क्रिया के मूल रूप में लगने वाले प्रत्यय को क्या कहते हैं? - kriya ke mool roop mein lagane vaale pratyay ko kya kahate hain?

Contents

  • 1 प्रत्यय
  • 2 (1) संस्कृत प्रत्यय
    • 2.1 1. कृत् प्रत्यय (कृदन्त)
      • 2.1.1 i. विकारी कृत्-प्रत्यय
        • 2.1.1.1 (1) क्रियार्थक संज्ञा
        • 2.1.1.2 (2) कतृवाचक संज्ञा
        • 2.1.1.3 (3) वर्तमानकालिक कृदंत
        • 2.1.1.4 (4) भूतकालिक कृदंत
      • 2.1.2 ii. अविकारी या अव्यय कृत्-प्रत्यय
        • 2.1.2.1 (1) कर्तृवाचक कृत् प्रत्यय
        • 2.1.2.2 (2) कर्मवाचक कृत् प्रत्यय
        • 2.1.2.3 (3) करणवाचक कृत् प्रत्यय
        • 2.1.2.4 (4) भाववाचक कृत् प्रत्यय
        • 2.1.2.5 (5) क्रियाद्योतक कृत् प्रत्यय
    • 2.2 (2) तद्धित प्रत्यय
      • 2.2.1 (2) भाव वाचक तद्धित प्रत्यय
      • 2.2.2 (3) गुण वाचक तद्धित प्रत्यय
      • 2.2.3 (4) अपत्य वाचक या संतान बोधक प्रत्यय
      • 2.2.4 (5)  संबंध वाचक तद्धित प्रत्यय
      • 2.2.5 (6)  ऊनता वाचक तद्धित प्रत्यय
      • 2.2.6 (7)  स्त्रीवाचक तद्धित प्रत्यय
    • 2.3 हिन्दी व्याकरण

प्रत्यय

प्रत्यय वे शब्द होते हैं जो दूसरे शब्दों के अन्त में जुड़कर, अपनी प्रकृति के अनुसार, शब्द के अर्थ में परिवर्तन कर देते हैं।

प्रत्यय’ दो शब्दों से बना है – प्रति + अय। ‘प्रति’ का अर्थ है ‘साथ में, पर बाद में; जबकि ‘अय’ का अर्थ ‘चलने वाला’ है। इस प्रकार प्रत्यय का अर्थ हुआ-शब्दों के साथ, पर बाद में चलनेवाला या लगनेवाला शब्दांश ।

जैसे :

(1) मुख + डा = मुखडा

(2) सोना + आर = सुनार

(3) धन + वान = धनवान

(4) गरीब + ई = गरीबी

(5) सॉंप + एरा = सपेरा

(6) तॉंगा + वाला = तॉंगेवाला

(7) गाड़ी + वान = गाड़ीवान

(8) अपना + पन = अपनापन

(9) सफल + ता = सफलता

(10) अच्छा + ई = अच्छाई

(11) पठ + अक = पाठक

(12) शक + ति = शक्ति

(13) समाज + इक = सामाजिक

(14) सुगन्ध + इत = सुगन्धित

(15) भूलना + अक्कड़ = भुलक्कड़

(16) मीठा + आस = मिठास

(17) भला + आई = भलाई

(18) तैर + आक = तैराक

(19) लु + आर = लुहार

(20) लकड़ +हारा = लकड़हारा

प्रत्यय के प्रकार

(1) संस्कृत प्रत्यय

(2) हिन्दी प्रत्यय

(3) विदेशी भाषा के प्रत्यय

(1) संस्कृत प्रत्यय

जो प्रत्यय व्याकरण में मूल शब्दों और मूल धातुओं से जोड़े जाते हैं वे संस्कृत प्रत्यय कहलाते हैं।

जैसे :–

– आगत,विगत,कृत ।

ति – प्रीति, शक्ति, भक्ति आदि

या – मृगया, विद्या

संस्कृत प्रत्यय के प्रकार :-

(1) कृत् प्रत्यय (कृदन्त)

