धारा 308 में क्या प्रावधान है? - dhaara 308 mein kya praavadhaan hai?

अनजाने विवाद में जख्मी होना या यह जानते हुए भी दुर्घटना करना कि इसमें व्यक्ति की जान भी जा सकती थी, एेसे कुछ मामलों में राजधानी पुलिस ने आईपीसी धारा 279, 337, 338 (सड़क हादसे में घायल) आैर आईपीसी की 307 (प्राण घातक हमला) के स्थान पर आईपीसी की धारा 308 के तहत मामले दर्ज करना शुरू किया है। ऐसा इसलिए किया जा रहा है, क्योंकि सड़क हादसे में मौत होने पर आरोपी के खिलाफ 304 ए के तहत मामला दर्ज होने पर लापरवाह वाहन चालक को ज्यादा से ज्यादा दो साल की सजा का प्रावधान है। अब 308 के तहत मामला दर्ज होने से हादसे में मौत होने पर इसे बढ़ाकर धारा 304 लगाई जा सकेगी।

एसएसपी डॉ. रमन सिंह सिकरवार ने एक्सीडेंट आैर जानलेवा हमले के मामले में धाराओं को लेकर दिशा निर्देश दिए हैं। कई बार अनजान लोगों के बीच विवाद होता है। जबकि उनके बीच पुरानी रंजिश नहीं होती है। ऐसे में विवाद बढ़ने पर अनजाने में एक पक्ष के घायल होने पर पुलिस प्राण घातक हमले (307) का मामला दर्ज कर विवेचना करती है। एेसे मामलों में कई बार कोर्ट द्वारा भी धाराएं बदले जाने से विवेचना पर सवाल खड़े होते हैं। इतना ही नहीं पुलिस को कोर्ट की फटकार भी खानी पड़ती है। एसएसपी का मानना है कि धारा 308 में अपराध दर्ज करने में पुलिस की विवेचना पर सवाल नहीं उठेंगे। कोर्ट भी धाराओं से संतुष्ट होगी।

मजिस्ट्रेट की गाड़ी में मारी टक्कर...
मिसरोद इलाके में आशिमा मॉल के पास शुक्रवार शाम एक टाटा सफारी ने प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट अशोक भारद्वाज की वैगनआर कार में पीछे से टक्कर मार दी। श्री भारद्वाज की शिकायत पर टाटा सफारी के ड्राइवर रविंद्र अहिरवार के खिलाफ पुलिस ने प्रकरण दर्ज कर उसकी गाड़ी जब्त कर ली है। पुलिस ने इसको जानबूझ कर किया गया कृत्य मानते हुए रविंद्र के खिलाफ आईपीसी की धारा 308 के तहत मामला दर्ज किया है।

... और यह धाराएं भी
लापरवाही पूर्वक वाहन चलाने से जिसमें सामने वाला व्यक्ति घायल होता है या फ्रेक्चर होता है, तो आरोपी के खिलाफ आईपीसी की धारा 279, 337, 338 के तहत मामला दर्ज किया जाता है। दुर्घटना में घायल व्यक्ति की मौत के बाद आरोपी के खिलाफ 304ए के तहत मामला दर्ज किया जाता है।

धारा 307 के बारे में
ऐसा कृत्य करना जिसमें पता होता है कि गोली मारने या हथियार से हमला करने पर व्यक्ति जख्मी होगा। ऐसे में जानलेवा हमला करने का मामला दर्ज होता है। घायल की मौत होने पर धारा बढ़ाते हुए आईपीसी की धारा 302 (हत्या) के तहत मामला दर्ज होता है। इसमें आजीवन कारावास की सजा है।

क्या है आईपीसी की धारा 308
जानबूझकर ऐसा कृत करना जिसमें आप जानते हैं कि इससे सामने वाले व्यक्ति को चोट या नुकसान पहुंच सकता है, लेकिन उसको नुकसान पहुंचाने की आपकी मंशा नहीं है। घायल होने पर यह अपराध आईपीसी की धारा 308 की श्रेणी में आएगा। यदि घायल व्यक्ति की मौत हो जाती है तो आईपीसी की धारा 304 के तहत मामला दर्ज होता है। इसमें दस साल की सजा का प्रावधान है।

