Rajasthan Board RBSE Solutions for Class 11 Hindi Antra Chapter 4 गूँगे Textbook Exercise Questions and Answers. Show
RBSE Class 11 Hindi Solutions Antra Chapter 4 गूँगेRBSE Class 11 Hindi गूँगे Textbook Questions and Answersप्रश्न 1. इसी प्रकार जब चमेली गूंगे के सामने बासी रोटियाँ फेंक कर खाने को कहती है तो वह चुपचाप खड़ा रहता है रोटियों को हाथ तक नहीं लगाता। जब गूंगे की शिकायत पर ध्यान न देकर चमेली अपने बेटे का पक्ष लेती है और उस पर हाथ उठना चाहती है तो गूंगा उसका हाथ पकड़ लेता है। स्वाभिमानी होने कारण ही वह सड़क के लड़कों से भिड़ जाता है और लहूलुहान होकर घर लौटता है। इस प्रकार गूंगे ने अनेक बोर प्रमाणित किया कि वह एक स्वाभिमानी व्यक्ति था। प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. गूंगा भी अपनी विकलांगता के कारण चमेली की दया और सहानुभूति का पात्र बना था। यदि स्किल इंडिया जैसा कोई कार्यक्रम उस समय प्रचलन रहा होता तो गूगों की स्थिति ऐसी दयनीय नहीं होती। वह ऐसे कार्यक्रम का हिस्सा बनकर किसी-न-किसी कार्य में दक्षता प्राप्त कर लेता और स्वावलम्बी जीवन बिता रहा होता। पहले की अपेक्षा आज दिव्यांगों की स्थिति में काफी सुधार हुआ है। उनको रोजगार दिलाने में तथा कार्यकुशल बनाने में स्किल इंडिया प्रोग्राम के अतिरिक्त भी अन्य अनेक सुविधाएँ प्राप्त हैं। दिव्यांग लोग अनेक महत्वपूर्ण पदों पर सफलता से अपनी जिम्मेदारियाँ निभा रहे हैं। प्रश्न 10. प्रश्न 11. (ख) 'जैसे मन्दिर की मूर्ति कोई उत्तर नहीं देती, वैसे ही उसने भी कुछ नहीं कहा।' योग्यता विस्तार - प्रश्न 1. यदि कोई संस्था दिव्यांगों के लिए कोई कार्यक्रम चला रही होगी तो मैं अपने सहपाठियों के साथ उसमें भाग लूंगा। दिव्यांगों को सम्मान दिलाने के लिए होने वाली रैली इत्यादि में उत्साह के साथ भाग लूगा। दिव्यांग साथियों को सरकार से मिलने वाली सुविधाओं तथा छात्रवृत्ति आदि के बारे में बताऊँगा। व्यक्तिगत रूप में मैं दिव्यांगों के साथ सदा शिष्ट व्यवहार करूँगा और उनके स्वाभिमान और स्वावलंबन का सदा आदर करूँगा। प्रश्न 2. RBSE Class 11 Hindi गूँगे Important Questions and Answersबहुविकल्पीय प्रश्न - प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. अतिलघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर - प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. लघूत्तरात्मक प्रश्नोत्तर - प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. निबंधात्मक प्रश्नोत्तर - प्रश्न 1. एक दिन चमेली ने उसकी पीठ पर चिमटा जड़ दिया क्योंकि वह भाग गया था। उसे पीटने के बाद पश्चात्ताप के कारण चमेली रोने लगी। गूंगे को चमेली की पीड़ा और पश्चात्ताप की अनुभूति हुई और वह रोने लगा। गूंगा मनुष्य था, उसमें स्वाभिमान था। वह भीख मांगने की अपेक्षा मेहनत करना पसन्द करता था। उसने हलवाई के यहाँ काम किया, कपड़े धोए और पेट भरा। दिव्यांग होते हुए भी वह स्वाभिमानी था। सड़क के लड़कों से उसकी लड़ाई