रचनात्मक लेखन में क्या आवश्यक है? - rachanaatmak lekhan mein kya aavashyak hai?

ऐसा हमेशा कहा जाता रहा है लेखन आराम करता है, जो बेहतर और बेहतर लिखने में मदद करता है और जो एक साधारण परिहार थेरेपी की तरह है, जब हम किसी चीज़ पर हावी होते हैं या हमें परेशान करते हैं।

यह कहा जा सकता है कि जितने प्रकार के लोग हैं उतने ही प्रकार के लेखन भी हैं। साहित्य बनाने के लिए लिखने वाले हैं, भाप छोड़ने के लिए लिखने वाले भी हैं, लिखने वालों के लिए लिखने वाले भी हैं ... और आप, आप क्यों लिखते हैं?

जो भी कारण हो, आज हम आपको रचनात्मक लेखन के असंख्य लाभों के बारे में बताते हैं। यदि आप लिखते समय बेहतर और अधिक राहत महसूस करते हैं, तो आज आपको पता चल जाएगा कि क्यों।

रचनात्मक लेखन हमें क्या लाता है?

  • का विकास विचार किया, की शिक्षा, की सहानुभूति और सुनने की क्षमता दूसरों के लिए।
  • का विकास भाषा और अभिव्यक्ति.
  • सुधारो एकाग्रता और प्रतिबिंब.
  • यह प्रोत्साहित करता है संगठन और मंथन किसी विशिष्ट विषय पर।
  • के विकास के लिए मौलिक तत्व कल्पना और रचनात्मकता।
  • का तत्व विश्राम और मनोरंजन.
  • ए का अधिग्रहण प्रमुख लेक्सिकॉन, जटिल वाक्य रचना संरचनाओं या पर्याप्तता, सामंजस्य या सुसंगतता पर काम करने के अलावा एक कथा का आदेश देने की क्षमता।
  • वे बच्चों को सीखने के लिए प्रेरित करते हैं और ऐसी जानकारी के लिए स्वायत्तता से खोज करें जो किसी की अपनी जिज्ञासा को संतुष्ट करती हो।

जैसा कि आप देख सकते हैं, लेखन इस प्रकार एक हो जाता है कल्पना के लिए ओएसिस और में आत्मा बाम। अगर आपको लगता है कि आप साहित्य बनाने में सक्षम नहीं हैं, लेकिन आप लेखन के सरल तथ्य के लिए अच्छा लेखन महसूस करते हैं, तो इसे करना बंद न करें। यह आपके लिए और सामान्य रूप से आपके जीवन के लिए कई लाभ हैं।

सी तू पुत्र या पुत्री यदि आप तनाव, घबराहट से पीड़ित हैं, या एक कठिन समय ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, तो निर्देशित रचनात्मक लेखन अभ्यास करने से आप अपनी चिंताओं या संकट को बेहतर ढंग से ध्यान केंद्रित कर सकते हैं। इसके अलावा, निश्चित रूप से, आपकी वर्तनी में मदद करने के लिए, अधिक रचनात्मक और कल्पनाशील होना चाहिए।

वैचारिक और भावनात्मक रूप से रचना करना एवं अपने मौलिक विचारों की अभिव्यक्ति करना रचनात्मक लेखन कहलाता है.


रचनात्मक लेखन के समय निम्न बातें ध्यान रखना हैं 


  • रचनात्मक लेखन में विद्यार्थियों को अपने विचारों की स्वतंत्र अभिव्यक्ति करनी है.
  • विचारों में क्रमबध्यता आवश्यक है.
  • रचनात्मक लेखन में उद्धरण उपयोगी होते है अत: उद्धरनों का प्रयोग करें । उद्धरण लिखते समय उद्धरण चिन्ह (“----”) जरूर लगाना चाहिए ।
  • रचनात्मक लेखन से पूर्व अपने विचारों को संक्षिप्त बिन्दुओं या शीर्षकों में बांट लें ताकि लेखन आसान हो सके.
  • विषयानुकूलता व रोचकता का ध्यान रखा जाना चाहिए ।
  • रचनात्मक लेखन से पूर्व सभी विकल्पों पर विचार कर उपयुक्त विकल्प का चुनाव करें ।
  • आप रचनात्मक लेखन के हिस्से को तीन भाग में विभाजित कर लें.(क) विषय का परिचय (ख) विषय का विस्तार (ग) निष्कर्ष
  • रूपरेखा-लेखन के समय पूर्वापर संबंध के नियम का निर्वाह किया जाए, पूर्वापर संबंध के निर्वाह का अर्थ है कि ऊपर की बात उसके ठीक नीचे की बात से जुड़ी होनी चाहिए, जिससे विषय का क्रम बना रहे.
  • भाषा सरल,सहज और बोधगम्य हो.
  • पुनरावृत्ति दोष से बचा जाए.
  • शब्द सीमा 150 शब्द सी.बी.एस.सी.द्वारा निर्धारित की गई है. अत: शब्द सीमा का ध्यान रखें एवं अनावश्यक बातें लिखने से बचें.


