह घटना प्रत्यक्ष-सी हो जाती है। वह आँख मूंदकर अपरिसीम आनन्द, वह ‘मूक हृदय का प्राणपन आत्मनिवेदन’ मूर्तिमान हो जाता है। उस दिन मेरे लिए वह एक छोटी-सी घटना थी, आज यह विश्व की अनेक महिमाशाली घटनाओं की श्रेणी में बैठ गई है। एक आश्चर्य की बात और इस प्रसंग में उल्लेख की जा सकती है। जब गुरुदेव का चिताभस्म को कलकत्ते (कोलकाता) से आश्रम में लाया गया, उस समय भी न जाने किस सहज बोध के बल पर वह कुत्ता आश्रम के द्वारा तक आया और चिताभस्म के साथ अन्यान्य आश्रमवासियों के साथ शांत गम्भीर भाव से उत्तरायण तक गया। आचार्य क्षितिमोहन सेन सबके आगे थे। उन्होंने मुझे बताया कि यह चिताभस्म के कलश के पास थोड़ी देर चुपचाप बैठा भी रहा। “

प्रश्न 1. क्षितिमोहन सेन कौन थे?

उत्तर- आचार्य क्षितिमोहन सेन प्रकांड विद्वान आचार्य और स्वतंत्रता सेनानी थे।

प्रश्न 2. आत्मनिवेदन से क्या अभिप्राय है?

उत्तर-आत्मनिवेदन से अभिप्राय अपने आराध्य को सर्वस्व समर्पित कर देना है। आत्मनिवेदन का भाव मूक हृदय कुत्ते में मूर्तिमान हुआ था।

जब प्रश्न 3. उपर्युक्त गद्यांश में उल्लेखनीय बात क्या है ?

उत्तर- उपर्युक्त गद्यांश में उल्लेखनीय बात यह है कि गुरुदेव का चिताभस्म कोलकाता से आश्रम में लाया गया, उस समय जाने किस सहज बोध के बल पर गुरुदेव का कुत्ता आश्रम के द्वार तक आया और चिताभस्म के साथ सभी आश्रमवासियों के साथ शांत एवं गम्भीर मुद्रा में शांति में बैठा।

गद्यांश 6. “कुछ और पहले की घटना याद आ रही है। उन दिनों शांतिनिकेतन में नया ही आया था। गुरुदेव से अभी उतना धृष्ट नहीं हो पाया था। गुरुदेव उन दिनों सुबह अपने बगीचे में टहलने के लिए निकला करते थे। मैं एक दिन उनके साथ हो गया था। मेरे साथ एक और पुराने अध्यापक थे और सही बात तो यह है कि उन्होंने ही मुझे भी अपने साथ ले लिया था। गुरुदेव एक-एक फूल-पत्ते को ध्यान से देखते हुए अपने बगीचे में टहल रहे थे और उक्त अध्यापक महाशय से बातें करते जा रहे थे। मैं चुपचाप सुनता जा रहा था। गुरुदेव ने बातचीत के सिलसिले में एक बार कहा, ‘अच्छा साहब, आश्रम के कौए क्या हो गए? उनकी आवाज सुनाई ही नहीं देती?” न तो मेरे साथ उन अध्यापक महाशय को यह खबर थी और न मुझे ही । बाद में मैंने लक्ष्य किया कि सचमुच कई दिनों से आश्रम में कौए नहीं दीख रहें हैं।”

प्रश्न 1. धृष्ट नहीं हो पाना से लेखक का क्या आशय है?

उत्तर-धृष्ट नहीं हो पाने से लेखक का आशय गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर से घनिष्ठ नहीं होना है। लेखक शांति निकेतन में नए आए थे, अतः वे अभी गुरुदेव से सिर्फ परिचित थे।

प्रश्न 2. बगीचे में टहलते वक्त गुरुदेव के साथ कौन था? उस समय गुरुदेव ने उनसे क्या पूछा?

उत्तर- बगीचे में टहलते हुए गुरुदेव के साथ लेखक श्री हजारीप्रसाद द्विवेदी थे। उस समय गुरुदेव ने अपने बगीचे के एक-एक फूल-पत्ते को ध्यान से देखते हुए टहल रहे थे। लेखक चुपचाप उनका अनुसरण कर रहा था। तभी अचानक बातचीत के क्रम में उन्होंने पूछा-“अच्छा साहब, आश्रम के कौए क्या हो गए? उनकी आवाज सुनाई नहीं देती?” लेखक के पास इसका कोई उत्तर नहीं था।

प्रश्न 3. गुरुदेव उन दिनों क्या किया करते थे?

