मुगल काल में किसानों को क्या कहा जाता था? - mugal kaal mein kisaanon ko kya kaha jaata tha?

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मुगल काल में भारत के 85 फीसदी से ज्यादा लोग गांवों में रहते थे और राजस्व वसूलने का खेती ही सबसे बड़ा जरिया था. ऐसे में समझते हैं कि उस वक्त हमारा कृषि जगत कैसे काम करता था.

मुगल काल में किसानों को क्या कहा जाता था? - mugal kaal mein kisaanon ko kya kaha jaata tha?

मुगल काल के दौरान आमतौर पर किसानों के लिए रैयत या मुज़रियान शब्द का इस्तेमाल करते थे.

देश का किसान इन दिनों काफी ज्यादा चर्चा में है. देश के कई क्षेत्रों में किसान अपनी मांगों को लेकर धरना दे रहे हैं, लेकिन अभी तक कोई हल नहीं निकला है. वैसे तो आप देखते आए होंगे कि हमेशा से किसान अपनी फसल के अच्छे भाव या फसल खराब होने के बाद मुआवजे की मांग को लेकर धरना-प्रदर्शन करता रहता है. ऐसे में लगता है कि किसान हमेशा से फसल बोने से लेकर फसल को बेचने तक संघर्ष ही करता है. यह हालात तो अभी के हैं, लेकिन कभी आपने सोचा है कि आखिर प्राचीन वक्त में किसान कैसे काम करते थे.

हम बात कर रहे हैं करीब सोलहवीं और सत्रहवीं शताब्दी की, जब भारत में मुगल साम्राज्य था. उस वक्त भारत के 85 फीसदी से ज्यादा लोग गांवों में रहते थे और राजस्व वसूलने का खेती ही सबसे बड़ा जरिया था. ऐसे में समझते हैं कि उस वक्त हमारा कृषि जगत कैसे काम करता था, किसानों के हालात कैसे थे, किसान किस तरह से उत्पादन करते थे. जानते हैं आखिर मुगल साम्राज्य के दौरान हमारी कृषि व्यवस्था किस तरह से काम करती थी.

किसान को क्या कहा जाता था?

मुगल काल के दौरान आमतौर पर किसानों के लिए रैयत या मुज़रियान शब्द का इस्तेमाल करते थे. इस दौरान किसानों के लिए किसान या आसामी शब्द का इस्तेमाल होने के भी प्रमाण मिले हैं. 17वीं शताब्दी की किताबों के अनुसार, उस वक्त दो तरह के किसान होते थे- इसमें खुद-काश्त और पाहि-काश्त. खुद काश्त वो थे, जिनकी जमीन होती थी और वो अपने गांव में ही खेती करते थे. वहीं, पाहि-काश्त वो खेतिहर थे, जो दूसरे गांव से खेती करने के लिए किसी ठेके पर आते थे.

किस क्षेत्र के किसान थे अमीर?

उस दौरान भी कई किसान ऐसे होते थे, जिनके पास काफी जमीन और संसाधन होते थे. माना जाता है कि उस दौरान उत्तर भारत के औसत किसान के पास एक जोड़ी बैल और हल से ज्यादा कुछ नहीं था. वहीं, गुजरात के किसानों के पास कई एकड़ जमीन होती थी. बंगाल में भी एक किसान की औसत जमीन 5 एकड़ थी और उस दौरान जिस किसान के पास 10 एकड़ जमीन होती थी वो खुद को अमीर मानते थे. इस दौरान खेती करने के सामान भी हर किसान के पास अलग-अलग होते थे.

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वहीं, अगर फसलों की बात करें तो उस दौरान आगरा में 39 किस्म की फसलें, दिल्ली में 43 किस्म की फसलों की पैदावार होती थी. वहीं, बंगाल में सिर्फ 50 किस्में ही पैदा होती थीं. कई फसलें ऐसी भी होती थीं, जिनका मूल्य काफी अधिक होता था और उन फसलों को ‘जिन्स-ए-कामिल’ कहा जाता था. फिर कई फसलें विदेशों से आईं, जिसमें मक्का, टमाटर, आलू, पपीता आदि शामिल है.

ऐसी थी कृषि व्यवस्था?

उस दौरान कृषि व्यवस्था में जाति व्यवस्था काफी हावी थी. इस जातिगत व्यवस्था की वजह से किसानों के कई वर्ग बंटे हुए थे. हर जाति के हिसाब से पंचायतें होती थीं और यहां तक कि राजस्व, फसल की बिक्री में जातिगत व्यवस्था को अहम मानकर ही व्यापार किया जाता था. वहीं, जमींदार इस कृषि व्यवस्था का अहम हिस्सा होते थे.

यह तक ऐसा तबका होता था, जो खेती में सीधा हिस्सा नहीं लेता था, लेकिन ऊंची हैसियत की वजह से उन्हें काफी सुविधाएं मिलती थी. ये अपनी जमीन दूसरे किसानों को एक तरह के किराए पर देते थे. साथ ही राज्य की ओर से कर वसूलने का काम भी जमींदारों का ही था, जिससे किसानों का काफी शोषण भी होता था. इसमें भी जाति व्यवस्था काफी हावी थी.

कैसे लिया जाता था राजस्व?

