कर्ण ने अर्जुन पर कौन सा बाण चलाया? - karn ne arjun par kaun sa baan chalaaya?

महाभारत के युद्ध में कर्ण और अश्वत्थामा दो महाशक्तिशाली योद्‍धा थे यदि इन दोनों के साथ छल न किया गया होता तो महाभारत का युद्ध कौरव कभी का जीत चुके होते। कहते हैं कि यदि अश्वत्थामा को पहले ही दिन से सेनापति बना दिया जाता तो तीन दिन में युद्ध समाप्त हो जाता। लेकिन अश्वत्थामा को जब युद्ध लगभग हार चुके थे तब सेनापति बनाया गया और उन्होंने तबाही मचा दी। इसी तरह यदि कर्ण के साथ छल नहीं किया गया होता तो भी युद्ध का रुख कुछ ओर होता।


1.कवच और कुंडल : भगवान कृष्ण और अर्जुन के पिता देवराज इंद्र यह भली-भांति जानते थे कि जब तक कर्ण के पास उसका कवच और कुंडल है, तब तक उसे कोई नहीं मार सकता। तब श्री कृष्ण की युक्ति अनुसार देवराज इंद्र ने ब्राह्मण बन दानवीर कर्ण से दान में कवच और कुंडल मांग लिए। लेकिन कुछ मील जाकर इन्द्र का रथ भूमि में धंस गया।

तभी आकाशवाणी हुई, 'देवराज इन्द्र, तुमने अपने पुत्र अर्जुन की जान बचाने के लिए छलपूर्वक कर्ण की जान खतरे में डाल दी है। अब यह रथ यहीं धंसा रहेगा और तू भी यहीं धंस जाएगा।' तब इन्द्र ने आकाशवाणी से पूछा, इससे बचने का उपाय क्या है? तब आकाशवाणी ने कहा- अब तुम्हें दान दी गई वस्तु के बदले में बराबरी की कोई वस्तु देना होगी। तब इन्द्र वे फिर से कर्ण के पास गए और उन्होंने कवच और कुंडल वापस देने का कहा लेकिन कर्ण ने लेने से इनकार कर दिया। तब इंद्र ने उन्हें अपना अमोघ अस्त्र देकर कहा कि यह तुम जिस पर भी चलाओगे वह मृत्यु को प्राप्त होगा, लेकिन तुम इसका इस्तेमाल एक बार ही कर सकते हो।

2. मोघ अस्त्र : युद्ध में जब घटोत्कच ने कौरवों की सेना को कुचलना शुरू किया तो दुर्योधन घबरा गया और ऐसे में उसे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करें। तब कृष्ण ने कर्ण से कहा कि आपके पास तो अमोघ अस्त्र है जिसके प्रयोग से कोई बच नहीं सकता तो आप उसे क्यों नहीं चलाते। कर्ण कहने लगा नहीं ये अस्त्र तो मैंने अर्जुन के लिए बचा कर रखा है।

तब श्रीकृष्ण कहते हैं कि अर्जुन पर तो तुम तब चलाओंगे जब ये कौरव सेना बचेगी, ये दुर्योधन बचेगा। जब ये सभी घटोत्कच के हाथों मारे जाएंगे तो फिर उस अस्त्र के चलाने का क्या फायदा? दुर्योधन को ये बात समझ में आती है और वह कर्ण से अमोघ अस्त्र चलाने की जिद करता है। कर्ण दुर्योधन को समझाता है कि तुम घबराओ नहीं ये कष्ण की कोई चाल है। लेकिन दुर्योधन एक नहीं सुनता है और कर्ण मजबूरन वह अमोघ अस्त्र घटोत्कच के उपर चला देता है। इस तरह भगवान श्री कृष्ण अर्जुन को बचा लेते हैं।

कर्ण फिर भी था शक्तिशाली और तब लिया कठिन निर्णय

3.असहाय कर्ण : कवच कुंडल उतर जाने के बाद, अमोघ अस्त्र नहीं होने के बावजूद कर्ण में अपार शक्तियां थी। युद्ध के सत्रहवें दिन शल्य को कर्ण का सारथी बनाया गया। इस दिन कर्ण भीम और युधिष्ठिर को हराकर कुंती को दिए वचन को स्मरण कर उनके प्राण नहीं लेता है। बाद में वह अर्जुन से युद्ध करने लग जाता है। कर्ण तथा अर्जुन के मध्य भयंकर युद्ध होता है।

