बोन टीबी कौन सी बीमारी है? - bon teebee kaun see beemaaree hai?

( Bone TB) जिला क्षय रोग अधिकारी डा. ए .के.चौधरी बताते हैं ( Bone TB) बोन टीबी को मस्कुलोस्केलेटल टीबी भी कहते हैं। बोन टीबी से हाथ पैर के जोड़, कोहनियां और कलाई प्रभावित होते हैं। ( Bone TB) टीबी एक संक्रामक रोग है जो माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरकुलोसिस नामक बैक्टीरिया से फैलता है। दूसरे अंगों में संक्रमण टीबी हो जाने के बाद फैलता है। टीबी का बैक्टीरिया खून के जरिये हड्डियों और अन्य अंगों पर जाकर बैठ जाता है और उस जगह पर घाव करता है ।( Bone TB) शरीर पर होने वाले घाव व्यक्ति की प्रतिरोधक क्षमता पर निर्भर करते हैं।

डा. चौधरी ने बतायाकि राष्ट्रीय क्षय रोग उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी) की रिपोर्ट के अनुसार-भारत में टीबी के कुल मामलों में 20 फीसदी मामले एक्स्ट्रा पल्मोनरी टीबी के होते हैं। ( Bone TB) जिसमें बोन टीबी के 5-10 प्रतिशत मरीज होते हैं । ( Bone TB) स्पाइनल एवम घुटने के जोड़ों की टीबी प्रमुख रूप से पाई जाती है। डा.चौधरी ने बतायाकि बोन टीबी का प्रमुख लक्षण शरीर के विभिन्न हिस्सों में दर्द, लम्बे समय तक बुखार और वजन कम होना है।

( Bone TB) मस्कुलोस्केलेटल टीबी किसी भी आयु में हो सकता है।आमतौर पर हड्डियों की टीबी का देर से पता चलता है ।उपरोक्त लक्षण दिखने पर प्रशिक्षित चिकित्सक को दिखाएँ। समय पर इस बीमारी का इलाज करना बहुत जरूरी होता है क्योंकि व्यक्ति दिव्यांग हो सकता है। सीटी स्कैन और एमआरआई के माध्यम से आसानी से पता चल सकता है ।

( Bone TB) डा. चौधरी ने बताया ( Bone TB) बोन टीबी का इलाज पूरी तरह से संभव है। इलाज के दौरान दर्द समाप्त होने के बाद पीड़ित को जोड़ों के व्यायाम और उचित खानपान की सलाह दी जाती है। व्यक्ति को प्रोटीन और पौष्टिक तत्वों से भरपूर संतुलित आहार लेना चाहिए।( Bone TB) शराब, सिगरेट आदि का सेवन करने से बचें। ( Bone TB) साथ ही एनटीईपी के तहत टीबी का इलाज निशुल्क उपलब्ध है। ( Bone TB) साथ ही निक्षय पोषण योजना के तहत पोषण के लिए 500 रूपये की धनराशि प्रतिमाह की दर से सीधे मरीज के खाते में स्थानांतरित किये जाते हैं।

सही समय पर इलाज से ठीक हो सकता है बोन टीबी

बोन टीबी कौन सी बीमारी है? - bon teebee kaun see beemaaree hai?

हेड-आर्थोपेडिक्स विभाग, पीडी हिंदुजा नेशनल अस्पताल

डब्ल्यूएचओ की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में टीबी के 20 लाख से ज्यादा मरीज सामने आये हैं, जिनमें से 20 प्रतिशत यानी करीब 4 लाख लोगों को स्पाइनल टीबी या रीढ़ की हड्डी में टीबी की शिकायत है.

इनकी मृत्यु दर 7 प्रतिशत है. 2016 में 76 हजार बच्चों में स्पाइनल टीबी की शिकायत पायी गयी थी. बाल और नाखून को छोड़कर टीबी शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकता है. जो लोग सही समय पर इलाज नहीं कराते या इलाज को बीच में ही छोड़ देते हैं, उनकी रीढ़ की हड्डी गल जाती है, जिससे स्थायी अपंगता आ जाती है. यह रोग किसी भी आयु वर्ग के लोगाें को हो सकता है.

