10 वर्ष 18 वर्ष 12 वर्ष 20 वर्ष Show Answer : B Solution : माना पुत्र की वर्तमान आयु =x वर्ष पिता की वर्तमान आयु =52 वर्ष <br> प्रश्नानुसार <br> पुत्र के जन्म के समय पिता की आयु = पुत्र की वर्तमान आयु `rArr 52-x=xx+x=52` वर्ष <br> `rArr 2x=52` <br> `thereforex=26` वर्ष <br> 8 वर्ष पहले पुत्र की आयु `=26-8=18` वर्ष Solutions For All Chapters Aroh Class 11 पाठ के साथप्रश्न 1: कहानी का कौन-सा पात्र आपको सर्वाधिक प्रभावित करता है और क्यों? उत्तर- इस कहानी में मुंशी वंशीधर मुझे सर्वाधिक प्रभावित करते हैं, क्योंकि वे ईमानदार, कर्तव्य परायण, कठोर, बेमुरौवत और धर्मनिष्ठ व्यक्ति थे। उनके घर की आर्थिक दशा बहुत खराब थी पर फिर भी उनका ईमान नहीं डगमगाया। उनके पिता ने उन्हें ऊपरी आय पर नजर रखने की नसीहत दी, पर वे सत्य के मार्ग पर अडिग खड़े रहे। आज देश को ऐसे कर्मियों की जरूरत है जो बिना लालच के सत्य के मार्ग पर अडिग खड़े रहें जो परिणाम का बेखौफ़ होकर सामना कर सकें। प्रश्न 2: ‘नमक का दरोगा’ कहानी में पंडित अलोपीदीन के व्यक्तित्व के कौन-से दो पहलू (पक्ष) उभरकर आते हैं? उत्तर- पंडित अलोपीदीन के दो पहलू सामने आते हैं- (क) लक्ष्मी के
उपासक-पंडित अलोपीदीन लक्ष्मी के उपासक हैं। वे लक्ष्मी को सर्वोच्च मानते हैं। उन्होंने अदालत में सबको खरीद रखा है। वे कुशल वक्ता भी हैं। वाणी व धन से उन्होंने सबको वश में कर रखा है। इसी कारण वे नमक का अवैध धंधा करते हैं। वंशीधर द्वारा पकड़े जाने पर वे अदालत में धन के बल पर स्वयं को रिहा करवा लेते हैं और वंशीधर को नौकरी से हटवा देते हैं। प्रश्न 3: कहानी के लगभग सभी पात्र समाज की किसी-न-किसी सच्चाई को उजागर करते हैं। निम्नलिखित पात्रों के संदर्भ में पाठ से उस अंश को उदधृत करते हुए बताइए कि यह समाज की किस सच्चाई को उजागर करते हैं- (ख) वकील (ग) शहर की भीड़ उत्तर- (क) वृद्ध मुंशी – “बेटा! घर की दुर्दशा देख रहे हो। ऋण के बोझ से दबे हुए हैं। लड़कियाँ हैं, वह घास-फूस की तरह बढ़ती चली जाती हैं। मैं कगारे पर का वृक्ष हो रहा हूँ, न मालूम कब गिर पड़े। अब तुम्हीं घर के मालिक-मुख्तार हो। नौकरी में ओहदे की ओर ध्यान मत देना, यह तो पीर का मज़ार है। निगाह चढ़ावे और चादर पर रखनी चाहिए। ऐसा काम ढूँढना जहाँ कुछ ऊपरी आय हो। मासिक वेतन तो पूर्णमासी का चाँद है जो एक दिन दिखाई देता है और घटते-घटते लुप्त हो
