खारकला | विमुक्त-घुमंतू समाज संगठन की प्रादेशिक बैठक गांधी भवन भोपाल में हुई। इसमें समाज हित में आगामी कार्यक्रम तय किया गया। संगठन प्रदेश महामंत्री राजेश राठौड़ ने बताया 31 अगस्त को भोपाल में प्रदेश स्तरीय मुक्ति दिवस मनाया जाएगा। कार्यक्रम में समाज की समस्याओं जैसे जाति प्रमाण पत्र, अन्य मूलभूत अधिकार, समाज को अजजा में शामिल करने, शासन की अन्य योजनाओं के संबंध में सरकार से मांग की जाएगी। महाराष्ट्र की तर्ज पर विमुक्त घुमंतू जाति को 10 प्रतिशत आरक्षण देने की मांग भी रखेंगे। 31 अगस्त के बाद शासन द्वारा समुचित निर्णय नहीं होने पर आंदोलन व धरना प्रदर्शन किया जाएगा। संगठन प्रदेश अध्यक्ष नारायण सिंह बंजारा, महासचिव विक्रमसिंह चौधरी सहित प्रदेश भर के पदाधिकारी उपस्थित थे। Mukti Diwas Kab Manaya Jata HaiGkExams on 12-05-2019 मुस्लिम लीग ने मुक्ति दिवस — 22 दिसंबर, 1939 ई. सम्बन्धित प्रश्नComments Asharam on 12-09-2022 Mukti divs kb mnaya jata h Hello on 31-05-2021 Pakisthan ne mukti debas kab manya jata hai Mukti dwas kab Manya jata h on 02-03-2021 Mukti dwas kab Manya jata h Ankur Sinha on 26-11-2020 Mukti Diwas kiske netritav me manaya gaya Mukti divas on 30-03-2020 Mukti divas Sweta on 23-02-2020 धन्यवाद दिवस? जगदीश रायका on 31-01-2019 मुक्ति दिवस किस तिथि को मनाया गया Mukti Diwas Muslim LeaguePradeep Chawla on 14-10-2018 22 दिसम्बर, 1939 ई. को मुस्लिम लीग द्वारा मुक्ति दिवस के रूप में मनाया गया। सम्बन्धित प्रश्नComments Amit kumar maurya on 17-01-2022 बहुत नीच थी मुस्लिम लीग Mukti divas kya hota hh on 06-01-2022 Mukti divas kya hota hh Maya on 12-12-2021 मुक्ति दिवस से क्या अभिप्राय है himmat on 31-03-2021 mukti diwas se ap kya samjhate h History on 05-12-2019 Muslim lig ave jinna ki भूमिका को बटाओ Deepak साहू on 05-12-2019 Muslim lig ave jinna ki भूमिका को बटाओ Kumkum on 28-11-2019 Kumkum on 28-11-2019 Congress ne tyagpatra kB sits that? Ekta on 26-10-2019 Andhra Pradesh mein guddan pahadiyon mein sainya Gorilla aandolan ka netritv San 1920 mein kisne kiya अब्दुल खालिक अंसारी on 12-05-2019 सितंबर 1939 में द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हुआ यह सामग्री जिला प्रशासन के अधीन है। © जिला बैतूल, इस वेबसाइट का निर्माण राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केन्द्र, आखरी अपडेट: Nov 04, 2022 यह आश्चर्य ही है कि हमारा देश और हम सभी नागरिक 15 अगस्त 1947 को स्वतंत्र हुए किंतु देश की घुमंतू जातियों के चार करोड़ लोगों का दर्जा तब भी कानूनी रूप से गुलाम का ही बना रहा. घुमंतू जातियों के इन गुलामों हेतु भारत सरकार ने 31 अगस्त 1952 को एक क़ानून बनाकर इन्हें स्वतंत्र घोषित किया फलस्वरूप इन जातियों के लोगों हेतु 31 अगस्त