(2) तद्धित प्रत्यय

संस्कृत प्रत्यय
1.   कृत प्रत्यय 2.   तद्धित प्रत्यय
i. विकारी कृत्-प्रत्यय ii. अविकारी कृत्-प्रत्यय (1) कर्तृ वाचक 
(1) क्रियार्थक संज्ञा (1) कर्तृवाचक कृत् प्रत्यय  (2) भाव वाचक 
(2) कतृवाचक संज्ञा (2) कर्मवाचक कृत् प्रत्यय  (3) गुण वाचक
(3) वर्तमानकालिक कृदंत (3) करणवाचक कृत् प्रत्यय (4) अपत्य वाचक
(4) भूतकालिक कृदंत (4) भाववाचक कृत् प्रत्यय  (5)  संबंध वाचक
  (5) क्रियाद्योतक कृत् प्रत्यय
(6)  ऊनता वाचक
    (7)  स्त्रीवाचक

1. कृत् प्रत्यय (कृदन्त)

वे प्रत्यय जो क्रिया के मूल रूप धातु के साथ जुडकर संज्ञा, विशेषण आदि नए शब्दों का निर्माण करते है, वे कृत प्रत्यय कहलाते हैं।

लिख् + अक =लेखक

बिछ+ औना = बिछौना

पढ+ आकू — पढ़ाकू

चु + आव = चुनाव

पालन + हारा = पालनहारा

लूट+ एरा = लुटेरा

बस + एरा = बसेरा

लड़+ आका = लड़ाका

होना + हार = होनहार

पढ़ना + आकू = पढ़ाकू

भूलना + अक्कड़ = भुलक्कड़

गाना + ऐया = गवैया

छलना + इया = छलिया

पढ़ + आई = पढ़ाई


लिख + आई  = लिखाई

(i) लेख, पाठ, कृ, गै, धाव, सहाय, पाल + अक = लेखक, पाठक, कारक, गायक, धावक, सहायक, पालक।

(ii) पाल्, सह, ने, चर, मोह, झाड़, पठ, भक्ष + अन = पालन, सहन, नयन, चरण, मोहन, झाडन, पठन, भक्षण।

(iii) घट, तुल, वंद,विद + ना = घटना, तुलना, वन्दना, वेदना।

(iv) मान, रम, दृश्, पूज्, श्रु + अनिय = माननीय, रमणीय, दर्शनीय, पूजनीय, श्रवणीय।

(v) सूख, भूल, जाग, पूज, इष्, भिक्ष्, लिख, भट, झूल +आ = सूखा, भूला, जागा, पूजा, इच्छा, भिक्षा, लिखा,भटका, झूला।

(vi) लड़, सिल, पढ़, चढ़, सुन + आई = लड़ाई, सिलाई, पढ़ाई, चढ़ाई, सुनाई।

(vii) उड़, मिल, दौड़, थक, चढ़, पठ +आन = उड़ान, मिलान, दौड़ान, थकान, चढ़ान, पठान।

(viii) हर, गिर, दशरथ, माला + इ = हरि, गिरि, दाशरथि, माली।

(ix) छल, जड़, बढ़, घट + इया = छलिया, जड़िया, बढ़िया, घटिया।

(x) पठ, व्यथा, फल, पुष्प +इत = पठित, व्यथित, फलित, पुष्पित।

(xi) चर्, पो, खन् + इत्र = चरित्र, पवित्र, खनित्र।

(xii) अड़, मर, सड़ + इयल = अड़ियल, मरियल, सड़ियल।

(xiii) हँस, बोल, त्यज्, रेत, घुड, फ़ांस, भार + ई = हँसी, बोली, त्यागी, रेती, घुड़की, फाँसी, भारी।

(xiv) इच्छ्, भिक्ष् + उक = इच्छुक, भिक्षुक।

(xv) कृ, वच् + तव्य = कर्तव्य, वक्तव्य।

(xvi) आ, जा, बह, मर, गा + ता = आता, जाता, बहता, मरता, गाता।

(xvii) अ, प्री, शक्, भज + ति = अति, प्रीति, शक्ति, भक्ति।

(xviii) जा, खा + ते = जाते, खाते।

(xix) अन्य, सर्व, अस् + त्र = अन्यत्र, सर्वत्र, अस्त्र।

(xx) क्रंद, वंद, मंद, खिद्, बेल, ले, बंध, झाड़ + न = क्रंदन, वंदन, मंदन, खिन्न, बेलन, लेन, बंधन, झाड़न।

