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दोस्तों दोस्तों आपका सवाल भारत का सबसे बड़ा ग्रंथ कौन सा है तो मैं आपको बता दूं महाभारत भारत का सबसे बड़ा ग्रंथ है Romanized Version विश्व का सबसे बड़ा ग्रंथ है गीता : बड़ौलीराई के विधायक मोहन लाल बड़ौली ने कहा कि गीता विश्व का सबसे बड़ा ग्रंथ है। गीता को पढ़े और सुने बिना जीवन अधूरा है। जागरण संवाददाता, सोनीपत : राई के विधायक मोहन लाल बड़ौली ने कहा कि गीता विश्व का सबसे बड़ा ग्रंथ है। गीता को पढ़े और सुने बिना जीवन अधूरा है। सभी व्यक्ति गीता के अमर संदेश को अपने जीवन में आत्मसात करें। गीता के उपदेश से समाज की सभी समस्याओं का समाधान किया जा सकता है। सभी गीता को अपनाकर समाज को नई दिशा दें तथा देश-प्रदेश को उन्नति के पथ पर आगे बढ़ाएं। विधायक मोहन लाल बड़ौली जिला प्रशासन द्वारा स्थानीय सुभाष स्टेडियम में आयोजित किए गए अतंरराष्ट्रीय गीता महोत्सव 2021 के जिला स्तरीय समारोह के दूसरे दिन श्रीमद्भगवद् गीता की प्रासंगिकता विषय पर आयोजित सेमिनार में उपस्थित लोगों को बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे। इससे पूर्व मोहन लाल बड़ौली ने हवन में पूर्ण आहुति डाली तथा प्रदर्शनी का अवलोकन किया। गीता महोत्सव के जिला स्तरीय समारोह के दूसरे दिन कलाकारों ने गीता के अमर संदेश, कृष्ण लीला तथा हरियाणा की प्राचीन समृद्ध संस्कृति की झलक बिखेरते भव्य कार्यक्रमों की प्रस्तुति दी। अनुबंधित कलाकारों में हेमंत शर्मा, ईश्वर शर्मा और सांस्कृतिक टीम तथा मनोज जाले की सांस्कृतिक टीम ने शानदार प्रस्तुति दी। इस दौरान गुरुकुल जुआं के आचार्य वेद निष्ठ के साथ विक्रम तथा बच्चों में शिवा, आदित्य, मनुदेव, सदाव्रत, कुलदीप और सुमित ने मंत्रोच्चारण के साथ हवन संपन्न करवाया। सेमिनार में वक्ताओं में दिव्य ज्योति संस्थान के स्वामी तेजोमयानंद, प्रजापिता ईश्वरीय ब्रह्मकुमारी विश्वविद्यालय की बीके प्रमोद बहन, गुरुकुल जुआं के आचार्य वेद निष्ठ तथा जीवीएम कालेज की प्रोफेसर डा. सुमन नासा ने गीता के संदेश और वर्तमान समय में गीता की प्रासंगिकता विषय पर अपने विचार व्यक्त किए। आज निकाली जाएगी शोभायात्रा : गीता महोत्सव के जिला स्तरीय समारोह के तीसरे दिन सुबह 11 बजे स्थानीय सेक्टर-15 स्थित जागृति धाम से नगर शोभायात्रा निकाली जाएगी। गन्नौर की विधायक और कार्यक्रम की मुख्य अतिथि निर्मल चौधरी शोभायात्रा को झंडी दिखाकर रवाना करेंगी, जो शहर के विभिन्न हिस्सों से गुजरते हुए सुभाष स्टेडियम में संपन्न होगी। सुभाष स्टेडियम में सुबह 10 बजे से सायं 5 बजे तक आम जनता के अवलोकन के लिए प्रदर्शनी खुली रहेगी। Edited By: Jagran
