हिंदू धर्म में कौन कौन से लोग आते हैं? - hindoo dharm mein kaun kaun se log aate hain?

आगरा में धोखे से धर्मांतरण कराने के कथित मामले के सामने आने के बाद इस विषय पर भी चर्चा शुरू हो गई है कि आख़िर कोई हिंदू बनता कैसे है?

क्या किसी को धर्मांतरित करके हिंदू बनाया जा सकता है? जाति व्यवस्था को हिन्दू धर्म का आधार माना जाता है. ऐसे में धर्मांतरण करने वालों की जाति का सवाल भी उठेगा.

सवाल इस बात पर उठ रहे हैं कि किसी को हिंदू बनाने का हक़ किसे है?

आगरा में क़रीब पचास मुसलमानों को बीपीएल कार्ड और दूसरे लालच देकर हिंदू बनाने की कथित घटना पर काफ़ी कुछ लिखा जा चुका है.

किसी ने पूछा है कि हिंदू बनने का क्या मतलब! क्योंकि कोई सिर्फ़ हिंदू तो होता नहीं. उसे या तो ब्राह्मण या राजपूत या बनिया होना होता है.

यह भी सबको पता है कि आप चाह कर न ब्राह्मण बन सकते हैं और न बनिया. उसके लिए उस जाति में आपको पैदा होना होगा.

तो फिर जिनका शुद्धीकरण किया जा रहा है, वे हिंदू बनने के साथ किस जाति में लिए जा रहे हैं? दूसरे, इसका प्रमाणपत्र कौन दे रहा है? जाति में जाने का क्या कोई विधि-विधान है, कोई संस्कार है?

मुसलमान तो कलमा पढ़कर बन सकते हैं, हिंदू बनने का मान्य तरीक़ा क्या है? किस नदी में डुबकी लगाने पर हम पवित्र हिंदू धर्म में प्रवेश कर लेते हैं? उस नदी का नाम कहाँ लिखा है?

कुछ महीने पहले एक महंत के भाषण का वीडियो प्रचारित हुआ. उसमें पतितों के उद्धार यानी उन्हें हिंदू बनाने के अपने इरादे के साथ यह वादा भी किया कि जो हिंदू धर्म में आएंगे उनके लिए वे एक विशेष जाति का निर्माण करेंगे.

इस पर विशेष चर्चा नहीं हुई. लेकिन इससे यह मालूम होता है कि महंत को जाति का महत्व मालूम था और यह भी कि हिंदू बनते ही जाति पूछी ही जाएगी.

जाति रिश्ते-नाते, शादी-ब्याह के लिए अनिवार्य है. सिर्फ़ हिंदू होने से आपका रिश्ता किसी से नहीं हो सकता. लेकिन अभी के धर्मांतरण में यह बताया नहीं जा रहा कि किसे किस जाति में डाला जा रहा है?

जाति का निर्णय कैसे होगा? क्या जिन्हें हिंदू बनाया जा रहा है उनका इतिहास खंगाला जाएगा?

चूँकि यह मानकर चला जाता है कि भारत के अधिकतर मुसलमान कभी हिंदू थे, तो यह पता किया जाएगा कि वे किस जाति के हिंदू थे? क्या एक नए हिंदू के साथ पुराने हिंदू संबंध करने को तैयार होंगे?

मुसलमान भी तरह-तरह के होते हैं. शेख़, सैय्यद, जुलाहे, अंसारी....आदि, आदि.

क्या हर किसी की समकक्ष जाति निर्धारित की जाएगी और उन्हें हिंदू बनाते ही उनके लायक़ जाति में अपने-आप दाख़िला मिल जाएगा?

जब भी कोई हिंदू बनाने का प्रस्ताव लेकर आपके सामने आए तो उससे ये सवाल ज़रूर किए जाने चाहिए. यह भी कि आज तक जिन्हें हिंदू बनाया है उनकी आर्थिक हालत में क्या सुधार हुआ है, इसका हिसाब दिया जाए.

