अक्षर या वर्णो से क्या बनते हैं - akshar ya varno se kya banate hain

अक्षर या वर्णो से क्या बनते हैं - akshar ya varno se kya banate hain

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'वर्ण' बोला जाने वाला छोटा से छोटा टुकड़ा है, किंतु 'अक्षर' समझा जाने वाला छोटे से छोटा टुकड़ा होता है। जैसे कि 'अ', 'आ', 'इ', 'उ' को हम बोल सकते हैं, किंतु इनका छोटा अंश नहीं हो सकता। अतः सभी स्वर 'वर्ण' एवं 'अक्षर' दोनों होते हैं। 'क', 'प', 'च', 'थ' आदि व्यजनों को बोल सकते हैं क्योंकि इनमें 'अ' स्वर मिला हुआ है, यदि 'अ' स्वर को निकाल दिया जाए तो इनकी वर्तनी 'क्', 'प्', 'च्', 'थ्' आदि हो जायेगी, अब इन्हें बोलने में कठिनाई होगी। इस कारण स्वर विहीन व्यंजन बोले नहीं जा सकते, किंतु उच्चरण का टुकड़ा होने के कारण इन्हें 'अक्षर' कहा जाता है। स्वर विहीन व्यंजन - 'वर्ण' नहीं कहलाते इन्हें 'अक्षर' कहा जाता है।

यदि 'अक्षर' का शाब्दिक अर्थ देखें तो होता है जिसका क्षर न हो सके अर्थात् जिसका खंड न किया जा सके। सभी स्वर-विहीन व्यंजन 'अक्षर' होते हैं।

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R F Temre
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भाषाविज्ञान में 'अक्षर' या शब्दांश (अंग्रेज़ी: syllable सिलाबल) ध्वनियों की संगठित इकाई को कहते हैं। किसी भी शब्द को अंशों में तोड़कर बोला जा सकता है और शब्दांश शब्द के वह अंश होते हैं जिन्हें और ज़्यादा छोटा नहीं बनाया जा सकता वरना शब्द की ध्वनियाँ बदल जाती हैं।

उदाहरणतः 'अचानक' शब्द के तीन शब्दांश हैं - 'अ', 'चा' और 'नक'। यदि रुक-रुक कर 'अ-चा-नक' बोला जाये तो शब्द के तीनों शब्दांश खंडित रूप से देखे जा सकते हैं लेकिन शब्द का उच्चारण सुनने में सही प्रतीत होता है। अगर 'नक' को आगे तोड़ा जाए तो शब्द की ध्वनियाँ ग़लत हो जातीं हैं - 'अ-चा-न-क'. इस शब्द को 'अ-चान-क' भी नहीं बोला जाता क्योंकि इस से भी उच्चारण ग़लत हो जाता है।

कुछ छोटे शब्दों में एक ही शब्दांश होता है, जैसे 'में', 'कान', 'हाथ', 'चल' और 'जा'. कुछ शब्दों में दो शब्दांश होते हैं, जैसे 'चलकर' ('चल-कर'), खाना ('खा-ना'), रुमाल ('रु-माल') और सब्ज़ी ('सब-ज़ी')। कुछ में तीन या उस से भी अधिक शब्दांश होते हैं, जैसे 'महत्त्वपूर्ण' ('म-हत्व-पूर्ण') और 'अंतर्राष्ट्रीय' ('अंत-अर-राष-ट्रीय')।

परिचय[संपादित करें]

अक्षर शब्द का अर्थ है - 'जो न घट सके, न नष्ट हो सके'। इसका प्रयोग पहले 'वाणी' या 'वाक्‌' के लिए एवं शब्दांश के लिए होता था। 'वर्ण' के लिए भी अक्षर का प्रयोग किया जाता रहा। यही कारण है कि लिपि संकेतों द्वारा व्यक्त वर्णों के लिए भी आज 'अक्षर' शब्द का प्रयोग सामान्य जन करते हैं। भाषा के वैज्ञानिक अध्ययन ने अक्षर को अंग्रेजी 'सिलेबल' का अर्थ प्रदान कर दिया है, जिसमें स्वर, स्वर तथा व्यंजन, अनुस्वार सहित स्वर या व्यंजन ध्वनियाँ सम्मिलित मानी जाती हैं।

एक ही आघात या बल में बोली जाने वाली ध्वनि या ध्वनि समुदाय की इकाई को अक्षर कहा जाता है। इकाई की पृथकता का आधार स्वर या स्वररत्‌ (वोक्वॉयड) व्यंजन होता है। व्यंजन ध्वनि किसी उच्चारण में स्वर का पूर्व या पर अंग बनकर ही आती है। अस्तु, अक्षर में स्वर ही मेरुदंड है। अक्षर से स्वर को न तो पृथक्‌ ही किया जा सकता है और न बिना स्वर या स्वररत्‌ व्यंजन के अक्षर का निर्माण ही संभव है। उच्चारण में यदि व्यंजन मोती की तरह है तो स्वर धागे की तरह। यदि स्वर सशक्त सम्राट है तो व्यंजन अशक्त राजा। इसी आधार पर प्रायः अक्षर को स्वर का पर्याय मान लिया जाता है, किंतु ऐसा है नहीं, फिर भी अक्षर निर्माण में स्वर का अत्यधिक महत्व होता है। कतिपय भाषाओं में व्यंजन ध्वनियाँ भी अक्षर निर्माण में सहायक सिद्ध होती हैं। अंग्रेजी भाषा में न, र, ल्‌ जैसी व्यंजन ध्वनियाँ स्वररत्‌ भी उच्चरित होती हैं एवं स्वरध्वनि के समान अक्षर निर्माण में सहायक सिद्ध होती हैं। अंग्रेजी सिलेबल के लिए हिंदी में अक्षर शब्द का प्रयोग किया जाता है। डॉ॰ रामविलास शर्मा ने सिलेबल के लिए 'स्वरिक' शब्द का प्रयोग किया है। (भाषा और समाज, पृ. 59)। चूँकि अक्षर शब्द का भाषा और व्याकरण के इतिहास में अनेक अर्थच्छाया के लिए प्रयोग किया गया है, इसलिए सिलेबल के अर्थ में इसके प्रयोग से भ्रमसृजन की आशंका रहती है।