जाता है। ऊपरी आय बहता हुआ स्रोत है जिससे सदैव प्यास बुझती है। वेतन मनुष्य देता है, इसी से उसमें वृद्धि नहीं होती। ऊपरी आमदनी ईश्वर देता है, इसी से उसकी बरकत होती है, तुम स्वयं विद्वान हो, तुम्हें क्या समझाऊँ। इस विषय में विवेक की बड़ी आवश्यकता है। मनुष्य को देखो, उसकी आवश्यकता को देखो और अवसर को देखो, उसके उपरांत जो उचित समझो, करो। गरजवाले आदमी के साथ कठोरता करने में लाभ ही लाभ है। लेकिन बेगरज़ को दाँव पर पाना जरा कठिन है। इन बातों को निगाह में बाँध लो। यह मेरी जन्मभर की कमाई है। (ख) वकील – वकीलों ने यह फैसला सुना और उछल पड़े। पंडित अलोपीदीन मुसकुराते हुए बाहर निकले। स्वजनबांधवों ने रुपयों की लूट की। उदारता का सागर उमड़ पड़ा। उसकी लहरों ने अदालत की नींव तक हिला दी। जब वंशीधर बाहर निकले तो चारों ओर से उनके ऊपर व्यंग्यबाणों की वर्षा होने लगी। चपरासियों ने झुक-झुककर सलाम किए। किंतु इस समय एक-एक कटुवाक्य, एक-एक संकेत उनकी
गर्वाग्नि को प्रज्वलित कर रहा था। कदाचित् इस मुकदमे में सफ़ल होकर वह इस तरह अकड़ते हुए न चलते। आज उन्हें संसार का एक खेदजनक विचित्र अनुभव हुआ। न्याय और विद्वता, लंबी-चौड़ी उपाधियाँ, बड़ी-बड़ी दाढ़ियाँ और ढीले चोंगे एक भी सच्चे आदर के पात्र नहीं हैं। (ग) शहर की भीड़ – दुनिया सोती थी, पर दुनिया की जीभ जागती थी। सवेरे देखिए तो बालक-वृद्ध सबके मुँह से यही बात सुनाई देती थी। जिसे देखिए, वही पंडित जी के इस व्यवहार पर टीका-टिप्पणी कर रहा था, निंदा की बौछारें हो रही थीं, मानो संसार से अब पापी का पाप कट गया। पानी को दूध के नाम से बेचनेवाला ग्वाला, कल्पित रोजनामचे भरनेवाले अधिकारी वर्ग, रेल में बिना टिकट सफ़र करनेवाले बाबू लोग, जाली दस्तावेज़ बनानेवाले सेठ और साहूकार, यह सब-के-सब देवताओं की भाँति गरदने चला रहे थे। जब दूसरे दिन पंडित अलोपीदीन अभियुक्त होकर कांस्टेबलों के साथ, हाथों में हथकड़ियाँ, हृदय में ग्लानि और क्षोभभरे, लज्जा से गरदन झुकाए अदालत की तरफ़ चले, तो सारे शहर में हलचल मच गई। मेलों में कदाचित् आँखें इतनी व्यग्र न होती होंगी। भीड़ के मारे छत और दीवार में कोई भेद न रहा। शहर की भीड़ निंदा करने में बड़ी तेज़ होती है। अपने भीतर झाँक कर न देखने वाले दूसरों के विषय में बड़ी-बड़ी बातें करते हैं। दूसरों पर टीका-टिप्पणी करना बहुत ही आसान काम है। प्रश्न 4: निम्न पंक्तियों को ध्यान से पढ़िए- (ख) मासिक वेतन को पूर्णमासी का चाँद क्यों कहा गया है? (ग) क्या आप एक पिता के इस वक्तव्य से सहमत हैं? उत्तर- प्रश्न 5: ‘नमक का दरोगा’ कहानी के कोई दो अन्य शीर्षक बताते हुए उसके आधार को भी स्पष्ट कीजिए। उत्तर- प्रश्न 6: कहानी के अंत में अलोपीदीन के वंशीधर को मैनेजर नियुक्त करने के पीछे क्या कारण हो सकते हैं? तर्क सहित- उत्तर दीजिए। आप इस कहानी का अंत किस प्रकार करते? उत्तर- कहानी के अंत में अलोपीदीन ने वंशीधर को मैनेजर नियुक्त कर दिया। इसके निम्नलिखित कारण हो सकते हैं- (क) अलोपीदीन स्वयं भ्रष्ट था, परंतु उसे अपनी जायदाद को सँभालने के लिए ईमानदार व्यक्ति की जरूरत थी। वंशीधर उसकी दृष्टि में योग्य व्यक्ति
