मंडल आयोग क्या था इसे क्यों नियुक्त किया गया था? - mandal aayog kya tha ise kyon niyukt kiya gaya tha?

मंडल आयोग सन् 1979 में तत्कालीन जनता पार्टी की सरकार द्वारा स्थापित किया गया था। इस आयोग का कार्य क्षेत्र सामाजिक एवं आर्थिक रूप से पिछड़ों की पहचान कराना था। श्री बिन्देश्वरी प्रसाद मंडल इसके अध्यक्ष थे।मंडल कमीशन रिपोर्ट ने विभिन्न धर्मो (मुसलमान भी) और पंथो के 3743 जातियाँ (देश के 44% जनसँख्या) को सामाजिक, शैक्षिक और आर्थिक मापदंडो के आधार पर सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ा (संविधान में आर्थिक पिछड़ा नहीं लिखा है और कमीशन आर्थिक बराबरी के लिए भी नहीं था) घोषित करते हुए 27% (क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने 50% अधिकतम का फैसला दिया था और पहले से SC/ST के लिए 22.5 % था), की रिपोर्ट दी।[1] 

इस मुद्दे के विरोधियों का तर्क है:

  1. जाति के आधार पर कोटा आवंटन नस्लीय भेदभाव का एक रूप है और समानता का अधिकार के विपरीत है। हालांकि जाति और दौड़ के बीच सटीक रिश्ता दूर से अच्छी तरह से स्थापित है
  2. Legislating सभी सरकारी शिक्षा संस्थानों में, ईसाई और मुस्लिम धार्मिक अल्पसंख्यकों शुरू होगा के लिए आरक्षण प्रदान करने का एक परिणाम के रूप में [11] जो धर्मनिरपेक्षता के विचारों के विपरीत है और विरोधी धर्म के आधार पर भेदभाव का एक रूप है

हालांकि रिपोर्ट 1 9 80 में पूरी हो चुकी थी, विश्वनाथ प्रताप सिंह सरकार ने 13अगस्त 1990 को बिन्देश्वरी प्रसाद मंडल के रेपोर्ट को लागू करने के अपने इरादे की घोषणा की, जिससे व्यापक छात्र विरोध हुए। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट द्वारा अस्थायी प्रवास आदेश प्रदान किया गया, 16 नवम्बर 1 99 2 को सर्वोच्च न्यायालय ने सरकारी नौकरी में 27% आरक्षण 1लाख रुपए की वार्षिक आय की आर्थिक सीमा के भीतर लागू किया जो 2015में बढकर 8लाख रुपए प्रति वर्ष की आय सीमा हो गया है । इसी आयोग की रिपोर्ट के आधार पर न्यायालय ने 2006 में उच्च शिक्षा में भी पिछड़ा वर्ग के लोगों के लिए सीट आरक्षित की है ।

मुख्य सिफ़ारिशें

1. अनुसूचित जाति और जनजातियों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में 22.5 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान है. इसके मद्देनजर अन्य पिछड़ा वर्गों को भी सभी सरकारी नौकरियों, तकनीकी और व्यावसायिक संस्थानों में 27 फीसदी आरक्षण दिया जाए.

2. समाज की मुख्य धारा से पीछे छूट गई आबादी के सांस्कृतिक उन्नयन के लिए पिछड़े वर्गों की सघन आबादी वाले इलाकों में शिक्षा की विशेष व्यवस्था होनी चाहिए. इसमें व्यावसायिक शिक्षा पर विशेष ध्यान देना चाहिए. तकनीकी और व्यावसायिक संस्थानों में आरक्षण कोटे से आए छात्रों के लिए कोचिंग की विशेष व्यवस्था की जाए.

3.ग्रामीण कामगारों के कौशल को बढ़ावा देने के लिए विशेष योजना चला कर उन्हें रियायती दरों पर ऋण मुहैया करना ज़रूरी है. औद्योगिक और व्यावसायिक कारोबार में पिछड़े वर्गों की भागीदारी बढ़ाने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा वित्तीय और तनकीनी संस्थानों का नेटवर्क विकसित किया जाए.

4. आयोग ने कहा कि समाज का पिछड़ा तबका गुजर बसर करने के लिए धनी किसानों के ऊपर निर्भर है क्योंकि इस वर्ग के पास खेती के लिए बड़े भूखंड नहीं है. इसलिए देश भर में क्राँतिकारी भूमि सुधार लागू करने की ज़रूरत है.

5. पिछड़े वर्गों के लिए कल्याणकारी कार्यक्रम चलाने के वास्ते राज्यों को केंद्रीय सहायता की ज़रूरत है.

