क्या भारतीय अर्थव्यवस्था एक विकासशील अर्थव्यवस्था है? - kya bhaarateey arthavyavastha ek vikaasasheel arthavyavastha hai?

अर्थव्यवस्था को परिष्कृत बनाने के पीछे एक तर्क ये भी है कि इससे विकसित और विकासशील देशों की अर्थव्यवस्थाओं के समागम का अवसर बढ़ता है. इसीलिए अलग-अलग स्तरों पर (और तमाम सेक्टर्स में भी) सघन रूप से नीतिगत प्रयास किए जाने चाहिए, जिससे भारत की अर्थव्यवस्था को और अधिक परिष्कृत बनाया जा सके. इससे आगे चलकर भारत की अर्थव्यवस्था के विकसित देशों के साथ तालमेल के द्वार भी खुलेंगे.

किसी अर्थव्यवस्था में आर्थिक विकास,मात्रात्मक और गुणात्मक प्रगति ही है।इसका तात्पर्य यह है कि वृद्धि शब्द जहाँ मात्रात्मक प्रगति की बात करते हैं।वहीं विकास मात्रात्मक के साथ गुणात्मक प्रगति की बात करते हैं।[२] विभिन्न श्रेणी के लोगों के विकास के लक्ष्य पंजाब का समृद्ध किसान-किसानों को उनकी उपज के लिए ज्यादा समर्थन मूल्य और मेहनती और सस्ते मजदूरों द्वारा उच्च पारिवारिक आय सुनिश्चत करना ताकि वे अपने बच्चों को विदेशों में बसा सकें। भूमिहीन ग्रामीण मजदूर -काम करने के अधिक दिन और बेहतर मजदूरी ,स्थानीय स्कूल उनके बच्चोम को उत्तम शिक्षा प्रदान करने में सक्षम कोई सामाजिक भेदभाव नहीं शहर के अमीर परिवार की एक लड़की-उसे अपने भाई के जौसी आजादी और वह अपने फैसले खुद कर सकती है। वह अपनी पढ़ाई विदेश में कर सकती है।[३] उपरोक्त उदाहरण से स्पष्ट है कि लोग नियमित काम ,बेहतर मजदूरी और अपनी उपज के लिए अच्छी कीमत चाहते हैं।अधीक आय के अलावा लोग बराबरी का व्यवहार ,स्वतंत्रता ,सुरक्षा और दूसरों से आदर मिलने की इच्छा भी रखते हैं।विकास के लिए,लोग मिले-जुले लक्ष्य को देखते हैं।जैसे वेतनभोगी महिलाओं का घर और समाज में आदर बढ़ता है।

राष्ट्रीय विकास[सम्पादन]

लोगों के लक्ष्य भिन्न होने के कारण उनकी राष्ट्रीय विकास के बारे में धारणा भी भिन्न होगी।देश के विकास के विषय में विभिन्न लोगों की धारणाएँ भिन्न या परस्पर विरोधी हो सकती है। सामान्यतया हम व्यक्तियों की एक या दो महत्वपूर्ण विशिष्टताएँ लेकर उनके आधार पर तुलना करते हैं।परन्तु तुलना के लिए क्या महत्वपूर्ण है इसपर मतभेद हो सकती हैं- विद्यार्थियों का मित्रतापूर्ण व्यवहार और सहयोग भावना,उनकी रचनात्मकता या उनके द्वारा प्राप्त अंक?[४] यही बात विकास पर भी लागू होती है।

प्रतिव्यक्ति आय(per-capita-income) का तुलनात्मक अध्ययन[सम्पादन]

विभिन्न देशों तथा राज्यों के विकास का तुलनात्मक अध्ययन करने के लिए उनकी आय सबसे महत्वपूर्ण विशिष्टता समझी जाती है। जिन देशों या राज्यों की आय अधिक है उन्हें कम आय वाले देशों या राज्यों से अधिक विकसित समझा जाता है।इसलिये अधिक आय अपने आप में एक महत्वपूर्ण लक्ष्य समक्षा जाता है।

