पिता की भूमिका क्या होती है? - pita kee bhoomika kya hotee hai?

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फिर बात करेंगे परिवार में जो है वह पिता की क्या भूमिका होती है तो पिता को जो है वह जल के समान मान सकते हैं यानी कि जिस तरीके से जड़ पूरे पेड़ को अपने साथ जोड़े रखती है जिसके कारण कीपैड का फाउंडेशन बहुत ज्यादा मजबूत हो जाता है और वह कभी पेट को गिरने नहीं देती है तो उसे कैसे पता भी होते हैं जो कि पूरे खानदान की पूरे परिवार की अपने साथ में रिस्पांसिबिलिटीज लेते हैं और जिनके कारण ही जो है वह पूरे परिवार के लालन और पोषण होता है क्योंकि उन्हीं के कारण जो है वह पूरा परिवार एकजुट रहता है जितने भी उनकी नींद होती है जितने दिन के डिमांड होता है हर कुछ जो है वह पिता ही पूरा करता है और घर में सबसे कठोर इंसान की जो है वह पैदा ही होता है कभी-कभी ऐसी डिसीजन लेने पड़ते हैं जो कि होते बहुत ज्यादा कठोर है पर वह पूरे शामली के हित के लिए ही लेने पड़ते हैं

phir BA at karenge parivar mein jo hai wah pita ki kya bhumika hoti hai toh pita ko jo hai wah jal ke saman maan sakte hai yani ki jis tarike se jad poore pedh ko apne saath jode rakhti hai jiske kaaran keypad ka foundation BA hut zyada majboot ho jata hai aur wah kabhi pet ko girne nahi deti hai toh use kaise pata bhi hote hai jo ki poore khandan ki poore parivar ki apne saath mein rispansibilitij lete hai aur jinke kaaran hi jo hai wah poore parivar ke lalan aur poshan hota hai kyonki unhi ke kaaran jo hai wah pura parivar ekjoot rehta hai jitne bhi unki neend hoti hai jitne din ke demand hota hai har kuch jo hai wah pita hi pura karta hai aur ghar mein sabse kathor insaan ki jo hai wah paida hi hota hai kabhi kabhi aisi decision lene chahiye padte hai jo ki hote BA hut zyada kathor hai par wah poore shamili ke hit ke liye hi lene chahiye padte hain

फिर बात करेंगे परिवार में जो है वह पिता की क्या भूमिका होती है तो पिता को जो है वह जल के स

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पिता की भूमिका क्या होती है? - pita kee bhoomika kya hotee hai?
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परवरिश और पिता की भूमिका बच्चे की परवरिश में माँ की अहम भूमिका है। अपने बचपन से हम सबने यही देखा और सीखा। बेशक माँ बच्चे के अस्तित्व और चरित्र निर्माण का एक अहम हिस्सा है। पर जीवन में अनगिनत या कहूँ सदा ही एक युवा में जितनी छवि माँ के संस्कारों की होती है उससे भी ज्यादा पिता की होती है।

आज का मेरा लेख महिलाओं से भी ज्यादा पुरुषों के लिए है तो आप चाहें तो इसे अपने किसी भी पुरुष मित्र या संबंधी के साथ साझा करने के लिए स्वतंत्र हैं।

प्रिय पुरुष, 

सबसे पहले तो मैं तुम्हे बता दूं कि सच में तुम महान हो क्योंकि इस अपेक्षाओं भरे संसार में तुम भी हर दिन अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहे हो जहां सामाजिक रचना तुम्हे कमजोर पड़ने की आज़ादी भी नहीं देती। 

हम मनुष्यों की एक बड़ी खूबी है कि हममें बेहतरीन से भी बेहतर होने की गुंजाइश हमेशा बनी रहती है। इसलिए बतौर एक पिता हमारी क्या भूमिका है और उसे और बेहतर रूप में कैसे निभाया जा सकता है इसपर हम बात कर सकते हैं।

हम सब चाहते हैं कि हमारा बच्चा अच्छे विचारों वाला, हर काम को बेहतरी से करने की क्षमता वाला और सुनियोजित हो। इसके लिए यहाँ-वहाँ, यार दोस्तों के बच्चों, दुनिया भर में उस उम्र के खास मुकाम हासिल कर चुके बच्चों के उदाहरणों का महाज्ञान हम किसी भी मौके पर उन्हें देने से नहीं चूकते। इस सिलसिले में हम परवरिश का एक खास नियम अपनी सुविधानुसार थोड़ा तोड़ मरोड़कर अपना लेते हैं जो है "teaching by example" आप लाख जतन कर लें पर अगर आप अपने आज में कोई सीख अपना नहीं रहे तो कितना भी जुबान का इस्तेमाल कर लें, भले डर से आपके सामने बच्चा आपका कहा मान ले पर वह जीवन की पक्की सीख कभी हो ही नहीं सकती।

