गणित की प्रकृति तार्किक होती है कैसे? - ganit kee prakrti taarkik hotee hai kaise?

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Last updated on Sep 29, 2022

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गणित का अर्थ परिभाषाएँ प्रकृति, गणित का अध्ययन क्यों जरूरी है

गणित का अर्थ Meaning of Mathematics 

  • गणित एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण विषय है। अतः इसकी शिक्षा का आदान-प्रदान या हस्तान्तरण करने से पहले यह जानना आवश्यक तथा महत्त्वपूर्ण है कि 'गणित क्या है'? 'इसकी शिक्षा क्यों दी जाए'? तथा 'इसकी प्रकृति कैसी है'? सामान्यतः गणित की अनेक परिभाषाएँ दृष्टिगोचर होती हैं। 
  • उदाहरण के लिए कोई गणित को गणनाओं का विज्ञान कहता है, कोई संख्याओं तथा स्थान के विज्ञान के रूप में परिभाषित करता है तथा कोई मापन ( माप-तौल), मात्रा और दिशा ( आकार-प्रकार) को विज्ञान के रूप में स्पष्ट करता है।
  • वास्तव में, गणित का शाब्दिक अर्थ होता है - "वह शास्त्र जिसमें गणनाओं की प्रधानता हो ।" इस प्रकार गणित के सम्बन्ध में दी गई मान्यताओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि गणित - "अंक, अक्षर, चिह्न आदि संक्षिप्त संकेतों का वह विज्ञान है जिसकी सहायता से परिमाण, दिशा तथा स्थान का बोध होता है।" गणित विषय का आरम्भ गिनती से ही हुआ है और संख्या पद्धति इसका एक विशेष क्षेत्र है जिसकी सहायता से गणित की अन्य शाखाओं को विकसित किया गया है।

गणित की महत्त्वपूर्ण परिभाषाएँ Some Important Definitions Of  Maths

मार्शल, एच. स्टोन के मतानुसार

  • "गणित ऐसी अमूर्त व्यवस्था का अध्ययन है, जो कि अमूर्त तत्त्वों से मिलकर बना है। इन तत्त्वों को मूर्त रूप में परिभाषित किया गया है।'

बर्ट्रेण्ड रसेल ने गणित को परिभाषित करते हुए लिखा है कि-

  •  "गणित एक ऐसा विषय है जिसमें हम यह भी नहीं जानते कि हम किसके बारे में बात कर रहे हैं और न ही यह जान पाते हैं कि हम जो कह रहे हैं, वह सत्य है । 

गैलीलियो महोदय ने गणित के महत्त्व को स्पष्ट करते हुए गणित को इस प्रकार परिभाषित किया है 

  • "गणित वह भाषा है जिसमें परमेश्वर ने सम्पूर्ण जगत या ब्रह्माण्ड को लिख दिया है। "

लॉक के मतानुसार 

  • "गणित वह मार्ग है जिसके द्वारा बच्चों मन या मस्तिष्क में तर्क करने की आदत स्थापित होती है।"

उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर गणित के सम्बन्ध में हम कह सकते हैं कि

  •  गणित स्थान तथा संख्याओं का विज्ञान है। 
  • गणित गणनाओं का विज्ञान है।
  • गणित माप-तौल (मापन), मात्रा (परिमाण) तथा दिशा का विज्ञान है।
  • गणित विज्ञान की क्रमबद्ध, संगठित तथा यथार्थ शाखा है। 
  • इसमें मात्रात्मक तथ्यों और सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है।
  • यह विज्ञान का अमूर्त रूप है। 
  • यह तार्किक विचारों का विज्ञान है। 
  • गणित के अध्ययन से मस्तिष्क में तर्क करने की आदत स्थापित होती है। 
  • यह आगमनात्मक तथा प्रायोगिक विज्ञान है। 
  • गणित वह विज्ञान है जिसमें आवश्यक निष्कर्ष निकाले जाते हैं।

