क्या भक्तिन सत्यवादी हरिश्चंद्र बन सके? - kya bhaktin satyavaadee harishchandr ban sake?

क्या भक्ति सत्यवादी हरिश्चंद्र बन सकी?

वह यह मानती है कि भक्तिन में भी दुर्गुण हैं उसके व्यक्तित्व में दुर्गुणों का अभाव होने के बारे में वह निश्चित तौर पर नहीं कह सकती। वह सत्यवादी हरिश्चंद्र नहीं बन सकती। वह रुपए-पैसों को मटकी में सँभाल कर रख देती है। वह लेखिका को प्रसन्न रखने के लिए बात को इधर-उधर घुमाकर बताती है।

भक्ति में क्या नहीं बन सकती?

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2021 Apr 24..

भक्तिन का मूल लक्ष्य क्या होता है?

भक्तिन में सेवा-भाव था। छात्रावास की रोशनी बुझने पर जब लेखिका के परिवार के सदस्य-हिरनी सोना, कुत्ता बसंत, बिल्ली गोधूलि भी-आराम करने लगते थे, तब भी भक्तिन लेखिका के साथ जागती रहती थी। वह उसे कभी पुस्तक देती, कभी स्याही तो कभी फ़ाइल देती थी। भक्तिन लेखिका के जागने से पहले जागती थी तथा लेखिका के बाद सोती थी।

भक्तिन अच्छी है ye कहना कठिन क्यों है?

भक्तिन अच्छी है, यह कहना कठिन होगा, क्योंकि उसमें दुर्गुणों का अभाव नहीं। वह सत्यवादी हरिश्चंद्र नहीं बन सकती; पर 'नरो वा कुंजरो वा' कहने में भी विश्वास नहीं करती। मेरे इधर- उधर पड़े पैसे- रुपये, भंडार - घर की किसी मटकी में कैसे अंतरहित हो जाते हैं, यह रहस्य भी भक्तिन जानती है।