एक्सीडेंट आैर ऐसा अपराध जिसमें पता है कि सामने वाले को चोट पहुंच सकती है, ऐसे मामलों में 308 के तहत मामले दर्ज किए जा रहे हैं। इससे आरोपियों को सजा दिलाने में आसानी होगी। डॉ. रमन सिंह सिकरवार एसएसपी, भोपाल

मेरा नाम दीपेन्द्र सिंह  है पेशे से मे एक वकील हू|  MYLEGALADVICE   ब्लॉग का लेखक हू यहा से आप सभी प्रकार की कानून से संबंद रखने वाली हर जानकारी देता रहूँगा जो आपके लिए हमेशा उपयोगी रहेगी | इसी अनुभव के साथ जरूरत मंद लोगों कानूनी सलाह देने के लिए यक छोटा स प्रयास किया है आशा करता हू की मेरे द्वारा दी गई जानकारी आपके लिए उपयोगी रहे |यदि आपको कोई कानूनी सलाह या जानकारी लेनी हो तो नीचे दिए गए संपर्क सूत्रों के माध्यम से हमसे संपर्क कर सकते है |

आजकल देखने को मिलता है कि कोई किसी का अपना नहीं होता। हर कोई आदमी किसी दूसरे व्यक्ति से ईर्ष्या रखता है तो वह किसी ना किसी बहाने से जानबूझकर दूसरे व्यक्ति के साथ कुछ गलत करने का सोचता है। ऐसे में अगर वो किसी की हत्या कर देता है तो उसपे क्या धारा के तहत केस दर्ज किया जाता है। आज हम जानेंगे ऐसी ही एक धारा के बारे में और समझने की कोशिश करेंगे की आखिर क्या होता है (IPC 308 in Hindi) धारा 308 में।

धारा 308 में क्या प्रावधान है? - dhaara 308 mein kya praavadhaan hai?

धारा 308 में क्या प्रावधान है? - dhaara 308 mein kya praavadhaan hai?

इस धारा के तहत हम यह समझने की कोशिश करेंगे कि इस धारा में किस तरह अपराध करने पर क्या सजा दी जाती है और कैसे जमानत होती है। यह धारा क्यों खास है, इसमें वकील की ज़रूरत होती है या नहीं यह सब जानकारी दी जाएगी तो आपको यह आर्टिकल अंत तक पढ़ना है। 

धारा 308 क्या होता है। (IPC 308 in Hindi)

भारतीय दंड संहिता की धारा 308 के अनुसार ऐसे कोई इरादे से ऐसी कोई परिस्थिति में काम करता है जिससे वह किसी की मौत का कारण बन जाए, तो वह गैर इरादतन हत्या (जो हत्या करने से वास्ता नहीं रखता हो) का दोषी पाया जाता है। उसे एक अवधि के लिए कारावास और आर्थिक जुर्माना या फिर दोनों से ही दंडित किया जाता है। इस धारा में आरोपी की सज़ा को तीन साल तक बढ़ाया भी जा सकता है।

जब उसपे पहले से ही अरोप लगा है और वह दोषी है फिर भी अगर वो ऐसा कुछ दोबारा करने की कोशिश करता है तब ऐसे मामलों में आरोपी की सज़ा के तीन साल तक और बढ़ाया जा सकता है।

यदि ऐसे किसी कार्य से किसी व्यक्ति को कोई चोट लग जाती है तो ऐसे में आरोपी को एक अवधि की कारावास और आर्थिक जुर्माना लगाया जाता है। लेकिन अपराध होने के बाद भी अगर अपराधी दोबारा ऐसा कुछ कार्य करने की कोशिश करता है तो उसकी सज़ा को सात साल तक बढ़ाया जा सकता है।

यह एक गैर-जमानती, संज्ञेय अपराध है और सत्र न्यायालय द्वारा विचारणीय है। यह अपराध समझौता करने योग्य नहीं है।

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धारा 308 में सजा का प्रावधान

  • भारतीय दंड संहिता की धारा 308 के अनुसार गैर इरादतन (हत्या करने का इरादा ना हो) तरीक़े से हत्या करने पर  आरोपी को तीन साल की सजा और आर्थिक जुर्माना लगाया जाता है या फिर दोनों से दंडित किया जाता है।
  • भारतीय दंड संहिता की धारा के अनुसार यदि ऐसे किसी कार्य से किसी व्यक्ति को कोई चोट लग जाती है तो उसे सात साल की कारावास और आर्थिक जुर्माना या फिर दोनों से दंडित किया जाता है।

