शिक्षा में नैदानिक परीक्षण का क्या महत्व है? - shiksha mein naidaanik pareekshan ka kya mahatv hai?

शब्द मूलतः चिकित्सा विज्ञान में प्रयोग होता है जो रोगी का इलाज करने से पूर्व उसके लक्षणों का पता लगाने के लिए किया जाता है। जिस प्रकार, चिकित्सक रोगी का उपचार करने से पहले यह पता करता है कि रोगी को क्या परेशानी है, कितनी है या बीमारी किस प्रकार की है। तत्पश्चात् ही डॉक्टर उस बीमारी या परेशानी का उपचार करता है। ठीक उसी प्रकार इन परीक्षाओं द्वारा यह जानने का प्रयास किया जाता है कि गणित के अध्ययन में छात्रों की क्या-क्या कठिनाइयाँ हैं, वे कहाँ गलतियाँ करते हैं, किस प्रकार की गलती करते हैं तथा क्यों करते हैं आदि। इस प्रकार यही जानना या पता करना 'निदान' कहलाता है।
  • अतः गणित में बालकों की कठिनाइयों एवं कमजोरियों का पता लगाने के लिए जिन परीक्षाओं का प्रयोग किया जाता है नैदानिक या निदानात्मक परीक्षाएँ कहलाती हैं। निदानात्मक परीक्षण व्यक्ति की जाँच करने के पश्चात् किसी एक या अधिक क्षेत्रों में उसकी विशेषताओं एवं कमियों को व्यक्त करता है। इन परीक्षाओं में उपलब्धि परीक्षणों की भाँति अंक प्रदान नहीं किए जाते हैं बल्कि एक कमी या गलती के कारणों का पता लगाया जाता है। 
  • इसके अन्तर्गत सम्पूर्ण विषय-वस्तु को विभिन्न भागों में बाँट लिया जाता है तथा प्रत्येक (प्रकरण ) भाग से सम्बन्धित नियमों, सूत्रों, संक्रियाओं आदि को प्रश्न-पत्र में सम्मिलित किया जाता है। इसमें दिए गए प्रश्न किसी एक प्रकरण विशेष से सम्बन्धित होते हैं। निदानात्मक परीक्षणों में प्रश्नों को अधिगम क्रम में व्यवस्थित किया जाता है। प्रत्येक अधिगम इकाई के लिए अलग से निदानात्मक परीक्षण का निर्माण किया जाता है।

 

निदानात्मक शिक्षण की प्रमुख परिभाषाएँ 

Important Definitions of Diagnostic Teaching 


गुड के मतानुसार,निदानात्मक  शिक्षा  

  • "निदान का अर्थ है अधिगम सम्बन्धी कठिनाइयों और कमियों के स्वरूप का निर्धारण करना।" 


योकम व सिम्पसन के मतानुसार,निदानात्मक  शिक्षा  

  • "निदान किसी कठिनाई का उसके चिह्नों या लक्षणों से ज्ञान प्राप्त करने की कला का कार्य है। यह तथ्यों के परीक्षण पर आधारित कठिनाई का स्पष्टीकरण है।" 


मरसेल के मतानुसार,निदानात्मक  शिक्षा 

 

  • "जिस शिक्षण में बालकों की विशिष्ट त्रुटियों का निदान करने का विशेष प्रयास किया जाता है उसको बहुधा निदानात्मक शिक्षण या शैक्षिक निदान कहते हैं।"

 

निदानात्मक शिक्षण में नैदानिक परीक्षण के उद्देश्य

Objectives of Diagnostic Test in Diagnostic Teaching

 

  • गणित विषय की अध्ययन अध्यापन प्रक्रिया में सुधार करना।
  • अधिगम- अनुभव तथा अधिगम-प्रक्रिया के अवरोधक तत्त्वों को ढूँढ़ना एवं उपचारात्मक शिक्षण की व्यवस्था करना । 
  • पिछड़े बालकों की पहचान करना। 
  • गणित सम्बन्धी विशिष्टताओं एवं कमजोरियों का पता लगाना ।
  • गणित के पाठ्यक्रम में परिवर्तन लाना तथा बालकेन्द्रित बनाना। 
  • मूल्यांकन प्रक्रिया को प्रभावशाली बनाने हेतु मूल्यांकन पद्धतियों में परिवर्तन करना।
  • उपलब्धि परीक्षण हेतु परीक्षण पदों के प्रकार निर्धारित करने में सहायता देना।
  •  छात्रों की कमियों एवं अच्छाइयों के आधार पर शैक्षिक एवं व्यावसायिक निर्देशन देना।

 

निदानात्मक शिक्षण में निदान हेतु महत्त्वपूर्ण चरण 

Important Steps for Diagnose in Diagnostic Teaching 


शैक्षिक निदान के मुख्य रूप से 5 चरण माने जाते हैं। जिसके आधार पर इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जाता है- 

 

1. सर्वप्रथम यह जानने का प्रयास किया जाता है कि वे कौन-से छात्र हैं जो कठिनाई का सामना कर रहे हैं। यानि समस्याग्रस्त बालक की पहचान की जाती है। इसके हेतु हम विभिन्न परीक्षणों का प्रयोग करते हैं। 

