क्या राधा कभी द्वारका आई थी? - kya raadha kabhee dvaaraka aaee thee?

राधा और कृष्ण की प्रेम कहानी सदियों बाद भी लोगों के दिलोदिमाग में ताजा है. एक ऐसा प्रेम जिसमें किसी ने कृष्ण भक्ति की राह देखी, तो किसी ने इस कहानी को विरह का गीत समझकर गुनगुनाया. कृष्ण और राधा का प्रेम जितना चंचल और निर्मल रहा, उतना ही जटिल और निर्मम भी. सदियों से भले ही कृष्ण के साथ राधा का नाम लिया जाता रहा है, लेकिन प्रेम की ये कहानी कभी पूरी नहीं हो पाई.

आज भी ये सवाल लोगों को कचोटता है कि राधा और कृष्ण का प्रेम कभी शादी के बंधन में क्यों नहीं बंध पाया. जिस शिद्दत से कृष्ण और राधा ने एक दूसरे को चाहा, वो रिश्ता विवाह तक क्यों नहीं पहुंचा. क्यों संसार की सबसे बड़ी प्रेम कहानी विरह का गीत बनकर रह गई. क्या वजह है कि राधा से सच्चे प्रेम के बावजूद कृष्ण ने रुकमणी को अपना जीवनसाथी चुना था. उनकी कुल 8 पत्नियों का जिक्र मिलता है, लेकिन उनमें राधा का नाम नहीं है. इतना ही नहीं कृष्ण के साथ तमाम पुराणों में राधा का नाम नहीं मिलता है.

भगवत गीता से महाभारत तक कहीं नहीं राधा का नाम
राधा का अंतिम समय कहां बीता और किन हालात में राधा ने जीवन के अंतिम क्षण बिताए. जिस राधा को कृष्ण की परछाई समझा जाता था, उसका क्या हुआ. ये सब एक रहस्य बन चुका है. राधा का नाम भगवत गीता से लेकर महाभारत तक कहीं नहीं मिलता. राधा के बिना जिस कृष्ण को अधूरा माना गया है, उनकी कथाओं में राधा का नाम तक नहीं है. इस रहस्य को समझने के लिए उनके धरती पर उतरने की वजहों को जानना होगा.

ऐसा कहा जाता है कि राधा धरती पर कृष्ण की इच्छा से ही आई थीं. भादो के महीने में शुक्ल पक्ष की अष्टमी के अनुराधा नक्षत्र में रावल गांव के एक मंदिर में राधा ने जन्म लिया था. यह दिन राधाष्टमी के नाम से मनाया जाता है. कहते हैं कि जन्म के 11 महीनों तक राधा ने अपनी आंखें नहीं खोली थी. कुछ दिन बाद वो बरसाने चली गईं. जहां पर आज भी राधा-रानी का महल मौजूद है.

राधा और कृष्ण की पहली मुलाकात भांडिरवन में हुई थी. नंद बाबा यहां गाय चराते हुए कान्हा को गोद में लेकर पहुंचे थे. कृष्ण की लीलाओं ने राधा के मन में ऐसी छाप छोड़ी कि राधा का तन-मन श्याम रंग में रंग गया. कृष्ण-राधा की नजरों से ओझल क्या होते, वो बेचैन हो जाती. वो राधा के लिए उस प्राण वायु की तरह थे जिसके बिना जीवन की कल्पना करना मुश्किल था.

सुदामा ने दिया था राधा को श्राप
कहते हैं कि राधा को कृष्ण से विरह का श्राप किसी और से नहीं बल्कि सुदामा से मिला था. वही सुदामा जो कृष्ण के सबसे प्रिय मित्र थे. सुदामा के इस श्राप के चलते ही 11 साल की उम्र में कृष्ण को वृन्दावन छोड़कर मथुरा जाना पड़ा था. श्रीकृष्ण और राधा गोलोक एकसाथ निवास करते थे. एक बार राधा की अनुपस्थिति में कृष्ण विरजा नामक की एक गोपिका से विहार कर रहे थे. तभी वहां राधा आ पहुंची और उन्होंने कृष्ण और विरजा को अपमानित किया.

इसके बाद राधा ने विरजा को धरती पर दरिद्र ब्राह्मण होकर दुख भोगने का श्राप दे दिया. वहां मौजूद सुदामा ये बर्दाश्त नहीं कर पाए और उन्होंने उसी वक्त राधा को कृष्ण से बरसों तक विरह का श्राप दे दिया. 100 साल बाद जब वे लौटे तब बाल रूप में राधा कृष्ण ने यशोदा के घर में प्रवेश किया, वहां रहे और बाद में सबको मोक्ष देकर खुद भी गोलोक लौट गए.