था। पाठ के आस-पासप्रश्न 1: दारोगा वंशीधर गैरकानूनी कार्यों की वजह से पंडित अलोपीदीन को गिरफ्तार करता है, लेकिन कहानी के अंत में इसी पंडित अलोपीदीन की सहृदयता पर मुग्ध होकर उसके यहाँ मैनेजर की नौकरी को तैयार हो जाता है। आपके विचार से वंशीधर का ऐसा करना उचित था? आप उसकी जगह होते तो क्या करते? उत्तर- वंशीधर स्वयं सत्यनिष्ठ था, वह कहीं भी नौकरी करे अपने काम को निष्ठा से करेगा यह उसका प्रण था। अलोपीदीन या पुलिस विभाग कितना भ्रष्ट है, उससे उसे कोई मतलब नहीं था। यह उचित भी है, हम स्वयं को नियंत्रण में रखकर कहीं भी नौकरी करें हमारा मन पवित्र हो, हमें अपने कर्तव्य का ध्यान हो यही सबसे ज्यादा जरूरी है। यदि हम उसकी जगह होते तो वही करते जो उसने किया। कीचड़ में ही कमल रहता है। प्रश्न 2: नमक विभाग के दारोगा पद के लिए बड़ों-बड़ों का जी ललचाता था। वर्तमान समाज में ऐसा कौन-सा पद होगा जिसे पाने के लिए लोग लालायित रहते होंगे और क्यों? उत्तर- आज समाज में आई.ए.एस., आई.पी.एस., आई.एफ.एस., आयकर, बिक्री कर आदि की नौकरियों के लिए लोग लालायित रहते हैं, क्योंकि इन सभी पदों पर ऊपर की आमदनी के साथ-साथ पद का रोब भी मिलता है। ये देश के नीति निर्धारक भी होते हैं। प्रश्न 4: ‘पढ़ना-लिखना सब अकारथ गया।’ वृद्ध मुंशी जी दवारा यह बात एक विशिष्ट संदर्भ में कही गई थी। अपने निजी अनुभवों के आधार पर बताइए- (ख) जब आपको पढ़ना-लिखना सार्थक लगा हो। (ग) ‘पढ़ना’-लिखना’ को किस अर्थ में प्रयुक्त किया गया होगा साक्षरता अथवा शिक्षा? (क्या आप इन दोनों को समान मानते हैं?) उत्तर- (क) मेरा एक साथी अनपढ़ था। उसने व्यापार करना प्रारंभ किया और शीघ्र ही बहुत धनी और समाज का प्रतिष्ठित आदमी बन गया। मैंने पढ़ाई में ध्यान दिया तथा प्रथम श्रेणी में डिग्रियाँ लेने के बावजूद आज भी बेरोजगार हूँ। नौकरी के लिए मुझे उसकी सिफारिश करवानी पड़ी तो मुझे अपनी पढ़ाई-लिखाई व्यर्थ
लगी। प्रश्न 5: ‘लड़कियाँ हैं, वह घास-फूस की तरह बढ़ती चली जाती हैं।’ वाक्य समाज में लड़कियों की स्थिति की किस वास्तविकता को प्रकट करता
है? प्रश्न 6: ‘इसलिए नहीं कि अलोपीदीन ने क्यों यह कर्म किया, बल्कि इसलिए कि वह कानून के पंजे में कैसे आए। ऐसा मनुष्य जिसके पास असाध्य साधन करनेवाला धन और अनन्य वाचालता हो, वह क्यों कानून के पंजे में आए। प्रत्येक मनुष्य उनसे सहानुभूति प्रकट करता था।’ अपने आस-पास अलोपीदीन जैसे व्यक्तियों को देखकर आपकी क्या प्रतिक्रिया होगी? उपर्युक्त टिप्पणी को ध्यान में रखते हुए लिखें। उत्तर- अलोपीदीन जैसे व्यक्ति को देखकर मुझे कुढ़न-सी महसूस होगी। ऐसे व्यक्ति कानून को मखौल बनाते हैं। इन्हें सजा अवश्य मिलनी चाहिए। मुझे उन लोगों पर भी गुस्सा आता है जो उनके प्रति सहानुभूति जताते हैं। प्रश्न 7: समझाइए तो ज़रा- 1.