स्वाभिमानी होने के कारण हुई। प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. कष्ट सहिष्णु - गूंगा कष्ट सहिष्णु है। चमेली ने उस पर चिमटे का वार किया पर उसने उसका विरोध नहीं किया बसंता ने भी उस पर हाथ उठाया किन्तु उस समय भी उसने अपमान सहन कर लिया। बुआ और फूफा की मार भी सही। अनाथ बालक - गूंगा अनाथ था। बचपन में माँ छोड़कर चली गई। पिता भी मर गया। अनाथ होने की स्थिति में उसकी बुआ और फूफा उसे अपने साथ ले गए, किन्तु उन्होंने उसके साथ अमानवीय व्यवहार किया। उपेक्षा का पात्र - गूंगे को कहीं भी सहानुभूति नहीं मिली। चमेली ने उसे अपने घर नौकर अवश्य रख लिया किन्तु उसका व्यवहार भी अच्छा नहीं था। उसने गे को चिमटे से पीटा। बसंता ने उसे पीटा फिर भी उसने अपने पुत्र का ही पक्ष लिया और उसकी उपेक्षा की। प्रतीक-पात्र - गँगा एक प्रतीक पात्र है। कहानीकार वास्तव में उसके रूप उन समस्त लोगों को गँगा कहना चाहता है जो अपने ऊपर होने वाले अन्याय को चुपचाप सहन कर लेते हैं, उसका प्रतिकार नहीं करते। गूँगे Summary in Hindiलेखक परिचय : रांगेय राघव का जन्म आगरा में हुआ था। आपका मूल नाम तिरुमल्ले गंबाकम वीर राघव आचार्य था। इन्होंने रांगेय राघव नाम से साहित्य सृजन किया। राघव जी के पूर्वज दक्षिण आरघाट से आगरा आकर बस गए थे। आपने आगरा विश्वविद्यालय से हिन्दी एम.ए. और पी-एच.डी. उपाधियाँ प्राप्त की। रचनाएँ - कहानी संग्रह - रामराज्य का वैभव, देवदासी, समुद्र के फेन, अधूरी सूरत, जीवन के दाने, ऐयाश मुर्दे, अंगार न बुझे आदि। उपन्यास - घरोंदा, विषाद-मठ, मुर्दो का टीला, सीधा-सादा रास्ता, अँधेरे के जुगनू, बोलते खंडहर, कब तक पुकारूँ आदि। संक्षिप्त कथानक : 'गूंगे' एक गूंगे किशोर के जीवन पर आधारित कहानी है। इस कहानी में लेखक ने समाज के दिव्यांगों के प्रति चली आ रही संवेदनहीनता को प्रस्तुत किया है। गूंगा न बोल सकता था न सुन सकता था किन्तु बुद्धि का तेज और स्वाभिमानी था। संकेतों द्वारा अपनी बात समझाने में कुशल था। चमेली नामक महिला को उस पर दया आ गई और उसने उसे नौकर रख लिया। वह बीच-बीच में भाग जाता था। चमेली को कभी-कभी उस पर क्रोध भी आ जाता। एक बार चमेली के लड़के ने उसे खेल में पीट दिया और माँ से शिकायत कर दी कि गूंगे ने उसे पीटा था। चमेली ने उसे डाँटा और उसे पीटना चाहा लेकिन उसने चमेली का हाथ पकड़ लिया। उसे लगा जैसे उसके बेटे ने ही उसका हाथ पकड़ लिया हो। उसे बहुत बुरा लगा। एक बार क्रोध में आकर उसने गूंगे को धक्का देकर घर से निकाल दिया। गूंगा चुपचाप चला गया। घण्टे भर बाद वह लौट आया। सड़क के लड़कों ने उसे बहुत पीटा था। उसका सर फट गया था। चमेली चुपचाप उसे देखती रही। उसके हृदय में गूंगे के प्रति अपार करुणा उमड़ रही थी। कहानी का सारांश : गूंगे की कहानी - गूंगा कहानी का मुख्य पात्र है। वह वज्र बहरा है और गूंगा भी है। उसने इशारे से बताया कि जब वह छोटा था तब उसकी माँ जो यूँघट काढ़ती थी, उसे छोड़कर भाग गई। बड़ी-बड़ी मूंछों वाला बाप मर गया। किसने पाला यह तो पता नहीं, पर घर