राजा ने लिपटन से क्या कहा? - raaja ne lipatan se kya kaha?

विषयसूची

  • 1 राजा ने लोटन पहलवान से क्या कहा?
  • 2 कहानी के किस किस मोड़ पर लोटन के जीवन में क्या क्या परिवर्तन आये?
  • 3 राजदरबार में लुट्टन सिंह को कौन सा विशेष स्थान प्राप्त हुआ था?
  • 4 लुट्टन सिंह ने विजयी होने के पश्चात् किसे और क्यों सबसे पहले प्रणाम किया?
  • 5 लोटन सिंह को राज पहलवान की उपाधि कैसे मिली?
  • 6 पहलवान की ढोलक का मुख्य पात्र कौन है?

राजा ने लोटन पहलवान से क्या कहा?

इसे सुनेंरोकेंलुट्टन ने ढोल पर एक पतली आवाज सुनी-‘धाक-धिना, तिरकट-तिना धाक-धिना, तिरकट तिना’। लुट्टन ने ढोल की इस आवाज का यह अर्थ लिया-‘दाँव काटो, बाहर हो जा, दाँव काटो बाहर हो जा। ‘

कहानी के किस किस मोड़ पर लोटन के जीवन में क्या क्या परिवर्तन आये?

2. कहानी के किस-किस मोड़ पर लुट्टन के जीवन में क्या-क्या परिवर्तन आए?

  • माता-पिता का बचपन में देहांत होना।
  • सास द्वारा उसका पालन-पोषण किया जाना और सास पर हुए अत्याचारों का बदला लेने के लिए पहलवान बनना।
  • बिना गुरु के कुश्ती सीखना।
  • पत्नी की मृत्यु का दुःख सहना और दो छोटे बच्चों का भार संभालना।

राजदरबार में लुट्टन सिंह को कौन सा विशेष स्थान प्राप्त हुआ था?

इसे सुनेंरोकेंवह राज-दरबार का ‘दर्शनीय जीव’ हो गया। उसकी दहाड़ पर उसे ‘राजा का बाघ बोला’ जाता था। मेलों में वह घुटनों तक का लंबा चोगा पहने, अस्त-व्यस्त पगड़ी बाँध कर मतवाले हाथी की तरह चलता था। हलवाई उसे बुलाकर मिठाई खिलाते थे।

लुट्टन का लालन पालन किसने किया और क्यों?

इसे सुनेंरोकेंलुट्टन पहलवान का पालन-पोषण उसकी विधवा। सास ने किया था। जब वह नौ वर्ष का था तभी उसके माता-पिता।

लोटन पहलवान ने धूल को अपना गुरु क्यों कहा?

इसे सुनेंरोकेंढोल की थाप से उसे ऊर्जा मिली और वह जीत गया। इसी कारण ववहढोल को ही अपना गुरु कहता था। ढोल की थाप ने ही उसे पहलवानों के गुरु सिखाए-समझाए थे अत: वह ढोल को बहुत महत्त्व देता था। लुट्टन पहलवान ने ऐसा इसलिए कहा होगा ताकि वह अपने पहलवान बेटों को ढोल के बोलों में छिपे अर्थ को समझना सिखा सके।

लुट्टन सिंह ने विजयी होने के पश्चात् किसे और क्यों सबसे पहले प्रणाम किया?

इसे सुनेंरोकेंलुट्न पहलवान का जीवन उतार-चढ़ावों से भरपूर रहा। जीवन के हर दुख-सुख से उसे दो-चार होना पड़ा। सबसे पहले उसने चाँद सिंह पहलवान को हराकरे राजकीय पहलवान का दर्जा प्राप्त किया। फिर काला खाँ को भी परास्त कर अपनी धाक आसपास के गाँवों में स्थापित कर ली।

लोटन सिंह को राज पहलवान की उपाधि कैसे मिली?

इसे सुनेंरोकेंलुट्टन सिंह ने चाँदसिंह को चुनौती दे दी और चाँदसिंह से भिड़ गया। ढ़ोल की आवाज सुनकर लुट्टन की नस-नस में जोश भर गया। उसने चाँदसिंह को चारों खाने चित कर दिया। राजासाहब ने लुट्टन की वीरता से प्रभावित होकर उसे राजपहलवान बना दिया।

पहलवान की ढोलक का मुख्य पात्र कौन है?

इसे सुनेंरोकेंरात्रि की भीषणताएँ यह थीं-जाड़े की रात थी, अमावस्या का अंधकार फैला था। ऊपर से मलेरिया और हैजे से पीड़ित- भयभीत रहते थे। इन सब विषमताओं को लुट्टन पहलवान की ढोलक की आवाज ललकारती थी। वह एक ही गति से बजती रहती थी और इन्हें ललकारती रहती थी।

कुश्ती या दंगल पहले लोगों और राजाओं का प्रिय शौक हुआ करता था। पहलवानों को राजा एवं लोगों के द्वारा विशेष सम्मान दिया जाता था।

(क) ऐसी स्थिति अब क्यों नहीं है?

(ख) इसकी जगह अब किन खेलों ने ले ली है?

(ग) कुश्ती को फिर से प्रिय खेल बनाने के लिए क्या-क्या कार्य किए जा सकते हैं?


(क) अब कोई राजा या रियासत नहीं है।

(ख) हाँकी, क्रिकेट और फुटबॉल।

(ग) गाँवों में कुश्ती को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। पहलवानों को आवश्यक सामग्री उपलब्ध कराई जानी चाहिए।

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महामारी फैलने के बाद गाँव में सूर्योदय और सूर्यास्त के दृश्य में क्या अंतर होता था?


