18 से 15 ईसवी की वियना संधि के प्रमुख उद्देश्य क्या थे? - 18 se 15 eesavee kee viyana sandhi ke pramukh uddeshy kya the?

जियुसेपे मेत्सीनी एक इटालियन क्रांतिकारी था। उसका जन्म 1807 में हुआ था। वह कार्बोनारी के सीक्रेट सोसाइटी का एक सदस्य बन गया। जब वह महज 24 साल का था, तभी लिगुरिया में क्रांति फैलाने की कोशिश में उसे 1831 में देशनिकाला दे दिया गया था। उसके बाद उसने दो अन्य सीक्रेट सोसाइटी का गठन किया। इनमें से पहला था मार्सेय में यंग ईटली और फिर बर्ने में यंग यूरोप। मेत्सीनी का मानना था कि भगवान ने राष्ट्र को मानवता की नैसर्गिक इकाई बनाया है। इसलिए इटली को छोटे छोटे राज्यों के बेमेल संगठन से बदलकर एक लोकतंत्र बनाने की जरूरत थी। मेत्सीनी का अनुसरण करते हुए लोगों ने जर्मनी, फ्रांस, स्विट्जरलैंड और पोलैंड में ऐसी कई सीक्रेट सोसाइटी बनाई। रुढ़िवादियों को मेत्सिनी से डर लगता था।

इस बीच जब रुढ़िवादी ताकतें अपनी शक्ति को और मजबूत करने में जुटी थीं, उदारवादी और राष्ट्रवादी लोग क्रांति की भावना को अधिक से अधिक फैलाने की कोशिश कर रहे थे। इन लोगों में ज्यादातर मध्यम वर्ग के अभिजात लोग थे; जैसे कि प्रोफेसर, स्कूल टीचर, क्लर्क, और व्यवसायी।

फ्रांस में पहला उथल पुथल 1830 की जुलाई में हुआ। उदारवादी क्रांतिकारियों ने बोर्बोन के राजाओं को उखाड़ फेंका। उसके बाद एक संवैधानिक राजतंत्र की स्थापना हुई जिसका मुखिया लुई फिलिप को बनाया गया। जुलाई की उस क्रांति के बाद ब्रसेल्स में भी आक्रोश बढ़ने लगा जिसके फलस्वरूप नीदरलैंड के यूनाइटेड किंगडम से बेल्जियम अलग हो गया।

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उसका पुनर्निर्माण करने के लिए ऑस्ट्रिया की राजधानी वियना में यूरोप के प्रमुख राजनीतिज्ञों एवं प्रतिनिधियों का सम्मेलन बुलाया गया। इस सम्मेलन को 'वियना कांग्रेस' कहा जाता है। वियना कांग्रेस सितम्बर, 1814 में प्रारम्भ हुई थी, किन्तु इससे पूर्व कि इसमें कुछ निर्णय लिए जाते, नेपोलियन बोनापार्ट  एल्बा द्वीप से भाग निकलने में सफल हो गया। अतः कुछ समय के लिए इस सम्मेलन को स्थगित करना पड़ा। यह कांग्रेस पुनः नवम्बर, 1814 में प्रारम्भ हुई। 18 जून, 1815 को वाटरलू के युद्ध में पराजित होने के पश्चात् उसे बन्दी बनाकर सेण्ट हेलेना द्वीप भेज दिया गया। नेपोलियन बोनापार्ट  के वाटरलू के युद्ध में परास्त होने के कुछ दिन पूर्व ही (9 जून, 1815 को) इस सम्मेलन के प्रतिनिधियों ने अन्तिम निर्णयों पर हस्ताक्षर किए।

वियना सम्मेलन के उद्देश्य -

वियना सम्मेलन बुलाने के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित थे -

(1) नेपोलियन बोनापार्ट  का पतन हो जाने से फ्रांस का सैनिक महत्त्व नष्ट हो गया था, किन्तु फ्रांस की राज्यक्रान्ति (1789 ई.) का प्रभाव सम्पूर्ण महाद्वीप में फैल चुका था। मित्र राष्ट्र इन क्रान्तिकारी प्रवृत्तियों को नष्ट करके यूरोप में पुरातन व्यवस्था को पुनः लागू करना चाहते थे।

(2) नेपोलियन बोनापार्ट  ने स्पेन, हॉलैण्ड, इटली, स्वीडन, ऑस्ट्रिया, पुर्तगाल तथा अन्य देशों को पराजित करके यूरोप की राजनीतिक व्यवस्था को अस्त-व्यस्त कर दिया था। नेपोलियन बोनापार्ट  के पतन के पश्चात् इन सभी राज्यों की राजनीतिक स्थिति को ठीक करने के साथ-साथ यूरोप के मानचित्र को बनाने की समस्या भी उपस्थित हो गई थी।