मंडल आयोग ने पिछड़ी जातियों, वर्गों के निर्धारण के लिए सामाजिक,शैक्षिक और आर्थिक मानकों के आधार पर 11 सूचकांक तय किए थे.

सामाजिक स्थिति

1. वैसी जाति या वर्ग जिन्हें अन्य जाति या वर्गों द्वारा सामाजिक रूप से पिछड़ा समझा जाता है.

2.वैसी जाति या वर्ग जो आजीविका के लिए मुख्य रूप से शारीरिक श्रम पर निर्भर है.

3. वैसी जातियाँ या तबका जिनमें 17 साल से कम आयु की महिलाओं का विवाह दर ग्रामीण इलाकों में राज्य औसत से 25 प्रतिशत और शहरी इलाकों में दस प्रतिशत अधिक है और इसी आयु वर्ग में पुरुषों का विवाह दर ग्रामीण इलाकों में दस प्रतिशत और शहरी क्षेत्र में पाँच प्रतिशत ज्यादा है.

शैक्षिक आधार

1. वैसी जातियाँ या वर्ग जिनमें पाँच से 15 साल की आयु वर्ग में स्कूल नहीं जाने वाले बच्चों की संख्या राज्य औसत से कम से कम 25 प्रतिशत अधिक हो.

2.इसी आयु वर्ग में जिन जातियों या वर्गों के बच्चों के स्कूल छोड़ने का प्रतिशत राज्य औसत से कम से कम 25 प्रतिशत है.

3.वैसी जातियाँ, वर्गों जिनमें मैट्रिक परीक्षा पास करने वाले छात्र-छात्राओं का प्रतिशत राज्य औसत से 25 प्रतिशत कम है.

आर्थिक आधार

1.वैसी जातियाँ, वर्गों जिनमें औसत पारिवारिक संपत्ति मूल्य राज्य औसत से 25 प्रतिशत कम है.

2. ऐसी जातियाँ, वर्ग जिनमें कच्चे घरों में रहने वालों की संख्या राज्य औसत से कम से कम 25 प्रतिशत कम है.

3. ऐसे इलाकों में रह रही जातियाँ, वर्ग जिनमें 50 फीसदी परिवारों को पेयजल के लिए आधा किलोमीटर से दूर जाना पड़ता है।

इन्हें भी देखें[संपादित करें]

  • कोठारी आयोग

भारतीय शिक्षा आयोग (१९६४-१९६६) मुख्य तौर पे हम इसे कोठारी आयोग भी कहते हैं। और ये भारतीय सरकार द्वारा स्थापित एक अनौपचारिक आयोग था जिसका मुखय भूमिका भारत मैं शिक्षा क्षेत्र की निगरानी करना था

  • नियोगी आयोग की रपट
  • सचर समिति
  • लिबराहन आयोग

सन्दर्भ[संपादित करें]

  1. "प्रमोशन में आरक्षण: क्या बदला और क्या नहीं".

बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]

  • मण्डल आयोग : कब क्या हुआ?

ओबीसी वर्गीकरण का औचित्य एवं प्रभाव

संदर्भ

हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने ओबीसी की केंद्रीय सूची के वर्गीकरण के लिये आयोग बनाने के फैसले को मंज़ूरी दी है। यानी इस वर्ग में भी पिछड़ेपन की सीमा आधार पर आरक्षण दिया जाएगा। दूसरे शब्दों में कहें तो एक तरह से यह कोटे के अंदर कोटा होगा। सरकार के राजनैतिक उद्देश्यों से परे हटकर विचार करें तो सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने की दिशा में यह एक महत्त्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है। इस लेख में हम ओबीसी यानी अन्य पिछड़ा वर्ग आरक्षण, सरकार के इस प्रयास के निहितार्थों एवं संभावित प्रभावों तथा इसकी ज़रूरतों के बारे में चर्चा करेंगे।