हिन्दू धर्म किसी एक व्यक्ति द्वारा प्रवर्तित धर्म नहीं है। इसका एक आधार वेदादि धर्मग्रन्थ हैं, जिनकी संख्या बहुत बड़ी है। ये सब दो भागों में विभक्त हैं-
वेद[संपादित करें]वेद प्राचीनतम हिंदू ग्रंथ हैं। वेद शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के 'विद्' धातु से हुई है। विद् का अर्थ है जानना या ज्ञानार्जन, इसलिये वेद को "ज्ञान का ग्रंथ कहा जा सकता है। भारतीय मान्यता के अनुसार ज्ञान शाश्वत है अर्थात् सृष्टि की रचना के पूर्व भी ज्ञान था एवं सृष्टि के विनाश के पश्चात् भी ज्ञान ही शेष रह जायेगा। चूँकि वेद ईश्वर के मुख से निकले और ब्रह्मा जी ने उन्हें सुना इसलिये वेद को श्रुति भी कहा जाता हैं। वेद संख्या में चार हैं जो हिन्दू धर्म के आधार स्तंभ हैं।
श्रुति[संपादित करें]वेद[संपादित करें]यद्यपि वेद से ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद तथा अथर्ववेद की संहिताओं का ही बोध होता है, तथापि हिन्दू लोग इन संहिताओं के अलावा ब्राह्मण ग्रन्थों, आरण्यकों तथा उपनिषदों को भी वेद ही मानते हैं। इनमें ऋक् आदि संहितायें स्तुति प्रधान हैं; ब्राह्मण ग्रन्थ यज्ञ कर्म प्रधान हैं और आरण्यक तथा उपनिषद् ज्ञान चर्चा प्रधान हैं।
ब्राह्मण[संपादित करें]इस श्रेणी के ग्रन्थ वेद के अंग ही माने जाते हैं। ये दो विभागों में विभक्त है। एक विभाग के कर्मकाण्ड-सम्बन्धी हैं, दूसरे विभाग के ज्ञानकाण्ड-सम्बन्धी है। ज्ञानकाण्ड-सम्बन्धी ब्राह्मण ग्रन्थ `उपनिषद्´ कहलाते हैं। प्रत्येक ब्राह्मण ग्रन्थ में एक-न-एक उपनिषद् अवश्य है, किन्तु स्वतन्त्र उपनिषद् ग्रन्थ भी हैं, जो किसी भी ब्राह्मण का भाग नहीं हैं और न `अरण्यकों´ के ही भाग हैं। कुछ उपनिषद् अरण्यकों में भी पाये जाते हैं। ब्राह्मण ग्रन्थों में यज्ञ-विषय का वर्णन है। अरण्यकों में वानप्रस्थ-आश्रम के नियमों का वर्णन है। उपनिषदों में ब्रह्मज्ञान का निरूपण किया गया है। प्रत्येक ब्राह्मण किसी न किसी वेद से सम्बन्ध रखता है। ऋग्वेद के ब्राह्मण -ऐतरेय और कौशीतकि (सामवेद के ब्राह्मण -ताण्डय, षड्विंश, सामविधान, वंश, आर्षेय, देवताध्याय, संहितोपनिषत्, छान्दोग्य, जैमिनीय, सत्यायन और भल्लवी है (कृष्ण यजुर्वेद का ब्राह्मण -तैत्तिरीय है और शुक्ल यजुर्वेद का शतपथ है (अथर्ववेद का ब्राह्मण - गोपथ ब्राह्मण है। ये कुछ मुख्य-मुख्य ब्राह्मणों के नाम हैं। आरण्यक[संपादित करें]इस विभाग में ऐतरेय, कौशीतकि और बृहदारण्यक मुख्य हैं। उपनिषद्[संपादित करें]इस विभाग के ग्रन्थों की संख्या 123 से लेकर 1194 तक मानी गई है, किन्तु उनमें 10 ही मुख्य माने गये हैं। ईष, केन, कठ, प्रश्, मुण्डक, माण्डूक्य, तैत्तिरीय, ऐतरेय, छान्दोग्य और बृहदारण्यक के अतिरिक्त श्वेताश्वतर और कौशीतकि को भी महत्त्व दिया गया हैं। उक्त श्रुति-ग्रन्थों के अलावा कुछ ऐसे ऋषि-प्रणीत ग्रन्थ भी हैं, जिनका श्रुति-ग्रन्थों से घनिष्ट सम्बन्ध है। वेदांग और सूत्र-ग्रन्थ[संपादित करें]वेदांग[संपादित करें]शिक्षा, कल्प, व्याकरण, ज्योतिष, छन्द और निरूक्त - ये छ: वेदांग है।