देश की औसत आय(प्रतिव्यक्ति आय )=देश की कुल आय/कुल जनसंख्या विश्व बैंक की विश्व विकास रिपोर्ट 2019 के अनुसार भारत की प्रतिव्यक्ति आय में 10% की वृद्धि हुई है। यह 2017-18 के 9580 से बढ़कर 10534 रूपये प्रति माह हो गई है।[५] लोग बेहतर आय के साथ अपनी सुरक्षा,दूसरों से आदर और समानता का व्यवहार पाना,आजादी इत्यादि लक्ष्य के बारे में भी सोचते हैं।

सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय (MoSPI) द्वारा जारी वार्षिक राष्ट्रीय आय और GDP 2019-20 के आंकड़ों के अनुसार “प्रति व्यक्ति शुद्ध राष्ट्रीय आय 2019-20 के दौरान 1,35,050 रुपये अनुमानित है, जो 6.8 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाती है, जबकि 2018-19 के दौरान 1,26,406 रुपये की वृद्धि दर 10.0 प्रतिशत है।” देश की प्रति व्यक्ति मासिक आय वर्ष 2019-20 के दौरान 6.8 प्रतिशत बढ़कर 11,254 रुपये होने का अनुमान है। भारत की प्रति व्यक्ति आय 1,35,048 होने की उम्मीद है। 6.8% की दर से बढ़ने की उम्मीद है जो पिछले विकास पैटर्न की तुलना में धीमी थी।[६]

राज्य2017-18 के लिए वार्षिक PCI(रूपयों में)हरियाणा225110केरल203093बिहार41992

तालिका के आधार पर हम हरियाणा को सबसे अधिक विकसित तथा बिहार को सबसे कम विकसित माना जाएगा।[७]

सार्वजनिक सुविधाएँ[सम्पादन]

हरियाणा में प्रति व्यक्ति औसत आय केरल से अधिक होने के बाबजूद वहाँ शिशु मृत्यु दर अधिक तथा साक्षरता दर और निवल उपस्थिति अनुपात केरला से कम है।तात्पर्य यह है कि यह आवश्यक नहीं कि जेब में रखा रूपया वे सब वस्तुएँ और सेवाएँ खरीद सके,जिनकी आपको एक बेहतर जीवन के लिए आवश्यकता ता हो सकती है।उदाहरणस्वरूप आपका रूपया आपके लोए प्रदूषण मुक्त वातावरण नहीं खरीद सकता या बिना मिलाबट की दवाएँ आपको नहीे दिला सकता।केरल में स्वास्थ और शिक्षा की मौलिक सुविधाएँ पर्याप्त मात्रा में उपलब्थ होने के कारण यहाँ शिशु मृत्यु दर कम है। [८]आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में सार्वजनिक वितरण प्रणाली के ठीक ढंग से कार्य करने के कारण लोगों के स्वास्थय और पोषण स्तर में सुधार हुआ है। तमिलनाडु में 90% ग्रामीण राशन की दुकानों का प्रयोग करते हैं,जबकि पश्चिम बंगाल में 35%। शरीर द्रव्यमान सूचकांक=व्यक्ति का भार/व्यक्ति के लंबाई का वर्ग 18.5से कम होने पर व्यक्ति अल्पपोषित तथा 25 से अधिक होने पर व्यक्ति अतिभारित माना जाएगा।

शिशु मृत्यु दर-किसी वर्ष में पैदा हुए 1000 जीवित बच्छों में से एक वर्ष की आयु से पहले मर जाने वाले बच्चों का अनुपात। साक्षरता दर --7वर्ष और उससे अधिक आयु के लोगों में साक्षरता जनसंख्या का अनुपात। निवल उपस्थति अनुपात-14 और 15 वर्ष की आयु के स्कूल जाने वाले कुल बच्चोम का उस आयु वर्ग के कुल बच्चों के साथ प्रतिशत।

विकास की धारणीयता[सम्पादन]

"हमने विश्व को अपने पूर्वजों से उत्तराधिकार में प्राप्त नहीे किया है-हमने इसे अपने बच्चों से उधार लिया है।"

