गूंगे ने अपने बारे में क्या क्या बताया? - goonge ne apane baare mein kya kya bataaya?

Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Hindi Antra Chapter 4 गूँगे Textbook Exercise Questions and Answers.

RBSE Class 11 Hindi Solutions Antra Chapter 4 गूँगे

RBSE Class 11 Hindi गूँगे Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
गूंगे ने अपने स्वाभिमानी होने का परिचय किस प्रकार दिया ? 
उत्तर : 
गूंगा भले ही दिव्यांग था लेकिन उसके स्वभाव में स्वाभिमान तो जैसे कूट-कूट कर भरा था। उसने अपने स्वाभिमानी होने का परिचय कई बार दिया। जब चमेली और अन्य स्त्रियाँ उससे पूछताछ कर रही थीं तब उसने बताया कि उसने परिश्रम करके पेट भरा है। किसी के सामने हाथ नहीं फैलाया। इस प्रकार गूंगे ने अपने स्वाभिमानी होने पर ही परिचय दिया। 

इसी प्रकार जब चमेली गूंगे के सामने बासी रोटियाँ फेंक कर खाने को कहती है तो वह चुपचाप खड़ा रहता है रोटियों को हाथ तक नहीं लगाता। जब गूंगे की शिकायत पर ध्यान न देकर चमेली अपने बेटे का पक्ष लेती है और उस पर हाथ उठना चाहती है तो गूंगा उसका हाथ पकड़ लेता है। स्वाभिमानी होने कारण ही वह सड़क के लड़कों से भिड़ जाता है और लहूलुहान होकर घर लौटता है। इस प्रकार गूंगे ने अनेक बोर प्रमाणित किया कि वह एक स्वाभिमानी व्यक्ति था। 

प्रश्न 2. 
'मनुष्य की करुणा की भावना उसके भीतर गूंगेपन की प्रतिच्छाया है।' कहानी के इस कथन को वर्तमान सामाजिक परिवेश के संदर्भ में स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर :
गूंगे की आत्मकथा सुनकर सभी लोग करुणा की भावना से भर उठते हैं। मनुष्य के भीतर करुणा उत्पन्न होने का कारण यही है कि वह भीतर से गूंगा है। अपमान, अन्याय, उपेक्षा सहकर भी जब मनुष्य उसका प्रतिकार नहीं कर पाता तो उसकी भीतर की घुटन करुणा के रूप में व्यक्त होती है।वर्तमान में सामाजिक परिवेश भी इस तथ्य को प्रमाणित करता है। चमेली की सोच भी इसी स्थिति की ओर संकेत करती है। वह सोचती है - 'आज ऐसा कौन है जो गूंगा नहीं है। किसका हृदय समाज, राष्ट्र, धर्म और व्यक्ति के प्रति विद्वेष से, घृणा से नहीं छटपटाता', किन्तु यह छटपटाहट व्यक्त नहीं हो पाती और करुणा में परिणत हो जाती है। घायल होकर चीखते गूंगे को देखकर चमेली का हृदय भी करुणा से भर उठता है और उसे लगता है कि सारा समाज ही 'गूंगापन' की पीड़ा से कराह रहा है। 

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प्रश्न 3. 
'नाली का कीड़ा!' 'एक छत उठाकर सिर पर रख दी, फिर भी मन नहीं भरा' चमेली का यह कथन किस संदर्भ में कहा गया है और इसके माध्यम से उसके किन मनोभावों का पता चलता है ? 
उत्तर : 
गूंगे की राम कहानी सुनकर चमेली को दया आ गई और उसने गूंगे को अपने यहाँ रख लिया। तभी एक दिन वह भाग गया। चमेली को आश्चर्य हुआ और खीज भी हुई। वह सोचने लगी कि गूंगे जैसे लोग नाली के कीड़े जैसे स्वभाव के होते हैं। उन पर एक घर में चैन से नहीं रहा जाता। उन्हें अपना वही निराश्रित जीवन अच्छा लगता है। घर-घर भटकना, हाथ फैलाना, फटकार खाना ही उनके भाग्य में लिखा होता है, तभी तो गूंगा भाग गया। इस कथन के माध्यम से चमेली के मन में आने वाले अनेक भावों का परिचय मिलता है। गूंगे के अकारण भाग जाने से वह चिढ़ गई है। उसे गूंगे पर तरस भी आ रहा है। अपनी दया और ममता का अपमान भी उसे क्षुब्ध भी कर रहा है। इस प्रकार इस अप्रत्याशित घटना ने चमेली के मन में हलचल पैदा कर दी है। 

प्रश्न 4. 
यदि बसंता गूंगा होता तो आपकी दृष्टि में चमेली का व्यवहार उसके प्रति कैसा होता ?
उत्तर : 
चमेली के हृदय में गूंगे के प्रति करुणा उत्पन्न हुई थी। सहानुभूति के कारण उसने गूंगे को अपने घर नौकर भी। उसके भागने पर चमेली को क्रोध भी आया था। उसने गूंगे को नाली का कीड़ा कहा था और उसकी पीठ पर चिमटा भी जड़ दिया था। बसंता ने गूंगे को पीटा पर उसने बसंता को दण्ड न देकर गूंगे को ही पीटने को हाथ उठाया। मूंगा पराया था, इस कारण चमेली ने उसके साथ ऐसा व्यवहार किया। चमेली माँ थी यदि बसंता गूंगा होता तो वह उसके साथ कठोर और रूखा व्यवहार नहीं करती। उसकी प्रत्येक गलती को देखकर उसे क्रोध नहीं आता। उसके प्रति संवेदनशीलता और सहानुभूति दिखाती। बसन्ता को गूंगा देखकर उसे दुख होता। यदि कोई उसे पीटता तो वह आपे से बाहर हो जाती।

प्रश्न 5. 
'उसकी आँखों में पानी भरा था। जैसे उनमें एक शिकायत थी, पक्षपात के प्रति तिरस्कार था।' क्यों ? 
उत्तर : 
बसंता ने गूंगे को चपत जड़ी। गूंगे ने भी मारने को हाथ उठाया पर मालिक का पुत्र समझकर उसका हाथ रुक गया। गूंगे को बसंता ने पीटा था। चमेली यह बात जानती थी। गूंगे के प्रति चमेली में करुणा का भा के कारण उसने बसन्ता का ही पक्ष लिया और गँगे को मारने के लिए हाथ उठाया। गँगे ने उसका हाथ पकड़ लिया। चमेली ने बाद में उसे रोटियाँ दी पर उसने नहीं खाईं। उसके मन में क्षोभ था। चमेली के पक्षपात को देखकर उसे दुःख हुआ था। इसी कारण उसकी आँखों में आँसू आए गए थे।

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प्रश्न 6. 
'गूंगा दया या सहानुभूति नहीं, अधिकार चाहता था' - सिद्ध कीजिए। 
उत्तर :
लोग असहायों के प्रति सहानुभूति तो दिखाते हैं किन्तु उनके अधिकारों का आदर नहीं करते। गूंगे के साथ भी यही हुआ। बुआ और फूफा गूंगे के माता-पिता की मृत्यु के बाद सहानुभूति के कारण उसे अपने घर ले तो गए लेकिन उसे परिवार के सदस्य होने का अधिकार नहीं दिया। बसंता ने गूंगे को मारा, किन्तु चमेली ने अपने पुत्र का ही पक्ष लिया। गूंगा बसन्ता को दण्ड दिलाना चाहता था। चमेली से न्याय पाने का उसका अधिकार था, पर उसे न्याय नहीं मिला। गूंगा चमेली की सहानुभूति नहीं चाहता था, अपना अधिकार चाहता था। किन्तु उसे सहानुभूति नहीं मिली बल्कि उपेक्षा ही मिली। 

प्रश्न 7. 
'गूंगे' कहानी पढ़कर आपके मन में कौन-से भाव उत्पन्न होते हैं और क्यों ? 
उत्तर : 
गूंगे और विकलांग हमारी तरह ही ईश्वर की सन्तान हैं, हमारी तरह ही प्राणी हैं। गूंगे अपनी विवशता के कारण बोलने में असमर्थ हैं। अतः हमारी सहानुभूति के पात्र हैं। अभिव्यक्ति की क्षमता न होने के कारण वे अपने प्रति होने वाले अन्याय का विरोध नहीं कर पाते हैं। उनके प्रति हमारे मन में सहानुभूति और करुणा का भाव उत्पन्न होता है। हमें उनकी सहायता के लिए तत्पर रहना चाहिए तथा उनके प्रति ऐसा व्यवहार करना चाहिए जिससे उन्हें ठेस न पहुँचे। ऐसे ही भाव हमारे हृदय में उत्पन्न होते हैं। 