उत्तर- उन दिनों गुरुदेव सुबह अपने बगीचे में टहलने के लिए निकला करते थे। उनके अनुयायी उनका अनुसरण करते थे उसी बीच वे अपने अनुयायियों से विभिन्न मुद्दों पर चर्चा भी करते थे।

गद्यांश 7. मैंने तब तक कौओं को सर्वव्यापक पक्षी ही समझ रखा था। अचानक उस दिन मालूम हुआ कि ये भले आदमी भी कभी-कभी प्रवास को चले जाते हैं या चले जाने को बाध्य होते हैं। एक लेखक ने कौओं की आधुनिक साहित्यिकों से उपमा दी है, क्योंकि इनका मोटो है ‘मिसचिफ फार मिसचिफ सेक’ (शरारत के लिए ही शरारत) । तो क्या कौओं का प्रवास भी किसी शरारत के उद्देश्य से ही था ? प्रायः एक सप्ताह के बाद बहुत कौए दिखाई दिए। “

प्रश्न 1. लेखक किसे सर्वव्यापक समझता था तथा क्यों?

उत्तर-लेखक कौए को सर्वव्यापक समझता था, क्योंकि उन्हें यह जानकारी नहीं थी कि कौए भी प्रवास को चले जाते हैं।

प्रश्न 2. लेखक ने कौओं की उपमा किससे की है और क्यों?

उत्तर-लेखक ने कौओं की उपमा आधुनिक साहित्यकों से दी है, क्योंकि आधुनिक साहित्यकारों का मोटो है ‘मिसचिफ् फॉर मिसचिफ् सेक’ अर्थात् शरारत के लिए ही शरारत।

प्रश्न 3. शरारत के लिए ही शरारत किसका मोटो है?

उत्तर-लेखक के अनुसार शरारत के लिए शरारत आधुनिक साहित्यकारों का मोटो है।

गद्यांश 8. एक दूसरी बार मैं सवेरे गुरुदेव के पास उपस्थित था। उस समय एक लँगड़ी मैना फुदक रही थी। गुरुदेव ने कहा, “देखते हो, यह यूथभ्रष्ट है। रोज फुदकती है, ठीक यहीं आकर। मुझे इसकी चाल में एक करुण-भाव दिखाई देता है।” गुरुदेव ने अगर कह न दिया होता, तो मुझे उसका करुण-भाव एकदम नहीं दीखता। मेरा अनुमान था कि मैना करुण भाव दिखाने वाला पक्षी है ही नहीं। वह दूसरों पर अनुकंपा ही दिखाया करती है।

प्रश्न 1. ‘यूथ-भ्रष्ट’ से क्या अभिप्राय है?

उत्तर-यूथ-भ्रष्ट से लेखक का अभिप्राय समूह या किसी झुंड से निकाला हुआ है।

प्रश्न 2. दूसरी बार लेखक कहाँ उपस्थित था? उसने वहाँ क्या देखा?

उत्तर- दूसरी बार लेखक सबेरे गुरुदेव के पास उपस्थित था। उस समय उन्होंने एक लंगड़ी मैना को फुदकते हुए देखा।

प्रश्न 3. गुरुदेव को मैना की चाल में कौन-सा भाव दिखाई देता है?

उत्तर- गुरुदेव को मैना की चाल में करुण-भाव दिखता है।

प्रश्न 4. लेखक के अनुसार कौन-सा पक्षी करुण भाव दिखाने वाला नहीं है?

उत्तर-लेखक के अनुसार मैना करुण-भाव दिखाने वाला पक्षी नहीं है।

प्रश्न 5. मैना को दिखाते हुए गुरुदेव ने लेखक से क्या कहा ?