रचनात्मक लेखन में निम्न प्रश्नों के उत्तर तलाश करें -


  • समस्या क्या है?
  • समस्या क्यो है?
  • समस्या का प्रभाव – लाभ / हानि
  • उपाय /सुझाब /प्रयास
  • उपसंहार



रचनात्मक लेखन के प्रारूप का निर्वहन निम्न प्रकार से होना चाहिए-



  • आरम्भ (विषय का परिचय) अंक-1
  • विषय का महत्व (महत्व,प्रासंगिकता ) अंक-3
  • निष्कर्ष अंक-1


रचनात्मक लेखन के उदाहरण



मेरे जीवन का लक्ष्य



जीवन एक अंतहीन यात्रा है| जिस प्रकार यात्रा प्रारंभ करने से पहले व्यक्ति अपना गंतव्य स्थान निर्धारित कर लेता है, वैसे ही हमें भी अपनी जीवन-यात्रा प्रारंभ करने से पहले अपना कार्य-क्षेत्र निर्धारित कर लेना चाहिए| हर इंसान को अपने जीवन का उद्देश्य व लक्ष्य निश्चित कर लेना चाहिए। लक्ष्यहीन जीव स्वच्छंद रूप से सागर में छोड़ी हुई नाव के समान होता है। ऐसी नौका या तो लहरों के मध्य डूब जाती है या चट्टान से टकराकर चूर-चूर हो जाती है। मैंने भी अपने जीवन में प्रशासनिक अधिकारी बनने का निश्चय किया है। मैं उस कर्म को श्रेष्ठ समझता हूँ, जिससे व्यक्ति अपना व अपने परिवार का तो कल्याण कर ही सके, साथ ही समाज को भी दिशा-निर्देश दे सके| प्रशासनिक अधिकारी का कार्य भी कुछ इसी प्रकार का है। वह समाज के कार्यों का सुचारू संचालन करता है, लोगों तक सरकारी योजनाओं को पहुंचाता है और समाज को एक विकास की नई दिशा प्रदान करता है| इस समाज में प्रशासन को चलाने के लिए व्यक्ति की योग्यता को तब तक सार्थक नहीं समझता जब तक वह समाज के लिए लाभदायक न हो। प्रशासनिक अधिकारी यह कार्य करने की सर्वाधिक क्षमता रखता है। मेरा विश्वास है कि समाज में समुचित विकास के बिना कोई भी नागरिक न अपने अधिकारों को सुरक्षित रख सकता है और न कभी दूसरों के अधिकारों का सम्मान कर सकता है। मैं एक प्रशासनिक अधिकारी बनकर समाज के लोगों को शिक्षा, चिकित्सा, विकास को जीवनोपयोगी बनाने का प्रयत्न करूंगा। मैं मेरे कार्य क्षेत्र परिसर के बाहर भी समाज के लोगों के साथ अत्यंत निकट का संपर्क स्थापित करूंगा और समाज के प्रत्येक वर्ग को भविष्य की नई सम्भावनाओं की दिशा एवं दशा प्रदान करने का प्रयत्न करूंगा। मैं सदैव अपने सद्व्यवहार द्वारा समाज में श्रेष्ठ भाव उत्पन्न करने का प्रयत्न करूंगा एवं अपने कर्तव्यों का पूर्ण ईमानदारी के साथ निर्वहन करूंगा.





