जैव तकनीक से आप क्या समझते हैं - jaiv takaneek se aap kya samajhate hain

जीवाणुओं की सहायता से वस्तुओं के उत्पादन की प्रक्रिया जैव-प्रौद्योगिकी कहलाती है। यह प्रक्रिया सामान्य दाब, निम्न दाब, निम्न ताप तथा प्रायः उदासीन पी0एच (PH=7) पर सम्पन्न होती है। इस प्रौद्योगिकी के अन्तर्गत सूक्ष्म जीवों, जीवित पादपों तथा पशुओं की कोशिकाओं का औद्योगिक प्रयोग होता है। इसका अन्तर्गत मुख्य रूप से ही डी0एन0ए0 तकनीक, कोशिका एवं ऊतक तंत्र, एन्जाइम विज्ञान, रोग प्रतिरक्षण, टीका उत्पादन जैव अभियान्त्रिकी, जैविक गैस, परखनली शिशु, अंग प्रत्यारोपण क्लोनिंग आदि विधाएं तथा क्षेत्र आते हैं।

बायोटेक्नोलॉजी को अकसर बायोइंजिनियरिंग (bio engineering), बायोमेडिकल इंजीनियरिंग (biomedical engineering), मॉलिक्यूलर इंजीनियरिंग (molecular engineering) इत्यादि के क्षेत्रों के साथ जोड़कर देखा जाता रहा है। हजारों सालों से, मानव जाति ने कृषि, खाद्य उत्पादन और दवा में जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग किया है।

इस प्रौद्योगिकी के दो पहले हैं-

(1) आनुवंशिक जैव-प्रौद्योगिकी :-  जिसमें जीनों का स्थानान्तरण एक जीव से दूसरे जीव में कर दिया जाता है।

(2) गैर आनुवंशिक जैव-प्रौद्योगिकी :- जिसमें संपूर्ण कोशिकाओं, ऊतक या एक रूप जैविक के सथ संपादन होता है।

भारत में जैव-प्रौद्योगिकी पर अनेक क्षेत्रों में अनुसंधान कार्य चल रहे हैं। कृषि संबंधी तीन महत्वपूर्ण क्षेत्रों में जैव प्रौद्योगिकी के समुचित उपयोग हेतु ’मिशन मोड कार्यक्रम’ चलाये जा रहे हैं। तीन क्षेत्र निम्न हैं- (a) जैव उर्वरकों का विकास, (b) जैविक कीटनाशकों का विकास तथा (c) जल कृषि का विकास एवं समुद्री जैव प्रौद्योगिकी।

वे सूक्ष्म जीवाणु जो पौधों के लिए पोषक तत्व उपलब्ध कराते हैं जैव उवर्रक कहलाते हैं। ये जीवाणु वायु मंडल से मुक्त नाइट्रोजन को ग्रहण कर पौधों के लिए पोषक पदार्थ का निर्माण करते हैं। प्रमुख जैव उर्वरक घटकों में एंजोला, राइजोबियम, एजोस्पिरिलम माइकोराइजा, लाको फेरम आदि आते हैं। भारत में दो प्रमुख जैस उर्वरकों-राइजोबियम एवं नील हरित शैवाल का प्रयोग किया जाता है। जैव उर्वरकों के प्रयोग से रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग में एक चैथाई की कमी की जा सकती है। जैव प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा-’’जैव-उर्वरक प्रौद्योगिकी विकास और प्रदर्शन नील हरित शैवाल (एजोला सहित) तथा राइजोबियम’’ के मिशन तर्ज पर 30 से अधिक अनुसंधान तथा विकास परियोजनाओं को मदद दी जा रही है। नील हरित शैवालों के उपयोग से धार की फसल में 13 से 16.67 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। राइजोबियम के उपयोग से दाल एवं तिलहनों में 5 से 13.5 प्रतिशत अधिक उत्पादन प्राप्त किया जा सका है।

भाषा परमाणु अनुसंधान केन्द्र BARC द्वारा गामा किरणों का उपयोग करके विकसित किये गये उच्च कोटि के लेग्यूमिनस पौधे सैस्बेनिया रास्टेªटा की जड़ों एवं तनों में जीवाणुओं को बड़ी संख्या में पालने वाली गाँठे हैं। इन गाँठों को निर्मित करने वाला प्रमुख जीवाणु ’राइजोबियम कालिनोडंस’ है। सेस्बेनिया रास्टेªटा का पौधा 50 दिनों में एक हेक्टेयर भूमि से लगभग 120 से 160 किग्रा0 नाइट्रोजन का संग्रह कर सकता है।