को विमुक्ति दिवस स्वतंत्रता दिवस कहा गया. सृष्टि में मानव जन्म के साथ से ही अपने घर की कल्पना विकसित हो गई होगी. बाद में मनुष्य की चेतना में अपना घर, मोहल्ला, नगर और राज्य कहनें की प्रवृत्ति विकसित होनें लगी होगी. चौदहवीं शताब्दी में लिखे गए शूद्रक के प्रसिद्द नाटक मृच्छ कटिकम में एक स्थान पर बिना घर वाले व्यक्ति को अत्यधिक विपन्न,निर्धन और व्याधिग्रस्त से भी अधिक दुर्भाग्यशाली बताते हुए कहा कि ऐसे व्यक्ति का कोई सहारा, संबल, अवलंबन नहीं होता. ऐसे बिना घर वाले व्यक्ति के सहयोग को कोई भी आगे नहीं आता. एक घर और एक ठिकाने की इस अटूट और स्वाभाविक मान्यता के विपरीत की व अपवाद की ही कथा है यह भटकी, विमुक्त और घुमक्कड़ जातियों की कथा. इस कथा के सूत्र 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम/क्रांति से जुड़ते हैं. इन 191 लड़ाका जातियों के लोगों ने 1857 की क्रांति में बढ़-चढ़कर भाग लिया, और अंग्रेजों को भरपूर छकाया व परेशान किया फलस्वरूप ये अंग्रेजों की आँखों की किरिकिरी बन गए थे. इसमें कोई संदेह नहीं कि ये जातियां आधुनिक सभ्यता व विकास से कटी हुई अलग थलग रहती थी व आपराधिक गतिविधियों में भी संलग्न रहती थी किंतु 1857 की क्रांति में पुरे देश व समाज का इन्होने जिस प्रकार साथ दिया उसके बाद इन जातियों के प्रति देश के शेष हिंदू समाज में इन्होने तब अलग स्थान बना लिया था. अपनी युद्ध कला, बलिष्ठता, बुद्धि, लड़ाकेपन व आपराधिक बुद्धि का भरपूर उपयोग इस समाज ने अंग्रेजों के पैर उखाड़ने में किया था. 1857 के बाद से ही अंग्रेज इन जातियों पर तीक्ष्ण नजर रखने लगे व इनके लिए देश भर में 50 अलग बस्तियां बना दी गई थी, जिनसे बाहर निकलते समय व अन्दर आते समय इन्हें शासकीय तंत्र को विधिवत सुचना देनी होती थी. जहां 1857 की क्रांति के बाद शनैः शनैः इन जातियों को हिंदू समाज ने अपने में समरस करना प्रारंभ किया वहीँ अंग्रेजों ने इस समाज से अपने प्रतिशोध का क्रम प्रारंभ कर दिया, व इस समाज को शेष हिंदू समाज व देश से काटने का हर षड्यंत्र किया. इसी क्रम में 1871 में इन लड़ाकू 193 जातियों को अंग्रेजों ने आपराधिक जातियां घोषित कर दिया. यह दुखद आश्चर्य ही है कि जब 15 अगस्त, 1947 को संपूर्ण भारत स्वतंत्र हुआ व भारत का प्रत्येक नागरिक स्वतंत्र नागरिक कहलाया तब भारत का 193 जातियों का समूह ऐसा था जिसे गुलाम श्रेणी में रखा गया था. इन 193 ऐसी जातियां को अंग्रेजों नें Criminal Law Amendment Act 1871 के अनुसार अपराधी घोषित कर दिया था. अपने मूंह मियां मिट्ठू जैसे आधुनिक और विकसित कहलानें वाले अंग्रेजों की मध्ययुगीन, बर्बर और पाषाण सोच का यह ज्वलंत उदाहरण है कि 193 जातियों को समूह रूप में पूरा का पूरा अपराधी वर्ग घोषित कर दिया गया था. स्थिति इतनी बर्बर थी कि इन जातियों में जन्म लेने वाला अबोध शिशु भी जीवन के प्रथम दिन से आजन्म अपराधी ही कहलाता था!! अंग्रेजों की मानसिकता का तनिक सा भी