पर बुआ और फूफा मारते थे। वे चाहते थे कि गूंगा पल्लेदारी करके उन्हें धन दे। करुणा की भावना - गूंगे की कहानी सुनकर सबके मन में करुणा का भाव जाग्रत हुआ। उसके बोलने का प्रयास, उसकी अस्फुट ध्वनियाँ और हृदय के भावों को प्रकट करने की असमर्थता ने चमेली और सुशीला को द्रवित कर दिया। दोनों के हृदय में उसके प्रति सहानुभूति पैदा हो गई। बोलने की असमर्थता का कारण - गूंगे ने इशारे से बताया कि किसी ने बचपन में गला साफ करने की कोशिश में गला काट दिया। तभी से वह ऐसे बोल रहा है जैसे घायल पशु कराह रहा हो, जैसे कुत्ता चिल्ला रहा हो। कभी-कभी स्वर में ज्वालामुखी के विस्फोट की सी भयानक आवाज होती है। जीविकोपार्जन - उसने बताया हलवाई के यहाँ रात-भर मजदूरी करता है। भीख नहीं लेता। पेट भरने के लिए मेहनत करता है और स्वाभिमान से जीता है। चमेली का आश्रय देना - गूंगे की कहानी सुनकर चमेली को दुःख हुआ। वह रोने लगी। उसने गूंगे को नौकर रख लिया। गूंगे ने पूछा क्या दोगी ? खाना ? चमेली ने चार उँगलियाँ दिखाकर चार रुपये देने का इशारा कर दिया। उसने सोचा यह कोई कार्य नहीं भी करेगा तो इससे बच्चों की तबीयत तो बहल जाएगी। गूंगे का लौटना - गूंगा घर से अचानक भाग गया। फिर एकाएक द्वार पर आ गया और भूखा होने का इशारा किया। चमेली ने झुंझलाकर उसकी ओर रोटियाँ फेंक दी और पीठ मोड़कर खड़ी हो गई। गूंगे ने पहले रोटी नहीं उठाई, बाद में खा ली। चमेली ने उसकी पीठ पर चिमटा जड़ दिया। पहले तो वह रोया नहीं, किन्तु चमेली को रोता देखकर वह भी रो दिया। बसन्ता का गूंगे को पीटना - चमेली के पुत्र बसन्ता ने गूंगे को पीटा, उसने भी बसन्ता को पीटने के लिए हाथ उठाया किन्तु मालिक का पुत्र समझकर रह गया। उसने चमेली से शिकायत की पर उसने बसन्ता का ही पक्ष लिया और उसे पीटने के लिए हाथ उठाया। गूंगे ने उसका हाथ पकड़ लिया। बाद में पुत्र के प्रति चमेली के पक्षपात करने के कारण उसे दुख हुआ। गूंगे का दण्ड - गूंगे की चोरी की आदत को देखकर चमेली ने उसे डाँट दिया। गूंगा सर झुकाकर शान्त खड़ा रहा। मानो उसने अपना अपराध स्वीकार कर लिया हो। चमेली ने उसे घर से निकाल दिया। उसे चमेली के व्यवहार पर आश्चर्य हुआ गूंगे की पिटाई - चमेली ने गूंगे को हाथ पकड़ कर घर से निकाल दिया। घंटे भर बाद गूंगा खून से लथपथ लौटा। सड़क के लड़कों ने उसका सिर फोड़ दिया था। दरवाजे की दहलीज पर सिर रखकर वह कुत्ते की तरह चिल्ला रहा था। चमेली ने सोचा आज समाज में सभी गूंगे हैं। आज प्रत्येक व्यक्ति का हृदय अन्याय और अनाचार से छटपटा रहा है। किन्तु . किसी में भी अन्याय और शोषण का विरोध करने की शक्ति नहीं है। सभी गूंगे हैं। कठिन शब्दार्थ :