भारत की अर्थव्यवस्था विश्व की पांचवी बड़ी अर्थव्यवस्था है।[3] क्षेत्रफल की दृष्टि से विश्व में सातवें स्थान पर है, जनसंख्या में इसका दूसरा स्थान है और केवल 2.4% क्षेत्रफल के साथ भारत विश्व की जनसंख्या के 17% भाग को शरण प्रदान करता है।

1991 से भारत में बहुत तेज आर्थिक प्रगति हुई है जब से उदारीकरण और आर्थिक सुधार की नीति लागू की गयी है और भारत विश्व की एक आर्थिक महाशक्ति के रूप में उभरकर आया है। सुधारों से पूर्व मुख्य रूप से भारतीय उद्योगों और व्यापार पर सरकारी नियन्त्रण का बोलबाला था और सुधार लागू करने से पूर्व इसका जोरदार विरोध भी हुआ परन्तु आर्थिक सुधारों के अच्छे परिणाम सामने आने से विरोध काफी हद तक कम हुआ है। हालाँकि मूलभूत ढाँचे में तेज प्रगति न होने से एक बड़ा तबका अब भी नाखुश है और एक बड़ा हिस्सा इन सुधारों से अभी भी लाभान्वित नहीं हुये हैं।

पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था[संपादित करें]

2017 में भारतीय अर्थव्यवस्था मानक मूल्यों (सांकेतिक) के आधार पर विश्व का पाँचवा सबसे बड़ा अर्थव्यवस्था है।[4][5] अप्रैल २०१४ में जारी रिपोर्ट में वर्ष २०११ के विश्लेषण में विश्व बैंक ने "क्रयशक्ति समानता" (परचेज़िंग पावर पैरिटी) के आधार पर भारत को विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था घोषित किया। बैंक के इंटरनैशनल कंपेरिजन प्रोग्राम (आईसीपी) के 2011 राउंड में अमेरिका और चीन के बाद भारत को स्थान दिया गया है। 2005 में यह 10वें स्थान पर थी।[3] २००३-२००४ में भारत विश्व में १२वीं सबसे बडी अर्थव्यवस्था थी। संयुक्त राष्ट्र सांख्यिकी प्रभाग (यूएनएसडी) के राष्ट्रीय लेखों के प्रमुख समाहार डाटाबेस, दिसम्बर 2013 के आधार पर की गई देशों की रैंकिंग के अनुसार वर्तमान मूल्यों पर सकल घरेलू उत्पाद के अनुसार भारत की रैंकिंग 10 और प्रति व्यक्ति सकल आय के अनुसार भारत विश्व में 161वें स्थान पर है।[1]सन २००३ में प्रति व्यक्ति आय के लिहाज से विश्व बैंक के अनुसार भारत का 143 वाँ स्थान था।

भारत एक समय मे सोने की चिडिया कहलाता था। आर्थिक इतिहासकार एंगस मैडिसन के अनुसार पहली सदी से लेकर दसवीं सदी तक भारत की अर्थव्यवस्था विश्व की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था थी। पहली सदी में भारत का सकल घरेलू उत्पाद (GDP) विश्व के कुल जीडीपी का 32.9% था ; सन् 10०० में यह 28.9% था ; और सन् १७०० में 24.4% था।[6]

ब्रिटिश काल में भारत की अर्थव्यवस्था का जमकर शोषण व दोहन हुआ जिसके फलस्वरूप 1947 में आज़ादी के समय में भारतीय अर्थव्यवस्था अपने सुनहरी इतिहास का एक खंडहर मात्र रह गई।