सूत्र-ग्रन्थ[संपादित करें]
स्मृति[संपादित करें]जिन महर्षियों ने श्रुति के मन्त्रों को प्राप्त किया, उन्हींने अपनी स्मृति की सहायता से जिन धर्मशास्त्रों के ग्रन्थों की रचना की, वे `स्मृति ग्रन्थ´ कहे गये हैं। इनमें समाज की धर्ममर्यादा - वर्णधर्म, आश्रम-धर्म, राज-धर्म, साधारण धर्म, दैनिक कृत्य, स्त्री-पुरूष का कर्तव्य आदि का निरूपण किया है। मुख्य स्मृतिकार ये हैं और इन्हीं के नाम पर इनकी स्मृतियाँ है - १. मनु २ अत्रि ३ विष्णु ४ हारीत ५ याज्ञवल्क्य ६ उशना ७ अंगिरा ८ यम ९ आपस्तम्ब १० संवर्त ११ कात्यायन १२ बृहस्पति १३ पराशर १४ व्यास १५ शंख १६ लिखित १७ दक्ष १८ गौतम १९ शातातप २० वशिष्ठ इनके अलावा निम्न ऋषि भी स्मृतिकार माने गये हैं और उनकी स्मृतियाँ उपस्मृतियाँ मानी जाती हैं। - १ गोभिल २ जमदग्नि ३ विश्वामित्र ४ प्रजापति ५ वृद्धशातातप ६ पैठीनसि ७ आश्वायन ८ पितामह ९ बौद्धायन १० भारद्वाज ११ छागलेय १२ जाबालि १३ च्यवन १४ मरीचि १५ कश्यप … आदि पुराण[संपादित करें]वेद में निहित ज्ञान के अत्यन्त गूढ़ होने के कारण आम आदमियों के द्वारा उन्हें समझना बहुत कठिन था, इसलिये रोचक कथाओं के माध्यम से वेद के ज्ञान की जानकारी देने की प्रथा चली। इन्हीं कथाओं के संकलन को पुराण कहा जाता हैं। पौराणिक कथाओं में ज्ञान, सत्य घटनाओं तथा कल्पना का संमिश्रण होता है। पुराण ज्ञानयुक्त कहानियों का एक विशाल संग्रह होता है। पुराणों को वर्तमान युग में रचित विज्ञान कथाओं के जैसा ही समझा जा सकता है। पुराण संख्या में अठारह हैं।[2] 18 पुराणों के नाम विष्णुपुराण में इस प्रकार है -
इनके अलावा देवी भागवत में 18 उप-पुराणों का उल्लेख भी है -
अन्य,
पुराणों में सृष्टिक्रम, राजवंशावली, मन्वन्तर-क्रम, ऋषिवंशावली, पंच-देवताओं की उपासना, तीर्थों, व्रतों, दानों का माहात्म्य विस्तार से वर्णन है। इस प्रकार पुराणों में हिन्दु धर्म का विस्तार से ललित रूप में वर्णन किया गया है। इतिहास ग्रन्थ[संपादित करें]रामायणऔर महाभारत इन ग्रंथोंको इतिहास ग्रंथ माना जाता है। जबकि श्रीमद्भगवद्गीता महाभारत का ही अंश है, इसमें प्राप्त अमूल्य ज्ञानबोध के कारण इसको स्वतन्त्र ग्रंथकी मान्यता प्राप्त है। श्री तुलसीदास द्वारा विरचित श्रीरामचरितमानस वैसे तो रामायण का हिंदी संस्करण ही है। लेकिन हिंदीभाषिकोंके लिये इसकी महत्ता धर्मग्रंथ जैसीही है। विशिष्ट विषयों के ग्रंथ[संपादित करें]गर्ग संहिता, कौटिलीय अर्थशास्त्र, योगवासिष्ठ, आयुर्वेद