गांव ग्रामीण समुदाय की परिभाषा लिखिए - gaanv graameen samudaay kee paribhaasha likhie

गांव ग्रामीण समुदाय की परिभाषा लिखिए - gaanv graameen samudaay kee paribhaasha likhie

ग्रामीण समुदाय क्या है? – किसी समूह को हम गांव कहेंगे अथवा नगर, यह प्रमुख रूप से उस समुदाय की जनसंख्या, घनत्व, व्यवहार प्रतिमानों और सम्बन्धों के स्वरूप पर निर्भर होता है। वास्तव में, जिस समुदाय में निम्नांकित विशेषताएं पायी जाती हों, उसी को हम ग्रामीण समुदाय कहेंगे। ग्रामीण जीवन की ये विशेषताएं इस प्रकार हैं-

1.कृषि मुख्य व्यवसाय-

  • 1.कृषि मुख्य व्यवसाय-
  • 2. प्राथमिक सम्बन्धों की प्रधानता
  • 3.परिवार का महत्व
  • 4. संयुक्त परिवार प्रणाली
  • 5. जाति व जजमानी प्रथा की प्रधानता
  • 6। गतिशीलता का अभाव
  • 7. श्रम के विशेषीकरण का अभाव

संसार के अधिकांश भागों में कृषि ही ग्रामीण समुदाय का प्रमुख व्यवसाय रहा है। यहां बहुत-से कुटीर उद्योग-धन्धों जैसे चटाई बुनना, टोकरी बनाना सूत कातना, दरी बनाना आदि कार्यों का भी प्रमुख स्थान है। लेकिन इसके बाद भी ग्रामीण समुदाय कृषि को ही अपना मुख्य व्यवसाय समझता है। एक विचित्र बात यह है कि औद्योगीकरण के प्रभाव से दूसरे देशों में जहां ग्रामीण जनसंख्या की कृषि पर निर्भरता कम हुई है वहीं भारत में ग्रामीण समुदाय की खेती पर निर्भरता बढ़ी है।

2. प्राथमिक सम्बन्धों की प्रधानता

ग्रामीण समुदाय का संगठन प्राथमिक सम्बन्धों पर आधारित है प्राथमिक सम्बन्धों का तात्पर्य है कि सभी व्यक्ति एक-दूसरे से प्रत्यक्ष रूप से सम्बन्धित रहते हैं, दूसरे के हित में अपना हित देखते हैं, एक व्यक्ति की बुराई सम्पूर्ण गांव की बुराई समझी जाती है और प्रत्येक व्यक्ति को एक-दूसरे के द्वारा किये जाने वाले कार्यों का पूरा ज्ञान होता है। इस प्रकार गांव के सभी व्यक्ति अपने को एक बड़े परिवार का सदस्य मानकर कार्य करते हैं और प्रत्येक की सहायता करना अपना नैतिक कर्तव्य मानते हैं।

3.परिवार का महत्व

ग्रामीण समुदाय में परिवार सबसे महत्वपूर्ण इकाई है और सभी क्षेत्रों में इसका महत्व केन्द्रीय है। इसे हम गांव की परिवारात्मकता’ कहते हैं।

4. संयुक्त परिवार प्रणाली


ग्रामीण समुदाय में परिवार का स्वरूप मुख्यतः संयुक्त होता है। इस परिवार में दो-तीन पीढ़ियों तक के सदस्य साथ-साथ रहते हैं और परिवार के सभी कार्यों में संयुक्त रूप से हिस्सा बाँटते हैं। परिवार में ‘कर्ता’ का स्थान सर्वोच्च होता है और सभी सदस्यों को उसके आदेशों का पालन करना अनिवार्य होता है। यद्यपि यह विशेषता भारत में है। बहुत विकसित रूप में लेकिन दूसरे देशों के ग्रामीण समुदाय में भी इसी से मिलते-जुलते विस्तृत परिवार (extended families) पाये जाते हैं।

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5. जाति व जजमानी प्रथा की प्रधानता

भारतीय ग्रामीण समुदाय की एक प्रमुख विशेषता यह है कि यहां जाति और जजमानी की प्रथा समुदाय के सम्पूर्ण सामाजिक और धार्मिक जीवन का आधार है। समुदाय में व्यक्ति की सामाजिक स्थिति क्या होगी, उसे कौन-कौन से कार्य करना होंगे, दूसरी जातियों से उसके सम्बन्ध कैसे होंगे, आदि का निर्धारण जातिगत नियमों द्वारा ही होता है। इसके बाद भी ग्रामीण समुदाय में विभिन्न जातियों के बीच जजमानी प्रथा के द्वारा पारस्परिक निर्भरता को बनाये रखा गया है। किसी भी त्यौहार अथवा उत्सव के समय पुरोहित, नाई, कहार, माली, धानुक और दूसरे व्यक्ति अपने-अपने कार्यों को पूरा करके एक- दूसरे को सहयोग देते हैं।

6। गतिशीलता का अभाव

ग्रामीण समुदाय में परिवर्तन का कोई स्थान नहीं है। ग्रामीण परिवर्तन से डरते ही नहीं हैं बल्कि परिवर्तन को आवश्यक भी समझते हैं। इसके फलस्वरूप व्यक्ति को समुदाय में एक बार जो स्थिति मिल जाती है, उसमें साधारणतया कोई परिवर्तन नहीं होता। ग्रामीण समुदाय में गतिशीलता की कमी इस रूप में भी है कि यहां न तो व्यक्ति अक्सर स्थान परिवर्तन करता है और न ही अपना व्यवसाय बदलता है।

7. श्रम के विशेषीकरण का अभाव

ग्रामीण समुदाय में व्यक्ति किसी भी कार्य में विशेष रूप से प्रशिक्षित नहीं होते। उन्हें अपने जीवन से सम्बन्धित लगभग सभी कार्यों का घोड़ा- थोड़ा सामान्य ज्ञात अवश्य होता है। उदाहरण के लिए ग्रामीण समुदाय का एक व्यक्ति हल की मरम्मत करना, कुआं खोदना, बांध बनाना, फसल बोना और काटना, हल चलाना, सिंचाई करना, बैलगाड़ी की मरम्मत करना, बाजार में फसल बेचना आदि सभी कामों को स्वयं ही करता है। स्त्रियां बच्चों के पालन-पोषण और परिवार को व्यवस्थित करने के अतिरिक्त खेती में भी सहयोग देती हैं और पशुओं, खलिहान तथा फसल की देख रेख भी करती हैं। यद्यपि आज पाक्षात्य देशों के गांवों में श्रम विभाजन और विशेषीकरण की प्रवृत्ति तेजी से बढ़ने लगी है, लेकिन भारतीय गांवों में श्रम के विशेषीकरण का आज भी अत्यधिक अभाव है।

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priyanshu singh

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