(xxi) पढ़, लिख, बेल, गा + ना = पढ़ना, लिखना, बेलना, गाना।

(xxii) दा, धा + म = दाम, धाम।

(xxiii) गद्, पद्, कृ, पंडित, पश्चात्, दंत्, ओष्ठ्, दा, पूज + य = गद्य, पद्य, कृत्य, पाण्डित्य, पाश्चात्य, दंत्य, ओष्ठ्य, देय, पूज्य।

(xxiv) मृग, विद् + या = मृगया, विद्या।

(xxv) गे + रु = गेरू।

(xxvi) देना, आना, पढ़ना, गाना + वाला = देनेवाला, आनेवाला, पढ़नेवाला, गानेवाला।

(xxvii) बच, डाँट, गा, खा,चढ़, रख, लूट, खेव + ऐया \ वैया = बचैया, डटैया, गवैया, खवैया,चढ़ैया, रखैया, लुटैया, खेवैया।

(xxviii) होना, रखना, खेवना + हार = होनहार, रखनहार, खेवनहार।

कृत प्रत्यय के प्रकार

i. विकारी कृत्-प्रत्यय

ऐसे कृत्-प्रत्यय जिनसे शुद्ध संज्ञा या विशेषण बनते हैं। इसलिए इसे विकारी कृत् प्रत्यय कहते हैं।

विकारी कृत्-प्रत्यय के भेद :-

(1) क्रियार्थक संज्ञा

वह संज्ञा जो क्रिया के मूल रूप में होती है और क्रिया का अर्थ देती है अथार्त को का अर्थ बताने वाला वह शब्द जो क्रिया के रूप में
उपस्थित होते हुए भी संज्ञा का अर्थ देता है वह क्रियाथक संज्ञा कहलाती है।

(2) कतृवाचक संज्ञा

वे प्रत्यय जिनके जुड़ने पर कार्य करने वाले का बोध हो उसे कर्तृवाचक संज्ञा कहते हैं ।

(3) वर्तमानकालिक कृदंत

जब हम एक काम को करते हुए दूसरे काम को साथ में करते हैं तो पहले वाली की गई क्रिया को वर्तमान कालिक कृदंत कहते हैं ।

(4) भूतकालिक कृदंत

जब सामान्य भूतकालिक क्रिया को हुआ, हुए, हुई आदि को जोड़ने से भूतकालिक कृदंत बनता है ।

ii. अविकारी या अव्यय कृत्-प्रत्यय

ऐसे कृत प्रत्यय जिनकी वजह से क्रियामूलक विशेषण और अव्यय बनते है उन्हें अविकारी कृत प्रत्यय कहते हैं ।

अविकारी या अव्यय कृत्-प्रत्यय के भेद: 