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अक्सर हिंदू बनाने वालों को आध्यात्मिक चिंता बहुत होती है. तो उनसे यह भी पूछा जाना चाहिए कि आध्यात्मिक उच्चता या संतोष का कोई सूचकांक उनके पास है या नहीं और क्या उसे किसी विश्व धर्म संसद से मान्यता प्राप्त है?

इसकी जाँच करने का क्या उपाय है कि मुसलमान या ईसाई रहते हुए मुझे जितनी आध्यात्मिक शांति मिलती थी, हिंदू बनने के बाद उसमें इज़ाफ़ा हुआ या वह घट गई.

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का आरोप रहा है कि ग़रीब हिन्दुओं को प्रलोभन देकर या झांसा देकर ईसाई या मुसलमान बनाया जाता रहा है.

फिर उसे इसका उत्तर देना होगा कि पिछले सालों में गुजरात हो या छत्तीसगढ़, या अब आगरा, हमेशा ग़रीबों में भी ग़रीब का ही क्यों धर्मांतरण किया जा सका है?

क्या हिंदू धर्म की अपनी कोई अपील नहीं? क्या उसे हमेशा बजरंग दल, विश्व हिंदू परिषद की संगठित धमकी की ज़रूरत पड़ती है?

दुनिया में हमें आज भी इसके अनेक उदाहरण मिलते हैं जब लोग व्यक्तिगत तौर पर इस्लाम या ईसाइयत से प्रभावित होकर धर्म बदल लेते हैं.

मुसलमान बनने वालों में ईसाई भी हैं और अन्य मतावलंबी भी. लेकिन किसी ने हिंदू धर्म से प्रभावित होकर उसमें दीक्षा ली हो, इसके बहुत ज़्यादा उदाहरण नहीं दिखते.

यह भी सवाल किया जाना चाहिए कि क्यों हिंदू धर्म के सबसे बड़े जानकार अब भारत में नहीं बाहर के देशों में हैं जिन्हें इसकी शास्त्रीय और लोक परंपरा की ज़्यादा समझ है ?

उन्हीं के पास यह समझ क्यों है? हिन्दुओं के नाम पर बने संगठनों के नेताओं को क्यों हिंदू परंपराओं की कोई जानकारी नहीं?

क्यों वे सिर्फ़ नारे लगा पाते हैं और उसके आगे भाषा उनके पास नहीं?

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विवेकानंद जैसे संतों ने कभी किसी को हिन्दू बनने को नहीं कहा.

क्यों हिंदू धर्म का सारा शोर सिर्फ़ भारत में ही है? भारत के बाहर, भारतवासियों से अलग किसी समुदाय में यह धर्म अपना विस्तार नहीं कर पाया?

क्यों भारत के सबसे बड़े हिंदुओं ने, जिनमें रामकृष्ण परमहंस, विवेकानंद और गांधी शामिल हैं, कभी किसी को हिंदू बनने को नहीं कहा?

इन सवालों के जवाब के बिना हिंदू धर्म में किसी को लाने के दावे खोखले हैं और आग के सामने टूटे-फूटे मन्त्र पढ़ना नाटक के दृश्य से अधिक कुछ नहीं.

किसी को हिंदू बनाना मुमकिन ही नहीं. इसलिए इस तरह के नाटक को वही कहें जो यह है, यानी एक नाटक जो सिर्फ़ एक दृश्य का है.

अमेरिका के प्यू रिसर्च सेंटर के एक अध्ययन में पता चला है कि भारत में सभी धार्मिक समूहों की प्रजनन दर में काफ़ी कमी आई है.

नतीजन, साल 1951 से लेकर अब तक देश की धार्मिक आबादी और ढाँचे में मामूली अंतर ही आया है.

भारत में सबसे ज़्यादा संख्या वाले हिंदू और मुसलमान देश की कुल आबादी का 94% हिस्सा हैं यानी करीब 1.2 अरब.

