मालती के पति महेश्वर की कैसी छवि आपके मन में बनती है कहानी में महेश्वर की उपस्थिति क्या अर्थ रखती है अपने विचार दें? - maalatee ke pati maheshvar kee kaisee chhavi aapake man mein banatee hai kahaanee mein maheshvar kee upasthiti kya arth rakhatee hai apane vichaar den?


1. मालती के घर का वातावरण आपको कैसा लगा ? अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर ⇒रोज’ शीर्षक कहानी में प्रख्यात साहित्यकार अज्ञेय जी ने एक मध्यमवर्गीय परिवार के अकथ्य, बोझिल और प्रकपमय वातावरण को बड़ी चतुराई से शब्दों में ढला है। कहानी की नायिका मालती अपने डॉक्टर पति के साथ रहती है। कमरे में बिजली की व्यवस्था नहीं है। चौबीसों घंटे पानी भी नहीं मिल पाता है। घर में दो पलंग हैं, जिसपर कायदे का विस्तर भी नहीं है। मालती और लेखक के बीच संवाद से उक्त बातें स्पष्ट होती हैं

ऐसे ही आए हो ?”
“नहीं, कुली पीछे आ रहा है, सामान लेकर।”
“मैंने सोचा, विस्तरा ले चलूँ।”
“अच्छा किया, यहाँ तो बस……….”
मालती के घर का वातावरण ऊब और उदासी के बीच ऐसा लग रहा है, मानो उस पर किसी शाम की छाया मँडरा रही हो। वातावरण बोझिल, अकथ्य एवं प्रकपमय बना हुआ रहता है।


2. दोपहर में उस सूने आँगन में पैर रखते ही मुझे जान पड़ा, मानो उस पर किसी शाम की छाया मँडरा रही हो, यह कैसी शाम की छाया है ? वर्णन कीजिए।

उत्तर ⇒लेखक अपने दूर के रिश्ते की बहन जिससे उनका परस्पर संबंध मित्र का ही ‘ था, से मिलने उसके घर पर पहुँचता है। वह बुद्धिजीवी तथा अनुभवी व्यक्ति है। तुरन्त ही वातावरण तथा वहाँ रहनेवालों की दशा को भाँप जाता है। मालती और घर दोनों की स्थिति एक समान है। दोपहर का समय है फिर भी वहाँ लेखक को संध्या की छाया मँडराती हुई दिखाई पड़ती है। वह घर नया होने के बावजूद दोपहर अर्थात अपनी युवाकाल में ही नीरस और शुष्क लग रहा था। मालती भी युवती है परन्तु यंत्रवत और नीरस जिन्दगी ने उसे जीर्ण-शीर्णकाया में परिवर्तित कर दिया है। मालती का रूप लावण्य जवानी में ही ढलान पर है, ऐसा लगता है मानो किसी जीवित प्राणी के गले में किसी मृत जंतु का तौक डाल दिया गया हो। वह सरकारी क्वार्टर भी ऐसा लगता है जैसे उस पर किसी शाम की छाया मँडरा रही हो। वहाँ का वातावरण कुछ ऐसा अकथ्य, अस्पृश्य, किन्तु फिर भी बोझिल और प्रदीपमय-सा सन्नाटा फैला रहा था। ऐसा स्पष्ट होता है कि दोपहर में ही वक्त ने उसपर शाम की छाया ला दिया हो।


3. मालती के पति महेश्वर की कैसी छवि आपके मन में बनती है, कहानी में महेश्वर की उपस्थिति क्या अर्थ रखती है ? अपने विचार दें।

उत्तर ⇒महेश्वर मालती का पति है जो एक पहाड़ी गाँव में सरकारी डिस्पेंसरी में डॉक्टर है। उनका जीवन यंत्रवत है। अस्पताल में रोगियों को देखने और अन्य जरूरी हिदायतें करने ……. उनका जीवन भी बिल्कुल निर्दिष्ट ढर्रे पर चलता है, नित्य वही काम, उसी प्रकार का मरीज, वही हिदायतें, वही नुस्खे, वही दवाइयाँ। वह स्वयं उकताए हुए हैं और साथ ही इस भयंकर गर्मी के कारण वह अपने फुरसत के समय में भी सुस्त रहते हैं।

