इसे सुनेंरोकेंतकनीकी मानकों का विकास करना एवं उन पर सहमत होना मानकीकरण (Standardization or standardisation) कहलाता है। Show
मानकीकरण क्या है मानकीकरण की क्यों आवश्यकता है?इसे सुनेंरोकेंमानक भाषा किसी देश अथवा राज्य की वह प्रतिनिधि तथा आदर्श भाषा होती है, जिसका प्रयोग वहाँ के शिक्षित वर्ग के द्वारा अपने सामाजिक, सांस्कृतिक, साहित्यिक, व्यापारिक व वैज्ञानिक तथा प्रशासनिक कार्यों में किया जाता है। किसी भाषा का बोलचाल के स्तर से ऊपर उठकर मानक रूप ग्रहण कर लेना, उसका मानकीकरण कहलाता है। मानकीकृत भाषा से आप क्या समझते हैं?इसे सुनेंरोकेंमानक भाषा (standard language) किसी भाषा की वह भाषा प्रयुक्ति या भाषिका होती है जो किसी समुदाय, राज्य या राष्ट्र में सम्पर्क भाषा का दर्जा रखे और लोक-संवाद में प्रयोग हो। अरबी, अंग्रेज़ी, फ़ारसी, जर्मन और फ़्रान्सीसी जैसी भाषाएँ बहुकेन्द्रीय हैं, यानि उनके एक से अधिक मानक रूप हैं। मानकीकरण क्या है भारत में प्रचलित चार मानक चिन्ह का नाम लिखिये? इसे सुनेंरोकेंAGMARK चिन्ह कृषि उत्पादों पर दिया जाता है, यह सुनिश्चित करता है कि वे भारत सरकार की एक एजेंसी, विपणन और निरीक्षण निदेशालय द्वारा अनुमोदित मानकों के अनुरूप हैं। यह चिन्ह भारत में कृषि उपज (ग्रेडिंग और मार्किंग) अधिनियम, 1937 (1986 में संशोधित) द्वारा कानूनी रूप से लागू किया गया है। पढ़ना: आज शुभ मुहूर्त कितने बजे का है? मानकीकरण के लिए क्या प्रयास किए जा रहे हैं? इसे सुनेंरोकेंमानकीकरण संस्थाएं एवं प्रयास हिन्दी भाषा के संघ और कुछ राज्यों की राजभाषा स्वीकृत हो जाने के फलस्वरूप देश के भीतर और बाहर हिन्दी सीखने वालों की संख्या में पर्याप्त वृद्धि हो जाने से हिन्दी वर्तनी की मानक पद्धति निर्धारित करना आवश्यक और कालोचित लगा, ताकि हिन्दी शब्दों की वर्तनियों में अधिकाधिक एकरूपता लाई जा सके। मानक भाषा - मानक भाषा से आशय ऐसी भाषा से है जो सभी जगह मान्य हो। इसका प्रयोग करने पर विचारों या भावों को स्पष्टतया आसान ढंग से ग्रहण कर सके, समझने में किसी प्रकार की कठिनाई न हो, ऐसी भाषा को मानक भाषा कहा जाता है। मानक भाषा को आदर्श, टकसाली तथा परिनिष्ठित भाषा भी कहते हैं। ऐसी भाषा का एक निश्चित व्याकरण होता है। मानक भाषा के लिखने, पढ़ने और बोलने में समरुपता होती है। दूसरी ओर मानक-भाषा सभ्य और सुशिक्षित लोगों द्वारा प्रयोग की जाती है। मानक भाषा का प्रयोग साहित्य, संगोष्ठियों, पत्र-व्यवहार, पत्र-पत्रिकाओं, पुस्तकों, भाषणों आदि में होता है। उदाहरणार्थ मानक भाषा हिन्दी का अपना सुव्यवस्थित व्याकरण है। जिसके द्वारा, लिंग, वचन, काल, कर्त्ता, उच्चारण, वर्तनी आदि कारण स्वरुप उपयोग में लाया जाता है। मानक हिन्दी भाषा सर्वग्राह्य है, इसकी निश्चित लिपि है। मानक भाषा का जन्म-किसी भाषा के मानक भाषा बनने में उसे विकास के विभिन्न चरणों से गुजरना होता है। एक भाषा किसी क्षेत्रीय बोली से ही विकसित होकर मानक भाषा के रूप में प्रतिष्ठित होती है। जब एक क्षेत्रीय बोली के बोले जाने का दायरा विस्तृत तक होते हुए धीरे-धीरे कर आंचलिक साहित्य सृजन के साथ-साथ उस बोली का साहित्यिक का क्षेत्र बढ़ जाता