ओबीसी आरक्षण की पृष्ठभूमि

  • मंडल आयोग का गठन वर्ष 1979 में "सामाजिक या शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग की पहचान” के उद्देश्य से किया गया था। इस आयोग का नेतृत्व भारतीय सांसद बी.पी. मंडल द्वारा किया गया था।
  • जातिगत भेदभाव को दूर करने के लिये आरक्षण एवं कोटा निर्धारण की व्यवस्था की गई। लेकिन सवाल यह था कि किन समूहों को यह लाभ दिया जाए अर्थात् समूहों के पिछड़ेपन का निर्धारण कैसे हो।
  • गौरतलब है कि समूहों के पिछड़ेपन का निर्धारण के लिये मंडल आयोग द्वारा ग्यारह सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक संकेतकों का इस्तेमाल किया गया। वर्ष 1980 में मंडल आयोग की रिपोर्ट में पिछड़े वर्ग के लोगों के लिये सरकारी नौकरियों में 27 फीसदी आरक्षण की सिफारिश की गई।
  • मंडल आयोग ने यह भी सिफारिश की कि केंद्र और राज्य सरकारों के अधीन चलने वाली वैज्ञानिक, तकनीकी तथा प्रोफेशनल शिक्षण संस्थानों में दाखिले के लिये ओबीसी वर्ग के छात्र-छात्राओं के लिये 27% आरक्षण लागू किया जाए।
  • वर्ष 1990 में मंडल आयोग की सिफारिशों को सरकार द्वारा लागू किया गया था, जिसके परिणामस्वरूप राष्ट्रीय राजनीति में व्यापक बदलाव आया। हालाँकि कई जगह व्यापक विरोध भी देखने को मिला, लेकिन इंद्रा साहनी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने भी इस फैसले पर मुहर लगा दी।
  • विदित हो कि इंद्रा साहनी मामले में ही सुप्रीम कोर्ट ने यह व्यवस्था दी थी कि पिछड़े वर्गों को पिछड़ा या अति-पिछड़ा के रूप में श्रेणीबद्ध करने में कोई संवैधानिक या कानूनी बाधा नहीं है। अतः राज्य सरकारें ऐसा करना चाहें तो कर सकती हैं।
  • तब से भारतीय राजनीति में आरक्षण इतना महत्त्वपूर्ण हो गया है कि इसके जिक्र मात्र से सरकारे बन और बिगड़ जाती हैं।

क्या है ओबीसी में वर्गीकरण का मामला

  • भारतीय सामाजिक व्यवस्था कुछ ऐसी हैं कि ओबीसी में आने वाली कुछ जातियाँ ओबीसी में ही शामिल कुछ अन्य जातियों से सामाजिक और आर्थिक दोनों ही रूपों में बेहतर स्थिति में हैं।
  • दरअसल, मंडल आयोग की सिफारिशों के आधार पर ओबीसी आरक्षण की व्यवस्था तो कर दी गई, लेकिन ओबीसी में ही अत्याधिक कमज़ोर वर्ग के लिये कुछ विशेष नहीं किया गया। यही कारण है कि ओबीसी आरक्षण का लाभ भी ओबीसी वर्ग से ताल्लुक रखने वाली कुछ ताकतवर जातियों के हाथों में ही सिमटकर रह गया है।
  • ऐसे में ओबीसी वर्ग के अन्दर ही वर्गीकरण की माँग लगातार की जाती रही है और अब तक नौ राज्यों-आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पुडुचेरी, कर्नाटक, हरियाणा, झारखंड, पश्चिम बंगाल, बिहार, महाराष्ट्र और तमिलनाडु ने पहले ही ओबीसी वर्गीकरण को लागू कर दिया है।
  • ओबीसी आरक्षण से संबंधित केन्द्रीय सूची में इस प्रकार के वर्गीकरण की व्यवस्था नहीं की गई है।
  • हालाँकि ‘पिछड़ा वर्ग आयोग’ को संवैधानिक दर्ज़ा देने का फैसला कर चुकी सरकार ने अब ओबीसी कोटे के अंदर कोटे की व्यवस्था कर उन पिछड़ी जातियों को राहत देने की तैयारी की है, जिन्हें आरक्षण का समुचित लाभ नहीं मिल पाता है।

केन्द्रीय ओबीसी सूची वर्गीकरण आयोग का कार्य

  • इस आयोग का नाम 'अन्य पिछड़ा वर्ग उप-वर्गीकरण जाँच आयोग' होगा। यह ओबीसी की केंद्रीय सूची में शामिल जातियों को आरक्षण के लाभ के असमान वितरण की जाँच करेगा। साथ ही असमानता दूर करने के तौर-तरीके और प्रक्रिया भी तय करेगा।
  • यह ओबीसी के भीतर उप-वर्गीकरण के लिये वैज्ञानिक और उचित दृष्टिकोण पर आधारित व्यवस्थात्मक मानदंडों के निर्माण का कार्य भी करेगा। यह आयोग अध्यक्ष की नियुक्ति की तारीख से 12 सप्ताह के भीतर अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेगा।
  • दरअसल, पिछड़ा वर्ग आयोग ने तीन वर्गों में वर्गीकरण का सुझाव दिया था- पिछड़ा वर्ग, अधिक पिछड़ा वर्ग और अति-पिछड़ा वर्ग। यह आयोग उन जातियों की संख्या और पिछड़ेपन को ध्यान में रखकर नई सूची तैयार करेगा।