जीवन में खेलों का महत्व



खेल-कूद में रुचि बढ़ना देश के स्वास्थ्य का प्रतीक है, देशवासियों की समृद्धि का सूचक है। आजकल खेलों के प्रति दीवानगी बढ़ती जा रही है। इस दीवानगी को देखते हुए यह प्रश्न उठना लाजिमी है कि क्या यह भी स्वस्थ परंपरा का प्रतीक है? इसमें कोई दो राय नहीं कि पोषक भोजन के बिना मानव स्वस्थ नहीं रह सकता। यह भी उतना ही सच है कि अच्छे भोजन के साथ यदि मनुष्य खेलों में भाग न ले तो वह स्वस्थ नहीं रह सकता। अत: खेलों का नियमित अभ्यास करना स्वास्थ्य के लिए उतना ही आवश्यक है जितना कि संतुलित भोजन। वैसे तो जीवन की सफलता के लिए शारीरिक, मानसिक और आत्मिक शक्तियों में से कोई भी एक शक्ति किसी से कम महत्वपूर्ण नहीं है। फिर भी आम जनमानस में प्रचलित उक्ति है कि ‘स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का विकास होता है’। इसलिए शरीर को पूर्ण रूप से स्वस्थ व चुस्त बनाने के लिए कई प्रकार के शारीरिक अभ्यास किए जाते हैं, किंतु इनमें खेल-कूद सबसे प्रमुख हैं| बिना खेल-कूद के जीवन अधूरा रह जाता है। कहा गया है-“सारे दिन काम करना और खेलना नहीं, यह होशियार को मूर्ख बना देता है।” अत: खेलों से हमारा जीवन अनुशासित और आनंदित होता है। खेल भावना के कारण खिलाड़ी सहयोग, संगठन, अनुशासन एवं सहनशीलता का पाठ सीखते हैं। खेलने वालों में संघर्ष करने की शक्ति आ जाती है। खेल में जीतने की दशा में उत्साह और हारने की स्थिति में सहनशीलता का भाव आता है| खेलते समय खिलाड़ी जीत हासिल करने के लिए अनुचित तरीके नहीं अपनाता और पराजय की दशा में प्रतिशोध की आग में नहीं जलता। उसमें स्वस्थ प्रतिस्पर्धा का भाव होता है। खेल मनोरंजन का माध्यम भी हैं। खिलाड़ियों अथवा खेल-प्रेमियों-दोनों को खेलों से भरपूर मनोरंजन मिलता है। जो लोग सदैव काम में लगे रहते हैं खेलों के मनोरंजन से वंचित रह जाते हैं वे खेलों से मनुष्य अनुशासित जीवन जीना सीखता है। इससे मनुष्य नियमपूर्वक कार्य करने की शिक्षा लेता है। नियमपूर्वक कार्य करने से व्यवस्था बनी रहती है तथा समाज का विकास होता है। इस प्रकार खेलों का हमारे जीवन में बहुत महत्व है। ये हमारे जीवन को संपन्न व खुशहाल बनाते हैं। इनके महत्व को देखते हुए हमें खेलों से अरुचि नहीं रखनी चाहिए।



अभ्यास के लिए अन्य रचनात्मक लेख



  • वृक्ष लगाना मेरा शौक
  • बदलते जीवन मूल्य
  • रास्ते में बस खराब होना
  • कामकाजी महिलाओं की समस्याएँ
  • देश की प्रगति में महिलाओं का योगदान
  • राष्ट्र-निर्माण में युवा पीढ़ी का योगदान
  • इंटरनेट का मेरे जीवन में सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव
  • महानगरीय जीवन की चुनौतियां
  • लोकतंत्र में मीडिया की भूमिका
  • महानगरीय जीवन की चुनौतियां
  • सीमा पर बढ़ते तनाव को कम करना
  • आज विश्व में भारत की प्रतिष्ठा
  • काला धन : एक सामाजिक कलंक
  • पर्यावरण संरक्षण: आज की आवश्यकता
  • आनलाइन शोपिंग का बढ़ता चलन
  • भारत से प्रतिभा पलायन
  • गिरते नैतिक मूल्यों के कारण



पत्र लेखन



प्रश्न. (i) आए दिन चोरी और झपटमारी की समस्या के प्रति चिंता प्रकट करते हुए नगर के पुलिस-कमिश्नर को पत्र लिखिए।




कनक भवन

गणेशगुरी गुवाहाटी

दिनांक: 1 दिसम्बर 20XX




सेवा में,


पुलिस आयुक्त

गुवाहाटी (असम)

विषय- चोरी-झपटमारी की घटनाओं के संबंध में।

महोदय,

इस पत्र के माध्यम से मैं आपका ध्यान अपने शहर में निरन्तर बढ़ रहें अपराधों की ओर आकर्षित करना चाहता हूँ। विगत एक माह से शहर में अपराध बढ़ रहे हैं जिससे इस क्षेत्र के निवासी भय के साये में रहने को विवश हैं। कुछ शरारती तत्वों द्वारा छीना-झपटी तथा गलियों में चोरी की घटनाओं को अंजाम दिया जा रहा है। सायं सात-आठ बजते ही ये लोग यात्रियों के सामान एवं रुपये-पैसे छीन लेते हैं तथा विरोध करने पर चाकू मारने का दुस्साहस कर बैठते हैं।बढ़ते अपराधों के कारण लोगों में डर समाया हुआ है।