के सारे ग्रंथ इन जैसे ग्रंथों को विशिष्ट विषयों के ग्रंथ मानना उचित होगा। षड्दर्शन[संपादित करें]षड्दर्शन का मतलब है छः समीक्षाएँ। इन्हें षट्-शास्त्र भी कहते हैं। षड्दर्शन उन भारतीय दार्शनिक एवं धार्मिक विचारों के मंथन का परिपक्व परिणाम है जो हजारों वर्षो के चिन्तन से उतरा और हिन्दू (वैदिक) दर्शन के नाम से प्रचलित हुआ। इन्हें 'आस्तिक दर्शन' भी कहा जाता है। दर्शन और उनके प्रणेता निम्नलिखित है।
भाष्य व रचनाएँ[संपादित करें]आदि शंकराचार्य, रामानुजाचार्य, दयानन्द सरस्वती, प्रभुपाद स्वामी जैसे महान आचार्योंके भाष्य तथा विवेकचूडामणि जैसी स्वतन्त्र रचनाओं की भी धर्मग्रंथों के समान मान्यता है। आदि शंकराचार्य के कई सारे स्तोत्र इतने संस्कारक्षम हैं कि वे दैनंदिन प्रार्थना का अहं हिस्सा बन चुके हैं। आगम या तन्त्रशास्त्र[संपादित करें]इन शास्त्रों में मुख्यतया हिन्दू धर्म के देवताओं की साधना की विधियाँ बतलाई गई है। किन्तु इनके अलावा इनमें अन्य विषयों का भी समावेश है। ये शास्त्र तीन भागों में विभक्त है -
आगम ग्रन्थ[संपादित करें]सृष्टि, प्रलय, देवताओं की पूजा तथा साधन विधि, पुरश्चरण, षट्कर्म-साधन, चतुर्विध ध्यान योग आदि विषयों का वर्णन है। तंत्र ग्रन्थ[संपादित करें]सृष्टि, प्रलय, मंत्र-निर्णय, देवताओं का संस्थान, तीर्थवर्णन, आश्रम धर्म, विप्र संस्थान, भूतादि का संस्थान, कल्प वर्णन, ज्योतिष संस्थान, पुराणाख्यान, कोष, व्रत, शौचाऽशौच, स्त्री-पुरूष लक्षण, राजधर्म, दानधर्म, युग धर्म व्यवहार, अध्यात्म आदि विषयों का वर्णन किया गया है। तन्त्र शास्त्र सम्प्रदायात्मक है। वैष्णवों, शैवों, शाक्तों आदि के अलग-अलग तंत्र ग्रन्थ हैं। ऋग्वेद को जादू - मंत्रॊ का वेद कहा जाता है। यामल ग्रन्थ[संपादित करें]सृष्टि तत्त्व, ज्योतिष, नित्यकृत्य, कल्पसूत्र, वर्णभेद, जातिभेद और युगधर्म आदि विषयों का वर्णन किया गया है। इन्हें भी देखें[संपादित करें]
सन्दर्भ[संपादित करें]
बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]
हिंदू का सबसे बड़ा ग्रंथ कौन सा है?वेद वेद प्राचीनतम हिंदू ग्रंथ हैं।
विश्व का सबसे बड़ा काव्य ग्रंथ कौन सा है?गीता को पढ़े और सुने बिना जीवन अधूरा है। जागरण संवाददाता, सोनीपत : राई के विधायक मोहन लाल बड़ौली ने कहा कि गीता विश्व का सबसे बड़ा ग्रंथ है।
विश्व का सबसे प्राचीन ग्रंथ कौन सा है?वेद, विश्व के सबसे प्राचीन साहित्य भी हैं। भारतीय संस्कृति में वेद सनातन वर्णाश्रम धर्म के, मूल और सबसे प्राचीन ग्रन्थ है। 'वेद' शब्द संस्कृत भाषा के वेद् ज्ञान धातु से बना है। इस तरह वेद का शाब्दिक अर्थ 'ज्ञान' है।
विश्व का दूसरा सबसे बड़ा ग्रंथ कौन सा है?ऋग्वेद. यजुर्वेद. सामवेद. अथर्ववेद. |