(1) कर्तृवाचक कृत् प्रत्यय

कर्ता का बोध कराने वाले प्रत्यय कर्तृवाचक कृत् प्रत्यय कहलाते है।

जैसे- रखवाला, रक्षक, लुटेरा, पालनहार इत्यादि।

अक = लेखक, नायक, गायक, पाठक

एरा = लुटेरा, बसेरा

ऐया = गवैया, नचैया

ओडा = भगोड़ा

वाला = पढनेवाला, लिखनेवाला, रखवाला

अक्कड = भुलक्कड, घुमक्कड़, पियक्कड़

आक = तैराक, लडाक

आलू = झगड़ालू

आकू = लड़ाकू,,कृपालु, दयालु

आड़ी = खिलाडी, अगाड़ी, अनाड़ी

इअल = अडियल, मरियल, सडियल

हार = होनहार, राखनहार, पालनहार

ता = दाता, गाता, कर्ता, नेता, भ्राता, पिता, ज्ञाता ।

(2) कर्मवाचक कृत् प्रत्यय

कर्म का बोध कराने वाले प्रत्यय कर्मवाचक कृत् प्रत्यय कहलाते हैं।

जैसे- ओढ़ना, पढ़ना, छलनी, खिलौना, बिछौना इत्यादि।

औना = बिछौना, खिलौना

ना = गाना,बचाना चलना, सूँघना, पढना, खाना

नी = सुँघनी,भरनी करनी सुननी, छलनी

गा = गाना गात, गाम, ।

(3) करणवाचक कृत् प्रत्यय

करण यानी साधन का बोध कराने वाले प्रत्यय करणवाचक कृत् प्रत्यय कहलाते हैं।

जैसे- रेती, फाँसी, झाड़ू, बंधन, मथनी, झाड़न इत्यादि।

आ = भटका, भूला, झूला

ऊ = झाड़ू

ई = रेती, फांसी, भारी, धुलाई

न = बेलन, झाडन, बंधन

नी = धौंकनी, करतनी, सुमिरनी, छलनी, फूंकनी, चलनी

(4) भाववाचक कृत् प्रत्यय

क्रिया के व्यापार या भाव का बोध कराने वाले प्रत्यय भाववाचक कृत् प्रत्यय कहलाते हैं।

जैसे- लड़ाई, लिखाई, मिलावट, सजावट, बनावट, बहाव, चढ़ाव इत्यादि।

अन = लेखन, पठन, गमन, मनन, मिलन

ति = गति, रति, मति

अ = जय, लेख, विचार, मार, लूट, तोल

आवा = भुलावा, छलावा, दिखावा, बुलावा, चढावा

आई = कमाई, चढाई, लड़ाई, सिलाई, कटाई, लिखाई

आहट = घबराहट, चिल्लाहट

औती = मनौती, फिरौती, चुनौती, कटौती

अंत = भिडंत, गढंत

आवट = सजावट, बनावट, रुकावट, मिलावट

ना = लिखना, पढना

आन = उड़ान, मिलान, उठान, चढ़ान

आव = चढ़ाव, घुमाव, कटाव

आवट = सजावट, लिखावट, मिलावट

(5) क्रियाद्योतक कृत् प्रत्यय

जिन कृत् प्रत्ययों के योग से क्रियामूलक विशेषण, रखनेवाली क्रिया का निर्माण होता है, उन्हें क्रियाद्योतक कृत् प्रत्यय कहते हैं।
दूसरे शब्दों में- क्रियाद्योतक कृत् प्रत्यय बीते हुए या गुजर रहे समय के बोधक होते हैं।

मूल धातु के आगे ‘आ’ अथवा ‘या’ प्रत्यय लगाने से भूतकालिक तथा ‘ता’ प्रत्यय लगाने से वर्तमानकालिक कृत् प्रत्यय बनते है। 

(2) तद्धित प्रत्यय

जब संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण के अंत में प्रत्यय लगते हैं उन शब्दों को तद्धित प्रत्यय कहते हैं तद्धित प्रत्यय से मिलाकर जो शब्द बनते हैं उन्हें तद्धितांत प्रत्यय कहते हैं ।

(i) पछताना, जगना, पंडित, चतुर, ठाकुर + आइ = पछताई,जगाई,पण्डिताई,चतुराई, ठकुराई।

(ii) पण्डित, ठाकुर + आइन = पण्डिताइन, ठकुराइन।

(iii) पण्डित, ठाकुर, लड़, चतुर, चौड़ा,अच्छा + आई = पण्डिताई, ठकुराई, लड़ाई, चतुराई, चौड़ाई, अच्छाई।

(iv) सेठ, नौकर + आनी = सेठ, नौकर।

(v) बहुत, पंच, अपना +आयत = बहुतायत, पंचायत, अपनायत।

(vi) लोहा, सोना, दूध, गाँव + आर \आरा = लोहार, सुनार, दूधार, गँवार।

(vii) चिकना, घबरा, चिल्ल, कड़वा + आहट = चिकनाहट, घबराहट, चिल्लाहट, कड़वाहट।

(viii) फेन, कूट, तन्द्र, जटा, पंक, स्वप्न, धूम + इल = फेनिल, कुटिल, तन्द्रिल, जटिल, पंकिल, स्वप्निल, धूमिल।

