नागरिक चार्टर Show बोर्ड की स्थापना एवं कृत्य : भारत सरकार द्वारा जन स्वास्थ की समग्र सुरक्षा के उद्देश्य एवं प्रदूषण की गम्भीरता की दृष्टिगत रखते हुए प्रदूषण जनित समस्याओं के प्रभावी निराकरण हेतु अधिनियमित जल (प्रदूषण निवारण तथा नियंत्रण अधिनियम 1974 की धारा 4 के प्राविधानों के अन्तर्गत राज्य सरकार द्वारा 3, फरवरी 1975 को उत्तर प्रदेश जल प्रदूषण निवारण तथा नियंत्रण बोर्ड का गठन किया गया। वर्ष 1981 में भारत सरकार द्वारा वायु (प्रदूषण निवारण तथा नियंत्रण) अधिनियम, 1981 अधिनियमित किया गया। इस अधिनिमय के अन्तर्गत गठित राज्य बोर्ड को ही वायु प्रदूषण के निवारण तथा नियंत्रण का दायित्व सौंपा गया। 13 जुलाई, 1982 से राज्य सरकार द्वारा उक्त बोर्ड का नाम बदलकर 'उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड' विनिर्दिष्ट कर दिया गया। राज्य बोर्ड के वित्तीय संसाधन सुदृढ़ करने के उद्देश्य से भारत सरकार द्वारा जल (प्रदूषण निवारण तथा नियंत्रण) उपकर अधिनियम, 1977 पारित किया गया। भारत सरकार द्वारा पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 भी अधिनियमित किया गया जिसके अन्तर्गत विहित प्राविधानों के अनुसरण में तत्सम्बन्धी शक्तियों भी भारत सरकार द्वारा राज्य बोर्ड को प्रत्यायोजित की गयी। प्रदेश में प्रदूषण की रोकथाम के लिए लखनऊ स्थित मुख्यालय के अतिरिक्त 27 क्षेत्रीय कार्यालयों एवं उनके क्षेत्रों का निर्धारण किया गया। प्रमुख दायित्व एवं कर्तव्य :
उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड प्रदेश के उद्यमियों एवं जनता को जल, वायु व पर्यावरणीय अधिनियमों के प्राविधानों की जानकारी देने के साथ-साथ लोगों के स्वास्थ्य पर प्रदूषण के हानिकारक प्रभावों के सम्बन्ध में उन्हें जागरूक बनाने के लिए लोक भागीदारी के प्रयास भी किए जा रहे है। नागरिकों की शिकायतों एवं उनके सुझावों का त्वरित रूप से निस्तारण किए जाने हेतु नागरिक चार्टर बनाया जा रहा है जिससे बोर्ड द्वारा किए जा रहे कार्यों का फीड बैक एवं नागरिकों को समस्याओं का समयानुसर निदान किया जा सके। बोर्ड का यह प्रयास रहेगा कि वह नागरिक चार्टर के अनुरूप अपने दायित्वों का निर्वाह करे वही नागरिकों का भी यह दयित्व है कि वह बोर्ड के प्रयासों में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करें तथा जन जागरूकता प्रयासों में अपनी सहभागिता का भाव जागृत करे। भारत सरकार द्वारा प्रदूषण की रोकथाम हेतु अधिनियमित नियमों/अधिनियमों को प्रभावी बनाये जाने के लिए नागरिकों की साझेदारी स्वत: सुनिश्चित होनी चाहिए। नागरिक चार्टर के सिद्धान्त :