1. करुणा ने सबको घेर लिया। वह बोलने की कितनी जबर्दस्त कोशिश करता है। लेकिन नतीजा कुछ नहीं, केवल कर्कश काय-काय का ढेर ! अस्फुट ध्वनियों का वमन, जैसे आदिम मानव अभी भाषा बनाने में जी-जान से लड़ रहा हो। संदर्भ - प्रस्तुत गद्यावतरण रांगेय राघव की प्रसिद्ध कहानी 'गूंगे' से लिया गया है। यह कहानी 'अंतरा भाग-1' में संकलित है। प्रसंग - गूंगा के प्रति उत्पन्न करूणा तथा उसकी कर्कश आवाज का वर्णन है। व्याख्या - गूंगा अपनी बात को कह नहीं सकता इसलिए इशारों से सारी बात कहता है। वह मजबूर था। गूंगे की विवशता को देखकर लोगों में करुणा का भाव जाग्रत हो गया। वे सोचने लगे कि यह किशोर गूंगा बोलने का कितना प्रयास कर रहा है किन्तु वह विवश है। उसके प्रयास का कोई परिणाम नहीं निकल रहा है। वह जैसे-जैसे बोलने का प्रयास करता है उसके मुंह से सार्थक शब्द नहीं निकलते बल्कि केवल कठोर कर्कश काय-काय के शब्द ही बाहर निकलते हैं। उसकी अस्पष्ट ध्वनियाँ मुंह से निकलती है जो समझ में नहीं आती। उसकी इस प्रकार की ध्वनियों को सुनकर ऐसा लगता था मानो वह कोई आदिम मानव है जो भाषा बनाने का भरसक प्रयत्न कर रहा हो और वह सफल नहीं हो पाया हो। विशेष :
2. वह कहानी ऐसी है, जिसे सुनकर सब स्तब्ध बैठे हैं। हलवाई के यहाँ रात-भर लड्डू बनाए हैं, कड़ाही मांजी है, नौकरी की है, कपड़े धोए हैं, सबके इशारे हैं लेकिन- गूंगे का स्वर घीत्कार में परिणत हो गया। सीने पर हाथ मारकर इशारा किया-हाथ फैलाकर कभी नहीं मांगा, भीख नहीं लेता, भुजाओं पर हाथ रखकर इशारा किया- 'मेहनत का खाता हूँ' और पेट बजाकर दिखाया 'इसके लिए, इसके लिए.......' संदर्भ - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक 'अंतरा भाग-1' में संकलित रांगेय राघव की कहानी 'गूंगे' से लिया गया है। प्रसंग - गूंगा लड़का संकेतों से अपनी परिश्रमी होने और स्वाभिमानी होने की विशेषताएँ बता रहा है। व्याख्या - स्त्रियाँ गूंगे से उसके भोजन प्राप्त करने के बारे में पूछ रही थीं कि उसके खाने का प्रबंध कैसे होता था ? गूंगे की कहानी सुनकर सभी को उस पर दया आ रही थी। सभी शांति से उसकी कहानी सुन रहे थे। गूंगा संकेतों से समझा रहा था कि उसने रातभर जाग कर हलवाई के यहाँ लड्डू बनाए थे, उसकी कड़ाहियाँ माँजी थीं, नौकरी की थी, कपड़े तक धोए थे। गूंगे के पास हर बात समझाने के इशारे मौजूद थे। अचानक गूंगा जोर से चीख उठा। उसने अपने सीने पर हाथ मार कर इशारा किया कि उसने कभी किसी के सामने हाथ नहीं फैलाया, वह भीख नहीं लेता। उसने अपनी बाँहों पर हाथ का संकेत किया वह मेहनत की कमाई खाता था। फिर पेट को बजाकर संकेत किया कि वह पेट या भूख शांत करने के लिए ही यह सारे काम करता था। विशेष :
3. 'कहाँ गया था ?' चमेली ने कठोर स्वर से पूछा। कोई उत्तर नहीं मिला। अपराधी की भाँति सिर झुक गया। सड़ से एक चिमटा उसकी पीठ पर जड़ दिया। किन्तु गूंगा रोया नहीं। वह अपने अपराध को जानता था। चमेली की आँखों से जमीन पर आँसू टपक गया। तब गूंगा भी रो दिया। और फिर यह भी होने लगा कि गूंगा जब चाहे भाग जाता, फिर लौट आता। उसे जगह-जगह नौकरी करके भाग जाने की आदत पड़ गई थी और चमेली सोचती कि उसने उस दिन भीख ली थी या ममता की ठोकर को निःसंकोच स्वीकार कर लिया था। संदर्भ - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक 'अंतरा भाग -1' में संकलित 'रांगेय राघव' की कहानी 'गूंगे' से लिया गया है। प्रसंग - भाग जाने के