गणित की प्रकृति Nature of Mathematics

  • प्रत्येक विषय को पढ़ाने के कुछ उद्देश्य तथा उसकी संरचना होती है जिसके आधार पर उस विषय की प्रकृति निश्चित होती है। 
  • गणित विषय की संरचना अन्य विद्यालयी विषयों की अपेक्षा अधिक मजबूत तथा शक्तिशाली है जिसके कारण गणित अन्य विषयों की तुलना में अधिक स्थायी तथा महत्त्वपूर्ण है। 
  • किसी विषय की संरचना जैसे-जैसे कमजोर होती जाती है, उस विषय की सत्यता, मान्यता तथा पूर्वकथन (Prediction) की क्षमता भी उसी क्रम में घटती जाती है। इसी निश्चित ढाँचे या संरचना (Structure) के आधार पर प्रत्येक विषय की प्रकृति का निर्धारण किया जाता है तथा उसको पाठ्यक्रम में स्थान दिया जाता है। ऐसा नहीं कि सभी विषयों की प्रकृति एक समान हो। 
  • गणित विषय की अपनी एक अलग प्रकृति है जिसके आधार पर हम उसकी तुलना किसी अन्य विषय से कर सकते हैं। किन्हीं दो या दो से अधिक विषयों की तुलना का आधार उन विषयों की प्रकृति ही है जिसके आधार पर हम उस विषय के बारे में जानकारी प्राप्त करते हैं।

गणित की प्रकृति को निम्न बिन्दुओं द्वारा भली-भाँति समझा जा सकता है- 

  • गणित में संख्याएँ (Numbers), स्थान (Space), दिशा (Magnitude) तथा मापन या माप-तौल (Measurement) का ज्ञान प्राप्त किया जाता है। 
  • गणित की अपनी भाषा (Language) है। भाषा का तात्पर्य - गणितीय पद (Mathematical Terms), गणितीय प्रत्यय (Mathematical Concepts), सूत्र (Formulae), सिद्धान्त (Theories and Principles) तथा संकेतों (Signs) से है जोकि विशेष प्रकार के होते हैं तथा गणित की भाषा को जन्म देते हैं। 
  •  गणित के ज्ञान का आधार हमारी ज्ञानेन्द्रियाँ (Some Organs) हैं। 
  •  इसके ज्ञान का आधार निश्चित होता है जिससे उस पर विश्वास किया जा सकता
  • गणित का ज्ञान यथाथ (Exact), क्रमबद्ध (Systematic), तार्किक (Logical) तथा अधिक स्पष्ट (Clear) होता है, जिससे उसे एक बार ग्रहण करके आसानी से भुलाया नहीं जा सकता हैं। 
  • गणित में अमूर्त प्रत्ययों (Abstract Concepts) को मूर्त रूप (Concrete Form) में परिवर्तित किया जाता है, साथ ही उनकी व्याख्या भी की जाती है। 
  • गणित के नियम, सिद्धान्त, सूत्र सभी स्थानों पर एक समान होते हैं जिससे उनकी सत्यता की जाँच (Verification) किसी भी समय तथा स्थान पर की जा सकती है। 
  • इसमें सम्पूर्ण वातावरण में पाई जाने वाली वस्तुओं (Objects) के परस्पर सम्बन्ध (Relationship) तथा संख्यात्मक निष्कर्ष (Numerical Conclusions) निकाले जाते हैं। 
  • इसके अध्ययन से प्रत्येक ज्ञान तथा सूचना स्पष्ट होती है तथा उसका एक सम्भावित उत्तर निश्चित होता है। 
  • इसके विभिन्न नियमों, सिद्धान्तों, सूत्रों आदि में सन्देह (Doubts) की सम्भावना नहीं रहती।
  • गणित के अध्ययन से आगमन (Induction), निगमन (Deduction) तथा सामान्यीकरण (Generalization) की योग्यता विकसित होती है।   
  • गणित के अध्ययन से बालकों में आत्म-विश्वास (Confidence) और आत्म-निर्भरता (Self-Reliance) का विकास होता है। 
  • गणित की भाषा सुपरिभाषित, उपयुक्त तथा स्पष्ट होती है।
  • गणित के ज्ञान से बालकों में प्रशंसात्मक दृष्टिकोण तथा भावना (Sense of Appreciation) का विकास होता है। 
  • इससे बालकों में स्वस्थ तथा वैज्ञानिक दृष्टिकोण (Scientific Attitude) विकसित होता है। 
  • इसमें प्रदत्तों अथवा सूचनाओं (संख्यात्मक) को आधार मानकर संख्यात्मक निष्कर्ष (Numerical Inferences) निकाले जाते हैं। 
  • गणित के ज्ञान का उपयोग (Application) विज्ञान की विभिन्न शाखाओं; यथा- भौतिकी, रसायन विज्ञान, जीव विज्ञान तथा अन्य विषयों के अध्ययन में किया जाता है। 
  • गणित, विज्ञान की विभिन्न शाखाओं के अध्ययन में सहायक ही नहीं, बल्कि उनकी प्रगति तथा संगठन की आधारशिला है। इस प्रकार उपरोक्त बिन्दुओं के आधार पर हम गणित की प्रकृति को समझ सकते हैं तथा निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि वास्तव में गणित की संरचना, जो कि उसकी प्रकृति की आधारशिला है, अन्य विषयों की अपेक्षा अधिक सुदृढ़ है, जिसके आधार पर विद्यालयी शिक्षा में गणित के ज्ञान की आवश्यकता दृष्टिगोचर होती है। 
  • रोजन बेकन ने ठीक ही कहा है कि गणित सभी विज्ञानों का सिंह द्वार (Gate) और कुँजी (Key) है। 