महामारी फैलने के बाद गाँव में सूर्योदय होते ही लोग काँखते-कूँखते-कराहते अपने-अपने घरों से निकलकर अपने पड़ोसियों और आत्मीयों को ढाढ़स देते थे। वे बचे रह गए लोगों को रोकर दु:खी न होने को कहते थे।

सूर्यास्त होते ही लोग अपनी-अपनी झोंपड़ियों में घुस जाते थे और चूँ तक न करते थे। तब उनके बोलने की शक्ति भी जा चुकी होती थी। पास में दम तोड़ते हुए पुत्र को अंतिम बार ‘बेटा’ कहकर पुकारने की हिम्मत माताओं को नहीं होती थी।

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ढोलक की आवाज़ का पूरे गाँव पर क्या असर होता था?


ढोलक की आवाज़ ही रात्रि की विभीषिका को चुनौती देती सी जान पड़ती थी। पहलवान संध्या से सुबह तक चाहे जिस ख्याल से ढोलक बजाता हो पर ढोलक की आवाज गाँव के अर्धमृत औषधि-उपचार-पथ्य विहीन प्राणियों में संजीवनी शक्ति भरने का काम करती थी। ढोलक की आवाज सुनते ही बूढ़े-बच्चे-जवानों की कमजोर आँखों के सामने दंगल का दृश्य नाचने लगता था। तब उन लोगों के बेजान अंगों में भी बिजली दौड़ जाती थी। यह ठीक है कि ढोलक की आवाज में बुखार को दूर करने की ताकत न थी और न महामारी को रोकने की शक्ति थी पर उसे सुनकर मरते हुए प्राणियों को अपनी आँखें मूँदते समय (प्राण छोड़ते समय) कोई तकलीफ नहीं होती थी। तब वे मृत्यु से नहीं डरते थे।ड

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गाँव में महामारी फैलने और अपने बेटों के देहांत के बावजूद लुट्टन पहलवान ढोल क्यों बजाता रहा?


गाँव में महामारी फैलने और अपने बेटों के देहांत के बावजूद लुट्टन पहलवान ढोल इसलिए बजाता रहा ताकि वह अपनी हिम्मत न टूटने का पता लोगों को दे सके। वह अंतिम समय तक अपनी बहादुरी और दिलेरी का परिचय देना चाहता था। ढोल के साथ उसके हृदय का नाता जुड़ गया था।

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लुट्टन पहलवान ने ऐसा क्यों कहा होगा कि मेरा गुरु कोई पहलवान नहीं, यही ढोल है?


लुट्टन का कोई गुरु नहीं था। उसने पहलवानों के दाँव-पेंच स्वयं सीखे थे। जब वह दंगल देखने गया तो ढोल की थाप ने उसमें जोश भर दिया था। इसी ढोल की थाप पर उसने चाँद सिंह पहलवान को चुनौती दे डाली थी और उसे चित कर दिखाया था। ढोल की थाप से उसे ऊर्जा मिली और वह जीत गया। इसी कारण ववहढोल को ही अपना गुरु कहता था। ढोल की थाप ने ही उसे पहलवानों के गुरु सिखाए-समझाए थे अत: वह ढोल को बहुत महत्त्व देता था। लुट्टन पहलवान ने ऐसा इसलिए कहा होगा ताकि वह अपने पहलवान बेटों को ढोल के बोलों में छिपे अर्थ को समझना सिखा सके। यह सच भी था कि लुट्टन ने किसी गुरु से पहलवानी नहीं सीखी थी। उसने तो ‘शेर के बच्चे’ अर्थात् चाँद पहलवान को पछाड़ने के लिए ढोल के बोलों (ध्वनि में छिपे अर्थ) से ही प्रेरणा ली थी। हाँ, इतना अवश्य था कि वह इन आवाजों का मतलब पढ़ना जान गया था। ढोल की आवाज ‘धाक-धिना, तिरकट…तिना चटाक् चट् धा धिना-धिना, धिक-धिना’ जैसी प्रेरणाप्रद ध्वनि ने ही उसे चाँद को पछाड़ने का तरीका समझाया था। अत: वह ढोल को बहुत महत्त्व देता था।

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राजा ने लुटtan से क्या कहा?

'धिना-धिना, धिक - धिना !

राजा ने लुट्टन से क्या कहा एक वाक्य में उत्तर?

राजा ने लुट्टन को छाती से लगा लिया और उसे आशीर्वाद देते हुए कहा था- “जीते रही, बहादुर! तुमने मिट्टी की लाज रख ली।” जब राजा ने लुट्टन को दरबार में रखने की घोषणा की तथा उसे लुट्टनसिंह कहकर पुकारा तब राज-पंडितों ने मुँह बिचकाया और अपना ऐतराज प्रकट करते हुए कहा-यह तो जाति का दुसाध है।

लुट्टन पहलवान ने ऐसा क्यों कहा?

लुट्टन पहलवान ने ऐसा क्यों कहा होगा कि मेरा गुरु कोई पहलवान नहीं, यही ढोल है? Solution : लुट्टन ने कुश्ती के दाँव-पेंच किसी गुरु से नहीं बल्कि ढोल की आवाज से सीखे थे। ढोल से निकली <br> हुई ध्वनियाँ उसे दाँव-पेच सिखाती हुई और आदेश देती हुई प्रतीत होती थी।