बाद घर लौट आए गूंगे पर चमेली बहुत कुपित थी। उसने उसे दंडित करने का निश्चय किया। यही इस अंश में वर्णित है। व्याख्या - चमेली ने चिमटा हाथ में लेकर कठोरता पूर्वक गूंगे से पूछा कि वह कहाँ चला गया था। गूंगे ने अपराधी की भाँति सिर झुका लिया। यह देख चमेली ने उसकी पीठ पर कसकर चिमटा मार दिया। इतने पर भी गूंगा रोया नहीं क्योंकि वह अपना अपराध जानता था। क्रोध में आकर चमेली ने उसे पीट तो दिया लेकिन भीतर से उसकी घायल ममता आँसू के रूप में टपक पड़ी। यह देखकर गूंगा भी रो उठा। इस घटना के बाद तो गूंगा जब चाहे जाता और लौट आता। उसे जगह-जगह नौकरी कर भाग जाने की मानो आदत पड़ गई थी। परंतु चमेली के मन में यह प्रश्न उठता था कि क्या पीटे जाने वाले दिन, गँगे ने बासी रोटियों को भीख समझ कर खा लिया था और उसके चिमटे के प्रहार को ममतामयी माँ द्वारा दिया गया दण्ड समझ कर सहन कर लिया था। सच यही था। विशेष :
4. कहीं उसका भी बेटा गूंगा होता तो वह भी ऐसे ही दुःख उठाता !. वह कुछ भी नहीं सोच सकी। एक बार फिर गूंगे के प्रति हृदय में ममता भर आई। वह लौट कर चूल्हे पर जा बैठी, जिसमें अंदर आग थी, लेकिन उसी आग से वह सब पक रहा था जिससे सबसे भयानक आग बुझती है पेट की आग, जिसके कारण आदमी गुलाम हो जाता है। संदर्भ - प्रस्तुत गद्यावतरण 'अंतरा भाग-1' में संकलित कहानीकार रांगेय राघव की कहानी 'गूंगे' से उदधृत है। प्रसंग - चमेली के पुत्र बसंता ने गूंगे पर चपत जड़ दी। गूंगे ने चमेली से बसंता की शिकायत करने का प्रयास किया, किन्तु चमेली ने पुत्र का पक्ष लेकर उसे मारने के लिए हाथ उठाया, गूंगे ने उसका हाथ पकड़ लिया। चमेली सोचने लगी मेरा बेटा भी ऐसा होता तो इसके आगे वह कुछ नहीं सोच सकी। व्याख्या - चमेली गूंगे की विवशता के बारे में सोचते-सोचते अपने बेटे के बारे में सोचने लगी, यदि मेरा बेटा भी इस गूंगे की तरह ही गूंगा होता तो वह भी ऐसा ही कष्ट उठाता जैसा यह गूंगा उठा रहा है। इस विचार ने उसे भीतर तक हिला दिया और वह आगे कुछ नहीं सोच सकी। उसका हृदय करुणा से भर गया। एक बार फिर गूंगे की प्रति चमेली के मन में ममता भर गई। वह विचारों में खोई चूल्हे के पास जाकर बैठ गई। उस चूल्हे में आग जल रही थी। चूल्हे के ऊपर वह भोजन बन रहा था जो मानव के पेट की आग को (भूख को) बुझाता है। इस पेट की आग को बुझाने के लिए मनुष्य अपमान सहन करता है, लोगों की गुलामी करता है, अपने स्वाभिमान को खो देता है। विशेष :
5. कान के न जाने किस पर्दे में कोई चेतना है कि गूंगा उसकी आवाज को कभी अनसुना नहीं कर सकता, वह आया। उसकी आँखों में पानी भरा था। जैसे उनमें एक शिकायत थी, पक्षपात के प्रति तिरस्कार था। चमेली को लगा कि लड़का बहुत तेज है। बरबस ही उसके होठों पर मुस्कान छा गई। कहा 'ले खा ले' और हाथ बढ़ा दिया। संदर्भ - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक 'अंतरा भाग -1' में संकलित रांगेय राघव की कहानी 'गूंगे' से लिया गया है। प्रसंग - बसंता के प्रति चमेली का पक्षपात गूंगे को अखरा था और उसने चमेली का हाथ पकड़ लिया