अध्ययन करनें वालों को पता है कि भारत में अंग्रेजों को अपराधियों से कभी घृणा नहीं रही वे अपनी कानूनी स्थिति का लाभ उठाकर अपराधियों को लालच दिखाते और उनका अंग्रेज शासन में अघोषित संविधानेतर उपयोग करनें लगते थे. अंग्रजों द्वारा इन भटकी विमुक्त जातियों को अपराधी घोषित करनें के पूर्व इन जातियों की क्षमता उपयोग भी निश्चित तौर पर इस राष्ट्र को लूटनें और यहाँ के नागरिकों पर आतंक स्थापित करनें वाली गतिविधियों हेतु करनें का प्रयास किया गया. हिंदुस्थानी समाज में आतंक और लूट का वातावरण बनानें के अंग्रेजी प्रयासों में अपनी सैन्य, छापामार, रात्रि दक्ष, निशानेबाज, कलाबाज क्षमता के उपयोग से इंकार करनें के परिणाम स्वरूप ही किंचित यह जातियां अंग्रेजों द्वारा अपराधी घोषित कर दी गई. कथित तौर पर अपराधी घोषित इन जातियों में मल्लाह,केवट ,निषाद ,बिन्द ,धीवर ,डलेराकहार , रायसिख ,महातम,बंजारा , बाजीगर ,सिकलीगर , नालबंध , सांसी, भेदकूट ,छड़ा , भांतु , भाट , नट ,पाल ,गडरिया, बघेल ,लोहार , डोम,बावरिया ,राबरी ,गंडीला , गाडियालोहार, जंगमजोगी,नाथ,बंगाली,अहेरिया,बहेलिया नायक,सपेला,सपेरा, पारधी,लोध, गुजर, सिंघिकाट ,कुचबन्ध, गिहार, कंजड आदि सम्मिलित थी. इन जातियों को अनेक प्रतिबंधों में रहना होता था. इन्हें किसी भी गाँव नगर में स्थायी बसनें की अनुमति नहीं होती थी, सामान्य नागरिक अधिकारों से वंचित इन जातियों के बंधू न्याय व्यवस्था में अधिकार विहीन थे और कहीं भी अपनी शिकायत दर्ज नहीं का सकते थे. स्वतंत्रता के समय देश भर की इन जातियों के लगभग चार करोड़ बंधू स्वतंत्र नहीं कहलाये और इनकी यथास्थिति परतंत्र की बनी रही. स्थतियों को ध्यान में रखते हुए 1952 अर्थात स्वतंत्रता के पांच वर्षों पश्चात एक बिल के माध्यम से इन जातियों को स्वतंत्र घोषित किया गया था. आज भारत में इन भटकी, विमुक्त, घूमंतू जातियों की संख्या 15 करोड़ है. इनमें से कई जातियां विलुप्त प्राय हैं और समाप्त होनें के कगार पर है. 15 करोड़ के इस बड़े जनसमूह का शासन व्यवस्था के तीनों अंगों में अल्पतम प्रतिनिधित्व है. लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ प्रेस जगत में तो इन जातियों का जैसे प्रतिनिधित्व है ही नहीं!! आज भी इस देश में इन जातियों के लोग बेघर, बेठिकाना, अशिक्षित, विपन्न, निर्धन होकर शासन के आंकड़ों में दर्ज नहीं हैं और अनजान होकर अभिशप्त जीवन जी रहें हैं. अपनी कई क्षमताओं, जीवटता,छापामारी, कलाबाजियों और सिद्धहस्त होनें के गुणों को अपना पेट पालनें के लिए प्रयोग करनें वाली यह जातियां अंग्रेजों के इस देश को लूटनें के काम में सहयोग करनें के आदेश को माननें से इंकार कर बैठी और अपराधी घोषित हो गई. यदि इन जातियों ने उस समय अंग्रेजी शासन से सहयोग किया होता तो संभवतः इन जातियों के प्रमुख भी कही साहब, रायसाहब, सर, मनसबदार, जागीरदार आदि नामों से पुकारे जा रहे होते. केंद्र सरकार द्वारा इन जातियों के विकास