ईसाई, सिख, बौद्ध और जैन धर्मों के अनुयायी भारतीय जनसंख्या का 6% हिस्सा हैं.

प्यू रिसर्च सेंटर ने यह अध्ययन हर 10 साल में होने वाली जनगणना और राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) के आँकड़ों के आधार पर किया है.

इस अध्ययन में यह समझने की कोशिश की गई है कि भारत की धार्मिक आबादी में किस तरह के बदलाव आए हैं और इसके पीछे प्रमुख कारण क्या हैं.

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आज़ादी के बाद ऐसे बदली आबादी

साल 1947 में बँटवारे के बाद से लेकर अब तक भारत की जनसंख्या तीन गुने से ज़्यादा बढ़ी है.

साल 1951 में भारत की जनसंख्या 36 करोड़ थी, जो साल 2011 आते-आते 120 करोड़ के क़रीब पहुँच गई.

स्वतंत्र भारत की पहली जनगणना साल 1951 में और आख़िरी साल 2011 में हुई थी.

प्यू रिसर्च सेंटर के अनुसार इस अवधि में भारत में हर प्रमुख धर्मों की आबादी बढ़ी.

हिंदुओं की आबादी 30 करोड़ से बढ़कर 96.6 करोड़, मुसलमानों की आबादी 3.5 करोड़ से बढ़कर 17.2 करोड़ और ईसाइयों की आबादी 80 लाख से बढ़कर 2.8 करोड़ हो गई.

भारत में धार्मिक समूहों की जनसंख्या

  • साल 2011 की जनगणना के अनुसार भारत में हिंदुओं की संख्या कुल 121 करोड़ आबादी का 79.8% हिस्सा है. दुनिया के 94 फ़ीसदी हिंदू भारत में रहते हैं.

  • मुसलमान भारत की कुल आबादी का 14.2% हिस्सा हैं. इंडोनेशिया के बाद सबसे ज़्यादा मुसलमान भारत में ही रहते हैं.

  • ईसाई, सिख, बौद्ध और जैन कुल भारतीय जनसंख्या का 6% हिस्सा हैं.

  • साल 2011 की जनगणना में 30 हज़ार भारतीयों ने ख़ुद को नास्तिक बताया था.

  • क़रीब 80 लाख लोगों ने कहा था कि वो छह प्रमुख धर्मों में से किसी से भी ताल्लुक नहीं रखते हैं.

  • पिछली जनगणना के अनुसार भारत 83 छोटे धार्मिक समूह थे और सबके कम से कम 100 अनुयायी थे.

  • भारत में हर महीने क़रीब 10 लाख लोग रहने आते हैं और इस दर से यह साल 2030 तक चीन को पछाड़कर दुनिया का सबसे ज़्यादा आबादी वाला देश बन जाएगा.

(स्रोत: साल 2011 की जगगणना और प्यू रिसर्च सेंटर)

कमी आई लेकिन अब भी सबसे ज़्यादा प्रजनन दर मुसलमानों की

भारत में अब भी मुसलमानों की प्रजनन दर सभी धार्मिक समूहों से ज़्यादा है. साल 2015 में हर मुसलमान महिला के औसतन 2.6 बच्चे थे.

वहीं, हिंदू महिलाओं के बच्चों की संख्या औसतन 2.1 थी. सबके कम प्रजनन दर जैन समूह की पाई गई. जैन महिलाओं के बच्चों की औसत संख्या 1.2 थी.

अध्ययन के अनुसार यह ट्रेंड मोटे तौर पर वैसा ही है, जैसा साल 1992 में था. उस समय भी मुसलमानों की प्रजनन दर सबसे ज़्यादा (4.4) थी. दूसरे नंबर पर हिंदू (3.3) थे.

अध्ययन के अनुसार, "प्रजनन दर का ट्रेंड भले ही एक जैसा हो लेकिन सभी धार्मिक समूहों में जन्म लेने वालों की बच्चों की संख्या पहले की तुलना में कम हुई है."