नौकरी में ओहदे की ओर ध्यान मत देना, यह तो पीर की मज़ार है। निगाह चढ़ावे और चादर पर रखनी चाहिए। 6. खद एंसी समझ पर
पढ़ना-लिखना सब अकारथ गया। उत्तर- 1. नौकरी में पद को महत्व न देकर उस से होने वाली ऊपर की कमाई पर ध्यान देना चाहिए। 2. इस संसार में व्यक्ति के जीवन संघर्ष में धैर्य, बुद्ध, आत्मावलंबन ही क्रमश: मित्र, पथप्रदर्शक व सहायक का काम करते हैं। हर व्यक्ति अकेला होता है। उसे स्वयं ही कुछ पाना होता है। 3. मनुष्य के मन में भ्रम रहता है। अनेक स्थितियों में फैंसे होने पर जब व्यक्ति तर्क करता है तो सारे भ्रम दूर हो जाते हैं या संदेह पुष्टि हो जाती है। 4. इसका अर्थ है कि धन से न्याय व नीति को भी प्रभावित किया जाता है। धन से मर्जी का न्याय लिया जा सकता है तथा नीतियाँ भी अपने हक की बनवाई जा सकती हैं। ये सब धन के संकेतों पर नाचने वाली कठपुतलियाँ हैं। 5. यह संसार के स्वभाव पर तीखी टिप्पणी है। संसार में लोग कुछ करें या न करें, दूसरे की निंदा करते हैं। हालाँकि निंदा करने वाले को अपनी कमी का ध्यान नहीं रहता। 6. यह बात बूढ़े मुंशी ने कही थी। उन्हें वंशीधर द्वारा रिश्वत के मौके को ठुकराने का दुख है। इस नासमझी के कारण वह उसकी पढ़ाई-लिखाई को निरर्थक मानता है। 7. धर्म मानव की दिशा निर्धारित करता है। सत्यनिष्ठा के कारण वंशीधर ने अलोपीदीन द्वारा चालीस हजार रुपये की पेशकश को ठुकरा दिया। उसके धर्म ने धन को कुचल दिया। 8. यहाँ अदालतों की कार्य शैली पर व्यंग्य है। अदालतें न्याय का मंदिर कही जाती हैं, परंतु यहाँ भी सब कुछ बिकाऊ था। धन के कारण न्याय के सभी शस्त्र सत्य को असत्य सिद्ध करने में जुट गए। सत्य की तरफ अकेला वंशीधर था। अत: वहाँ धन व धर्म में युद्ध-सा हो रहा था। भाषा की बातप्रश्न 1: भाषा की चित्रात्मकता, लोकोक्तियों और मुहावरों का जानदार उपयोग तथा हिंदी-उर्दू के साझा रूप एवं बोलचाल की भाषा के लिहाज़ से यह कहानी अदभुत है। कहानी में से ऐसे उदाहरण छाँट कर लिखिए और यह भी बताइए कि इनके प्रयोग से किस तरह कहानी का कथ्य अधिक असरदार बना है? उत्तर- इस कहानी में ऐसे अनेक उदाहरण हैं – दुनिया सोती थी, पर दुनिया की जीभ जागती थी। प्रश्न 2: कहानी में मासिक वेतन के लिए किन-किन विशेषणों का प्रयोग किया गया है? इसके लिए आप अपनी ओर से दो-दो विशेषण और बताइए। साथ ही विशेषणों के आधार को तर्क सहित पुष्ट कीजिए। उत्तर- कहानी में मासिक वेतन के लिए निम्नलिखित विशेषणों का प्रयोग किया गया है-पूर्णमासी का चाँद। हमारी तरफ से विशेषण हो सकते हैं-एक दिन का सुख या खून-पसीने की