उद्योगों को सहमति प्रदान करना : जल (प्रदूषण निवारण तथा नियंत्रण) अधिनियम, 1974 एवं संशोधित जल अधिनियम के प्राविधानों के अनुसार उद्योगों एवं स्थानीय निकायों को जो अपने उत्प्रवाहों को सरिता/भूमि या सीवर में छोड़ रहे है को बोर्ड द्वारा निर्धारित प्रपत्र पर निर्धारित शुल्क के साथ आवेदन करने के उपरान्त सहमति प्राप्त कर लेना अनिवार्य है। आवेदन पत्र को बोर्ड में प्राप्ति की दिनांक से 4 माह के अन्दर निस्तारित किए जाने का प्राविधान अधिनियम में किया गया है। आवेदन के निस्तावरण में यह भी जॉच की जाती है कि उद्योग में आवश्यक शुद्धिकरण व्यवस्था है तथा उत्प्रवाह शुद्धिकृत होकर बोर्ड द्वारा निर्धारित मानकों के अनुरूप निस्तारित हो रहा है अथवा नही। इस समबन्ध में बोर्ड द्वारा किये गये किसी भी आदेश के विरूद्ध तीस दिन के अन्दर अपीलीय प्राधिकारी के समक्ष अपील की जा सकती है। वायु (प्रदूषण तथा नियंत्रण) अधिनियम, 1981 एवं संशोधित अधिनियम के प्राविधानों के अन्तर्गत किसी भी उद्योग को चलाने तथा चलाने तथा उसके द्वारा वायु मण्डल में उत्सर्जन के लिए किसी नयी या परिवर्तित चिमनी को उपयोग में लाये जाने के लिए या चिमनी से वायु मण्डल में उत्सर्जन जारी रखने लिए बोर्ड से निर्धारित आवेदन पत्र पर निर्धारित शुल्क के साथ सहमति कर लेना अनिवार्य है। आवेदन पत्र को बोर्ड में प्राप्ति की दिनांक से 4 माह के अन्दर निस्तरित किए जाने का प्राविधान अधिनियम में किया गया है। बोर्ड द्वारा द्वारा किये गये किसी भी आदेश के विरूद्ध तीस दिन के अन्दर अपीलीय प्राधिकारी के समक्ष अपील की जा सकती है। सहमति निस्तारण हेतु वैद्यता तथा निस्तारण में लगने वाले समय का विवरण निम्न तालिका में दिया गया है :-
जल, वायु एवं ध्वनि प्रदूषण से संबन्धित मानक बोर्ड की वेबसाइट www.uppcb.com पर उपलब्ध है। नये उद्योगों को अनापत्ति प्रमाण पत्र : प्र देश में नए लगाये जाने वाले उद्योगों तथा वर्तमान उद्योगों में उत्पादन प्रक्रियाध्परिवर्तनध्आधुनिकीकरणध् क्षमता विस्तार के लिए यह व्यवस्था की गयी है कि उद्यमी उद्योग लगाने से पूर्व बोर्ड से पर्यावरणीय प्रदूषण के दृष्टिकोण से अनापत्ति प्रमाण पत्र प्राप्त कर लें। आनापत्ति प्रमाण पत्र निर्गत किए जाने का प्रमुख उद्देश्य यह है कि जिस स्थान पर उद्योग लगाया जाना प्रस्तावति हैए वहॉ उसकी स्थापना से पर्यावरण प्रदूषण की समस्या और अधिक उग्र न हो जाये। सरलीकरण व प्रति निधायन की प्रक्रिया के अन्तर्गत बोर्ड के पत्र संख्या F 77184/CT/सामान्य नोडल-347/2016 दिनांक 18.04.2016 के द्वारा प्रदूषण के आधार पर उद्योगों को वर्गीकृत किया गया है, उक्तानुसार लाल श्रेणी साठ प्रकार के उद्योगों, नारंगी श्रेणी में 83 प्रकार के उद्योगों तथा हरी श्रेणी में 63 एवं सफेद श्रेणी में 36 प्रकार के उद्योगों को चिन्हित किया गया है। बोर्ड द्वारा लाल श्रेणी के प्रदूषणकारी उद्योगों के आवेदन पत्रों का निस्तारण बोर्ड में पूर्ण सूचना प्राप्त की तिथि से 04 माह के अन्दर तथा शेष का 01 माह के अन्दर कर दिया जाता है।