आगे की राह

  • यदि सच में हम हाशिए पर ठेल दिये गए समूहों के जीवन में आरक्षण के ज़रिये महत्त्वपूर्ण बदलाव लाना चाहते हैं, तो हमारे पास केवल दो विकल्प हैं-या तो सरकार को सरकारी नौकरियों और विश्वविद्यालयों में सीटों की उपलब्धता में व्यापक रूप से वृद्धि करनी चाहिये या फिर इन लाभों को प्राप्त करने योग्य आबादी का आकार कम करना चाहिये।
  • इन दो विकल्पों में से सबसे व्यवहार्य विकल्प दूसरा है। लेकिन इसके लिये हमें ज़रूरत है जाति संबंधित मानद आँकड़ों की।
  • जातिगत जनगणना के संबंध में हमारे पास आँकड़ों का अभाव है, अब जबकि वर्ष 2021 की जनगणना की तैयारियाँ चल रही हैं तो जातिगत के आँकड़ों को इकट्ठा करने के लिये अब एक विशेषज्ञ समूह बनाने का समय है। बिना इन आँकड़ों के यह आयोग अपने उद्देश्यों की प्राप्ति में उतना सफल नहीं रहेगा।

निष्कर्ष

  • इसमें कोई दो राय नहीं हैं कि भारत की जातीय और सामाजिक व्यवस्था काफी जटिल है। ओबीसी वर्ग के अंतर्गत ही कुछ ऐसी जातियाँ हैं जो इसी वर्ग से संबंध रखने वाली अन्य जातियों के उत्पीडन में शामिल हैं। ऐसे में ओबीसी आरक्षण का लाभ कुछ सीमित समूहों तक ही सीमित हो जाना लाज़िमी है।
  • ऐसे में सरकार का यह कदम स्वागत योग्य है, क्योंकि ओबीसी आरक्षण कोटे में एक कोटा बनाकर इस आरक्षण वर्ग में लाभ से वंचित अन्य जातियों को राहत दी जा सकती है।
  • दरअसल, मंडल आयोग की सिफारिशों का उद्देश्य आरक्षण के ज़रिये सामाजिक न्याय के लक्ष्य को पूरा करना था, लेकिन पिछले कुछ समय से इस व्यवस्था को इस रूप में देखा जाने लगा है जैसे यह सरकारी नौकरियाँ हासिल करने का आसान ज़रिया हो।
  • यही कारण है कि वोट बैंक के लालच में कई राज्यों ने ओबीसी वर्ग के अन्दर वर्गीकरण करते हुए 50 प्रतिशत की तय सीमा से आगे जाकर भी आरक्षण की व्यवस्था की, जिसे सुप्रीम कोर्ट को खारिज़ करना पड़ा। इस आयोग की सिफारिशें लागू होने के बाद वर्गीकरण की एक केन्द्रीय सूची मिल जाएगी, जिससे आरक्षण के नाम पर आए दिन होने वाले दंगा-फसादों से मुक्ति मिल सकती है।

मंडल आयोग क्या है इन हिंदी?

मंडल आयोग का गठन वर्ष 1979 में "सामाजिक या शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग की पहचान” के उद्देश्य से किया गया था। इस आयोग का नेतृत्व भारतीय सांसद बी.पी. मंडल द्वारा किया गया था। जातिगत भेदभाव को दूर करने के लिये आरक्षण एवं कोटा निर्धारण की व्यवस्था की गई।

मंडल आयोग के वर्तमान अध्यक्ष कौन है?

आयोग के अध्यक्ष.

मंडल आयोग की रिपोर्ट कब लागू की गई थी?

2 दिसंबर 1989 में वीपी सिंह की सरकार में रिपोर्ट फिर चर्चा में आई. 1990 में वीपी सिंह ने मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने का फैसला लिया. इसकी घोषणा के साथ ही देश में आरक्षण का विरोध शुरू हो गया.

मंडल आयोग में कितने सदस्य थे?

नई दिल्ली (टीम डिजिटल): सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों की स्थिति जानने के लिए 20 दिसंबर, 1978 मोरारजी देसाई की सरकार ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री बिंदेश्वरी प्रसाद मंडल की अध्यक्षता में छह सदस्यीय पिछड़ा वर्ग आयोग के गठन की घोषणा की। यह मंडल आयोग के नाम से चर्चित हुआ।