कमाई। प्रश्न 3: (क) बाबू जी अशीवाद! (ख) सरकारी हुक्म! (ग) दातागंज के। (घ) कानपुर दी गई विशिष्ट अभिव्यक्तियाँ एक निश्चित संदर्भ में निश्चित अर्थ देती हैं। संदर्भ बदलते ही अर्थ भी परिवर्तित हो जाता है। अब आप किसी अन्य संदर्भ में इन भाषिक अभिव्यक्तियों का प्रयोग करते हुए समझाइए। उत्तर- बोधात्मक प्रशनप्रश्न 1: ‘नमक का दरोगा’ पाठ का प्रतिपाद्य बताइए। प्रश्न 2. वंशीधर के पिता ने उसे कौन-कौन-सी नसीहतें दीं? (क) ओहदे पर पीर की मज़ार की तरह नज़र रखनी चाहिए। प्रश्न 3. ‘नमक का दरोगा’ कहानी ‘धन पर धर्म की विजय’ की कहानी है। प्रमाण दवारा स्पष्ट’कीजिए। उत्तर- पडित अलोपीदीन धन का उपासक था। उसने हमेशा रिश्वत देकर अपने कार्य करवाए। उसे लगता था कि धन के आगे सब कमज़ोर हैं। वंशीधर ने गैरकानूनी ढंग से नमक ले जा रही गाड़ियों को पकड़ लिया। अलोपीदीन ने उसे भी मोटी रिश्वत देकर मामला खत्म करना चाहा, परंतु वंशीधर ने उसकी हर पेशकश को ठुकराकर उसे गिरफ्तार करने का आदेश दिया। अलोपीदीन के जीवन में पहली बार ऐसा हुआ जब धर्म ने धन पर विजय पाई। क्या आप एक पिता के इस वक्तव्य से सहमत हैं?(ग) क्या आप एक पिता के इस वक्तव्य से सहमत हैं? उत्तर: (क) यह उक्ति (कथन) नौकरी पर जाते हुए पुत्र को हिदायत देते समय वृद्ध मुंशी जी ने कही थी। (ख) जिस प्रकार पूरे महीने में सिर्फ एक बार पूरा चंद्रमा दिखाई देता है, वैसे ही वेतन भी पूरा एक ही बार दिखाई देता है।
नमक का दरोगा कहानी का मुख्य उद्देश्य क्या है?नमक का दरोगा कहानी का उद्देश्य होता है कि ईमानदारी एवं कर्तव्यनिष्ठ समाज का निर्माण करना। नमक का दरोगा कहानी के पात्र कौन-कौन हैं? नमक का दरोगा कहानी में चार प्रमुख पात्र हैं – अलोपीदीन, मुंशी वंशीधर, बूढ़े मुंशी जी और नमक।
नमक का दरोगा कहानी का कौन सा पात्र को सर्वाधिक प्रभावित करता है और क्यों?नमक का दरोगा कहानी का मुख्यपात्र वंशीधर हमें प्रभावित करता है। वंशीधर एक ईमानदार, दृढ़-निश्चयी, कर्मण्ठ तथा कर्तव्यपरायण व्यक्ति है। उन्हें अपने कार्य से प्रेम हैं। वे आदर्शों को मानने वाले व्यक्ति हैं।
साथ 1 कहानी का कौन सा पात्र आपको सर्वाधिक प्रभावित करता है और क्यों?1. कहानी का कौन-सा पात्र आपको सर्वाधिक प्रभावित करता है और क्यों? उत्तर:- कहानी का नायक मुंशी वंशीधर हमें सर्वाधिक प्रभावित करता है। मुंशी वंशीधर एक ईमानदार और कर्तव्यपरायण व्यक्ति है, जो समाज में ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा की मिसाल कायम करता है।
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