आज़ादी के बाद से भारत का झुकाव समाजवादी प्रणाली की ओर रहा। सार्वजनिक उद्योगों तथा केंद्रीय आयोजन को बढ़ावा दिया गया। बीसवीं शताब्दी में सोवियत संघ के साथ साथ भारत में भी इस प्रणाली का अंत हो गया। 1991 में भारत को भीषण आर्थिक संकट का सामना करना पड़ा जिसके फलस्वरूप भारत को अपना सोना तक गिरवी रखना पड़ा। उसके बाद नरसिंह राव की सरकार ने वित्तमंत्री मनमोहन सिंह के निर्देशन में आर्थिक सुधारों की लंबी कवायद शुरु की जिसके बाद धीरे धीरे भारत विदेशी पूँजी निवेश का आकर्षण बना और संराअमेरिका, भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक सहयोगी बना। १९९१ के बाद से भारतीय अर्थव्यवस्था में सुदृढ़ता का दौर आरम्भ हुआ। इसके बाद से भारत ने प्रतिवर्ष लगभग 8% से अधिक की वृद्धि दर्ज की। अप्रत्याशित रूप से वर्ष २००३ में भारत ने ८.४ प्रतिशत की विकास दर प्राप्त की जो दुनिया की अर्थव्यवस्था में सबसे तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था का एक संकेत समझा गया। यही नहीं 2005-06 और 2007-08 के बीच लगातार तीन वर्षों तक 9 प्रतिशत से अधिक की अभूतपूर्व विकास दर प्राप्त की। कुल मिलाकर 2004-05 से 2011-12 के दौरान भारत की वार्षिक विकास दर औसतन 8.3 प्रतिशत रही किंतु वैश्विक मंदी की मार के चलते 2012-13 और 2013-14 में 4.6 प्रतिशत की औसत पर पहुंच गई। लगातार दो वर्षों तक 5 प्रतिशत से कम की स.घ.उ. विकास दर, अंतिम बार 25 वर्ष पहले 1986-87 और 1987-88 में देखी गई थी।[2]

इन्हें भी देखें: भारतीय अर्थव्यवस्था की समयरेखाइन्हें भी देखें: भारत में आर्थिक उदारीकरण

क्या भारतीय अर्थव्यवस्था एक विकासशील अर्थव्यवस्था है? - kya bhaarateey arthavyavastha ek vikaasasheel arthavyavastha hai?

2013-14 में भारत का सकल घरेलू उत्पाद भारतीय रूपयों में - 113550.73 अरब रुपये था।[2]

आंकड़ा श्रेणियां2009-102010-112011-122012-132013-14स.घ.उ. (रु करोड़)
(वर्तमान बाजार मूल्य)6477827778411590097221011328111355073वृद्धि दर (%)15.120.215.712.212.3स.घ.उ. (रु करोड़)
(घटक लागत 2004-05 के मूल्य पर)45160714918533524753054821115741791वृद्धि दर (%)8.68.96.74.54.7प्रति व्यक्ति निवल राष्ट्रीय आय
(मौजूदा कीमतों पर उपादान लागत)462495402161855678394380

1990 के बाद भारत का सकल घरेलू उत्पाद (GDP) तेजी से बढ़ा है।

विभिन्न क्षेत्रों का योगदान[संपादित करें]

किसी समय में भारत कृषि प्रधान देश था किंतु नए आँकड़े बताते हैं कि यह देश अपनी विकास की यात्रा में काफी आगे निकल गया है तथा विकसित देशों के इतिहास को दोहराते हुए द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्रों का योगदान जीडीपी में बढ़ोतरी का रुझान दर्शा रहा है।[2]

आंकड़ा श्रेणियां1999-20002007-082012-132013-14 (अनुमान)प्राथमिक क्षेत्र
(कृषि और सहबद्ध)23.216.813.913.9द्वितीयक क्षेत्र
(उद्योग, खनन, विनिर्माण)26.828.727.326.1तृतीयक क्षेत्र
(सेवाएँ - व्यापार, होटल, परिवहन, संचार, वित्त बीमा आदि)50.0054.458.859.9

भारत बहुत से उत्पादों के सबसे बड़े उत्पादको में से है। इनमें प्राथमिक और विनिर्मित दोनों ही आते हैं। भारत दूध का सबसे बडा उत्पादक है ओर गेह, चावल, चाय चीनी, और मसालों के उत्पादन में अग्रणियों मे से एक है यह लौह अयस्क, वाक्साईट, कोयला और टाईटेनियम के समृद्ध भंडार हैं।