(ix) कन्, वर्, गुरु, बल + इष्ठ = कनिष्ठ, वरिष्ठ, गरिष्ठ, बलिष्ठ।

(x) सुन्दर, बोल, पक्ष, खेत, ढोलक, तेल, देहात + ई = सुन्दर, बोल, पक्ष, खेत, ढोलक, तेल, देहात।

(xi) ग्राम, कुल + ईन = ग्रामीण, कुलीन।

(xii) भवत्, भारत, पाणिनी, राष्ट्र + ईय = भवदीय, भारतीय, पाणिनीय, राष्ट्रीय।

(xiii) बच्चा, लेखा, लड़का + ए = बच्चे, लेखे, लड़के।

(xiv) अतिथि, अत्रि, कुंती, पुरुष, राधा + एय = आतिथेय, आत्रेय, कौंतेय, पौरुषेय, राधेय।

(xv) फुल, नाक +एल = फुलेल, नकेल।

(xvi) डाका, लाठी + ऐत = डकैत, लठैत।

(xvii) अंध, साँप, बहुत, मामा, काँसा, लुट, सेवा + एरा/ऐरा = अँधेरा, सँपेरा, बहुतेरा, ममेरा, कसेरा, लुटेरा, सवेरा।

(xviii) खाट, पाट, साँप + ओला = खटोला, पटोला, सँपोला।

(xix) बाप, ठाकुर, मान + औती = बपौती, ठकरौती, मनौती।

(xx) बिल्ला, काजर + औटा = बिलौटा, कजरौटा।

(xxi) धम, चम, बैठ, बाल, दर्श, ढोल, लल + क = धमक, चमक, बैठक, बालक, दर्शक, ढोलक, ललक।

(xxii) विशेष, ख़ास + कर = विशेषकर, ख़ासकर।

(xxiii) खट, झट + का = खटका, झटका।

(xxiv) भ्राता, दो + जा = भतीजा, दूजा।

(xxv) चाम, बाछा, पंख, टाँग + डा/डी = चमड़ा, बछड़ा, पंखड़ी, टँगड़ी।

(xxvi) रंग, संग, खप + त = रंगत, संगत, खपत।

(xxvii) अद्य + तन = अद्यतन।

(xxviii) गुरु, श्रेष्ठ + तर = गुरुतर, श्रेष्ठतर।

(xxix) अंश, स्व, आ +त: = अंशतः, स्वतः, अत:।

(xxx) कम, बढ़, चढ़ + ती = कमती, बढ़ती, चढ़ती।

(xxxi) ऐ, कै, वै + सा = ऐसा, कैसा, वैसा।

(xxxii) लेश, रंच + मात्र = लेशमात्र, रंचमात्र।

तद्धित प्रत्यय के  भेद :

(1) कर्तृ वाचक तद्धित प्रत्यय

जिन प्रत्यय को जोड़ने से कार्य को करने वाले का बोध हो उसे कर्तृवाचक तद्धित प्रत्यय कहते हैं अथार्त जो प्रत्यय संज्ञा,
सर्वनाम तथा विशेषण के साथ मिलकर करने वाले का या कर्तृवाचक शब्द को बनाते हैं उसे कर्तृवाचक तद्धित प्रत्यय कहते हैं ।

(i) सोना, लोहा, कह, चम + आर = सुनार, लुहार, कहार, चमार।

(ii) जुआ + आरी = जुआरी।

(iii) मजाक, रस, दुःख, आढत, मुख, रसोई + इया = मजाकिया, रसिया, दुखिया, आढतिया, मुखिया, रसोईया।

(iv) सब्जी, टोपी, घर, गाड़ी, पान + वाला = सब्जीवाला, टोपीवाला, घरवाला, गाड़ीवाला,पानीवाला।