था। चमेली रसोई में बैठी गूंगे के व्यवहार पर विचार करती रही। उसके मन में गूंगे के प्रति ममता जागी तो उसने गूंगे को पुकारा। व्याख्या - चमेली बासी रोटियाँ लेकर बाहर निकली और उसने गूंगे को पुकारा। गूंगा बहरा भी था। किन्तु वह चमेली की पुकार कैसे सुन लेता था, यह बड़े आश्चर्य की बात थी। इस पुकार को सुनकर वह तुरंत आता था। यद्यपि वह चमेली के पक्षपातपूर्ण व्यवहार से दुःखी था, फिर भी वह तुरंत आ पहुँचा। उसकी आँखों में आँसू थे। आँखें बता रही थीं कि उसे बड़ा असंतोष था और पक्षपात से प्रति तिरस्कार की भावना भी थी। उसके इस हावभाव को देखते ही चमेली समझ गई कि उस लड़के में स्वाभिमान का भाव बहुत अधिक था। उसे बहकाया नहीं जा सकता था। यह देखकर वह अपनी मुस्कराहट छिपा नहीं सकी। उसने गूंगे की तरफ रोटियाँ बढ़ाते हुए खा लेने को कहा। विशेष :
6. गूंगा इस स्वर की, इस सबकी उपेक्षा नहीं कर सकता। वह हँस पड़ा। अगर उसका रोना एक अजीब दर्दनाक आवाज थी तो यह हँसना और कुछ नहीं- एक अचानक गुर्राहट-सी चमेली के कानों में बज उठी। उस अमानवीय स्वर को सुनकर वह भीतर-ही-भीतर काँप उठी। यह उसने क्या किया था ? उसने एक पशु पाला था। जिसके हृदय में मनुष्यों की-सी वेदना थी। संदर्भ - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक 'अंतरा भाग-1' में संकलित 'रांगेय राघव' की कहानी 'गूंगे' से लिया गया है। प्रसंग - इस अंश में कहानीकार ने गूंगे किशोर के रोने और हँसने की ध्वनियों का श्रोताओं पर क्या प्रभाव पड़ता था, यह दिखाया है। व्याख्या - चमेली की पुकार के स्वर को सुनकर और उसके ममतापूर्ण व्यवहार को देखकर, गूंगा अपने को रोक नहीं सका। वह भी हँस पड़ा। गूंगे के रोने में एक अजीब-सी दर्द भरी आवाज सुनाई देती थी। उसका वह हँसना चमेली को ऐसा लगा जैसे कोई पशु गुर्रा रहा हो। उस ध्वनि को सुनकर उसका मन काँप उठा। वह सोचने लगी कि क्या उस गूंगे को आश्रय देकर उसने कोई गलती कर दी थी ? उसे लगा कि उसने मनुष्य के रूप में किसी पशु को पाला था, जो रूप-रंग और मनोभावों से मानवों के समान संवेदनशील था लेकिन पशु के समान अपनी वेदना को मुख से व्यक्त नहीं कर पाता था। अतः वह उसकी ममता और क्षमा का पात्र था। विशेष :
7. मारने से यह ठीक नहीं हो सकता। अपराध को स्वीकार करा दंड न देना ही शायद कुछ असर करे और फिर कौन मेरा अपना है। रहना हो तो ठीक से रहे, नहीं तो फिर जाकर सड़क पर कुत्तों की तरह जूठन पर जिंदगी बिताए, दर-दर अपमानित संदर्भ - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक 'अंतरा भाग-1' में संकलित 'रांगेय राघव' की कहानी 'गूंगे' से लिया गया है। प्रसंग - गूंगे का भाग जाना और चोरी आदि करना, चमेली को बहुत बुरा लगता था। एक दिन वह चोरी के आरोप में उस पर बहुत क्रुद्ध हो जाती है लेकिन उसे पीटने के बजाय वह सोचती है कि गूंगा मार-पीट से नहीं सुधरेगा। अतः उसे घर से निकल जाने की धमकी दी जाये। व्याख्या - गूंगे के बार-बार भागने और चोरी के आरोप लगने से चमेली बहुत क्षुब्ध थी। इससे उसके परिवार का मजाक बनता