औद्योगिक प्रदूषण नियंत्रण हेतु कार्यवाही : प्रमुख प्रदूषणकारी उद्योगों में शुद्धिकरण व्यवस्था स्थापित किए जाने के उद्देश्य से वर्ष 1990 में एक कार्ययोजना तैयार की गयी। जिसमें 17 श्रेणी के अतिप्रदूषणकारी उद्योगों को सम्मिलित किया गया था। इस कार्ययोजना के अन्तर्गत इस श्रेणी के चिन्हित 224 उद्योगों को 21-12-1993 तक प्रदूषण नियंत्रण व्यवस्था स्थापित किए जाने के निर्देश दिये गये थे। इसके अन्तर्गत बृहद एवं मध्यम श्रेणी के 224 चिन्हित उद्योगों में से 180 उद्योगों में जल प्रदूषण तथा वायू प्रदूषण नियंत्रण दोनों ही व्यवस्थायें स्थापित कर ली गयी है। 41 उद्योग बन्द है, 3 दोषी उद्योगों को केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के अन्तर्गत कार्यवाही की जा रही है। अति प्रदूषणकारी उद्योगों में प्रदूषण नियंत्रण संयंत्र स्थापित करवाने के उद्देश्य से 1997 में प्रारम्भ की गयी कार्ययोजना के अर्न्तगत बोर्ड द्वारा प्रदेश में 454 अत्यन्त प्रदूषणकारी उद्योगों को चिन्हित किया गया है। बोर्ड के प्रयासों से 335 उद्योगों द्वारा शुद्धिकरण संयंत्र लगा लिये गये है। 112 उद्योग बन्द है तथा 07 दोषी उद्योगो में शुद्धिकरण संयंत्र लगवाये जाने की कार्यवाही की जा रही है। संयुक्त शुद्धिकरण संयंत्र : प्रदेश के विभिन्न स्थानों पर लघु उद्योग समूओं में स्थापित होते है। जिनमें प्रत्येक उद्योग में शुद्धि करण संयंत्र लगाया जाना सम्भव नहीं हो पाता है। इसे दृष्टिगत रखते हुए लघु औद्योगिक इकाइयों से निस्तारित होने वाले उत्प्रवाह के शुद्धिकरण हेतु संयुक्त उत्प्रवाह शुद्धिकरण संयंत्रों की स्थापना की गयी है। इसमें 25 प्रतिशत राज्य सरकार , 25 प्रतिशत केन्द्र सरकार, 30 प्रतिशत बैंक (- . के रूप में) तथा शेष 20 प्रतिशत सहभागी उद्योगों का अंश है। जल प्रदूषण नियंत्रण हेतु उत्तर प्रदेश में तीन संयुक्त उत्प्रवाह शुद्धिकरण संयंत्रो (सी०ई०टी०पी०) की स्थापना निम्नानुसार की गयी है : उन्नाव में. औद्योगिक क्षेत्र साइट-II एवं बन्थर औद्योगिक
क्षेत्र-टैनरी समूह के लिए। जल एवं वायु गुणता का अनुश्रवण : बोर्ड मुख्यालय, लखनऊ में एक केन्द्रीय प्रयोगशाला तथा 21 क्षेत्रीय प्रयोगशालायें स्थापित हैं। प्रयोगशालाओं द्वारा वर्तमान में औद्योगिक उत्प्रवाहों के नमूने, नादियों, नालों के नमूने, परिवेशीय वायु गुणवत्ता तथा ध्वनि प्रदूषण के अनुश्रवण का कार्य सम्पादित किया जाता हैं। इन कार्यो के अतिरिक्त बोर्ड द्वारा अन्य महत्वपूर्ण परियोजनाओं के अन्तर्गत भी जल श्रोतों का अनुश्रवण तथा परिवेशीय वायु गुणता का अनुश्रवण किया जा रहा है। एन0डब्ल्यू0एम0पी0 (नेशनल वाटर क्वालिटी माॅनिटरिंग प्रोग्राम-पूर्व नाम मीनार्स) इस