(3) क्रान्ति काल में क्रान्तिकारियों ने रोमन कैथोलिक चर्च के अधिकारों और उसकी सम्पत्ति पर अधिकार करके उसके महत्त्व को समाप्त कर दिया था। मित्र राष्ट्र चर्च की प्राचीन महत्ता को पुनर्स्थापित करना चाहते थे।

(4) लगभग सभी देश नेपोलियन बोनापार्ट  के युद्धों से प्रभावित हो चुके थे। इन युद्धों में अपार जन-धन की क्षति हुई थी। अब वह शान्ति चाहती थी। इस सम्मेलन में उन उपायों पर विचार-विमर्श होना था जिनके द्वारा यूरोप में स्थायी शान्ति स्थापित हो सके।

वियना सम्मेलन के मुख्य प्रतिनिधि

ऑस्ट्रिया का चांसलर मैटरनिख इस सम्मेलन का संचालक था। ऑस्ट्रिया की सरकार ने अतिथियों के स्वागत-सत्कार में 8 लाख पौण्ड व्यय किए थे। मैटरनिख पुरातन एवं प्रतिक्रियावादी व्यवस्था का समर्थक तथा क्रान्तिकारी विचारों का कट्टर शत्रु था। नेपोलियन बोनापार्ट  को पराजित करने में उसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। वियना सम्मेलन के निर्णयों पर मैटरनिख के विचारों का पूरा प्रभाव पड़ा था। इसके अतिरिक्त इस सम्मेलन में रूस के जार अलेक्जेण्डर प्रथम, इंग्लैण्ड के विदेश मन्त्री कैसलरे, फ्रांस के विदेश मन्त्री तैलीरौं तथा प्रशा के सम्राट् फ्रेड्रिक विलियम तृतीय की उपस्थिति ने सम्मेलन को आकर्षक बना दिया था।

वियना सम्मेलन के सिद्धान्त -

यद्यपि सम्मेलन के प्रतिनिधियों के पारस्परिक मतभेदों के कारण सम्मेलन की असफलता की सम्भावनाएँ बढ़ गई थीं, फिर भी समस्याओं के समाधान हेतु अग्रलिखित सिद्धान्त पारित किए गए थे

(1) न्यायोचित राजसत्ता का सिद्धान्त–

सभी सदस्यों ने यह स्वीकार किया कि पिछले 25 वर्षों में राजनीतिक उथल-पुथल का कारण 1789 ई. की क्रान्ति का विस्फोट था। अत: यह निश्चित किया गया कि 1789 ई. की क्रान्ति से पूर्व सभी देशों में प्रचलित शासन व्यवस्था को पुनः स्थापित किया जाए अर्थात् उन प्राचीन राजवंशों को शासन करने का अधिकार पुनः प्रदान कर दिया जाए जो 1789 ई. की क्रान्ति से पूर्व सत्तारूढ़ थे।

(2) शक्ति सन्तुलन का सिद्धान्त-

यह निर्णय लिया गया था कि यूरोप का मानचित्र बनाते समय सभी देशों में शक्ति सन्तुलन स्थापित किया जाए। इसके साथ ही इस बात का भी ध्यान रखा गया था कि फ्रांस तथा अन्य ऐसे देशों की सीमा पर शक्तिशाली राज्य स्थापित किए जाएँ, जहाँ पर क्रान्तिकारी विचारों के पुनः फैलने का भय था।

(3) पुरस्कार एवं दण्ड का सिद्धान्त–

सभी सदस्यों ने यह निश्चित किया कि नेपोलियन बोनापार्ट  को पराजित करने में जिन देशों ने मित्र राष्ट्रों की सहायता की थी, उन्हें पुरस्कार स्वरूप राजनीतिक सीमा बढ़ाने का अवसर प्रदान किया जाए। इसके विपरीत नेपोलियन बोनापार्ट  का साथ देने वाले देशों को दण्डित करने के उद्देश्य से उनकी राजनीतिक सीमा में कटौती की जाए। .