धारा 308 में जमानत का प्रावधान (Bail Provision in IPC Section 308 Hindi)

भारतीय दंड संहिता की धारा 308 के अंतर्गत यह एक गैर जमानती और संज्ञेय अपराध है जिसमें किसी भी आरोपी को ज़मानत मिलना काफ़ी मुश्किल है। इस अपराध में किसी भी दोषी को निर्दोष साबित करना काफी मुश्किल है। इस अपराध के लिए ज़मानत देने के लिए न्यायालय को काफ़ी सोच विचार कर निर्णय लेना पड़ता है.

ताकि आगे चलकर कोई बड़ा मामला ना हो। इस में अगर आरोपी उच्च न्यायालय में भी जमानत के लिए याचिका दायर करता है तो वहाँ भी उसकी याचिका को निरस्त कर दिया जाता है। ऐसे मामलों में पुलिस आरोपी को केस दर्ज होते ही गिरफ्तार कर लेती है।

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धारा 308 में वकील की ज़रूरत क्यों होती है।

भारतीय दंड संहिता में यह एक गैर जमानती अपराध है जिसमें किसी भी व्यक्ति को ज़मानत मिलना मुश्किल है ऐसे में उसे एक वकिल ही बचा सकता है। अगर वकील अपने क्षेत्र में निपुण हैं तो वह आरोपी को आसानी से ज़मानत दिलाने में सहायक सबित हो सकता है। ऐसे मामलों में हमें एक वकील को नियुक्त करना चाहिए जो हमारी सही मायनों में मदद कर सकता है।

हमने आपको इस आर्टिकल में यह बताया की इस धारा में क्या होता है (What is IPC 308 in Hindi) और कैसे जमानत और सजा होती है।  भले ही हम कानून की पढ़ाई नहीं कर रहे हो लेकिन यह सब के बारे में जानकारी हमें होनी चाहिए। यह धारा काफ़ी महत्वपूर्ण है कभी भी हमारे दैनिक जीवन में काम आ सकती है।। अगर यह आर्टिकल आपको लाभकारी लगा हो तो अपने साथियों के साथ जरूर शेयर करें।

308 में कितने साल की सजा होती है?

धारा 308 में कहा गया है कि जो कोई भी उस कार्य के परिणामस्वरूप मौत का कारण बनने के इरादे या ज्ञान के साथ कोई कार्य करता है, वह गैर इरादतन हत्या का दोषी होगा, यदि उस कार्य के परिणामस्वरूप मृत्यु हो जाती है, तो उसे किसी भी प्रकार के कारावास जिसकी अवधि तीन साल से अधिक की नहीं होगी, या जुर्माना, या दोनों के साथ दंडित किया ...

धारा 308 कैसे बनती है?

भारतीय दंड संहिता की धारा 308 का दायरा धारा 308 सजातीय हत्या के प्रयास के अपराध से संबंधित है। यह धारा तब लागू की जाती है जब किसी व्यक्ति द्वारा इस आशय या ज्ञान के साथ कार्रवाई की जाती है कि यदि उसकी / उसके कृत्यों से, मौत हुई थी, तो वह दोषी होगा / हत्या के दोषी नहीं होने का दोषी होगा।

307 और 308 में क्या अंतर है?

अनजाने विवाद में जख्मी होना या यह जानते हुए भी दुर्घटना करना कि इसमें व्यक्ति की जान भी जा सकती थी, एेसे कुछ मामलों में राजधानी पुलिस ने आईपीसी धारा 279, 337, 338 (सड़क हादसे में घायल) आैर आईपीसी की 307 (प्राण घातक हमला) के स्थान पर आईपीसी की धारा 308 के तहत मामले दर्ज करना शुरू किया है।

धारा 304 कब लगती है?

धारा 304 का केस केवल और केवल आरोपी की नियत के आधार पर बनाया जाता है। यदि कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति पर उसे किसी शारीरिक चोट पहुंचाने के इरादे से वार करता है, किन्तु बाद में वह वार उस पीड़ित व्यक्ति की मृत्यु का कारण बन जाए, तो इस प्रकार के मामले में आरोपी पर धारा 304 के तहत केस चलाया जा सकता है।