अनुसन्धान के माध्यम से विकसित नई चिकित्सा पद्धतियों के सामान्य प्रयोग से पूर्व इनके प्रभाव व कुप्रभावों का अध्ययन करने के लिये किया गया शोध नैदानिक परीक्षण (क्लिनिकल ट्रायल) कहलाता है। चिकित्सा पद्धतियों के अन्तर्गत टीका, दवा, आहार संबंधी विकल्प, आहार की खुराक, चिकित्सीय उपकरण, जैव चिकित्सा आदि आते हैं। नैदानिक परीक्षण, नई पद्धतियों की सुरक्षा व दक्षता के संबंध में बेहतर आंकड़े प्रदान करता है। प्रत्येक अध्ययन वैज्ञानिक प्रश्नों का जवाब देता है और बीमारी को रोकने के, इसके परीक्षण के लिए, निदान, या उपचार के लिए बेहतर तरीके खोजने का प्रयास करता है। क्लीनिकल ट्रायल नए उपचार की पहले से उपलब्ध उपचार के साथ तुलना भी कर सकता है। Show हर क्लीनिकल ट्रायल में परीक्षण करने के लिए एक नियम (कार्य योजना) होती है। योजना बताती है कि अध्ययन में क्या-क्या किया जायेगा, यह कैसे पूरा होगा, और अध्ययन का प्रत्येक भाग आवश्यक क्यों है। प्रत्येक अध्ययन में हिस्सा लेने वाले लोगों के लिए इसके अपने नियम होते हैं। कुछ अध्ययनों के लिए किसी बीमारी से ग्रस्त स्वयंसेवकों की जरुरत होती है। कुछ के लिए स्वस्थ लोगों की आवश्यकता होती है। अन्य के लिए केवल पुरुष या केवल महिलाओं की जरुरत होती है। किसी देश या क्षेत्र विशेष में नैदानिक परीक्षण के लिये स्वास्थ्य एजेंसियों तथा अन्य सक्षम एजेंसियों की अनुमति लेना आवश्यक है। ये एजेंसियाँ परीक्षण के जोखिम/लाभ अनुपात का अध्ययन करने के लिये उत्तरदायी होती हैं। चिकित्सीय उत्पाद या पद्धति के प्रकार और उसके विकास के स्तर के अनुरूप ये एजेंसियाँ प्रारंभ में स्वयंप्रस्तुत व्यक्तियों (वालंटियर) या रोगियों के छोटे-छोटे समूहों पर पायलट प्रयोग के रूप में अध्ययन की अनुमति देती हैं और आगे उत्तरोत्तर बड़े पैमाने पर तुलनात्मक अध्ययन की अनुमति देती हैं। यूएसए में संस्थागत समीक्षा बोर्ड (आई.आर.बी.) कई क्लीनिकल ट्रायलों की समीक्षा, निरीक्षण करता है और उन्हें स्वीकार करता है। यह चिकित्सकों, सांख्यिकीविदों, और समुदाय के सदस्यों की एक स्वतंत्र समिति है। इसकी निम्न भूमिकाएं हैं-
भारत में नैदानिक परीक्षण से संबंधित स्पष्ट व कारगर नीति के अभाव में कई अनियमितताएँ देखने को मिलती हैं। एक आँकड़े के अनुसार, वर्ष 2005 से 2012 के बीचे पूरे देश में लगभग 2800 लोगों की मृत्यु नैदानिक परीक्षण के कारण हुई। अपनी आय की पूरकता के लिये वालंटियरों की बड़ी संख्या स्वेच्छा से नैदानिक परीक्षणों में भाग लेती है। बेहतर नियामकीय ढाँचे के अभाव में वालंटियरों के स्वास्थ्य से संबंधित कई महत्त्वपूर्ण आँकड़ों व तथ्यों की उपेक्षा कर दी जाती है, जो न केवल वालंटियरों के स्वास्थ्य को जोखिम में डालती है बल्कि परीक्षण के आँकड़ों पर भी प्रश्नचिह्न लगाती है।