यहाँ प्रतिभाशाली जनशक्ति का सबसे बडा पूल है। लगभग २ करोड भारतीय विदेशों में काम कर रहे है। और वे विश्व अर्थव्यवस्था में योगदान दे रहे हैं। भारत विश्व में साफ्टवेयर इंजीनियरों के सबसे बडे आपूर्ति कर्त्ताओं में से एक है और सिलिकॉन वैली में सयुंक्त राज्य अमेरिका में लगभग ३० % उद्यमी पूंजीपति भारतीय मूल के है।

भारत में सूचीबद्ध कंपनियों की संख्या अमेरिका के पश्चात दूसरे नम्बर पर है। लघु पैमाने का उद्योग क्षेत्र, जोकि प्रसार शील भारतीय उद्योग की रीड की हड्डी है, के अन्तर्गत लगभग ९५% औद्योगिक इकाईयां आती है। विनिर्माण क्षेत्र के उत्पादन का ४०% और निर्यात का ३६% ३२ लाख पंजीकृत लघु उद्योग इकाईयों में लगभग एक करोड ८० लाख लोगों को सीधे रोजगार प्रदान करता है।

वर्ष २००३-२००४ में भारत का कुल व्यापार १४०.८६ अरब अमरीकी डालर था जो कि सकल घरेलु उत्पाद का २५.६% है। भारत का निर्यात ६३.६२% अरब अमरीकी डालर था और आयात ७७.२४ अरब डालर। निर्यात के मुख्य घटक थे विनिर्मित सामान (७५.०३%) कृषि उत्पाद (११.६७%) तथा लौह अयस्क एवं खनिज (३.६९%)।

वर्ष २००३-२००४ में साफ्टवेयर निर्यात, प्रवासी द्वारा भेजी राशि तथा पर्यटन के फलस्वरूप बाह्य अर्जन २२.१ अरब अमेरिकी डॉलर का हो गया।

क्या भारतीय अर्थव्यवस्था एक विकासशील अर्थव्यवस्था है? - kya bhaarateey arthavyavastha ek vikaasasheel arthavyavastha hai?

१९५१ से २०१४ तक भारत की आर्थिक विकास दर

जून २०२१ तक भारतीय विदेशी मुद्रा भंडार 605.8 बिलियन अमेरिकी डॉलर का हो गया। अमेरिकी डॉलर की कीमत 75रुपए के स्तर पर जा पहुँची[2]

आंकड़ा श्रेणियां2009-102010-112011-122012-132013-14विदेशी मुद्रा भंडार
(बिलियन अमेरिकी डॉलर)279.1304.8294.4292.0304.2औसत विनिमय दर
(रु / अमेरिकी डॉलर)47.4445.5647.9254.4160.5

वैश्विक निर्यातों और आयातों में भारत का हिस्सा वर्ष 2000 में क्रमशः 0.7 प्रतिशत और 0.8 प्रतिशत से बढ़ता हुआ वर्ष 2013 में क्रमशः 1.7 प्रतिशत और 2.5 प्रतिशत हो गया। भारत के कुल वस्तु व्यापार में भी उल्लेखनीय सुधार हुआ है जिसका सकल घरेलू उत्पाद में हिस्सा 2000-01 के 21.8 प्रतिशत से बढ़कर 2013-14 में 44.1 प्रतिशत हो गया।[2]

भारत का वस्तु निर्यात 2013-14 में 312.6 बिलियन अमरीकी डॉलर (सीमा शुल्क आधार पर) तक जा पहुंचा। इसने 2012-13 के दौरान की 1.8 प्रतिशत के संकुचन की तुलना में 4.1 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की।[2]