जरा छोटे उदाहरणों से समझिए:

  • पिता बच्चे को सख्ती से मोबाइल से दूर रहने की सलाह देते हैं पर खुद की आंखें स्क्रीन पर टिकी रहती हैं। अब हमारे पास इसकी कितनी भी जरूरी वजहें हों पर बच्चा कारण नहीं परिणाम ही देख और समझ रहा है।
  • जब बच्चों को जल्दी उठने की सलाह देते हैं तो खामोश निगाहें आपकी तरफ एक सवाल के साथ देख रही होती हैं कि अगर सुबह उठना अच्छा है तो हम साथ ये अच्छा काम क्यों नही करते।
  • जब अति व्यस्तता के बाद भी कुछ समय अखबार या टी. वी. समाचार को दिया जा सकता है तो अपने मासूम के साथ एक अच्छी किताब के चार पन्नो को भी यकीनन दिया जा सकता है।
  • जब हम अपने बच्चे से बड़ों के आदर और नमस्ते या पैर छूने की अपेक्षा करते हैं तो उनसे पहले वह हम अपने आचरण में लाते हुए हिचकते क्यों हैं।
  • बच्चों को जब आने वाले कल की ऊंच नीच का डट कर सामना करना सीखना है तो आज अपने जीवन की बाधाओं का सामना हम किस अंदाज से करें इसके लिए सजग रहना हमारा कर्तव्य है।
  • हर तबके की औरत को आपका लड़का या लड़की किस नज़र से देखेगा और व्यवहार में कितना शालीन होगा यह आपका आज का व्यवहार तय करेगा।
दोस्तों परवरिश एक कभी अंत ना होने वाली यात्रा है। यह एक बोझ नहीं बल्कि मनुष्य रूप में परमात्मा हो सकने का मौका है। आपकी मृत्यु शैया तक आपका बच्चा आपके आचरण को बिना आपके कहे अपने चरित्र का हिस्सा बनाता है। जिसे ठीक उस समय आप भले महसूस ना कर सकें पर अंततः बनना उसे आपका आईना ही है। 

तो कोशिश कीजिये कि आपके बच्चों के भविष्य निर्माण का पूरा जिम्मा उसकी माँ को ना सौप उनका हमकदम बन बच्चे की परवरिश करें। 

परिवार में पिता की भूमिका क्या है?

जीवन में पिता की बहुत अहम भूमिका होती है. परिवार की सारी जरुरतों को पूरा करने के लिए पिता दिन-रात काम करता है. पिता परिवार का पालने के लिए घर से बाहर रहकर ना जाने कितने समझौता करता हैं. इतना ही नहीं पिता को भारतीय संस्कृति में घर का मुखिया या संरक्षक कहा जाता है.

माता पिता की भूमिका क्या होती है?

माता- पिता बच्चे के प्रथम शिक्षक या गुरु होते है। माता-पिता बच्चे को जन्म ही नहीं देते बल्कि वे उन्हे पाल-पोषकर बड़ा करते है। माता-पिता एक बच्चे को बोलना, चलना, तथा उन्हे सभी संस्कार सिखाते है। हमे अपने माता पिता द्वारा बताये गये रास्ते पर चलना चाहिए।

पिता का जीवन में क्या महत्व है?

जीवन में पिता का होना बहुत जरूरी होता है, पिता से ही बच्चों की पहचान है। उनका प्रेम अनमोल होता है, माता पिता के आशीर्वाद से दुनिया की बड़ी से बड़ी कामयाबी हासिल की जा सकती है। कोई भी समस्या हो उसका समाधान पिता के पास होता है, बच्चों को पिता की महत्ता का पता जब वे खुद माता पिता बनते हैं, तो और अधिक होता है।

पिता की जिम्मेदारी क्या होती है?

उसे खुशी और प्रेम के साथ बड़ा करना और साथ ही साथ समाज के कंटकों से सुरक्षा प्रदान करना, जिस की उनको जरूरत होती है । सच में एक पिता को उसके जिम्मेदारियों का एहसास ही एक बेटी करवाती हैं । बेटी पिता के लिए सब कुछ होती हैं। जब बेटी बड़ी होती है तो हर छोटी छोटी चीजों की आवश्यकता की पूर्ति करना एक पिता का दायित्व होता हैं।