(v) पालन + हार = पालनहार।

(vi) समझ, ईमान, दुकान, कर्ज + दार = समझदार, ईमानदार, दुकानदार, कर्जदार।

(vii) तेल, भेद, रोग + ई = तेली, भेदी, रोगी।

(viii) घास, कसा, ठठ, लुट + एरा = घसेरा, कसेरा, ठठेरा, लुटेरा।

(ix) लकड, पानी, मनि + हारा = लकडहारा, पनिहारा, मनिहारा।

(x) पाठ, लेख, लिपि + क = पाठक, लेखक, लिपिक।

(xi) पत्र, कला, चित्र + कार = पत्रकार, कलाकार, चित्रकार।

(xii) मछु, गेरू, ठलु + आ = मछुआ, गेरुआ, ठलुआ।

(xiii) मशाल, खजान, मो + ची = मशालची, खजानची, मोची।

(xiv) कारी, बाजी, जादू + गर  = कारीगर, बाजीगर, जादूगर ।

(2) भाव वाचक तद्धित प्रत्यय

जो प्रत्यय संज्ञा तथा विशेषण के साथ जुडकर भाववाचक संज्ञा को बनाते हैं उसे भाववाचक तद्धित प्रत्यय कहते हैं ।

(i) देवता,मनुष्य, पशु, महा, गुरु, लघु + त्व = देवत्व, मनुष्यत्व, पशुत्व, महत्व, गुरुत्व, लघुत्व ।

(ii) बच्चा, लडक, छुट, काला + पन = बचपन, लडकपन, छुटपन, कालापन ।

(iii) सज्जा +वट = सजावट।

(iv) चिकना + हट = चिकनाहट।

(v) रंग + त = रंगत।

(vi) मीठा + आस = मिठास।

(vii) बुलाव, सराफ, चूर + आ = बुलावा, सराफा, चूरा।

(viii) भला, बुरा, कठिन, चतुर, ऊँचा + आई = भलाई, बुराई, कठिनाई, चतुराई, ऊँचाई।

(ix) बुढा, मोटा + आपा = बुढ़ापा, मोटापा।

(x) खट, मीठा, भडा + आस = खटास, मिठास, भडास।

(xi) कडवा, घबरा, झल्ला, चिकना + आहट = कडवाहट, घबराहट, झल्लाहट, चिकनाहट।

(xii) लाली, महा, अरुण, गरी + इमा = लालिमा, महिमा, अरुणिमा, गरिमा।

(xiii) गर्म, खेत, सर्द, गरीब + ई = गर्मी, खेती, सर्दी, गरीबी।

(xiv) सुंदर, मूर्ख, मनुष्य, लघु, गुरु, सम, कवि, एक, बन्धु + ता = सुन्दरता, मूर्खता, मनुष्यता, लघुता, गुरुता, समता, कविता, एकता, बन्धुता।

(xv) बाप, मान + औती =बपौती, मनौती।

(xvi) लाघ, गौर, पाट + अव = लाघव, गौरव, पाटव।

(xvii) पंडित, धैर, चतुर, मधु + य = पांडित्य, धैर्य, चातुर्य, माधुर्य।

(xviii) चौड़ा +आन = चौडान।

(xix) अपना + आयत = अपनायत।

(xx) छूट + आरा = छुटकारा।

(3) गुण वाचक तद्धित प्रत्यय

वे प्रत्यय जो संज्ञा, सर्वनाम या विशेषण शब्दों के अन्त में जुड़कर किसी वस्तु या व्यक्ति के गुणों का बोध कराने वाले शब्दों का निर्माण करते है, उन्हें गुण वाचक तद्धित प्रत्यय कहते है।

(i) भूख, प्यास, ठंड, मीठ + आ = भूखा, प्यासा, ठंडा, मीठा।

(ii) निशा + अ = नैश।

(iii) शरीर, नगर, इतिहास + इक = शारीरिक, नागरिक, ऐतिहासिक।

(iv) पक्ष, धन, लोभ, क्रोध, गुण, विद्याथ, सुख, ज्ञान, जंगल + ई = पक्षी, धनी, लोभी, क्रोधी, गुणी, विद्यार्थी, सुखी, ज्ञानी, जंगली।