वियना सम्मेलन के महत्त्वपूर्ण निर्णय -

वियना सम्मेलन में निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण निर्णय लिए गए-

(1) न्यायोचित राजसत्ता के सिद्धान्त के आधार पर फ्रांस में बूबों राजवंश की पुनर्स्थापना की गई। सम्राट् लुई सोलहवें के छोटे भाई लुई अठारहवें को फ्रांस का राजा बनाया गया। पिछले युद्धों के लिए फ्रांस को जिम्मेदार ठहराते हुए क्षतिपूर्ति के रूप में 70 करोड़ फ्रैंक की धनराशि फ्रांस पर लाद दी गई। इस रकम का भुगतान होने तक फ्रांस के खर्चे पर फ्रांस की सीमा पर मित्र राष्ट्रों के 15 लाख सैनिक नियुक्त कर दिए गए। फ्रांस की राजनीतिक सीमा को 1791 ई. की स्थिति में स्वीकार कर लिया गया।

(2) फ्रांस के पड़ोसी देश हॉलैण्ड को शक्तिशाली बनाने के उद्देश्य से बेल्जियम का प्रदेश ऑस्ट्रिया से लेकर हॉलैण्ड को दे दिया गया।

(3) इटली की राष्ट्रीय एकता को समाप्त करके उसको आठ भागों में विभक्त कर दिया। रोम में पोप का शासन पुनः स्थापित कर दिया गया।

(4) जर्मनी के छोटे-छोटे 39 राज्यों को मिलाकर जर्मन परिसंघ बनाया गया, जिसके अध्यक्ष पद पर ऑस्ट्रिया के सम्राट को नियुक्त किया गया। परन्तु परिसंघ को सुदृढ़ बनाने के लिए कुछ नहीं किया गया। इस प्रकार राज्यों के पारस्परिक सम्बन्ध बड़े शिथिल रहे।

(5) ऑस्ट्रिया को बेल्जियम के बदले में इटली के लोम्बार्डी तथा वेनेशिया के प्रदेश दिए गए।

(6) सबसे अधिक लाभ ग्रेट ब्रिटेन को हुआ। उसे हेलिगोलैण्ड, माल्टा, आयोनियन द्वीप समूह, केप कॉलोनी, टोबैगो, सेण्ट लूसिया, त्रिनिदाद आदि क्षेत्र प्राप्त हो गए, जो औद्योगिक दृष्टि से महत्त्वपूर्ण थे।

(7) नार्वे तथा स्वीडन को मिला दिया गया। स्वीडन से फिनलैण्ड का प्रदेश लेकर रूस को दे दिया गया।

(8) प्रशा को शक्तिशाली बनाने के लिए उसे सेक्सनी राज्य का 40% भाग प्रदान किया गया।

(9) पोलैण्ड को तीन भागों में विभक्त करके अधिकांश भाग रूस को दे दिया गया।

(10) भविष्य में अन्तर्राष्ट्रीय जहाजों के आवागमन, समुद्रों के उपयोग तथा विभिन्न राष्ट्रों के मध्य व्यापार व वाणिज्य के विकास के लिए अन्तर्राष्ट्रीय कानून बनाया गया।

(11) वियना समझौते को प्रभावी ढंग से लागू करने तथा महाद्वीप में शान्ति बनाए रखने के उद्देश्य से इंग्लैण्ड, रूस, प्रशा व ऑस्ट्रिया ने 'यूरोप की संयुक्त व्यवस्था' (Concert of Europe) की स्थापना की।

वियना सम्मेलन की आलोचना -

वियना सम्मेलन का प्रारम्भ अनेक ऊँचे आदर्शों और घोषणाओं के साथ किया गया था, किन्तु इसके निर्णय एवं सिद्धान्तों का अध्ययन करने के पश्चात् यह कहा जा सकता है कि सम्मेलन अपने उद्देश्यों में सफल नहीं हो सका। इसके निर्णयों में निम्नलिखित दोष थे-

(1) इस सम्मेलन में किसी भी देश की जनता का कोई प्रतिनिधि नहीं बुलाया गया था। वस्तुतः यह शासकों का सम्मेलन था, जनता का नहीं। इसमें सभी अधिकार शासकों को सौंप दिए गए। किसी ने जनता की भावनाओं को जानने का प्रयास नहीं किया। यही कारण है कि जनता ने वियना व्यवस्था को कभी हृदय से स्वीकार नहीं किया। इतिहासकार हेजन ने लिखा है, "इस सम्मेलन में राजनीतिज्ञों द्वारा जनता की भावनाओं की अवहेलना करते हुए यूरोप का मानचित्र बनाया गया, जिसके कारण यह समझौता स्थायी नहीं हो सका।"