उत्तर- लंगड़ी मैना को दिखाते हुए गुरुदेव ने लेखक से कहा, “देखते हो यह यूथभ्रष्ट है, अर्थात् अपने समूह से निकाली हुई है।

गद्यांश 9. “यह कोई आधुनिक वैज्ञानिक खतरे का समाधान होगा। सो, एक मैना-दंपत्ति नियमित भाव से प्रतिवर्ष यहाँ गृहस्थी जमाया करते हैं, तिनके और चीथड़ों का अंबार लगा देते हैं। भलेमानस गोबर के टुकड़े तक ले आना नहीं भूलते। हैरान होकर हम सुराखों में ईंटें भर देते हैं, परन्तु वे खाली बची जगह का भी उपयोग कर लेते हैं। पति-पत्नी जब कोई एक तिनका लेकर सुराख में रखते हैं, तो उनके भाव देखने लायक होते हैं। पत्नी देवी का तो क्या कहना ! एक तिनका ले आई, तो फिर एक पैर पर खड़ी होकर जरा पंखों को फटकार दिया, चोंच को अपने ही परों से साफ कर लिया और नाना प्रकार की मधुर और विजयोद्घोषी वाणी में गान शुरू कर दिया। हम लोगों की तो उन्हें कोई परवा ही नहीं रहती। अचानक इसी समय अगर पति देवता भी कोई कागज का या गोबर का टुकड़ा लेकर उपस्थित हुए, तब तो क्या कहना! दोनों के नाचगान और आनंद-नृत्य से सारा मकान मुखरित हो उठता है। इकके बाद ही पत्नी देवी जरा हम लोगों की ओर मुखातिब होकर लापरवाही-भरी अदा से कुछ बोल देती हैं। पति देवता भी मानो मुसकराकर हमारी ओर देखते है, कुछ रिमार्क करते और मुँह फेर लेते हैं।”

प्रश्न 1. मकान निर्माताओं ने दीवार में चारों ओर सुराख क्यों छोड़ रखे थे?

उत्तर- मकान निर्माताओं ने किसी आधुनिक वैज्ञानिक खतरों के समाधान के लिए दीवारों में चारों ओर सुराख छोड़ रखे थे।

प्रश्न 2. लेखक सुराखों में ईंट देते थे?

उत्तर- लेखक मैना-दंपत्ति के कृत्यों से परेशान होकर दीवार के सुराखों में ईंट भर देते थे। मैना-दंपत्ति नियमित रूप से तिनके और चिथड़ों का अंबार लगा देते हैं जो गंदा दिखता था।

प्रश्न 3. मैना- दम्पत्ति कब अति प्रसन्न होते थे? उस समय वे क्या करते थे?

उत्तर-मैना दम्पत्ति जब चिथड़े और तिनके लाकर सुराख में रखते, तो उनके भाव देखने लायक होते थे। वे दोनों अत्यन्त खुश होकर नाच-गान और आनन्द-नृत्य से सबको मुखरित कर देते। वे नाना प्रकार की मधुर और विजयोद्घोषी बाणी में गाते रहते थे।

गद्यांश 10. “सो, इस प्रकार की मैना कभी करुण हो सकती है, यह मेरा विश्वास नहीं था। गुरुदेव की बात पर मैनें ध्यान से देखा तो मालूम हुआ कि सचमुच ही उसके मुख पर एक करुण-भाव है। शायद यह विधुर पति था, जो पिछली स्वयंवर सभा के युद्ध में आहत और परास्त हो गया था। या विधवा पत्नी है, जो पिछले बिड़ाल के आक्रमण के समय पति को खोकर युद्ध में ईषत् चोट खाकर एकांत विहार कर रही है। हाय, क्यों इसकी ऐसी दशा है। शायद इसी मैना को लक्ष्य करके गुरुदेव ने बाद में एक कविता लिखी थी।”

प्रश्न 1. लेखक को क्या विश्वास नहीं था ?

उत्तर- लेखक को मैना के करुण होने का विश्वास नहीं था, परन्तु गुरुदेव के संकेत पर ध्यान से देखने पर उन्हें इस तथ्य का भान हुआ।

प्रश्न 2. ‘मैना कभी करुण हो सकती है, यह मेरा विश्वास ही नहीं था।’ लेखक ने ऐसा क्यों कहा है?

उत्तर- लेखक यह मानने को तैयार नहीं था कि मैना जैसी पक्षी भी करुण हो सकता है। परन्तु गुरुदेव ने अपने ज्ञान के आधार पर उन्हें यह विश्वास दिलाया। लेखक की पक्षियों के प्रति संवेदना मुखर नहीं थी। अतः वे उन्हें पढ़ सकने में सफल नहीं हो पाते थे।

प्रश्न 3. ‘जो पिछली स्वयंवर -सभा के युद्ध में आहत और परास्त हो गया था’ – इस पंक्ति से मैना की कौन-सी अवस्था प्रगट होती है?