जब अर्जुन बाण चलाते और वह कर्ण के रथ पर लगता तो उसका रथ दूर दूर तक पीछे चला जाता और जब कर्ण बाण चलाते तो अर्जुन का रथ कुछ कदम ही पीछे हटता था और ऐसे में श्रीकृष्ण कर्ण की बहुत तारीफ करते हैं। तब अर्जुन भगवान से कहते हैं कि आप कर्ण की तारीफ कर रहे हैं जिसके बाण से हमारा रथ मात्र कुछ कदम ही पीछे हट रहा है लेकिन मेरे बाण से तो उसका रथ कई गज पीछे जा रहा है। तब ऐसे में कृष्ण मुस्कुरा देते हैं।

तभी अचानक कर्ण के रथ का पहिया भूमी में धंस जाता है। इसी मौके का लाभ उठाने के लिए श्रीकृष्ण अर्जुन से तीर चलाने को कहते हैं। बड़े ही बेमन से अर्जुन असहाय अवस्था में कर्ण का वध कर देता है। इसके बाद कौरव अपना उत्साह हार बैठते हैं। उनका मनोबल टूट जाता है। फिर शल्य प्रधान सेनापति बनाए जाते हैं, परंतु उनको भी युधिष्ठिर दिन के अंत में मार देते हैं।

4.हनुमानजी कृपा से बचे अर्जुन : कुरुक्षेत्र के युद्ध के अंतिम दिन कृष्ण ने अर्जुन से पहले रथ से उतरने को कहा, उसके बाद कृष्ण रथ से उतरे। कृष्ण ने हनुमानजी का धन्यवाद किया कि उन्होंने उनकी रक्षा की। लेकिन जैसे ही हनुमानजी अर्जुन के रथ से उतरकर गए, वैसे ही रथ में आग लग गयी। यह देख कर अर्जुन हैरान रह गए। कृष्ण ने उन्हें बाताया कि कैसे हनुमानजी उनकी दिव्य अस्त्रों से रक्षा कर रहे थे। यदि हनुमानजी रथ पर विराजमान नहीं होते हो तुम और मैं कर्ण के बाण से इस रथ सहित कभी के आसमान में उड़ गए होते।

यह तो सभी जानते हैं कि महाभारत के युद्ध में सबसे शक्तिशाली योद्धा कोई थे तो वह कर्ण और अश्वत्थामा थे। लेकिन कवज और कुंडल उतर जाने के बाद भी कर्ण इतने शक्तिशाली थे कि वे अर्जुन के रथ को एक ही बाण में हवा में उड़ा देते। लेकिन ऐसा हो नहीं सका। दरअसल, युद्ध में एक दिन कर्ण और अर्जुन आमने सामने थे। दोनों के बीच घमासान चल रहा था।

ऐसे में जब अर्जुन का तीर लगने पर कर्ण का रथ 25 से 30 हाथ पीछे खिसक जाता और कर्ण का तीर से अर्जुन का रथ सिर्फ 2 से 3 हाथ ही खिसकता था लेकिन फिर भी भगवान कृष्ण कर्ण की प्रशंसा करते नहीं थकते थे। ऐसे में अर्जुन से रहा नहीं गया और उसे पूछ ही लिया कि 'हे पार्थ आप मेरी शक्तिशाली प्रहारों की बजाय उसके कमजोर प्रहारों की प्रशांसा कर रहे हैं, ऐसा क्या कौशल है उसमें?'

तब भगवान कृष्ण मुस्कुराकर बोले, अजुर्न! तुम्हारे रथ की रक्षा के लिए ध्वज पर स्वयं हनुमानजी, पहियों पर शेषनाग और सारथी के रूप में मैं स्यवं नारायण विराजमान हूं। इस सब के बावजूद कर्ण के प्रहार से अगर ये रथ एक हाथ भी खिसकता है तो मानना ही पड़ेगा की कर्ण में अद्भुत पराक्रम है। ऐसे में उसकी प्रशंसा तो बनती ही है।

कहते हैं युद्ध समाप्त होने के बाद जैसे ही भगवान कृष्ण रथ से उतरे, रथ स्वतः ही भस्म हो गया। वो तो कर्ण के प्रहार से कबका भस्म हो चूका था, पर नारायण बिराजे थे इसलिए चलता रहा। ये देख अर्जुन का सारा घमंड चूर-चूर हो गया।

हनुमानजी के बगैर युद्ध जीतना असंभव था :

हनुमानजी के बारे में तो सभी जानते हैं कि उनके बगैर तो यह युद्ध जीतना असंभव था। हनुमानजी से पांडवों की मुलाकात वनवास के दौरान गंधमादन पर्वत पर हुई थी। मान्यता अनुसार भीम और हनुमान दोनों भाई हैं क्योंकि भीम और हनुमान दोनी ही पवन देव के पुत्र हैं। श्रीकृष्ण की युक्ति के अनुसार हनुमानजी से पांडवों ने जीत का आश्‍वासन ले लिया था। इसी के चलते वे युद्ध में अर्जुन के रथ के उपर ध्वज में विराजमान हो गए थे।


