These NCERT Solutions for Class 7 Hindi Vasant Chapter 15 नीलकंठ Questions and Answers are prepared by our highly skilled subject experts. निबंध से प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. नीलकंठ द्वारा हथेली से भुने चने खाना बहुत भाता था। मेघों की साँवली छाया में अपने इंद्रधनुष के गुच्छे जैसे पंखों को मंडलाकार बनाकर जब वह नाचता था, तब उस नृत्य में एक सहजात लय-ताल रहता था। आगे-पीछे, दाहिने-बाएँ क्रम से घूमकर वह किसी अलक्ष्य सम पर ठहर-ठहर जाता था। प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. उसने साँप के फन को पंजों में दबाया और फिर चोंच से इतने प्रहार किए वह अधमरा हो गया। पकड़ ढीली पड़ते ही खरगोश का बच्चा मुख से निकल आया, इस प्रकार उसके प्राणों की रक्षा हुई। इस घटना से नीलकंठ के स्वभाव की निम्नलिखित विशेषताएँ प्रकट होती हैं। नीलकंठ साहसी था। निबंध से आगे प्रश्न 1. प्रश्न 2. अनुमान और कल्पना प्रश्न 1. प्रश्न 2. भाषा की बात प्रश्न 1. विस्मयाभिभूत शब्द विस्मय और अभिभूत दो शब्दों के योग से बना है। इसमें विस्मय के य के साथ अभिभूत के अ के मिलने से या हो गया है। अ आदि वर्ण है। ये सभी वर्ण-ध्वनियों में व्याप्त हैं। व्यंजन वर्गों में इसके योग को स्पष्ट
रूप से देखा जा सकता है, जैसे-क् + अ = क इत्यादि। अ की मात्रा के चिह्न (1) से आप परिचित हैं। अ की भाँति किसी शब्द में आ के भी जुड़ने से अकार की मात्रा ही लगती है, जैसे-मंडल + आकार = मंडलाकार। मंडल और आकार की संधि करने पर (जोड़ने पर) मंडलाकार शब्द बनता है और मंडलाकार शब्द का विग्रह करने पर (तोड़ने पर) मंडल और आकार दोनों अलग होते हैं। नीचे दिए गए शब्दों के संधि-विग्रह कीजिए- विच्छेद कुछ करने को चयनित व्यक्ति/पशु पक्षी की खास बातों को ध्यान में रखते हुए एक रेखाचित्र बनाइए। प्रिय नेता – सुभाष चंद्र बोस मालती के फूल की तरह मनस्वी लोगों की दो प्रमुख स्थितियाँ होती हैं या तो वे संसार के एकांत में पड़े रह जाते हैं या संसार के सिर पर मुकुट की तरह शोभा पाते हैं। ‘जय हिंद’ का मंत्र देने वाले महान् देश-भक्त नेताजी सुभाष चंद्र बोस एक ऐसे ही मनस्वी थे। इस वीर योद्धा का नाम हमारे स्वाधीनता आंदोलन के सुनहरे पृष्ठों पर लिखा जा चुका है। सुभाष चंद्र बोस की माँ प्रभावती उन्हें ‘सुब्बी’ कहकर पुकारती थी। अपनी माता के बड़े लाडले थे सुभाष । माँ ने सपने में भी नहीं सोचा होगा कि उनका दुलारा ‘सुब्बी’ एक दिन भारत में ही नहीं वरन् पूरी दुनिया में नेता जी के नाम से लोकप्रिय होगा। नेता जी सुभाष का नाम हर भारतवासी के हृदय में सुगंध की तरह बस गया है। गद्यांशों पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर 1. मोर के सिर ……………….. आँका जा सकता। प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. 