रक्त के घटक कौन-कौन से हैं - rakt ke ghatak kaun-kaun se hain

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अपने रक्त के कितने घटक हो सकते हैं तो रक्त जो है इसके प्रकार लाल रक्त कोशिकाओं आरबीसीएस की तरह सतह पर उपस्थित अनुवांशिक प्रति जनी पदार्थों की उपस्थिति अनुपस्थिति पर आधारित रक्त का वेल्डिंग का वर्गीकरण है यह पोजीशन रक्त समूह तंत्र के आधार पर प्रोटीन कार्बोहाइड्रेट ग्लाइकोप्रोटीन या ग्लाइकोलिपिड्स होते हैं और कुछ प्रतिजन अन्य प्रकार के उत्तर की कोशिकाओं पर भी मौजूद हो सकते हैं इनमें से अनेक लाल रक्त कणिका कोशिकाओं की सतह के प्रति जन जो 1ll से उत्पन्न होते हैं सामूहिक रूप से एक रक्त समूह तंत्र बनाते हैं

apne rakt ke kitne ghatak ho sakte hain toh rakt jo hai iske prakar laal rakt koshikaaon RBCS ki tarah satah par upasthit anuvanshik prati gionee padarthon ki upasthitee anupsthiti par aadharit rakt ka Welding ka vargikaran hai yah position rakt samuh tantra ke aadhar par protein carbohydrate glaikoprotin ya glaikolipids hote hain aur kuch pratijan anya prakar ke uttar ki koshikaaon par bhi maujud ho sakte hain inmein se anek laal rakt kanika koshikaaon ki satah ke prati jan jo 1ll se utpann hote hain samuhik roop se ek rakt samuh tantra banate hain

रक्त-रक्त एक तरल संयोजी ऊतक है। यह लाल रंग का गाढ़ा क्षारीय (pH = 7.4) तरल पदार्थ है जो हृदय तथा रक्त वाहिनियों में प्रवाहित होता है।
  • रक्त के दो प्रमुख घटक होते हैं – (1) प्लाज्मा (2) रक्त कोशिकाएँ ।
    1. प्लाज्मा—यह रक्त का तरल भाग है। यह हल्के पीले रंग का चिपचिपा द्रव है जो आयतन के हिसाब से परे रक्त का करीब 55 प्रतिशत होता है। प्लाज्मा में करीब 90% जल, 7% प्रोटीन, 0.9%, अकार्बनिक लवण, 0.18% ग्लूकोज, 0.5% वसा शेष अन्य कार्बनिक पदार्थ होते हैं।
    2. रक्त कोशिकार –यह रक्त का ठोस भाग है जो कल रक्त का करीब 45 प्रतिशत है।
      जिसमें मुख्य रूप से तीन प्रकार की कोशिकाएँ होती हैं –
    • (i) लाल रक्त कोशिकाएँ (R.B.C) – इसमें एक विशेष प्रकार का प्रोटीन वर्णक हीमोग्लोबिन (Haemoglobin) पाया जाता है। जिसके कारण रक्त का रंग लाल होता है।
    • (ii) श्वेत रक्त कोशिकाएँ (W.B.C) – ये अनियमित आकार की न्यूक्लियस युक्त कोशिकाएँ हैं। इनमें हीमोग्लोबिन नहीं रहने के कारण रंगहीन होते हैं।
    • (iii) रक्त पट्टिकाणु – ये बिंबाणु या थ्रोम्बोसाइट्स भी कहलाते हैं। इसका प्रमुख कार्य रक्त को थक्का बनने में सहायक होना है।

      लहू या रुधिर या खून(Blood) एक शारीरिक तरल (द्रव) है जो लहू वाहिनियों के अन्दर विभिन्न अंगों में लगातार बहता रहता है। रक्त वाहिनियों में प्रवाहित होने वाला यह गाढ़ा, कुछ चिपचिपा, लाल रंग का द्रव्य, एक जीवित ऊतक है। यह प्लाज़मा और रक्त कणों से मिल कर बनता है। प्लाज़मा वह निर्जीव तरल माध्यम है जिसमें रक्त कण तैरते रहते हैं। प्लाज़मा के सहारे ही ये कण सारे शरीर में पहुंच पाते हैं और वह प्लाज़मा ही है जो आंतों से शोषित पोषक तत्वों को शरीर के विभिन्न भागों तक पहुंचाता है और पाचन क्रिया के बाद बने हानिकारक पदार्थों को उत्सर्जी अंगो तक ले जा कर उन्हें फिर साफ़ होने का मौका देता है। रक्तकण तीन प्रकार के होते हैं, लाल रक्त कणिका, श्वेत रक्त कणिका और प्लैटलैट्स। लाल रक्त कणिका श्वसन अंगों से आक्सीजन ले कर सारे शरीर में पहुंचाने का और कार्बन डाईआक्साईड को शरीर से श्वसन अंगों तक ले जाने का काम करता है। इनकी कमी से रक्ताल्पता (अनिमिया) का रोग हो जाता है। श्वैत रक्त कणिका हानीकारक तत्वों तथा बिमारी पैदा करने वाले जिवाणुओं से शरीर की रक्षा करते हैं। प्लेटलेट्स रक्त वाहिनियों की सुरक्षा तथा खून बनाने में सहायक होते हैं।