लेखक ने कहानी में महेश्वर की उपस्थिति कराकर कहानी को जीवंत बना दिया है। कहानी की नायिका मालती का जीवन उसी के इन्तजार एवं थकान की लम्बी साँस। महेश्वर .. की जिन्दगी के समान ही मालती की जिन्दगी ऊब और उदासी के बीच यंत्रवत चल रही है। किसी तरह के मनोविनोद, उल्लास उसके जीवन में नहीं रह गये हैं। महेश्वर मरीज और डिस्पेंसरी के चक्कर में अपने जीवन को भार समान ढो रहा है तो मालती चूल्हा-चक्की, पति का इन्तजार तथा बच्चे के लालन-पालन में।


4. लेखक और मालती के संबंध का परिचय पाठ के आधार पर दें।।

उत्तर ⇒लेखक मालती के दूर के रिश्ते का भाई है। किंतु लेखक का संबंध सख्य का ही रहा है। लेखक और मालती बचपन में एक साथ इकट्ठे खेले हैं, लड़े हैं और पिटे भी | हैं। लेखक की पढ़ाई भी मालती के साथ ही हुई है। लेखक और मालती का व्यवहार एक-दूसरे के प्रति सख्य की स्वेच्छा और स्वच्छंदता भरा रहा है। कभी भ्रातृत्व के रूप में या कभी किसी और रूप में। कभी बड़े-छोटेपन के बंधनों में नहीं बंधे।


5. गैंग्रीन क्या होता है ?

उत्तर ⇒पहाड़ियों पर रहने वाले व्यक्तियों को काँटा चुभना आम बात है। परन्तु काँटा चुभने के बाद बहुत दिनों तक छोड़ देने के बाद व्यक्ति का पाँव जख्म का शक्ल अख्तियार कर लेता है जिसका इलाज मात्र पाँव का काटना ही है। काँटा चुभने पर जख्म ही गैंग्रीन कहते हैं।


6. यह कहानी गैंग्रीन शीर्षक से भी प्रसिद्ध है, दोनों शीर्षक में कौन-सा शीर्षक आपको अधिक सार्थक लगता है, और क्यों ?

उत्तर ⇒‘विपथगा’ कहानी-संग्रह के पाँचवें संस्करण में यह कहानी, ‘गैंग्रीन’ शीर्षक से प्रकाशित है। पहाड़ पर रहने वाले व्यक्तियों को काँटा चुभना आम बात है परन्तु उनकी लापरवाही के कारण वह पैर में चुभा काँटा एक बड़ा जख्म का शक्ल ले लेता है जिसे बाद में उसका इलाज सिर्फ पैर का काटना ही है। काँटा चुभने के बाद का जख्म ही गैंग्रीन है। कहानी में गैंग्रीन डाक्टर महेश्वर के साथ ही आता है और उन्हीं तक सीमित भी है। डाक्टर रोज-रोज गैंग्रीन से पीड़ित का इलाज उसका पैर काटकर करते हैं। यह घटना उन्हीं तक सीमित रहती है और कहानी पर अपना ज्यादा प्रभाव नहीं छोड़ती। इस कहानी ‘रोज’ द्वारा एक दाम्पत्य जीवन के राग-विराग, जीवन की एकरसता, घुटन, संत्रास, यंत्रवत् जीवन, बच्चे का रोज-रोज पलंग से गिरने के कारण माँ की एक पुत्र के प्रति संवेदना, रोज एक ही ढर्रे पर चलती मालती की ऊबाहट-भरी दिनचर्या ध्वन्ति होती है। साथ ही इस कहानी का उद्देश्य एक युवती मालती के यान्त्रिक वैवाहिक जीवन के माध्यम से नारी के यन्त्रवत् जीवन और उसके सीमित घरेलू परिवेश में बीतते ऊबाऊ जीवन को भी चित्रित करना है।