(2) राष्ट्रीयता एवं प्रजातन्त्र तत्कालीन इतिहास की मुख्य प्रवृत्तियाँ थीं, किन्तु वियना सम्मेलन में इन प्रवृत्तियों की अवहेलना की गई। केवल शक्ति सन्तुलन का ध्यान रखते हुए यूरोपीय राज्यों की सीमाओं में परिवर्तन किया गया। इस महान् गलती के कारण 1815 ई. के बाद के वर्षों में निरन्तर आन्दोलन व क्रान्तियाँ होती रहीं। इसीलिए एक इतिहासकार ने कहा है, "1815 ई. के बाद का यूरोप का इतिहास वियना व्यवस्था की त्रुटियों को सुधारने का इतिहास है।"

(3) क्रान्ति के सिद्धान्तों का उस समय इतना व्यापक प्रभाव था कि इन सिद्धान्तों के विपरीत कोई भी व्यवस्था सफल नहीं हो सकती थी। वियना सम्मेलन में भी क्रान्ति के सिद्धान्तों की अवहेलना की गई तथा सभी देशों में शासन के अधिकार प्राचीन राजवंशों को प्रदान करके पुरातन व्यवस्था को पुनः लागू कर दिया गया। इसलिए सभी देशों की जनता ने इसके निर्णयों को ठुकराना प्रारम्भ कर दिया।

वियना सम्मेलन का महत्त्व -

यद्यपि कुछ दोषों के कारण वियना समझौते की आलोचना की जाती है, तथापि निम्न तथ्यों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि वियना सम्मेलन यूरोप के इतिहास की महत्त्वपूर्ण एवं युगान्तकारी घटना थी-

(1) उस समय मित्र राष्ट्रों के सामने शान्ति की स्थापना एक मुख्य समस्या थी। उनके कन्धों पर महाद्वीप को युद्ध के लाण्डव से बचाने की जिम्मेदारी थी। निःसन्देह. उन्होंने अपने दायित्व का सफलतापूर्वक निर्वहन किया था। उन्होंने वियना व्यवस्था के माध्यम से लगभग 40 वर्षों तक महाद्वीप को युद्ध की आग से सुरक्षित रखा।

(2) यद्यपि सम्मेलन के निर्णयों में राष्ट्रीयता के सिद्धान्तों की अवहेलना की गई थी, तथापि पीडमॉण्ट, प्रशा आदि राज्यों को शक्तिशाली बनाकर अप्रत्यक्ष रूप से इटली वं जर्मनी के राष्ट्रीय आन्दोलनों की सशक्त पृष्ठभूमि का निर्माण भी किया था।

(3) इस सम्मेलन ने भविष्य में परस्पर बातचीत के द्वारा समस्याओं को हल करने की नवीन परिपाटी को जन्म दिया। इस सम्मेलन को भविष्य के यूरोप का आधार माना जाता है। एक इतिहासकार ने लिखा है, "वियना सम्मेलन के प्रतिनिधि ईश्वर के अवतार नहीं थे। अपनी शक्ति के द्वारा उन्होंने शान्ति स्थापना के लिए महत्त्वपूर्ण कार्य किया था।"

1815 की वियना संधि का मुख्य उद्देश्य क्या था?

वियना संधि का मुख्य उद्देश्य नेपोलियन के द्वारा किए गए बदलावों को दुबारा से अमल में लाना था। वियना संधि के तहत 1815 में उत्तर में नीदरलैंड साम्राज्य की स्थापना की गई। दक्षिण में जिनेवा को पिंडमाण्ड के साथ मिला दिया गया।

1815 ई के वियना कांग्रेस के क्या सिद्धांत थे?

इसकी अध्यक्षता ऑस्ट्रियाई राजनेता मेटरनिख ने की। [1] कांग्रेस का मुख्य उद्देश्य फ्रांसीसी क्रांतिकारी युद्ध, नेपोलियन युद्ध और पवित्र रोमन साम्राज्य के विघटन से उत्पन्न होने वाले कई मुद्दों एवं समस्याओं को हल करने का था।

निम्न में से कौन 1815 की वियना संधि से संबंधित है?

Answer. वियना की कांग्रेस (Viena Congress) यूरोपीय देशों के राजदूतों का एक सम्मेलन था, जो सितंबर 1814 से जून 1815 को वियना में आयोजित किया गया था। इसकी अध्यक्षता ऑस्ट्रियाई राजनेता मेटरनिख ने की।

निम्नलिखित में से कौन सा देश 1815 की वियना संधि में शामिल नहीं था?

संयुक्त राज्य अमेरिका 1815 की वियना कांग्रेस (सम्मेलन) का हिस्सा नहीं था1815 की वियना की संधि यूरोप के लिए एक समझौता करने के लिए संबद्ध शक्तियों - ऑस्ट्रिया, ग्रेट ब्रिटेन, प्रशिया और रूस का औपचारिक समझौता था