था। एक दिन गूंगे पर फिर चोरी करने का आरोप लगा तो वह बहुत क्रोधित हो उठी। बहुत देर तक वह गूंगे को क्रोध भरी दृष्टि से देखती रही। फिर उसने सोचा कि वह लड़का मारपीट करने से नहीं सुधर पाएगा। इसके स्थान पर पहले इससे अपराध स्वीकार कराया जाय और फिर दंड न दिया जाय। शायद इस मनोवैज्ञानिक उपाय से यह सुधर जाय। चमेली ने यह भी सोच लिया कि यदि गूंगा फिर भी नहीं सुधरता है तो न सुधरे। कौन वह उसका अपना बेटा है जो वह उसकी इतनी चिंता करे। नहीं सुधरेगा तो फिर पहले की तरह सड़कों पर भटकेगा। कुत्तों की तरह दूसरों की जूठन या दया से पेट भरेगा। फिर पहले की तरह द्वार-द्वार पर अपमानित होगा और झूठे आरोपों को सहेगा। चमेली को कुछ कठोरता दिखाने पर विवश होना पड़ा। विशेष :
8. किन्तु वह क्षोभ, वह क्रोध, सब उसके सामने निष्फल हो गए; जैसे मंदिर की मूर्ति कोई उत्तर नहीं देती, वैसे ही उसने भी कुछ नहीं कहा। केवल इतना समझ सका कि मालकिन नाराज है और निकल जाने को कह रही हैं। इसी पर उसे अचरज और अविश्वास हो रहा है। चमेली अपने आप लज्जित हो गई। कैसी मूर्ख है वह! बहरे से जाने क्या-क्या कह रही थी? वह क्या कुछ सुनता है ? हाथ पकड़कर जोर से एक झटका दिया और उसे दरवाजे के बाहर धकेलकर निकाल दिया। गूंगा धीरे धीरे चला गया। चमेली देखती रही। संदर्भ - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक 'अंतरा भाग-9' में संकलित 'रांगेय राघव' की कहानी 'गूंगे' से अवतरित है। व्याख्या - क्रोध में आकर चमेली ने गूंगे को बहुत खरी-खोटी सुनाई लेकिन इस सबका गूंगे पर कोई प्रभाव नहीं दिखा। चमेली का क्षोभ और क्रोध बहरे और गूंगे लड़के के सामने व्यर्थ हो गए। यह कुछ वैसा ही दृश्य था जैसे कोई मंदिर में स्थित मूर्ति के सामने कितना और कुछ भी क्यों न कहे, मूर्ति कोई उत्तर नहीं देती। चमेली आवेश में आकर न जाने क्या-क्या कह गई, पर गूंगे पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दिखाई दी। गूंगा केवल इतनी ही समझ पाया कि उसकी मालकिन बहुत नाराज थी और उसको घर से निकल जाने को कही रही थी। गूंगे को चमेली के ऐसे व्यवहार पर बड़ा दु:ख और अविश्वास हो रहा था। यह देखकर चमेली मन-ही-मन बड़ी लज्जित हो गई। एक बहरे व्यक्ति से उसने क्या-क्या कह डाला और कब बेघर हो गया। उसने चिढ़कर गूंगे का हाथ पकड़ा और जोर का झटका दिया। उसे खींचकर बाहर धकेल दिया। गूंगा बिना कुछ विरोध जताए धीरे-धीरे चला गया। चमेली उसे जाते हुए देखती रही। कुछ भी नहीं बोली। विशेष :
9. और ये गूंगे ........... अनेक-अनेक हो संसार में भिन्न-भिन्न रूपों में छा गए हैं जो कहना चाहते हैं, पर कह नहीं पाते। जिनके हृदय की प्रतिहिंसा न्याय और अन्याय को परख कर भी अत्याचार को चुनौती नहीं दे सकती, क्योंकि बोलने के लिए स्वर होकर भी स्वर में अर्थ नहीं है....