परियोजना के अन्तर्गत प्रदेश की विभिन्न नादियों एवं अन्य जल óोतों के 53 चिन्हित स्थलों पर बुलन्दशहर, कन्नौज, प्रतापगढ़, कौशाम्बी, मिर्जापुर, गाजीपुर, मुजफ्फरनगर, मेरठ, उन्नाव, जौनपुर, सहारनपुर, नोएडा, सीतापुर, लखनऊ, फैजाबाद, मथुरा, वृन्दावन, सोनभद्र, गोरखपुर, देवरिया, हमीरपुर, ललितपुर एवं झांसी जनपद में जल गुणता अनुश्रवण का कार्य प्रत्येक माह में एक बार किया जाता है। जिससे विभिन्न नदियों की जल गुणता की जानकारी प्राप्त हो सके। यह परियोजना केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्डए दिल्ली द्वारा वित्त पोषित है। एन0आर0सी0पी0(नेशनल रिवर कन्र्जवेशन प्लान) इस परियोजना के अन्तर्गत यमुना, गोमती एवं हिण्डन नदी की जलगुणता अनुश्रवण का कार्य प्रदेश के कुल 26 चिन्हित स्थानों पर (इटावा, सीतापुर, लखनऊ, बाराबंकी, सुलतानपुर, जौनपुर, सहारनपुर, मेरठ, गाजियाबाद एवं नोएडा जनपद) प्रत्येक माह में एक बार किया जा रहा है। यह परियोजना भी केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा वित्त पोषित है। नाकम (नेशनल एम्बिऐट एअर क्वालिटी मॉनीटरिंग) परियोजना : इस परियोजना के अन्तर्गत प्रदेश के 21 जनपदों ( लखनऊ, कानपुर, वाराणसी, इलाहाबाद, गाजियाबाद, नोएडा, हापुड, बरेली, फिरोजाबाद, उन्नाव, आगरा, रायबरेली, गोरखपुर, सहारनपुर, सोनभद्र, गजरौला, झांसी, खुर्जा, मेरठ, मुरादाबाद एवं मथुरा) के 62 चिन्हित स्थलों पर परिवेशीय वायु गुणवत्ता का अनुश्रवण कार्य सम्पादित किया जाता है। यह परियोजना भी केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्डए दिल्ली एवं उ0प्र0 प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा 50: 50 प्रतिशत वित्त पोषित है। इस योजना में विभिन्न स्थलों की वायु गुणवत्ता की स्थिति की जानकारी प्राप्त होती है। परिसंकटमय अपशिष्ट व अन्य अपशिष्ट (प्रबन्ध व सीमापर संचालन) नियम 2016 प्रदेश में परिसंकटमय अपशिष्ट जनित करने वाले उद्योगों को बोर्ड से उक्त नियमावली के अन्तर्गत प्राधिकार प्राप्त करना आवश्यक है। जिसके लिए निर्धारित आवेदन पत्र पूर्ण विवरण के साथ व आवेदन शुल्क के साथ बोर्ड में आवेदन करना होता है। प्राधिकार आवेदन पत्र का बोर्ड में प्राप्ति की तिथि से 3 माह के अन्दर निस्तारण किया जाता है। प्रमुख परिसंकटमय अपशिष्ट जनित करने वाले उद्योगों को पांच वर्ष वर्ष की वैद्यता का प्राधिकार स्वीकृत किया जाता है। अपशिष्ट के सामूहिक व्ययन स्थलों का चयन प्रारम्भ किया गया है। जहॉ पर उद्यमी या उनकी संस्था द्वारा सामूहिक अपशिष्ट निस्तारण की व्यवस्था करेगें ताकि परिसंकटमय अपशिष्ट का निस्तारण पर्यावरण संरक्षण को ध्यान में रखते हुए किया जाय। अपशिष्ट के सामूहिक व्ययन स्थलों का चयन प्रारम्भ किया गया है। जहॉ पर उद्यमी या उनकी