श्रीकृष्ण के जितने भी चित्रण मिलते हैं, उनमें बांसुरी जरूर रहती है. बांसुरी श्रीकृष्ण के राधा के प्रति प्रेम का प्रतीक है. वैसे तो राधा से जुड़े कई अलग-अलग विवरण मौजूद हैं, लेकिन एक प्रचलित कहानी नीचे दी गई है. भगवान श्रीकृष्ण से राधा पहली बार तब अलग हुईं, जब मामा कंस ने बलराम और कृष्ण को आमंत्रित किया. वृंदावन के लोग यह खबर सुनकर दुखी हो गए थे.

राधा ने कहा कि वे आखिरी बार कृष्ण को बांसुरी बजाते हुए देखना और सुनना चाहती हैं. श्रीकृष्ण ने बांसुरी ली और बेहद सुरीली धुन में बजाने लगे. श्रीकृष्ण ने दिन-रात बांसुरी बजाई. बांसुरी की धुन सुनते-सुनते एक दिन राधा ने अपने शरीर का त्याग कर दिया.

मौजूदा समय में भगवान कृष्ण और राधा रानी के कई मंदिर मिल जाएंगे. मथुरा के वृंदावन में राधा रानी का भव्य मंदिर है. भगवान कृष्ण के नाम के साथ हमेशा राधा का ही नाम जोड़ा जाता है. अब सवाल यह उठता है कि जब श्रीकृष्ण के जीवन में राधा इतनी महत्वपूर्ण थीं तो उन्होंने राधा से विवाह क्यों नहीं किया? आज हम यहां राधा रानी के बारे में कुछ अद्भुत जानकारी देंगे, जिसके बारे में आप शायद ही जानते होंगे.

कृष्ण ने नहीं निभाया वादा

एक अन्य कथा के अनुसार राधा और कृष्ण एक-दूसरे को प्रेम करने लगे थे. उस वक्त कृष्ण की उम्र 8 और राधा की 12 वर्ष थी. जब यह बात राधा के परिवार को पता चली तो उन्होंने राधा को घर में ही कैद कर दिया. ऐसा किए जाने के कई कारण थे. एक कारण यह था कि राधा की मंगनी हो गई थी. जब कृष्ण को यह पता चला तो वे राधा को कैद से छुड़ाकर यशोदा मां के पास ले आए. यह देखकर यशोदा मां भी दंग रह गईं. तब उन्होंने कृष्ण को बहुत समझाया- लल्ला, ऐसा करना ठीक नहीं है. मैं तेरा विवाह दूसरी कन्या से करा दूंगी, लेकिन कृष्ण नहीं माने.

बाद में यशोदा मैया और नंदबाबा उन्हें लेकर ऋषि गर्ग के पास गए. तब गर्ग ऋषि ने कान्हा को समझाया कि उनका जन्म किसी महान उद्देश्य के लिए हुआ है. अत: वे किसी भी मोह में बंध नहीं सकते. यह व्यर्थ का हठ छोड़ दें. यह सुनकर कान्हा उदास हो गए और उस दौरान उनका बुलावा मथुरा के लिए आ गया. तब वे वृंदावन छोड़कर हमेशा के लिए मथुरा चले गए. कृष्ण जाते वक्त राधा से ये वादा करके गए थे कि वे वापस आएंगे लेकिन कृष्ण कभी भी राधा के पास वापस नहीं आए और यही दर्द हमेशा राधा और कृष्ण के मन में रह गया.

वृंदावन की गलियों में हैं प्रेम के निशान

राधा का गांव बरसाना था. कान्हा पहले गोकुल, फिर नंदगांव और बाद में वृंदावन में रहने लगे थे. वृंदावन में ही राधा के परिवार के लोग भी रहने आ गए थे. बस वहीं पर सांकेतिक तीर्थ से जन्मा राधा और कृष्ण का प्रेम पनपा. कहते हैं कि बचपन का प्रेम भुलाए नहीं भुलता. उस काल में होली के दिन यहां वृंदावन में इतनी धूम होती थी कि दोनों गांव बरसाना और नंदगांव के लोग वृंदावन में इकट्ठा हो जाते थे. बरसाने से नंदगाव टोली आती और नंदगांव से भी टोली जाती थी. बरसाना गांव के पास 2 पहाड़ियां मिलती हैं. उनकी घाटी बहुत ही कम चौड़ी है. मान्यता है कि गोपियां इसी मार्ग से दही-मक्खन बेचने जाया करती थीं. यहीं पर कभी-कभी कृष्ण उनकी मक्खन वाली मटकी छीन लिया करते या फोड़ दिया करते थे.