7. ‘रोज’ शीर्षक कहानी का सारांश लिखें।

उत्तर ⇒कहानी के पहले भाग में मालती द्वारा अपने भाई के औपचारिक स्वागत का उल्लेख है जिसमें कोई उत्साह नहीं है, बल्कि कर्त्तव्यपालक की औपचारिकता अधिक है। वह अतिथि का कुशलक्षेम तक नहीं पूछती, पर पंखा अवश्य झलती है। उसके प्रश्नों का संक्षिप्त उत्तर
देती है। बचपन की बातूनी चंचल लड़की शादी के दो वर्षों बाद इतनी बदल जाती है कि वह चप रहने लगती है। उसका व्यक्तित्व बुझ-सा गया है। अतिथि का आना उस घर के ऊपर कोई काली छाया मँडराती हुई लगती है।

मालती और अतिथि के बीच के मौन को मालती का बच्चा सोते-सोते रोने से तोड़ता है। वह बच्चे को सँभालने के कर्त्तव्य का पालन करने के लिए दूसरे कमरे में चली जाती है। अतिथि एक तीखा प्रश्न पूछता है तो उसका उत्तर वह एक प्रश्नवाचक ‘हूँ’ से देती है। मानो उसके पास कहने के लिए कुछ नहीं है। यह आचरण उसकी उदासी, ऊबाहट और यांत्रिक जीवन की यंत्रणा को प्रकट करता है। दो वर्षों के वैवाहिक जीवन के बाद नारी कितनी बदल जाती है. यह कहानी के इस भाग में प्रकट हो जाती है। कहानी के इस भाग में मालती कर्तव्यपालन की औपचारिकता पूरी करती प्रतीत होती है पर उस कर्त्तव्यपालन में कोई उत्साह नहीं है, जिससे उसके नीरस, उदास, यांत्रिक जीवन की ओर संकेत करता है। अतिथि से हुए उसके संवादों में भी एक उत्साहहीनता और ठंढापन है। उसका व्यवहार उसकी द्वन्द्वग्रस्त मनोदशा का सूचक . है। इस प्रकार कहानीकार बाह्य स्थिति और मन:स्थित के संश्लिष्ट अंकन में सफल हुआ है।

रोज कहानी के दूसरे भाग में मालती का अंतर्द्वन्द्वग्रस्त मानसिक स्थिति, बीते बचपन की स्मृतियों में खोने से एक असंज्ञा की स्थिति, शारीरिक जड़ता और थकान का कुशल अंकन हुआ है। साथ ही उसके पति के यांत्रिक जीवन, पानी, सब्जी, नौकर आदि के अभावों का भी उल्लेख हुआ है। मालती पति के खाने के बाद दोपहर को तीन बजे और रात को दस बजे ही भोजन करेगी और यह रोज का क्रम है। बच्चे का रोना, मालती का देर से भोजन करना, पानी का नियमित रूप से वक्त पर न आना, पति का सवेरे डिस्पेन्सरी जाकर दोपहर को लौटना और शाम को फिर डिस्पेन्सरी में रोगियों को देखना, यह सबकुछ मालती के जीवन में रोज एक जैसा ही है। घंटा खडकने पर समय की गिनती करना मालती के नीरस जीवन की सूचना देता है अथवा यह बताता है कि समय काटना उसके लिए कठिन हो रहा है।

इस भाग में मालती, महेश्वर, अतिथि के बहुत कम क्रियाकलापों और अत्यंत संक्षिप्त संवादों के अंकन से पात्रों की बदलती मानसिक स्थितियों को प्रस्तुत किया गया है, जिससे यही लगता है कि लेखक का ध्यान बाह्य दृश्य के बजाए अंतर्दृश्य पर अधिक है।

कहानी के तीसरे भाग में महेश्वर की यांत्रिक दिनचर्या, अस्पताल के एक जैसे ढर्रे, रोगियों की टांग काटने या उसके मरने के नित्य चिकित्सा-कर्म का पता चलता है, पर अज्ञेय का ध्यान मालती के जीवन-संघर्ष को चित्रित करने पर केद्रित है।

महेश्वर और अतिथि बाहर पलंग पर बैठ कर गपशप करते रहे और चाँदनी रात का आनन्द लेते रहे, पर मालती घर के अंदर बर्तन माँजती रही, क्योंकि यही उसकी नियति थी।

बच्चे का बार-बार पलंग से नीचे गिर पड़ना और उस पर मालती की चिड़चिड़ी प्रतिक्रिया मानो पूछती है वह बच्चे को सँभाले या बर्तन मले ? यह काम नारी को ही क्यों करना पड़ता है ? क्या यही उसकी नियति है ?