प्यू रिसर्च सेंटर के अनुसार जनसंख्या दर में कमी ख़ासकर उन अल्पसंख्यक समुदाय में आई है, जो पिछले कुछ दशकों तक हिंदुओं से कहीं ज़्यादा हुआ करती थी.

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25 साल में पहली बार इतनी कम हुई मुसलमानों की प्रजनन दर

प्यू रिसर्च सेंटर में वरिष्ठ शोधकर्ता और धर्म से जुड़े मामलों की जानकार स्टेफ़नी क्रेमर एक दिलचस्प पहलू की ओर ध्यान दिलाती हैं.

उनके मुताबिक़, "पिछले 25 वर्षों में यह पहली बार हुआ है जब मुसलमान महिलाओं की प्रजनन दर कम होकर प्रति महिला दो बच्चों के क़रीब पहुँची है."

1990 की शुरुआत में भारतीय महिलाओं की प्रजनन दर औसतन 3.4 थी, जो साल 2015 में 2.2 हो गई. इस अवधि में मुसलमान औरतों की प्रजनन दर में और ज़्यादा गिरावट देखी गई जो 4.4 से घटकर 2.6 हो गई.

पिछले 60 वर्षों में भारतीय मुसलमानों की संख्या में 4% की बढ़त हुई है जबकि हिंदुओं की जनसंख्या क़रीब 4% घटी है. बाक़ी धार्मिक समूहों की आबादी की दर लगभग उतनी ही बनी हुई है.

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जनसंख्या नियंत्रण प्रस्ताव को मुसलमानों से जोड़ना कितना सही?

स्टीफ़नी क्रेमर ने बीबीसी से बातचीत में कहा, "इस जनसांख्यिकीय बदलाव की वजह ऐसे समझी जा सकती है कि हाल के वर्षों से पहले तक भारत में मुसलमान महिलाएँ अन्य धार्मिक समूहों की महिलाओं की तुलना में ज़्यादा बच्चों को जन्म देती थीं."

इस अध्ययन में कहा गया है, "परिवार के आकार कई कारणों से प्रभावित होते हैं इसलिए यह कहना नामुमकिन है कि प्रजनन दर के इस बदलाव में धर्म की अकेले कितनी भूमिका है."

प्यू रिसर्च सेंटर के अनुसार, "दूसरे कई देशों के उलट भारत में जनसांख्यिकीय बदलाव के पीछे प्रवास या धर्मांतरण की भूमिका नगण्य है."

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इस बदलाव के पीछे वजहें क्या हैं?

अध्ययन के अनुसार भारत की धार्मिक आबादी में जो मामूली बदलाव हुए हैं, उसे प्रजनन दर ने ही 'सबसे ज़्यादा' प्रभावित किया है.

जनसंख्या में वृद्धि का एक कारण यह भी है कि ज़्यादा युवा आबादी वाले समूहों में महिलाएँ शादी और बच्चे पैदा करने की उम्र में जल्दी पहुँच जाती हैं. नतीजतन, ज़्यादा उम्र की आबादी वाले समूह से युवा आबादी बहुल समूहों की जनसंख्या भी तेज़ी से बढ़ती है.

अध्ययन के अनुसार, साल 2020 तक हिंदुओं की औसत उम्र 29, मुसलमानों की 24 और ईसाइयों की 31 साल थी.

भारत में जनसंख्या को प्रभावित करने वाले अन्य कारकों में महिलाओं का शैक्षिक स्तर भी शामिल है. उच्च शिक्षा वाली महिलाएँ कम पढ़ी-लिखी महिलाओं की तुलना में देरी से शादी और कम बच्चे पैदा करती हैं.

महिलाओं की आर्थिक स्थिति भी जनसंख्या को प्रभावित करती है. ग़रीब महिलाओं की शादी अमीर महिलाओं की तुलना में जल्दी हो जाती है और उनके बच्चे भी ज़्यादा होते हैं. (ताकि वो घर के कामों और पैसे कमाने में मदद कर सकें.)