प्रश्न 8. 
कहानी का शीर्षक 'गूंगे' है, जबकि कहानी में एक ही गूंगा पात्र है। इसके माध्यम से लेखक ने समाज की किस प्रवृत्ति की ओर संकेत किया है ? 
उत्तर : 
कहानी का एक ही पात्र गूंगा है, किन्तु वह एक प्रतीक है और एक वर्ग का प्रतिनिधित्व करता है। कहानी कार ने 'गूंगे' शीर्षक रखकर उन लोगों की ओर संकेत किया है जो अन्याय और अत्याचार को सहते रहते हैं और गूंगे की तरह विरोध नहीं करते। वे अत्याचार सहकर भी चुप रहते हैं। गूंगा उन लोगों का प्रतिनिधित्व करता है जो शोषित हैं, दलित हैं और उपेक्षित हैं। लेखक ने उन लोगों की ओर भी संकेत किया है जिसके पास वाणी है, कहने की क्षमता है फिर भी गूंगे की तरह अत्याचार और अन्याय सहन करते हैं पर विरोध नहीं करते। उनके हृदय में भाव घुमड़ते रहते हैं, फिर भी उन्हें व्यक्त नहीं करते। अत: कहानी का शीर्षक उचित है।

प्रश्न 9. 
यदि 'स्किल इंडिया' जैसा कोई कार्यक्रम होता तो क्या गूंगे को दया या सहानुभूति का पात्र बनना पड़ता? 
उत्तर : 
दिव्यांगों (विकलांगों) की समाज में सदा से ही दयनीय स्थिति रही है। समाज में उनको प्रायः दया और सहानुभूति का पात्र माना जाता रहा है। यदि कोई दिव्यांग व्यक्ति किसी कार्य में या कला आदि में निपुण भी होता है तो भी उसकी कार्य-क्षमता पर लोगों को सहज विश्वास नहीं होता। उसे कर्मचारी के रूप में नियुक्त किया जाना बहुत कठिन होता है।

गूंगा भी अपनी विकलांगता के कारण चमेली की दया और सहानुभूति का पात्र बना था। यदि स्किल इंडिया जैसा कोई कार्यक्रम उस समय प्रचलन रहा होता तो गूगों की स्थिति ऐसी दयनीय नहीं होती। वह ऐसे कार्यक्रम का हिस्सा बनकर किसी-न-किसी कार्य में दक्षता प्राप्त कर लेता और स्वावलम्बी जीवन बिता रहा होता। पहले की अपेक्षा आज दिव्यांगों की स्थिति में काफी सुधार हुआ है। उनको रोजगार दिलाने में तथा कार्यकुशल बनाने में स्किल इंडिया प्रोग्राम के अतिरिक्त भी अन्य अनेक सुविधाएँ प्राप्त हैं। दिव्यांग लोग अनेक महत्वपूर्ण पदों पर सफलता से अपनी जिम्मेदारियाँ निभा रहे हैं। 

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प्रश्न 10. 
निम्नलिखित गद्यांशों की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए -
(क) करुणा ने सबको..........जी जान से लड़ रहा हो। 
(ख) वह लौटकर चूल्हे पर..........आदमी गुलाम हो जाता है। 
(ग) और फिर कौन..........जिंदगी बिताए। 
(घ) और ये गूंगे..........क्योंकि वे असमर्थ हैं ?
विशेष : इन गद्यांशों की व्याख्या के लिए इस पुस्तक के सप्रसंग व्याख्याएँ शीर्षक में देखें। 

प्रश्न 11. 
निम्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए.... 
(क) 'कैसी यातना है कि वह अपने हृदय को उगल देना चाहता है, किन्तु उगल नहीं पाता।' 
आशय - बचपन में गूंगे का काकल कट गया था इसलिए वह बोलने में असमर्थ था। उसके हृदय में भी हमारी तरह भावनाएँ उठती थीं जिन्हें वह अभिव्यक्त करना चाहता था किन्तु बोलने में असमर्थ होने के कारण वह उन भावनाओं को दूसरों तक पहुँचाने में समर्थ नहीं था। उसकी भावनाएँ उसके हृदय में घुमड़कर रह जाती थीं। 

गूंगे ने अपने बारे में क्या क्या बताया? - goonge ne apane baare mein kya kya bataaya?

(ख) 'जैसे मन्दिर की मूर्ति कोई उत्तर नहीं देती, वैसे ही उसने भी कुछ नहीं कहा।' 
आशय - चमेली ने क्रोध के आवेश में गूंगे को मक्कार, बदमाश कहा, उसका हाथ पकड़कर घर से निकाल दिया। चमेली के क्रोध से वह विचलित नहीं हुआ। चमेली का क्षोभ और क्रोध उस पर कुछ प्रभाव नहीं दिखा सका। वह पत्थर की मूर्ति की तरह शान्त खड़ा रहा। पत्थर की मूर्ति कुछ उत्तर नहीं देती, इसी प्रकार उसने भी कोई उत्तर नहीं दिया और चमेली की क्रोध भरी वाणी सुनता रहा। 

योग्यता विस्तार - 

प्रश्न 1. 
समाज में दिव्यांगों के लिए होने वाले प्रयासों में आप कैसे सहयोग कर सकते हैं ? 
उत्तर : 
आज समाज में दिव्यांगों की भलाई के अनेक कार्यक्रम चल रहे हैं। इनमें कुछ सरकारी कार्यक्रम हैं जैसे स्किल इंडिया आदि तथा अनेक स्वतंत्र संस्थाएँ भी इस दिशा में कार्यरत हैं। मैं एक छात्र के रूप में दिव्यांगों के लिए कोई बहुत बड़ा सहयोग तो नहीं दे पाऊँगा लेकिन अपनी क्षमता के अनुसार ऐसे प्रयासों में अवश्य सहयोग करूँगा। मैं दिव्यांग छात्र को अध्ययन में सहयोग करूंगा। यदि उसे विद्यालय में कोई पढ़ाई से संबंधित समस्या होगी तो मैं उसमें उसकी सहायता करूंगा।

यदि कोई संस्था दिव्यांगों के लिए कोई कार्यक्रम चला रही होगी तो मैं अपने सहपाठियों के साथ उसमें भाग लूंगा। दिव्यांगों को सम्मान दिलाने के लिए होने वाली रैली इत्यादि में उत्साह के साथ भाग लूगा। दिव्यांग साथियों को सरकार से मिलने वाली सुविधाओं तथा छात्रवृत्ति आदि के बारे में बताऊँगा। व्यक्तिगत रूप में मैं दिव्यांगों के साथ सदा शिष्ट व्यवहार करूँगा और उनके स्वाभिमान और स्वावलंबन का सदा आदर करूँगा। 

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प्रश्न 2. 
दिव्यांगों की समस्या पर आधारित 'स्पर्श', 'कोशिश' तथा 'इकबाल' फिल्में देखिए और समीक्षा कीजिए। 
उत्तर :
छात्र स्वयं करें।

RBSE Class 11 Hindi गूँगे Important Questions and Answers

बहुविकल्पीय प्रश्न -

प्रश्न 1. 
चमेली की पुत्री का नाम था -
(क) श्यामा 
(ख) रजनी 
(ग) शकुंतला 
(घ) शिवानी 
उत्तर :
(ग) शकुंतला 

प्रश्न 2. 
'मेहनत का खाता हूँ' यह समझाने के लिए गूंगे ने - 
(क) सीने पर हाथ मारा 
(ख) भुजाओं पर हाथ रखे 
(ग) पेट बजाया 
(घ) ताल ठोकी 
उत्तर :
(ख) भुजाओं पर हाथ रखे 

प्रश्न 3. 
आदमी गुलाम हो जाता है - 
(क) गरीबी के कारण 
(ख) पेट की आग के कारण 
(ग) प्रेम के कारण 
(घ) दंड के भय के कारण 
उत्तर :
(ख) पेट की आग के कारण 

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प्रश्न 4.
गँगे कहानी में मंदिर की मति' की तरह बताया गया है -
(क) शकुंतला को 
(ख) गूंगे को 
(ग) चमेली को 
(घ) चमेली के पति को
उत्तर :
(ख) गूंगे को

प्रश्न 5. 
चमेली अपने आप पर लज्जित हो गई - 
(क) गूंगे को पीटने के कारण 
(ख) गूंगे को भूखा रखने के कारण 
(ग) गूंगे को फटकारने के कारण 
(घ) गूंगे के मूर्ति की तरह चुप बने रहने के कारण 
उत्तर : 
(घ) गूंगे के मूर्ति की तरह चुप बने रहने के कारण 

अतिलघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर -

प्रश्न 1.
गूंगे को इशारा करते देख स्त्रियों को कैसा लगा? 
उत्तर : 
स्त्रियों को वैसा ही कौतूहलपूर्ण आनंद अनुभव हुआ जैसा किसी तोते को 'राम-राम' कहते हुए सुनकर होता 

प्रश्न 2. 
गूंगे को बोलने की कोशिश करते देख कैसा लगता था ? 
उत्तर : 
गूंगे को बोलने की कोशिश करते देख ऐसा लगता था जैसे कोई आदिकालीन मनुष्य अपनी भाषा बनाने में पूरी शक्ति से लगा हुआ हो।

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प्रश्न 3. 
काकल कट जाने के कारण गूंगा बोलते समय कैसा लगता था ? 
उत्तर : 
वह ऐसे बोलता था जैसे कोई घायल पशु कराह रहा हो। 