शब्द के उच्चारण में जिस ध्वनि पर शिखरता या उच्चता होती है वही अक्षर या सिलेबल होता है, जैसे हाथ में आ ध्वनि पर। इस शब्द में एक अक्षर है। 'अकल्पित' शब्द में तीन अक्षर हैं - अ, कल्‌, पित्‌ ; आजादी में तीन - आ जा दी; अर्थात्‌ शब्द में जहाँ जहाँ स्वर के उच्चारण की पृथकता पाई जाए वहाँ-वहाँ अक्षर की पृथकता होती है।

ध्वनि उत्पादन की दृष्टि से विचार करने पर फुफ्फुस संचलन की इकाई को अक्षर या स्वरिक (सिलेबल) कहते हैं, जिसमें एक ही शीर्षध्वनि होती है। शरीर रचना की दृष्टि से अक्षर या स्वरिक को फुफ्फुस स्पंदन भी कह सकते हैं, जिसका उच्चारण ध्वनि तंत्र में अवरोधन होता है। जब ध्वनि खंड या अल्पतम ध्वनि समूह के उच्चारण के समय अवयव संचलन अक्षर में उच्चतम हो तो वह ध्वनि अक्षरवत्‌ होती है। स्वर ध्वनियाँ बहुधा अक्षरवत्‌ उच्चरित होती है एवं व्यंजन ध्वनियाँ क्वचित्‌। शब्दगत उच्चारण की नितांत पृथक्‌ इकाई को अक्षर कहा जाता है, यथा

  1. एक अक्षर के शब्द : आ,
  2. दो अक्षर के शब्द  : प्रेम, उर्दू,
  3. तीन अक्षर के शब्द : पहर,
  4. चार अक्षर के शब्द : आधुनिक, कठिनाई,
  5. पाँच अक्षर के शब्द : अव्यावहारिकता, अमानुषिकता

किसी शब्द में अक्षरों की संख्या इस बात पर कतई निर्भर नहीं करती कि उसमें कितनी ध्वनियाँ हैं, बल्कि इस बात पर कि शब्द का उच्चारण कितने आघात या झटके में होता है अर्थात्‌ शब्द में कितनी अव्यवहित ध्वनि इकाइयाँ हैं। अक्षर में प्रयुक्त शीर्ष ध्वनि के अतिरिक्त शेष ध्वनियों को 'अक्षरांग' या 'गह्वर ध्वनि' कहा जाता है। उदाहरण के लिए 'चार' में एक अक्षर (सिलेबल) है जिसमें आ शीर्ष ध्वनि तथा च एवं र गह्वर ध्वनियाँ हैं।

शब्दांशों का ढांचा[संपादित करें]

किसी भी शब्दांश में एक 'शब्दांश केंद्र' होता है, जो हमेशा स्वर वर्ण ही होता है और उसके इर्द-गिर्द अन्य वर्ण मिलते हैं जो व्यंजन भी हो सकते हैं और स्वर भी. 'कान' शब्दांश का शब्दांश केंद्र 'आ' का स्वर है जिससे पहले 'क' और बाद में 'न' के वर्ण आते हैं।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • शब्दांश स्थानांतरण
  • वर्णमाला
  • लिपि

अक्षर बोलते हैं

अक्षर और वर्ण से क्या बनता है?

वर्णो के संयोग से अक्षर और अक्षरों के संयोग से शब्द निर्माण होता है। जैसे राम मैं दो शब्द और चार वर्ण र+आ +म+अ है।

अक्षर से क्या बनता है?

अक्षर को मिलाकर शब्द बनते है जैसे क, ल, म ये तीनों अक्षर है इनसे मिल कर कलम शब्द बनता है।

अक्षर और शब्द में क्या अंतर है?

वाक्य, शब्दअक्षर में क्या अंतर है? (1)—बिना मात्राओं के जो वर्ण होते हैं उन्हें हम अक्षर कहते हैं। (2)—अक्षरो और मात्राओं से मिलकर शब्द बनते हैं। (3)—शब्दों से मिलकर वाक्य बनते हैं।

अक्षर और व्यंजन में क्या अंतर है?

1. स्वर वर्ण के उच्चारण में किसी दूसरे वर्ण की सहायता नही ली जाती है जबकि व्यंजन वर्ण के उच्चारण में स्वर वर्ण की सहायता ली जाती है । 2. स्वर वर्णो की संख्या 11 होती है जबकि व्यंजन वर्णो की संख्या 41 होती है ।