है और वह बोली एक विभाषा का रूप धारण कर लेती है। आगे चलकर उन्नति करते हुए वह बोली मानक भाषा के रूप में प्रतिष्ठित हो जाती है। हिन्दी भाषा के इतिहास से संबंधित इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।। मानक भाषा के तत्व-विद्वानों ने मानक भाषा के चार प्रमुख तत्व बताएँ हैं - मानक भाषा की विशेषताएँ-1. राज-काज की भाषा - राज-काज की भाषा के रूप में मानक भाषा बेहद कारगर सिद्ध हुई है। विभिन्न कार्यालयों, स्कूलों, महाविद्यालयों में यह भाव सम्प्रेषण की दृष्टि से काफी सुविधा जनक होती है। 2. ज्ञान-विज्ञान की भाषा - धर्म, दर्शन और विज्ञान आदि के क्षेत्र में मानक भाषा का प्रयोग भाषा की उपयोगिता को बढ़ाता है। 3. साहित्य व संस्कृति की भाषा- साहित्य लेखन तथा विभिन्न औपचारिक अवसरों पर इसी भाषा पर प्रयोग किया जाता है। 4. मनोरन्जन - मनोरन्जन के क्षेत्र में आकाशवाणी, दूरदर्शन, सिनेमा चलचित्र समाचारपत्र पत्रिकाओं में इसी भाषा का प्रयोग किया जाता है। 5. शिक्षा के क्षेत्र में उपयोगिता - विभिन्न विद्यालयों, महाविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में अध्यापन परियोजना कार्य तथा शोध और अनुसन्धान हेतु इस भाषा का प्रयोग किया जाता है। 6. अनुवाद की भाषा - अनुवाद की भाषा के रूप में अच्छे साहित्य के अनुवाद हेतु हिन्दी मानक भाषा का प्रयोग किया जाता है ताकि अधिक से भाषा के उत्कृष्ट साहित्य को जन-जन तक पहुँचाया जा सके। 7. कानून, चिकित्सा एवं तकनीकी की भाषा - कानून, चिकित्सा एवं तकनीकी के क्षेत्र में से प्रत्येक क्षेत्र की अपनी शब्दावली होती है जैसे विज्ञान, कानून तकनीकी आदि इन शब्दावलियों के मानक रूप तैयार किए जाते हैं, जिससे इस भाषा को बोधगम्य बनाया जा सकता है। 8. सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक- मानक होने के कारण सभी इसका प्रयोग करते हैं। यह सामाजिक प्रतिष्ठा की भाषा होती है। 9. एकता के सूत्र में बाँधने वाली भाषा- मानक भाषा एकता के सूत्र में बाँधती हैं। राजकाज, शिक्षा, सम्पर्क की एक मानक भाषा होने से ये लोगों को एक सूत्र में बाँधती है। 10. शिष्ट समाज की भाषा - शिष्ट समाज के भाषा क्षेत्र में प्रयुक्त होने वाली भाषा में मानक भाषा का अपना महत्व है। इसके माध्यम से पूरे जन-समुदाय से सम्पर्क स्थापित हो सकता है। हिन्दी व्याकरण के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।। हिन्दी भाषा का मानक स्वरूप -मानक हिन्दी भाषा से तात्पर्य हिन्दी भाषा के उस स्थिर रूप से है जो उस पूरे क्षेत्र में शब्दावली तथा व्याकरण की दृष्टि से समझने योग्य तथा सभी लोगों द्वारा मान्य हो, बोधगम्य हो। अन्य भाषाओं की अपेक्षा प्रतिष्ठित हो, व्याकरण सम्मत हो। हिन्दी की आधुनिक मानक शैली का विकास हिन्दी भाषा की एक बोली, जिसका नाम खड़ी बोली है, के आधार पर हुआ है। हिन्दी बोली ब्रज, अवधी, निमाड़ी आदि क्षेत्रों के लोग परस्पर व्यवहार में अपनी इन्हीं क्षेत्रीय बोलियों का उपयोग करते हैं किन्तु औपचारिक अवसरों पर मानक हिन्दी का ही प्रयोग करते हैं। जब यही शब्द भाषा के क्षेत्र में Standard Language (मानक भाषा) के रूप में प्रयुक्त हुआ हिन्दी आज