प्रश्न 4. 
गूंगा क्या-क्या काम कर चुका था ? 
उत्तर :
गूंगे ने हलवाई के यहाँ रात-रात भर जागकर लड्डू बनाए थे। कड़ाही माँजी थी, नौकरी की थी और कपड़े भी धोए थे।

  प्रश्न 5.
गूंगे ने इशारों के द्वारा अपने बारे में क्या-क्या बताया ? 
उत्तर :
गूंगे ने बताया था कि वह भीख नहीं माँगता था। मेहनत करके खाता था। उसने बताया कि यह सब वह पेट भरने के लिए करता था।

प्रश्न 6. 
गूंगे को कौन पीटते थे और क्यों ? 
उत्तर :
गूंगे को उसकी बूआ और फूफा पीटते थे क्योंकि वे चाहते थे कि गूंगा पल्लेदारी करे और पूरी कमाई उनको सौंप दिया करे। 

प्रश्न 7.
चमेली ने गूंगे को नाली का कीड़ा क्यों बताया ? 
उत्तर : 
गूंगे के भाग जाने वह बहुत क्रुद्ध थी। उसने उसे नाली का कीड़ा इसलिये कहा कि वह सही ठिकाना मिल जाने पर भी उसी दयनीय जिन्दगी में लौट जाना चाहता था। 

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प्रश्न 8. 
चिमटे की चोट होने पर गूंगा नहीं रोया लेकिन बाद में क्यों रोया ?
उत्तर : 
क्रोध में आकर चमेली ने उसकी पीठ पर चिमटा मार दिया लेकिन अपने को अपराधी मानकर वह नहीं रोया परन्तु जब चमेली की आँखों से आँसू टपके तो गूंगे ने चमेली की ममता को जान लिया और उसे भी रोना आ गया। 

प्रश्न 9.
गूंगे ने चमेली का हाथ क्यों पकड़ा ? 
उत्तर :
चमेलीचमेली बसंता की गलती जानकर भी उसी का पक्ष लेकर, गूंगे को पीटने जा रही थी। इसे अन्याय मानते हुए गूंगे ने चमेली का हाथ पकड़ लिया। 

प्रश्न 10.
गूंगा, बसंता की गलती होने पर भी उस पर हाथ नहीं उठाता था। क्यों ? 
उत्तर :
गूंगा समझता था कि बसंता उसके मालिक का लड़का था। वह उस पर हाथ नहीं उठा सकता। 

प्रश्न 11. 
जब चमेली ने गूंगे को रोटियाँ खाने को आवाज दी तो वह आँखों में पानी भरे हुए क्यों आया ? 
उत्तर :
गूंगे की आँखें इसलिए पानी से भरी हुई थीं कि गूंगे के मन में चमेली के पक्षपात और अन्याय को लेकर शिकायत और तिरस्कार का भाव था जो आँसुओं से छलक रहा था। 

प्रश्न 12. 
गूंगे की बुरी आदतें छुड़ाने के लिए चमेली ने मार-पीट से हटकर, कौन-सा उपाय सोचा? 
उत्तर : 
चोरी की शिकायत मिलने पर चमेली को गूंगे पर बहुत क्रोध आया। लेकिन उसने सोचा कि मार-पीट के बजाय, इससे अपराध स्वीकार कराके दंड न दिया जाय। 

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प्रश्न 13. 
'गूंगे' कहानी में 'कुत्ते की दुम कभी सीधी नहीं हो सकती' कहावत का प्रयोग किसने किसके प्रति किया है ?
उत्तर :
इस कहावत का प्रयोग चमेली द्वारा गूंगे के प्रति किया गया है। क्योंकि चमेली के अनेक प्रयासों पर भी 
गूंगा अपनी आदतें नहीं छोड़ रहा था। 

प्रश्न 14. 
सड़क के लड़कों द्वारा पिटाई होने और घायल होने की घटना से गूंगे के चरित्र की किन विशेषताओं का पता चलता है ? उत्तर :
इस घटना से ज्ञात होता है कि गूंगा स्वाभिमानी और दबंग था। 

लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर - 

प्रश्न 1. 
'करुणा ने सबको घेर लिया।' गूंगे के प्रति करुणा क्यों उत्पन्न हुई ? 
उत्तर :
बचपन में गला साफ करने की कोशिश में किसी ने काकल काट दिया। वह बोलने की कोशिश करता है पर बोल नहीं सकता। काँय-काँय की अस्फुट ध्वनि का वमन करता है। वह अपने भावों को उगलना चाहता है, किन्तु उगल नहीं सकता। वह घायल पशु की तरह कराह उठता है। वह कुत्ते की तरह चिल्लाता है। उसका स्वर ज्वालामुखी के विस्फोट की तरह भयंकरता से युक्त जान पड़ता है। गूंगे की इस स्थिति को देखकर सबके मन में करुणा के भाव उत्पन्न हो गए। 

प्रश्न 2. 
गूंगे को देखकर चमेली ने पहली बार क्या अनुभव किया ? 
उत्तर : 
चमेली को जब यह पता लगा कि बचपन में गूंगे का गला साफ करने की कोशिश में काकल(कौआ) कट गया है तो उसे दुख हुआ। उसने अनुभव किया कि यदि गले में काकल ठीक न हो तो मनुष्य की स्थिति क्या हो जाती है। काकल के अभाव में वह बोल नहीं सकता, यह एक प्रकार की यातना है। गूंगा अपने हृदय के भावों को उगल देना चाहता है, किन्तु उगल नहीं पाता है। उसने काकल की उपयोगिता का अनुभव किया होगा।

प्रश्न 3. 
लड़के को गूंगा और बहरा जानकर भी चमेली ने उसे अपने यहाँ नौकर क्यों रख लिया ? 
उत्तर : 
चमेली, सुशीला आदि ने गूंगे का अच्छी तरह इंटरव्यू लिया और यह स्पष्ट हो गया कि वह पूरी तरह गूंगा और बहरा था। वह इशारों से बात करता था। सुशीला ने उसे सावधान भी किया कि गूंगे को घर में रखकर बहुत पछताएगी। इतने पर भी वह यही बोली कि उसे गूंगे पर बहुत दया आ रही थी। अगर वह ठीक से काम नहीं करेगा तो भी कोई बात नहीं, बच्चों का दिल बहलता रहेगा। इस प्रकार अपने दयालु और भावुक स्वभाव के कारण ही चमेली ने गूंगे को अपने यहाँ रख लिया। 

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प्रश्न 4. 
गूंगा अपने घर क्यों नहीं जाता था ? वह छोटी-मोटी नौकरियाँ क्यों करता-फिरता था ? 
उत्तर : 
पिता के मरने और माता के चले जाने पर गूंगा अनाथ हो गया था। तब उसकी बुआ और फूफा ने उसे पाला था। वे उसकी बहुत पिटाई करते थे। वे चाहते थे कि गूंगा पल्लेदारी का काम करे और अपनी सारी कमाई उन्हें सौंपा करे। इसके बदले में बुआ और फूफा उसे बाजरे और चने की रोटियाँ डाल देते थे। अपने स्वाभिमानी स्वभाव के कारण गूंगा घर नहीं जाता था और इधर-उधर नौकरी करता फिरता था। 

प्रश्न 5. 
चमेली को ऐसा कब और क्यों लगा कि गूंगा बात को समझने में बहुत तेज था ? 
उत्तर : 
चमेली ने कभी-कभी गूंगे को कराहते हुए सुना था। एक दिन वह बसंता और गूंगे के बारे में सोच रही है कि उसे गैंगे के भखा होने का ध्यान आया और वह रात की रोटियाँ लेकर निकली। उसने गँगे को आवाज दी। गूंगा यद्यपि पूर्णतः बहरा था लेकिन चमेली की पुकार कैसे सुन लेता था। यह बड़े आश्चर्य की बात थी। वह आया और उसकी आँखों में आँसू भरे हुए थे। चमेली को लगा कि गूंगा के मन में उसके पक्षपात को लेकर जो शिकायत और तिरस्कार का भाव था वह उसके आँसुओं में झलक रहा था। तब उसे अनुभव हुआ कि गूंगा मान-अपमान और पक्षपात को लेकर बड़ा संवेदनशील था। उसे बहकाना आसान काम न था। 

प्रश्न 6. 
चमेली ने गूंगे को धक्का देकर घर से निकाल दिया था फिर भी सड़क के लड़कों से पिट कर . वह चमेली के पास ही क्यों आया ? 
उत्तर :
चमेली और गूंगे के बीच माता-पुत्र जैसा अव्यक्त संबंध बन गया था। चमेली ने गूंगे को पीटा, फटकारा, घर से निकाला और फिर भी वह त्रस्त होने पर उसी के पास आया। यह भी संबंध का प्रमाण है। चमेली उसकी पीठ पर चिमटा जड़ देती है तो वह नहीं रोता परन्तु जब चमेली के हृदय की ममता आँसू बनकर टपक पड़ती है तो वह भी रो उठता है। यही कारण था कि वह पिटकर और घायल होकर कहीं और नहीं गया, ममतामयी माँ के द्वार पर ही सिर रख हो रहा था। 