विष्णु पुराण में वृंदावन में कृष्ण की लीलाओं का वर्णन मिलता है. मान्यता है कि यहीं पर श्रीकृष्‍ण और राधा एक घाट पर स्नान करते थे. यहीं पर श्रीकृष्ण और गोपियां आंख-मिचोली का खेल खेलते थे. यहीं पर श्रीकृष्ण और उनके सभी सखा और सखियां मिलकर रासलीला अर्थात तीज-त्योहारों पर नृत्य-उत्सव का आयोजन करते थे. कृष्ण की शरारतों के कारण उन्हें बांकेबिहारी कहा जाता है. यहां पर यमुना घाट के प्रत्येक घाट से भगवान कृष्ण की कथा जुड़ी हुई है.

कृष्ण ने जो नंदगांव और वृंदावन में छोटा-सा समय गुजारा था, उसे लेकर भक्तिकाल के कवियों ने कई कविताएं लिखी हैं. वृंदावन छोड़कर कृष्ण जब मथुरा में कंस को मारने गए, तब उनका जीवन पूरी तरह से बदल गया. कंस को मारने के बाद उनके जीवन में उथल-पुथल शुरू हो गई.

नारद के श्राप के कारण राधा और कृष्ण को विरह सहना पड़ा

रामचरित मानस के बालकांड के अनुसार एक बार भगवान विष्णु ने नारद जी के साथ छल किया था. उन्हें खुद का स्वरूप देने के बजाय वानर का स्वरूप दे दिया था. इस कारण वे माता लक्ष्मी के स्वयंवर में हंसी का पात्र बन गए और उनके मन में माता लक्ष्मी से विवाह करने की अभिलाषा दबी-की-दबी रह गई थी. नारद जी को जब इस छल का पता चला तो वे क्रोधित होकर वैकुंठ पहुंचे और भगवान को बहुत भला-बुरा कहा और श्राप दिया कि उन्हें ‘पत्नी का वियोग सहना होगा’. नारदजी के इस श्राप की वजह से रामावतार में भगवान रामचन्द्रजी को सीता का वियोग सहना पड़ा था और कृष्णावतार में देवी राधा का वियोग सहना पड़ा.

राधा और कृष्ण का पुनर्मिलन

जब कृष्ण वृंदावन छोड़कर मथुरा चले गए, तब राधा के लिए उन्हें देखना और उनसे मिलना और दुर्लभ हो गया. कहा जाता है कि राधा और कृष्ण दोनों का पुनर्मिलन कुरुक्षेत्र में हुआ था. जहां सूर्यग्रहण के अवसर पर द्वारिका से कृष्ण और वृंदावन से नंद के साथ राधा आई थीं. राधा सिर्फ कृष्ण को देखने और उनसे मिलने ही नंद के साथ गई थीं. इसका जिक्र पुराणों में मिलता है. कहा जाता है कि जब द्वापर युग में नारायण ने श्रीकृष्ण का जन्म लिया था, तब मां लक्ष्मी ने राधारानी के रूप में जन्म लिया था ताकि मृत्युलोक में भी वे उनके साथ ही रहें, लेकिन ऐसा हो नहीं सका.

राधा और कृष्ण के प्रेम की मार्मिक कहानी

राधा और कृष्ण के बीच पहले सांकेत स्थल और फिर बाद में वृंदावन में होती रही मुलाकात के कारण प्रेम जन्म लेने लगा था. बचपन का प्यार बहुत गहरा और निष्काम होता है. श्रीकृष्ण उस वक्त 8 साल के और राधा 12 साल की थीं. कहते हैं कि उस वक्त श्रीकृष्ण को 2 ही चीजें सबसे ज्यादा प्रिय थीं- बांसुरी और राधा. कृष्ण की बांसुरी की धुन सुनकर राधा के जैसे प्राण ही निकल जाते थे. कई जन्मों की स्मृतियों को कुरेदने का प्रयास होता था और वह श्रीकृष्ण की तरफ खिंची चली आती थीं.

भगवान श्रीकृष्ण से राधा पहली बार तब अलग हुईं, जब श्रीकृष्ण वृंदावन छोड़कर बलराम के साथ कंस के निमंत्रण पर मथुरा जा रहे थे. तब उन्हें भी नहीं मालूम था कि उनका जीवन बदलने वाला है. यह प्रेमपूर्ण जीवन अब युद्ध की ओर जाने वाला है. पूरा वृंदावन उस वक्त रोया था. राधा के लिए तो जैसे सबकुछ खत्म होने जैसा था. राधा के आंसु सूखकर जम गए थे. बस, श्रीकृष्ण राधा से उस वक्त इतना ही कह पाए कि ‘मैं वापस लौटूंगा. लेकिन श्रीकृष्ण कभी नहीं लौटे और मथुरा में वे एक लंबे संघर्ष में उलझ गए. बाद में उन्होंने रुक्मणी से विवाह कर लिया और द्वारिका में अपनी एक अलग जिंदगी बसा ली.