आशा है कि आप इस समस्या पर गंभीरता से विचार करेंगे तथा ठोस कदम उठाएँगे ताकि क्षेत्र में शांति स्थापित हो सके।

सधन्यवाद।

भवदीय

कoखoगo




(ii) प्रतिदिन बढ़ती महँगाई के प्रति चिंता व्यक्त करते हुए ‘पूर्वांचल प्रहरी’ के संपादक को पत्र लिखिए।




परीक्षा भवन

गुवाहाटी

दिनांक: 22 मार्च 20XX




सेवा में


संपादक महोदय

पूर्वांचल प्रहरी

जी0 एस0 रोड गुवाहाटी।

विषय- बढ़ती महँगाई के संदर्भ में।

महोदय,

मैं आपके लोकप्रिय समाचार-पत्र के माध्यम से प्रशासन व नेताओं का ध्यान बढ़ती महँगाई की तरफ दिलाना चाहता हूँ। आज जीवन के लिए उपयोगी हर वस्तु आम आदमी की पहुँच से बाहर होती जा रही है। रोजमर्रा की वस्तुओं जैसे-सब्जी, दूध, फल, दालें आदि-के दाम नित नई ऊँचाइयों को छू रहे हैं। कुछ दुकानदार सामानों को गोदामों में जमाकर कालाबजारी कर रहे हैं जिससे महँगाई आसमान छू रही है और गरीब को दाल-रोटी के लिए भी संघर्ष करना पड़ रहा है।


आपसे अनुरोध है कि इन खबरों को आप अपने समाचार-पत्र में लगातार प्रकाशित करे ताकि सरकार व प्रशासन इस ओर दें और इन पर कार्यवाही करें।

धन्यवाद।

भवदीय

अ०बoस०




 फ़ीचर लेखन 



प्रश्न :- निम्न में से किसी एक विषय पर फ़ीचर लेखन कीजिए-



मेरे विद्यालय का पुस्तकालय

अथवा

मेट्रो रेल का सफ़र


उत्तर:-


मेरे विद्यालय का पुस्तकालय



पुस्तकों का विशाल भण्डार, सुहाना मौन | व्यवस्थित मेज़-कुर्सियाँ | सेवा में तत्पर पुस्तकालयाध्यक्ष | यह है मेरे विद्यालय का पुस्तकालय | मेरे विद्यालय के पुस्तकालय के तीन तल हैं | निचले तल में समाचारपत्र, पत्रिकाएँ तथा बैठने के लिए मेज़-कुर्सियाँ हैं | बीच वाले तल में पुस्तकों की आलमारियाँ हैं | लगभग तीस-चालीस आलमारियों में हज़ारों मूल्यवान पुस्तकें व्यवस्था से सजी हैं | छात्र और अध्यापक अपनी इच्छा से इनमें से पुस्तकें खोजते हैं, पढ़ते हैं और पढ़कर वापस मेज़ पर छोड़ देते हैं | इस पुस्तकालय में पाठ्यक्रम से सम्बंधित पुस्तकें तो हैं ही; असली आकर्षण हैं- अन्य पुस्तकें- कथा कहानियों की पुस्तकें, महापुरुषों की जीवनियाँ, विश्व भर को चौकाने वाले कारनामे, वैज्ञानिक आविष्कार आदि-आदि | छात्र इन पुस्तकों को पुस्तकालय के तीसरे तल पर रखी मेज़-कुर्सियों पर बैठकर पढ़ सकते हैं | चाहे तो दो पुस्तकें घर भी ले जा सकते हैं | विद्यालय के तीन हज़ार विद्यार्थियों में से चालीस-पचास छात्र ही पुस्तकालय में दिखाई देते हैं | यहाँ बोलना बिल्कुल मना है | ज़रा भी बोले तो पुस्तकालयाध्यक्ष की पैनी नज़रें उन्हें मौन करा देती हैं | पुस्तकालय सचमुच ज्ञान की गंगा है | मेरे जैसे विद्या-व्यसनी के लिए तो यह सैरगाह है | मुझे ख़ाली समय में पुस्तकों की आलमारी के सामने खड़े होकर नये-नये शीर्षक देखना और जानकारी लेना अच्छा लगता है |