इस अचानक प्रकट होने वाली जीवनेच्छा के बावजूद कहानी का मुख्य स्वर चुनौती के बजाए समझौते का और मालती की सहनशीलता का है। इसमें नारी जीवन की विषम स्थितियों का कुशल अंकन हुआ है। बच्चे की चोटें भी मामूली बात है, क्योंकि उसे चोटें रोज लगती हैं। मालती के मन पर लगने वाली चोटें भी चिन्ता का विषय नहीं है, क्योंकि वह रोज इन
चोटों को सहती रहती है। ‘रोज’ की ध्वनि कहानी में निरन्तर गूंजती रहती है।

कहानी का अंत ‘ग्यारह’ बजने की घंटा-ध्वनि से होता है और तब मालती करुण स्वर में कहती है ‘ग्यारह बज गए”। उसका घंटा गिनना उसके जीवन की निराशा और करुण स्थिति को प्रकट करता है।

कहानी एक रोचक मोड़ पर वहाँ पहुँचती है, जहाँ महेश्वर अपनी पत्नी को आम धोकर लाने का आदेश देता है। आम एक अखबार के टुकड़े में लिपटे हैं। जब वह अखबार का टकडा देखती है, तो उसे पढ़ने में तल्लीन हो जाती है। उसके घर में अखबार का भी है। वह अखबार के लिए भी तरसती है। इसलिए अखबार का टुकड़ा हाथ में आने पर उसे पढ़ने में तल्लीन हो जाती है। यह इस बात का सूचक है कि अपनी सीमित दनिया में बाहर निकल कर वह उसके आस-पास की व्यापक दुनिया से जुड़ना चाहती है। जीवन की जड़ता के बीच भी उसमें कुछ जिज्ञासा बनी है, जो उसकी जिजीविषा की सूचक है। मालती की जिजीविषा के लक्षण कहानी में यदा-कदा प्रकट होते हैं, पर कहानी का मुख्य स्वर चुनौती का नहीं है, बल्कि समझौते और परिस्थितियों के प्रति सहनशीलता का है जो उसके मूल में उसकी पति के प्रतिनिष्ठा और कर्त्तव्यपरायणता को अभिव्यक्त करता है। वह भी परंपरागत सोच की शिकार है, जो इसमें विश्वास करती है कि यह उसके जीवन का सच है। इससे इतर वह सोच भी नहीं सकती। जिस प्रकार से समाज के सरोकारों से वह कटी हुई है, उसे रोज का अखबार तक हासिल नहीं है, जिससे अपने ऊबाउपन जीवन से दो क्षण निकालकर बाहर की दुनिया में क्या कुछ घटित हो रहा है, उससे जुड़ने का मौका मिल सके। ऐसी स्थिति में एक आम महिला से अपने अस्तित्व के प्रति चिंतित होकर सोचते, उसके लिए संघर्ष करने अथवा उबाउ जीवन से उबरने हेतु जीवन में कुछ परिवर्तन लाने की उम्मीद ही नहीं बचती।


8. ‘रोज’ शीर्षक कहानी के आधार पर मालती का चरित्र-चित्रण कीजिए।

उत्तर ⇒रोज’ शीर्षक कहानी के रचयिता आधुनिक हिन्दी साहित्य के मूर्धन्य विद्वान श्री सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ हैं। ये एक प्रमुख कवि, कथाकार उपन्यासकार, विचारक, पत्रकार और सम्पादक हैं। इन्होंने साहित्य की अनेक नई विधाएँ यात्रा-साहित्य, डायरी, आलोचना, जीवनी इत्यादि पर्याप्त मात्रा में लिखे हैं।

