शब्द मूलतः चिकित्सा विज्ञान में प्रयोग होता है जो रोगी का इलाज करने से पूर्व उसके लक्षणों का पता लगाने के लिए किया जाता है। जिस प्रकार, चिकित्सक रोगी का उपचार करने से पहले यह पता करता है कि रोगी को क्या परेशानी है, कितनी है या बीमारी किस प्रकार की है। तत्पश्चात् ही डॉक्टर उस बीमारी या परेशानी का उपचार करता है। ठीक उसी प्रकार इन परीक्षाओं द्वारा यह जानने का प्रयास किया जाता है कि गणित के अध्ययन में छात्रों की क्या-क्या कठिनाइयाँ हैं, वे कहाँ गलतियाँ करते हैं, किस प्रकार की गलती करते हैं तथा क्यों करते हैं आदि। इस प्रकार यही जानना या पता करना 'निदान' कहलाता है।
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निदानात्मक शिक्षण की प्रमुख परिभाषाएँImportant Definitions of Diagnostic Teaching गुड के मतानुसार,निदानात्मक शिक्षा
योकम व सिम्पसन के मतानुसार,निदानात्मक शिक्षा
मरसेल के मतानुसार,निदानात्मक शिक्षा
निदानात्मक शिक्षण में नैदानिक परीक्षण के उद्देश्यObjectives of Diagnostic Test in Diagnostic Teaching
निदानात्मक शिक्षण में निदान हेतु महत्त्वपूर्ण चरणImportant Steps for Diagnose in Diagnostic Teaching शैक्षिक निदान के मुख्य रूप से 5 चरण माने जाते हैं। जिसके आधार पर इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाया जाता है-
1. सर्वप्रथम यह जानने का प्रयास किया जाता है कि वे कौन-से छात्र हैं जो कठिनाई का सामना कर रहे हैं। यानि समस्याग्रस्त बालक की पहचान की जाती है। इसके हेतु हम विभिन्न परीक्षणों का प्रयोग करते हैं। 2. इसके उपरान्त यह जानने का प्रयास किया जाता है कि त्रुटियाँ कहाँ हैं अर्थात् बालक जहाँ गलती कर रहा है वह क्षेत्र कौन-सा है। 3. कठिनाई की प्रकृति जानने के बाद यह जाना जाता है कि त्रुटियों के क्या कारण हैं। यह प्रक्रिया जटिल है। ज्यादातर इसमें शिक्षक का तर्क कार्य करता है। 4. कारण पता हो जाने के बाद इस पर विचार किया जाता है कि उपचार क्या किया जाए इसका कोई विशेष नियम नहीं है। यह समस्या की प्रकृति पर ही निर्भर करता है। 5. उपचार देने के बाद भी यह प्रक्रिया समाप्त नहीं हो जाती है बल्कि इनके परिणामों को ध्यान में रखकर यह भी विचार किया जाता है कि ऐसा क्या किया जाए कि वे समस्याएँ उत्पन्न ही न हों।
निदानात्मक परीक्षणों की आवश्यकता एवं महत्त्वImportance and Requirement of Diagnostic Tests इन परीक्षणों की आवश्यकता एवं महत्व को निम्न बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट करते हैं -
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