(v) बुद्ध + ऊ = बुद्धू।

(vi) छूत + हा = छुतहर।

(vii) गांजा + एडी = गंजेड़ी।

(viii) शाप, पुष्प, आनन्द, क्रोध + इत = शापित, पुष्पित, आनन्दित, क्रोधित।

(ix) लाल + इमा = लालिमा।

(x) वर + इष्ठ = वरिष्ठ।

(xi) कुल + ईन = कुलीन।

(xii) मधु + र = मधुर।

(xiii) वत्स + ल = वत्सल।

(xiv) माया + वी = मायावी।

(xv) कर्क + श = कर्कश।

(xvi) चमक, भडक, रंग, सज + ईला = चमकीला, भडकीला, रंगीला, सजीला।

(xvii) वांछन, अनुकरण, भारत, रमण + ईय = वांछनीय, अनुकरणीय, भारतीय, रमणीय।

(xviii) कृपा, दया, शंका + लू = कृपालु, दयालु, शंकालु।

(xix) विष, कस + ऐला = विषैला, कसैला।

(xx) दया, कुल + वंत = दयावन्त, कुलवंत।

(xxi) गुण, रूप, बल, विद + वान = गुणवान, रूपवान, बलवान, विद्वान्।

(xxii) बुद्धि, शक्ति, गति, आयुष + मान = बुद्धिमान, शक्तिमान, गतिमान, आयुष्मान।

(xxiii) पश्चात्, पौर्वा, दक्षिण + त्य = पश्चात्य, पौर्वात्य, दक्षिणात्य।

(xxiv) सुन + हरा = सुनहरा।

(xxv) रूप + हला = रुपहला।

(4) अपत्य वाचक या संतान बोधक प्रत्यय

जिन प्रत्ययों के जुड़ने से शब्द के आंतरिक रूप में परिवर्तन हो जाता है और शब्द का अर्थ अपत्य हो जाता है ।
इनसे संतान या वंश में पैदा हुए व्यक्ति का बोध होता है उसे अपत्यवाचक तद्धित प्रत्यय कहते हैं ।

(i) वसुदेव, मनु, कुरु, रघु, यदु, विष्णु, कुन्ती + अ = वासुदेव, मानव, कौरव, राघव, यादव, वैष्णव, कौन्तेय।

(ii) नर + आयन = नारायण।

(iii) राधा, गंगा, भागिन + एय = राधेय, गांगेय, भागिनेय।

(iv) दिति, आदित + य = दैत्य, आदित्य।

(v) दशरथ, वाल्मिक, सौमित्र, जनक, द्रोपद, गांधार + ई = दाशरथि, वाल्मिकी, सौमित्री, जानकी, द्रोपदी, गांधारी।

(5)  संबंध वाचक तद्धित प्रत्यय

जिन प्रत्ययों के लगने से संबंध का पता लगता है उसे संबंध वाचक तद्धित प्रत्यय कहते हैं इसमें कभी कभी आदि स्वर की वृद्धि हो जाती है ।

(i) नाना + हाल = ननिहाल।

(ii) नाक + एल = नकेल।

(iii) ससुर + आल = ससुराल।

(iv) बाप + औती = बपौती।

(v) लखनऊ, पंजाब, गुजरात, बंगाल, सिंधु + ई = लखनवी, पंजाबी, गुजराती, बंगाली, सिंधी।

(vi) फूफा, मामा, चाचा + ऐरा = फुफेरा, ममेरा, चचेरा।

(vii) भाई, बहन + जा = भतीजा, भानजा।

(viii) पटना, कलकता, जबलपुर, अमृतसर + इया = पटनिया, कलकतिया, जबलपुरिया, अमृतसरिया।

(ix) शरीर, नीति, धर्म, अर्थ, लोक, वर्ष, एतिहास + इक = शारीरिक, नैतिक, धार्मिक, आर्थिक, लौकिक, वार्षिक, ऐतिहासिक।