भारत में 1991 तक जैव कीटनाशकों के मुख्य तत्व बैसिलस थूरिन्जिएंसिस के प्रयोग पर प्रतिबन्ध था। परन्तु अब एन0आर0सी0पी0बी0 इसके विकास में उल्लेखनीय कार्य कर रहा है।

इस प्रौद्योगिकी के द्वारा ऐसी फसलों का विकास किया जा रहा है जिनके पास कीटों या रोगों से लड़ने की पूर्ण क्षमता हो। इन कीटनाशकों से पर्यावरण को भी कोई हानि नहीं होती है क्योंकि इनके अवशेष ’बायोडिग्रेडेबल’ होते हैं। आठ नये जैव कीटनाशकों तथा दो पायलट जैव नियंत्रण प्रयोगिक संयन्त्रों का विकास किया गया है।

आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण फसलों के लिए जैव नियन्त्रकों वैक्यूलो वायरस एंटागोनिस्टिकस, पैरासाइट प्रीडेटर्स बैक्टीरिया तािा फफूंदी के बड़ स्तर पर उत्पादन के लिए प्रौद्योगिकी को उद्योगों को स्थानांतरित किया गया है। विभिनन केन्द्रों में सक्रिय जांच के अन्तर्गत आने वाले पादपों में असकोयामोरडा, एकारस कैलेमस, मेलया अजडरच, अनोना, डेरिस टेपरोसिया, एजाडिरैक्टा इंडिका का इत्यादि आते हैं।

जल कृषि :- साफ पानी में जैव प्रौद्योगिकी का उपयोग करके कार्य मछलियों के षरीर में इन्जेक्शन द्वारा हार्मोन का प्रवेश कराकर उनके प्रजनन को बढ़ाया जाता है और सभी मछलियों का मिश्रित रूप से संवर्धन किया जाता है। खारे पानी में इस प्रौद्योगिकी द्वारा ’झींगा मछली उत्पादन’ में काफी वृद्धि की गयी है।

ऊतक संवर्धन :-  इस प्रौद्योगिकी में पादप अथवा जन्तु कोशिका के एक महत्वपूर्ण गुण का उपयोग करके एक पूरे पौधे अथवा पूरे जनतु को उत्पन्न किया जाता है। देश में दो प्रमुख ऊतक संवर्धन पायलट संयन्त्र ’राष्ट्रीय रासायनिक प्रयोगशाला’, पुणे और टाटा ऊर्जा अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली में स्थित है।

मशरूम संवर्धन :- इस प्रौद्योगिकी द्वारा धान एवं गेहूं के पुआल से उच्च कोटि का प्रोटीन औषधीय या औद्योगिक रूप से उपयोगी उत्पाद जैसे-साइट्रिक अम्ल, जल अपघटनीय एंजाइमों, एंटीबायोटिक तथा एल्कोहल आदि उत्पन्न किया जाता है।

ट्रान्सजेनिक कृषि :-  इसमें पौधों के प्राकृतिक जीन में रिंकांबीनेट डी0एन0ए0 तकनीक द्वारा किसी दूसरे पौधे के जीनक ा भाग जोड़ कर पौधों की मूल संरचना को परिवर्तित कर दिया जाता है।

जीन अभियन्त्रिकी (Genetic Engineering))के द्वारा किसी एक प्रजाति के जीव जनतुओं के आनुवंशिक वाहक जीन का प्रत्यारोपण अन्य प्रजाति के जीव-जन्तुओं में किया जाता है तथा इच्छित गुणों वाले जीन प्राप्त किये जाते हैं। इस प्रौद्योगिकी द्वारा जेनेटिक आधार में परिवर्तन या संशोधन करके जीवों के आकार, आकृति तथा मूलीाूत गुणों को बदला जा सकता है। साथ ही पूर्णतः नवीन प्रकार के जीवों का निर्माण भी किया जा सकता है। इस अभियन्त्रिकी का उपयोग हृदय रोग, एड्स, मलेरिया, हीमोफीलिया आदि के टीके बनाने में किया जा रहा है।

जीन उपचार (Gene Theraph) :- इसमें दोषपूर्ण जीनों की पहचान कर दोषमुक्त जीनों की स्थापना द्वारा विभिनन प्रकार की बीमारियों का उपचार किया जा रहा है।