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प्रश्न 7.
'आज ऐसा कौन है जो गूंगा नहीं है।' चमेली के इस सोच का आशय क्या है ? स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर : 
गूंगे के मूक रुदन में छिपी करुणा और अवसाद ने चमेली के कोमल हृदय को करुणा से भर दिया। उसे लगा जैसे ऐसे ही गूंगे सारे संसार में व्याप्त हो गए थे। ये अपने मन के भावों को व्यक्त नहीं कर पा रहे थे। ये अपने ऊपर होने वाले अत्याचारों को चुपचाप सह लेने को विवश थे। चमेली सोच रही थी कि आज हर व्यक्ति गूंगा हो गया है। वह अन्याय का प्रतिशोध न लेकर सामाजिक सौहार्द्र बनाए रखना चाहता है। 

निबंधात्मक प्रश्नोत्तर - 

प्रश्न 1. 
'गूंगे' में ममता है, अनुभूति है और है मनुष्यता' कहानी के आधार पर इस वाक्य की विवेचना कीजिए। 
उत्तर : 
गँगा बार-बार घर से भाग जाता है पर चमेली से अपनत्व का भाव रखने के कारण लौट-लौट कर आ जाता है। ऐसे ही वह एक बार भाग गया था लेकिन लौटने पर भखे होने का इशारा किया। चमेली कटोरदान में रोटी रख रही थी, गँगे को देखकर उसने गूंगे की ओर रोटियाँ फेंक दी। गूंगे ने रोटियाँ छुई तक नहीं। किन्तु यह अनुभव करके कि चमेली को कष्ट होगा, उसने रोटियाँ खा लीं। यह उसकी ममता थी। 

एक दिन चमेली ने उसकी पीठ पर चिमटा जड़ दिया क्योंकि वह भाग गया था। उसे पीटने के बाद पश्चात्ताप के कारण चमेली रोने लगी। गूंगे को चमेली की पीड़ा और पश्चात्ताप की अनुभूति हुई और वह रोने लगा। गूंगा मनुष्य था, उसमें स्वाभिमान था। वह भीख मांगने की अपेक्षा मेहनत करना पसन्द करता था। उसने हलवाई के यहाँ काम किया, कपड़े धोए और पेट भरा। दिव्यांग होते हुए भी वह स्वाभिमानी था। सड़क के लड़कों से उसकी लड़ाई स्वाभिमानी होने के कारण हुई। 

प्रश्न 2. 
'उसने एक पशु पाला था। जिसके हृदय में मनुष्यों की सी वेदना थी।' कथन का आशय स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर : 
चमेली के पुत्र बसंता ने गूंगे को चपत जड़ दी थी। चमेली ने बेटे का पक्ष लिया जिसे देखकर गूंगे को दुःख हुआ। चमेली के रोटी देने पर वह हैसा लेकिन उसकी हंसी में दर्द था। उसकी गुर्राहट-सी आवाज को सुनकर चमेली काँप उठी। उसे अपने व्यवहार के प्रति पश्चात्ताप हुआ। 'मैंने एक गूंगे के साथ अन्याय किया है, जो निरीह प्राणी है। जैसे पशु अन्याय का विरोध नहीं कर सकता, इसी प्रकार इसने भी मेरे अन्याय का विरोध नहीं किया है। इसके हृदय में भी वेदना है। इसका हृदय भी अन्य मनुष्यों की तरह रो रहा है। चमेली ने गूंगे के साथ पशु का सा व्यवहार किया था। उसे अपने व्यवहार पर पछतावा था। गूंगा मनुष्य था। परन्तु बोल नहीं सकता था। केवल पशु के समान ध्वनि प्रकट करता था किन्तु वह मनुष्य था और उसके मन में वेदना छिपी थी।

प्रश्न 3. 
चमेली ने गूंगे को रोटी देते समय जो व्यवहार किया उस पर गूंगे की क्या प्रतिक्रिया हुई ? स्पष्ट कीजिए। 
उत्तर : 
गूंगा जब चमेली के द्वार पर गया और भूखे होने का इशारा किया उस समय चमेली कटोरदान में रोटियाँ रख रही थी। उसे गूंगे के काम न करने पर क्रोध आ रहा था। चमेली ने रोष में उसकी ओर रोटी फेंक दी। स्वाभिमानी गूंगे ने पहले रोटियों नहीं खाईं क्योंकि चमेली उपेक्षा से उसकी ओर पीठ फेरकर खड़ी हो गई थी। पर चमेली को दु:ख होगा यह सोचकर उसने बाद में रोटियाँ खा लीं। बाद में चमेली ने गेंगे की पीठ पर चिमटा जड़ दिया। गूंगे ने कोई प्रतिक्रिया नहीं की। इससे चमेली की आँखों से आँसू टपक पड़े। यह देखकर गूंगा भी रोने लगा। 

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प्रश्न 4.
चमेली ने गूंगे पर चोरी का आरोप लगाकर भी उसे मारा नहीं। क्यों ? 
उत्तर :
चमेली ने गेंगे पर चोरी का आरोप लगाया। उसे क्रोध भी आया पर उसने उसे पीटा नहीं। चमेली ने देखा कि गूंगा अपनी गलतियों पर पिटता है फिर भी अपनी आदतें नहीं छोड़ता। उसने सोचा कि दण्ड देने से किसी अपराधी को ठीक नहीं किया जा सकता, अपराधी अपनी आदत नहीं छोड़ सकता। गूंगा मारने से ठीक नहीं होगा। उसने सोचा गूंगे से अपराध स्वीकार करा लेना दण्ड देने से कहीं अच्छा है। यदि इसे अपने अपराध का बोध हो जाए और पश्चात्ताप की भावना मन में आए तो यह गलतियों को आगे से नहीं दोहराएगा। शायद इससे गूंगे में कुछ सुधार आ जाए। उसने यह भी सोचा, गूंगा कौन मेरा अपना है। रहना हो तो ठीक से रहे, नहीं तो सड़क पर कुत्तों की तरह जूठन चाटे। दर-दर अपमानित हो। चमेली का व्यवहार उदासीनता लिए हुए था। 

प्रश्न 5.
चमेली ने आवेश में गँगे से क्या कहा और उसने क्या प्रतिक्रिया प्रकट की ? 
उत्तर : 
चमेली ने आवेश में आकर गैंगे से मक्कार, बदमाश कहा और उसका हाथ पकड़कर द्वार की ओर इशारा किया और निकल जाने के लिए कहा। उसने उससे कहा - नौकर की तरह रहकर ढंग से काम करना है तो रहो अन्यथा यहाँ तुम्हारा कोई काम नहीं। तुम्हारे नखरे सहन करने के लिए किसी के पास फुरसत नहीं है। पत्तल चाटने की आदत पड़ गई है तो चाटो। कुत्ते की दुम क्या कभी सीधी होती है ? चमेली के व्यवहार को देखकर गूंगा आँख फाड़-फाड़ कर उसकी ओर देखता रहा। कुछ कहना चाहता था पर कुछ कह नहीं सका। वह पत्थर की मूर्ति बनकर खड़ा रहा पर कुछ कहा नहीं। वह इतना समझ सका कि मालकिन नाराज है और निकल जाने के लिए कह रही है। 

प्रश्न 6.
'गूंगे' कहानी की रचना का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए। 
अथवा 
'गूंगे' कहानी में पाठकों के लिए क्या संदेश दिया है? 
उत्तर :
'गंगे' कहानी एक गँगे किशोर की दर्दनाक कहानी है। कहानी के माध्यम से लेखक ने समाज के दिव्यांग वर्ग की मानसिक दशा का चित्रण किया है। लेखक का उद्देश्य विकलांगों के प्रति समाज में व्याप्त असंवेदनशीलता को प्रकट करना है। वह बताना चाहता है कि उन्हें सामान्य मनुष्यों की तरह मानना चाहिए और उनके साथ संवेदनशीलता का व्यवहार करना चाहिए। वे इसी समाज के प्राणी हैं। लेखक ने यह भी संदेश दिया है कि जो लोग अन्याय और अत्याचार का विरोध नहीं करते और अन्दर ही अन्दर घुटते हैं, वे भी गूंगे ही हैं। उसने विकलांगों के प्रति संवेदनशील होने तथा अन्याय-अत्याचार का प्रतिरोध करने की प्रेरणा दी है। 

गूंगे ने अपने बारे में क्या क्या बताया? - goonge ne apane baare mein kya kya bataaya?