उस वक्त जमीन से मिलने वाला राजस्व ही मुगल साम्राज्य की आर्थिक बुनियाद था. इस दौरान कितना कर तय है और कितने की वसूली जा रही है के आधार पर कर लिया जाता था. इसे जमा और हासिल कहा जाता था. अकबर ने किसानों के सामने नकद कर या फसलों के रुप में कर देने का ऑप्शन भी रखा था. साथ अकबर के शासन काल में हर जमीन पर एक जैसी कर व्यवस्था नहीं थी, जबकि अलग-अलग तरीके से कर वसूला जाता था.

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जैसे, ‘पोलज’ जमीन पर ज्यादा कर देना होता था, क्योंकि इस जमीन पर 12 महीने फसल उगती है. वहीं, ‘परौती’ जमीन पर कम क्योंकि यहां कुछ समय के लिए फसल नहीं होती है. वहीं, बंजर जमीन के लिए अलग व्यवस्था थी. यहां तक कि फसल की किस्म के आधार पर किसानों से कर लिया जाता था. करीब एक तिहाई हिस्सा शाही शुल्क के रुप में जमा किया जाता था.

इस दौरान भी किसानों के हित का काफी ध्यान रखा जाता था. दरअसल 1665 ईं में अपने राजस्व अधिकारी को औरंगजेब ने एक हुक्म दिया था. जिसमें कहा गया था, ‘वे परगनाओं के अमीनों को निर्देश दें कि वे हर गांव, हर किसान के बावत खेती के मौजूदा हालात पता करें, और बारीकी से उनकी जांच करने के बाद सरकार के वित्तीय हितों व किसानों के कल्याण को ध्यान में रखते हुए जमा निर्धारित करें.

खराब फसल के कारण राजस्व को माफ करना।

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गन्ना, कपास जैसी नकदी फसलें ।

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राज्य द्वारा वसूला गया सिंचाई उपकार ।

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किसानों को दिया जाने वाला ऋण ।

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Solution

The correct option is B गन्ना, कपास जैसी नकदी फसलें । व्याख्या: मुगल काल के दौरान रचित विभिन्न स्त्रोतों जैसे अबुल फजल द्वारा लिखित आइन-ए-अकबरी में उल्लिखित किया गया है कि उस समय भारत में कई प्रकार की फसलों की कृषि की जाती थी। हालांकि, दैनिक आहार की कृषि पर अधिक ज़ोर दिया जाता था मगर इसका अभिप्राय यह नहीं था कि मध्यकालीन भारत में कृषि केवल गुज़ारा करने के लिए की जाती थी। स्त्रोतों में हमें प्रायः जिन्स-ए-कामिल (सर्वोत्तम फसलें) जैसे लफ्ज़ ही देखने को मिलते हैं। मुग़ल राज्य भी किसानों को ऐसी फसलों की कृषि करने के लिए प्रोत्साहित करता था क्योंकि इनसे राज्य को अधिक करों की प्राप्ति होती थी। कपास और गन्ने जैसे फ़सलें बेहतरीन जिन्स-ए- कामिल थी। मध्य भारत एवं दक्कनी पत्थर में विस्तारित भूमि के बड़े-बड़े टुकड़ों पर कपास की कृषि की जाती थी, जबकि बंगाल अपनी चीनी के लिए प्रसिद्ध था। तिलहन (जैसे सरसों) और द्दल्हन भी नकसी फसलों में आती थीं। इससे ज्ञात होता है कि एक औसत किसान की भूमि पर किस प्रकार पेट भरने के लिए होने वाले उत्पादन एवं व्यापार के लिए किए जाने वाले उत्पादन एक दूसरे से जुड़े हुए थे।

मुगल भारत में कृषि और किसानों की क्या स्थिति थी?

प्राचीन काल की भाँति मुगलकाल में भी भारतीय अर्थव्यवस्था कृषि प्रधान थीमुगल साम्राज्य की लगभग 85 प्रतिशत जनसंख्या गाँवों में निवास करती थी, जिसमें कृषि पर आधारित वर्ग की बहुतायत थी। लघु उद्योग एवं व्यापार आदि की अच्छी वृद्धि के बाद भी तत्कालीन आर्थिक गतिविधियों में कृषि कार्य सर्वोपरि था।

जमा और हासिल क्या थी?

उस वक्त जमीन से मिलने वाला राजस्व ही मुगल साम्राज्य की आर्थिक बुनियाद था. इस दौरान कितना कर तय है और कितने की वसूली जा रही है के आधार पर कर लिया जाता था. इसे जमा और हासिल कहा जाता था.

मुगल काल में गांव के मुखिया को क्या कहा जाता है?

मुगल काल में गाँव के मुखिया को खुद मुकदाम या चौधरी कहा जाता थामुगल काल में गांव के प्रधान को मुकद्दम, खूत, चौधरी नाम से जाना जाता था

मुगल काल में सर्वाधिक उपजाऊ भूमि को क्या कहा जाता है?

मुगल काल के दौरान सबसे अधिक उपजाऊ क्षेत्र को दोआब कहा जाता था। यह दोआब क्षेत्र गंगा और यमुना के बीच का क्षेत्र होता था। ये हिमालय की तलहटी का मैदानी क्षेत्र था जोकि कृषि की दृष्टि से यह क्षेत्र बेहद उपजाऊ होता था।