जब कृष्ण वृंदावन से निकल गए, तब राधा की जिंदगी ने एक अलग ही मोड़ ले लिया था. राधा का विवाह हो गया, लेकिन राधा श्रीकृष्ण के विरह में जीती और मरती रहीं. राधा ने अपना दांपत्य जीवन ईमानदारी से निभाया और जब वे बूढ़ी हो गईं तो उसके मन में मरने से पहले एक बार श्रीकृष्ण को देखने की आस जगी. सारे कर्तव्यों से मुक्त होने के बाद राधा आखिरी बार अपने प्रियतम कृष्ण से मिलने गईं. जब वे द्वारका पहुंचीं तो उन्होंने कृष्ण के महल और उनकी 8 पत्नियों को देखा, लेकिन वे दुखी नहीं हुईं. जब कृष्ण ने राधा को देखा तो वे बहुत प्रसन्न हुए. कहते हैं कि दोनों संकेतों की भाषा में एक-दूसरे से काफी देर तक बातें करते रहे. तब राधा के अनुरोध पर कृष्ण ने उन्हें महल में एक देविका के पद पर नियुक्त कर दिया.

कहते हैं कि राधा भगवान कृष्ण के महल से जुड़े कार्य देखती थीं और मौका मिलते ही वे कृष्ण के दर्शन कर लेती थीं. एक दिन उदास होकर राधा ने महल से दूर जाना तय किया. उन्होंने सोचा कि वे दूर जाकर दोबारा श्रीकृष्ण के साथ गहरा आत्मीय संबंध स्थापित करेंगी. हालांकि श्रीकृष्ण तो अंतरयामी थे और वे राधा के मन की बात जानते थे. कहते हैं कि राधा एक जंगल के गांव में में रहने लगीं. धीरे-धीरे समय बीता और राधा बिलकुल अकेली और कमजोर हो गईं. उस वक्त उन्हें भगवान श्रीकृष्ण की याद सताने लगी.

आखिरी समय में भगवान श्रीकृष्ण उनके सामने आ गए. भगवान श्रीकृष्ण ने राधा से कहा कि वे उनसे कुछ मांग लें, लेकिन राधा ने मना कर दिया. कृष्ण के दोबारा अनुरोध करने पर राधा ने कहा कि वे आखिरी बार उन्हें बांसुरी बजाते देखना और सुनना चाहती हैं. श्रीकृष्ण ने बांसुरी ली और बेहद सुरीली धुन में बजाने लगे. श्रीकृष्ण ने दिन-रात बांसुरी बजाई. बांसुरी की धुन सुनते-सुनते एक दिन राधा ने अपने शरीर का त्याग कर दिया. कहते हैं कि श्रीकृष्ण अपनी प्रेमिका की मृत्यु बर्दाश्त नहीं कर सके और उन्होंने बांसुरी तोड़कर फेंक दी. उसके बाद से श्रीकृष्ण ने जीवन में कभी बांसुरी नहीं बजाई.

क्या राधा सच में द्वारका में रहती थी?

कथा के अनुसार राधा का विवाह अनय के साथ हुआ था। लेकिन क्या आपको पता है कि राधाजी द्वारका में कृष्णजी के महल में रही थीं। यही नहीं, भगवान कृष्ण ने राधा की अंतिम इच्छा भी पूरी की थी। श्री कृष्ण से बिछड़ने के बाद राधा रानी एक बार फिर उनसे मिलने उनकी नगरी द्वारका पहुंची।

राधा द्वारका क्यों गई?

राधा के अनुरोध पर कृष्ण ने उन्हें महल में एक देविका के रूप में नियुक्त किया. राधा दिन भर महल में रहती थीं और महल से जुड़े कार्य देखती थीं. मौका मिलते ही वह कृष्ण के दर्शन कर लेती थीं. लेकिन महल में राधा ने श्रीकृष्ण के साथ पहले की तरह का आध्यात्मिक जुड़ाव महसूस नहीं कर पा रही थीं, इसलिए राधा ने महल से दूर जाना तय किया.

राधा जी की अंतिम इच्छा क्या थी?

यह कि 'वे आखिरी बार कृष्ण को बांसुरी बजाते देखना चाहती थी'। पहली बार कृष्ण राधा से दूर तब गए, जब जब मामा कंस ने उन्हें और बलराम को मथुरा आमंत्रित किया। वृंदावन के लोगों को जब यह बात पता चली, तो वह दुःखी हो गए। मां यशोदा परेशान थीं, तो नंद बाबा चिंतित।

श्री कृष्ण के जाने के बाद राधा का क्या हुआ?

कृष्ण के जाने के बाद राधा की जिंदगी पूरी तरह बदल जाती है। उनकी शादी एक युवक के साथ होती है। इस बीच राधा अपने दांपत्य जीवन की सभी रस्मों को पूरा करती हैं। वहीं जब वह बूढ़ी हो जाती हैं।