‘रोज’ अज्ञेय जी की बहुचर्चित कहानी है। इन्होंने मध्यमवर्गीय भारतीय समाज में घरेलू स्त्री के जीवन और मनोदशा पर सहानुभूति पूर्वक विचार किया है। इस कहानी में मालती नामक एक नारी पात्र है, जो लेखक की रिश्ते में बहन लगती है। दोनों बचपन में साथ-साथ पले और बढ़े हैं। विद्यार्थी जीवन में मालती अत्यन्त चंचल और उच्छृखल प्रवृत्ति की लड़की थी। उसे पढ़ने से अधिक खेलने में रुचि थी। उसकी शादी डॉक्टर से होती है। डॉक्टर साहब अच्छे स्वभाव के व्यक्ति हैं, उसका नाम महेश्वर है। वे शहर से दूर किसी पठारी क्षेत्र में पदस्थापित हैं। मालती उनके साथ उसी पहाड़ी क्षेत्र में सरकारी क्वार्टर में रहती है। लेखक एक बार मालती से मिलने आते हैं।

विवाह के बाद मालती की मनोदशा पूर्णतः बदल गयी है। उसका जीवन मशीन तुल्य हो गया है। वह सुबह उठकर अपने पति के लिए नाश्ता बनाती है। फिर दोपहर के लिए खाना बनाती है। फिर शाम में खाना बनाती है। वह गृहकार्य में इस प्रकार लगी रहती है मानो कोई यंत्र हो। उसका जीवन यंत्रवत् हो गया है। लेखक के आने पर मालती उनका स्वागत अपेक्षित खुशी के साथ नहीं करती है। मात्र औपचारिकता वश उनसे बातें करती हैं। डॉक्टर साहब दोपहर को डिक्सपेंशरी से घर आते हैं। लेखक का परिचय उनसे होता हैं। वे अपनी मरीजों के बारे में बताते हैं कि वे अक्सर मरीजों के हाथ-पैर काटा करते है। छोटे-छोटे जख्म गैंग्रीन हो जाता है। फिर किसी के हाथ-पैर काटकर ऑपरेशन करते हैं।

मालती का एक छोटा बच्चा है, जिसका नाम टिटी है। वे सदैव रोते रहता है। वह काफी चिड़चिड़ा-सा है। लेखक अनुभव करते हैं कि मालती के घर में जैसे किसी अभिशाप की छाया फैली हो। इस घर का वातावरण अत्यन्त बोझिल और हताशापूर्ण है। कहीं उत्साह और उमंग नहीं है। यद्यपि डॉक्टर साहब बुरे नहीं हैं वे अपने काम में लगे रहते हैं। मालती भी घर के काम में सदैव लगी रहती है। पहाड़ पर स्थित इस सरकारी क्वार्टर में न तो ठीक से पानी आता है, न तो हरी सब्जी उपलब्ध होती है। यहाँ कोई समाचार-पत्र भी नहीं आता। यहाँ पढ़ने-लिखने का कोई वातावरण नहीं है।

इस तरह हम देखते हैं कि मालती न तो सफल पत्नी है और न एक सफल माँ। इसमें उसके चरित्र का कोई दोष नहीं है। परिस्थिति और वातावरण ऐसी है कि मालती पूर्णतः बदल गयी है। उसमें किसी प्रकार का राग भाव नहीं। निश्चय ही व्यक्ति के चरित्र पर परिस्थिति
और वातावरण का प्रभाव पड़ता है। मालती जैसी चंचल लड़की विवाह के बाद इस एकांत वातावरण में पूर्णतः यंत्रवत् हो जाती है। मालती एक व्यक्ति नहीं, बल्कि एक वर्ग का प्रतिनिधि है। ध्यान से देखने पर अनेक घरों में मालती मिलेगी, जिसका जीवन यंत्रवत् है। महिलाओं
को गृह-कार्य का दायित्व यंत्रवत् बना देती है। उसके जीवन में कोई संवेदना नहीं, कोई राग – नहीं।


  S.N हिन्दी ( HINDI )  – 100 अंक  [ गध खण्ड ]
 1. बातचीत 
 2. उसने कहा था 
 3. संपूर्ण क्रांति 
 4. अर्धनारीश्वर 
 5. रोज 
 6. एक लेख और एक पत्र 
 7. ओ सदानीरा 
 8. सिपाही की माँ 
 9. प्रगीत और समाज 
 10. जूठन  
 11. हँसते हुए मेरा अकेलापन 
 12. तिरिछ 
 13. शिक्षा