पातालकोट के लोग कैसे रहते हैं? - paataalakot ke log kaise rahate hain?

  • Hindi News
  • Local
  • Mp
  • Chhindwara
  • Patalkot Valley (Chhindwara): Reality And Facts About Patalkot Valley In Madhya Pradesh Chhindwara

भोपाल8 महीने पहलेलेखक:  संदीप राजवाड़े

  • कॉपी लिंक
  • वीडियो

MP के पातालकोट (छिंदवाड़ा) को लेकर इंटरनेट पर तमाम रहस्यमयी कहानियां तैरती मिल जाएंगी, पर क्या वाकई ऐसा है। कहा जाता है कि यहां दिन में अंधेरा रहता है। लोग बौने होते हैं। ऐसी तमाम बातें हैं। दैनिक भास्कर ने सच जानने के लिए पातालकोट के जंगल में बसे 14 गांवों में पड़ताल की। जो सच निकल आया, जानिए वह क्या है…

पहले बात पातालकोट में दिन में अंधेरे की…

पातालकोट के चिमटीपुर से गुंजाडोंगरी, रातेड़ और आखिरी गांव कारेआम पहुंचते-पहुंचते धूप कम हो गई, लेकिन अंधेरा नहीं हुआ। बल्कि वह छांव थी। सुबह 6 से लेकर शाम तक 6 तक वैसा ही दृश्य मिला जैसा अमूमन घने छांव वाले एरिया में होता है। स्थानीय लोगों ने बताया खाई वाला इलाका राजाखोह (राजागुफा) पहाड़ों से घिरा होने से यह घनी छांव रहती है। अंधेरे जैसी सभी बातें भ्रामक हैं।

अब आप यह तो जान ही गए होंगे कि वहां न ऐसा कुछ था न कभी रहा। बस यह सुनी-सुनाई और कुछ लोगों द्वारा बरसों पहले गढ़ी गई बातें हैं। छांव को ही उन्होंने अतिश्योक्ति करते हुए अंधेरा बताया। इंटरनेट पर जो बातें वायरल हैं, वैसा कतई नहीं है।

पातालकोट के लोग कैसे रहते हैं? - paataalakot ke log kaise rahate hain?

ऐसा कहा जाता है कि पातालकोट के लोग बौने होते हैं, लेकिन ये गलत है। यहां पर लोग सामान्य कद-काठी वाले ही होते हैं।

क्या यहां के लोग बौने होते हैं? इसका जवाब भी जानिए...

यह भी कहते हैं कि धूप नहीं पहुंचने के कारण यहां लोग बौने होते हैं। यह भी सरासर झूठ है। सामान्य कद-काठी के लोग मिले। अब तो पहनावा भी शहरी जैसा हो गया है। टी-शर्ट, लोवर, शर्ट में भी लोग मिले। इनकी बोली भी कोई बहुत अलग नहीं है। हिंदी से जुड़ती हुई सामान्य बोलचाल में बात करते हैं जो समझ आ जाती है।

शहर से कटा है गांव? लोग बेटियां नहीं ब्याहते? क्या यह सच है…

आप यकीन नहीं करेंगे कि यह बात भी बिल्कुल उलट निकली। अब ये लोग सीधे शहर से जुड़ गए हैं। कारेआम और रातेड़ गांव के लोग बताते हैं कि अब अधिकतर घरों में बाइक है। नरेंद्र भारती ने बताया कुछ के यहां बड़ी गाड़ियां-ट्रैक्टर भी हैं। शादी पर डीजे भी बजता है। कहते हैं कि अब शादी में साउंड और डीजे सिस्टम बुलाया जाता है।

कारेआम की 75 साल की फूलमती कहती हैं कि पहले गांव में रिश्ते तय होकर शादी हो जाती थी। अब दूसरे गांवों में बहू ब्याहकर लाई जा रही है, बेटियों के बाहर रिश्ते करने लगे हैं। यह जरूर है कि पहले कोई भी चावल नहीं खाता था, अब राशन से मिलने के कारण वह भी खाने लगे हैं।

पातालकोट के लोग कैसे रहते हैं? - paataalakot ke log kaise rahate hain?

पातालकोट में भी अब विकास होने लगा है। यहां पर पक्की सड़कें बन चुकी हैं।

हर्बल का खजाना है, कैंसर, बीपी-माइग्रेन की दवा, शहर से आते हैं लोग

10-12 साल पहले तक यहां किसी भी गांव के लोग बीमार पड़ने या इलाज के लिए कभी भी शहर या अस्पताल नहीं जाते थे। इनके गांव में भी भुमका (जड़ी-बूटी से इलाज करने वाले) से इलाज कराते थे। डिलीवरी भी वहीं होती थी। अब यहां के लोग छिंदी, तामिया और बिजौरी-छिंदवाड़ा के अस्पताल जाने लगे हैं। भुमका भी अब गिने-चुने ही रह गए हैं जो कि लोकल में इलाज करता है।

रातेड़ के भुमका भट्‌टूलाल बताते हैं कि मैंने अपने दादाजी से यह जड़ी-बूटी की पहचान व इलाज करना सीखा है। पहाड़ों की खाई से लाकर इसे पीसकर बनाते हैं। कैंसर, पथरी, हेयर, पावर, बीपी-माइग्रेन समेत कई बीमारियों का इलाज करते हैं।

जंगल में रहते हैं तो कमाते क्या हैं? पढ़िए इसका भी जवाब...