गणित की प्रकृति के सम्बन्ध में स्कॉटिश दार्शनिक हेमिल्टन (Hamilton) ने लिखा है।

 "The study of mathematics is so easy that it affords no real mental discipline."

गणित और तार्किक सोच , गणितीय शिक्षण Logical Thinking and Maths

  • तार्किक सोच के विकास के लिए गणितीय शिक्षण का अत्यधिक महत्त्व है। पाठ्यक्रम का अन्य कोई विषय ऐसा नहीं है जो गणित की तरह छात्र के मस्तिष्क को क्रियाशील बनाता हो। 
  • गणित की प्रत्येक समस्या हल करने के लिए मानसिक कार्य की आवश्यकता होती है। जैसे ही गणित की कोई समस्या बच्चे के समक्ष आती है उसका मस्तिष्क उस समस्या को समझने तथा उसका समाधान करने के लिए क्रियाशील हो जाता है। 
  • गणित की प्रत्येक समस्या एक ऐसे क्रम से गुजरती है जो कि एक रचनात्मक एवं सृजनात्मक प्रक्रिया (Constructive and Creative Process) के लिए आवश्यक है। 
  • इस प्रकार बच्चे की सम्पूर्ण मानसिक शक्तियों का विकास गणित पढ़ने से सरलता से हो जाता है। किसी भी समस्या का उचित हल ज्ञात करने की क्षमता का विकास गणित के अध्ययन से ही सम्भव है। 

महान् शिक्षाशास्त्री प्लेटो के अनुसार गणित 

गणित के तार्किक मूल्य पर प्रकाश डालते हुए महान् शिक्षाशास्त्री प्लेटो ने स्पष्ट किया है कि

"गणित एक ऐसा विषय है जो मानसिक शक्तियों को प्रशिक्षित करने का अवसर प्रदान करता है। एक सुषुप्त आत्मा (Sleeping Spirit) में चेतना एवं नवीन जागृति उत्पन्न करने का कौशल गणित ही प्रदान कर सकता है।
  • विश्व में ज्ञान का अथाह भण्डार है और इस ज्ञान भण्डार में दिन-प्रतिदिन वृद्धि रही है। यह बात अधिक महत्त्वपूर्ण नहीं है कि ज्ञान की प्राप्ति की जाए, बल्कि महत्त्वपूर्ण यह है कि ज्ञान प्राप्ति का तरीका सीखा जाए जिससे प्राप्त किया गया ज्ञान अधिक उपयोगी तथा लाभप्रद सिद्ध हो सके। 
  • किसी व्यक्ति के लिए ज्ञान प्राप्त करना तभी उपयोगी हो सकता है, जबकि वह ज्ञान का अपनी आवश्यकतानुसार उचित उपयोग कर सके। किसी ज्ञान का उचित उपयोग करना व्यक्ति को मानसिक शक्तियों पर निर्भर करता है। 
  • प्रोफेसर शल्ट्ज महोदय के अनुसार "गणित की शिक्षा प्राथमिक रूप से मानसिक शक्तियों को प्रशिक्षित करने के लिए दी जाती है। गणित के विभिन्न तथ्यों का ज्ञान देना इसके बाद ही आता है।