भारत में हर वर्ष टीबी के 20-25 हजार केस (सभी प्रकार के) सामने आते हैं. आम लोगों की धारणा है कि टीबी यानी क्षयरोग सिर्फ हमारे फेफड़ों को क्षतिग्रस्त करता है, मगर हड्डियों पर भी टीबी का गहरा असर होता है.

हड्डियों में होनेवाली टीबी को 'बोन टीबी' या 'अस्थि क्षयरोग' कहा जाता है. भारत में टीबी के कुल मरीजों में से 5 से 10 प्रतिशत मरीज बोन टीबी से पीड़ित होते हैं. अमूमन रीढ़ की हड्डी, हाथ, कलाइयों और कुहनियों के जोड़ों पर इसका असर ज्यादा होता है. इसकी सही समय पर पहचान और इलाज कराया जाये, तो यह रोग पूरी तरह से साध्य है.

कौन लोग अधिक खतरे में : सामान्यत: टीबी की बीमारी शुरुआत में फेफड़ों को ही प्रभावित करती है, लेकिन धीरे-धीरे रक्त प्रवाह के जरिये शरीर के अन्य हिस्सों में भी फैल सकती है. यह रोग हर उम्र के व्यक्ति को प्रभावित कर सकता है, लेकिन इस बीमारी का खतरा 5 से 15 साल तक के बच्चों और 35 से 50 साल के लोगों को अधिक होता है.

इन लक्षणों पर रखें नजर : बुखार, थकान, रात में पसीना आना और बेवजह वजन कम होना आदि मुख्य लक्षण हैं. हड्डी के किसी एक बिंदु पर असहनीय दर्द होता है, जैसे- कलाई या रीढ़. धीरे-धीरे मरीज का बॉडी पॉश्चर और चलने का तरीका बिगड़ने लगता है. कंधे झुकाकर चलना, आगे की ओर झुक कर चलना और कई बार हड्डियों में सूजन भी आ जाती है. दर्द का प्रकार क्षयरोग के सटीक स्थान पर निर्भर करता है. मसलन, स्पाइन टीबी के मामले में पीठ के निचले हिस्से में दर्द होता है.

इससे पीड़ित लगभग आधे मरीजों के फेफड़े भी संक्रमित हो जाते हैं. कई बार बोन टीबी से पीड़ित मरीजों को कफ न निकलने से यह पता नहीं चल पाता कि वे टीबी से पीड़ित हैं. इसके शुरुआती लक्षण स्पष्ट होने में वर्षों लग जाते हैं. वजन कम होना, मूवमेंट में परेशानी, बुखार और गंभीर मामलों में हाथ व पैर में कमजोरी के तौर पर इसके लक्षण देखने को मिलते हैं. मरीज को रात में ज्यादा दर्द होता है.

बोन टीबी का पता लगाने के लिए एक्स-रे और प्रभावित जोड़ वाले हिस्से से बहते तरह पदार्थ की जांच जरूरी है. ब्लड टेस्ट, इएसआर टेस्ट, एक्स-रे से इस बीमारी का पता लगाया जा सकता है. रीढ़ और स्केलेटल टीबी के मामले में सीटी स्कैन एमआरआइ रिपोर्ट के आधार पर इलाज की प्रक्रिया शुरू की जाती है.

बोन टीबी को शुरुआती चरण में अर्थराइटिस समझने की भूल हो जाती है. लेकिन अर्थराइटिस के मरीजों को रात में सोते समय दर्द में राहत महसूस होती है, जबकि टीबी मरीजों को सोते समय बैक्टीरिया की गतिविधि बढ़ने के कारण अधिक दर्द होता है.

क्या सावधानी बरतें : फेफड़ों के टीबी के विपरीत बोन एवं स्पाइन टीबी के इलाज में संक्रमण की गंभीरता को देखते हुए थोड़ा ज्यादा वक्त लगता है.

सामान्य हड्डी के टीबी के इलाज में करीब छह माह से एक साल लग जाता है जबकि स्पाइन टीबी के मामले में लकवे का इलाज और रिकवरी में डेढ़ से दो साल भी लग सकता है. टीबी के मरीजों के लिए दवाइयों का कोर्स पूरा करना अत्यंत आवश्यक है. इसे बीच में कभी नहीं छोड़ना चाहिए. बोन टीबी में बेड रेस्ट, अच्छा खान-पान, नियमित व्यायाम, दवाइयां और फिजियोथेरेपी सामान्य जिंदगी की ओर लौटने में मददगार होती हैं.