संस्था द्वारा सामूहिक अपशिष्ट निस्तारण की व्यवस्था करेगें ताकि परिसंकटमय अपशिष्ट का निस्तारण पर्यावरण संरक्षण को ध्यान में रखते हुए किया जाय। परिसंकटमय रसायनों का विनिर्माण, भण्डारण एवं आयात नियम, 1989 : इस अधिनियम के अन्तर्गत प्रदेश में परिसंकटमय रसायनों के एकल भण्डारणों (आइसोलेटेड स्टोरेज)के चिन्हिकरण, उद्योग में रसायनों के सुरक्षित रख रखाव व दुर्घटना की दशा में आकस्मिता से निपटने के लिए आन साइट आपदा प्रबन्धन योजना, सेफ्टी (सुरक्षा)डाटा शीट तैयार करवाने, एकल भण्डारणों द्वारा अपनायी गयी सुरक्षात्मक व्यवस्थाओं का समय-समय पर निरीक्षण कर जॉच कराने एवं अधिनियम के विभिन्न प्राविधानां का अनुपालन सुनिश्चित करवाने संबंधी कार्य किये जाते है। ध्वनि प्रदूषण की रोकथाम : भारत सरकार द्वारा पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम 1986 एवं इससे संबंधित नियमावली के अन्तर्गत ध्वनि प्रदूषण (विनियमन और नियंत्रण) नियमए 2000 बनाया गया है। इस नियम में अस्पतालों, शैक्षिक संस्थाओं और न्यायालयों के आस-पास कम से कम 100 मीटर तक के क्षेत्र को शान्त क्षेत्र/परिक्षेत्र घोषित किया गया है। उक्त अधिनियम के कार्यान्वयन हेतु प्रत्येक जनपद में एक उडनदस्ते का गठन किया गया है जिसके निम्नलिखित सदस्य होंगे :-
प्लास्टिक सामग्री/पालीथीन बैगों का विनिर्माण व पुन: चक्र। : भारत सरकार द्वारा पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के अन्तर्गत पुन: चक्रित प्लास्टिक कैरी बैगों एवं पात्रों के विर्निमाण और उपयोग के लिए नियम अधिसूचति किये गये है। जिसके अन्तर्गत उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को प्लास्टिक सामग्री/पॉलीथीन बैग के विर्निमाण एवं पुन: चक्रण के संबंध में विहित प्राधिकारी बनाया गया है। जिसके अनुसार कोई विक्रेता पुन: चक्रित प्लास्टिक से बने कैरी बैगों या पात्रों का खाद्य पदार्थो के भण्डारण, लाने, ले जाने, प्रदाय करने या पैकेजिंग के लिए उपयोग नहीं करेगा। साथ ही उक्त उपबन्धों के अधीन रहते हुए कोई व्यक्ति उक्त अधिनियम में उल्लिखित शर्तो को पूरा करता है तो प्लास्टिक से बने कैरी बैगों और पात्रों का विनिर्माण कर सकेगा। उपरोक्त अधिनियम का अनुपालन न करना पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के प्राविधानों के अन्तर्गत दण्डनीय अपराध है। इस सम्बन्ध में बोर्ड द्वारा उचित निर्देश भी दिये जा सकते है जिनमें उत्पादन को बन्द किये जाने तथा इकाई की बिजली एवं पानी विच्छेदन के निर्देश भी सम्मिलित है। प्रदेश में बढती हुई पॉलीथीन समस्या की दृष्टिगत हुए प्रथम चरण में लखनऊ में पालीथीन जनजागरूकता अभियान चलाया गया जिसमें जनता को पालीथीन के दुष्प्रभावों की जानकारी दी गयी तथा जनता से पालीथीन के स्थान पर कागज व