प्रश्न 7. 
कहानी के मुख्य पात्र 'गूंगे' का चरित्र चित्रण कीजिए। 
उत्तर : 
'गूंगे' कहानी का मुख्य पात्र गूंगा है जो वाणी के अभाव में इशारों से बातें करता है। उसकी चारित्रिक विशेषताएँ निम्नलिखित हैं -  
स्वाभिमानी - गँगा बोल नहीं सकता, वह असहाय है। किन्तु स्वाभिमानी है। वह भीख नहीं माँगता। अपनी बाँहों पर हाथ फेरकर वह स्पष्ट कर देता है कि वह मेहनत करके खाना पसन्द करता है पर किसी के सामने हाथ नहीं पसारना चाहता। 

कष्ट सहिष्णु - गूंगा कष्ट सहिष्णु है। चमेली ने उस पर चिमटे का वार किया पर उसने उसका विरोध नहीं किया बसंता ने भी उस पर हाथ उठाया किन्तु उस समय भी उसने अपमान सहन कर लिया। बुआ और फूफा की मार भी सही। 

अनाथ बालक - गूंगा अनाथ था। बचपन में माँ छोड़कर चली गई। पिता भी मर गया। अनाथ होने की स्थिति में उसकी बुआ और फूफा उसे अपने साथ ले गए, किन्तु उन्होंने उसके साथ अमानवीय व्यवहार किया। 

उपेक्षा का पात्र - गूंगे को कहीं भी सहानुभूति नहीं मिली। चमेली ने उसे अपने घर नौकर अवश्य रख लिया किन्तु उसका व्यवहार भी अच्छा नहीं था। उसने गे को चिमटे से पीटा। बसंता ने उसे पीटा फिर भी उसने अपने पुत्र का ही पक्ष लिया और उसकी उपेक्षा की। 

प्रतीक-पात्र - गँगा एक प्रतीक पात्र है। कहानीकार वास्तव में उसके रूप उन समस्त लोगों को गँगा कहना चाहता है जो अपने ऊपर होने वाले अन्याय को चुपचाप सहन कर लेते हैं, उसका प्रतिकार नहीं करते।

गूँगे Summary in Hindi

लेखक परिचय :

रांगेय राघव का जन्म आगरा में हुआ था। आपका मूल नाम तिरुमल्ले गंबाकम वीर राघव आचार्य था। इन्होंने रांगेय राघव नाम से साहित्य सृजन किया। राघव जी के पूर्वज दक्षिण आरघाट से आगरा आकर बस गए थे। आपने आगरा विश्वविद्यालय से हिन्दी एम.ए. और पी-एच.डी. उपाधियाँ प्राप्त की। 
रांगेय राघव ने कहानी, उपन्यास, रिपोर्ताज, कविता, आलोचना आदि हिन्दी की विविध विधाओं में रचनाएँ की 

रचनाएँ - कहानी संग्रह - रामराज्य का वैभव, देवदासी, समुद्र के फेन, अधूरी सूरत, जीवन के दाने, ऐयाश मुर्दे, अंगार न बुझे आदि। 

उपन्यास - घरोंदा, विषाद-मठ, मुर्दो का टीला, सीधा-सादा रास्ता, अँधेरे के जुगनू, बोलते खंडहर, कब तक पुकारूँ आदि। 
राजस्थान साहित्य अकादमी ने उनकी साहित्य सेवा के लिए उन्हें पुरस्कृत किया। 
राघव की कहानियों में समाज के शोषित और पीडित वर्ग के जीवन का मर्मस्पर्शी चित्रण किया है। 

गूंगे ने अपने बारे में क्या क्या बताया? - goonge ne apane baare mein kya kya bataaya?

संक्षिप्त कथानक :

'गूंगे' एक गूंगे किशोर के जीवन पर आधारित कहानी है। इस कहानी में लेखक ने समाज के दिव्यांगों के प्रति चली आ रही संवेदनहीनता को प्रस्तुत किया है। गूंगा न बोल सकता था न सुन सकता था किन्तु बुद्धि का तेज और स्वाभिमानी था। संकेतों द्वारा अपनी बात समझाने में कुशल था। चमेली नामक महिला को उस पर दया आ गई और उसने उसे नौकर रख लिया। वह बीच-बीच में भाग जाता था। 

चमेली को कभी-कभी उस पर क्रोध भी आ जाता। एक बार चमेली के लड़के ने उसे खेल में पीट दिया और माँ से शिकायत कर दी कि गूंगे ने उसे पीटा था। चमेली ने उसे डाँटा और उसे पीटना चाहा लेकिन उसने चमेली का हाथ पकड़ लिया। उसे लगा जैसे उसके बेटे ने ही उसका हाथ पकड़ लिया हो। उसे बहुत बुरा लगा। एक बार क्रोध में आकर उसने गूंगे को धक्का देकर घर से निकाल दिया। गूंगा चुपचाप चला गया। घण्टे भर बाद वह लौट आया। सड़क के लड़कों ने उसे बहुत पीटा था। उसका सर फट गया था। चमेली चुपचाप उसे देखती रही। उसके हृदय में गूंगे के प्रति अपार करुणा उमड़ रही थी। 

कहानी का सारांश :

गूंगे की कहानी - गूंगा कहानी का मुख्य पात्र है। वह वज्र बहरा है और गूंगा भी है। उसने इशारे से बताया कि जब वह छोटा था तब उसकी माँ जो यूँघट काढ़ती थी, उसे छोड़कर भाग गई। बड़ी-बड़ी मूंछों वाला बाप मर गया। किसने पाला यह तो पता नहीं, पर घर पर बुआ और फूफा मारते थे। वे चाहते थे कि गूंगा पल्लेदारी करके उन्हें धन दे। 

करुणा की भावना - गूंगे की कहानी सुनकर सबके मन में करुणा का भाव जाग्रत हुआ। उसके बोलने का प्रयास, उसकी अस्फुट ध्वनियाँ और हृदय के भावों को प्रकट करने की असमर्थता ने चमेली और सुशीला को द्रवित कर दिया। दोनों के हृदय में उसके प्रति सहानुभूति पैदा हो गई। 

बोलने की असमर्थता का कारण - गूंगे ने इशारे से बताया कि किसी ने बचपन में गला साफ करने की कोशिश में गला काट दिया। तभी से वह ऐसे बोल रहा है जैसे घायल पशु कराह रहा हो, जैसे कुत्ता चिल्ला रहा हो। कभी-कभी स्वर में ज्वालामुखी के विस्फोट की सी भयानक आवाज होती है। 

जीविकोपार्जन - उसने बताया हलवाई के यहाँ रात-भर मजदूरी करता है। भीख नहीं लेता। पेट भरने के लिए मेहनत करता है और स्वाभिमान से जीता है।

चमेली का आश्रय देना - गूंगे की कहानी सुनकर चमेली को दुःख हुआ। वह रोने लगी। उसने गूंगे को नौकर रख लिया। गूंगे ने पूछा क्या दोगी ? खाना ? चमेली ने चार उँगलियाँ दिखाकर चार रुपये देने का इशारा कर दिया। उसने सोचा यह कोई कार्य नहीं भी करेगा तो इससे बच्चों की तबीयत तो बहल जाएगी। 

गूंगे का लौटना - गूंगा घर से अचानक भाग गया। फिर एकाएक द्वार पर आ गया और भूखा होने का इशारा किया। चमेली ने झुंझलाकर उसकी ओर रोटियाँ फेंक दी और पीठ मोड़कर खड़ी हो गई। गूंगे ने पहले रोटी नहीं उठाई, बाद में खा ली। चमेली ने उसकी पीठ पर चिमटा जड़ दिया। पहले तो वह रोया नहीं, किन्तु चमेली को रोता देखकर वह भी रो दिया।

  बसन्ता का गूंगे को पीटना - चमेली के पुत्र बसन्ता ने गूंगे को पीटा, उसने भी बसन्ता को पीटने के लिए हाथ उठाया किन्तु मालिक का पुत्र समझकर रह गया। उसने चमेली से शिकायत की पर उसने बसन्ता का ही पक्ष लिया और उसे पीटने के लिए हाथ उठाया। गूंगे ने उसका हाथ पकड़ लिया। बाद में पुत्र के प्रति चमेली के पक्षपात करने के कारण उसे दुख हुआ।

गूंगे का दण्ड - गूंगे की चोरी की आदत को देखकर चमेली ने उसे डाँट दिया। गूंगा सर झुकाकर शान्त खड़ा रहा। मानो उसने अपना अपराध स्वीकार कर लिया हो। चमेली ने उसे घर से निकाल दिया। उसे चमेली के व्यवहार पर आश्चर्य हुआ 
और दुख भी हुआ।

गूंगे की पिटाई - चमेली ने गूंगे को हाथ पकड़ कर घर से निकाल दिया। घंटे भर बाद गूंगा खून से लथपथ लौटा। सड़क के लड़कों ने उसका सिर फोड़ दिया था। दरवाजे की दहलीज पर सिर रखकर वह कुत्ते की तरह चिल्ला रहा था। चमेली ने सोचा आज समाज में सभी गूंगे हैं। आज प्रत्येक व्यक्ति का हृदय अन्याय और अनाचार से छटपटा रहा है। किन्तु . किसी में भी अन्याय और शोषण का विरोध करने की शक्ति नहीं है। सभी गूंगे हैं। 

गूंगे ने अपने बारे में क्या क्या बताया? - goonge ne apane baare mein kya kya bataaya?