      मनुष्य-शरीर में करीब पाँच लिटर लहू विद्यमान रहता है। लाल रक्त कणिका की आयु कुछ दिनों से लेकर १२० दिनों तक की होती है। इसके बाद इसकी कोशिकाएं तिल्ली में टूटती रहती हैं। परन्तु इसके साथ-साथ अस्थि मज्जा (बोन मैरो) में इसका उत्पादन भी होता रहता है। यह बनने और टूटने की क्रिया एक निश्चित अनुपात में होती रहती है, जिससे शरीर में खून की कमी नहीं हो पाती।

      मनुष्यों में लहू ही सबसे आसानी से प्रत्यारोपित किया जा सकता है। एटीजंस से लहू को विभिन्न वर्गों में बांटा गया है और रक्तदान करते समय इसी का ध्यान रखा जाता है। महत्वपूर्ण एटीजंस को दो भागों में बांटा गया है। पहला ए, बी, ओ तथा दूसरा आर-एच व एच-आर। जिन लोगों का रक्त जिस एटीजंस वाला होता है उसे उसी एटीजंस वाला रक्त देते हैं। जिन पर कोई एटीजंस नहीं होता उनका ग्रुप "ओ" कहलाता है। जिनके रक्त कण पर आर-एच एटीजंस पाया जाता है वे आर-एच पाजिटिव और जिनपर नहीं पाया जाता वे आर-एच नेगेटिव कहलाते हैं। ओ-वर्ग वाले व्यक्ति को सर्वदाता तथा एबी वाले को सर्वग्राही कहा जाता है। परन्तु एबी रक्त वाले को एबी रक्त ही दिया जाता है। जहां स्वस्थ व्यक्ति का रक्त किसी की जान बचा सकता है, वहीं रोगी, अस्वस्थ व्यक्ति का खून किसी के लिये जानलेवा भी साबित हो सकता है। इसीलिए खून लेने-देने में बहुत सावधानी की आवश्यकता होती है। लहू का pH मान 7.4 होता है