क्लोनिंग (Cloning) :- इस तकनीक में गैर लैंगिक विधि द्वारा किसी भी जीव का प्रतिरूप बनाया जाता है। क्लोन एक ऐसी जैविक रचना है जो एक मात्र जनक (माता अथवा पिता) से गैर लैंगिक विधि द्वारा उत्पादित होता है। इस तकनीक में प्रायः ’नाभिकीय स्थानान्तरण तकनीक’ का प्रयोग किया जाता है।

इस तकनीक में कोशिका के नाभिक को यान्त्रिक रूप से निकालकर इसे नाभिक रहित अणडणु में प्रवेश कर दिया जाता है। 1997 में डाॅ0 इयान विल्मुट और उनके साहयोगियों ने राॅसलिन इन्स्टीट्यूट एडिनबर्ग (स्काटलैण्ड) में क्लोनिंग तकनीक के द्वारा ’डाॅली’ नामक एक भेड़ का क्लोन तैयार किया। इसके बाद इस तकनीक द्वारा अनेक जीव जन्तुओं को बनाया गया। मानव में परखनली शिशु (Test Tube baby);ज्मेज जनइम ठंइलद्ध तकनीक को ’इन विट्रो फर्टिलाइजेशन’ (L.V.F) कहा जाता है। भारत में भी नेशनल डेयरी रिसर्च इन्स्टीट्यूट करनाल में वैज्ञानिकों ने नाभिकीय स्थानान्तरण तकनीक का प्रयोग करके भैंस का क्लोन तैयार किया है।

डी0एन0ए0 फ्रिंगर प्रिटिंग :- मानव के डी0एन0ए0 में चार प्रकार के नाइट्रोजनी क्षारों-एडिनीन, गुवानिन, साइटोसिन एवं थायमिन-का अनुक्रम भिन्न होता है, लेकिन एक मनुष्य की प्रत्येक कोशिका में इनका संतुलित अनुक्रम एक समान होता है। इसी निश्चित अनुक्रम के कारण प्रत्येक व्यक्ति को अन्य व्यक्तियों से पृथक एक विशिष्ट पहचान मिलती है। नाइट्रोजनी क्षारों के अनुक्रम के आधार पर किसी व्यक्ति को पहचानने की विधि ही डी0एन0ए0 फिंगर प्रिंटिंग है। इस विधि में अपराधी, अभियुक्त, पीडित्रत या किसी व्यक्ति के रक्त, वीय, चमड़ी, बाल या किसी अंग द्वारा डी0एन0ए0 निकालकर उसकी पहचान की जाती है। भारत में इसके परीक्षण का कार्य सेंटर फाॅर सेल्यूलर एंड माॅलीक्यूलर बायोलाॅजी, हैदराबार में किया जा रहा है।

जैव तकनीक से आप क्या समझते है?

जैवप्रौद्योगिकी या जैवतकनीकी, प्रौद्योगिकी का वो विषय है जो अभियान्त्रिकी और तकनीकी के डाटा और विधियों को जीवों और जीवन तन्त्रों से सम्बन्धित अध्ययन और समस्या के समाधान के लिये उपयोग करता है। इसे रासायनिक अभियान्त्रिकी, रसायन शास्त्र या जीव विज्ञान में संबंधित माना जाता है।

जैव प्रौद्योगिकी क्या है इसके दो उपयोग लिखिए?

जैव प्रौद्योगिकी तथा पर्यावरण उदाहरण: जीवाणुओं (बैक्टीरिया) का उपयोग औद्योगिक अपशिष्टों के निराविषीकरण, तेल रिसाव से निपटने, मल के उपचार एवं बायोगैस उत्पादन के लिए किया जा रहा है। साथ ही, जैव कीटनाशक कीड़ों, कीटों एवं रोगों के नियंत्रण के लिए रासायनिक कीटनाशकों का एक सुरक्षित विकल्प प्रदान करते हैं।

जैव प्रौद्योगिकी के जनक कौन है?

डच वैज्ञानिक एण्टनी वॉन ल्यूवोनहूक ने 1676 ई० में जीवाणुओं की खोज की थी। उन्हें ही जीवाणु विज्ञान का जनक कहा जाता है।

जैव प्रौद्योगिकी का मानव जीवन में क्या महत्व है?

जैव-प्रोद्योगिकी के उपयोग फलों के रस, डेयरी उत्पाद एवं बायो-सेन्सर जैसी वस्तुओं का निर्माण किया जाता है। एवं अन्य बहुपयोगी औषधियों का विकास जेव-प्रौद्योगिकी द्वारा किया गया है। निर्माण में एवं बहुलकों के निर्माण में होता है। पर बहुमूल्य धातुओं के निष्कर्षण की क्षमता रखते हैं।