कपड़े के थैले के प्रयोग करने हेतु अनुरोध किया गया। ओजोन अवक्षयकारी प्रदार्थ (विनियमन और नियंत्रण) नियम, 2000 : भारत सरकार के पर्यावरण एवम् वन मंत्रालय द्वारा पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए ओजोन अवक्षयकारी प्रदार्थो के विनियमन के लिए ओजोन अवक्षयकारी पदार्थ (विनियमन ओर नियंत्रण) नियम, 2000 अधिसूचित किया गया है, जो दिनांक 19 जुलाई, 2000 से लागू हो गये है। इन नियमां में नियमों में विभिन्न प्रतिबन्धों एवं दायित्यवों के साथ-साथ ओजोन अवक्षयकारी पदार्थो के फेज आऊट करने की समय-सीमा निर्धारित की गयी है जिसका अनुपालन किया जाना प्रत्येक संबंधित के लिए आवश्यक है। नियमों की अवहेलना पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के अन्तर्गत दण्डनीय अपराध है। ऐसी समस्त इकाइयों जो ओजोन अवक्षयकारी पदार्थ प्रयोग करती है, जो फेज आऊट करने हेतु भारत सरकार में वित्तीय सहायता देने हेतु मल्टी लेर्टल फण्ड की भी व्यवस्था है, जिसके लिए आवश्यक है कि संबंधित इकाइयों विस्तृत विवरण के साथ भारत सरकार के पर्यावरण एवं वन मंत्रालय, ओजोन सेल, के निदेशक से अथवा राज्य सरकार से सम्पर्क कर सकती है। उपयुक्त, नियम, 2000, बेबसाइट www. emefor.nic.in पर भी उपलब्ध हैं। प्रदूषण नियंत्रण हेतु तकनीकी कोष्ठ की स्थापना : प्रदेश में औद्योगिकीकरण से सम्भावित प्रदूषण नियंत्रण हेतु बोर्ड द्वारा उद्योगों को तकनीकी मार्ग दर्शन/सलाह दिये जाने के उद्देश्य से बोर्ड मुख्यालय पर "प्रदूषण नियंत्रण तकनकी कोष्ठ" की स्थापना की गयी है इस कोष्ठ द्वारा उद्योग की स्थापना हेतु स्थल चयन, शुद्धिकरण संयंत्र, संयुक्त शुद्धि कारण संयंत्र की स्थापना, लाभ तथा संचालन के सम्बन्ध में उचित तकनकी सलाह देना, परिसंकटमय अपशिष्ट एवं उत्प्रवाह निस्तारण हेतु मार्ग-दर्शन प्रदान किया जाता है। कोष्ठ द्वारा विभिन्न उद्योगों को उनसे संबंधित सभी प्राथमिक सूचनाऍ उपलब्ध करायी जाती है। इसके अतिरिक्त अन्य औद्योगिक प्रदूषण एवं पर्यावरण संबंधी समस्याओं के निदान की तकनीकी जानकारी उपलब्ध करायी जाती है। कोष्ठ का सदस्य :
उक्त के सम्बन्ध में किसी भी प्रकार की सूचना बोर्ड के पिकप भवन गोमती नगर, लखनऊ स्थित कार्यालय से प्राप्त की जा सकती है। हेल्प लाइन सेवा : प्रदेश की जनता से सीधा संवाद बनाने एवं प्रदूषण की समस्याओं के समाधान में जनता की भागदारी सुनिश्चित करने के उद्देश्य से बोर्ड द्वारा लखनऊ स्थित मुख्यालय पर हेल्प लाइन सेवा जिसका दूरभाष नम्बर-0522-394739 है, प्रारम्भ की गयी है। इस संबंध में जानकारी हेतु प्रदेश के विभिन्न समाचार पत्रों में इसकी सूचना भी प्रकाशित करवायी गयी हैं। इस सेवा में जनता द्वारा 24 घन्टे में किसी भी समय जल, वायु व ध्वनि प्रदूषण से सम्बन्धित शिकायता जो कि बोर्ड के कार्यक्षेत्र की परिधि में आती है, को दर्ज कराया जा सकता है। बोर्ड द्वारा परिवहन विभाग व नगर से संबंधित शिकायतों के निराकरण हेतु उक्त विभागों से समन्वय किया जाता है। बोर्ड की हेल्पलाइन सेवा में दिनांक 15.10.2001 तक कुल 248 शिकायतें प्राप्त हुई। जिनमें से 82 शिकायतें परिवहन विभाग से संबंन्धित हैं। संभागीय परिवहन अधिकारी, लखनऊ