      Solution : रक्त एक तरल संयोजी ऊतक होता है। यह एक श्यान तरल है जिसके दो भाग होते हैं-प्लाज्मा (Plasma) एवं रुधिर कोशिकाएँ। मनुष्य के अन्दर-रूचिस्का भापता लगभगलीट होता है। रक्त के घटक-रक्त के मुख्यतः दो भाग होते हैं-(1) प्लाज्मा (2) रुधिर कोशिकाएँ।
      (1) प्लाज्मा (Plasma)-रुधिर के तरल भाग को प्लाज्मा कहते हैं। यह हल्के पीले रंग का क्षारीय तरल होता है। रुधिर आयतन का 55% भाग प्लाज्मा होता है। इसमें 92% जल एवं 8% विभिन्न कार्बनिक एवं अकार्बनिक पदार्थ घुलित या निलम्बित या कोलाइड रूप में पाये जाते हैं।
      (2) रुधिर कोशिकाएँ-ये निम्न तीन प्रकार की होती हैं -
      (अ) लाल रुधिर कोशिकाएँ (RBC)-इन्हें इरिथ्रोसाइट्स (Erythrocytes) भी कहते हैं। इनकी संख्या बहुत अधिक होती है। ये कुल रक्त कोशिकाओं का 99 प्रतिशत होती हैं। ये आकार में वृत्ताकार, डिस्कीरूपी, उभयावतल (Biconcave) एवं केन्द्रक रहित होती हैं। हीमोग्लोबिन के कारण रक्त का रंग लाल होता है। इनकी औसत आयु 120 दिन होती है।
      (ब) श्वेत रक्त कोशिकाएँ (WBC)- इनका निर्माण लाल अस्थि मज्जा (Red bone marrow) से होता है। इन्हें ल्यूकोसाइट्स (Leucocytes) भी कहते हैं। इनमें हीमोग्लोबिन के अभाव के कारण तथा रंगहीन होने से इन्हें श्वेत रक्त कोशिकाएँ कहते हैं। इनमें केन्द्रक पाया जाता है इसलिए इसे वास्तविक कोशिकाएँ (True cells) कहते हैं। ये लाल रुधिर कोशिकाओं की अपेक्षा बड़ी, अनियमित एवं परिवर्तनशील आकार की परन्तु संख्या में बहुत कम होती हैं। ये कोशिकाएँ दो प्रकार की होती हैं
      (1) कणिकामय (Granulocytes)
      (ii) कणिकाविहीन (Agranulocytes)
      (1) कणिकामय श्वेत रक्ताणु-ये तीन प्रकार की होती हैं(i) न्यूट्रोफिल (ii) इओसिनोफिल (iii) बेसोफिल।
      न्यूट्रोफिल कणिकामय श्वेत रुधिर रक्ताणुओं में इनकी संख्या सबसे अधिक होती है। ये सबसे अधिक सक्रिय एवं इनमें अमीबीय गति पाई जाती है।
      (ii) कणिकाविहीन (Agranulocytes)-ये दो प्रकार की होती हैं(a) मोनोसाइट (b) लिम्फोसाइट।
      (a) मोनोसाइट (Monocytes)-ये न्यूट्रोफिल्स की तरह शरीर में प्रवेश कर सूक्ष्म जीवों का अन्त:ग्रहण (Ingestion) कर भक्षण करती हैं।
      (b) लिम्फोसाइट (Lymphocytes)-ये कोशिकाएँ तीन प्रकार की होती हैं
      (i) बी-लिम्फोसाइट (ii) .टी. लिम्फोसाइट (iii) प्राकृतिक मारक कोशिकाएँ। लिम्फोसाइट प्रतिरक्षा उत्पन्न करने वाली प्राथमिक कोशिकाएं हैं।
      मोनोसाइट महाभक्षक (Macrophage) कोशिका में बदल जाती है। मोनोसाइट, महाभक्षक तथा न्यूट्रोफिल मानव शरीर की प्रमुख भक्षक कोशिकाएँ हैं जो बाह्य प्रातजना का भक्षण करता हैं।
      (स) बिम्बाणु (Platelets)-ये बहुत छोटे होते हैं। इनका निर्माण भी अस्थि मज्जा में होता है। रक्त में इनकी संख्या करीब 3 लाख प्रति घन मिमी. होती है। इनकी आकृति अनियमित होती है तथा केन्द्रक का अभाव होता है। इनका जीवनकाल 10 दिन का होता है। बिम्बाणु रुधिर के थक्का जमाने में सहायता करती है। इनको थ्रोम्बोसाइट भी कहते हैं।
      रक्त का महत्त्व-रक्त प्राणियों के शरीर में निम्न कार्यों हेतु महत्त्वपूर्ण है
      (1) RBC हीमोग्लोबिन द्वारा `O_2` व `CO_2` का परिवहन करती है।
      (2) रुधिर के द्वारा पचे हुए पोषक पदार्थों को शरीर के विभिन्न भागों तक ले जाया जाता है।
      (3) रक्त समस्त शरीर का एकसमान ताप बनाये रखने में सहायता करता है।
      (4) रक्त शरीर पर हुए चोटों व घावों को भरने में सहायता करता है।"
      (5) प्रतिरक्षण के कार्यों को संपादित करना।
      (6) हार्मोन आदि को आवश्यकता के अनुरूप परिवहन करना।
      (7) उत्सर्जी उत्पादों को शरीर से बाहर करना।

      रक्त में कौन कौन से घटक होते हैं?

      रक्त में चार घटक होते हैं जो इस प्रकार हैं:.
      प्लाज्मा.
      लाल रक्त कोशिकाएँ (RBC).
      श्वेत रक्त कोशिकाएं (WBC).
      प्लेटलेट्स.

      रक्त क्या है इसके घटक क्या हैं रक्त के कार्य लिखिए?

      रक्त वह तरल पदार्थ या द्रव है, जो रक्त वाहिनियों में प्रवाहित होता है। यह पाचित भोजन को क्षुद्रांत (छोटी आँत) से शरीर के अन्य भागों तक ले जाता है। फेफड़ों से ऑक्सीजन को भी रक्त ही शरीर की कोशिकाओं तक ले जाता है। रक्त शरीर में से अपशिष्ट पदार्थों को बाहर निकालने के लिए उनका परिवहन भी करता है।