(x) दया, श्रद्धा + आलु = दयालु, श्रद्धालु।

(xi) फल, पीड़ा, प्रचल, दुःख, मोह + इत = फलित, पीड़ित, प्रचलित, दुखित, मोहित।

(xii) रस, रंग, जहर + ईला = रसीला, रंगीला, जहरीला।

(xiii) भारत, प्रान्त, नाटक, भवद + ईय = भारतीय, प्रांतीय, नाटकीय, भवदीय।

(xiv) विष + ऐला = विषैला।

(xv) कठिन + तर = कठिनतर।

(xvi) बुद्धि + मान = बुद्धिमान।

(xvii) पुत्र, मातृ + वत = पुत्रवत, मातृवत।

(xviii) इक + हरा = इकहरा।

(xix) नन्द + ओई = ननदोई।

(xx) ग्राम, काम, हास्, भव + य = ग्राम्य, काम्य, हास्य, भव्य।

(xxi) जट, फेन, बोझ, पंक + इल = जटिल, फेनिल, बोझिल, पंकिल।

(xxii) स्वर्ण, अंत, रक्ति + इम = स्वर्णिम, अंतिम, रक्तिम।

(6)  ऊनता वाचक तद्धित प्रत्यय

वे प्रत्यय जो किसी संज्ञा सर्वनाम या विशेषण शब्दों के अन्त में जुड़कर लघुता बोधक शब्दों का निर्माण करते हैं, उन्हें ऊनतावाचक तद्धित प्रत्यय कहते है।

(i) ढोल + क = ढोलक।

(ii) छाता + री = छतरी।

(iii) बूढी, लोटा, डिबा, खाट + इया = बुढिया, लुटिया, डिबिया, खटिया।

(iv) टोप, कोठर, टोकन, ढोलक, मण्डल, टोकरा, पहाड़, घन + ई =टोपी, कोठरी, टोकनी, ढोलकी, मण्डली, टोकरी, पहाड़ी, घण्टी।

(v) छोटा, कन + की = छोटकी, कनकी।

(vi) चोरी, कालू + टा = चोट्टा, कलूटा।

(vii) दुःख, बछ + डा = दुखड़ा, बछड़ा।

(viii) पाग, टूक, टांग + डी = पगड़ी, टुकड़ी, टंगड़ी।

(ix) खाट + ली = खटोली।

(x) बच्चा + वा = बचवा।

(xi) लँगोट, कचौट, बहु + टी = लंगोटी, कछौटी, बहूटी।

(xii) खाट, साँप + ओला = खटोला, संपोला।

(xiii) ठाकुर +आ = ठकुरा।

(xiv) टीका + ली = टिकली।

(xv) मरा + सा = मरासा।

(7)  स्त्रीवाचक तद्धित प्रत्यय

जिन प्रत्यय की वजह से संज्ञा, सर्वनाम और विशेषण के साथ लगकर उनके स्त्रीलिंग होने का भेद उत्पन्न हो उन्हें स्त्रीबोधक तद्धित प्रत्यय कहते हैं अथार्त
जिन प्रत्ययों को लगाने से स्त्री जाति का बोध हो उसे स्त्रीबोधक तद्धित प्रत्यय कहते हैं ।

(i) देवा, जेठ, नौकर + आनी = देवरानी, जेठानी, नौकरानी।

(ii) रूद्र, इंद्र + आणी = रुद्राणी, इन्द्राणी।

(iii) देव, लड़का + ई = देवी, लडकी।

(iv) सुत, प्रिय,छात्र, अनुज + आ =सुता, प्रिया, छात्रा, अनुजा।

(v) धोबी, बाघ, माली + इन = धोबिन, बाघिन, मालिन।

(vi) ठाकुर, मुंशी + आइन = ठकुराइन, मुंशियाइन।

(vii) शेर, मोर + नी = शेरनी, मोरनी।

हिन्दी व्याकरण

संज्ञा संधि लिंग
काल क्रिया धातु
वचन कारक समास
अलंकार विशेषण सर्वनाम
उपसर्ग प्रत्यय संस्कृत प्रत्यय