गणित का अध्ययन क्यों जरूरी है 

  • इस प्रकार गणित का अध्ययन करने से बच्चे को अपनी सभी मानसिक शक्तियों को के विकसित करने का पूर्ण अवसर मिलता है।
  • गणित का अध्ययन बच्चों को अपनी निरीक्षण शक्ति (Observation Power), तर्क शक्ति (Logical Power), स्मरण की शक्ति ( Memory), एकाग्रता (Concentration), मौलिकता (Originality), अन्वेषण शक्ति (Power of Discovery), विचार एवं चिन्तन शक्ति (Thinking में and Reasoning Power), आत्म-निर्भरता (Self-Reliance) तथा कठिन परिश्रम (Hard Work) आदि सभी मानसिक शक्तियों को पूर्णरूप से विकसित करने का अवसर प्रदान करता है। 
  • इस सम्बन्ध में हब्श ने ठीक ही लिखा है कि गणित मस्तिष्क को तीक्ष्ण एवं तीव्र बनाने में उसी प्रकार कार्य करता है जैसे किसी औजार को तीक्ष्ण करने में काम आने वाला पत्थर । इसके अध्ययन से स्पष्ट, तर्क सम्मत एवं क्रमबद्ध रूप से भली-भाँति सोचने की शक्ति आती है।

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गणित की प्रकृति कैसे होती है?

गणित की प्रकृति को निम्नलिखित बिंदुओं द्वारा भरी बातें समझा जा सकता है। गणित के ज्ञान का आधार हमारी ज्ञानेंद्रियां हैं। गणित में अमूर्त प्रत्यय को मूर्त रूप में परिवर्तित किया जाता है साथ ही उसकी व्याख्या भी की जाती है। गणित में संख्याएं, स्थान, दिशा तथा मापन या माप तौल का ज्ञान प्राप्त किया जाता है।

गणित का अर्थ क्या है इसकी प्रकृति को बताएं?

वास्तव में, गणित का शाब्दिक अर्थ होता है - "वह शास्त्र जिसमें गणनाओं की प्रधानता हो ।" इस प्रकार गणित के सम्बन्ध में दी गई मान्यताओं के आधार पर हम कह सकते हैं कि गणित - "अंक, अक्षर, चिह्न आदि संक्षिप्त संकेतों का वह विज्ञान है जिसकी सहायता से परिमाण, दिशा तथा स्थान का बोध होता है।" गणित विषय का आरम्भ गिनती से ही हुआ है ...

गणित के तर्क से आप क्या समझते हैं?

विद्यार्थियों को गणितीय कारण समझाना अक्सर न केवल उन्हें स्वयं के लिए गणितीय 'सत्यता' का निर्माण करने में सक्षम बनाता है, बल्कि उन्हें गणित को समझने में भी मदद करता है। गणितीय कारण बताने के लिए उन्हें अपने तर्क तैयार करने के लिए गणितीय गुणधर्मों को खोजना और उपयोग करना होगा।

गणित की अमूर्त प्रकृति क्या है?

गणित में अमूर्त प्रत्ययों की व्याख्या की जाती है व्याख्या के आधार पर उनमें विचार दृढ बनते है, और उन्हें मूल रूप में परिवर्तन किया जा सकता है जैसे ठोसों के आयतन ज्ञात करने के लिये जो सूत्र प्रयोग किये जाते है वह अमूर्त होते है, लेकिन सूत्रों का प्रयोग करने जब वह व्यावहारिक दृष्टि से ठोसों के आयतन की गणना करते है तो वे ...