हड्डी की टीबी की जांच के लिए एक्स-रे, एम आर आइ, रेडियो न्यूक्लाइड बोन स्कैन की मदद ली जाती है. अंतिम फैसला प्रभावित टिश्यू के माइक्रोबायोलॉजिकल एग जामिनेशन (एएफबी स्टेनिंग, एफ बी कल्चर/सेंसिटिविटी व पीसीआर) के बाद ही लिया जाता है. बच्चों व बूढ़ों में इसके मामले ज्यादा देखने को मिलते हैं. एचआइवी व डाइबिटीज पीड़ितों में भी इसके होने की आशंका अधिक जाती है.

रीढ़ की हड्डी पर ज्यादा खतरा

दो-तीन हफ्ते तक पीठ में दर्द रहने के बाद भी आराम न मिले, तो तुरंत डॉक्टर के पास जाना चाहिए. आंकड़ों के मुताबिक, डॉक्टर के पास पहुंचने वाले पीठ दर्द के केसों में से 10 फीसदी मरीजों में रीढ़ की हड्डी की टीबी (स्पाइनल टीबी) का पता चलता है. इसकी पहचान भी जल्दी नहीं हो पाने से मरीज अक्सर सामान्य दर्द समझकर अनदेखा करते हैं और पेनकिलर लेकर काम चलाते हैं. जबकि इसका सही समय पर इलाज न कराने से व्यक्ति गंभीर लकवे का शिकार रहे सकता है.

इलाज की कमी से यह रीढ़ की हड्डी में एक से दूसरी हड्डी तक फैलता है, जिससे हड्डियां कमजोर होने लगती हैं और इनके बीच कुशन का काम करने वाले डिस्क क्षतिग्रस्त हो जाती है. गंभीर मामलों में रीढ़ पूरी तरह क्षतिग्रस्त हो सकती है. मेरुदंड संकुचित हो सकता है, जो शरीर के निचले हिस्से में लकवे का कारण बन सकता है. रीढ़ की हड्डी बाहर निकल कर कूबड़ का भी रूप ले सकती है.

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Published Date Tue, Jul 9, 2019, 6:53 AM IST

हड्डियों की टीबी कैसे होती है?

हड्डी की टीबी आमतौर पर हड्डी में पहले से रह रहे रोग-जीवाणु के पुन: सक्रियता से उत्पन्न होती है। माइकोबैक्टीरिया के प्राथमिक संक्रमण के समय, रीढ़ और बड़े जोड़ों पर रोग-जीवाणु का प्रभाव कशेरुकाओं और लंबी हड्डियों के बढ़े हुए प्लेटों की भरपूर मात्रा में संवहनी आपूर्ति के कारण होता है

हड्डी की टीबी का इलाज कितने दिन चलता है?

आम टीबी का इलाज छह महीने में हो जाता है, लेकिन इस टीबी के दूर होने में 12 से 18 महीने का वक्त भी लग सकता है। इसमें दवा नहीं छोड़नी चाहिए। दवा छोड़ने पर दवा के प्रति प्रतिरोधक शक्ति बन जाती है और फिर इलाज लंबा चलता है। गौरतलब है कि टीबी का कीटाणु फेफड़े से खून में पहुंचता है और इसी से रीढ़ तक उसका प्रसार होता है।

हड्डी की टीबी का इलाज क्या है?

कई बार टी. बी. के कारण रीढ़ कीे हड्डी में ज्यादा क्षति पहुंचने लगती है। ऐसीे गंभीर स्थिति में सर्जरी ही इसका एकमात्र इलाज है।

टीबी की सबसे अच्छी दवा कौन सी है?

रिफैम्पिसिन (rifampicin) रिफैम्पिसिन (rifampicin) एक एंटीबायोटिक है जिसका उपयोग गंभीर संक्रमणों में करते हैं, जिसमें टीबी भी शामिल है। यह उन दवाओं में से एक है जो संक्रमण के इलाज में टीबी के लिए निर्धारित की जाती है।