2. राधा नीलकंठ के …………………. उपाधि दे डाली। प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. 3. नीलकंठ और राधा की ………………….. भी एक करुण कथा है। प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. 4. वास्तव में नीलकंठ ………………… दृष्टि लगाए रहती थी। प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. नीलकंठ Summaryपाठ का सार लेखिका महादेवी वर्मा अपने किसी अतिथि को स्टेशन पहुँचाकर लौट रही थी कि उनको चिड़ियाँ और खरगोशों की दुकान का ध्यान आया। उन्होंने अपने ड्राइवर से मियाँ- चिड़िया वाले की दुकान की ओर चलने को कहा। वे दुकान पर पहुंची और मियाँ- चिड़िया वाला बोला कि आपने पिछली बार मोर के बच्चों के लिए पूछा था मैंने एक शिकारी से आपके लिए बच्चे खरीद लिए। बड़े मियाँ की भाषण मेल चलती ही जा रही थी अतः लेखिका पैंतीस रुपये में उन मोर के दोनों बच्चों को खरीद कर घर ले आई। घर पहुँचने पर सबने कहा कि ये मोर नहीं तीतर के बच्चे हैं, आपको ठग लिया है। लेखिका ने उन बच्चों का पिंजरा अपने पढ़ने वाले कमरे में रखकर खोला। वे दोनों इधर-उधर लुका छिपी खेलने लगे। बिल्ली के डर के कारण उनको पिंजरे में ही रखना पड़ता था। इनको देखकर लेखिका के घर में रहने वाले कबूतर, खरगोश, तोते सभी में कुतूहल जागा। धीरे-धीरे मोर के बच्चे बड़े होने लगे। मोर के सिर पर कलगी सघन और ऊँची तथा चमकीली हो गई। चोंच अधिक बंकिम और पैनी हो गई। लंबी नील-हरित ग्रीवा बहुत सुंदर लगने लगी। लेखिका ने इसका नाम नीलकंठ रखा। मोरनी का विकास मोर जितना चमत्कारिक तो नहीं था परन्तु वह अपनी मंथर गति से मोर की उपयुक्त सहचरी होने का प्रभाव देने लगी। नीलकंठ लेखिका के घर में रहने वाले सभी जीव जंतुओं का सेनापति बन गया। खरगोश के छोटे बच्चों को वह चोंच से उनके कान पकड़कर उठा लेता था। एक दिन वहाँ जाली में एक साँप आ गया। एक शिशु खरगोश साँप की पकड़ में आ गया। वह उसे निगलने का प्रयास कर रहा था कि नीलकंठ ने उसके फन को पंजों से दबाकर चोंच से प्रहार किया इस प्रकार खरगोश मुक्त हो गया और साँप के भी नीलकंठ ने दो खंड कर दिए। नीलकंठ जब आकाश में बादल होते थे तो वह इंद्र धनुष के गुच्छे जैसे पंखों को मंडलाकार बनाकर नाचता था। राधा नीलकंठ के समान तो नहीं नाच सकती थी परन्तु नीलकंठ की परिक्रमा से एक पूरक ताल का परिचय अवश्य मिलता था। नीलकंठ का नृत्य बहुत अच्छा लगता था। वह भी यह बात जान गया था अतः वह अब प्रतिदिन अपना नृत्य कौशल दिखाने लगा था। कुछ विदेशी मेहमानों ने भी उसका नृत्य देखा उन्होंने उसको ‘परफैक्ट अँटिलमैन’ की उपाधि से विभूषित कर दिया। जैसे ही वर्षा ऋतु की रिमझिम शुरू होती नीलकंठ का नृत्य आरंभ हो जाता। नीलकंठ की इस सुखद नृत्य कथा का अंत भी एक दिन हुआ। लेखिका बड़े मियाँ के यहाँ से एक घायल मोरनी ले आई। लेखिका ने उसका