पातालकोट में बसे सभी गांवों के लोगों की जिंदगी आज भी जंगल पर निर्भर है। गर्मी में अगले ढाई-तीन महीने सभी गांव के लोग महुआ, डोरी (गुल्ली), आम, चार (चिरौंजी) बिनने जंगल चले जाते हैं। 4-5 सदस्यों वाला एक परिवार इससे इन ढाई-तीन महीने के सीजन में करीबन 15-20 हजार रुपए कमा लेता है।

बुजुर्ग फुल्ली बाई ने बताया कि महुआ के सीजन में ही 4-5 हजार रुपए कमा लेते हैं। इसके बाद इसी पेड़ से गुल्ली (डोरी) और चार बेचकर कमा लेते हैं। अकेले लगभग 8-10 हजार रुपए तक का बेच लेती हूं।

पातालकोट के लोग कैसे रहते हैं? - paataalakot ke log kaise rahate hain?

पातालकोट घनी पहाड़ियों के बीच स्थित है। यहां घने जंगल है, जिसकी वजह से धूप जमीन तक ज्यादा नहीं पहुंच पाती है।

आने वाली पीढ़ी पढ़-लिख रही?

पातालकोट के कारेआम, रातेड़, घाना समेत अन्य गांव के बच्चों को उनके माता-पिता स्कूल पढ़ने के लिए भेज रहे हैं। 10-12 किमी दूर स्कूल होने से 5-6 साल के बच्चे को ऊपर के पहले गांव चिमटीपुर शासकीय हॉस्टल में रखकर पढ़ा रहे हैं। हॉस्टल इंचार्ज और प्राइमरी टीचर एनके भारती बताते हैं कि 25 बच्चे रहकर पढ़ाई कर रहे हैं। मिडिल स्कूल के बच्चे गांव से आना-जाना कर लेते हैं।

एक्सपर्ट व्यू...

भ्रम फैला रखे हैं, जबकि विकास के नाम पर संस्कृति खत्म हो रही : पातालकोट रिसर्चर

22 साल से ज्यादा समय से पातालकोट और यहां मौजूद हर्बल को लेकर रिसर्च करने वाले छिंदवाड़ा के दीपक आचार्य का कहना है कि इस जगह को लेकर कई तरह के भ्रम व अफवाहें फैली हुई हैं। कई लोग यहां आए बिना ही इसके बारे में गलत लिखते हैं। मुझसे लोग पूछते हैं कि यहां जो जाता है, वह कभी लौटकर नहीं आता है। यहां के लोग उन्हें मार डालते हैं, वे लूट लेते हैं। यहां के लोग बौने होते हैं। यहां धूप नहीं आती है, लेकिन सच्चाई यह है कि ऐसा यहां कुछ नहीं है। 79 वर्गफीट के एरिया में फैली हुई जगह है। लंबे समय तक बाहरी समाज से दूर थे। अपने प्रकृति व आवास में रहते-खाते थे। जड़ी-बूटी से अपना इलाज करते हैं। अब पिछले 15 साल में यहां विकास के नाम पर इनके लोकगीत, लोकनृत्य, जस गीत समेत संस्कृति-सभ्यता बदल गई है। नई पीढ़ी यहां के हर्बल ज्ञान को नहीं सीख रही है। अब डीजे बज रहे हैं। ईको टूरिज्म के नाम पर अलग-अलग गतिविधियां चलाई जा रही हैं, जबकि यह आइसोलेटेड एरिया है। मप्र शासन ने ही 2019 में बायो डायवर्सिटी हैरिटेज साइट भी घोषित किया है, इसके बाद भी इसे बिगाड़ा जा रहा है। पातालकोट के अनमोल हर्बल और इनके ज्ञान-संस्कृति को बचाने के उपाय किए जाना चाहिए, जो सबसे जरूरी है।

(सहयोग- छिंदवाड़ा से भास्कर डिजिटल के संवाददाता सचिन पांडे और नर्मदापुरम से धर्मेंद्र दीवान।)

पातालकोट में कौन रहता है?

इस विहंगम घाटी में गोंड और भारिया जनजाति के आदिवासी रहते हैं।

पातालकोट के आदमी कैसे रहते हैं?

पातालकोट कई सदियों से गोंड और भारिया जनजातियां द्वारा बसा हुआ है। यहां रहने वाले लोग बाहरी दुनिया से कटे हुए रहते हैं। भारिया जनजाति के लोगों का मानना है कि पातालकोट में ही रामायाण की सीता पृथ्वी में समा गई थीं। जिससे यहां एक गहरी गुफा बन गई थी।

पातालकोट का रहस्य क्या है?

जगह के बारे में एक और मान्यता यह है कि भगवान शिव की पूजा कर रावण का पुत्र मेघनाद इस स्थान से ही पाताल लोक गया था। जिसकी वजह से इस जगह के बारे में यह कहा जाता है कि यह पाताल लोक जाने का दरवाजा है। यह जगह साहसी लोगों, इतिहासकारों और खोजकर्ताओं जैसे लोगों के लिए कई रहस्य छुपाई हुई है।

पातालकोट गहराई कितनी है?

1700 फीट गहराई में बसा है पातालकोट