मुस्लिम दूसरी शादी करने पर क्या सजा होती है - muslim doosaree shaadee karane par kya saja hotee hai

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बहुविवाह पर कोर्ट का केंद्र को नोटिस, जानिए हिंदू, ईसाई और मुसलमानों में दूसरी शादी का क्या है नियम

दिल्ली हाईकोर्ट में रेशमा नाम की मुस्लिम महिला ने याचिका दायर की और कोर्ट से मुस्लिम पुरुषों की दूसरी शादी के लिए पहली पत्नी से सहमति लेने की मांग की. भारत में हिंदू, सिख, ईसाई, जैन और मुसलमानों के लिए दूसरी शादी के लिए अलग-अलग कानून हैं.

मुस्लिम दूसरी शादी करने पर क्या सजा होती है - muslim doosaree shaadee karane par kya saja hotee hai
सांकेतिक तस्वीर

हाइलाइट्स

  • हिंदू मैरिज एक्ट में दूसरी शादी की इजाजत नहीं

  • मुस्लिम विवाह अधिनियम में दूसरी शादी की इजाजत

  • मुस्लिम महिलाओं को दूसरी शादी की इजाजत नहीं

बहुविवाह को लेकर एक बार फिर बहस छिड़ गई है. दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई है. जिसमें बहुविवाह को रेगुलेट करने के लिए कानून बनाने के निर्देश देने की मांग की गई है. याचिका में मुस्लिम पुरुषों को दूसरी शादी करने से पहले पहली पत्नी से सहमति लेने की मांग की गई है. इसको लेकर कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है और 6 हफ्ते में जवाब मांगा है. भारत में शादी को लेकर हर धर्म के अलग-अलग कानून हैं. हिंदू, सिख, ईसाई, जैन और मुस्लिमों के लिए दूसरी शादी को लेकर कानून में क्या प्रावधान हैं. आइए जानते हैं...

हिंदू धर्म में दूसरी शादी का कानून-
हिंदी विवाह अधिनियम 1955 के तहत बिना तलाक के दूसरी शादी का प्रावधान नहीं है. हिंदू मैरिज एक्ट के तहत पत्नी की सहमति से भी दूसरी शादी करने की इजाजत नहीं है. इस कानून के तहत बौद्ध, सिख, जैन आते हैं. हालांकि कुछ मामलो में इस एक्ट के तहत आने वाले लोग बिना तलाक के दूसरी शादी कर सकते हैं. बिना तलाक के हिंदू, बौद्ध, सिख और जैन इन हालातों में दूसरी शादी कर सकते हैं-

  • किसी स्त्री या पुरुष के जीवनसाथी का मौत होने पर
  • कोर्ट ने पहले विवाह को रद्द कर दिया हो
  • किसी का जीवनसाथाी 7 साल से लापता हो
  • धर्म परिवर्तन करके दूसरी शादी की जा सकती है, हालांकि इसमें कई तरह के प्रावधान हैं

हिंदू विवाह एक्ट के तहत बिना तलाक दूसरी शादी करने पर सजा का प्रावधान भी है. आईपीसी की धारा 494 के तहत दूसरी शादी अपराध है. ऐसे मामले में 7 साल की सजा और जुर्माना दोनों हो सकता है.

मुस्लिम धर्म में दूसरी शादी-
भारत में मुसलमानों के लिए एक से ज्यादा शादी करने की छूट है. आईपीसी की धारा 494 के तहत मुसलमान पुरुषों को दूसरा निकाह करने की इजाजत है. इसी तरह से शरियत कानून की धारा 2 के तहत बहुविवाह की अनुमति है. पहली पत्नी की सहमति के बिना चार शादियां करने की छूट है. हालांकि इस कानून के तहत सिर्फ पुरुषों को दूसरी शादी की इजाजत है. मुस्लिम महिलाओं को मुस्लिम विवाह अधिनियम 1937 के तहत दूसरी शादी की इजाजत नहीं है. अगर कोई मुस्लिम महिला दूसरी शादी करना चाहती है तो पहले उसे पति से तलाक लेना होगा. 
हालांकि सुप्रीम कोर्ट में मुस्लिम समुदाय को बहुविवाह के छूट वाले प्रावधान को चुनौती दी गई है और इसे गैरसंवैधानिक करार देने की मांग की गई है.