द्वारा 37 शिकायतों का निस्तारण किया गया हैं। नगर विकास विभाग से संबन्धित 21 शिकायतों में से 3 शिकायतों का निस्तारण नगर निगम, लखनऊ द्वारा किया गया हैं। बेब साइट : बोर्ड द्वारा जन जागरूकता हेतु बेब साइट www.uppcb.com इन्टरनेट पर होस्ट की गयी है जिसमें बोर्ड से संबंधित समस्त जानकारी करायी गयी है। बोर्ड की ई-मेल . सेवा भी उपलब्ध है। इस सेवा में प्रदूषण से संबंधित किसी भी शिकायत को वेब साइट पर दिया जा सकता है। पारदर्शिता हेतु उठाया गया कदम : उत्तर प्रदेश प्रदूषण बोर्ड के क्षेत्रीय कार्यालयों से सम्बन्धित किसी भी शिकायत / अनियमितता के विषय में बोर्ड के भवन संख्या टी० सी० - 12, वी०, विभूति खण्ड, गोमती नगर, लखनऊ में निम्न अधिकारियों से सम्पर्क किया जा सकता है:
नदी प्रदूषण रोकने के लिए हमें क्या करना चाहिए?नदी किनारे बसे लोगों को नदी में गंदे कपड़े नहीं साफ करने चाहिए। क्योंकि गंदे व दूषित कपड़े के रोगाणु पानी में दूर-दूर तक फैलकर बीमारी फैला सकते हैं। नदी में डिटर्जेट पाउडर, साबुन का प्रयोग और जलीय जीवों के शिकार से परहेज करना चाहिए। क्योंकि नदी के जीवों जैसे मछली, कछुआ, घड़ियाल, मेढ़क आदि प्रदूषण को दूर करते हैं।
जल प्रदूषण को कैसे रोका जा सकता है?जल प्रदूषण, जानकारी ही बचाव है. औद्योगिक और शहरी कचरे का निपटारा ... . नियम हों सख्ती से लागू ... . जल पुनर्चक्रण ... . मिट्टी के कटाव की रोकथाम ... . स्वच्छ भारत अभियान हो सकता है एक जरिया ... . जलस्रोतों एवं समुद्र तटों की सफाई ... . जैविक खेती को अपनाने की है आवश्यकता ... . जल प्रदूषण नियंत्रण के अन्य तरीकों पर एक नजर. नदियों की सुरक्षा के लिए कौन कौन से उपाय किए जा रहे हैं?नदियों को छिछली (उथली) होने से बचायें। नदियों के किनारों पर सघन वृक्षारोपण किया जाये जिससे किनारों पर कटाव ना हो। नदियों का पानी गन्दा होने से बचाये, मसलन पशुओं को नदी के पानी मे जाने से रोके। गांव व शहरों का घरेलू अनुपचारित पानी नदी में नही मिलने दे।
भारत में नदियों को प्रदूषण से बचने के लिए कौन सी योजना चलाई गई?अतः गंगा की सफाई एक आर्थिक एजेंडा भी है”। इस सोच को कार्यान्वित करने के लिए सरकार ने गंगा नदी के प्रदूषण को समाप्त करने और नदी को पुनर्जीवित करने के लिए 'नमामि गंगे' नामक एक एकीकृत गंगा संरक्षण मिशन का शुभारंभ किया।
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