मेट्रो रेल का सफ़र


सामान्य भारतीय रेल और मेट्रो रेल के सफ़र में अंतर है | मेट्रो की यात्रा साफ़-सुथरी, वातानुकूलित और आरामदायक होती है | इसकी टिकट खिड़की से लेकर सवारी डिब्बे तक कहीं भी धूल-धक्कड़ या धींगामुश्ती नहीं होती | टिकट-खिड़की पर या तो भीड़ होती नहीं; होती भी है तो लोग पंक्तिबद्ध होकर टिकट लेते हैं | टिकट देने वाले कर्मचारी भी बड़ी कुशलता से टिकट बाँटते हैं | टोकन चेक़ करने की प्रणाली भी इलेक्ट्रानिक होती है इसलिए यात्री भी समझ लेते हैं कि यहाँ सबकुछ व्यवस्था के अनुरूप ही चलेगा, मनमानी से नहीं | मेट्रो प्लेटफ़ॉर्म तक पहुँचने के लिए या तो स्वचालित सीढ़ियाँ होती हैं, या साफ़-सुथरे चौड़े मार्ग होते हैं | प्लेटफ़ॉर्म बिल्कुल स्वच्छ और जगमगाते हुए होते हैं | प्रायः हर तीन से पाँच मिनट में एक गाड़ी आ जाती है | उसके दरवाजे स्वचालित रूप से खुलते और बंद होते हैं | अंदर साफ़-सुथरी सीटें होती हैं | खड़े यात्रियों के सहारे के लिए बीच में लटकनें लगी होती हैं |


मेट्रो रेल में भीड़ न हो तो उसके सुख का कहना ही क्या ? परन्तु भीड़ होने पर भी किसी प्रकार की धक्का-मुक्की, गंदगी या हुल्लड़बाज़ी नहीं होती | महानगरीय सभ्यता में ढले हुए लोग बड़े ही अनुशासन से यात्रा करते हैं | सबसे बड़ी सुविधा यह होती है कि हर स्टेशन के आने पर बराबर घोषणाएँ होती रहती हैं | इससे यात्रियों को बहुत ही आसानी होती है | यद्यपि मेट्रो की सुविधा को देखते हुए आजकल उसमें भी भीड़ बढ़ने लगी है, किन्तु यह भीड़ अराजक नहीं होती | इसलिए इसमें सफ़र करना बहुत आरामदायक है | इसमें लेट होने और समय पर न पहुँचने की परेशानियाँ भी न के बराबर हैं | वास्तव में महानगरों के आतंरिक यातायात के लिए यह सर्वोत्तम साधन है |





आलेख


प्रश्न १: आलेख की परिभाषा देते हुए स्पष्ट कीजिए कि समाचार पत्र में किस स्थान पर प्रकाशित किया जाता है ?


उत्तर किसी एक विषय पर विचार प्रधान ,गद्य प्रधान अभिव्यक्ति को आलेख कहा जाता है। यह एक प्रकार के लेख होते हैं जो अधिकतर संपादकीय पृष्ठ पर ही प्रकाशित होते हैं।


प्रश्न २: आलेख के मुख्य अंगो के नाम लिखिए।


उत्तर : आलेख लेखन के मुख्य अंग हैं - भूमिका ,विषय का प्रतिपादन, तुलनात्मक चर्चा और निष्कर्ष ।


प्रश्न ३: आलेख लेखन में किसकी प्रमुखता होती है ?


उत्तर: आलेख लेखन में लेखक के विचारों की प्रमुखता होती है ।इसी कारण इसे विचार प्रधान गद्य भी कहा जाता है।




नाटक, कविता और कहानी का प्रारूपनाटक, कविता और कहानी की रचना प्रक्रिया



 नाटक 




1) नाटक किसका रूप है ?

उत्तर - नाटक काव्य और गद्य का एक रूप है ।


2) किस काव्य में नाटक में अधिक रमणीयता होती है ?

उत्तर – नाटक में श्रव्य काव्य से अधिक रमणीयता होती है ।


3) प्रसिद्ध नाट्य शास्त्र किसने लिखे था ?

उत्तर- आचार्य भारत मुनि ने नाट्यशास्त्र लिखा था ।


4) नाटक का प्रारम्भ कैसे होता है ?

उत्तर – नाटक के आरंभ में जो क्रिया होती है उसे मंगला चरण या पूर्वरंग कहते हैं ।


5) कथावस्तु किसे कहते हैं ?