के लिए 2006 में बालकृष्ण रेणके की अध्यक्षता में एक आयोग की स्थापना की गई थी. इस आयोग ने 2008 में अपनी सिफारिशें केंद्र सरकार को सौंप दी थी. सम्पूर्ण देश की स्थिति में देखें तो महाराष्ट्र व उत्तरप्रदेश के पश्चात संभवतः मध्यप्रदेश में ही भटकी एवं की सर्वाधिक बड़ी संख्या निवासरत रहती है. मध्यप्रदेश के लगभग सभी जिलों में इन जातियों के बंधुओं का प्रवास निरंतर बना रहता है. रोजगार की दृष्टि से वे म.प्र. के जिलों में अपनें ठिकानों को बनातें रहते हैं. इनकी संख्या के कारण ही 1995 में म.प्र. विमुक्त घुमक्कड़ एवं अर्द्ध घुमक्कड़ जाति विकास अभिकरण का गठन किया गया था एवं 2011 में विमुक्त घुमक्कड़ एवं अर्द्ध घुमक्कड़ जनजाति कल्याण विभाग की स्थापना भी की गई. इनके स्वभाव के विषय में कहा जा सकता है कि कई बार इन जातियों के बंधू चाहें तो एक स्थान पर रहकर भी ये आजीविका कमा सकतें हैं किन्तु घुमक्कड़ पन इनकें स्वाभाव का स्थायी भाव है और ये एक स्थान से दुसरे स्थान पर चलते रहते हैं. मध्यप्रदेश में 51 जनजातियां विमुक्त, घुमक्कड़ एवं अर्द्ध घुमक्कड़ जातियों के रूप में चिन्हित कर मान्य की गई हैं. इन 51 जातियों में से 21 जातियों को विमुक्त जनजाति के रूप में मान्यता दी गई है, ये जातियां हैं – कंजर, सांसी, बंजारा, बनछड़ा, मोघिया, कालबेलिया, भानमत, बगरी, नट, पारधी, बेदिया,हाबुड़ा, भाटु, कुचबंदिया, बिजोरिया, कबूतरी, सन्धिया, पासी, चंद्र्वेदिया, बैरागी, सनोरिया. बची हुई 30 जातियों को घुमक्कड़ घोषित किया गया है, ये हैं - बलदिया, बाछोवालिया, भाट, भंतु, देसर, दुर्गी मुरागी,घिसाड़ी, गोंधली, ईरानी, जोगी या जोगी कनफटा, काशीकापड़ी, कलंदर नागफड़ा, कामद, करोला, कसाई गडरिये, लोहार पिटटा, नायकढ़ा, शिकलिगर, सिरंगिवाला, सद्गुदु सिद्धन, राजगोंड, गद्दीज, रेभारी, गोलर,गोसाईं, भराड़ी हरदास, भराड़ी हरबोला, हेजरा धनगर, जोशी बालसंतोशी ( जोशी बहुलीकर,जोशी बजरिया, जोशी बुदुबुद्की, जोशी चित्राबठी, जोशी हरदा, जोशी नदिया, जोशी हरबोला, जोशी नामदीवाला,जोशी पिंगला). अर्द्ध घुमक्कड़ जनजाति के रूप में मान्य किया गया है. महाराष्ट्र में पिछले कुछ वर्षों से भटके विमुक्त विकास परिषद् नामक संस्था कार्य कर रही है, यह संस्था राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के विभिन्न प्रकल्पों में से एक है. इसके कार्य को यमगरवाड़ी प्रोजेक्ट नाम दिया गया है. अशासकीय श्रेणी में कार्य कर रही इस संस्था ने इन जाति बंधुओं के मध्य अतुलनीय स्नेह, विश्वास, सम्मान व स्वीकार्यता प्राप्त कर ली है. उपेक्षित, विस्मृत, विपन्न, अशिक्षित श्रेणी की इन जातियों के बीच परिषद् ने अद्भुत विश्वास निर्मित कर दिया है. महाराष्ट्र के उस्मानाबाद जिले के यमगरवाड़ी ग्राम में इस संस्था ने 38 एकड़ भूमि पर विद्या संकुल का निर्माण किया है. इस संकुल में चल रहे सेवा कार्यों के परिणाम स्वरूप इसे सामाजिक परिवर्तन का तीर्थ कहा जानें लगा है. |