ईसाई धर्म में दूसरी शादी-
ईसाई धर्म में दूसरी शादी की मनाही है. बिना तलाक के दूसरी शादी नहीं हो सकती है. अगर दंपति मेंसे किसी की मौत हो जाती है तो दूसरी शादी की जा सकती है. पहली शादी को चर्च में रद्द होना भी जरूरी है.

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मुस्लिम पर्सनल लॉ के मुताबिक, एक मुस्लिम पुरुष मौजूदा पत्नी को तलाक दिए बिना या मौजूदा विवाह को भंग किए बिना दूसरी मुस्लिम लड़की से विवाह कर सकता है। यह कानून भारत में भी लागू है। इसके लिए आपको पहली पत्नी से इज़ाज़त लेने की ज़रूरत नहीं हैं, हालाँकि सामान्य क़ानून के अनुसार यदि आप सरकारी या सार्वजनिक क्षेत्र या राज्य सरकार के कर्मचारी हैं, तो कर्मचारियों और सेवा नियमों के संचालन के लिए उपयुक्त नियम सामान्य तौर पर सभी कर्मचारियों के लिए लागू होंगे। सेवा नियमों और सीसीएस का कहना है कि यदि एक कर्मचारी पिछली शादी के निर्वाह के दौरान और उस शादी के जीवनसाथी के जीवनकाल के दौरान दूसरी लड़की से शादी कर लेता है, तो उस कर्मचारी को द्विविवाह करने का ज़िम्मेदार मानते हुए आयोजित किया जा सकता है।

अहमदाबाद क्या मुस्लिम समुदाय का कोई पुरुष अपनी पहली पत्नी की मर्जी के बगैर दूसरी शादी कर सकता है? क्या भारतीय दंड संहिता के मुताबिक यह दो पत्नियां रखने का अपराध नहीं माना जाएगा?

छत्तीसगढ़ के एक पुरुष के खिलाफ 2 पत्नियां रखने का एक आरोप अदालत के सामने आया था। इस शिकायत को खारिज करने के लिए एक जवाबी याचिका दायर की गई। अब गुजरात हाईकोर्ट इस मामले पर विचार कर रही है कि क्या आईपीसी को मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के कानूनों के ऊपर मान्यता दी जाए या नहीं।

ये सभी सवाल छत्तीसगढ़ के रायपुर से ताल्लुक रखने वाले जफर अब्बास मर्चेंट द्वारा अदालत में दायर की गई एक याचिका पर चर्चा के दौरान अदालत में सामने आए। मर्चेंट की पत्नी साजिदा बानू 2001 में रायपुर में अपनी ससुराल से वापस अपने माायके लौट आई थीं। मर्चेंट और उनकी शादी में कुछ दिक्कतें थीं। मर्चेंट ने 2003 में साजिदा की मर्जी के बिना दूसरी शादी कर ली। एक साल बाद साजिदा बानू ने मर्चेंट के खिलाफ 2 पत्नियां रखने के आरोप में शिकायत दर्ज कराई।

भावनगर की पुलिस ने मर्चेंट को 2 पत्नियां रखने, क्रूरता बरतने, पत्नी के साथ मार-पीट करने और दहेज मांगने के लिए संबंधित धाराओं के अंतर्गत मामला दर्ज किया। भारतीय दंड संहिता की धारा 494 में 2 पत्नियां रखने के अपराध में सजा का प्रावधान है। मर्चेंट पर अपनी पहली पत्नी की रजामंदी के बिना ही दूसरी शादी करने का आरोप लगा।

मर्चेंट 2010 में हाई कोर्ट गया। उसका दावा था कि मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत दूसरी शादी करना अपराध नहीं है क्योंकि इस्लामिक कानूनों के मुताबिक एक पुरुष को 4 शादियां करने का अधिकार है।

उसकी इस दलील के खिलाफ साजिदा बानू के वकील ने कहा मुस्लिम पर्सनल लॉ के मुताबिक पुरुष को अपनी सभी पत्नियों के साथ समान न्याय का बर्ताव करना चाहिए, लेकिन मर्चेंट ने अपनी पहली पत्नी की सहमति के बिना ही दूसरी शादी कर ली। ऐसे में ना केवल उसने मुस्लिम पर्सनल लॉ को तोड़ा, बल्कि अपनी पत्नी के साथ गलत बर्ताव भी किया। इन्हीं आरोपों के आधार पर साजिया बानू के वकील ने अदालत में कहा कि मर्चेंट को आईपीसी के तहत अपराध की सजा मिलनी चाहिए।