2012-13 की तुलना में 2013-14 में आयातों के मूल्य में 8.3 प्रतिशत की गिरावट हुई जिसकी वजह तेल-भिन्न आयातों में 12.8 प्रतिशत की गिरावट रही। सरकार द्वारा किए गए अनेक उपायों के कारण सोने का आयात 2011-12 के 1078 टन से कम होकर 2012-13 में 1037 टन तथा और कम होकर 2013-14 में 664 टन रह गया। मूल्य के संदर्भ में, सोने और चांदी के आयात में 2013-14 में 40.1 प्रतिशत की गिरावट हुई और वह 33.4 बिलियन अमरीकी डॉलर के स्तर पर आ गया। 2013-14 में आयातों में हुई जबरस्त गिरावट और साधारण निर्यात वृद्धि के परिणामस्वरूप भारत का व्यापार घाटा 2012-13 के 190.3 बिलियन अमरीकी डॉलर से कम होकर 137.5 बिलियन अमरीकी डॉलर के स्तर पर आ गया जिससे चालू व्यापार घाटे में कमी आई।

2012-13 में कैड में भारी वृद्धि हुई और यह 2011-12 के 78.2 बिलियन अमरीकी डॉलर से कहीं अधिक 88.2 बिलियन अमरीकी डॉलर (स.घ.उ. का 4.7 प्रतिशत) के रिकार्ड स्तर पर जा पहुंचा। सरकार द्वारा शीघ्रतापूर्वक किए गए कई उपायों जैसे सोने के आयात पर प्रतिबंध आदि के परिणामस्वरूप, व्यापार घाटा 2012-13 के 10.5 प्रतिशत से घटकर 2013-14 में सकल घरेलू उत्पाद का 7.9 प्रतिशत रह गया।[2]

भारत का विदेशी ऋण स्टॉक मार्चांत 2012 के 360.8 बिलियन अमरीकी डॉलर के मुकाबले मार्चांत 2013 में 404.9 बिलियन अमरीकी डॉलर था। दिसम्बर 2013 के अंत तक यह बढ़कर 426.0 बिलियन अमरीकी डॉलर हो गया।[2] चूंकि एक बिलियन डॉलर = एक अरब डॉलर इसलिए 426 बिलियन डॉलर = 426अरब डॉलर अब चूंकि एक डाॅलर= 60 रुपये इसलिए 426 अरब डॉलर = 426*60 अरब रुपये अर्थात 25560 अरब रुपये अर्थात 25560*100 करोड़ रुपये =2556000 करोड़ रुपये =पच्चीस लाख छप्पन हजार करोड़ रुपये।

भारत में रोजगार देने में विभिन्न क्षेत्रों का प्रतिशत योगदान[7] :

क्षेत्र/वर्ष1999-20002004-052011-12प्राथमिक (कृषि आदि)59.958.548.9द्वितीयक (उद्योग आदि)16.418.224.3तृतीयक (सेवाएँ)23.723.326.9

भारत के केन्द्र सरकार द्वारा अर्जित आय[8] :

आँकड़े करोड़ रुपयों में नोट: १ करोड़ = १० मिलियन

नोट- योग में अंतर "अन्य" करों के कारण है।Head2009-102010-112011-122012-132013-14व्यक्तिगत आयकर122475139069164485196512237789निगम कर244725298688322816356326394677कुल प्रत्यक्ष कर367648438477488113553705633473कस्टम83324135813149328165346172132एक्साईज़102991137701144901175845169469सेवा कर (सर्विस टैक्स)584227101697509132601154630कुल अप्रत्यक्ष कर244737344530391738473792496231कुल कर राजस्व62452879307288917710362351133832

भारत में राजसहायता प्राप्त प्रमुख मदों की सूची तथा 2013-14 के आँकड़े व 2014-15 के बजट प्रावधान इस प्रकार हैं[9]:

मद2014-15
(बजट प्रावधान)2013-14
(जुलाई 2014 के संशोधित अनुमान)उर्वरक सब्सिडी67970.3067971.50खाद्य सब्सिडी115000.0092000.00पैट्रोलियम सब्सिडी63426.9585480.00ब्‍याज सब्सिडी8462.888174.85अन्‍य सब्सिडी847.491889.90