उत्तर- उपर्युक्त पंक्ति मैना की करुण अवस्था को प्रकट करती है। उस पंक्ति में यह कहा गया है कि स्वयंवर सभा, अर्थात् जहाँ कुछ जीतने की होड़ लगी हो, वहाँ वह परास्त होकर घायल अवस्था में पहुँच गया था, जिससे उसके उ अंगअंग से करुणा की रसधारा निः सरित हो रही थी। इसे कवि हृदय रवीन्द्रनाथ टैगोर ने तुरंत भाप लिया।

गद्यांश 11. “उस मैना को क्या हो गया है, यही सोचता हूँ। क्यों वह दल से अलग होकर अकेली रहती है? पहले दिन देखा था सेमर के पेड़ के नीचे मेरे बगीचे में। जान पड़ा जैसे एक पैर से लँगड़ा रही हो। इसके बाद उसे रोज सवेरे देखता हूँ-संगीहीन होकर कीड़ों का शिकार करती फिरती है। चढ़ जाती है बरामदे में । नाच-नाचकर चहलकदमी किया करती है। मुझसे जरा भी नहीं डरती । क्यों है ऐसी दशा इसकी ? समाज के किस दंड पर उसे निर्वासन मिला है, दल के किस अविचार पर उसने मान किया है? कुछ ही दूरी पर और मैनाएँ बक-झक कर रही हैं, घास पर उछलकूद रही हैं, उड़ती फिरती हैं शिरीषवृक्ष की शाखाओं पर। इस बेचारी को ऐसा कुछ भी शौक नहीं है। इसके जीवन में कहाँ गाँठ पड़ी है। यही सोच रहा हूँ।”

प्रश्न 1. पहले दिन लेखक को मैना कहाँ दिखाई दी?

उत्तर- लेखक ने पहले दिन मैना को बगीचे में सेमर के पेड़ के नीचे देखा।

प्रश्न 2. मैना किसका शिकार करती फिरती है?

उत्तर – आमतौर पर मैना संगीहीन होकर कीड़ों का शिकार करती फिरती हैं।

प्रश्न 3. बरामदे में चढ़कर मैना क्या करती है ?

उत्तर- बरामदे में चढ़कर मैना नाच-नाच कर चहलकदमी करती है ।

प्रश्न 4. मैना को कुछ भी शौक नहीं था। क्यों?

उत्तर- मैना को समाज के निर्वासन मिला हुआ था। उसने अपने दल के विचारों की अवमानना की थी। इसलिए उसे अन्य मैनाओं की तरह स्वच्छंद आकाश में या पेड़ की शाखाओं पर आनंदमग्न होने का कोई शौक नहीं था।

एक कुत्ता एक मैना पाठ हमें क्या संदेश देता है *?

उत्तर : 'एक कुत्ता और एक मैना' पाठ से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें मनुष्यों के अलावा पशु-पक्षियों के प्रति भी संवेदनशील होना चाहिए। उनसे प्रेम तथा अपनत्व का भाव रखना चाहिए।

एक कुत्ता और एक मैना कौन सी विधा है?

गुरुदेव द्वारा मैना को लक्ष्य करके लिखी गई कविता का मर्म लेखक तब समझ पाए , जब गुरुदेव के कहने पर लेखक ने मैना को गौर से देखा। प्रश्न 4 . प्रस्तुत पाठ एक निबंध है। निबंध गद्य साहित्य की उत्कृष्ट विधा है।

एक कुत्ता और एक मैना पाठ के माध्यम से लेखक ने मूक जानवरों की भावनाएँ कैसे व्यक्त कि हैं?

गुरुदेव ने बताया कि यह कुत्ता उनका स्पर्श पाकर आनंद का अनुभव करता है। जब गुरुदेव का देहांत हो गया तो भी वह कुत्ता उनकी चिता तक गया और शांत भाव से मौन होकर बैठा रहा। इसी तरह एक मैना परिवार भी उनके घर में अपना घोंसला बना ही लेता था।

लेखक की दृष्टि में कुत्ता और मैना के प्रति गुरुदेव की सोच क्या थी?

Answer: गुरुदेव द्वारा मैना को लक्ष्य करके लिखी गई कविता का मर्म लेखक को तब समझ आया जब रविन्द्रनाथ के कहने पर उन्होंने मैना को ध्यान पूर्वक देखा। तब उन्हें मैना की करुण दशा ज्ञात हुई।