[1] नैदानिक परीक्षण का उद्देश्य[संपादित करें]नैदानिक परीक्षण का उपयोग चिकित्सा की नई विधियों को करीब से देखने के लिये किया जाता है। नैदानिक परीक्षण का इस्तेमाल तभी किया जाता है जब ऐसा लगता है कि शोध में किये गये परीक्षण वा इलाज अभी किये जाने वाले (सामान्य स्तर के) इलाज से बेहतर सिद्ध हो सकते हैं। नैदानिक परीक्षण में किये जाने वाले इलाज अधिकतर लाभदायक साबित हुए हैं। अगर ऐसा होता है तो उसी चिकित्सा को सामान्य चिकित्सा के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। नैदानिक परीक्षण के द्वारा निम्नलिखित वस्तुओं के बारे में खोज की जाती है-
शोधकर्ता नये इलाज के द्वारा इन प्रश्नों के बारे में अध्यन करते हैं-
नैदानिक परीक्षण में हिस्सा लेना[संपादित करें]अगर आप नैदानिक परीक्षण का हिस्सा हैं तो विशेषज्ञों की एक टोली आपका ध्यान रखेगी वा आपकी प्रगति पर विशेष ध्यान रखेगी। आप चिकित्सक के पास अधिक जाएंगे वा प्रयोगशाला में जांच भी सामान्य स्तर से अधिक होगी। नैदानिक परीक्षण से कुछ खतरे भी हैं। किसी को भी यह पहले से पता नहीं होता कि यह इलाज काम करेगा की नहीं, या इससे होनेवाले दुष्प्रभाव क्या होंगे। वास्तव में इन्हीं चीजों का पता करना नैदानिक परीक्षण का उद्देश्य होता है। जबकि अधिकतर दुष्प्रभाव समय के साथ समाप्त हो जाते हैं, कुछ बहुत समय तक रहते हैं या जीवन के लिए खतरनाक साबित हो सकते हैं। किन्तु यह भी नहीं भूलना चाहिए कि सामान्य इलाज में भी ऐसा ही हो सकता है।[2] नैतिक मुद्दे[संपादित करें]नैदानिक परीक्षण से संबंधित नैतिक मुद्दों को निम्नलिखित रूप में देखा जा सकता है-
सन्दर्भ[संपादित करें]
इन्हें भी देखें[संपादित करें]
बाहरी कड़ियाँ[संपादित करें]नैदानिक का मतलब क्या होता है?नैदानिक परीक्षण या क्लीनिकल ट्रायल, मानव स्वयंसेवियों पर किए जाने वाले प्रयोग होते हैं जिनमें दवाओं या नई सर्जिकल कार्यविधियों की मदद से रोगों की रोकथाम करने, उनका पता लगाने, या उपचार करने के तरीकों पर नज़र डाली जाती है।
नैदानिक विधि क्या है?केस इतिहास विधि एक ऐसी विधि है जिसका प्रयोग शिक्षा मनोवैज्ञानिक कुसमायोजित बालकों तथा विचलित बच्चों की समस्याओं के अध्ययन मे करते है। इस विधि द्वारा अपराधी बालकों की समस्याओं का भी विशिष्ठ अध्ययन किया जाता है।
नैदानिक कौन है?नैदानिक मनोवैज्ञानिक अब मनोचिकित्सा के विशेषज्ञ माने जाते हैं, तथा वे सामान्यतः चार प्रमुख प्राथमिक सैद्धांतिक अभिमुखन- मनोगतिकी, मानविकी, व्यवहार उपचार/संज्ञानात्मक स्वभावजन्य तथा प्रणालियों या पारिवारिक उपचारों में प्रशिक्षित होते हैं।
नैदानिक मूल्यांकन का क्या अर्थ है?कोलमैन एवं ब्रायेन (1972) के अनुसार, "नैदानिक मूल्यांकन का उद्देश्य व्यक्ति या समूह के कुसमायोजी व्यवहार के स्वरुप तथा गम्भीरता की पहचान और उन दशाओं के समझने से है जिनके 2 Page 3 कुसमायोजी व्यवहार उत्पन्न हुआ है तथा जो उसे बनाये रखने में सहायक है।" .
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