क्योंकि वे असमर्थ हैं। संदर्भ - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक 'अंतरा भाग-1' में संकलित रांगेय राघव की कहानी 'गूंगे' से लिया गया है। प्रसंग - चमेली ने क्रोध में आकर गूंगे को घर से निकाल दिया। घण्टे भर बाद ही वह सड़क के लड़कों से लड़ाई में सिर फुड़वाकर लौट आया। उसका सर फट गया था और वह द्वार पर पड़ा हुआ घायल कुत्ते की तरह चिल्ला रहा था। चमेली यह दृश्य देखकर अवाक सी रह गई। उसे गूंगे मौन में असमर्थ लोगों का हाहाकार सुनाई दे रहा था। व्याख्या - गूंगे की दुर्दशा देखकर चमेली बड़ी मर्माहत हुई। उसका हृदय असमर्थों और दिव्यांगों पर होने वाले अत्याचारों को याद करके बड़ा व्यथित हो गया। वह सोचने लगी कि सारे संसार में इस गूंगे जैसे दलित व उपेक्षित लोग भिन्न-भिन्न रूपों में अन्याय और अत्याचार सहते आ रहे हैं। ये अपनी व्यथा को चाहकर भी नहीं कह पाते हैं। ये वे अभागे लोग हैं जो न्याय और अन्याय को जानकर भी अन्याय का विरोध नहीं कर पाते। ये अत्याचारों को चुनौती देने में असमर्थ हैं। इनके पास अपना आक्रोश प्रकट करने के लिए वाणी तो है लेकिन उसमें समाज को प्रभावित करने की शक्ति नहीं है। इसी कारण वे वाणी होने पर भी गूंगे हैं क्योंकि वे अपनी रक्षा करने में असमर्थ हैं। दार्शनिक-सी होकर चमेली सोचने लगती है कि आज के सामाजिक परिवेश में सभी लोग गूगों के ही समान हो गए हैं। ऐसा कौन है जिसके मन में सामाजिक उपेक्षा, राष्ट्रीय कुव्यवस्था, धार्मिक भेदभाव और व्यक्तिगत अन्याय के प्रति द्वेष और घृणा नहीं उत्पन्न होती ? सभी के हृदय प्रतिशोध लेने के लिए छटपटाते हैं। इतने पर भी ऐसे लोग झूठी सुख-सुविधाओं के जाल में नहीं फँसते क्योंकि वे समाज में सच्चा स्नेह भाव और सच्ची समानता देखना चाहते हैं। इसी असमंजस में पड़े-पड़े लोग गूंगे रहकर ही सारा जीवन बिता देते हैं। विशेष :
को गूंगे ने अपने बारे में क्या क्या बताया और कैसे?चमेली को गूँगे ने अपने बारे में बताया कि उसकी माँ उसके पिता के मरने के बाद उसे छोड़कर चली गई थी। उसके रिश्तेदारों ने उसे पाला था। वह उनके पास से भाग आया क्योंकि वे उसे बहुत मारते थे। उसने बहुत जगहों पर काम करके कमाया लेकिन कभी किसी के आगे भीख नहीं माँगी।
गूंगे कहानी में गूंगे को किसका प्रतीक बताया है?उत्तर: गूंगा चमेली के घर पर रहने लग गया था। उसे वहां पर अपनत्व का एहसास होता है। लेकिन वह उस घर में अपने गूंगे होने के कारण दया या सहानुभूति नहीं चाहता है, बल्कि अधिकार चाहता है।
ख गूँगे ने अपने स्वाभिमानी होने का परिचय कैसे दिया?गूँगे ने संकेत के माध्यम से बताया कि वह स्वाभिमानी है। उसने अपने सीने पर हाथ रखकर संकेत किया कि उसने आज तक किसी के सम्मुख हाथ नहीं फैलाया है। उसने कभी भीख नहीं माँगी है। उसने अपनी भुजाओं को दिखाया और संकेत किया कि उसने मेहनत करके खाया है।
गूंगे कहानी पढ़कर आपके मन में कौन से भाव उत्पन्न होते हैं और क्यों?गूँगे' कहानी पढ़कर मेरे मन में गूँगे के प्रति सहानुभूति के भाव उत्पन्न होते हैं। मेरे अनुसार वह सहानुभूति का पात्र नहीं है, वह सम्मान का पात्र है। यदि उसे सही लोग मिलते तथा सही दिशा-निर्देश मिलता, तो वह हमारी तरह जीवन जी पाता। उसके जीवन में व्याप्त लोगों का व्यवहार उसे सहानुभूति का पात्र बना देता है।
|