ख बालगोबिन भगत जी को गहृस्थी साधुक्यों कहा गया हैं? - kh baalagobin bhagat jee ko gahrsthee saadhukyon kaha gaya hain?

बाल गोबिन को गृहस्थ होते हुए भी भगत साधु क्यों कहा गया?

बालगोबिन भगत घर-परिवार वाले आदमी थे। उनके परिवार में उनका बेटा और पतोहू थे। उनके पास खेतीबारी और साफ़ सुथरा मकान था। इसके बाद भी बालगोबिन भगत साधुओं की तरह रहते और साधु की सारी परिभाषाओं पर खरा उतरते थे, इसलिए लेखक ने भगत को गृहस्थ साधु माना है।

बालगोबिन भगत गृहस्थ होते हुए साधुओं की श्रेणी में आते थे कैसे?

केवल गेरुआ वस्त्र पहनने से कोई साधु नहीं बन जाता है। साधु बनने के लिए आचार और विचारों में शुद्धता की आवश्यकता होती है। उनमें ये गुण था अस्तु वे गृहस्थी होकर भी सन्यासी थे वे स्वाभिमानी भी थे क्योंकि वे कभी भी किसी अन्य की चीज को बिना अनुमति के इस्तेमाल नहीं करते थे। वे किसी को भी खरा बोल देते थे

गद्यांश में भगत का कौन सा रूप सामने आता है?

वे कभी झूठ नहीं बोलते थे। वे बहुत कम कपड़े पहनते थे। कमर में केवल लंगोटी पहनते और सिर पर कबीर पंथियों की-सी कनफटी टोपी | माथे पर रामानंदी चंदन का टीका और गले में तुलसी की जड़ों की बेडौल माला पहनते थे।

बालगोबिन भगत के गायन की क्या विशेषता है?

बालगोबिन भगत के मधुर गायन की विशेषता यह थी कि कबीर के सीधे-सादे पद उनके कंठ से निकल कर सजीव हो उठते थे, जिसे सुनकर लोग-बच्चे-औरतें इतने मंत्र-मुग्ध हो जाते थे कि बच्चे झूम उठते थे, औरतों के होंठ स्वाभाविक रूप से कॅप-कॅपाने लगते थे, हल चलाते हुए कृषकों के पैर विशेष क्रम-ताल से उठने लगते थे, उनके संगीत की ध्वनि-तरंग ...