हमारी राजभाषा है और हिन्दी के रूप यहाँ प्रचलन में है। इससे समस्या आती है कि बुन्देली हिन्दी, बघेली हिन्दी, अवधी हिन्दी हरियाणवी हिन्दी आदि। ऐसे में यदि कोई व्यक्ति हिन्दी सीखना चाहे अथवा अपना साहित्य हिन्दी में लिखना चाहे तो फिर किस हिन्दी का प्रयोग करेगा? इस तरह देखें तो एक ऐसी हिन्दी जिसे सभी पढ़ सके, समाचार पत्र दूरदर्शन आदि सभी की भाषा हो। इन्ही सभी कारणों से मानक हिन्दी भाषा को स्थापित किया गया। मानक हिन्दी भाषा की शैलियाँमानक हिन्दी पर जिन सत्रह बोलियों का प्रभाव है, जिसके कारण मानक हिन्दी की तीन शैलियाँ हो गई हैं, ये है- संस्कृत-निष्ठ शैली, हिन्दुस्तानी शैली, उर्दू शैली। संस्कृत-निष्ठ शैली में खड़ी बोली, और दख्खिनी हिन्दी आती है। हिन्दुस्तानी शैली में हिन्दुवी, हिन्दुस्तानी, रेख्ता शामिल है। उर्दू शैली में अरबी-फारसी शैली है। खड़ी बोली में तत्सम शब्दों का प्रयोग अधिक है तद्भव का प्रयोग कम होता है। उर्दू का प्रयोग कुछ इस तरह हुआ है, कि जब अरबी फारसी में अधिकाधिक तत्सम एवं तद्भव शब्दों का प्रयोग होने लगा तो यह उर्दू कहलाई। इस प्रकार आज मानक हिन्दी के लिखित और उच्चरित रूपों में अन्य बोलियों के शब्दों, वाक्य संरचना का प्रयोग होता है। मनुष्य जिस क्षेत्र में रहता है उसका प्रभाव भी उसकी भाषा पर पड़ता है। हिन्दी व्याकरण के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।। मानक हिन्दी भाषा का महत्वभारत एक बहुभाषी देश है जहाँ पर न केवल कई भाषाएँ बोली जाती है वरन् एक ही भाषाओं की भी कई उपभाषाएँ भी प्रचलन में हैं। इसी तरह यहाँ हिन्दी के भी अनेक रूप प्रचलन में हैं। जैसे भोजपुरी हिन्दी, बघेली हिन्दी, अवधी, हिन्दी, निमाड़ी, मालवी आदि। ऐसे में यदि कोई अहिन्दी भाषी व्यक्ति हिन्दी सीखना चाहे तो उसके समक्ष यह समस्या आती है कि वह कौन सी हिन्दी सीखें? ताकि व्यवहार में उसका काम आसान हो सके उसी के साथ सरकारी कामकाज, आकाशवाणी, दूरदर्शन राष्ट्रीय स्तर पर समाचार पत्र महत्वपूर्ण सूचनाओं का आदान प्रदान फिल्में, साहित्य आदि के लिए भी विकट समस्या उपस्थित होती है कि आखिर कौन सी हिन्दी को अपनाया जाये? जिसके निराकरण का एक मात्र हल है कि हिन्दी के इन विभिन्न रूपों के बीच कोई ऐसा रूप होना चाहिए जो सर्व व्यापक, सर्वमान्य हो। हिन्दी के सभी विद्वानों द्वारा प्रयुक्त व्याकरण दोषों से मुक्त अधिकांश लोगों द्वारा समझी लिखी व पढ़ी जाने वाली भाषा हो ताकि ज्यादा से ज्यादा व्यावहारिक रूप में उसका प्रयोग किया जा सके। वास्तव में शिक्षित वर्ग अपने सामाजिक, साहित्यिक, व्यावहारिक जीवन तथा प्रशासकीय कार्यों में जिस भाषा का प्रयोग करता है वही भाषा मानक भाषा कहलाती है। मानक भाषा अपने राज्य या राष्ट्र की सम्पर्क भाषा भी होती है। इस आधार पर हम कह सकते हैं कि हिन्दी का सर्वमान्य सर्वस्वीकृति सर्वप्रतिष्ठित रूप ही मानक हिन्दी भाषा है। हिन्दी व्याकरण के इन 👇 प्रकरणों को भी पढ़िए।। I Hope the above information will be useful and important. other resources Click for related information Watch video for related information
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