हाई कोर्ट ने इस मामले में कोर्ट की मदद के लिए एक न्यायमित्र (अमाइकस क्यूरे) की नियुक्ति की। उसने कुरान के सूरा-एक-निकाह की आयतें पढ़कर अदालत से कहा कि एक से अधिक शादियों को इस्लाम में मंजूरी है। न्यायमित्र ने अदालत से यही आयत पढ़कर यह भी कहा कि एक से अधिक पत्नियां रखने को हालांकि मंजूरी है, लेकिन सभी पत्नियों के साथ बराबरी का बर्ताव और सबके साथ समान न्याय की भी बात कही गई है।

न्यायमित्र ने अदालत से यह भी कहा कि शरिया कानून के मुताबिक एक मुस्लिम पुरुष को दूसरी शादी करने के लिए पहली पत्नी की सहमति लेना जरूरी नहीं है। भारत में मुस्लिमों के लिए लागू कानून मुस्लिम पर्सनल लॉ के मुताबिक भी यह अनिवार्य नहीं है। न्यायमित्र ने अदालत से कहा कि अगर दूसरी शादी ही अवैध नहीं है तो ऐसे में दूसरी शादी करने के लिए आईपीसी के तहत सजा भी नहीं दी जा सकती है।

दोनों पक्षों द्वारा अपनी-अपनी दलील अदालत के सामने पेश करने और मजहबी कानून की चर्चा खत्म हो जाने के बाद हाई कोर्ट ने अपना फैसला सुरक्षित कर लिया।

अदालती कार्रवाई के दौरान जज जस्टिस जे.पी.पारदीवाल ने कहा, 'मैं एक जज हूं। मुझसे उम्मीद की जा रही है कि मैं इस मामले में फैसला दूंगा। ईश्वर तो एक है और उसी ने नियम बनाए। ऐसे में अलग-अलग समुदायों के लिए नियाम-कानून अलग-अलग क्यों हों।'

जज के इस सवाल का जवाब देते हुए न्यायमित्र ने कहा, 'ईश्वर ने पूरी मानवता के लिए एक ही नियम बनाए। एक से अधिक पत्नियां रखना हर धर्म में होता है। पौराणिक कथाओं में भी इसके कई उदाहरण हैं, लेकिन बाद में इंसान के बनाए कानूनों ने इस प्रथा पर पाबंदी लगा दी। 1955 में हिंदू मैरेज ऐक्ट के लागू होने तक हिंदुओं को भी एक से अधिक शादियां करने की अनुमति थी।'

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एक मुसलमान कितनी शादी कर सकता है?

बेशक़ इस्लाम मे चार शादियाँ करने की अनुमति हैं कि आप कर सकते हो, लेकिन ये आज्ञा नहीं हैं कि आपको चार शादी करनी ही होंगी! सिर्फ अनुमति हैं वो भी शर्तो के साथ! आदमी को अपनी अय्याशी या रंगरेलियों के लिए ये अनुमति हरगिज़ नहीं मिली थी! बल्कि किसी विधवा, परित्यक्ता को सहारा देने के लिए मिली थी!

एक मुसलमान पुरुष एक साथ कितनी स्त्रियों से विवाह कर सकता है?

एक व्यक्ति एक समय में 4 से अधिक पत्नियां नहीं रख सकता। पांचवी पत्नी से विवाह जब नियमित होगा जब किसी एक पत्नी को तलाक दे दिया जाए या उसकी मृत्यु हो जाए।

दूसरी शादी को इस्लाम में क्या कहते हैं?

मुस्लिम विवाह के प्रकार जानिए, तभी आपका कंसेप्ट क्लियर होगा भारतीय मुसलमानों में ज्यादातर नियमित शादियाँ होती है तथा दूसरे प्रकार के विवाह को Muta Shaadi कहते हैं जो एक तरह से अनियमित शादी होती है।

क्या दूसरी शादी करना पाप है?

दूसरी पत्नी: दूसरी शादी की वैधता हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 5 के अनुसार, किसी व्यक्ति का किसी अन्य व्यक्ति से विवाह अवैध है यदि वह अभी भी किसी और से विवाहित है। इसका अर्थ यह है कि इस मामले में दूसरी पत्नी और पति के बीच दूसरी शादी अवैध है।