2. इसके उपरान्त यह जानने का प्रयास किया जाता है कि त्रुटियाँ कहाँ हैं अर्थात् बालक जहाँ गलती कर रहा है वह क्षेत्र कौन-सा है। 

3. कठिनाई की प्रकृति जानने के बाद यह जाना जाता है कि त्रुटियों के क्या कारण हैं। यह प्रक्रिया जटिल है। ज्यादातर इसमें शिक्षक का तर्क कार्य करता है। 

4. कारण पता हो जाने के बाद इस पर विचार किया जाता है कि उपचार क्या किया जाए इसका कोई विशेष नियम नहीं है। यह समस्या की प्रकृति पर ही निर्भर करता है। 

5. उपचार देने के बाद भी यह प्रक्रिया समाप्त नहीं हो जाती है बल्कि इनके परिणामों को ध्यान में रखकर यह भी विचार किया जाता है कि ऐसा क्या किया जाए कि वे समस्याएँ उत्पन्न ही न हों।

 

निदानात्मक परीक्षणों की आवश्यकता एवं महत्त्व 

Importance and Requirement of Diagnostic Tests 

इन परीक्षणों की आवश्यकता एवं महत्व को निम्न बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट करते हैं -


  • शैक्षिक निदान की आवश्यकता केवल समस्याग्रस्त बालकों की ही नहीं अपितु सामान्य बालकों को भी होती है। 
  • निदानात्मक परीक्षाओं की आवश्यकता बालकों की विषयगत व विशेष इकाई में कठिनाई स्तर जानने में पड़ती है। 
  • कठिनाई उत्पन्न करने वाले प्रश्नों की विषय-वस्तु का विश्लेषण करने हेतु इसकी आवश्यकता पड़ती है।
  • विषय वस्तु के विश्लेषण के अतिरिक्त मानसिक प्रक्रिया के विश्लेषण में भी शैक्षिक निदान की आवश्यकता होती है। 
  • शैक्षिक निदान इस तथ्य का भी पता लगाता है कि छात्र किन-किन मानसिक प्रतित्याओं को सफलतापूर्वक सम्पादित नहीं कर पा रहा है। 
  • शैक्षिक निदान की आवश्यक अध्यापक को पठनपाठन की स्थितियों को प्रभावशाली बनाने हेतु होता है। 
  • शैक्षिक निदान द्वारा बालक की वांछनीय एवं वास्तविक उपलब्धियों की दूरी को समाप्त किया जा सकता है।
  • स्कूल में अपव्ययव उपरोधन के कारणों को जानने का अच्छा साधन है। बालक विद्यालय क्यों छोड़ते हैं तथा जिस उद्देश्य हेतु उन्होंने प्रवेश लिया था वह पूरा हुआ या नहीं। इनके कारणों का पता लगाना।

    नैदानिक परीक्षण का क्या महत्व है?

    नैदानिक परीक्षणों का लक्ष्य यह पता लगाना होता है कि खोजा गया नया उपचार सुरक्षित है या नहीं, और वह कार्य करता है या नहीं। कठोर नैदानिक परीक्षण में सुरक्षा और प्रभाविकता दिखाए बिना किसी भी नई दवा या उपचार को मनुष्यों में प्रयोग के लिए स्वीकृति नहीं मिलती है। क्लीनिकल अध्ययन का विचार प्रायः किसी प्रयोगशाला में जन्मता है।

    शिक्षा में नैदानिक परीक्षण क्या है?

    अत: नैदानिक परीक्षण वह क्रिया है, जो शिक्षक द्वारा अपने विद्याथ्री के असंतुलित व्यक्तिव, कुसमायोजित व्यवहार, आदि परिस्थितियों को दूर करने में की जाने वाली क्रिया है, इसमें संयम, धर्य की बहुत आवश्यकता होती है, जिस तरह चिकित्सक अपने मरीज की बीमारी सुनकर, बीमारी के कारणों की जाँच करता है, ताकि उसका सही उपचार किया जा सके, ...

    निदानात्मक जांच के उपयोग एवं महत्व क्या है?

    निदानात्मक परीक्षण के उद्देश्य Objective of diagnostic testing. * किसी विशिष्ट विषय में छात्रों की उपलब्धि की कमी का पता लगाना। * छात्रों की विषयगत कमजोरी के कारणों का पता लगाना। * अध्ययन अध्यापन प्रक्रिया में सुधार लाना अर्थात शिक्षण एवं सीखने की कमजोर परिस्थितियों का सम्यक् निवारण करना।

    नैदानिक शिक्षण के उद्देश्य क्या है?

    निदानात्मक शिक्षण में नैदानिक परीक्षण के उद्देश्य गणित विषय की अध्ययन अध्यापन प्रक्रिया में सुधार करना। अधिगम- अनुभव तथा अधिगम-प्रक्रिया के अवरोधक तत्त्वों को ढूँढ़ना एवं उपचारात्मक शिक्षण की व्यवस्था करना । पिछड़े बालकों की पहचान करना। गणित सम्बन्धी विशिष्टताओं एवं कमजोरियों का पता लगाना ।