2008-09 के बाद से केन्द्रीय राजस्व घाटे में बढ़त कराने वाले प्रधान कारणों में से एक कारण सब्सिडियों का उत्तरोत्तर बढ़ते जाना रहा है। लेखा महानियंत्रक (सीजीए) के अनंतिम वास्तविक आंकड़ों के अनुसार, 2013-14 में प्रधान सब्सिडियों का योग 2,47,596 करोड़ रुपए था। सब्सिडियों में तीव्र वृद्धि हुई है जो 2007-08 में स.घ.उ. के 1.42 प्रतिशत से बढ़ती हुई 2012-13 में स.घ.उ. के 2.56 प्रतिशत हो गई, 2013-14 (संशोधित अनुमान) के अनुसार यह स.घ.उ. का 2.26 प्रतिशत थी। उर्वरक सब्सिडी का अंशतः विनियंत्रण हुआ है, इसी प्रकार पेट्रोल की कीमतें विनियंत्रित कर दी गई हैं तथा डीजल की कीमतों में 50 पैसे प्रति लीटर की मासिक बढ़ोतरी करायी जा रही है।

लॉकडाउन अथर्व्यवस्था प्रभाव[संपादित करें]

अप्रैल-दिसम्बर 2021 तक की अवधि में भारत से वस्तुओं एवं सेवाओं के हुए निर्यात के वास्तविक आंकड़ों को देखते हुए अब यह कहा जा सकता है कि वित्तीय वर्ष 2021-22 में भारत से वस्तुओं एवं सेवाओं का निर्यात 65,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर के पार हो जाने की प्रबल सम्भावना है। जिस गति से वित्तीय वर्ष 2021-22 में भारत से वस्तुओं एवं सेवाओं के निर्यात बढ़ रहे हैं उससे अब यह माना जा रहा है कि वित्तीय वर्ष 2022-23 में भारत से वस्तुओं एवं सेवाओं का निर्यात 100,000 करोड़ अमेरिकी डॉलर के आंकड़े को पार कर सकता है, जो कि अपने आप में एक इतिहास रच देगा।[10]

क्या भारत एक विकासशील अर्थव्यवस्था हैं?

वर्तमान में भारतीय अर्थव्यवस्था को विश्व की एक विकासशील अर्थव्यवस्था कहा जाता है। 1. स्वतंत्रता के बाद से ही भारत की अर्थव्यवस्था एक 'मिश्रित अर्थव्यवस्था' रही हैभारत के बड़े सार्वजनिक क्षेत्र अर्थव्यवस्था के लिए रोजगार और राजस्व प्रदान करने के प्रमुख कारक रहे हैं ।

भारत में कौन सी अर्थव्यवस्था पाई जाती है?

भारत एक मिश्रित अर्थव्यवस्था है।

भारतीय अर्थव्यवस्था का विकास क्या है?

१९९१ के बाद से भारतीय अर्थव्यवस्था में सुदृढ़ता का दौर आरम्भ हुआ। इसके बाद से भारत ने प्रतिवर्ष लगभग 8% से अधिक की वृद्धि दर्ज की। अप्रत्याशित रूप से वर्ष २००३ में भारत ने ८.४ प्रतिशत की विकास दर प्राप्त की जो दुनिया की अर्थव्यवस्था में सबसे तेजी से उभरती अर्थव्यवस्था का एक संकेत समझा गया।

क्या भारतीय अर्थव्यवस्था अल्पविकसित अर्थव्यवस्था है?

भारत, इण्डोनेशिया, पाकिस्तान, आदि देशों को अल्प विकसित माना जाता है, क्योंकि भारत की 51.2 प्रतिशत जनसंख्या, इण्डोनेशिया की 57 प्रतिशत जनसंख्या एवं पाकिस्तान की 56 प्रतिशत जनसंख्या कृषि कार्यों में लगी है, जबकि विकसित देश फ्रांस, कनाड़ा, अमरीका एवं ब्रिटेन की कुल जनसंख्या का प्रतिशत बहुत कम है, जैसे फ्रांस की 5 प्रतिशत, ...