कठिन शब्दार्थ :

  • द्वेष = अप्रसन्नता, चिढ़ना। 
  • वज्र बहरा = बिल्कुल न सुन सकने वाला। 
  • दिलचस्पी = उत्सुकता। 
  • मिश्रित = मिला हुआ।
  • कुतूहल = जानने की इच्छा। 
  • इंगित = संकेत, इशारा। 
  • कर्कश = कठोर। 
  • अस्फुट = अस्पष्ट। 
  • वमन = उगलना। 
  • आदिम मानव = प्रथम या अत्यन्त प्राचीन मनुष्य। 
  • काकल = मुँह के अंदर तालु से लटकता मांस का स्तन, कौआ। 
  • विस्फोट = फटना। 
  • अकल = अक्ल, बुद्धि। 
  • प्रतिच्छाया = परछाँई, प्रतिबिम्ब। 
  • सड़ से = जोर से। 
  • ममता की ठोकर = माँ के द्वारा दिया गया दण्ड। 
  • निस्संकोच = सहज भाव से। 
  • मंगल कामना = कल्याण की इच्छा। 
  • पेट की आग = भूख। 
  • विक्षोभ = दुःख। 
  • तिरस्कार = अपमान। 
  • अमानवीय = जो मनुष्यों जैसा न हो। 
  • लांछित = जिस पर दोष मढ़ा जाय।
  • अवसाद = उदासी। 
  • प्रतिहिंसा = बदला। 

1. करुणा ने सबको घेर लिया। वह बोलने की कितनी जबर्दस्त कोशिश करता है। लेकिन नतीजा कुछ नहीं, केवल कर्कश काय-काय का ढेर ! अस्फुट ध्वनियों का वमन, जैसे आदिम मानव अभी भाषा बनाने में जी-जान से लड़ रहा हो। 

संदर्भ - प्रस्तुत गद्यावतरण रांगेय राघव की प्रसिद्ध कहानी 'गूंगे' से लिया गया है। यह कहानी 'अंतरा भाग-1' में संकलित है। 

प्रसंग - गूंगा के प्रति उत्पन्न करूणा तथा उसकी कर्कश आवाज का वर्णन है। 

व्याख्या - गूंगा अपनी बात को कह नहीं सकता इसलिए इशारों से सारी बात कहता है। वह मजबूर था। गूंगे की विवशता को देखकर लोगों में करुणा का भाव जाग्रत हो गया। वे सोचने लगे कि यह किशोर गूंगा बोलने का कितना प्रयास कर रहा है किन्तु वह विवश है। उसके प्रयास का कोई परिणाम नहीं निकल रहा है। वह जैसे-जैसे बोलने का प्रयास करता है उसके मुंह से सार्थक शब्द नहीं निकलते बल्कि केवल कठोर कर्कश काय-काय के शब्द ही बाहर निकलते हैं। उसकी अस्पष्ट ध्वनियाँ मुंह से निकलती है जो समझ में नहीं आती। उसकी इस प्रकार की ध्वनियों को सुनकर ऐसा लगता था मानो वह कोई आदिम मानव है जो भाषा बनाने का भरसक प्रयत्न कर रहा हो और वह सफल नहीं हो पाया हो। 

विशेष : 

  1. गूंगे की विवशता और उसके प्रयास का वर्णन किया है। 
  2. गूंगे लोगों की विवशता का मार्मिक वर्णन है। 
  3. भाषा सरल है, भावानुकूल है।
  4. वर्णनात्मक शैली का प्रयोग है। 

गूंगे ने अपने बारे में क्या क्या बताया? - goonge ne apane baare mein kya kya bataaya?

2. वह कहानी ऐसी है, जिसे सुनकर सब स्तब्ध बैठे हैं। हलवाई के यहाँ रात-भर लड्डू बनाए हैं, कड़ाही मांजी है, नौकरी की है, कपड़े धोए हैं, सबके इशारे हैं लेकिन- गूंगे का स्वर घीत्कार में परिणत हो गया। सीने पर हाथ मारकर इशारा किया-हाथ फैलाकर कभी नहीं मांगा, भीख नहीं लेता, भुजाओं पर हाथ रखकर इशारा किया- 'मेहनत का खाता हूँ' और पेट बजाकर दिखाया 'इसके लिए, इसके लिए.......' 

संदर्भ - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक 'अंतरा भाग-1' में संकलित रांगेय राघव की कहानी 'गूंगे' से लिया गया है। 

प्रसंग - गूंगा लड़का संकेतों से अपनी परिश्रमी होने और स्वाभिमानी होने की विशेषताएँ बता रहा है। 

व्याख्या - स्त्रियाँ गूंगे से उसके भोजन प्राप्त करने के बारे में पूछ रही थीं कि उसके खाने का प्रबंध कैसे होता था ? गूंगे की कहानी सुनकर सभी को उस पर दया आ रही थी। सभी शांति से उसकी कहानी सुन रहे थे। गूंगा संकेतों से समझा रहा था कि उसने रातभर जाग कर हलवाई के यहाँ लड्डू बनाए थे, उसकी कड़ाहियाँ माँजी थीं, नौकरी की थी, कपड़े तक धोए थे। गूंगे के पास हर बात समझाने के इशारे मौजूद थे। अचानक गूंगा जोर से चीख उठा। उसने अपने सीने पर हाथ मार कर इशारा किया कि उसने कभी किसी के सामने हाथ नहीं फैलाया, वह भीख नहीं लेता। उसने अपनी बाँहों पर हाथ का संकेत किया वह मेहनत की कमाई खाता था। फिर पेट को बजाकर संकेत किया कि वह पेट या भूख शांत करने के लिए ही यह सारे काम करता था। 

विशेष :

  1. गद्यांश में लेखक ने संकेत किया है कि दिव्यांगों पर तरस दिखाना उचित नहीं है। वे भी परिश्रम से पेट भरते हैं। स्वाभिमानी हैं। 
  2. भाषा सरल है। तत्सम शब्दों का भी प्रयोग हुआ है। 
  3. शैली भावात्मक है।

3. 'कहाँ गया था ?' चमेली ने कठोर स्वर से पूछा। कोई उत्तर नहीं मिला। अपराधी की भाँति सिर झुक गया। सड़ से एक चिमटा उसकी पीठ पर जड़ दिया। किन्तु गूंगा रोया नहीं। वह अपने अपराध को जानता था। चमेली की आँखों से जमीन पर आँसू टपक गया। तब गूंगा भी रो दिया। और फिर यह भी होने लगा कि गूंगा जब चाहे भाग जाता, फिर लौट आता। उसे जगह-जगह नौकरी करके भाग जाने की आदत पड़ गई थी और चमेली सोचती कि उसने उस दिन भीख ली थी या ममता की ठोकर को निःसंकोच स्वीकार कर लिया था। 

संदर्भ - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक 'अंतरा भाग -1' में संकलित 'रांगेय राघव' की कहानी 'गूंगे' से लिया गया है। 

प्रसंग - भाग जाने के बाद घर लौट आए गूंगे पर चमेली बहुत कुपित थी। उसने उसे दंडित करने का निश्चय किया। यही इस अंश में वर्णित है। 

व्याख्या - चमेली ने चिमटा हाथ में लेकर कठोरता पूर्वक गूंगे से पूछा कि वह कहाँ चला गया था। गूंगे ने अपराधी की भाँति सिर झुका लिया। यह देख चमेली ने उसकी पीठ पर कसकर चिमटा मार दिया। इतने पर भी गूंगा रोया नहीं क्योंकि वह अपना अपराध जानता था। क्रोध में आकर चमेली ने उसे पीट तो दिया लेकिन भीतर से उसकी घायल ममता आँसू के रूप में टपक पड़ी। यह देखकर गूंगा भी रो उठा।

इस घटना के बाद तो गूंगा जब चाहे जाता और लौट आता। उसे जगह-जगह नौकरी कर भाग जाने की मानो आदत पड़ गई थी। परंतु चमेली के मन में यह प्रश्न उठता था कि क्या पीटे जाने वाले दिन, गँगे ने बासी रोटियों को भीख समझ कर खा लिया था और उसके चिमटे के प्रहार को ममतामयी माँ द्वारा दिया गया दण्ड समझ कर सहन कर लिया था। सच यही था।

  विशेष :

  1. चमेली के संवेदनशील हृदय की आँधी प्रस्तुत हुई है। 
  2. माँ के दुलार के भूखे गूंगे का चरित्र उजागर हुआ है। 
  3. भाषा सरल और शैली भावात्मक है। 

गूंगे ने अपने बारे में क्या क्या बताया? - goonge ne apane baare mein kya kya bataaya?