दिन अर्जुन अकेले वन में विहार करने गए। घूमते-घूमते वे रामेश्वरम चले गए। जहां उन्हें श्रीरामजी का बनाया हुआ सेतु देखा। यह देख कर अर्जुन ने कहा कि उन्हें सेतु बनाने के लिए वानरों की क्या जरूरत थी। जबकि वे खुद ही सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर थे। उनकी जगह मैं होता तो यह सेतु बाणों से बना देता। यह सुन कर हनुमान ने कहा कि बाणों से बना सेतु एक भी व्यक्ति का भार झेल नहीं सकता। तब अर्जुन ने कहा कि यदि मेरा बनाया सेतु आपके चलने से टूट जाएगा तो मैं अग्नि में प्रवेश कर जाऊंगा। हनुमानजी ने कहा मुझे स्वीकार है। मेरे दो चरण ही इसने झेल लिए तो मैं हार स्वीकार कर लूंगा।

तब अर्जुन ने अपने प्रचंड बाणों से सेतु तैयार कर दिया। लेकिन जैसे ही सेतु तैयार हुआ हनुमान ने विराट रूप धारण कर लिया। हनुमान राम का स्मरण करते हुए उस बाणों के सेतु पर चढ़ गए। पहला पग रखते ही सेतु सारा का सारा डगमगाने लगा, दूसरा पैर रखते ही सेतु चरमरा गया। यह देख कर अर्जुन खुद को खत्म करने के लिए अग्नि जलाने लगे तभी भगवान श्रीकृष्ण प्रकट हो गए और अर्जुन से कहा कि वह फिर से सेतु बनाए लेकिन इस बार वे श्रीराम का नाम लेके सेतु बनाए जिससे वह नहीं टूटेगा। दूसरी बार सेतु के तैयार होने के बाद हनुमान फिर से उस पर चले लेकिन इस बार सेतु नहीं टुटा। इससे खुश हो कर हनुमान ने अर्जुन से कहा कि वे युद्ध के अंत तक उनकी रक्षा करेंगे। इसीलिए कुरुक्षेत्र के युद्ध में अर्जुन के रथ के ध्वज में हनुमान विराजमान हुए और अंत तक उनकी रक्षा की।

कुरुक्षेत्र के युद्ध के अंतिम दिन कृष्ण ने अर्जुन से पहले रथ से उतरने को कहा, उसके बाद कृष्ण रथ से उतरे। कृष्ण ने हनुमानजी का धन्यवाद किया कि उन्होंने उनकी रक्षा की। लेकिन जैसे ही हनुमान अर्जुन के रथ से उतर कर गए, वैसे ही रथ में आग लग गयी। यह देख कर अर्जुन हैरान रह गए। कृष्ण ने उन्हें बाताया कि कैसे हनुमान उनकी दिव्य अस्त्रों से रक्षा कर रहे थे।

कर्ण ने अर्जुन पर कौन सा अस्त्र चलाया?

तब कर्ण का अर्जुन से सामना हुआ तब भगवान कृष्ण अर्जुन को कर्ण के वैष्णवास्त्र से बचा लेते हैं ।

अर्जुन ने कौन सा बाण चलाया?

' इस पर अर्जुन ने गांडीव धनुष पर बाण चढ़ाकर धरती में मारा और वहाँ से जल धारा फूट पड़ी।

अर्जुन ने कौन सा अस्त्र चलाकर कर्ण का सिर काट डाला *?

कर्ण और अर्जुन ने दैवीय अस्त्रों को चलाने के अपने-अपने ज्ञान का पूर्ण उपयोग करते हुए बहुत लंबा और घमासान युद्ध किया। कर्ण द्वारा अर्जुन का सिर धड़ से अलग करने के लिए "नागास्त्र" का प्रयोग किया गया।

कौन सा बाण युद्ध में अर्जुन का मुकुट उड़ा ले गया?

पश्चात्‌ महाभारत (कर्ण पर्व 66) में कर्णर्जुन युद्ध के समय अश्वसेन ने कर्ण के बाण पर आरोहण किया। लेकिन कृष्ण तत्काल स्थिति समझ गए और उन्होंने रथ के अश्वों को घुटनों के बल बैठा दिया। बाण चूका और अर्जुन की ग्रीवा की बजाए उसके मुकुट को टुकड़े-टुकड़े करता हुआ निकल गयाअर्जुन ने अश्वसेन को मार डाला।

अर्जुन और कर्ण में सबसे शक्तिशाली कौन था?

साँचा:महाभारत काल के सबसे शक्तिशाली योद्धा.