इलाज करके उसके प्राण बचाए लेखिका ने उसका नाम कुब्जा रखा क्योंकि घायल होने के कारण उसकी चाल-ढाल बदल गई थी। वह नीलकंठ के पास राधा को भी नहीं जाने देती थी। इस घटना से नीलकंठ उदास रहने लगा। कुब्जा ने राधा के अंडों को भी चोंच मारकर गिरा दिया। नीलकंठ बहुत उदास रहने लगा था। कई महीने बीतने के बाद एक दिन वह मरा हुआ मिला। उसकी मृत्यु का कारण तो पता नहीं चला। लेखिका उसे अपने शाल में लपेट कर गंगा में प्रवाहित कर आई। नीलकंठ के न रहने पर राधा भी निष्चेष्ट-सी बैठी रहने लगी। एक दिन अल्सेशियन कुतिया कजली के दाँत लगने से कुब्जा भी घायल हो गई उसे बचाया नहीं जा सका। अब राधा कभी ऊँचे झूले पर और कभी अशोक की डाल पर अपनी केका को तीव्रतर करके नीलकंठ को बुलाती रहती है। शब्दार्थ- चिडिमार-चिड़िया को मारने वाला शिकारी; अनुसरण-नकल करना, पीछे चलना; संकीर्ण-सँकरा/छोटा; मुनासिब-उचित; पक्षी-शावक-पक्षी का बच्चा; आश्वस्त-तसल्ली; आविर्भूत-प्रकट होना; नवागंतुक-नया-नया आया हुआ मेहमान; मार्जारी-बिल्ली; असह्य-न सहने योग्य; कायाकल्प-शरीर में बहुत भारी परिवर्तन आना; बंकिम-टेढ़ी; नीलाभ-नीली चमक; उद्दीप्त-चमक उठना; भंगिमा-मुद्रा; सहचारिणी-पत्नी/साथ-साथ चलने वाली, विचरण करने वाली; ग्रीवा-गर्दन; आर्तक्रंदन-दर्द भरे स्वर में रोना; उष्णता-गर्मी; कार्तिकेय-कृतिका नक्षत्र में उत्पन्न शिव के पुत्र, देवताओं के सेनापति; विस्मयाभिभूत-आश्चर्य से आनंदमग्न होना; पुष्पित और पल्लवित-फूलों और पत्रों से लदा हुआ; मंजरिया-आम का बौर या फूल; केका-मोर की ध्वनि (आवाज)। क मृत्यु के बाद नीलकंठ का संस्कार महादेवी जी ने कैसे किया?(घ) मृत्यु के बाद नीलकंठ का संस्कार महादेवी जी ने कैसे किया ? उत्तर : महादेवी जी ने नीलकंठ के देह अपने शाल में लपेटकर उसे गंगा में प्रवाहित कर दिया ।
क नीलकंठ की राधा कौन है?मोर का गर्दन नीले रंग का था जिसके कारण महादेवी ने उसे नीलकंठ का नाम दिया। दूसरी और मोरनी हमेशा मोर के साथ छाया बनके घूमती रहती। दोनों को देखकर ऐसा प्रतीत होता था मानो कृष्ण के संग राधा घूम रही हो। इसी कारण महादेवी ने मोरनी का नाम राधा रख दिया।
नीलकंठ की मृत्यु कैसे हुई?एक बार उसने राधा के अंडे भी तोड़ डाले। इसी कोलाहल व राधा की दूरी ने नीलकंठ को अप्रसन्न कर दिया जो अंत में उसकी मृत्यु का कारण बना।
नीलकंठ शीर्षक पाठ के आधार पर महादेवी क्या संदेश देना चाहती है स्पष्ट करो?उत्तर- नीलकंठ को फलों के वृक्षों से भी अधिक पुष्प व पल्लवित वृक्ष भाते थे। इसीलिए जब वसंत में आम के वृक्ष सुनहली मंजरियों से लद जाते और अशोक लाल पत्तों से ढ़क जाता तो नीलकंठ के लिए जालीघर में रहना असहनीय हो जाता। वह बार-बार बाहर जाने का प्रयास करता तब महादेवी को उसे बाहर छोड़ देना पड़ता।
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