4. कहीं उसका भी बेटा गूंगा होता तो वह भी ऐसे ही दुःख उठाता !. वह कुछ भी नहीं सोच सकी। एक बार फिर गूंगे के प्रति हृदय में ममता भर आई। वह लौट कर चूल्हे पर जा बैठी, जिसमें अंदर आग थी, लेकिन उसी आग से वह सब पक रहा था जिससे सबसे भयानक आग बुझती है पेट की आग, जिसके कारण आदमी गुलाम हो जाता है। 

संदर्भ - प्रस्तुत गद्यावतरण 'अंतरा भाग-1' में संकलित कहानीकार रांगेय राघव की कहानी 'गूंगे' से उदधृत है। 

प्रसंग - चमेली के पुत्र बसंता ने गूंगे पर चपत जड़ दी। गूंगे ने चमेली से बसंता की शिकायत करने का प्रयास किया, किन्तु चमेली ने पुत्र का पक्ष लेकर उसे मारने के लिए हाथ उठाया, गूंगे ने उसका हाथ पकड़ लिया। चमेली सोचने लगी मेरा बेटा भी ऐसा होता तो इसके आगे वह कुछ नहीं सोच सकी। 

व्याख्या - चमेली गूंगे की विवशता के बारे में सोचते-सोचते अपने बेटे के बारे में सोचने लगी, यदि मेरा बेटा भी इस गूंगे की तरह ही गूंगा होता तो वह भी ऐसा ही कष्ट उठाता जैसा यह गूंगा उठा रहा है। इस विचार ने उसे भीतर तक हिला दिया और वह आगे कुछ नहीं सोच सकी। उसका हृदय करुणा से भर गया। एक बार फिर गूंगे की प्रति चमेली के मन में ममता भर गई। वह विचारों में खोई चूल्हे के पास जाकर बैठ गई। उस चूल्हे में आग जल रही थी। चूल्हे के ऊपर वह भोजन बन रहा था जो मानव के पेट की आग को (भूख को) बुझाता है। इस पेट की आग को बुझाने के लिए मनुष्य अपमान सहन करता है, लोगों की गुलामी करता है, अपने स्वाभिमान को खो देता है। 

विशेष :

  1. चमेली ममतामयी है, यह दिखाया गया है। 
  2. भूख किस प्रकार मनुष्य के स्वाभिमान को समाप्त कर देती है, यह दिखाया गया है। 
  3. दिव्यांगों के प्रति सहानुभूति रखने का संदेश निहित है। 
  4. गूंगे के चरित्र की विशेषता-स्वाभिमान का उल्लेख है। 
  5. भाषा सरल एवं शैली भावात्मक है।

5. कान के न जाने किस पर्दे में कोई चेतना है कि गूंगा उसकी आवाज को कभी अनसुना नहीं कर सकता, वह आया। उसकी आँखों में पानी भरा था। जैसे उनमें एक शिकायत थी, पक्षपात के प्रति तिरस्कार था। चमेली को लगा कि लड़का बहुत तेज है। बरबस ही उसके होठों पर मुस्कान छा गई। कहा 'ले खा ले' और हाथ बढ़ा दिया। 

संदर्भ - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक 'अंतरा भाग -1' में संकलित रांगेय राघव की कहानी 'गूंगे' से लिया गया है। 

प्रसंग - बसंता के प्रति चमेली का पक्षपात गूंगे को अखरा था और उसने चमेली का हाथ पकड़ लिया था। चमेली रसोई में बैठी गूंगे के व्यवहार पर विचार करती रही। उसके मन में गूंगे के प्रति ममता जागी तो उसने गूंगे को पुकारा। 

व्याख्या - चमेली बासी रोटियाँ लेकर बाहर निकली और उसने गूंगे को पुकारा। गूंगा बहरा भी था। किन्तु वह चमेली की पुकार कैसे सुन लेता था, यह बड़े आश्चर्य की बात थी। इस पुकार को सुनकर वह तुरंत आता था। यद्यपि वह चमेली के पक्षपातपूर्ण व्यवहार से दुःखी था, फिर भी वह तुरंत आ पहुँचा। उसकी आँखों में आँसू थे। आँखें बता रही थीं कि उसे बड़ा असंतोष था और पक्षपात से प्रति तिरस्कार की भावना भी थी। उसके इस हावभाव को देखते ही चमेली समझ गई कि उस लड़के में स्वाभिमान का भाव बहुत अधिक था। उसे बहकाया नहीं जा सकता था। यह देखकर वह अपनी मुस्कराहट छिपा नहीं सकी। उसने गूंगे की तरफ रोटियाँ बढ़ाते हुए खा लेने को कहा। 

विशेष :

  1. गद्यांश में दिखाया गया है कि दिव्यांग व्यक्तियों में भी अपने स्वाभिमान को लेकर बहत संवेदनशीलता होती है।
  2. संदेश है कि दिव्यांगों के मन को ठेस पहुँचाने वाला व्यवहार नहीं करना चाहिए। भाषा सरल और शैली भाव प्रधान है। 

गूंगे ने अपने बारे में क्या क्या बताया? - goonge ne apane baare mein kya kya bataaya?

6. गूंगा इस स्वर की, इस सबकी उपेक्षा नहीं कर सकता। वह हँस पड़ा। अगर उसका रोना एक अजीब दर्दनाक आवाज थी तो यह हँसना और कुछ नहीं- एक अचानक गुर्राहट-सी चमेली के कानों में बज उठी। उस अमानवीय स्वर को सुनकर वह भीतर-ही-भीतर काँप उठी। यह उसने क्या किया था ? उसने एक पशु पाला था। जिसके हृदय में मनुष्यों की-सी वेदना थी। 

संदर्भ - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक 'अंतरा भाग-1' में संकलित 'रांगेय राघव' की कहानी 'गूंगे' से लिया गया है। 

प्रसंग - इस अंश में कहानीकार ने गूंगे किशोर के रोने और हँसने की ध्वनियों का श्रोताओं पर क्या प्रभाव पड़ता था, यह दिखाया है। 

व्याख्या - चमेली की पुकार के स्वर को सुनकर और उसके ममतापूर्ण व्यवहार को देखकर, गूंगा अपने को रोक नहीं सका। वह भी हँस पड़ा। गूंगे के रोने में एक अजीब-सी दर्द भरी आवाज सुनाई देती थी। उसका वह हँसना चमेली को ऐसा लगा जैसे कोई पशु गुर्रा रहा हो। उस ध्वनि को सुनकर उसका मन काँप उठा। वह सोचने लगी कि क्या उस गूंगे को आश्रय देकर उसने कोई गलती कर दी थी ? उसे लगा कि उसने मनुष्य के रूप में किसी पशु को पाला था, जो रूप-रंग और मनोभावों से मानवों के समान संवेदनशील था लेकिन पशु के समान अपनी वेदना को मुख से व्यक्त नहीं कर पाता था। अतः वह उसकी ममता और क्षमा का पात्र था। 

विशेष :

  1. गद्यांश में चमेली और गूंगे की मार्मिक भावनाओं को अभिव्यक्ति मिली है। 
  2. कहानीकार ने मानव-मनोविज्ञान का सहारा लेकर प्रसंग को बड़ा हृदयस्पर्शी बना दिया है। 
  3. भाषा सरल है। शैली भावात्मक और शब्द चित्रात्मक है। 

7. मारने से यह ठीक नहीं हो सकता। अपराध को स्वीकार करा दंड न देना ही शायद कुछ असर करे और फिर कौन मेरा अपना है। रहना हो तो ठीक से रहे, नहीं तो फिर जाकर सड़क पर कुत्तों की तरह जूठन पर जिंदगी बिताए, दर-दर अपमानित 

संदर्भ - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक 'अंतरा भाग-1' में संकलित 'रांगेय राघव' की कहानी 'गूंगे' से लिया गया है। 

प्रसंग - गूंगे का भाग जाना और चोरी आदि करना, चमेली को बहुत बुरा लगता था। एक दिन वह चोरी के आरोप में उस पर बहुत क्रुद्ध हो जाती है लेकिन उसे पीटने के बजाय वह सोचती है कि गूंगा मार-पीट से नहीं सुधरेगा। अतः उसे घर से निकल जाने की धमकी दी जाये। 

व्याख्या - गूंगे के बार-बार भागने और चोरी के आरोप लगने से चमेली बहुत क्षुब्ध थी। इससे उसके परिवार का मजाक बनता था। एक दिन गूंगे पर फिर चोरी करने का आरोप लगा तो वह बहुत क्रोधित हो उठी। बहुत देर तक वह गूंगे को क्रोध भरी दृष्टि से देखती रही। फिर उसने सोचा कि वह लड़का मारपीट करने से नहीं सुधर पाएगा। इसके स्थान पर पहले इससे अपराध स्वीकार कराया जाय और फिर दंड न दिया जाय। 

शायद इस मनोवैज्ञानिक उपाय से यह सुधर जाय। चमेली ने यह भी सोच लिया कि यदि गूंगा फिर भी नहीं सुधरता है तो न सुधरे। कौन वह उसका अपना बेटा है जो वह उसकी इतनी चिंता करे। नहीं सुधरेगा तो फिर पहले की तरह सड़कों पर भटकेगा। कुत्तों की तरह दूसरों की जूठन या दया से पेट भरेगा। फिर पहले की तरह द्वार-द्वार पर अपमानित होगा और झूठे आरोपों को सहेगा। चमेली को कुछ कठोरता दिखाने पर विवश होना पड़ा। 

विशेष :

  1. चमेली और गूंगे के बीच भावनात्मक जुड़ाव का मार्मिक चित्रण हुआ है। 
  2. संदेश है कि बच्चों और विशेषकर दिव्यांगों को मनोवैज्ञानिक उपायों से सुधारने का प्रयास ही उचित है। अधिक कठोरता उनको विद्रोही भी बना सकती है। 
  3. भाषा सरल है। शैली भावात्मक और मनोवैज्ञानिकता लिए है। 

गूंगे ने अपने बारे में क्या क्या बताया? - goonge ne apane baare mein kya kya bataaya?