प्यू रिसर्च सेंटर के इस अध्ययन को पूरी तरह चौंकाने वाला तो नहीं कहा जा सकता, क्योंकि हाल के दशकों में भारतीयों के प्रजनन दर में कमी आ रही थी. एक औसत भारतीय महिला अपने जीवनकाल में 2.2 बच्चों को जन्म देती है.

यह अमेरिका (1.6) जैसे देशों की तुलना में ज़्यादा है लेकिन 1992 (3.4) और 1950 (5.9) के भारत की तुलना में कम है.

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धर्म में यक़ीन न रखने वाले लोग बहुत कम

अध्ययन में एक अन्य दिलचस्प बात सामने आई है. वो यह कि भारत में ऐसे लोगों की संख्या बहुत कम है जो ख़ुद को किसी धर्म से वास्ता नहीं रखने वाला बताते हैं.

वैश्विक स्तर पर देखें तो ईसाइयों और मुसलमानों के बाद तीसरे नंबर पर वो लोग हैं जो ख़ुद को किसी धर्म से जुड़ा नहीं बताते.

स्टेफ़नी क्रेमर कहती हैं कि इतने बड़े देश में ऐसे लोगों की इतनी कम संख्या भी अपने आप में दिलचस्प है.

एक और महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि भारत में कई धर्मों के लोगों की आबादी बहुत ज़्यादा है. मसलन, दुनिया के 94% हिंदू भारत में रहते हैं, इसी तरह जैन धर्म के अनुयायियों की संख्या भी काफ़ी ज्यादा है और दुनिया के 90% सिख तो सिर्फ़ भारत के पंजाब राज्य में रहते हैं.

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चीन के सामने सबसे बड़ा सवाल, कैसे बढ़ाए जनसंख्या? Duniya Jahan

वहीं, अगर दुनिया में सबसे ज़्यादा आबादी वाले देश चीन से भारत की तुलना करें, तो वहाँ दुनिया के लगभग आधे बौद्ध रहते हैं. चीन में उन लोगों की संख्या भी अच्छी-ख़ासी है जो ख़ुद को किसी धर्म से जुड़ा नहीं मानते.

हिंदू धर्म में कौन कौन आते हैं?

हिन्दू धर्म में चार मुख्य सम्प्रदाय हैं : वैष्णव (जो विष्णु को परमेश्वर मानते हैं), शैव (जो शिव को परमेश्वर मानते हैं), शाक्त (जो देवी को परमशक्ति मानते हैं) और स्मार्त (जो परमेश्वर के विभिन्न रूपों को एक ही समान मानते हैं)।

हिंदू धर्म को कितने लोग मानते हैं?

विश्व की कुल जनसंख्या में लगभग 15-16% हिन्दू धर्म के अनुयायी जन हैं। कुल जनसंख्या के प्रतिशत के नेपाल में सर्वाधिक (८२ प्रतिशत) हिन्दू हैं, उसके बाद भारत (८०.३%) तथा मॉरिशस (४८.५%) में सर्वाधिक हिन्दू हैं

हिंदू कितने होते हैं?

हिन्दू धर्म भारत का सबसे बड़ा और मूल धार्मिक समूह है और भारत की 79.8% जनसंख्या (96.8 करोड़) इस धर्म की अनुयाई है।

हिंदू का क्या पहचान है?

हिंदू अस्तित्व की पहचान है कि आप अपनी आस्था से, जन्म से, मन से हिंदू हैं. लेकिन अपनी पहचान के प्रति सजग होना और उसके प्रति चेतना का विकास होना हिंदुत्व है. अर्थात पहचान से हिंदू होने का तात्पर्य है कि क्षमाभाव, प्रेमभाव और आचरण की शुद्धता होना, अहिंसा के रास्ते पर चलना और विविधता को महत्व देना. हिंदू शब्द भाववाचक है.