उत्तर – कथावस्तु को नाटक ही कहा जाता है । अङ्ग्रेज़ी में इसे प्लाट की संज्ञा दी गई है जिसका अर्थ आधार या भूमि से है ।




कविता



1) कविता के बाह्य तत्व का उल्लेख कीजिए ?

उत्तर - लय , तुक, छंद ,शब्द योजना, चित्रात्मक भाषा तथा अलंकार कविता के बाह्य तत्व है ।


2) कविता के आंतरिक तत्व कौन कौन से हैं ?

उत्तर - कविता के आंतरिक तत्व अनुभूति की व्यापकता, कल्पना की उड़ान ,रसात्मकता और सौंदर्य बोध तथा भावों का उदात्तीकरण कविता के आंतरिक भाव हैं ।


3) काव्य के कितने भेद होते हैं ?

उत्तर - काव्य के दो भेद होते हैं - श्रव्य काव्य दृश्य काव्य ।


4) हिन्दी के दो महाकाव्य के नाम लिखिए ?

उत्तर - हिंदी के दो महाकाव्य हैं पहला रामचरितमानस जिसे तुलसीदास ने लिखा है और कामायनी जिसे जयशंकर प्रसाद ने लिखा है ।


5) हिंदी का प्रथम महाकाव्य किसे माना जाता है उसका रचनाकार कौन है ?

उत्तर - हिंदी का प्रथम महाकाव्य रामचरित मानस माना जाता है जिस के रचनाकार तुलसीदास जी हैं ।


कहानी



कहानी हिंदी में गद्य लेखन की एक विधा है 19वीं सदी में गद्य में एक नई विधा का विकास हुआ जिसे कहानी के नाम से जाना गया. मनुष्य के जन्म से साथ ही साथ कहानी का भी जन्म हुआ और कहानी कहना तथा सुनना मानव का आज स्वभाव बन गया. प्राचीन काल में सदियों तक प्रचलित वीरों तथा राजाओं के शौर्य प्रेम न्याय ज्ञान वैराग्य साहस समुद्री यात्रा अगम्य पर्वतीय प्रदेशों में प्राणियों का अस्तित्व आदि की कथाएं जिनकी कथानक घटना प्रदान हुआ करती थी कहानी के ही रूप हैं.

रचनात्मक लेखन के कितने तत्व हैं?

लेखन विकास के दो तत्व हैं: संरचना और प्रतिलेखन। संरचना को 'लेखक की भूमिका' माना जा सकता है, क्योंकि इसमें विचारों को उत्पन्न और व्यवस्थित करना, तथा उपयोग की जाने वाली भाषा शैली का चयन करने के साथ, यह जानना शामिल होता है कि लेखन को कौन पढ़ेगा (इसका पाठक) और इससे क्या उपलब्धि (उसका प्रयोजन) हासिल होगी।

रचनात्मक लेखन तत्व क्या हैं?

रचनात्मक लेखन में लेखक को विषय की पूरी जानकारी होती है। व उससे संबंधित तथ्यों को एकत्र करता है और उसको वह अपने शब्दों में लिखता है। वह उस विषय को कितनी रोचकता या नीरसता से लिखता है यह उसके लेखन पर निर्भर करेगा। कि पढ़ने वाले के सामने उन दृश्यों को जीवंत कर सकेगा या नहीं।

रचनात्मक लेखन कैसे लिखा जाता है?

रचनात्मक लेखन लिखने के लिए सर्वप्रथम रचनात्मक सोच होनी अत्यंत आवश्यक है, रचनात्मकता का बीज सृजनात्मक चिंतन में निहित होता है। लेख लिखते समय विषय को भली प्रकार सोच समझ कर चिंतन करके लिखना चाहिए, प्रत्येक विंदु का क्रमबद्ध विवेचन करना चाहिए। सोच का दायरा बढ़ाने पर रचनात्मक लेखन में चार चांद लग जाते हैं

रचनात्मक लेखन का उद्देश्य क्या है?

Answer: इसका उद्देश्य सूचित करना मात्र ही नहीं, अपितु रहस्यों व रसों को उद्घाटित करना है। एक रचनात्मक लेखक कभी तटस्थ रूप से दुनिया की ठोस चीजों के बारे में बात करता है तो कभी भावविह्वल होकर वह प्रेम, पवित्रता, पलायन, ईश्वर, नश्वरता आदि विषयों के बारे में अपने उद्गार व्यक्त करता है।