8. किन्तु वह क्षोभ, वह क्रोध, सब उसके सामने निष्फल हो गए; जैसे मंदिर की मूर्ति कोई उत्तर नहीं देती, वैसे ही उसने भी कुछ नहीं कहा। केवल इतना समझ सका कि मालकिन नाराज है और निकल जाने को कह रही हैं। इसी पर उसे अचरज और अविश्वास हो रहा है। चमेली अपने आप लज्जित हो गई। कैसी मूर्ख है वह! बहरे से जाने क्या-क्या कह रही थी? वह क्या कुछ सुनता है ? हाथ पकड़कर जोर से एक झटका दिया और उसे दरवाजे के बाहर धकेलकर निकाल दिया। गूंगा धीरे धीरे चला गया। चमेली देखती रही। 

संदर्भ - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक 'अंतरा भाग-9' में संकलित 'रांगेय राघव' की कहानी 'गूंगे' से अवतरित है। 
प्रसंग चमेली ने चोरी के आरोप से खिन्न होकर गूंगे को घर से निकल जाने को कहा। क्रोध में आकर उसने गूंगे को मक्कार, बदमाश, भिखमंगा, चटोरा आदि बताते हुए फटकारा और उसे घर से निकल जाने को कह दिया। 

व्याख्या - क्रोध में आकर चमेली ने गूंगे को बहुत खरी-खोटी सुनाई लेकिन इस सबका गूंगे पर कोई प्रभाव नहीं दिखा। चमेली का क्षोभ और क्रोध बहरे और गूंगे लड़के के सामने व्यर्थ हो गए। यह कुछ वैसा ही दृश्य था जैसे कोई मंदिर में स्थित मूर्ति के सामने कितना और कुछ भी क्यों न कहे, मूर्ति कोई उत्तर नहीं देती। चमेली आवेश में आकर न जाने क्या-क्या कह गई, पर गूंगे पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखाई दी। 

गूंगा केवल इतनी ही समझ पाया कि उसकी मालकिन बहुत नाराज थी और उसको घर से निकल जाने को कही रही थी। गूंगे को चमेली के ऐसे व्यवहार पर बड़ा दु:ख और अविश्वास हो रहा था। यह देखकर चमेली मन-ही-मन बड़ी लज्जित हो गई। एक बहरे व्यक्ति से उसने क्या-क्या कह डाला और कब बेघर हो गया। 

उसने चिढ़कर गूंगे का हाथ पकड़ा और जोर का झटका दिया। उसे खींचकर बाहर धकेल दिया। गूंगा बिना कुछ विरोध जताए धीरे-धीरे चला गया। चमेली उसे जाते हुए देखती रही। कुछ भी नहीं बोली। 

विशेष :

  1. चमेली के व्यवहार में कहानीकार ने एक माँ की व्याकुल ममता के दर्शन कराए हैं। 
  2. अपने पाल्य को सुधारने के लिए वह कठोर बनकर उसे घर से निकाल रही है। 
  3. गूंगे की दयनीय स्थिति द्वारा कहानीकार, पाठकों के हृदय में सहानुभूति जगाने में सफल रहा है। 
  4. भाषा भावों के अनुरूप है। शैली भावात्मक है। 

गूंगे ने अपने बारे में क्या क्या बताया? - goonge ne apane baare mein kya kya bataaya?

9. और ये गूंगे ........... अनेक-अनेक हो संसार में भिन्न-भिन्न रूपों में छा गए हैं जो कहना चाहते हैं, पर कह नहीं पाते। जिनके हृदय की प्रतिहिंसा न्याय और अन्याय को परख कर भी अत्याचार को चुनौती नहीं दे सकती, क्योंकि बोलने के लिए स्वर होकर भी स्वर में अर्थ नहीं है....क्योंकि वे असमर्थ हैं।

संदर्भ - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक 'अंतरा भाग-1' में संकलित रांगेय राघव की कहानी 'गूंगे' से लिया गया है। 

प्रसंग - चमेली ने क्रोध में आकर गूंगे को घर से निकाल दिया। घण्टे भर बाद ही वह सड़क के लड़कों से लड़ाई में सिर फुड़वाकर लौट आया। उसका सर फट गया था और वह द्वार पर पड़ा हुआ घायल कुत्ते की तरह चिल्ला रहा था। चमेली यह दृश्य देखकर अवाक सी रह गई। उसे गूंगे मौन में असमर्थ लोगों का हाहाकार सुनाई दे रहा था। 

व्याख्या - गूंगे की दुर्दशा देखकर चमेली बड़ी मर्माहत हुई। उसका हृदय असमर्थों और दिव्यांगों पर होने वाले अत्याचारों को याद करके बड़ा व्यथित हो गया। वह सोचने लगी कि सारे संसार में इस गूंगे जैसे दलित व उपेक्षित लोग भिन्न-भिन्न रूपों में अन्याय और अत्याचार सहते आ रहे हैं। ये अपनी व्यथा को चाहकर भी नहीं कह पाते हैं। ये वे अभागे लोग हैं जो न्याय और अन्याय को जानकर भी अन्याय का विरोध नहीं कर पाते। ये अत्याचारों को चुनौती देने में असमर्थ हैं। इनके पास अपना आक्रोश प्रकट करने के लिए वाणी तो है लेकिन उसमें समाज को प्रभावित करने की शक्ति नहीं है। इसी कारण वे वाणी होने पर भी गूंगे हैं क्योंकि वे अपनी रक्षा करने में असमर्थ हैं।

दार्शनिक-सी होकर चमेली सोचने लगती है कि आज के सामाजिक परिवेश में सभी लोग गूगों के ही समान हो गए हैं। ऐसा कौन है जिसके मन में सामाजिक उपेक्षा, राष्ट्रीय कुव्यवस्था, धार्मिक भेदभाव और व्यक्तिगत अन्याय के प्रति द्वेष और घृणा नहीं उत्पन्न होती ? सभी के हृदय प्रतिशोध लेने के लिए छटपटाते हैं। इतने पर भी ऐसे लोग झूठी सुख-सुविधाओं के जाल में नहीं फँसते क्योंकि वे समाज में सच्चा स्नेह भाव और सच्ची समानता देखना चाहते हैं। इसी असमंजस में पड़े-पड़े लोग गूंगे रहकर ही सारा जीवन बिता देते हैं। 

विशेष : 

  • कहानीकार ने समाज के उन लोगों के प्रति सहानुभूति जगाने का प्रयास किया है जो अपनी विवशता या असमर्थता के कारण अन्याय सहते रहते हैं। 
  • लेखक ने कहानी के 'गूंगे' की भावनाओं के माध्यम से मानव समाज में गूंगे रहकर जी रहे अभागे लोगों की मनोभावनाओं के दर्शन कराए हैं। 
  • भाषा और शैली भाव व्यंजना के अनुरूप है।

को गूंगे ने अपने बारे में क्या क्या बताया और कैसे?

चमेली को गूँगे ने अपने बारे में बताया कि उसकी माँ उसके पिता के मरने के बाद उसे छोड़कर चली गई थी। उसके रिश्तेदारों ने उसे पाला था। वह उनके पास से भाग आया क्योंकि वे उसे बहुत मारते थे। उसने बहुत जगहों पर काम करके कमाया लेकिन कभी किसी के आगे भीख नहीं माँगी।

गूंगे कहानी में गूंगे को किसका प्रतीक बताया है?

उत्तर: गूंगा चमेली के घर पर रहने लग गया था। उसे वहां पर अपनत्व का एहसास होता है। लेकिन वह उस घर में अपने गूंगे होने के कारण दया या सहानुभूति नहीं चाहता है, बल्कि अधिकार चाहता है

ख गूँगे ने अपने स्वाभिमानी होने का परिचय कैसे दिया?

गूँगे ने संकेत के माध्यम से बताया कि वह स्वाभिमानी है। उसने अपने सीने पर हाथ रखकर संकेत किया कि उसने आज तक किसी के सम्मुख हाथ नहीं फैलाया है। उसने कभी भीख नहीं माँगी है। उसने अपनी भुजाओं को दिखाया और संकेत किया कि उसने मेहनत करके खाया है।

गूंगे कहानी पढ़कर आपके मन में कौन से भाव उत्पन्न होते हैं और क्यों?

गूँगे' कहानी पढ़कर मेरे मन में गूँगे के प्रति सहानुभूति के भाव उत्पन्न होते हैं। मेरे अनुसार वह सहानुभूति का पात्र नहीं है, वह सम्मान का पात्र है। यदि उसे सही लोग मिलते तथा सही दिशा-निर्देश मिलता, तो वह हमारी तरह जीवन जी पाता। उसके जीवन में व्याप्त लोगों का व्यवहार उसे सहानुभूति का पात्र बना देता है।